NCERT Solutions Class 10th Social Science Geography New syllabus Chapter – 5 खनिज तथा ऊर्जा संसाधन (Minerals and Energy Resources) Notes in Hindi

NCERT Solutions Class 10th Social Science Geography Chapter - 5 खनिज तथा ऊर्जा संसाधन (Minerals and Energy Resources) Notes in Hindi
Last Doubt

Contents

NCERT Solutions Class 10th Social Science Geography New syllabus Chapter – 5 खनिज तथा ऊर्जा संसाधन (Minerals and Energy Resources)

Text BookNCERT
Class  10th
Subject  Social Science (भूगोल)
Chapter5th
Chapter Nameखनिज तथा ऊर्जा संसाधन
CategoryClass 10th Social Science Geography
Medium Hindi
SourceLast Doubt
NCERT Solutions Class 10th Social Science Geography Chapter – 5 खनिज तथा ऊर्जा संसाधन (Minerals and Energy Resources) Notes in Hindi हम इस अध्याय में खनिज तथा ऊर्जा संसाधन, खनिज क्या है?, खनिज कहाँ पाए जाते हैं?, खनिजों का वर्गीकरण कितने प्रकार से किया गया है?, धात्विक खनिज किसे कहते हैं?, अधात्विक किसे कहते हैं?, ऊर्जा खनिज किसे कहते हैं?, खनिजों का हमारे लिए क्या महत्व है?, खनिजों से प्राप्ति स्थल क्या है?, अलौह खनिज से क्या समझते हैं?, लौह और अलौह खनिज में अन्तर बताइए?, लौह अयस्क (Iron Ore) क्या है?, भारत में कहाँ-कहाँ लौह अयस्क की पेटिया है?, मैंगनीज़ से क्या समझते हैं?, अलौह खनिज से क्या समझते हैं?, ताँबा से क्या समझते हैं?, खनिज तथा ऊर्जा संसाधन Class 10 Question answer, खनिज तथा ऊर्जा संसाधन Class 10 Notes PDF, खनिज तथा ऊर्जा संसाधन नोट्स, खनिज तथा ऊर्जा संसाधन Class 10 MCQ, खनिज तथा ऊर्जा संसाधन pdf, खनिज तथा ऊर्जा संसाधन Class 12, खनिज तथा ऊर्जा संसाधन in English, कक्षा 10 भूगोल अध्याय 5 नोट्स इत्यादि के बारे में पढ़ेंगे।

NCERT Solutions Class 10th Social Science Geography New syllabus Chapter – 5 खनिज तथा ऊर्जा संसाधन (Minerals and Energy Resources)

Chapter – 5

खनिज तथा ऊर्जा संसाधन

Notes

खनिज – भू-वैज्ञानिकों के अनुसार खनिज एक प्राकृतिक रूप से विद्यमान समरूप तत्त्व है, जिसकी एक निश्चित आंतरिक संरचना है। खनिज प्रकृति में अनेक रूपों में पाए जाते हैं जिसमें से कठोर हीरा से लेकर नरम चूना तक सम्मिलित हैं। खनिज हमारे जीवन का अति आवश्यक और उपयोगी भाग है। सभी वस्तुओं का निर्माण खनिजों द्वारा होता है। एक कार्बनिक पदार्थ जिसमें कठोरता, रंग और निश्चित आकार होता है।

खनिज कहाँ पाए जाते हैं?

मुख्य रूप से खनिज ‘अयस्कों’ में पाए जाते हैं। किसी भी खनिज में अन्य अवयवों या तत्त्वों के मिश्रण या संचयन ऊष्मा व दबाव का परिणाम है। अवसादी चट्टानों में दूसरी श्रेणी के खनिजों में जिप्सम, पोटाश, नमक व सोडियम सम्मिलित हैं। इनका निर्माण विशेषकर शुष्क प्रदेशों में वाष्पीकरण के फलस्वरूप होता है।
खनिजों का वर्गीकरण – खनिजों का वर्गीकरण 3 प्रकार से किया गया हैं।

1. धात्विक
2. अधात्विक
3. ऊर्जा खनिज
धात्विक खनिज – वे खनिज जिनमें धातु का अंश अधिक होता है। उसे धात्विक खनिज कहते हैं। ये तीन प्रकार के होते हैं।

(i) लौह धातु (जिसमें लोहे का अंश हो) जैसे अयस्क, मैंगनीज़ निकल व कोबाल्ट आदि।
(ii) अलौह जैसे – ताँबा, सीसा, जस्ता व बॉक्साइट आदि।
(iii) बहुमूल्य खनिज जैसे सोना, चाँदी, प्लेटिनम आदि।
अधात्विक खनिज – वे सभी खनिज जिनमें धातु का अंश नहीं होता है उसे अधात्विक खनिज कहते हैं। जैसे – अभ्रक, नमक, पोटाश, सल्फर, चूनाश्म/चूना पत्थर, संगमरमर तथा बलुआ पत्थर आदि।
ऊर्जा खनिज – जिन खनिजों के प्रयोग से ऊर्जा (प्रकाश) प्राप्त होती है, उन्हें ऊर्जा खनिज कहते हैं। जैसे – कोयला, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस आदि।

खनिजों का हमारे लिए क्या महत्व है?

खनिजों का महत्व – दैनिक जीवन में काम आने वाली छोटी से छोटी चीज़ सुई से लेकर जहाज तक खनिजों से बनाए जाते हैं। इमारतें, पुल तक खनिजों से बनाए जाते हैं। भोजन में भी खनिज होते हैं। मशीनें और औज़ार खनिजों से बनते हैं। परिवहन के साधन, बर्तन आदि खनिजों से ही बनाए जाते हैं।
खनिजों के स्थल
आग्नेय तथा कायांतरित स्थल से (जस्ता, तांबा, जिंक, सीसा)
अवसादी चट्टानों की परतों में (कोयला, पोटाश, सोडियम नमक)
धरातलीय चट्टानों से अपघटन से जलोढ़ जमाव या प्लेसर निक्षेप के रूप में (सोना, चाँदी, टिन, प्लैटिनम)
महासागरीय जल (नमक, मैग्नीशियम, ब्रोमाइन)

अलौह खनिज से आप क्या समझते हैं?

इन खनिजों में लोहा शामिल नहीं होता है।
यद्यपि ये खनिज जिनमें ताँबा, बॉक्साइट, सीसा और सोना आते हैं।
धातु शोधन, इंजीनियरिंग व विद्युत उद्योगों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

लौह और अलौह खनिज में अन्तर बताइए?

लौह खनिज अलौह खनिज 
जिनमें लोहे का अंश होता है। जिनमें लोहे का अंश नहीं होता है। 
लौह अयस्क, मैंगनीज, निकल और कोबाल्ट आदि।तांबा, सीसा, जस्ता और बॉक्साइट।
लौह अयस्क (Iron Ore) – लौह अयस्क एक आधारभूत खनिज है जो की औद्योगिक विकास की रीढ़ है। भारत में लौह अयस्क के विपुल संसाधन विद्यमान हैं। भारत उच्च कोटि के लोहांशयुक्त लौह अयस्क में धनी है। मैग्नेटाइट सर्वोत्तम प्रकार का लौह अयस्क है जिसमें 70 प्रतिशत लोहांश पाया जाता है। इसमें सर्वश्रेष्ठ चुंबकीय गुण होते हैं, जो विद्युत उद्योगों में विशेष रूप से उपयोगी हैं। हेमेटाइट सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण औद्योगिक लौह अयस्क है जिसका अधिकतम मात्रा में उपभोग हुआ है। किंतु इसमें लोहांश की मात्रा मैग्नेटाइट की अपेक्षा थोड़ी-सी कम होती है।

भारत में कहाँ-कहाँ लौह अयस्क की पेटिया है?

उड़ीसा – झारखण्ड पेटी
दुर्ग – बस्तर – चन्द्रपुर पेटी
महाराष्ट्र – गोआ पेटी
बेलारी – चित्रदुर्ग, चिकमंगलूर – तुमकुर पेटी
मैंगनीज़
मैंगनीज़ मुख्य रूप से इस्पात के विनिर्माण में प्रयोग किया जाता है।
एक टन इस्पात बनाने में लगभग 10 किग्रा. मैंगनीज़ की आवश्यकता होती है।
इसका उपयोग ब्लीचिंग पाउडर, कीटनाशक दवाएँ व पेंट बनाने में किया जाता है।
भारत में उड़ीसा मैंगनीज़ का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है।
वर्ष 2000-01 में देश के कुल उत्पादन का एक तिहाई भाग यहाँ से प्राप्त हुआ।
अलौह खनिज
• भारत में अलौह खनिजों की संचित राशि व उत्पादन अधिक संतोषजनक नहीं है।
• यद्यपि ये खनिज जिनमें ताँबा, बॉक्साइट, सीसा और सोना आते हैं, धातु शोधन, इंजीनियरिंग व विद्युत उद्योगों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
ताँबा – भारत में ताँबे के भंडार व उत्पादन क्रांतिक रूप से न्यून हैं। घातवर्ध्य (malleable), तन्य और ताप सुचालक होने के कारण ताँबे का उपयोग मुख्यतः बिजली के तार बनाने, इलैक्ट्रोनिक्स और रसायन उद्योगों में किया जाता है। मध्य प्रदेश की बालाघाट खदानें देश का लगभग 52 प्रतिशत ताँबा उत्पन्न करती हैं। झारखंड का सिंहभूम जिला भी ताँबे का मुख्य उत्पादक है। राजस्थान की खेतड़ी खदानें भी ताँबे के लिए प्रसिद्ध थीं।
बॉक्साइट
• बॉक्साइट निक्षेपों की रचना एल्यूमिनियम सीलिकेटों से समृद्ध व्यापक भिन्नता वाली चट्टानों के विघटन से होती है।
• एल्यूमिनियम एक महत्त्वपूर्ण धातु है क्योंकि यह लोहे जैसी शक्ति के साथ – साथ अत्यधिक हल्का एवं सुचालक भी होता है।
• इसमें अत्यधिक घातवर्ध्यता (malleability) भी पाई जाती है।
• भारत में बॉक्साइट के निक्षेप मुख्यत – अमरकंटक पठार, मैकाल पहाड़ियों तथा बिलासपुर कटनी के पठारी प्रदेश में पाए जाते हैं।
चूना पत्थर
• चूना पत्थर कैल्शियम या कैल्शियम कार्बोनेट तथा मैगनीशियम कार्बोनेट से बनी चट्टानों में पाया जाता है।
• यह अधिकांशतः अवसादी चट्टानों में पाया जाता है।
• चूना पत्थर सीमेंट उद्योग का एक आधारभूत कच्चा माल होता है।
• और लौह – प्रगलन की भट्टियों के लिए अनिवार्य है।
अभ्रक के निक्षेप के प्रमुख क्षेत्र
• छोटा नागपुर पठार के उत्तरी पठारी किनारों पर।
• बिहार झारखण्ड की कोडरमा गया हज़ारीबाग पेटी।
• राजस्थान में अजमेर के पास।
• आंध्र प्रदेश की नेल्लोर पेटी।
खनिज संसाधनों के संरक्षण
• खनन एवं परिष्करण के दौरान इन पदार्थों की बर्बादी कम हो।
• जहाँ तक सम्भव हो प्लास्टिक (प्रमाणित) और लकड़ी का प्रयोग करें।
• खनन व खनिज सुधार प्रक्रिया में धातु बनने तक कम से कम अपव्यय।
• रद्दी एवं पुराने माल का पुनः प्रयोग करना चाहिए।
• योजनाबद्ध तरीके से खनिजों का पुनः चक्रण व पुनः उपयोग।
• नियोजित व सतत् पोषणीय तरीके से उपयोग।
• पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए खनिजों के अन्य विकल्प ढूँढना, जैसे सी. एन. जी।

खनिज संसाधनों का संरक्षण क्यों आवश्यक है?

• खनिज हमारे उद्योग और कृषि के आधार हैं।
• नवीकरण योग्य नहीं हैं।
• निक्षेपों की कुल मात्रा बहुत ही कम है।
•इनके निर्माण में लाखों वर्ष लग जाते हैं।
• हम बहुत तेजी से खनिजों का उपयोग कर रहे है।
• इन्हें आने वाली पीढ़ी के लिए सम्भाल कर रखना चाहिए।
खनन उद्योग
• लगातार धूल व हानिकारक धुएँ में सांस लेना पड़ता है।
• श्रमिकों को फेफड़ों से संबंधित बीमारियाँ हो जाती हैं।
• खदानों में पानी भर जाने या आग लग जाने से श्रमिकों में डर बना रहता है।
• कई बार खदानों की छत के गिर जाने से उन्हें अपनी जान गंवानी पड़ती है।
• खनन के कारण नदियों का जल प्रदूषित हो जाता है।
• भूमि और मिट्टी का अपक्षय होता है।
ऊर्जा संसाधन
• खाना पकाने में, रोशनी व ताप के लिए, गाड़ियों के संचालन तथा उद्योगों में मशीनों के संचालन में ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
• ऊर्जा का उत्पादन ईंधन खनिजों जैसे – कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस, यूरेनियम तथा विद्युत से किया जाता है।
• ऊर्जा संसाधनों को परंपरागत तथा गैर – परंपरागत साधनों में वर्गीकृत किया जा सकता है।
• परंपरागत ऊर्जा के स्रोत – लकड़ी, उपले, कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस तथा विद्युत (दोनों जल विद्युत व ताप विद्युत)
• गैर परंपरागत ऊर्जा के स्रोत – सौर, पवन, ज्वारीय, भू – तापीय, बायोगैस तथा परमाणु ऊर्जा शामिल है।
परंपरागत ऊर्जा के स्रोत
• कोयला – भारत में कोयला बहुतायात में पाया जाने वाला जीवाश्म ईंधन है। यह देश की ऊर्जा आवश्यकताओं का महत्त्वपूर्ण भाग प्रदान करता है। इसका उपयोग ऊर्जा उत्पादन तथा उद्योगों और घरेलू ज़रूरतों के लिए ऊर्जा की आपूर्ति के लिए किया जाता है।
• भारत अपनी वाणिज्यिक ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु मुख्यतः कोयले पर निर्भर है। संपीड़न की मात्रा, गहराई और समय के अनुसार कोयले के तीन प्रकार होते हैं जो निम्नलिखित हैं।
• लिग्नाइट – लिग्नाइट एक निम्न कोटि का भूरा कोयला होता है। यह मुलायम होने के साथ अधिक नमीयुक्त होता है। लिग्नाइट के प्रमुख भंडार तमिलनाडु के नैवेली में मिलते हैं और विद्युत उत्पादन में प्रयोग किए जाते हैं।
• बिटुमिनस कोयला – गहराई में दबे तथा अधिक तापमान से प्रभावित कोयले को बिटुमिनस कोयला कहा जाता है। वाणिज्यिक प्रयोग में यह सर्वाधिक लोकप्रिय है। धातुशोधन में उच्च श्रेणी के बिटुमिनस कोयले का प्रयोग किया जाता है जिसका लोहे के प्रगलन में विशेष महत्त्व है।
• एंथ्रासाइट कोयला – एंथ्रेसाइट सर्वोत्तम गुण वाला कठोर कोयला है।

भारत मे कोयला कहाँ पाया जाता?

• भारत में कोयला दो प्रमुख भूगर्भिक युगों के शैल क्रम में पाया जाता है एक गोंडवाना जिसकी आयु 200 लाख वर्ष से कुछ अधिक है और दूसरा टरशियरी निक्षेप जो लगभग 55 लाख वर्ष पुराने हैं।
• गोंडवाना कोयले – जो धातुशोधन कोयला है, के प्रमुख संसाधन दामोदर घाटी (पश्चिमी बंगाल तथा झारखंड), झरिया, रानीगंज, बोकारो में स्थित हैं जो महत्त्वपूर्ण कोयला क्षेत्र हैं। गोदावरी, महानदी, सोन व वर्धा नदी घाटियों में भी कोयले के जमाव पाए जाते हैं।
• टरशियरी कोयला क्षेत्र – उत्तर पूर्वी राज्यों मेघालय, असम, अरुणाचल प्रदेश व नागालैंड में पाया जाता है।
पेट्रोलियम
• भारत में कोयले के पश्चात् ऊर्जा का दूसरा प्रमुख साधन पेट्रोलियम या खनिज तेल है। यह ताप व प्रकाश के लिए ईंधन, मशीनों को स्नेहक और अनेक विनिर्माण उद्योगों को कच्चा माल प्रदान करता है।
• तेल शोधन शालाएँ संश्लेषित वस्त्र, उर्वरक तथा असंख्य रासायन उद्योगों में एक नोडीय बिंदु का काम करती हैं।
• भारत का 63% पेट्रोलियम मुम्बई हाई से निकलता है। 18% गुजरात से और 13% असम से आता है।
प्राकृतिक गैस
• इसे ऊर्जा के एक साधन के रूप में तथा पेट्रो रासायन उद्योग के एक औद्योगिक कच्चे माल के रूप में प्रयोग किया जाता है।
• कार्बनडाई ऑक्साइड के कम उत्सर्जन के कारण प्राकृतिक गैस को पर्यावरण अनुकूल माना जाता है। इसलिए यह वर्तमान शताब्दी का ईंधन है।
• कृष्णा – गोदावरी नदी बेसिन में प्राकृतिक गैस के विशाल भंडार खोजे गए हैं। अंडमान – निकोबार द्वीप समूह भी महत्त्वपूर्ण क्षेत्र हैं जहाँ प्राकृतिक गैस के विशाल भंडार पाए जाते हैं।
विद्युत – विद्युत मुख्यतः दो प्रकार से उत्पन्न की जाती है

(क) प्रवाही जल से जो हाइड्रो – टरबाइन चलाकर जल विद्युत उत्पन्न करता है।
(ख) अन्य ईंधन जैसे कोयला पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस को जलाने से टरबाइन चलाकर ताप विद्युत उत्पन्न की जाती है।

भारत में अनेक बहुत – उद्देशीय परियोजनाएँ हैं जो विद्युत ऊर्जा उत्पन्न करती हैं; जैसे – भाखड़ा नांगल, दामोदर घाटी कारपोरेशन और कोपिली हाइडल परियोजना आदि।

ताप विद्युत – ताप विद्युत कोयला, पेट्रोलियम तथा प्राकृतिक गैस के प्रयोग से उत्पन्न की जाती है। ताप विद्युत गृह अनवीकरण योग्य जीवश्मी ईंधन का प्रयोग कर विद्युत उत्पन्न करते हैं।

तापीय और जल विद्युत ऊर्जा में अन्तर बताइए?

तापीय विद्युतजल विद्युत ऊर्जा
यह विद्युत कोयले, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस के प्रयोग से पैदा की जाती है। जल विद्युत ऊर्जा गिरते हुए जल की शक्ति का प्रयोग करके टरबाइन को चलाने से होता है। 
यह प्रदूषण युक्त है।यह प्रदूषण रहित है।
स्थायी स्रोत नहीं है।स्थायी स्रोत है। 
अनवीकरणीय स्रोतों पर आधारित है। जल जैसे नवीकरणीय स्रोतों पर आधारित है। 
भारत में 310 से अधिक ताप विद्युत के केन्द्र हैं। भारत में अनेक बहुउद्धेश्यीय परियोजनायें हैं। 
जैसे – तलचेर, पांकी, नामरूप, उरन, नवेली आदि।जैसे – भाखड़ा नॉगल दामोदर घाटी कोपली आदि।
गैर-परंपरागत ऊर्जा के साधन – ऊर्जा के बढ़ते उपभोग ने देश को कोयला, तेल और गैस जैसे जीवाश्म ईंधनों पर अत्यधिक निर्भर कर दिया है। गैस व तेल की बढ़ती कीमतों तथा इनकी संभाव्य कमी भविष्य में ऊर्जा आपूर्ति की सुरक्षा के प्रति अनिश्चितताएँ उत्पन्न कर दी हैं। इसके राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि पर गंभीर प्रभाव पड़ते हैं। इसके अतिरिक्त जीवाश्मी ईंधनों का प्रयोग गंभीर पर्यावरणीय समस्याएँ उत्पन्न करता है। अतः नवीकरण योग्य ऊर्जा संसाधनों जैसे सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा, जैविक ऊर्जा तथा अवशिष्ट पदार्थ जनित ऊर्जा के उपयोग की बहुत ज़रूरत है। ये ऊर्जा के गैर-परंपरागत साधन कहलाते हैं।

भारत में सौर ऊर्जा का भविष्य उज्ज्वल है, क्यों?

• भारत एक उष्ण कटिबंधीय देश है।
• यह प्रदूषण रहित ऊर्जा संसाधन है।
• यह नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत है।
• निम्नवर्ग के लोग आसानी से इसका लाभ उठा सकते हैं।
परमाणु अथवा आणविक ऊर्जा – परमाणु अथवा आणविक ऊर्जा अणुओं की संरचना को बदलने से प्राप्त की जाती है। जब ऐसा परिवर्तन किया जाता है तो ऊष्मा के रूप में काफी ऊर्जा विमुक्त होती है; और इसका उपयोग विद्युत ऊर्जा उत्पन्न करने में किया जाता है। यूरेनियम और थोरियम जो झारखंड और राजस्थान की अरावली पर्वत श्रृंखला में पाए जाते हैं, का प्रयोग परमाणु अथवा आणविक ऊर्जा के उत्पादन में किया जाता है। केरल में मिलने वाली मोनाजाइट रेत में भी थोरियम की मात्रा पाई जाती है।
सौर ऊर्जा – भारत एक उष्ण कटिबंधीय देश है। यहाँ सौर ऊर्जा के दोहन की असीम संभावनाएँ हैं। फोटोवोल्टाइक प्रौद्योगिकी द्वारा धूप को सीधे विद्युत में परिवर्तित किया जाता है। भारत के ग्रामीण तथा सुदूर क्षेत्रों में सौर ऊर्जा तेजी से लोकप्रिय हो रही है। कुछ बड़े सौर ऊर्जा संयंत्र देश के विभिन्न भागों में स्थापित किए जा रहे हैं। ऐसी अपेक्षा है कि सौर ऊर्जा के प्रयोग से ग्रामीण घरों में उपलों तथा लकड़ी पर निर्भरता को न्यूनतम किया जा सकेगा। फलस्वरूप यह पर्यावरण संरक्षण में योगदान देगा और कृषि में भी खाद्य की पर्याप्त आपूर्ति होगी।
पवन ऊर्जा – भारत में पवन ऊर्जा के उत्पादन की महान संभावनाएँ हैं। भारत में पवन ऊर्जा फार्म के विशालतम पेटी तमिलनाडु में नागरकोइल से मदुरई तक अवस्थित है। इसके अतिरिक्त आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात, केरल, महाराष्ट्र तथा लक्षद्वीप में भी महत्त्वपूर्ण पवन ऊर्जा फार्म हैं। नागरकोइल और जैसलमेर देश में पवन ऊर्जा के प्रभावी प्रयोग के लिए जाने जाते हैं।
बायोगैस – ग्रामीण इलाकों में झाड़ियों, कृषि अपशिष्ट, पशुओं और मानव जनित अपशिष्ट के उपयोग से घरेलू उपभोग हेतु बायोगैस उत्पन्न की जाती है। जैविक पदार्थों के अपघटन से गैस उत्पन्न होती है, जिसकी तापीय सक्षमता मिट्टी तेल, उपलों व चारकोल की अपेक्षा अधिक होती है। बायोगैस संयंत्र नगरपालिका, सहकारिता तथा निजी स्तर पर लगाए जाते हैं। पशुओं का गोबर प्रयोग करने वाले संयंत्र ग्रामीण भारत में ‘गोबर गैस प्लांट’ के नाम से जाने जाते हैं। ये किसानों को दो प्रकार से लाभांवित करते हैं- एक ऊर्जा के रूप में और दूसरा उन्नत प्रकार के उर्वरक के रूप में। बायोगैस अब तक पशुओं के गोबर का प्रयोग करने में सबसे दक्ष है। यह उर्वरक की गुणवत्ता को बढ़ाता है और उपलों तथा लकड़ी को जलाने से होने वाले वृक्षों के नुकसान को रोकता है।
ज्वारीय ऊर्जा – महासागरीय तरंगों का प्रयोग विद्युत उत्पादन के लिए किया जा सकता है। सँकरी खाड़ी के आर-पार बाढ़ द्वार बना कर बाँध बनाए जाते हैं। उच्च ज्वार में इस सँकरी खाड़ीनुमा प्रवेश द्वार से पानी भीतर भर जाता है और द्वार बन्द होने पर बाँध में ही रह जाता है। बाढ़ द्वार के बाहर ज्वार उतरने पर, बाँध के पानी को इसी रास्ते पाइप द्वारा समुद्र की तरफ बहाया जाता है जो इसे ऊर्जा उत्पादक टरबाइन की ओर ले जाता है।
भू-तापीय ऊर्जा – पृथ्वी के आंतरिक भागों से ताप का प्रयोग कर उत्पन्न की जाने वाली विद्युत को भू-तापीय ऊर्जा कहते हैं।
ऊर्जा संसाधन – ऊर्जा संरक्षण का अर्थ होता है की ऊर्जा के अनावश्यक उपयोग को कम करके ऊर्जा की बचत करना है। आर्थिक विकास के लिए ऊर्जा एक आधारभूत आवश्यकता है। राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के प्रत्येक सेक्टर – कृषि, उद्योग, परिवहन, वाणिज्य व घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ऊर्जा के निवेश की आवश्यकता है। स्वतंत्रता-प्राप्ति के पश्चात् क्रियांवित आर्थिक विकास की योजनाओं को चालू रखने के लिए ऊर्जा की बड़ी मात्रा की आवश्यकता थी। फलस्वरूप पूरे देश में ऊर्जा के सभी प्रकारों का उपभोग धीरे-धीरे बढ़ रहा है।

प्रश्न 1. खनिज संसाधन के 3 प्रकार क्या हैं?

खनिज संसाधन के 3 प्रकार हैं धात्विक, अधात्विक और ईंधन हैं।

प्रश्न 2. खनिज कितने प्रकार के?

खनिज तीन प्रकार के होते हैं।

प्रश्न 3. ऊर्जा खनिज से आप क्या समझते हैं?

जिन खनिजों के उपयोग से ऊर्जा अर्थात् शक्ति प्राप्त होती है, उसे ऊर्जा खनिज कहते हैं।

प्रश्न 4. धात्विक खनिज किसे कहते हैं?

वे सभी खनिज जिनमें धातु का अंश अधिक होता है। उसे धात्विक खनिज कहते हैं।

प्रश्न 5. अधात्विक किसे कहते हैं?

वे सभी खनिज जिनमें धातु का अंश नहीं होता है उसे अधात्विक खनिज कहते हैं।

प्रश्न 6. धात्विक खनिज कितने प्रकार के होते हैं?

(i) लौह लौह धातु (जिसमें लोहे का अंश हो) जैसे अयस्क, मैंगनीज़ निकल व कोबाल्ट आदि।
(ii) अलौह जैसे – ताँबा, सीसा, जस्ता व बॉक्साइट आदि।
(iii) बहुमूल्य खनिज जैसे सोना, चाँदी, प्लेटिनम आदि।

प्रश्न 7. भू-तापीय ऊर्जा किसे कहते हैं?

पृथ्वी के आंतरिक भागों से ताप का प्रयोग कर उत्पन्न की जाने वाली विद्युत को भू-तापीय ऊर्जा कहते हैं।

प्रश्न 8. मैंगनीज़ से क्या समझते हैं?

मैंगनीज़ मुख्य रूप से इस्पात के विनिर्माण में प्रयोग किया जाता है। एक टन इस्पात बनाने में लगभग 10 किग्रा. मैंगनीज़ की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 9. खनिजों का वर्गीकरण कितने प्रकार से किया गया है?

खनिजों का वर्गीकरण 3 प्रकार से किया गया हैं।

1. धात्विक
2. अधात्विक
3. ऊर्जा खनिज

प्रश्न 10. लौह अयस्क (Iron Ore) क्या है?

लौह अयस्क एक आधारभूत खनिज है, जो औद्योगिक विकास की रीढ़ है। भारत में लौह अयस्क के विपुल संसाधन विद्यमान हैं।

प्रश्न 11. भू-तापीय ऊर्जा किसे कहते हैं?

पृथ्वी के आंतरिक भागों से ताप का प्रयोग कर उत्पन्न की जाने वाली विद्युत को भू-तापीय ऊर्जा कहते हैं।

प्रश्न 12. ऊर्जा खनिज किसे कहते हैं?

जिन खनिजों के प्रयोग से ऊर्जा (प्रकाश) प्राप्त होती है, उन्हें ऊर्जा खनिज कहते हैं।

NCERT Solution Class 10th Social Science भूगोल All Chapters Notes In Hindi
Chapter – 1 संसाधन एवं विकास
Chapter – 2 वन और वन्य जीव संसाधन
Chapter – 3 जल संसाधन
Chapter – 4 कृषि
Chapter – 5 खनिज और ऊर्जा संसाधन
Chapter – 6 विनिर्माण उद्योग
Chapter – 7 राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की जीवन रेखाएँ
NCERT Solution Class 10th Social Science भूगोल All Chapters Question Answer In Hindi
Chapter – 1 संसाधन एवं विकास
Chapter – 2 वन और वन्य जीव संसाधन
Chapter – 3 जल संसाधन
Chapter – 4 कृषि
Chapter – 5 खनिज और ऊर्जा संसाधन
Chapter – 6 विनिर्माण
Chapter – 7 राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की जीवन रेखाएँ
NCERT Solution Class 10th Social Science भूगोल All Chapters MCQ In Hindi
Chapter – 1 संसाधन एवं विकास
Chapter – 2 वन और वन्य जीव संसाधन
Chapter – 3 जल संसाधन
Chapter – 4 कृषि
Chapter – 5 खनिज और ऊर्जा संसाधन
Chapter – 6 विनिर्माण उद्योग
Chapter – 7 राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की जीवन रेखाएँ

You Can Join Our Social Account

YoutubeClick here
FacebookClick here
InstagramClick here
TwitterClick here
LinkedinClick here
TelegramClick here
WebsiteClick here