Contents
- 1 NCERT Solutions Class 10th New Syllabus Social Science Geography Chapter – 2 वन एवं वन्य जीव संसाधन (Forest and Wildlife Resources)
- 2 फ्लोरा और फौना (Flora and Fauna)
- 3 भारत के वनस्पतिजात और प्राणिजात
- 4 वनस्पतिजात और प्राणिजात के ह्रास के कारण
- 5 उपयोग
- 6 कम होते संसाधनों के सामाजिक प्रभाव
- 7 भारतीय वन्यजीवन (संरक्षण) अधिनियम 1972
- 8 उद्देश्य
- 9 वन विभाग द्वारा वनों का वर्गीकरण
- 10 वन्य जीवन को होने वाले अविवेकी ह्यस पर नियंत्रण के उपाय
- 11 बाघ परियोजना (Project Tiger)
- 12 बाघ की आबादी के लिए खतरे
- 12.1 भारत में पशु-पक्षियों तथा पेड़-पौधों की कुछ प्रजातियों के नाम बताओ जो लुप्तप्राय हैं।
- 12.2 सुभेद्य प्रजातियों तथा लुप्त प्रजातियों के कुछ उदाहरण दीजिए।
- 12.3 एशियाई चीते की कोई एक मुख्य विशेषता बताओ।
- 12.4 औपनिवेशिक काल में वनों के विनाश के लिए कौन-कौन से कारक उत्तरदायी थे?
- 12.5 संवर्धन वृक्षारोपण (Enrich Plantation) क्या है?
- 12.6 बड़े पैमाने की विकास परियोजनाओं का वनों पर क्या प्रभाव पड़ा है?
- 12.7 खनन पर्यावरण को भारी क्षति पहुँचाता है। एक उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
- 12.8 वनीय पारिस्थितिकी प्रणालियों का क्या महत्व है?
- 12.9 हिमालय का यव (Yew) कहाँ पाया जाता है?
- 12.10 भारत की जैव-विविधता को क्षति पहुँचाने वाले मुख्य कारक कौन-कौन से हैं? कोई दो कारक बताओ।
- 12.11 भारत में पर्यावरण के विनाश (ह्रास) के लिए उत्तरदायी कोई दो कारक बताओ।
- 12.12 भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम सर्वप्रथम कब लागू किया गया? इसका मुख्य उद्देश्य क्या था?
- 12.13 एशियाई देशों में बाघों की संख्या में कमी के दो मुख्य कारण कौन-कौन से हैं?
- 12.14 भारत में कितने बाघ आरक्षित क्षेत्र हैं?
- 12.15 दो बाघ आरक्षित क्षेत्रों के नाम बताओ। इनमें से एक उत्तर-पूर्वी भारत में तथा एक दक्षिणी भारत में हो।
- 12.16 स्थायी वन क्षेत्र किसे कहा जाता है? इन वनों का सबसे विस्तृत क्षेत्र किस राज्य में है?
- 12.17 चिपको आंदोलन का क्या महत्त्व है? कोई एक बिंदु लिखिए।
- 12.18 बाघ परियोजना का क्या उद्देश्य है?
- 12.19 भारत के किन्हीं दो उत्तर-पूर्वी राज्यों के नाम बताइए जिनमें 60 प्रतिशत से अधिक वनों का आवरण है।
- 12.20 भारत के किसी एक उत्तरी राज्य का नाम बताइए जिसमें 60 प्रतिशत से अधिक वन आवरण है।
NCERT Solutions Class 10th New Syllabus Social Science Geography Chapter – 2 वन एवं वन्य जीव संसाधन (Forest and Wildlife Resources)
Text Book | NCERT |
Class | 10th |
Subject | Social Science (भूगोल) |
Chapter | 2nd |
Chapter Name | वन एवं वन्य जीव संसाधन (Forest and Wildlife Resources) |
Category | Class 10th Social Science Geography |
Medium | Hindi |
Source | Last Doubt |
NCERT Solutions Class 10th Social Science Geography Chapter – 2 वन एवं वन्य जीव संसाधन (Forest and Wildlife Resources) Notes in Hindi हम इस अध्याय में वन एवं वन्य जीव संसाधन (Forest and Wildlife Resources), जैव विविधता, प्राकृतिक वनस्पति, स्वदेशी वनस्पति प्रजातियां, वन्यजीवन, पारितंत्र (पारिस्थितिकी तंत्र), फ्लोरा और फौना (Flora and Fauna), भारत के वनस्पतिजात और प्राणिजात, भारत मे लुप्तप्राय प्रजातिया जो नाजुक अवस्था में हैं, लुप्त होने का खतरा झेल रही प्रजातियाँ, प्रजातियों का वर्गीकरण, सामान्य जातियाँ, लुप्त जातियाँ, सुभेध जातियाँ, संकटग्रस्त जातियाँ, दुर्लभ जातियाँ, स्थानिक जातियाँ, वनस्पतिजात और प्राणिजात के ह्रास के कारण, कम होते संसाधनों के सामाजिक प्रभाव इत्यादि के बारे में पढ़ेंगे। |
NCERT Solutions Class 9th New Syllabus Social Science Geography Chapter – 2 वन एवं वन्य जीव संसाधन (Forest and Wildlife Resources)
Chapter – 2
वन एवं वन्य जीव संसाधन
Notes
प्राकृतिक वनस्पति – वनस्पति का वह भाग जो मनुष्य की सहायता के बिना अपने आप पैदा होता है और लंबे समय तक उस पर मानवीय प्रभाव नहीं पड़ता प्राकृतिक वनस्पति (अक्षत वनस्पति) कहलाता है। |
स्वदेशी वनस्पति प्रजातियां – वह वनस्पति जो कि मूल रूप से स्वदेशी है हम उस वनस्पति को स्वदेशी वनस्पति कहते हैं। पूर्ण रूप से उसी देश मे पाया जाता है। |
पारितंत्र (पारिस्थितिकी तंत्र) – किसी क्षेत्र के पादप और जंतु अपने भौतिक पर्यावरण में एक दूसरे पर निर्भर व परस्पर जुड़े हुए होते हैं। यही एक पारिस्थितिकी तंत्र बनाता है। मानव भी इस तंत्र का एक प्रमुख भाग हैं। |
वन्यजीवन – जंगली जीव हर उस वृक्ष, पौधे, जानवर और अन्य जीव को कहते हैं जिसे मानवों द्वारा पालतू न बनाया गया हो। जंगली जीव दुनिया के सभी परितंत्रों (ईकोसिस्टम) में पाए जाते हैं, जिनमें रेगिस्तान, वन, घासभूमि, मैदान, पर्वत और शहरी क्षेत्र सभी शामिल हैं। |
फ्लोरा और फौना (Flora and Fauna)
फ्लोरा – किसी क्षेत्रविशेष या कालविशेष में पाए जाने वाले सभी पेड़-पौधों (वनस्पतियों) को सम्मिलित रूप से वनस्पतिजात फ्लोरा (Flora) कहा जाता है। |
फौना – जिस प्रकार किसी क्षेत्रविशेष या कालविशेष में पाए जाने वाले सभी पशुपक्षियों एवं जन्तुओं को सम्मिलित रूप से प्राणिजात फौना (Fauna) कहा जाता है। |
भारत के वनस्पतिजात और प्राणिजात
प्राणिजात | 81,000 से अधिक प्रजातियाँ |
वनस्पतिजात | 47,000 से अधिक प्रजातियाँ |
पुष्पी पादपों की स्थानीय प्रजातियाँ | 15,000 |
पादपजात जिनपर लुप्त होने का खतरा है | लगभग 10% |
स्तनधारी जिनपर लुप्त होने का खतरा है | लगभग 20% |
भारत मे लुप्तप्राय प्रजातिया जो नाजुक अवस्था में हैं – चीता, गुलाबी सिर वाली बत्तख, पहाड़ी कोयल और जंगली चित्तीदार उल्लू और मधुका इनसिगनिस (महुआ की जंगली किस्म) और हुबरड़िया हेप्टान्यूरोन (घास की प्रजाति) आदि। |
लुप्त होने का खतरा झेल रही प्रजातियाँ – भारत में बड़े प्राणियों में से स्तनधरियों की 79 जातियाँ , पक्षियों की 44 जातियाँ , सरीसृपों की 15 जातियाँ और जलस्थलचरों की 3 जातियां लुप्त होने का खतरा झेल रही है। लगभग 1500 पादप जातियों के भी लुप्त होने का खतरा बना हुआ है। |
प्रजातियों का वर्गीकरण – अंतर्राष्ट्रीय प्राकृतिक संरक्षण और प्राकृतिक संसाधन संरक्षण संघ ( IUCN ) के अनुसार इनको निम्नलिखित श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है :- |
सामान्य जातियाँ – ये वे जातियाँ हैं जिनकी संख्या जीवित रहने के लिए सामान्य मानी जाती है, जैसे – पशु, साल, चीड़ और कृंतक (रोडेंट्स) इत्यादि। |
लुप्त जातियाँ – ये वे जातियाँ हैं जो इनके रहने के आवासों में खोज करने पर अनुपस्थित पाई गई है। जैसे – एशियाई चीता, गुलाबी सिर वाली बत्तख। |
सुभेध जातियाँ – ये वे जातियाँ हैं, जिनकी संख्या घनी रही है। जिन विषम परिस्थितियों के कारण इनकी संख्या यदि इनकी संख्या पर विपरीत प्रभाव डालने वाली परिस्थितियों नहीं बदली जाती और इनकी संख्या घटती रहती है तो यह संकटग्रस्त जातियों की श्रेणी में शामिल हो जाएगी। जैसे – नीली भेड़, एशियाई हाथी, गंगा नदी आदि। |
संकटग्रस्त जातियाँ – संकटग्रस्त जातियाँ ये वे जातियाँ हैं जिनके लुप्त होने का खतरा है। जिन विषम परिस्थितियों के कारण इनकी संख्या कम हुई है, यदि वे जारी रहती हैं तो इन जातियों का जीवित रहना कठिन है। काला हिरण, मगरमच्छ, भारतीय जंगली गधा, गैंडा, शेर, संगाई (मणिपुरी हिरण) इत्यादि इस प्रकार की जातियों के उदाहरण हैं। |
दुर्लभ जातियाँ – वे जातियाँ जिनकी संख्या विश्व में बहुत कम है। ये जातियाँ सीमित क्षेत्रों में ही पायी जाती है। जैसे – हिमालयी भालू, पाण्डा आदि। |
स्थानिक जातियाँ – स्थानिक प्रजातियाँ पौधों और जानवरों की वे प्रजातियाँ हैं जो किसी विशेष क्षेत्र में विशेष रूप से पाई जाती हैं। वे स्वाभाविक रूप से कहीं और नहीं पा जाते हैं। एक विशेष प्रकार का जानवर या पौधा किसी क्षेत्र, राज्य या देश के लिए स्थानिक हो सकता है। |
वनस्पतिजात और प्राणिजात के ह्रास के कारण
कृषि में विस्तार – भारतीय वन सर्वेक्षण के आँकड़े के अनुसार 1951 से 1980 के बीच 262,00 वर्ग किमी से अधिक के वन क्षेत्र को कृषि भूमि में बदल दिया गया। अधिकतर जनजातीय क्षेत्रों, विशेषकर पूर्वोत्तर और मध्य भारत में स्थानांतरी (झूम) खेती अथवा ‘स्लैश और बर्न‘ खेती के चलते वनों की कटाई या निम्नीकरण हुआ है। |
संवर्धन वृक्षारोपण – जब व्यावसायिक महत्व के किसी एक प्रजाति के पादपों का वृक्षारोपण किया जाता है तो इसे संवर्धन वृक्षारोपण कहते हैं। भारत के कई भागों में संवर्धन वृक्षारोपण किया गया ताकि कुछ चुनिंदा प्रजातियों को बढ़ावा दिया जा सके। इससे अन्य प्रजातियों का उन्मूलन हो गया। |
विकास परियोजनाएँ – आजादी के बाद से बड़े पैमाने वाली कई विकास परियोजनाओं को मूर्तरूप दिया गया। इससे जंगलों को भारी क्षति का सामना करना पड़ा। 1952 से आजतक नदी घाटी परियोजनाओं के कारण 5,000 वर्ग किमी से अधिक वनों का सफाया हो चुका है। |
खनन – खनन से कई क्षेत्रों में जैविक विविधता को भारी नुकसान पहुँचा है। उदाहरण – पश्चिम बंगाल के बक्सा टाइगर रिजर्व में डोलोमाइट का खनन। |
संसाधनों का असमान बँटवारा – अमीर और गरीबों के बीच संसाधनों का असमान बँटवारा होता है। इससे अमीर लोग संसाधनों का दोहन करते हैं और पर्यावरण को अधिक नुकसान पहुँचाते हैं। |
हिमालयन यव चीड़ – हिमालयन यव (चीड़ की प्रकार सदाबहार वृक्ष) एक औषधीय पौधा है जो हिमाचल प्रदेश और अरूणाचल प्रदेश के कई क्षेत्रों में पाया गया है। |
उपयोग
• हिमालयन यव चीड़ की एक नस्ल का पौधा है। पेड़ की छाल, पत्तियों, टहनियों और जड़ों से टकसोल नामक रसायन निकाला जाता है। • कैंसर रोगों के उपचार के लिए प्रयोग किया जाता है। • नुकसान – हिमाचल प्रदेश और अरूणाचल प्रदेश में विभिन्न क्षेत्रों में यव चीड़ के हजारों पेड़ सूख गए हैं। |
कम होते संसाधनों के सामाजिक प्रभाव
• संसाधनों के कम होने से समाज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ते हैं। कुछ चीजें इकट्ठा करने के लिये महिलाओं पर अधिक बोझ होता है; जैसे ईंधन, चारा, पेयजल और अन्य मूलभूत चीजें। • इन संसाधनों की कमी होने से महिलाओं को अधिक काम करना पड़ता है। कुछ गाँवों में पीने का पानी लाने के लिये महिलाओं को कई किलोमीटर पैदल चलकर जाना होता है। • वनोन्मूलन से बाढ़ और सूखा जैसी प्राकृतिक विपदाएँ बढ़ जाती हैं जिससे गरीबों को काफी कष्ट होता है। |
भारतीय वन्यजीवन (संरक्षण) अधिनियम 1972
यह अधिनियम पौधों और जानवरों की प्रजातियों के संरक्षण हेतु अधिनियमित किया गया था। यह अधिनियम जम्मू-कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में लागू है। इस कानून से पहले भारत में केवल पाँच नामित राष्ट्रीय उद्यान थे। वर्तमान में भारत में 101 राष्ट्रीय उद्यान हैं। |
उद्देश्य
• इस अधिनियम के तहत संरक्षित प्रजातियों की एक अखिल भारतीय सूची तैयार की गई। • बची हुई संकटग्रस्त प्रजातियों के शिकार पर पाबंदी लगा दी गई। • वन्यजीवन के व्यापार पर रोक लगाया गया। • वन्यजीवन के आवास को कानूनी सुरक्षा प्रदान की गई। • कई केंद्रीय सरकार व कई राज्य सरकारों ने राष्ट्रीय उद्यान और वन्य जीव पशुविहार स्थापित किए। • कुछ खास जानवरों की सुरक्षा के लिए कई प्रोजेक्ट शुरु किये गये, जैसे प्रोजेक्ट टाइगर। |
संरक्षण के लाभ – संरक्षण से कई लाभ होते हैं। इससे पारिस्थिति की विविधता को बचाया जा सकता है। इससे हमारे जीवन के लिये जरूरी मूलभूत चीजों (जल, हवा, मिट्टी) का संरक्षण भी होता है। |
वन विभाग द्वारा वनों का वर्गीकरण
आरक्षित वन – भारत में आरक्षित वन (Reserved forest या protected forest ) से आशय उन वनों से है जिनको कुछ सीमा तक संरक्षित करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इस शब्द का सबसे पहले उपयोग भारतीय वन अधिनियम 1927 में हुआ था। भारत का पहला आरक्षित वन सतपुड़ा राष्ट्रीय उद्यान था। |
रक्षित वन – यह एक ऐसा क्षेत्र है जहां मानव और जानवरों दोनों को कुछ शर्तों के साथ रहने की अनुमति है। संरक्षित वन क्षेत्र राज्य प्राधिकरण द्वारा घोषित किया जाएगा। इन क्षेत्रों में लकड़ी काटने, चरने और शिकार जैसी गतिविधियों की अनुमति है। |
अवर्गीकृत वन – अवर्गीकृत वन से तात्पर्य उन वनों से होता है, जो किसी आरक्षित या संरक्षित वर्ग की श्रेणी में नही आते। ऐसे वन जिनका सरकार द्वारा अभी तक ये निर्धारण नही हुआ है कि वे वन आरक्षित वन की श्रेणी में रखे जायें या संरक्षित वन की श्रेणी में रखे जायें। ऐसे वनों को ‘अवर्गीकृत वनों’ कहते हैं। |
वन्य जीवन को होने वाले अविवेकी ह्यस पर नियंत्रण के उपाय
• सरकार द्वारा प्रभावी, वन्य जीवन संरक्षण अधिनियम। • भारत सरकार ने लगभग चौदह जैव (जैव संरक्षण स्थल) प्राणि – जात व पादप – जात, हेतु बनाए हैं। • सन् 1992 से भारत सरकार द्वारा कई वनस्पति उद्यानों को वित्तीय एवं तकनीकी सहायता दी गई है। • बाघ परियोजना, गैंडा परियोजना, ग्रेट इंडियन बर्स्टड परियोजना तथा कई अन्य ईको विकासीय (पारिस्थितिक विकासीय) परियोजनायें शुरू की गई हैं। • इन सबके अतिरिक्त हम सभी को हमारे प्राकृतिक पारिस्थितिक व्यवस्था के महत्त्व को हमारी उत्तरजीविता के लिए समझना अति आवश्यक है। |
चिपको आन्दोलन – एक पर्यावरण रक्षा का आन्दोलन था। यह भारत के उत्तराखण्ड राज्य में किसानों ने वृक्षों की कटाई का विरोध करने के लिए किया था। यह आन्दोलन तत्कालीन उत्तर प्रदेश के चमोली जिले में सन 1972 में प्रारम्भ हुआ। |
बाघ परियोजना (Project Tiger)
• बाघों को विलुप्त होने से बचाने के लिये प्रोजेक्ट टाइगर को 1973 में शुरु किया गया था। • बीसवीं सदी की शुरुआत में बाघों की कुल आबादी 55,000 थी जो 1973 में घटकर 1,827 हो गई। |
बाघ की आबादी के लिए खतरे
• व्यापार के लिए शिकार • सिमटता आवास • भोजन के लिए आवश्यक जंगली उपजातियों की घटती संख्या, आदि। |
महत्वपूर्ण टाइगर रिजर्व – उत्तराखंड में कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान, पश्चिम बंगाल में सुंदरबन राष्ट्रीय उद्यान, मध्य प्रदेश में बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान, राजस्थान में सरिस्का वन्य जीव पशुविहार, असम में मानस बाघ रिज़र्व और केरल में पेरियार बाघ रिज़र्व भारत में बाघ संरक्षण परियोजनाओं के उदाहरण हैं। |
भारत में पशु-पक्षियों तथा पेड़-पौधों की कुछ प्रजातियों के नाम बताओ जो लुप्तप्राय हैं।
(क) विश्व में पशु-पक्षियों के कई सारे प्रजातियाँ हैं जो अब लुप्त होने के कगार पर हैं। इनमें जंगली चित्तीदार उल्लू, चीता, पहाड़ी बटेर आदि।
(ख) पौधों में मधुका इनसिगनीज़ (एक प्रकार का महुआ) तथा हुबारदिया न्यूरान (घास की एक प्रजाति)।
सुभेद्य प्रजातियों तथा लुप्त प्रजातियों के कुछ उदाहरण दीजिए।
सुभेद्य जातियाँ – नीली भेड़, एशियाई हाथी, गंगा की डाल्फिन आदि।
लुप्त जातियाँ – एशियाई चीता, गुलाबी सिर वाली बत्तख आदि।
एशियाई चीते की कोई एक मुख्य विशेषता बताओ।
यह स्थल पर रहने वाला संसार का सबसे तेज़ स्तनधारी है जो 112 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से दौड़ सकता है।
औपनिवेशिक काल में वनों के विनाश के लिए कौन-कौन से कारक उत्तरदायी थे?
(क) रेलवे का विस्तार
(ख) कृषि का विस्तार
(ग) व्यावसायिक एवं वैज्ञानिक वानिकी
(घ) खनन
संवर्धन वृक्षारोपण (Enrich Plantation) क्या है?
संवर्धन वृक्षारोपण में आर्थिक दृष्टि से मूल्यवान कोई एक प्रजाति बड़े पैमाने पर उगाई जाती है और अन्य प्रजातियों का सफाया कर दिया जाता है।
बड़े पैमाने की विकास परियोजनाओं का वनों पर क्या प्रभाव पड़ा है?
बड़े पैमाने की विकास परियोजनाओं ने वनों के विनाश को बढ़ावा दिया है।
खनन पर्यावरण को भारी क्षति पहुँचाता है। एक उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
खनन का वनों तथा वन्य प्राणियों पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के लिए पश्चिमी बंगाल में डोलामाइट के खनन से ‘बक्सा टाइगर रिज़र्व’ खतरे में पड़ गया है।
वनीय पारिस्थितिकी प्रणालियों का क्या महत्व है?
वनीय पारिस्थितिक प्रणालियाँ देश के मूल्यवान वन उत्पादों तथा अन्य संसाधनों के भंडार हैं।
हिमालय का यव (Yew) कहाँ पाया जाता है?
हिमालय का यव (Yew) औषधि देने वाला एक पौधा है जो हिमाचल प्रदेश तथा अरुणाचल प्रदेश के कई भागों में पाया जाता है।
भारत की जैव-विविधता को क्षति पहुँचाने वाले मुख्य कारक कौन-कौन से हैं? कोई दो कारक बताओ।
भारत के जैव-विविधता को क्षति पहुँचाने वाले मुख्य कारक हैं- वन्य प्राणियों का आवास छिनना, शिकार, चोरी, पर्यावरणीय प्रदूषण, वन्य प्राणियों को विष देना, जंगलों की आग।
भारत में पर्यावरण के विनाश (ह्रास) के लिए उत्तरदायी कोई दो कारक बताओ।
भारत में पर्यावरण के विनाश (ह्रास) के कई कारण है- संसाधनों तक असमान पहुँच, संसाधनों का असमान उपभोग, बढ़ती हुई जनसंख्या, पर्यावरण की सुरक्षा के प्रति एकसमान उत्तरदायित्व का अभाव इत्यादि।
भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम सर्वप्रथम कब लागू किया गया? इसका मुख्य उद्देश्य क्या था?
भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 में लागू किया गया। इसका उद्देश्य वन्य प्राणियों के शिकार पर रोक लगाना, उनके आवासों को कानूनी सुरक्षा प्रदान करना तथा उनके अवैध व्यापार पर रोक लगाना था।
एशियाई देशों में बाघों की संख्या में कमी के दो मुख्य कारण कौन-कौन से हैं?
एशियाई देशों में बाघों की संख्या में कमी के दो मुख्य कारण हैं- बाघों की खालों का बड़े पैमाने पर अवैध व्यापार, परंपरागत औषधियों में बाघ की हड्डियों का प्रयोग।
भारत में कितने बाघ आरक्षित क्षेत्र हैं?
भारत में 48 बाघ आरक्षित क्षेत्र हैं।
दो बाघ आरक्षित क्षेत्रों के नाम बताओ। इनमें से एक उत्तर-पूर्वी भारत में तथा एक दक्षिणी भारत में हो।
(क) मानस बाघ आरक्षित क्षेत्र (असम, उत्तर-पूर्वी भारत)
(ख) पेरियार बाघ आरक्षित क्षेत्र (केरल, दक्षिणी भारत)
स्थायी वन क्षेत्र किसे कहा जाता है? इन वनों का सबसे विस्तृत क्षेत्र किस राज्य में है?
आरक्षित तथा संरक्षित वनों को स्थायी वन क्षेत्र कहा जाता है। इन वनों का सबसे विस्तत क्षेत्र मध्य प्रदेश में है जो ऐसे वनों का 75 प्रतिशत है।
चिपको आंदोलन का क्या महत्त्व है? कोई एक बिंदु लिखिए।
हिमालय क्षेत्र के इस आंदोलन ने कई प्रदेशों में वनों के कटाव का सफलतापूर्वक विरोध किया है।
बाघ परियोजना का क्या उद्देश्य है?
बाघ परियोजना का उददेश्य बाघों को संरक्षण प्रदान करना है ताकि उन्हें विलुप्त होने से बचाया जा सके।
भारत के किन्हीं दो उत्तर-पूर्वी राज्यों के नाम बताइए जिनमें 60 प्रतिशत से अधिक वनों का आवरण है।
अरुणाचल प्रदेश तथा मणिपुर राज्यों में 60 प्रतिशत से अधिक वन हैं।
भारत के किसी एक उत्तरी राज्य का नाम बताइए जिसमें 60 प्रतिशत से अधिक वन आवरण है।
हिमाचल प्रदेश उत्तरी भारत का ऐसा राज्य है जिसमें 60 प्रतिशत से अधिक वन आवरण है।
NCERT Solution Class 10th Social Science भूगोल All Chapters Notes In Hindi |
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