NCERT Solutions Class 10th Social Science (Geography) Chapter – 1 संसाधन एवं विकास (Resources and Development) Notes in Hindi

NCERT Solutions Class 10th Social Science (Geography) Chapter – 1 संसाधन एवं विकास (Resources and Development)

Text BookNCERT
Class  10th
Subject  Social Science (भूगोल)
Chapter1st 
Chapter Name संसाधन एवं विकास
CategoryClass 10th Social Science (Geography) 
Medium Hindi
SourceLast Doubt
NCERT Solutions Class 10th Social Science (Geography) Chapter – 1 संसाधन एवं विकास (Resources and Development) Notes in Hindi हम इस अध्याय में संसाधन (Resource), संसाधनों का वर्गीकरण (Classification of resource), उत्पत्ति के आधार पर संसाधनों का वर्गीकरण, जैव संसाधन (Biological resources), आदि इसके बारे में हम विस्तार से पढ़ेंगे

NCERT Solutions Class 10th Social Science (Geography) Chapter – 1 संसाधन एवं विकास (Resources and Development)

Chapter – 1

संसाधन एवं विकास

Notes

संसाधन (Resource)हमारे पर्यावरण या हमारे आसपास में मौजूद सभी वस्तु जो हमारे लिए किसी न किसी प्रकार से उपयोगी होता है। संसाधन कहलाता है इन सभी प्रकार के संसाधन का इस्तेमाल हम अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए करते हैं। इसके अलावा इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात यह मानी जाती है कि हमारे चारों ओर मौजूद जितने भी पदार्थ है।

वह तभी संसाधन कहलाएंगे जब वह हमारे मानव के लिए किसी न किसी रूप से उपयोगी होते हैं। संसाधन को मुख्य रूप से बनाए रखने के लिए हमारे पास प्रौद्योगिकी एवं तकनीक का साधन भी मौजूद होता है और यह सांस्कृतिक रूप से भी मान्य होना आवश्यक है।

संसाधन का वर्गीकरण (Classification of resource) – संसाधन का वर्गीकरण चार प्रकार से किया गया है-

(i) उत्पत्ति के आधार पर संसाधनों का वर्गीकरण – जिसमे जैव और अजैव घटक आते है।

(ii) समाप्यता के आधार पर संसाधनों का वर्गीकरण में मुख्यतः नवीकरण योग्य और अनवीकरण योग्य संसाधन आते है।

(iii) स्वामित्व के आधार पर संसाधनों का वर्गीकरण में व्यक्तिगत, सामुदायिक, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संसाधन आते है।

(iv) विकास के स्तर के आधार पर संसाधनों का वर्गीकरण में संभावी, विकसित, भंडार और संचित कोष इत्यादि आता है।

उत्पत्ति के आधार पर संसाधनों का वर्गीकरण

(i) जैव संसाधन (Biotic resource) – ऐसे सभी संसाधन जो हमें जीवमंडल प्रकृति या फिर वातावरण से प्राप्त होते हैं। अर्थात जिनमें जीवन है। जो सजीव माने जाते है वो सभी जैव संसाधन (Biotic resources) कहलाते हैं। उदाहरण के लिए मनुष्य, प्राणीजात आदि।

(ii) अजैव संसाधन (Abiotic resource) – वे सभी संसाधन जो निर्जीव वस्तुओं से बने हैं, अर्थात जिसमें जान नहीं होती है जो निर्जीव कहलाते है। ऐसे चीजों से यदि किसी संसाधन का निर्माण होता है। तो वो अजैव संसाधन (Abiotic resources) कहलाते हैं। उदाहरण के लिए चट्टानें और धातुऐ इत्यादि।

समाप्यता के आधार पर संसाधनों का वर्गीकरण

(i) नवीकरणीय संसाधन (Renewable resource) – वे संसाधन जिन्हें विभिन्न भौतिक, रासयनिक अथवा यांत्रिक प्रक्रियाओं द्वारा पुनः उपयोगी बनाया जा सकता है, या फिर वे सभी संसाधन जिन्हें एक बार उपयोग करने के बाद फिर से दुबारा स्थापित किया जा सके या पुन: उपयोग में लाया जा सके। नवीकरणीय संसाधन कहलाते हैं। जैसे – वन, जल आदि।

(ii) अनवीकरणीय संसाधन (Non-renewable resource) – वे संसाधन जिन्हें एक बार उपयोग में लाने के बाद पुन: उपयोग में नहीं लाया जा सकता है, इनका निर्माण एवं विकास एक लंबे भू वैज्ञानिक अंतराल में हुआ है, अर्थात ऐसा संसाधन जो हमारे पृथ्वी में लम्बे समय में बन के तैयार होता है और यदि एक बार खतम हो जाए तो उसके निर्माण में पुनः लम्बे समय की जरूरत होगीं वह संसाधन अनवीकरणीय संसाधन कहलाते हैं। जैसे – खनिज इत्यादि।

स्वामित्व के आधार पर संसाधनों का वर्गीकरण

(i) व्यक्तिगत संसाधन (Individual Resource) – वैसे संसाधन व्यकतिगत संसाधन कहलाते हैं जिनका स्वामित्व अर्थात मालिकाना हक़ किसी निजी व्यक्तियों के पास होता है। उदाहरण – किसी किसान की जमीन, घर, आदि।

(ii) सामुदायिक संसाधन (Community Resource) – वे संसाधन जिनका उपयोग समुदाय के सभी लोग करते हैं, सामुदायिक संसाधन कहलाते हैं उदाहरण – तालाब, पार्क, श्मशान, कब्रिस्तान, आदि।

(iii) राष्ट्रीय संसाधन (National Resource) – किसी भी प्रकार के संसाधन जो राष्ट्र की भौगोलिक सीमा के भीतर मौजूद हों, या फिर उस संसाधन पे देश का हक़ होता है राष्ट्रीय संसाधन कहलाते हैं उदाहरण – सरकारी जमीन, सड़क, नहर, रेल, आदि।

(iv) अंतर्राष्ट्रीय संसाधन (International Resource) – जिन संसाधनों का नियंत्रण अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा किया जाता है, उन्हें अंतर्राष्ट्रीय संसाधन कहते हैं। उदाहरण के लिये समुद्री क्षेत्र को लीजिए। किसी भी देश का नियंत्रण उस देश की तट रेखा से 200 किमी तक के समुद्री क्षेत्र पर ही होता है। 200 किमी से आगे का समुद्री क्षेत्र अंतर्राष्ट्रीय संसाधन की श्रेणी में आता है।

विकास के स्तर के आधर पर संसाधनों का वर्गीकरण

(i) संभावी संसाधन (Potential Resource) – किसी भी देश या क्षेत्र में कुछ ऐसे संसाधन होते हैं जिनका उपयोग वर्तमान में नहीं हो रहा होता है। इन्हें संभावी संसाधन कहते हैं। उदाहरण – गुजरात और राजस्थान में उपलब्ध सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा।

(ii) विकसित संसाधन (Developed Resource) – एैसे संसाधन जिनके उपयोग के लिए प्रभावी तकनीकि उपलब्ध हैं तथा उनके उपयोग के लिए सर्वेक्षण, गुणवत्ता और मात्रा निर्धारित की जा चुकी है, विकसित संसाधन कहलाते हैं।

(iii) भंडार संसाधन (Stored Resource) – एैसे संसाधन जो प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं परंतु सही तकनीकि के कारण उनका उपयोग नहीं हो पा रहा है, उसे भंडार संसाधन कहते हैं। जैसे – वायुमंडल में हाइड्रोजन उपलब्ध है, जो कि उर्जा का एक अच्छा श्रोत हो सकता है, परंतु सही तकनीकि उपलब्ध नहीं होने के कारण उनका उपयोग नहीं हो पा रहा है।

(iv) संचित संसाधन (Reserves Resource) – यह संसाधन भंडार का ही हिस्सा है, जिन्हें उपलब्ध तकनीकी ज्ञान की सहायता से प्रयोग में लाया जा सकता है, परंतु इनका उपयोग अभी आरंभ नहीं हुआ है। इनका उपयोग भविष्य में आवश्यकता पूर्ति के लिए किया जा सकता है। नदियों के जल को विद्युत पैदा करने में प्रयुक्त किया जा सकता है, परंतु वर्तमान समय में इसका उपयोग सीमित पैमाने पर ही हो रहा है। इस प्रकार बाँधों में जल, वन आदि संचित कोष हैं जिनका उपयोग भविष्य में किया जा सकता है।

संसाधनों का विकास – संसाधन जिस प्रकार, मनुष्य के जीवन यापन के लिए अति आवश्यक हैं, उसी प्रकार जीवन की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए भी महत्त्वपूर्ण हैं। ऐसा विश्वास किया जाता था कि संसाधन प्रकृति की देन है। परिणामस्वरूप, मानव ने इनका अंधाधुंध  उपयोग किया है, जिससे निम्नलिखित मुख्य समस्याएँ पैदा हो गई हैं।

सतत् पोषणीय विकास – सतत् पोषणीय आर्थिक विकास का अर्थ है कि विकास पर्यावरण को बिना नुकसान पहुँचाए हो और वर्तमान विकास की प्रक्रिया भविष्य की पीढ़ियों की आवश्यकता की अवहेलना न करे।

रियो डी जेनेरो पृथ्वी सम्मेलन, 1992 – जून, 1992 में 100 से भी अधिक राष्ट्राध्यक्ष ब्राजील के शहर रियो डी जेनेरो में प्रथम अंतर्राष्ट्रीय पृथ्वी सम्मेलन में एकत्रित हुए। सम्मेलन का आयोजन विश्व स्तर पर उभरते पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक-आर्थिक विकास की समस्याओं का हल ढूँढ़ने के लिए किया गया था।

इस सम्मेलन में एकत्रित नेताओं ने भूमंडलीय जलवायु परिवर्तन और जैविक विविधता पर एक घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किया। रियो सम्मेलन में भूमंडलीय वन सिद्धांतों (Forest Principles) पर सहमति जताई और 21वीं शताब्दी में सतत् पोषणीय विकास के लिए एजेंडा 21 को स्वीकृति प्रदान की।

एजेंडा 21 (Agenda 21) – एजेंडा 21 का यह एक घोषणा है जिसे 1992 में ब्राजील के शहर रियो डी जेनेरो में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण और विकास सम्मेलन (UNCED) के तत्त्वाधान में राष्ट्राध्यक्षों द्वारा स्वीकृत किया गया था। इसका उद्देश्य भूमंडलीय सतत् पोषणीय विकास हासिल करना है।

यह एक कार्य सूची है जिसका उद्देश्य समान हितों, पारस्परिक आवश्यकताओं एवं सम्मिलित जिम्मेदारियों के अनुसार विश्व सहयोग के द्वारा पर्यावरणीय क्षति, गरीबी और रोगों से निपटना है। एजेंडा 21 का मुख्य उद्देश्य यह है कि प्रत्येक स्थानीय निकाय अपना स्थानीय एजेंडा 21 तैयार करे।

संसाधन नियोजन – संसाधनों का विवेकपूर्ण इस्तेमाल ही संसाधन नियोजन में निहित है। भारत जैसे देश में जहाँ संसाधनों का समुचित वितरण नहीं है। संसाधन नियोजन और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। उदाहरण के लिए, कई राज्यों के पास खनिजों के प्रचुर भंडार हैं लेकिन अन्य संसाधनों की कमी है।

झारखंड के पास अधिक मात्रा में खनिज हैं लेकिन वहाँ पेय जल और अन्य सुविधाओं की भारी कमी है। अरुणाचल प्रदेश के पास प्रचुर मात्रा में जल है लेकिन संसाधनों के अभाव के कारण वहाँ विकास नहीं हो पाया है।

भारत में संसाधन नियोजन – जना बनाते समय टेक्नॉलोजी, कौशल और संस्थागत बातों का ध्यान रखने से संसाधनों का विवेकपूर्ण इस्तेमाल सुनिश्चित किया जा सकता है। भारत में प्रथम पंचवर्षीय योजना से ही संसाधन नियोजन एक प्रमुख लक्ष्य रहा है। भारत में संसाधन नियोजन के मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं।

संसाधनों का संरक्षण – संसाधन संरक्षण का अर्थ है संसाधनों का सावधानीपूर्वक उपयोग करना और उन्हें नए सिरे से बनाने का समय देना। यह करने की आवश्यकता है क्योंकि संसाधन सीमित और संपूर्ण हैं। संसाधनों को पृथ्वी पर असमान रूप से वितरित किया जाता है क्योंकि वितरण विभिन्न भौतिक कारकों जैसे कि इलाके, जलवायु और ऊंचाई पर निर्भर करता है।

भू – संसाधन  – भूमि एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है। प्राकृतिक वनस्पति, वन्य – जीवन, मानव जीवन, आर्थिक क्रियाएँ, परिवहन तथा संचार व्यवस्थाएं भूमि पर ही आधारित हैं। भूमि एक सीमित संसाधन हैं इसलिए हमें इसका उपयोग सावधानी और योजनाबद्ध तरीके से करना चाहिए।

भारत में संसाधन नियोजन के मुख्य बिंदु

• पूरे देश के विभिन्न प्रदेशों के संसाधनों की पहचान कर उनकी तालिका बनाना।

• उपयुक कौशल, टेक्नॉलोजी और संस्थागत ढाँचे का सही इस्तेमाल करते हुए नियोजन ढ़ाँचा तैयार करना।

• संसाधन नियोजन और विकास नियोजन के बीच सही तालमेल बैठाना।

भारत में भूमि-संसाधन

• भारत में भूमि संसाधन लगभग 32,87,000 वर्ग किमी में फैले हुए हैं।

• यह पूर्व में बंगाल की खाड़ी और पश्चिम में अरब सागर के बीच हिंद महासागर में फैला हुआ है।

• भारतीय भूमि संसाधनों को विभिन्न राहत सुविधाओं में विभाजित किया गया है, 43% भूमि क्षेत्र मैदानी क्षेत्र है।

• भारतीय पर्वतीय क्षेत्र का क्षेत्रफल 30% है, जबकि पठार देश के कुल सतह क्षेत्र का 27% है।

भूमि का उपयोगभूमि एक महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है। भूमि का उपयोग विभिन्न कार्यों के लिए किया जाता है, जैसे – कृषि, वानिकी, खनन, सड़क निर्माण, उद्योगों की स्थापना इत्यादि। इसे भूमि उपयोग कहा जाता है। भूमि का उपयोग भौतिक कारकों द्वारा निर्धारित किया जाता है, जैसे – स्थलाकृति, मृदा, जलवायु, खनिज, जल की उपलब्धता आदि। मानवीय कारक जैसे जनसंख्या और प्रौद्योगिकी भी भूमि उपयोग प्रतिरूप के महत्त्वपूर्ण निर्धारक हैं।

भू-निम्नीकरण

• खनन
• अतिचारण
• अतिसिंचाई
• औद्योगिक
• प्रदूषण
• वनोन्मूलन

भूमि संरक्षण

• वनारोपण
• पशुचारण नियंत्रण
• रक्षक मेखला
• खनन नियंत्रण
• औद्योगिक जल का परिष्करण

मृदा संसाधनमृदा संसाधन सबसे महत्वपूर्ण एवं योग्य प्राकृतिक संसाधन माना जाता है क्योंकि यह हमारे जीवन में बहुत ही महत्वपूर्ण है यह पेड़ पौधों का विकास करती है, और लाखों जीव जंतु हैं इस पृथ्वी पर जिनको जीने के लिए इस प्रकार के मृदा की आवश्यकता होती है क्योंकि इन जीवो का पोषण मृदा के साथ ही होता है मृदा बनने की प्रक्रिया बहुत लंबी होती है इसमें काफी लंबा समय लगता है जिसके बाद मृदा का निर्माण होता है।

जिसमें जलवायु वनस्पति अन्य जैव पदार्थ और समय सबसे महत्वपूर्ण कारक माना जाता है हमारे प्रकृति और जैव मंडल में अनेक तत्व मौजूद हैं जैसे तापमान परिवर्तन बहते जल की प्रक्रिया हवा हिमनदी और अपघटन आती जितनी भी मुख्य क्रियाएं होती है इन सभी में मृदा बनाने की प्रक्रिया योगदान देती है मृदा ऐसा संसाधन है जिसके निर्माण में जैव और अजैव घटक दोनों का योगदान होता है

मृदा निर्माणमिट्टी के निर्माण की प्रक्रिया अत्यंत धीमी होती है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि मात्र एक सेमी मृदा को बनने में हजारों वर्ष लग जाते हैं। मृदा का निर्माण शैलों के अपघटन क्रिया से होता है। मृदा के निर्माण में कई प्राकृतिक कारकों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। जैसे कि तापमान, पानी का बहाव, पवन। इस प्रक्रिया में कई भौतिक और रासायनिक परिवर्तनों का भी योगदान होता है।

मृदा के प्रकार – मृदा 6 प्रकार की होती है।

• जलोढ मृदा
• काली मृदा
• लाल और पीली मृदा
• लेटराइट मृदा
• मरुस्थली मृदा
• वन मृदा

जलोढ़ मृदा

• भारत के लगभग 45 प्रतिशत क्षेत्रफल में जलोढ़ मृदा पर पाई जाती है।
• इस मिट्टी में पोटाश की बहुलता होती है।
• सिंधु, गंगा तथा ब्रह्मपुत्र नदी तंत्रों द्वारा विकसित।
• रेत, सिल्ट तथा मृत्तिका के विभिन्न अनुपात में पाए जाते है।
• आयु के आधार पर पुरानी जलोढ़ (बांगर) एवं नयी जलोढ़ (खादर) बहुत उपजाऊ तथा गन्ना, चावल, गेहूँ आदि फसलों के लिए उपयोगी।

काली मृदा

• रंग काला एवं अन्य नाम रेगर मृदा।
• टिटेनीफेरस मैग्नेटाइट एवं जीवांश की उपस्थिति।
• बेसाल्ट चट्टानों के टूटने – फूटने के कारण निर्माण।
• आयरन, चूना, एल्युमीनियम एवं मैग्निशियम की बहुलता।
• कपास की खेती के लिए सर्वाधिक उपयुक्त।
• महाराष्ट्र, सौराष्ट्र, मालवा, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के पठारों में पाई जाती है।

लाल एवं पीली मृदा

• लोहे के कणों की अधिकता के कारण रंग लाल तथा कहीं – कहीं पीला भी।
• अम्लीय प्रकृति की मिट्टी।
• चूने के इस्तेमाल से उर्वरता को बढ़ाया जा सकता है।
• उड़ीसा, छत्तीसगढ़, मध्य गंगा के मैदान व गारो, खासी व जयंतिया के पहाड़ों पर पाई जाती है।

लेटराइट मृदा

• उच्च तापमान और अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में विकसित।
• भारी वर्षा से अत्यधिक निक्षालन का परिणाम 
• चाय व काजू के लिए उपयुक्त।
• कर्नाटक, केरल तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, उड़ीसा तथा असम के पहाड़ी क्षेत्रों के लिए उपयुक्त।

मरूस्थलीय मृदा

• रंग लाल व भूरा।
• रेतीली तथा लवणीय।
• शुष्क जलवायु तथा उच्च तापमान के कारण जल वाष्पन की दर अधिक।
• ह्यूमस और नमी की मात्रा कम।
• उचित सिंचाई प्रबंधन के द्वारा उपजाऊ बनाया जा सकता है।

वन मृदा

• पर्वतीय क्षेत्रों में पाई जाती है।
• गठन में पर्वतीय पर्यावरण के अनुसार बदलाव।
• नदी घाटियों में मृदा दोमट तथा सिल्टदार।
• अधिसिलक तथा ह्यूमस रहित।

दक्कन ट्रैप – दक्कन ट्रैप एक बहुत ही विशेष प्रकार के आकार अर्थात अर्थात संरचना को कहा जाता है इसका निर्माण बेसाल्ट चट्टानों के साथ होता है इसका विकास ‘क्रिटेशियस’ से ‘इओसीन’ युग से हुआ था इन चट्टानों के कारण ही काली मिट्टी का निर्माण होता है इस प्रकार की मिट्टी आपको ज्यादातर महाराष्ट्र एवं गुजरात में देखने को मिलेंगे यह मिट्टी बहुत ही उपजाऊ होते हैं खासकर इस मिट्टी में कपास की खेती बहुत ही अधिक मात्रा में होती है क्योंकि कपास की खेती के लिए काली मिट्टी बहुत ही अच्छी मानी जाती है

खादरबांगर
नवीन जलोढ़ मृदा।प्राचीन जलोढ़ मृदा।
अधिक बारीक व रेतीली।कंकड़ व कैल्शियम कार्बोनेट 
बार – बार नवीकरण संभव बार – बार नवीकरण नहीं। 
नदी के पास डेल्टा तथा बाढ़ निर्मित मैदानों में पाई जाती है। नदी से दूर ऊँचे स्तर पर पाई जाती है।

मृदा अपरदन – मृदा के कटाव और उसके बहाव की प्रतिक्रिया को मृदा अपरदन कहा जाता है।

मृदा अपरदन

1. वनोन्मूलन।
2. अति पशुचारण।
3. निर्माण व खनन प्रक्रिया।
4. प्राकृतिक तत्व जैसे, पतन, हिमनदी और जल।
5. कृषि के गलत तरीकें (जुताई के तरीके)।
6. पवन द्वारा मैदान अथवा ढालू क्षेत्र में मृदा को उड़ा ले जाना।

मृदा अपरदन के समाधान

1. ढाल वाली भूमि पर समोच्च रेखाओं के समानंतर हल चलाने से।
2. ढाल वाली भूमि पर सीढी बना कर खेती करने से।
3. बड़े खेतों को पट्टियों में बांट कर फसलों के बीच में धास की पट्टी उगाकर।
4. खेत के चारों तरफ पेड़ों को कतार में लगातार एक मेखला बनाना वनोरोपण है।
5. अति पशुचारण को नियंत्रित करके।

अवनलिकाएँ – अवनलिका कहने का मतलब है एक ऐसा स्थान जहां पर जल बह रहा हो लेकिन वनस्पति की कमियों अर्थात पेड़ पौधों की कमी के कारण जब जल वहां की मिट्टी का कटाव करना शुरू कर देता है तो इसे हम अवनलिका के नाम से जानते हैं इस तरह के मिट्टी के कटाव बहुत ही गहरे होते हैं और वातावरण के लिए काफी नुकसानदायक होते हैं

उत्खात भूमि – आप सभी को बता दूं कि बुंदेल खंड के पहाड़ में चंबल नदी द्वारा जितने भी महा खंडों का निर्माण किया जाता है उन सभी महा खंडों को हम उत्खात भूमि के नाम से जानते हैं

खड्ड भूमि – जैसा कि आप सभी जानते हैं कि चंबल अपनी आकार वाले भूमि आकृति के लिए बहुत ज्यादा प्रसिद्ध है और इसी कारण से इसे हम चंबल खंड के नाम से भी जानते हैं इसका निर्माण गंडक नदी की दोधारा जिसका नाम है काली गंडक और त्रिशूल गंगा के मिलने से बनता है

पवन अपरदन – पवन का मतलब हवा होता है कई बार आपने देखा होगा कि हवा के माध्यम से भी मिट्टी बालू आदि को एक जगह से दूसरी जगह तक उड़ा के ले जाया जाता है यदि इस प्रकार से मिट्टी और बालू की बर्बादी हो जिसका मुख्य कारण हवा या पवन होता है तो इसे हम पवन अपरदन कहते हैं।

Class 10th Geography Chapter – 1 संसाधन एवं विकास (Resources and Development) Notes Part – 1
NCERT Solution Class 10th Social Science भूगोल All Chapters Notes In Hindi
Chapter – 1 संसाधन एवं विकास
Chapter – 2 वन और वन्य जीव संसाधन
Chapter – 3 जल संसाधन
Chapter – 4 कृषि
Chapter – 5 खनिज और ऊर्जा संसाधन
Chapter – 6 विनिर्माण उद्योग
Chapter – 7 राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की जीवन रेखाएँ
NCERT Solution Class 10th Social Science भूगोल All Chapters Question Answer In Hindi
Chapter – 1 संसाधन एवं विकास
Chapter – 2 वन और वन्य जीव संसाधन
Chapter – 3 जल संसाधन
Chapter – 4 कृषि
Chapter – 5 खनिज और ऊर्जा संसाधन
Chapter – 6 विनिर्माण
Chapter – 7 राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की जीवन रेखाएँ
NCERT Solution Class 10th Social Science भूगोल All Chapters MCQ In Hindi
Chapter – 1 संसाधन एवं विकास
Chapter – 2 वन और वन्य जीव संसाधन
Chapter – 3 जल संसाधन
Chapter – 4 कृषि
Chapter – 5 खनिज और ऊर्जा संसाधन
Chapter – 6 विनिर्माण उद्योग
Chapter – 7 राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की जीवन रेखाएँ

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