NCERT Solutions Class 7th Social Science History Chapter – 7 क्षेत्रीय संस्कृतियों का निर्माण (The Making of Regional Cultures)
Textbook | NCERT |
Class | 7th |
Subject | Social Science (इतिहास) |
Chapter | 7th |
Chapter Name | क्षेत्रीय संस्कृतियों का निर्माण (The Making of Regional Cultures) |
Category | Class 7th Social Science (इतिहास) |
Medium | Hindi |
Source | Last Doubt |
NCERT Solutions Class 7th Social Science History Chapter – 7 क्षेत्रीय संस्कृतियों का निर्माण (The Making of Regional Cultures) Notes in Hindi हम इस अध्याय में चेर और मलयालम भाषा का विकास, शासक और धार्मिक पंरपराएँ, राजपूत और शूरवीरता की परंपराएँ, क्षेत्रीय सीमांतों से परे, संरक्षकों के लिए चित्रकला, एक क्षेत्रीय भाषा का विकास, पीर और मंदिर, मछली, भोजन के रूप में, इतिहास के कितने क्षेत्र हैं?, कक्षा 7 के शास्त्री कौन थे?, शास्त्री के पिता कौन है?, शास्त्री का अर्थ क्या है?, शास्त्री एक भारतीय नाम है?, इतिहास के 3 स्रोत कौन से हैं?, भारत के प्रथम संस्थापक कौन है?, इतिहास के तीन काल कौन से हैं? आदि के बारे में पढ़ेंगे। |
NCERT Solutions Class 7th Social Science History Chapter – 7 क्षेत्रीय संस्कृतियों का निर्माण (The Making of Regional Cultures)
Chapter – 7
क्षेत्रीय संस्कृतियों का निर्माण
Notes
चेर भाषा का विकास – महोदयपुरम का चेर राज्य प्रायद्वीप के दक्षिणी-पश्चिमी भाग में, जो आज के केरल राज्य का एक हिस्सा है, नौवीं शताब्दी में स्थापित किया गया। मलयालम भाषा इस इलाके में बोली जाती थी। शासकों ने मलयालम भाषा एवं लिपि का प्रयोग अपने अभिलेखों में किया। किया । वस्तुत: इस भाषा का प्रयोग उपमहाद्वीप के सरकारी अभिलेखों में किसी क्षेत्रीय भाषा के प्रयोग के सबसे पहले उदाहरणों में से एक है। साथ-साथ चेर लोगों ने संस्कृत की परंपराओं से भी बहुत कुछ ग्रहण किया। केरल का मंदिर – रंगमंच, जिसकी परंपरा इस युग तक खोजी जा सकती है, संस्कृत के महाकाव्यों पर आधारित था।
मलयालम भाषा का विकास कैसे हुआ? – मलयालम भाषा की पहली साहित्यिक कृतियाँ, जो लगभग बारहवीं शताब्दी की बताई जाती हैं, प्रत्यक्ष रूप से संस्कृत की ऋणी हैं। यह भी एक काफ़ी रोचक तथ्य है कि चौदहवीं शताब्दी का एक ग्रंथ लीला तिलकम, जो व्याकरण तथा काव्यशास्त्र विषयक है ‘मणिप्रवालम’ शैली में लिखा गया था। मणिप्रवालम का शाब्दिक अर्थ है – हीरा और मूँगा, जो यहाँ दो भाषाओं – संस्कृत तथा क्षेत्रीय भाषा – के साथ-साथ प्रयोग की ओर संकेत करता है।
शासक और धार्मिक पंरपराएँ – अन्य क्षेत्रों में क्षेत्रीय संस्कृतियाँ, क्षेत्रीय धार्मिक परपराओं से विकसित हुई थीं। इस प्रक्रिया का सर्वोत्तम उदाहरण है – पुरी, उड़ीसा में जगन्नाथ का संप्रदाय (जगन्नाथ का अर्थ – दुनिया का मालिक जो विष्णु का पर्यायवाची है) आज तक जगन्नाथ की काष्ठ प्रतिमा, स्थानीय जनजातीय लोगों द्वारा बनाई जाती है जिससे की जगन्नाथ मुलत: एक स्थानीय देवता थे।
जिन्हे आगे चलकर विष्णु का रूप मान लिया गया। बारहवीं शताब्दी में गंग वंश के राजा अनंतवर्मन ने पुरी में पुरुषोत्तम जगन्नाथ के लिए एक मंदिर बनवाने का निश्चय किया। इस मंदिर को तीर्थस्थल यानी तीर्थ यात्रा के केंद्र के रूप में महत्व प्राप्त होता गया, सामाजिक तथा राजनितिक मामलों में भी इसकी सत्ता बढ़ती गई।
राजपूत और शूरवीरता की परंपराएँ – ऐसे अनेक समूह थे जो उत्तरी तथा मध्यवर्ती भारत के अनेक क्षेत्रों में अपने आपको राजपूत कहते हैं। राजपूतों ने राजस्थान को विशिष्ट संस्कृतिक प्रदान की। ये सांस्कृतिक परंपराएँ वहाँ के शासकों के आदर्शों तथा अभिलाषाओं के साथ धनिष्ठता से जुडी हुई थी।
लगभग आठवीं शताब्दी से आज के राजस्थान के अधिकांश भाग पर विभिन्न परिवारों के राजपूत राजाओं का शासन रहा। पृथ्वीराज एक ऐसा शासक था जिसने रणक्षेत्र में बहादुरी से लड़ते हुए अकसर मृत्यु का वरण किया मगर पीठ नहीं दिखाई।
क्षेत्रीय सीमांतों से परे – कत्थक शब्द ‘कथा’ शब्द से निकला है, जिसका प्रयोग संस्कृत तथा अन्य भाषाओं में कहानी के लिए किया जाता है। कत्थक मूल रूप से उत्तर भारत के मंदिरों में कथा यानी कहानी सुनाने वालों की एक जाति थी। पंद्रहवी तथा सोलहवीं शताब्दियों में भक्ति आंदोलन के प्रसार के साथ कत्थक एक विशिष्ट नृत्य शैली का रूप धारण करने लगा।
राधा-कृष्ण के पौराणिक के रूप में आख्यान लोक नाटय प्रस्तुत किए जाते थे, जिन्हे ‘रासलीला’ कहा जाता था। इसकी प्रस्तुति में किलष्ट तथा दुत पद संचालन, उत्तम वेशभूषा तथा कहानियों के प्रस्तुतिकरण एवं अभिनय पर जोर दिया जाने लगा।
संरक्षकों के लिए चित्रकला – एक अन्य परंपरा जो कई रीतियों से विकसित हुई, वह थी लघुचित्रों की परंपरा। लघुचित्र छोटे आकार के चित्र होते हैं, जिन्हें आमतौर पर जल रंगो से कपड़े या कागज़ पर चित्रित किया जाता है। प्राचीनतम लघुचित्र, ताड़पत्रों अथवा लकड़ी की तख्तियों पर चित्रित किए गए थे।
इनमें से सर्वाधिक सुंदर चित्र, जो पश्चिम भारत में पाए गए जैन ग्रंथों को सचित्र बनाने के लिए प्रयोग किए गए थे। मुगल बादशाह ने कुशल चित्रकारों को संरक्षण प्रदान किया था, जो प्राथमिक रूप से इतिहास और काव्यों की पाण्डुलिपियाँ चित्रित करते थे।
ये पांडुलिपियाँ आमतौर पर चटक रंगों में चित्रित की जाती थीं और उनमें के दृश्य, लड़ाई तथा शिकार के दृश्य और सामाजिक जीवन के अन्य पहलू चित्रित किए जाते थे। अकसर उपहार के तौर पर चित्रों का आदान-प्रदान किया जाता था। स्मरण रहे की साधारण स्त्री-पुरुष भी बर्तनो, दीवारों, कपड़ों, फर्श आदि पर अपनी कलाकृतियाँ चित्रित करते थे।
एक क्षेत्रीय भाषा का विकास कैसे होता है – बंगाल में लोग हमेशा बंगाली (बंगला) ही बोलते थे। किंतु यह एक दिलचस्प बात है की आज बंगाली, संस्कृत से निकली हुई भाषा मानी जाती हैं। प्रारंभिक (ईसा-पूर्व प्रथम सहस्त्राब्दी के मध्य भाग के) संस्कृत ग्रंथों के अध्ययन से यह पता चलता है की बंगाल के लोग संस्कृत से उपजी हुई भाषाएँ नहीं बोलते थे।
ईसा पूर्व चौथी-तीसरी शताब्दी से बंगाल और मगध के बिच वाणिज्यिक संबंध स्थापित होने लगे थे जिसके कारण संस्कृत भाषा का प्रभाव बढ़ता गया ब्राह्मणों के बसने से सांस्कृतिक प्रभाव अध्क प्रबल हो गए और चीनी यात्री ह्यून सांग ने यह पाया की बंगाल में सर्वत्र संस्कृत से संबंधित भाषाओं क प्रयोग हो रहा था।
अलग-अलग राज्यों में नृत्य के नाम अलग-अलग नामों से प्रसिद्ध है-
• भरतनाट्यम् (तमिलनाडु)
• कथाकली (केरल)
• ओडिसी (उड़ीसा)
• कुचिपुड़ (आंध्र प्रदेश)
• मणिपुरी (मणिपुर)
पीर और मंदिर के बारे में बताए – सोलहवीं शताब्दी से लोगों ने बड़ी संख्या में पश्चिम बंगाल के कम उपजाऊ क्षेत्रों को छोड़कर दक्षिण-पूर्वी बंगाल के जंगली तथा दलदली इलाकों में प्रवास करना शुरू क्र दिया था। प्रारंभ में बाहर से आकर यहाँ बसने वाले लोग इस अस्थिर परिसिथतियों में रहने के लिए कुछ व्यवस्था तथा आश्वासन चाहते थे।
ये सुख-सुविधाएँ तथा आश्वासन उन्हें समुदाय के नेताओं ने प्रदान की। ये नेता शिक्षकों और निर्णायकों की भूमिकाएँ भी अदा करते थे। कभी-कभी ऐसा समझा जाता था, की इन नेताओं के पास अलौकिक शक्तियाँ है। स्नेह और आदर से लोग इन्हें ‘पीर’ कहा करते थे। इस पीर श्रेणी में संत या सूफ़ी और धार्मिक महानुभाव, पीरों की पूजा पद्धति बहुत लोकप्रिय हो गयी तब बंगाल में पंद्रहवी शताब्दी के बाद वाले वर्षों में मंदिर बनाने का का दौर जोरों पर रहा और उनकी प्रतिमाएँ मंदिरो में स्थापित की जाने लगीं।
मछली, भोजन के रूप में – परंपरागत भोजन संबंधी आदतें, आमतौर पर स्थानीय रूप से उपलब्ध खाद्य पदाथों पर निर्भर करती है। बंगाल एक नदीय मैदान है, जहाँ मछली और धान की उपज बहुतायत से होती है। इसलिए यह स्वाभविक है की इन दोनों वस्तुओं को गरीब बंगालियों की भोजन-सूचि में भी प्रमुख स्थान प्राप्त है।
यूरोप में राष्ट्र-राज्यों का उदय कैसे हुआ – अठारहवीं शताब्दी के अंत तक यूरोप के लोग स्वयं को एक साम्राज्य, जैसे, ऑस्ट्रिया-हंगरी साम्राज्य की प्रजा या किसी चर्च जैसे, यूनानी रूढ़िवादी चर्च के सदस्य मानते थे। परंतु अठारहवीं शताब्दी के अंतिम दशकों में लोग स्वयं को एक ऐसे समुदाय के सदस्य के रूप में भी पहचानने लगे जो एक भाषा जैसे कि फ्रेंच या जर्मन बोलते थे।
प्रारंभिक उन्नीसवीं शताब्दी में रोमानिया में विद्यालयी पाठ्यपुस्तकें ग्रीक के स्थान पर रोमानियन में लिखी जाने लगीं और हंगरी में लैटिन के स्थान पर हंगेरियन को राजभाषा के रूप में अपनाया गया। यह और इसी प्रकार की अन्य प्रक्रियाओं ने लोगों को यह बोध कराया कि प्रत्येक भाषी समुदाय एक अलग राष्ट्र था। उन्नीसवीं शताब्दी के अंतिम दशकों में इटली और जर्मनी के एकीकरण के लिए हुए आंदोलनों ने इस भावना को और अधिक बल दिया।
NCERT Solution Class 7th History All Chapter Notes |
NCERT Solution Class 7th History All Chapter Question Answer |
NCERT Solution Class 7th History All Chapter MCQ |
You Can Join Our Social Account
Youtube | Click here |
Click here | |
Click here | |
Click here | |
Click here | |
Telegram | Click here |
Website | Click here |