NCERT Solutions Class 7th History Chapter – 4 मुगल सोलहवीं से सत्रहवीं शताब्दी (The Mughal (16th TO 17th Century)
Textbook | NCERT |
Class | 7th |
Subject | Social Science (इतिहास) |
Chapter | 4th |
Chapter Name | मुगल सोलहवीं से सत्रहवीं शताब्दी (The Mughal (16th TO 17th Century) |
Category | Class 7th Social Science (इतिहास) |
Medium | Hindi |
Source | Last Doubt |
NCERT Solutions Class 7th History Chapter – 4 मुगल साम्राज्य (The Mughal Empire) Notes in hindi जिसमे हम मुगलों का सही क्रम क्या है?, मुगलों ने भारत पर कितने साल तक राज किया?, मुगल कौन से वंश के थे?, अकबर को किसने हराया था?, मुगलों का बाप कौन था?, सबसे खराब मुगल सम्राट कौन था?, मुगलों में सबसे ताकतवर राजा कौन था?, मुगलों से पहले भारत में किसका राज था?, सबसे क्रूर मुस्लिम शासक कौन था?, औरंगजेब ने कितने मंदिरों को तोड़ा?, भारत को मुगलों से किसने आजाद कराया था अकबर को अकबर महान क्यों कहा गया?, इतिहास का सबसे डरपोक राजा कौन है?, भारत का हिंदू राजा कौन था?, सबसे शक्तिशाली हिंदू राजा कौन था?, इत्यादि के बारे में विस्तार से पढेंगें। |
NCERT Solutions Class 7th History Chapter – 4 मुगल सोलहवीं से सत्रहवीं शताब्दी (The Mughal (16th TO 17th Century)
Chapter – 4
मुगल साम्राज्य
Notes
मुगल बादशाह
भारतीय उपमहाद्वीप एक विशाल भूभाग होने के अलावा सदियों से सांस्कृतिक और धार्मिक विविधताओं से भरा क्षेत्र रहा है। इसलिए मध्यकाल में भारतीय उपमहाद्वीप पर शासन कर पाना बहुत कठिन काम था। मुगलों के पहले के कुछ राजवंशों ने यह काम किया था लेकिन उनका शासन बहुत कम समय के लिए चल पाया था। उसके विपरीत, मुगलों का शासन लगभग तीन सौ वर्षों तक रहा।
इस लंबे समय के दौरान मुगल शासकों ने प्रशासन का जो ढ़ाँचा बनाया और शासन संबंधी जो विचार लागू किए उसका असर आज भी देखने को मिलता है। आज भी भारत के प्रधानमंत्री स्वतंत्रता दिवस के दिन जिस लालकिले पर झंडा फहराते हैं वह कभी मुगल बादशाह का निवास स्थान हुआ करता था।
मुगल कौन थे?
मुगल दो महान शासक वंशों के वंशज थे। माता की ओर से वे मंगोल शासक चंगेज खान के वंशज थे। पिता की ओर से वे तैमूर के वंशज थे। चंगेज खान चीन और मध्य एशिया के कुछ भागों पर राज करता था। तैमूर का शासन ईरान, इराक और आज के तुर्की पर था। चंगेज खान के नाम से ही उसके द्वारा किए गए भीषण नरसंहारों की याद आ जाती है। इसलिए मुगल अपने आप को मुगल या मंगोल कहलवाना पसंद नहीं करते थे। लेकिन तैमूर ने 1398 में दिल्ली पर कब्जा किया था। इसलिए मुगलों को तैमूर का वंशज होने पर गर्व था।
1494 में बाबर जब बारह वर्ष का था तो उसे फरघाना का उत्तराधिकार मिला। लेकिन मंगोलों की दूसरी शाखा (उजबेगों) के आक्रमण के कारण उसे अपनी गद्दी छोड़नी पड़ी। कई वर्षों तक भटकने के बाद उसने 1504 में काबुल पर कब्जा किया। उसके बाद 1526 में पानीपत की पहली लड़ाई में उसने दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी को हराकर दिल्ली और आगरा पर कब्जा किया। यहीं से भारतीय उपमहाद्वीप में मुगल साम्राज्य की नींव पड़ी।
प्रमुख अभियान और घटनाएँ
बाबर 1526-1530 ने
• 1526 में पानीपत के मैदान में इब्राहिम लोदी एवं उसके अफ़गान समर्थकों को हराया।
• 1527 में खानुवा में राणा सांगा, राजपूत राजाओं और उनके समर्थकों को हराया।
• 1528 में चंदेरी में राजपूतों को हराया।
• अपनी मृत्यु से पहले दिल्ली और आगरा में मुग़ल नियंत्रण स्थापित किया।
हुमायूँ 1530 -1540 एवं 1555-1556
• हुमायूँ ने अपने पिता की वसीयत के अनुसार जायदाद का बँटवारा किया। प्रत्येक भाई को एक एक प्रांत मिला।
• उसके भाई मिर्ज़ा कामरान की महत्त्वाकाँक्षाओं के कारण हुमायूँ अपने अफ़ग़ान प्रतिद्वंद्वियों के सामने फीका पड़ गया।
• शेर खान ने हुमायूँ को दो बार हराया – 1539 में चौसा में और 1540 में कन्नौज में इन पराजयों ने उसे ईरान की ओर भागने को बाध्य किया।
• ईरान में हुमायूँ ने सफ़ाविद शाह की मदद ली। उसने 1555 में दिल्ली पर पुनः कब्जा कर लिया परंतु उससे अगले वर्ष इस इमारत में एक दुर्घटना में उसकी मृत्यु हो गयी।
अकबर 1556-1605
13 वर्ष की अल्पायु में अकबर सम्राट बना। – उसके शासनकाल को तीन अवधियों में विभाजित किया जा सकता है।
1556 और 1570 के मध्य अकबर अपने संरक्षक बैरम खान और अपने घरेलू कर्मचारियों से स्वतंत्र हो गया। उसने सूरी और अन्य अफ़गानों, निकटवर्ती राज्यों मालवा और गोंडवाना तथा अपने सौतेले भाई मिर्जा हाक्क्रिम और उजबेगों के विद्रोहों को दबाने के लिए सैन्य अभियान चलाए। 1568 में सिसौदियों की राजधानी चित्तौड़ और 1569 में रणथम्भौर पर कब्जा कर लिया गया।
1570 और 1585 के मध्य गुजरात के विरुद्ध सैनिक अभियान हुए। इन अभियानों के पश्चात् उसने पूर्व में बिहार, बंगाल और उड़ीसा में अभियान चलाए. जिन्हें 1579-80 में मिर्जा हाकिम के पक्ष में हुए विद्रोह ने और जटिल कर दिया।
1585-1605 के मध्य अकबर के साम्राज्य का विस्तार हुआ। उत्तर-पश्चिम में अभियान चलाए गए। सफ़ाविदों को हराकर कांधार पर कब्जा किया गया और कश्मीर को भी जोड़ लिया गया। मिर्जा हाकिम की मृत्यु के पश्चात् काबुल को भी उसने अपने राज्य में मिला लिया। दक्कन में अभियानों की शुरुआत हुई और खानदेश और अहमदनगर के कुछ हिस्सों को भी उसने अपने राज्य में मिला लिया। अपने शासन के अंतिम वर्षों में अकबर की सत्ता राजकुमार सलीम के विद्रोहों के कारण लड़खड़ायी। यही सलीम आगे चलकर सम्राट जहाँगीर कहलाया।
जहाँगीर 1605-1627
• जहाँगीर ने अकबर के सैन्य अभियानों को आगे बढ़ाया।
• मेवाड़ के सिसोदिया शासक अमर सिंह ने मुग़लों की सेवा स्वीकार की।
• इसके बाद सिक्खों, अहोमों और अहमदनगर के खिलाफ़ अभियान चलाए गए, जो पूर्णतः सफल नहीं हुए।
• जहाँगीर के शासन के अंतिम वर्षों में राजकुमार खुर्रम, जो बाद में सम्राट शाहजहाँ कहलाया, ने विद्रोह किया।
• जहाँगीर की पत्नी नूरजहाँ ने शाहजहाँ को हाशिए पर धकेलने के प्रयास किए, जो असफल रहे।
शाहजहाँ 1627-1658
• दक्कन में शाहजहाँ के अभियान जारी रहे। अफ़गान अभिजात खान जहान लोदी ने विद्रोह किया और वह पराजित हुआ।
• अहमदनगर के विरुद्ध अभियान हुआ जिसमें बुंदेलों की हार हुई और ओरछा पर कब्जा कर लिया गया।
• उत्तर-पश्चिम में बल्ख पर कब्ज़ा करने के लिए उजवेगों के विरुद्ध अभियान हुआ जो असफल रहा।
• परिणामस्वरूप कांधार सफ़ाविदों के हाथ में चला गया।
• 1632 में अंततः अहमदनगर को मुग़लों के राज्य में मिला लिया गया और बीजापुर की सेनाओं ने सुलह के लिए निवेदन किया।
• 1657-58 में शाहजहाँ के पुत्रों के बीच उत्तराधिकार को लेकर झगड़ा शुरू हो गया।
• इसमें औरंगजेब की विजय हुई और दारा शिकोह समेत उसके तीनों भाइयों को मौत के घाट उतार दिया गया।
• शाहजहाँ को उसकी शेष जिंदगी के लिए आगरा में कैद कर दिया गया।
औरंगज़ेब 1658-1707
1663 में उत्तर-पूर्व में अहोमों की पराजय हुई परंतु उन्होंने 1680 में पुनः विद्रोह कर दिया। उत्तर-पश्चिम में यूसफज़ई और सिक्खों के विरुद्ध अभियानों को अस्थायी सफलता मिली। मारवाड़ के राठौड़ राजपूतों ने मुग़लों के खिलाफ़ विद्रोह किया। इसका कारण था उनकी आंतरिक राजनीति और उत्तराधिकार के मसलों में मुग़लों का हस्तक्षेप।
मराठा सरदार, शिवाजी के विरुद्ध मुग़ल अभियान प्रारंभ में सफल रहे। परंतु औरंगजेब ने शिवाजी का अपमान किया और शिवाजी आगरा स्थित मुग़ल कैदखाने से भाग निकले। उन्होंने अपने को स्वतंत्र शासक घोषित करने के पश्चात् मुग़लों के विरुद्ध पुनः अभियान चलाए।
राजकुमार अकबर ने औरंगजेब के विरुद्ध विद्रोह किया, जिसमें उसे मराठों और दक्कन की सल्तनत का सहयोग मिला। अन्ततः वह सफ़ाविद ईरान भाग गया।
अकबर के विद्रोह के पश्चात् औरंगजेब ने दक्कन के शासकों के विरुद्ध सेनाएँ भेजी। 1685 में बीजापुर और 1687 में गोलकुंडा को मुग़लों ने अपने राज्य में मिला लिया।
1698 में औरंगजेब ने दक्कन में मराठों, जो छापामार पद्धति का उपयोग कर रहे थे, के विरुद्ध अभियान का प्रबंध स्वयं किया।
औरंगजेब को उत्तर भारत में सिक्खों, जाटों और सतनामियों, उत्तर-पूर्व में अहोमों और दक्कन में मराठों के विद्रोहों का सामना करना पड़ा। उसकी मृत्यु के पश्चात उत्तराधिकार के लिए यह शरू हो गया।
मुगल सैन्य अभियान – प्रथम मुगल शासक बाबर (1526-1530 ) ने जब 1494 में फरघाना राज्य का उत्तराधिकार प्राप्त किया, तो उसकी उम्र केवल बारह वर्ष की थी। मंगोलों की दूसरी शाखा, उज़बेगों के आक्रमण के कारण उसे अपनी पैतृक गद्दी छोड़नी पड़ी। अनेक वर्षों तक भटकने के बाद उसने 1504 में काबुल पर कब्ज़ा कर लिया। उसने 1526 में दिल्ली के सुलतान इब्राहिम लोदी को पानीपत में हराया और दिल्ली और आगरा को अपने कब्ज़े में कर लिया।
उत्तराधिकार की मुगल परंपराएँ – उत्तराधिकार की दो परंपराएँ हैं। ज्येष्ठाधिकार और सहदायाद। ज्येष्ठाधिकार के अनुसार सबसे बड़ा बेटा अपने पिता के राज्य का उत्तराधिकारी होता था। सहदायाद के अनुसार सभी बेटों में उत्तराधिकार को बाँट दिया जाता था। यही परंपरा तैमूर वंश में भी चली आ रही थी। मुगल भी इसी परंपरा का पालन करते थे।
मुग़लो के अन्य शासकों के साथ संबंध
जब मुगल शक्तिशाली हो गए तो कई अन्य राजाओं ने उनकी सत्ता स्वीकार कर ली। कई राजपूत राजाओं ने मुगल घराने में अपनी बेटियों का विवाह कर दिया ताकि ऊँचे पद प्राप्त कर सकें। लेकिन कई राजाओं ने इसका विरोध भी किया।
मेवाड़ के सिसोदिया राजपूत मुगलों की सत्ता को स्वीकार करने से इंकार करते रहे। जब मुगलों ने उन्हें परास्त किया तो उनके साथ इज्जत से पेश आए। मुगलों ने सिसोदिया राजपूत को उनकी जागीरें (वतन) लौटा दी, जिसे वतन जागीर का नाम दिया गया। इस तरह से मुगल किसी को पराजित तो करते थे लेकिन अपमानित नहीं करते थे। इस नीति के कारण मुगलों का प्रभाव बढ़ता चला गया। लेकिन औरंगजेब ने शिवाजी को अपमानित किया जिसका उसे बुरा परिणाम देखना पड़ा।
मनसबदार और जागीरदार
मुगल शासन के शुरुआती दिनों में उनके अधिकतर सरदार तुर्की (तूरानी) थे। लेकिन जब साम्राज्य का विस्तार हुआ तो शासक वर्ग में ईरानी, भारतीय मुसलमान, अफगान, राजपूत, मराठा, आदि समूह भी शामिल हो गए।
मुगल की सेवा में रहनेवाले नौकरशाहों को मनसबदार कहा जाने लगा। मनसब का मतलब होता है कोई सरकारी हैसियत या पद। किसी मनसबदार के पद, वेतन और सैन्य उत्तरदायित्व का निर्धारण उसकी जात की संख्या के आधार पर होता था। जात की अधिक संख्या का मतलब अधिक वेतन और अधिक इज्जत होती थी।
मनसबदार को अपनी सैन्य उत्तरदायित्व के अनुसार घुड़सवार रखने पड़ते थे। मनसबदार अपने सवारों को निरीक्षण के लिए लाता था, अपने सैनिकों के घोड़ों को दगवाता था और सैनिकों का पंजीकरण करवाता था। इन जरूरी कार्यवाहियों के बाद ही उसे सैनिकों को वेतन देने के लिए धन मिलता था।
मनसबदार को जमीन दी जाती थी जिससे वे लगान या राजस्व वसूलते थे और यही उसका वेतन होता था। इस भूमि को जागीर कहते थे जो दिल्ली सुलतान के काल के इक्ता जैसी थी। यहाँ पर एक अंतर था। दिल्ली सुलतान के समय में मुक्ती अपने इक्ताओं में रहते थे, लेकिन मुगल काल में मनसबदार अपनी जागीरों में नहीं रहते थे और न ही उस पर प्रशासन करते थे। मनसबदार का नौकर लगान वसूलता था और मनसबदार देश के किसी अन्य हिस्से में अपनी सेवा देता था।
अकबर के शासन के समय जागीरों का सावधानी से आकलन किया जाता था ताकि इनका राजस्व मनसबदार के वेतन के लगभग बराबर हो। औरंगजेब का शासन आते आते स्थिति बदल चुकी थी। अब जागीर से मिलने वाला राजस्व, मनसबदार के वेतन से बहुत कम था। मनसबदारों की संख्या पहले से बहुत ज्यादा हो चुकी थी। इसलिए जागीर मिलने से पहले उन्हें लंबा इंतजार करना पड़ता था। अब कई जागीरदार, जागीर रहने पर यह कोशिश करते थे कि जितना हो सके राजस्व वसूल ले। इससे किसानों की मुसीबतें बढ़ गई थीं।
ज़ब्त और जमींदार
अकबर के राजस्वमंत्री टोडरमल ने दस साल (1570-1580) की कालावधि के लिए कृषि की पैदावार, कीमतों और कृषि भूमि का सावधानीपूर्वक सर्वेक्षण किया। इन आँकड़ों के आधार पर, प्रत्येक फ़सल पर नकद के रूप में कर (राजस्व) निश्चित कर दिया गया। प्रत्येक सूबे (प्रांत) को राजस्व मंडलों में बाँटा गया और प्रत्येक की हर फ़सल के लिए राजस्व दर की अलग सूची बनायी गई। राजस्व प्राप्त करने की इस व्यवस्था को ‘ज़ब्त’ कहा जाता था। यह व्यवस्था उन स्थानों पर प्रचलित थी जहाँ पर मुग़ल प्रशासनिक अधिकारी भूमि का निरीक्षण कर सकते थे और सावधानीपूर्वक उनका हिसाब रख सकते थे। ऐसा निरीक्षण गुजरात और बंगाल जैसे प्रांतों में संभव नहीं हो पाया।
कुछ क्षेत्रों में ज़मीदार इतने शक्तिशाली थे कि मुग़ल प्रशासकों द्वारा शोषण किए जाने की स्थिति में वे विद्रोह कर सकते थे। कभी-कभी एक ही जाति के ज़मीदार और किसान मुग़ल सत्ता के खिलाफ़ मिलकर विद्रोह कर देते थे। सत्रहवीं शताब्दी के आखिर से ऐसे किसान विद्रोहों ने मुग़ल साम्राज्य के स्थायित्व को चुनौती दी।
सत्रहवीं शताब्दी में और उसके पश्चात मुग़ल साम्राज्य
मुग़ल साम्राज्य की प्रशासनिक और सैनिक कुशलता के फलस्वरूप आर्थिक और वाणिज्यिक समृद्धि में वृद्धि हुई। विदेशी यात्रियों ने इसे वैसा धनी देश बताया, जैसा कि किस्से-कहानियों में वर्णित होता रहा है। परंतु यही यात्री इसी प्रचुरता के साथ मिलने वाली दरिद्रता को देखकर विस्मित रह गए। सामाजिक असमानताएँ साफ़ दिखाई पड़ती थीं। शाहजहाँ के शासनकाल के बीसवें वर्ष के दस्तावेज़ों से हमें पता चलता है कि ऐसे मनसबदार, जिनको उच्चतम पद प्राप्त था, कुल 8000 में से 445 ही थे। कुल मनसबदारों की एक छोटी संख्या 5.6 प्रतिशत को ही साम्राज्य के अनुमानित राजस्व का 61.5 प्रतिशत, स्वयं उनके व उनके सवारों के वेतन के रूप में दिया जाता था।
मुग़ल सम्राट और उनके मनसबदार अपनी आय का बहुत बड़ा भाग वेतन और वस्तुओं पर लगा देते थे। इस ख़र्चे से शिल्पकारों और किसानों को लाभ होता था, चूँकि वे वस्तुओं और फ़सल की पूर्ति करते थे। परंतु राजस्व इतना था कि प्राथमिक उत्पादकों किसान और शिल्पकारों-के पास निवेश के लिए बहुत कम धन बचता था। इनमें से जो बहुत गरीब थे, मुश्किल से ही पेट भर पाते थे। वे उत्पादन शक्ति बढ़ाने के लिए अतिरिक्त संसाधनों में – औज़ारों और अन्य वस्तुओं में निवेश करने की बात सोच भी नहीं सकते थे।
ऐसी अर्थव्यवस्था में ज़्यादा धनी किसान, शिल्पकारों के समूह, व्यापारी और महाजन ज़्यादा लाभ उठाते थे। मुग़लों के कुलीन वर्ग के हाथों में बहुत धन और संसाधन थे, जिनके कारण सत्रहवीं सदी के अंतिम वर्षों में वे अत्यधिक शक्तिशाली हो गए। जैसे-जैसे मुग़ल सम्राट की सत्ता पतन की ओर बढ़ती गई, वैसे-वैसे विभिन्न क्षेत्रों में सम्राट के सेवक, स्वयं ही सत्ता के शक्तिशाली केंद्र बनने लगे। इनमें कुछ ने नए वंश स्थापित किए और हैदराबाद एवं अवध जैसे प्रांतों में अपना नियंत्रण जमाया।
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