NCERT Solutions Class 7th History Chapter – 3 दिल्ली: बारहवीं से पंद्रहवीं शताब्दी (Delhi: 12th to 15th Century) Notes in Hindi

NCERT Solutions Class 7th History Chapter – 3 दिल्ली: बारहवीं से पंद्रहवीं शताब्दी (Delhi: 12th to 15th Century)

TextbookNCERT
Class 7th
Subject Social Science (इतिहास)
Chapter3rd
Chapter Nameदिल्ली: बारहवीं से पंद्रहवीं शताब्दी (Delhi: 12th to 15th Century)
CategoryClass 7th Social Science (इतिहास)
Medium Hindi
SourceLast Doubt
NCERT Solutions Class 7th History Chapter – 3 दिल्ली: बारहवीं से पंद्रहवीं शताब्दी (Delhi: 12th to 15th Century) Notes in Hindi जिसमे हम दिल्ली के सुल्तान कौन है?, दिल्ली का पहला सुल्तान कौन था?, दिल्ली पर कितने सुल्तानों ने शासन किया?, भारत के किस सुल्तान ने दिल्ली पर कब्जा किया था?, दिल्ली से शासन करने वाली प्रथम महिला कौन थी?, दिल्ली के आखिरी राजा कौन था?, वह प्रथम भारतीय मुसलमान कौन था जो दिल्ली का सुल्तान बना?, दिल्ली के सुल्तान किसकी बेटी थी?, गुलाम वंश में कितने शासक थे?,पृथ्वीराज चौहान के बाद दिल्ली पर किसने शासन किया? इतयादि के बारे में विस्तार से पढेंगें।

NCERT Solutions Class 7th History Chapter – 3 दिल्ली: बारहवीं से पंद्रहवीं शताब्दी (Delhi: 12th to 15th Century)

Chapter – 3

दिल्ली के सुल्तान

Notes

दिल्ली में पहले-पहल राजधानी

बारहवीं सदी तक दिल्ली एक आम शहर हुआ करता था। उसके बाद जब राजपूत राजाओं ने इसे अपनी राजधानी बनाई तो धीरे धीरे दिल्ली का राजनैतिक महत्व बढ़ता गया। मुगल शासन के समय दिल्ली का राजनैतिक महत्व अपने चरम पर पहुँच गया।

तोमर राजपूतों ने बारहवीं सदी में दिल्ली को अपनी राजधानी बनाई। उसके बाद बारहवीं सदी के मध्य में चौहान राजपूतो ने तोमर को हराकर दिल्ली पर कब्जा किया। इन राजाओं के शासन के दौरान दिल्ली एक महत्वपूर्ण व्यावसायिक केंद्र बन चुका था। यहाँ पर कई जैन व्यापारी रहते थे जिन्होंने कई मंदिर बनवाए थे। यहाँ पर देहलीवाल नाम से प्रसिद्ध सिक्के ढ़ाले जाते थे।

तेरहवीं सदी की शुरुआत में दिल्ली सल्तनत की शुरुआत हुई। इसके साथ ही दिल्ली धीरे धीरे ऐसी राजधानी बन गई जिसका उपमहाद्वीप के अधिकतर क्षेत्रों पर नियंत्रण होने लगा। दिल्ली सल्तनत उन पाँच राजवंशों से बना है जिन्होंने अलग अलग समय पर शासन किया। इन सुलतानों ने कई शहर बसाये जिन्हें आज हम सामूहिक रूप से दिल्ली के नाम से जानते हैं। इन शहरों के कुछ उदाहरण हैं। दिल्ली-ए कुह्ना, जहाँपनाह, सीरी, फिरोजाबाद, आदि।

राजपूत राजवंश

तोमर: बारहवीं सदी की शुरुआत से 1165 तक
अनंग पाल: 1130 से 1145
चौहान: 1165 से 1192
पृथ्वीराज चौहान: 1175-1192

शुरुआती तुर्की शासक

कुतुबुद्दीन ऐबक – 1206 – 1210
शमसुद्दीन इल्तुतमिश – 1210 – 1236
रजिया – 1236 – 1240
गयासुद्दीन बलबन – 1266 – 1287

खलजी राजवंश

जलालुद्दीन खलजी -1290 – 1296
अलाउद्दीन खलजी – 1296 – 1316

तुगलक राजवंश

गयासुद्दीन तुगलक: 1320 – 1324
मुहम्मद बिन तुगलक: 1324 – 1351
फिरोज शाह तुगलक: 1351 – 1388

सैयद राजवंश

खिज्र खान -1414 – 1421

लोदी राजवंश

बहलुल लोदी – 1451 – 1489

सुल्तान के अधीन दिल्ली – हालाँकि अभिलेख, सिक्कों और स्थापत्य (भवन निर्माण कला) के माध्यम से काफ़ी सूचना मिलती है, मगर और भी महत्त्वपूर्ण वे ‘इतिहास’, तारीख (एकवचन)/तवारीख (बहुवचन) हैं जो सुलतानों के शासनकाल में, प्रशासन की भाषा फ़ारसी में लिखे गए थे।

कुछ महत्वपूर्ण बिंदु –

(1) तवारीख के लेखक नगरों में (विशेषकर दिल्ली में) रहते थे, गाँव में शायद ही कभी रहते हों।
(2) वे अकसर अपने इतिहास सुलतानों के लिए, उनसे ढेर सारे इनाम-इकराम पाने की आशा में लिखा करते थे।
(3) ये लेखक अकसर शासकों को जन्मसिद्ध अधिकार और लिंगभेद पर आधारित ‘आदर्श’ समाज व्यवस्था बनाए रखने की सलाह देते थे।

सन् 1236 में सुलतान इल्तुतमिश की बेटी रज़िया सिंहासन पर बैठी । उस युग के इतिहासकार मिन्हाज-ए -सिराज ने स्वीकार किया है कि वह अपने सभी भाइयों से अधिक योग्य और सक्षम थी,

लेकिन फिर भी वह एक रानी को शासक के रूप में मान्यता नहीं दे पा रहा था। दरबारी जन भी उसके स्वतंत्र रूप से शासन करने की कोशिशों से प्रसन्न नहीं थे। सन् 1240 में उसे सिंहासन से हटा दिया गया।

ख़लजी और तुग़लक़ वंश के अन्तर्ग्रत प्रशासन – नज़दीक से एक नजऱ

दिल्ली के आरंभिक सुलतान, विशेषकर इल्तुतमिश, सामंतों और ज़मींदारों के स्थान पर अपने विशेष गुलामों को सूबेदार नियुक्त करना अधिक पसंद करते थे। इन गुलामों को फ़ारसी में बंदगाँ कहा जाता है तथा इन्हें सैनिक सेवा के लिए खरीदा जाता था। उन्हें राज्य के कुछ बहुत ही महत्त्वपूर्ण राजनीतिक पदों पर काम करने के लिए बड़ी सावधानी से प्रशिक्षित किया जाता था। वे चूँकि पूरी तरह अपने मालिक पर निर्भर होते थे, इसलिए सुलतान भी विश्वास करके उन पर निर्भर हो सकते थे।

ख़लजी तथा तुग़लक़ शासक बंदगाँ का इस्तेमाल करते रहे और साथ ही अपने पर आश्रित निम्न वर्ग के लोगों को भी ऊँचे राजनीतिक पदों पर बैठाते रहे। ऐसे लोगों को सेनापति और सूबेदार जैसे पद दिए जाते थे। लेकिन इससे राजनीतिक अस्थिरता भी पैदा होने लगी।

ख़लजी और तुग़लक़ शासकों ने भी सेनानायकों को भिन्न-भिन्न आकार के इलाकों के सूबेदार के रूप में नियुक्त किया। ये इलाके इक़्ता कहलाते थे और इन्हें सँभालने वाले अधिकारी इक़्तदार या मुक्र्ती कहे जाते थे। मुक्र्ती का फ़र्ज था सैनिक अभियानों का नेतृत्व करना और अपने इक़्तों में कानून और व्यवस्था बनाए रखना। अपनी सैनिक सेवाओं के बदले वेतन के रूप में मुक़्ती अपने इलाकों से राजस्व की वसूल किया करते थे। राजस्व के रूप में मिली रकम से ही वे अपने सैनिकों को भी तनख्वाह देते थे।

उस समय तीन तरह के कर थे –

(1) कृषि पर, जिसे खराज कहा जाता था और जो किसान की उपज का लगभग पचास प्रतिशत होता था
(2) मवेशियों पर
(3) घरों पर

पंद्रहवीं तथा सोलहवीं शताब्दी में सल्तनत

तालिका 1 को फिर से देखें। आप पाएँगें कि तुग़लक़ वंश के बाद 1526 तक दिल्ली तथा आगरा पर सैयद तथा लोदी वंशों का राज्य रहा। तब तक जौनपुर, बंगाल, मालवा, गुजरात, राजस्थान तथा पूरे दक्षिण भारत में स्वतंत्र शासक उठ खड़े हुए थे। उनकी राजधानियाँ समृद्ध थीं और राज्य फल-फूल रहे थे। इसी काल में अफ़गान तथा राजपूतों जैसे नए शासक समूह भी उभरे।

भीतरी प्रदेशों – तेरहवीं शताब्दी के आरंभिक वर्षों में दिल्ली के सुलतानों का शासन गैरिसनों (रक्षक सैनिकों की टुकड़ियों) के निवास के लिए बने मज़बूत किलेबंद शहरों से परे शायद ही कभी फैला हो। शहरों से संबद्ध, लेकिन उनसे दूर भीतरी प्रदेशों पर उनका नियंत्रण न के बराबर था और इसलिए उन्हें आवश्यक सामग्री, रसद आदि के लिए व्यापार, कर या लूटमार पर ही निर्भर रहना पड़ता था।

गैरिसन शहरों – दिल्ली से सुदूर बंगाल और सिंध के गैरिसन शहरों का नियंत्रण बहुत ही कठिन था । बगावत, युद्ध, यहाँ तक कि खराब मौसम से भी उनसे संपर्क के नाज़ुक सूत्र छिन्न-भिन्न हो जाते थे।

तारीख या तवारीख

दिल्ली सुलतान के समय के इतिहास के बारे में उस समय के लेखकों द्वारा लिखी गई सामग्री को तारीख कहते हैं। तवारीख इसी का बहुवचन है। तवारीख को फारसी में लिखा गया था जो उस समय के प्रशासन की भाषा थी। तवारीख लिखने वाले (सचिव, प्रशासक, कवि, दरबारी) लोग विद्वान होते थे

ऐसे लोग शहर में (खासकर दिल्ली में) रहते थे और शायद ही गाँवों में रहते थे। ये लोग उपहार के लालच में सुलतानों का इतिहास लिखा करते थे। ये लोग शासकों को सही शासन और सामाजिक व्यवस्था पर सलाह भी देते थे। उनके हिसाब से जन्म और लैंगिक आधार पर ही एक आदर्श समाज बनाया जा सकता था।

रजिया सुल्तानइल्तुतमिश की बेटी रजिया 1236 में सुलतान बनी थी। लेकिन एक महिला शासक को अधिकतर लोग अपने गले नहीं उतार पा रहे थे। इसलिए चार वर्ष बाद ही 1240 में रजिया को गद्दी छोड़नी पड़ी।

सल्तनत का विस्तार

तेरहवीं सदी तक दिल्ली सल्तनत गैरिसन यानी छावनी से आगे नहीं फैल पाया था। शहर के बाहर के इलाके शायद ही सुलतान के शासन में आए थे। इसलिए, उन्हें अपनी जरूरतों के लिए व्यापार, उपहार और लूटपाट पर निर्भर रहना पड़ता था।

उस जमाने में विद्रोह, युद्ध और यहाँ तक कि खराब मौसम से भी आस पास के इलाकों से संपर्क टूट जाता था। इसलिए दिल्ली की छावनी से बंगाल और सिंध जैसे दूर दराज के इलाकों पर नियंत्रण करना बहुत मुश्किल था। दिल्ली के सुलतानों के सामने कई चुनौतियाँ होती थीं, जैसे अफगानिस्तान के मंगोल द्वारा आक्रमण और सूबेदार जो जरा सी कमजोरी दिखते ही विद्रोह कर देते थे। उस समय के सुलतान बड़ी मुश्किल से इन चुनौतियों से उबर पाते थे। दिल्ली सल्तनत का ठीक से विस्तार गयासुद्दीन बलबन, अलाउद्दीन खलजी और मुहम्मद तुगलक के समय हुआ। इन सुलतानों के समय आंतरिक और बाहरी सीमाओं, यानी दोनों मोर्चों पर विस्तार का काम हुआ।

आंतरिक सीमाओं पर युद्ध – ये लड़ाइयाँ उपमहाद्वीप के भीतरी इलाकों के छावनी शहरों पर कब्जा करने के उद्देश्य से लड़ी गई थीं। इस कोशिश में गंगा, यमुना दो आब के जंगलों को साफ किया गया और खानाबदोश लोगों को वहाँ से खदेड़ दिया गया। फिर उन जमीनों को किसानों को दे दिया गया। व्यापार मार्ग की सुरक्षा बढ़ाई गई और नये शहर और किले बनाकर क्षेत्रीय व्यापार को बढ़ावा दिया गया।

बाहरी सीमाओं पर युद्धअलाउद्दीन खलजी के समय दक्षिण भारत में सैनिक अभियान शुरु किये गये और मुहम्मद तुगलक के समय ये अभियान समाप्त हुए। इन अभियानों में हाथी, घोड़े और गुलाम कब्जे में ले लिए जाते थे और सोना चाँदी जैसी महंगी धातु लूट ली जाती थी। मुहम्मद तुगलक के शासन काल के अंत तक महाद्वीप के एक ब‌ड़े भाग पर दिल्ली सल्तनत का कब्जा हो चुका था।

NCERT Solution Class 7th History All Chapter Notes
Chapter – 1 हज़ार वर्षों के दौरान हुए परिवर्तनों की पड़ताल
Chapter – 2 नए राजा और उनके राज्य
Chapter – 3 दिल्ली: बारहवीं से पंद्रहवीं शताब्दी
Chapter – 4 मुगल सोलहवीं से सत्रहवीं शताब्दी
Chapter – 5 जनजातियाँ, खानाबदोश और एक जगह बसे हुए समुदाय 
Chapter – 6 ईश्वर से अनुराग
Chapter- 7 क्षेत्रीय संस्कृतियों का निर्माण
Chapter – 8 अठारहवीं शताब्दी में नए राजनीतिक गठन
NCERT Solution Class 7th History All Chapter Question Answer
Chapter – 1 हज़ार वर्षों के दौरान हुए परिवर्तनों की पड़ताल
Chapter – 2 नए राजा और उनके राज्य
Chapter – 3 दिल्ली: बारहवीं से पंद्रहवीं शताब्दी
Chapter – 4 मग़ल: सोलहवीं से सत्रहवीं शताब्‍दी
Chapter – 5 जनजातियाँ, खानाबदोश और एक जगह बसे हुए समुदाय
Chapter – 6 ईश्वर से अनुराग                 
Chapter – 7 क्षेत्रीय संस्कृतियों का निर्माण
Chapter – 8 अठारहवीं शताब्दी में नए राजनीतिक गठन
NCERT Solution Class 7th History All Chapter MCQ
Chapter – 1 हज़ार वर्षों के दौरान हुए परिवर्तनों की पड़ताल
Chapter – 2 नए राजा और उनके राज्य
Chapter – 3 दिल्ली के सुल्तान
Chapter – 4 मग़ल: सोलहवीं से सत्रहवीं शताब्‍दी
Chapter – 5 जनजातियाँ, खानाबदोश और एक जगह बसे हुए समुदाय
Chapter – 6 ईश्वर से अनुराग
Chapter – 7 क्षेत्रीय संस्कृतियों का निर्माण
Chapter – 8 अठारहवीं शताब्दी में नए राजनीतिक गठन

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