सरदार वल्लभभाई पटेल को “लौह पुरुष” और आधुनिक भारत का शिल्पकार कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता के बाद देश को एकजुट करने में अहम भूमिका निभाई। उनके प्रयासों से भारत में स्थित 562 रियासतों (रजवाड़ों) का भारतीय संघ में शांतिपूर्ण तरीके से विलय हुआ। यह प्रक्रिया अत्यंत जटिल और चुनौतीपूर्ण थी, लेकिन पटेल की दृढ़ता, कूटनीति, और नेतृत्व ने इसे सफल बनाया।
रियासतों के विलय की पृष्ठभूमि – ब्रिटिश साम्राज्य का अंत: 15 अगस्त 1947 को ब्रिटिश भारत दो स्वतंत्र राष्ट्रों – भारत और पाकिस्तान – में विभाजित हुआ। इसके साथ ही, भारत में मौजूद 562 रियासतों को ब्रिटिश नियंत्रण से मुक्त कर दिया गया।
चुनाव का अधिकार: रियासतों को तीन विकल्प दिए गए – भारत में शामिल होना, पाकिस्तान में शामिल होना, या स्वतंत्र रहना।
अगर ये रियासतें स्वतंत्र रहतीं, तो भारत राजनीतिक रूप से खंडित और कमजोर हो सकता था।
सरदार पटेल की रणनीति:
पटेल ने रियासतों के विलय के लिए तीन प्रमुख साधनों का उपयोग किया: कूटनीति, तर्क, और दृढ़ता।
1. राज्यों के पुनर्गठन विभाग का गठन:
पटेल ने वी.पी. मेनन को अपना प्रमुख सलाहकार बनाया और “राज्यों के पुनर्गठन विभाग” की स्थापना की।
वी.पी. मेनन ने रियासतों के लिए “सहायक संधि” (Instrument of Accession) तैयार की, जिसमें रियासतों को केवल तीन विषयों – विदेश नीति, रक्षा और संचार – पर भारतीय संघ के प्रति अधिकार स्वीकार करना था।
2. राजाओं को मनाना:
पटेल ने रजवाड़ों के शासकों से व्यक्तिगत रूप से मुलाकात की और उन्हें यह समझाया कि भारत में विलय उनके और उनके प्रजाजनों के हित में है।
उन्होंने यह भी वादा किया कि रियासतों के राजाओं को “प्रिवी पर्स” (आजीवन भत्ता) और उनकी व्यक्तिगत संपत्तियों की सुरक्षा दी जाएगी।
3. कूटनीति और दृढ़ता का मिश्रण:
जहां अधिकांश रियासतें शांतिपूर्ण तरीके से भारतीय संघ में शामिल हो गईं, वहीं कुछ ने विरोध किया। पटेल ने इनके खिलाफ सख्त रुख अपनाया।
चुनौतियां और समाधान:
1. हैदराबाद (ऑपरेशन पोलो, 1948):
हैदराबाद के निजाम ने स्वतंत्र रहने का फैसला किया और भारत में विलय से इनकार कर दिया।
वहां कानून-व्यवस्था बिगड़ने और रजाकारों (निजाम की सेना) द्वारा हिंसा फैलाने पर भारतीय सेना ने “ऑपरेशन पोलो” चलाया और हैदराबाद को भारत में मिला लिया।
2. जूनागढ़:
जूनागढ़ के नवाब ने पाकिस्तान में शामिल होने का फैसला किया, जबकि राज्य की अधिकांश जनता हिंदू थी।
पटेल ने जनमत संग्रह कराया, जिसमें जनता ने भारत में शामिल होने का फैसला किया।
3. कश्मीर:
जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरि सिंह स्वतंत्र रहना चाहते थे, लेकिन पाकिस्तान ने आक्रमण कर दिया।
इस संकट में महाराजा ने भारत से मदद मांगी और “विलय पत्र” (Instrument of Accession) पर हस्ताक्षर कर कश्मीर को भारत का हिस्सा बनाया।
4. त्रावणकोर, भोपाल, और जोधपुर:
इन रियासतों ने शुरू में स्वतंत्र रहने की इच्छा जताई, लेकिन पटेल की कूटनीति और बातचीत के बाद ये भारतीय संघ में शामिल हो गईं।
परिणाम:
पटेल के प्रयासों से लगभग सभी रियासतों का भारत में शांतिपूर्ण और व्यवस्थित विलय हो गया।
उन्होंने भारत के राजनीतिक और भौगोलिक एकीकरण को सुनिश्चित किया, जिससे भारत एक मजबूत और एकीकृत राष्ट्र के रूप में उभर सका।
निष्कर्ष:
सरदार वल्लभभाई पटेल के कूटनीतिक कौशल, दृढ़ता, और नेतृत्व ने स्वतंत्र भारत को एकजुट करने में ऐतिहासिक भूमिका निभाई। उनकी दूरदृष्टि और मेहनत ने भारत को सैकड़ों छोटे-छोटे राज्यों में बंटने से बचाया और एक अखंड भारत का निर्माण किया। इसीलिए उन्हें “भारत का बिस्मार्क” और “राष्ट्रीय एकता के निर्माता” कहा जाता है।