शॉक थेरेपी (Shock Therapy) एक आर्थिक नीति है, जिसे विशेष रूप से पूर्वी यूरोप और अन्य विकासशील देशों में साम्यवाद से पूंजीवाद में संक्रमण के दौरान लागू किया गया। इसका मुख्य उद्देश्य था आर्थिक सुधार और नवीन बाजार अर्थव्यवस्था की स्थापना, लेकिन इस नीति को लागू करने में कई समस्याएँ आईं, जिससे यह सिद्ध हुआ कि यह अपने उद्देश्यों में पूरी तरह से सफल नहीं हो सकी। शॉक थेरेपी के असफल होने के पक्ष में कुछ मुख्य तर्क निम्नलिखित हैं:
1. अर्थव्यवस्था में तेज़ गिरावट
- शॉक थेरेपी के तहत, सरकार ने अचानक मूल्य नियंत्रण हटाने, उदारीकरण, और निजीकरण जैसे कठोर कदम उठाए। इन नीतियों के परिणामस्वरूप, पहले कुछ वर्षों में मूल्य वृद्धि (hyperinflation), बेरोज़गारी और आर्थिक अस्थिरता की समस्या गंभीर हो गई।
- योजना आधारित अर्थव्यवस्था से बाजार आधारित अर्थव्यवस्था में संक्रमण के दौरान, कई उद्योगों ने समायोजन में असमर्थता दिखाई, जिससे उत्पादन में भारी गिरावट आई।
- उदाहरण के लिए, रूस और पोलैंड जैसे देशों में शॉक थेरेपी ने पहले कुछ वर्षों में बेरोज़गारी दर को बहुत बढ़ा दिया और कई क्षेत्रों में गरीबी और असमानता में वृद्धि हुई।
2. आर्थिक असमानता में वृद्धि
- शॉक थेरेपी ने निजीकरण को बढ़ावा दिया, लेकिन इस प्रक्रिया में धन की अत्यधिक केंद्रीयकरण हुआ। केवल कुछ मुट्ठी भर लोग सम्पत्ति और संसाधनों को नियंत्रित करने में सक्षम थे, जबकि अधिकांश जनता आर्थिक रूप से पिछड़ गई।
- सम्पत्ति का समान वितरण और सामाजिक सुरक्षा की कमी के कारण, यह नीति समाज में गहरी आर्थिक असमानता को जन्म देती है। शॉक थेरेपी ने गरीबों को और गरीब और अमीरों को और अमीर बना दिया।
3. सामाजिक संकट और राजनीतिक अस्थिरता
- अचानक सुधारों और नीतियों के लागू होने के कारण, कई देशों में सामाजिक और राजनीतिक अस्थिरता का सामना करना पड़ा। नागरिकों ने सरकार की नीतियों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किए, जिससे राजनीतिक असंतोष और सामाजिक संघर्ष बढ़े।
- उदाहरण स्वरूप, यूक्रेन, कज़ाखस्तान, और अन्य देशों में शॉक थेरेपी लागू करने से पहले और बाद में सरकार विरोधी प्रदर्शन और असंतोष देखने को मिला, क्योंकि समाज के कई वर्ग इससे प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हो रहे थे।
4. संस्थागत क्षति और संक्रमण की जटिलता
- शॉक थेरेपी को लागू करते समय, एक अच्छी तरह से विकसित संस्थागत ढांचा की कमी थी, जो एक स्थिर और प्रभावी बाजार अर्थव्यवस्था को सुचारू रूप से संचालित कर सके। ये नीतियाँ पहले से स्थापित राजनीतिक और प्रशासनिक संरचनाओं को नष्ट कर सकती हैं, जो आर्थिक संक्रमण को और भी कठिन बना देती हैं।
- चूंकि अधिकांश पूर्वी ब्लॉक देशों में स्थिर बुनियादी ढाँचा और संगठनों की कमी थी, शॉक थेरेपी ने इन देशों के प्रशासनिक तंत्र को पूरी तरह से अव्यवस्थित कर दिया, जिससे व्यवस्थागत विफलता और आर्थिक रिकवरी में देर हुई।
5. दीर्घकालिक विकास की असमर्थता
- शॉक थेरेपी में तात्कालिक सुधारों को प्राथमिकता दी जाती है, लेकिन दीर्घकालिक विकास की योजना और स्थिरता की अनदेखी की जाती है। यह नीति अस्थिर और असमान विकास को जन्म देती है, जिससे समाज में दीर्घकालिक समृद्धि की संभावनाएँ सीमित हो जाती हैं।
- विकास के लिए दीर्घकालिक रणनीति की कमी के कारण, शॉक थेरेपी ने देशों को केवल तात्कालिक सुधारों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रेरित किया, और इसके परिणामस्वरूप नौकरियों का नुकसान, संरचनात्मक परिवर्तन की असफलता और बेरोज़गारी जैसी समस्याएँ उभरीं।
6. बाजार में आपूर्ति और मांग की असंतुलन
- शॉक थेरेपी के परिणामस्वरूप, कई क्षेत्रों में मूल्य वृद्धि और मांग और आपूर्ति के बीच असंतुलन पैदा हुआ। उद्योगों की क्षमता के अनुसार उत्पादन में गिरावट आई और उपभोक्ताओं के लिए वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें असहनीय हो गईं।
- बाजार की अस्थिरता ने उपभोक्ताओं की खरीद क्षमता को कम कर दिया, जिससे गरीबी और खाद्य संकट बढ़े।
7. स्थानीय उद्योगों की नष्ट होना
- शॉक थेरेपी में निजीकरण की प्रक्रिया में राज्य-स्वामित्व वाले उद्योगों को निजी हाथों में सौंपने के प्रयास किए गए थे। हालांकि, ये उद्योग आमतौर पर अनुपयुक्त और अपर्याप्त रूप से विकसित थे, और अधिकांश छोटे और मध्य आकार के उद्योगों को नष्ट कर दिया गया या आर्थिक रूप से कमजोर बना दिया गया।
- कई ऐसे उद्योग जो स्थानीय समुदायों के लिए रोजगार का मुख्य स्रोत थे, वे निजीकरण के कारण बंद हो गए, जिससे बेरोज़गारी और सामाजिक असंतोष बढ़ गया।
निष्कर्ष:
शॉक थेरेपी अपने उद्देश्यों में पूरी तरह से सफल नहीं हो पाई, क्योंकि यह आर्थिक संकट, राजनीतिक अस्थिरता, और सामाजिक असमानता को बढ़ावा देने के बजाय, एक स्थिर और समृद्ध समाज का निर्माण करने में नाकाम रही। जबकि यह तात्कालिक सुधारों के लिए कारगर हो सकती है, लेकिन दीर्घकालिक और संतुलित विकास के लिए इसके प्रभावी कार्यान्वयन की आवश्यकता थी, जिसे इस नीति ने पूरा नहीं किया।