प्रिवी पर्स क्या है?

प्रिवी पर्स भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अवधारणा है, जो रियासतों के शासकों और भारत सरकार के बीच की व्यवस्था से जुड़ी है। इसका मुख्य उद्देश्य भारत की स्वतंत्रता के बाद रियासतों को भारतीय संघ में शामिल करने और उन्हें आर्थिक सुरक्षा प्रदान करना था।

प्रिवी पर्स का अर्थ:

“प्रिवी पर्स” एक प्रकार की वित्तीय सहायता थी, जो भारत सरकार द्वारा रियासतों के शासकों (राजाओं, नवाबों, महाराजाओं) को उनके विशेषाधिकारों, अधिकारों और शाही पदों को त्यागने के बदले में दी जाती थी। इसे एक प्रकार का मासिक या वार्षिक भत्ता कहा जा सकता है।

प्रिवी पर्स की पृष्ठभूमि:

  1. भारत की आजादी और रियासतें:
    • 1947 में भारत स्वतंत्र हुआ तो लगभग 565 रियासतें थीं। ये रियासतें सीधे ब्रिटिश सरकार के अधीन थीं, लेकिन ब्रिटिश भारत का हिस्सा नहीं मानी जाती थीं।
    • सरदार वल्लभभाई पटेल और वी.पी. मेनन के प्रयासों से इन रियासतों को भारतीय संघ में विलय के लिए तैयार किया गया।
  2. संघ में विलय की शर्तें:
    • रियासतों के शासकों से यह वादा किया गया कि उनके शाही अधिकार और उपाधियां सम्मानित रहेंगी।
    • इसके बदले उन्हें प्रिवी पर्स के रूप में एक निश्चित राशि का भुगतान किया जाएगा।
    • यह राशि रियासत की आय, महत्व और क्षेत्रफल के आधार पर तय होती थी।

प्रिवी पर्स का प्रावधान:

  1. संविधान के अनुच्छेद 291 में प्रिवी पर्स का उल्लेख किया गया था, जिसके तहत रियासतों के शासकों को यह भुगतान किया जाता था।
  2. इस व्यवस्था का उद्देश्य उन्हें भारत के संविधान के अधीन एक सम्मानजनक जीवन देना था।

प्रिवी पर्स का अंत:

  1. 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने प्रिवी पर्स को समाप्त करने का निर्णय लिया।
  2. इसके लिए भारतीय संविधान में संशोधन (26वां संशोधन) किया गया, और अनुच्छेद 291 और 362 को हटा दिया गया।
  3. तर्क यह दिया गया कि प्रिवी पर्स भारतीय समाज में असमानता और विशेषाधिकार की अवधारणा को बढ़ावा देता था।

प्रिवी पर्स समाप्त करने के कारण:

  1. आर्थिक बोझ: सरकार को हर साल बड़ी रकम का भुगतान करना पड़ता था।
  2. समानता का सिद्धांत: लोकतांत्रिक समाज में विशेषाधिकारों को समाप्त करना जरूरी था।
  3. रियासतों का प्रभाव कम करना: शासकों का राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव धीरे-धीरे खत्म करना।

प्रिवी पर्स का प्रभाव:

  • रियासतों के शासकों को वित्तीय और सामाजिक स्तर पर झटका लगा।
  • हालांकि, इससे भारत में समानता और लोकतंत्र की भावना मजबूत हुई।
  • आज यह इतिहास का हिस्सा है और स्वतंत्र भारत के लोकतांत्रिक बदलाव का प्रतीक माना जाता है।

यह प्रिवी पर्स भारत की लोकतांत्रिक यात्रा का एक महत्वपूर्ण अध्याय है।