शीत युद्ध (Cold War) द्वितीय विश्व युद्ध के बाद (1947-1991) अमेरिका और सोवियत संघ के बीच वैचारिक, राजनीतिक, और आर्थिक प्रतिस्पर्धा का काल था। यह एक “शीत” युद्ध था क्योंकि इसमें कोई प्रत्यक्ष सैन्य संघर्ष नहीं हुआ; इसके बजाय, दोनों महाशक्तियों ने अपने-अपने गुटों और गठबंधनों (NATO और Warsaw Pact) के माध्यम से एक-दूसरे को कमजोर करने का प्रयास किया।
शीत युद्ध के प्रमुख कारण
वैचारिक टकराव: अमेरिका पूंजीवादी और लोकतांत्रिक सिद्धांतों का समर्थक था, जबकि सोवियत संघ साम्यवादी (Communist) और अधिनायकवादी प्रणाली में विश्वास करता था। इन दोनों विचारधाराओं के बीच टकराव शीत युद्ध का प्रमुख कारण था।
शक्ति संघर्ष: द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, दोनों देशों ने अपनी शक्ति और प्रभाव बढ़ाने के लिए प्रतिस्पर्धा की। दोनों ही महाशक्तियाँ दुनिया के विभिन्न हिस्सों में अपनी उपस्थिति और प्रभुत्व स्थापित करना चाहती थीं।
नाभिकीय हथियारों की दौड़: अमेरिका और सोवियत संघ के बीच परमाणु हथियारों की प्रतिस्पर्धा ने दोनों देशों के बीच तनाव को और बढ़ा दिया। दोनों देश एक-दूसरे से अधिक शक्तिशाली और आधुनिक हथियार विकसित करना चाहते थे।
प्रॉक्सी युद्ध (Proxy Wars): प्रत्यक्ष सैन्य संघर्ष से बचने के लिए, दोनों देशों ने दूसरे देशों में संघर्षों (जैसे कोरिया युद्ध, वियतनाम युद्ध, अफगान युद्ध) के माध्यम से एक-दूसरे को चुनौती दी। इन युद्धों में, वे परोक्ष रूप से एक-दूसरे के खिलाफ लड़े।
जासूसी और प्रचार: दोनों देशों ने एक-दूसरे के खिलाफ जासूसी गतिविधियों को बढ़ावा दिया और प्रचार के माध्यम से अपने विचारधाराओं को फैलाने का प्रयास किया। यह भी तनाव का एक कारण बना।
यूरोप का विभाजन: युद्ध के बाद, यूरोप को दो गुटों में बांट दिया गया—पश्चिमी यूरोप (अमेरिका समर्थित) और पूर्वी यूरोप (सोवियत संघ समर्थित)। बर्लिन की दीवार और जर्मनी का विभाजन इस विभाजन के प्रतीक बन गए।
शीत युद्ध का अंत 1991 में सोवियत संघ के पतन के साथ हुआ, जिसके बाद अमेरिका एकमात्र महाशक्ति के रूप में उभरा।