परमाणु अप्रसार संधि (NPT) 1968 में लागू हुई एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है, जिसका मुख्य उद्देश्य परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकना, परमाणु ऊर्जा का शांतिपूर्ण उपयोग को बढ़ावा देना और परमाणु निरस्त्रीकरण को प्रोत्साहित करना है। इस संधि को तीन स्तंभों पर आधारित माना जाता है:
- परमाणु हथियारों का अप्रसार
- परमाणु ऊर्जा का शांतिपूर्ण उपयोग
- निरस्त्रीकरण
भारत की भूमिका और रुख:
भारत NPT पर हस्ताक्षरकर्ता नहीं है। भारत ने इस संधि को यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि यह “पक्षपातपूर्ण” है और परमाणु हथियार रखने वाले और न रखने वाले देशों के बीच भेदभाव करती है। भारत ने अपनी स्थिति को निम्नलिखित आधार पर स्पष्ट किया है:
- पक्षपातपूर्ण प्रकृति:
NPT परमाणु हथियारों वाले देशों को (जो 1967 से पहले परमाणु परीक्षण कर चुके थे) विशेषाधिकार देता है और अन्य देशों को परमाणु हथियार विकसित करने से रोकता है। भारत इसे असमान और अनुचित मानता है। - संपूर्ण निरस्त्रीकरण की मांग:
भारत का मानना है कि यदि परमाणु अप्रसार पर जोर दिया जा रहा है, तो सभी देशों को बिना भेदभाव के अपने परमाणु हथियार नष्ट करने चाहिए। केवल कुछ देशों को परमाणु हथियार रखने की अनुमति देना न्यायसंगत नहीं है। - राष्ट्रीय सुरक्षा:
भारत ने 1974 और 1998 में परमाणु परीक्षण किए और अपनी सुरक्षा के लिए न्यूनतम परमाणु प्रतिरोधक क्षमता बनाए रखने की आवश्यकता जताई। इसका कारण पड़ोसी देशों, विशेषकर चीन और पाकिस्तान की परमाणु क्षमताएं हैं। - स्वतंत्र नीति:
भारत ने परमाणु ऊर्जा और हथियारों के संबंध में अपनी स्वतंत्र नीति बनाई है। भारत परमाणु अप्रसार और शांति के लिए प्रतिबद्ध है, लेकिन वह किसी असमान समझौते को स्वीकार नहीं करता।
वर्तमान स्थिति:
हालांकि भारत NPT का सदस्य नहीं है, उसने परमाणु अप्रसार को प्रोत्साहित करने के लिए कई कदम उठाए हैं, जैसे:
- परमाणु परीक्षणों पर स्वेच्छिक रोक
- परमाणु सामग्री के अवैध व्यापार को रोकने के लिए मजबूत नियंत्रण
- अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के साथ सहयोग
सारांश:
भारत NPT का हिस्सा नहीं है क्योंकि वह इसे भेदभावपूर्ण मानता है। भारत का जोर यह है कि परमाणु अप्रसार और निरस्त्रीकरण सभी देशों के लिए समान रूप से लागू होना चाहिए। भारत अपनी स्वतंत्र नीति के तहत परमाणु ऊर्जा और हथियारों के उपयोग को नियंत्रित करता है और शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है।