भारतीय संविधान की प्रस्तावना (Preamble) संविधान का परिचय और आत्मा मानी जाती है। यह संविधान के उद्देश्यों, मूल सिद्धांतों और आदर्शों को संक्षेप में प्रस्तुत करती है। प्रस्तावना का महत्व निम्नलिखित है:
1. संविधान के दर्शन का परिचय
- प्रस्तावना में संविधान के पीछे छिपे दर्शन और मूल आदर्शों को स्पष्ट रूप से व्यक्त किया गया है। यह भारतीय राज्य के स्वरूप और उद्देश्यों को परिभाषित करती है।
2. संवैधानिक उद्देश्य
- यह संप्रभुता (Sovereignty), समाजवाद (Socialism), धर्मनिरपेक्षता (Secularism), लोकतंत्र (Democracy) और गणराज्य (Republic) जैसे प्रमुख लक्ष्यों को स्थापित करती है।
- यह न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुता के आदर्शों को सुनिश्चित करने की बात करती है।
3. कानूनी व्याख्या में मार्गदर्शक
- सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालय विभिन्न संवैधानिक प्रावधानों की व्याख्या करते समय प्रस्तावना को मार्गदर्शक (Guide) के रूप में उपयोग करते हैं।
- केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973) के ऐतिहासिक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रस्तावना संविधान के मूल ढांचे (Basic Structure) का हिस्सा है।
4. राष्ट्र के चरित्र का प्रतिबिंब
- प्रस्तावना यह दिखाती है कि भारत एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक गणराज्य है।
- यह बताती है कि भारत में नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, धर्म और संस्कृति की स्वतंत्रता और समानता मिलेगी।
5. राष्ट्रीय एकता और अखंडता का प्रतीक
- यह भारत में बंधुता (Fraternity) को बढ़ावा देने और सभी नागरिकों के बीच एकता और अखंडता सुनिश्चित करने की प्रतिबद्धता व्यक्त करती है।
6. जनता की संप्रभुता
- प्रस्तावना यह स्पष्ट करती है कि संविधान की शक्ति का स्रोत भारत की जनता है। यह “हम भारत के लोग…” वाक्य से शुरू होती है, जो लोकतांत्रिक सिद्धांतों को रेखांकित करता है।
7. प्रेरणा का स्रोत
- यह देश के नागरिकों और सरकारी तंत्र को संविधान के मूल्यों और आदर्शों के प्रति जागरूक करता है और उन्हें प्रेरणा प्रदान करता है।
सारांश
संविधान की प्रस्तावना एक दिशासूचक प्रकाशस्तंभ की तरह है, जो यह दर्शाती है कि भारत कैसा होना चाहिए और संविधान का उद्देश्य क्या है। यह न्यायालयों, नागरिकों और सरकार के लिए समान रूप से मार्गदर्शक का काम करती है।