स्थान-प्रबंधन की परिभाषा दें। घर के भीतर स्थान-नियोजन के सिद्धांतों पर चर्चा करें।
उत्तर –
अपने ज्ञान तथा कौशलों का प्रयोग करते हुए उपलब्ध स्थान का सर्वोत्तम प्रयोग करना ही स्थान प्रबंधन कहलाता है।
स्थान नियोजन के सिद्धांत
(a) स्वरूप – किसी घर के ‘स्वरूप’ का तात्पर्य घर के भवन की बाहरी दीवारों में दरवाज़ों तथा खिड़कियों की व्यवस्था से है। घर का स्वरूप ऐसा होना चाहिए जिसके की उसमें रहने वाले लोगों को पर्याप्त धूप/प्राकृतिक रोशनी, हवा तथा बाहरी दृश्य का आनंद प्राप्त हो सकें।
(b) प्रभाव – घर के संदर्भ में ‘प्रभाव’ का तात्पर्य उस मानसिक छाप/प्रभाव से हैं जो घर को बाहर से देखने वाले व्यक्ति पर पड़ता है। इसमें प्राकृतिक सौंदर्य का सही इस्तेमाल, दरवाज़ों तथा खिड़कियों की सही स्थिति तथा किसी भी प्रकार के अप्रिय दृश्यों को ढँक कर मनोहर आकृति प्राप्त करने जैसी विशेषताएँ सम्मलित होती हैं।
(c) एकांतता – ‘एकांतता’ स्थान नियोजन का एक बहुत ही महत्वपूर्ण सिद्धांत हैं, जिसका घर के लिए डिजाइन तैयार करते समय विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। घर के एक कमरे की दूसरे कमरे से एकान्तता तथा घर की आस-पड़ोस एवं सड़क से एकान्तता दोनों ही आवश्यक है।
(d) विभिन्न कमरों की स्थिति – घर में कमरों की स्थिति ऐसी होनी चाहिए ताकि एक कमरें का दूसरे के साथ भीतरी संबंध बना रहे, जैसे कि- किसी घर/भवन में भोजन क्षेत्र, रसोईघर से सटकर होना चाहिए जबकि शौचालय रसोईघर से दूर होना चाहिए।
(e) खुलापन – घर/भवन के संदर्भ में खुलेपन का तात्पर्य, विभिन्न कमरों द्वारा दिये जाने वाले खुलेपन के आभास से है। कमरों में उपलब्ध हर स्थान का इष्टतम उपयोग करना चाहिए। इसके अतिरिक्त उपयुक्त फर्नीचर, प्राकृतिक, रोशनी, हवा का परिसंचरण तथा सफाई की सुविधाएँ भी स्थान प्रबंधन के मुख्य सिद्धांतों में महत्वपूर्ण हैं।
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