सांप्रदायिक राजनीति को बढ़ावा देने एवं भारत विभाजन में इसकी परिणति से संबंधित कारकों का विश्लेषण कीजिए।

प्रश्न 6- सांप्रदायिक राजनीति को बढ़ावा देने एवं भारत विभाजन में इसकी परिणति से संबंधित कारकों का विश्लेषण कीजिए।

अथवा

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान सांप्रदायिकता के उदय के लिए जिम्मेदार कारणों का परीक्षण कीजिए

उत्तर- परिचय

साम्प्रदायिकता की समस्या हमारे राष्ट्रीय आन्दोलन के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा बन कर खड़ी हो गई। इस कारण जनता को आजादी प्राप्त करने में अधिक पसीना बहाना पड़ा तथा आजादी का रथ मंद गति से आगे बढ़ा। ऐसा कई बार हुआ जब निकट आती हुई आजादी, साम्प्रदायिक समस्या के कारण दूर खिसक गई इस समस्या के कारण देश का विभाजन हुआ तब कहीं जाकर भारत को आजादी मिली किंतु साम्प्रदायिकता की समस्या का अंत देश की आजादी के बाद भी नहीं हो सका।

सांप्रदायिक राजनीति – यह विचारधारा इस सोच पर आधारित है कि धर्म ही सामाजिक समुदाय का निर्माण करता है। इस सोच के अनुसार विशेष धर्म में आस्था रखने वाले लोग एक समुदाय के हैं जिनके मौलिक हित समान होते हैं तथा समुदाय के लोगों में परस्पर असहमति, सामुदायिक जीवन में अप्रासंगिक और तुच्छ होते हैं।

साम्प्रदायिकता का अर्थ है – अपने समुदाय के प्रति एक मजबूत लगाव, यह किसी का अपना धर्म, क्षेत्र या भाषा हो सकता है। यह समुदायों के बीच हितों के अंतर को बढ़ावा देता है जो समुदायों के बीच शत्रुता के प्रति असंतोष पैदा कर सकता है।

सांप्रदायिक राजनीति को बढ़ावा एवं भारत विभाजन के कारण-

1. मुस्लिम सम्प्रदाय में मौजूद पृथक्करण की प्रवृत्ति मुस्लिम समाज की प्रवृत्ति में मौजूद पृथक्करण की भावना उन्हें राष्ट्रवाद की धारणा को अपनाने नहीं देती है, नतीजतन वे राजनीति की मुख्य धारा से अपने आपको जोड़ नहीं पाते हैं। भारतीय संविधान की ख़ास विशेषताएं यथा धर्मनिरपेक्षता, सामाजिक न्याय, आर्थिक न्याय व समाजवाद आदि वैचारिकी का इस समाज पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा है, क्योंकि मुस्लिम नेताओं द्वारा अपने समाज की जनता के बीच सरकारी इरादों के प्रति आशंका जतायी जाती है और मुस्लिम समाज के हितों की सुरक्षा के लिए उनकी पृथक्तावादी प्रवृत्ति को बढ़ाने का कार्य किया जाता है।

2. शैक्षणिक एवं आर्थिक पिछड़ापन अंग्रेजी हुकूमत के समय भी अधिकांश मुसलमानों की आर्थिक स्थिति कमजोर थी इसलिए इस समाज में आमरूप से शिक्षा का प्रसार नहीं हो पाया। कुछ धन मुस्लिम परिवारों को छोड़ आम मुसलमान शैक्षिणक दृष्टि से पिछड़े थे इसलिए भी उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत नहीं हो पायी। इससे उनके अन्दर असंतोष की भावना बढ़ी और साम्प्रदायिकता के तत्त्वों को मजबूती मिली जिसका प्रकटीकरण यदा-कदा हिंसा के रूप में होता रहा है

3. पाकिस्तानी संरक्षण एवं प्रचार भारत के मुसलमानों में साम्प्रदायिकता की भावना को जिन्दा रखने में पाकिस्तानी संगठनों की भूमिका काफी महत्त्वपूर्ण रही है भारत में हिन्दू-मुसलमान के बीच तनाव की छोटी घटनाओं को भी पाकिस्तानी टेलीविजन, अखबारों एवं रेडियों में काफी बढ़ा-चढ़ा कर प्रचार किया जाता है। ऐसा करके पाकिस्तान अपने को भारतीय मुसलमानों का पैरोकार, हिमायती और हितरक्षक साबित करना चाहता है और भारत के धर्मनिरपेक्षतावादी स्वरूप को चोट पहुंचाना चाहता है।

4. हिन्दू संगठनों की संकीर्ण मानसिकता भारत में हिन्दू समुदाय कुछ कट्टर संगठन जैसे हिन्दू महासभा, विश्व हिन्दू परिषद् आदि ऐसे संगठन है जो संकीर्ण धर्मान्धता के पोषक है जो समय-समय पर अपनी अभिव्यक्तियों तथा कार्यशैली के माध्यम से हिन्दू समाज की भावनाओं को उत्तेजित करने में महती भूमिका निभाते रहते हैं।

सांप्रदायिकता का विकास

1. हालांकि 1857 के विद्रोह के समय भी हिंदू-मुस्लिम एकजुट होकर सामने आए परंतु इसके बाद स्थितियों में परिवर्तन आया तथा अंग्रेजों द्वारा ‘फूट डालो राज करो की नीति के माध्यम से भारत में अपने हितों की पूर्ति की गई। इसके लिये उनके द्वारा समय-समय पर सांप्रदायिक कार्ड का प्रयोग किया गया।

2. वर्ष 1905 में बंगाल विभाजन का कारण बेशक प्रशासनिक असुविधा को बताया गया परंतु इसे सांप्रदायिकता को आधार बनाकर ही पूरा किया गया।

3. वर्ष 1906 में मुस्लिम लीग की स्थापना हिंदू-मुस्लिम सांप्रदायिकता को आधार बनाकर की गई।

4. वर्ष 1909 का मार्ले-मिंटो सुधार/ भारत शासन अधिनियम, जिसमें मुस्लिम वर्ग के लिये पृथक निर्वाचन मंडल की बात की गई हिंदू-मुस्लिम एकता को कमज़ोर करने तथा दोनों वर्गों के बीच टकराव की स्थिति उत्पन्न करने के लिये ही लाया गया था।

5. वर्ष 1932 में कम्यूनल अवॉर्ड की घोषणा विभिन्न समुदायों को संतुष्ट करने के लिये की गई। इससे सांप्रदायिक राजनीति को और अधिक बढ़ावा मिला।

6. वर्ष 1940 के लाहौर अधिवेशन में पृथक राज्य के रूप में एक मुस्लिम बहुल क्षेत्र पाकिस्तान की मांग करना सांप्रदायिकता की भावना से ही प्रेरित थी।

7. वर्ष 1947 में भारत का विभाजन हुआ। हालाँकि यह विभाजन स्वतंत्रता के बाद हुआ परंतु इसका आधार तैयार करने में जहाँ सामाजिक, राजनीतिक कारण मुख्य रूप से उत्तरदायी थे तो वहीं सांप्रदायिक कारण भी समानांतर विद्यमान थे।

8. सांप्रदायिकता के आधार पर राजनीति का यह क्रम यही पर नहीं रुका बल्कि आजादी के बाद भी आज तक भारतीय समाज एवं राजनीति में उपस्थित है।

सांप्रदायिकता के कारण

वर्तमान परिदृश्य में सांप्रदायिकता की उत्पत्ति के लिये किसी एक कारण को पूर्णतः जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता बल्कि यह विभिन्न कारणों का एक मिला-जुला रूप बन गया है। सांप्रदायिकता के लिये जिम्मेदार कुछ महत्त्वपूर्ण कारण इस प्रकार है-

1. राजनीतिक कारण

• वर्तमान समय में विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा अपने राजनीतिक लाभों की पूर्ति के लिये सांप्रदायिकता का सहारा लिया जाता है।

• एक प्रक्रिया के रूप में राजनीति का सांप्रदायिकरण भारत में सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने के साथ- साथ देश में सांप्रदायिक हिंसा की तीव्रता को बढ़ाता है।

2. आर्थिक कारण

• विकास का असमान स्तर वर्ग विभाजन गरीबी और बेरोज़गारी आदि कारक सामान्य लोगों में असुरक्षा का भाव उत्पन्न करते हैं।

• असुरक्षा की भावना के चलते लोगों का सरकार पर विश्वास कम हो जाता है परिणामस्वरूप अपनी जरूरतों / हितों को पूरा करने के लिये लोगों द्वारा विभिन्न राजनीतिक दलों, जिनका गठन सांप्रदायिक आधार पर हुआ है, का सहारा लिया जाता है।

3. प्रशासनिक कारण

• पुलिस एवं अन्य प्रशासनिक इकाइयों के बीच समन्वय की कमी।

• कभी-कभी पुलिस कर्मियों को उचित प्रशिक्षण प्राप्त न होना, पुलिस ज्यादती इत्यादि भी सांप्रदायिक हिंसा को बढ़ावा देने वाले कारकों में शामिल होते हैं।

4. मनोवैज्ञानिक कारण

• दो समुदायों के बीच विश्वास और आपसी समझ की कमी या एक समुदाय द्वारा दूसरे समुदाय के सदस्यों का उत्पीड़न, आदि के कारण उनमें भय, शंका और खतरे का भाव उत्पन्न होता है।

• इस मनोवैज्ञानिक भय के कारण लोगों के बीच विवाद, एक-दूसरे के प्रति नफरत, क्रोध और भय का माहौल पैदा होता है।

5. मीडिया संबंधी कारण

• मिडिया द्वारा अवसर सनसनीखेज आरोप लगाना तथा अफवाहों को समाचार के रूप में प्रसारित करना।

• इसका परिणाम कभी-कभी प्रतिद्वंद्वी धार्मिक समूहों के बीच तनाव और दंगों के रूप में देखने को मिलता है।

• वहीं सोशल मीडिया भी देश के किसी भी हिस्से में सांप्रदायिक तनाव या दंगों से संबंधित संदेश को फैलाने का एक सशक्त माध्यम बन गया है।

सांप्रदायिक का परिणाम

• देश में बार-बार होने वाली सांप्रदायिक हिंसा धर्मनिरपेक्षता और धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा देने वाले संवैधानिक मूल्यों पर प्रश्नचिह्न लगता है।

• सांप्रदायिक हिंसा में पीड़ित परिवारों को इसका सबसे अधिक खामियाजा भुगतना पड़ता है, उन्हें अपना घर प्रियजनों यहाँ तक कि जीविका के साधनों से भी हाथ धोना पड़ता है।

•  सांप्रदायिकता समाज को सांप्रदायिक आधार पर विभाजित करती है।

• सांप्रदायिक हिंसा की स्थिति में अल्पसंख्यक वर्ग को समाज में संदेह की दृष्टि से देखा जाता है और इससे देश की एकता एवं अखंडता के लिये खतरा उत्पन्न होता है।

•  सांप्रदायिकता देश की आंतरिक सुरक्षा के लिये भी चुनौती प्रस्तुत करती है क्योंकि सांप्रदायिक हिंसा को भड़काने वाले एवं उससे पीड़ित होने वाले दोनों ही पक्षों में देश के ही नागरिक शामिल होते हैं।

निष्कर्ष

वर्तमान समय में सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएँ भारत के साथ-साथ विश्व स्तर पर भी देखी जा रही हैं। धर्म, राजनीति, क्षेत्रवाद, नस्लीयता या फिर किसी भी आधार पर होने वाली सांप्रदायिक हिंसा को रोकने के लिये जरूरी है कि हम सब मिलकर सामूहिक प्रयास करें और अपने कर्त्तव्यों का निर्वहन ईमानदारी एवं सच्ची निष्ठा के साथ करें यदि हम ऐसा करने में सफल हो पाते हैं, तो निश्चित रूप से न केवल देश में बल्कि विश्व स्तर पर सद्भावना की स्थिति कायम होगी क्योंकि सांप्रदायिकता का मुकाबला एकता एवं सद्भाव से ही किया जा सकता है।

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