पौष्टिक श्रेष्ठता को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारकों के बारे में विस्तार में लिखिए।
उत्तर –
पौष्टिक श्रेष्ठता को प्रभावित करने वाले कारक –
1. खाद्य एवं पोषण सुरक्षा (Food and Nutrient Security) – प्रत्येक देश की सरकार का यह मूल कर्त्तव्य है कि वह अपने प्रत्येक नागरिक को खाद्य सुरक्षा प्रदान करें, ताकि प्रत्येक नागरिक एक स्वस्थ जीवन व्यतीत कर सकें। खाद्य एवं पोषण सुरक्षा का अर्थ है- देश के सभी नागरिकों, नागरिकों को उनकी शारीरिक आवश्यकता के अनुरूप पोषणयुक्त भोजन उपलब्ध कराना, फिर चाहे वह किसी भी आयु वर्ग, जाति, धर्म, समुदाय या आर्थिक स्तर के हों।
2. सबसे लिए उत्तम स्वास्थ्य (Good Health for All) – अच्छे स्वास्थ्य का तात्पर्य, रोगों से सुरक्षा तथा रोग की स्थिति में अच्छे उपचार से है। किसी भी संक्रामक रोग की स्थिति में विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है, क्योंकि संक्रमण के कारण शरीर में पोषण स्तर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जिसके कारण व्यक्ति के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। अतः यह जरूरी है कि हर नागरिक को उचित स्वास्थ्य सुरक्षा प्रदान की जाए क्योंकि, उत्तम स्वास्थ्य हर नागरिक का मूल अधिकार है। अतिसार, श्वसन संक्रमण, खसरा, मलेरिया तथा टी.बी. कुछ ऐसे संक्रामक रोग है जिनके कारण भारत में हर साल कई बच्चों की मृत्यु हो जाती है।
3. कमजोर वर्ग की देखभाल (Care for Vulnerable) – इसमें कोई दो मत नहीं है कि, हर मनुष्य को स्नेह, मधुरता एवं देखभाल की आवश्यकता होती है। हालांकि जीवन की कई अवस्थाएँ ऐसी होती है जिनका यदि ठीक से ध्यान न रखा जाए तो वह वृद्धि एवं विकास के लिए बहुत गंभीर समस्याएँ उत्पन्न कर सकती हैं। उदाहरण के लिए, आपने अक्सर देखा होगा कि निम्न आय वर्ग के बच्चों में कोई-न-कोई पोषण संबंधी समस्या बनी रहती है जिसका उनके स्वास्थ्य पर सीधा प्रभाव पड़ता है। इसलिए निम्न आय के बच्चों के उचित वृद्धि एवं विकास के लिए विशेष पोषणयुक्त आहार की आवश्यकता होती है। उसी प्रकार शैशवावस्था के दौरान शिशुओं को अत्यन्त आत्मीय देखभाल की आवश्यकता होती है। समयानुसार टीकाकरण, स्तनपान एवं स्वच्छ वातावरण से उन्हें बहुत से संक्रामक रोगों जैसे कि- अतिसार, हैजा, टी.बी., पोलिया इत्यादि से बचाया जा सकता है। इसी प्रकार गर्भावस्था, धात्री अवस्था तथा वृद्धावस्था की विशेष आवश्यकताओं की पूर्ति व्यक्ति को शारीरिक एवं मानसिक रोगों से बचाव में सहायता करती है।
4. सुरक्षित वातावरण (Safe Environment) – सुरक्षित वातावरण का तात्पर्य वातावरण के उन सभी पक्षों की स्वच्छता/सुरक्षा से है जो व्यक्ति के स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं। हर व्यक्ति का उत्तम पोषण व देखभाल स्वच्छ वातावरण में ही सम्भव हो सकता है। खाद्य पदार्थों की उत्पादकता, संग्रहण, स्थानांतरण एवं वितरण में स्वच्छता, सड़कों, नालियों, सार्वजनिक स्थानों की स्वच्छता, सार्वजनिक अस्पतालों, सामुदायिक केन्द्रों, विद्यालयों की स्वच्छता सुनिश्चित होने से ही अतिसार, मलेरिया, हैजा, हैपेटाइटिस तथा टी.बी. जैसी जानलेवा बीमारियों से बचाव हो सकता है। अतः यह कहना गलत नहीं होगा कि, स्वच्छता से ही स्वस्थता सम्भव हैं।
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