NIOS Class 10th Social Science (213) Chapter – 8 भारत का राष्ट्रीय आंदोलन (National Movement of India) Question Answer in Hindi

NIOS Class 10th Social Science (213) Chapter – 8 भारत का राष्ट्रीय आंदोलन (National Movement of India)

TextbookNIOS
class10th
SubjectSocial Science
Chapter8th
Chapter Nameभारतीय लोकतन्त्र समक्ष चुनौतियाँ (Challenges before Indian democracy)
CategoryClass 10th NIOS Social Science (213)
MediumHindi
SourceLast Doubt

NIOS Class 10th Social Science (213) Chapter – 8 भारत का राष्ट्रीय आंदोलन (National Movement of India) Question Answer in Hindi जिसमे हम भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन कौन कौन से हैं?, भारत में कितने राष्ट्रीय आंदोलन हुए हैं?, राष्ट्रीय आन्दोलन कब हुआ?, राष्ट्रीय आंदोलन का क्या अर्थ है?, भारत में प्रथम आंदोलन कब हुआ?, राष्ट्रीय आंदोलन के संस्थापक कौन थे?, भारत में पहला राष्ट्रीय आंदोलन कौन सा है?, भारत में राष्ट्रीय आंदोलन का जनक किसे कहा जाता है?, भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के अध्यक्ष कौन थे?, भारतीय स्वतंत्रता के जनक कौन है?, राष्ट्रीय आंदोलन क्यों शुरू हुआ?, भारत को स्वतंत्रता किसने दी?, महात्मा गांधी ने कुल कितने आंदोलन किए? आदि के बारे में पढ़ेंगे   

NIOS Class 10th Social Science (213) Chapter – 8 भारत का राष्ट्रीय आंदोलन (National Movement of India)

Chapter – 8

भारत का राष्ट्रीय आंदोलन

प्रश्न – उत्तर 

प्रश्न 1. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा प्रारंभिक वर्षों के शुरूआत में किस प्रकार की माँग ब्रिटिश सरकार के
उत्तर – भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा प्रारंभिक वर्षों ब्रिटिश सामने रखी गई ? सरकार की गई माँगे इस प्रकार हैं-
(i) विधानसभा में प्रतिनिधित्व
(ii) सेवाओं का भारतीयकरण
(iii) सेना के खर्च में कमी
(iv) कृषकों के बोझ में कमी
(a) नागरिक अधिकारों की रक्षा
(ii) न्यायपालिका का कार्यपालिका से पृथक्करण
(vii) काश्तकार नियम में बदलाव
(viii) भूमि से आय एवं नमक कर में कमी
(ix) भारतीय उद्योग एवं हस्तशिल्प के विकास में मदद हेतु नीति, और
(x) लोगों के लिए कल्याण कार्यक्रम का निर्माण।
प्रश्न 2. लॉर्ड कर्जन बंगाल का विभाजन क्यों चाहता
उत्तर – लॉर्ड कर्जन का बंगाल विभाजन के पीछे मुख्य मिल कारण प्रशासन में सुधार की कोशिश बताया गया है। परंतु वास्तव में यह विभाजन मुसलमानों को एक अलग राज्य देने अन्न के लिए किया गया, जिससे देश में सांप्रदायिकता का बीज रंभ फैलाया जा सके।
प्रश्न 3. अफ्रीका में गाँधी जी द्वारा किए गए सत्याग्रह का क्या महत्त्व था ? गाँधी जी द्वारा भारत में किए गए जो सत्याग्रह की क्या प्रकृति थी ?
उत्तर – गाँधी जी ने अपने दक्षिण अफ्रीका प्रवास तब दौरान देखा कि वहाँ अग्रेजों द्वारा भारतीयों के साथ दुर्व्यवहार शर्त किया जा रहा है। इस घटना ने उनकी अंतरात्मा को झकझोर देवा। उसने दक्षिण अफ्रीको सरकार के जातीय विभेद के खलाफ लड़ने का निर्णय किया। सरकार से संघर्ष करने के डेशन उसने सत्याग्रह की तकनीक विकसित की। गाँधी जी दक्षिण अफ्रीका में इस संघर्ष में सफल रहे। वह 1915 में भारत लौटे। 1916 में उन्होंने सत्य के विचार एवं अहिंसा पर अभ्यास के लिए अहमदाबाद में साबरमती आश्रम की स्थापना की। गोपाल कृष्ण गोखले ने उन्हें देश-भ्रमण मुख्यतः गाँवों में लोगों और उनकी समस्याओं को समझने की सलाह दी। सत्याग्रह में उनका प्रथम प्रयोग बिहार के चंपारण में 1917 में प्रारंभ हुआ। यहाँ वे किसानों की समस्याओं को सुनने के लिए आमंत्रित किए गए थे। इस समय के आधार पर उसने चंपारण, खेड़ा और अहमदाबाद के स्थानीय हलचल का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया।
प्रश्न 4. असहयोग आंदोलन अपने उद्देश्य में सफल था। अपने तर्क के पक्ष में कोई दो कारण दें।
उत्तर – गाँधी जी के नेतृत्व में 1 अगस्त, 1920 में असहयोग आंदोलन आरंभ हुआ। इस आंदोलन के प्रमुख कार्यक्रम थे सरकारी उपाधियों और वैतनिक पदों का त्याग, सरकारी दरबारों और सरकारी उत्सवों का बहिष्कार, विदेशी माल का बहिष्कार, राष्ट्रीय विश्व विद्यालयों को स्थापना। गाँधी जी ने इस आंदोलन में अहिंसा के सिद्धांत को विशेष महत्त्व दिया। उन्होंने समस्त देश का भ्रमण किया और आंदोलन में भाग लेने और उसे सफल बनाने के लिए जनता को  प्रोत्साहित किया। गाँधी जी के आह्वान पर उत्तर प्रदेश और गाल के हजारों किसान आगे आए। इस आंदोलन के परिणामस्वरूप विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार किया गया और लोगों में चरखा कातना शुरू किया।
प्रश्न 5. साइमन कमीशन को भारत छोड़ने को क्यों लगाया। दूसरे केस के आरोप में इन लोगों पर मुकदमा चला कहा गया?
उत्तर – नवम्बर, 1927 ई० को सर जॉन साइमन की अध्यक्षता में सात सदस्यीय एक दल भारत आया। चूंकि इस समय भारत की राजनीतिक स्थिति अत्यंत दयनीय थी। इसलिए उसका मुख्य उद्देश्य यहाँ के संवैधानिक सुधारों के विषय में विचार करना था। इस कमीशन में भारतीय नहीं थे। अतः भारत छोड़ने के लिए कहा गया। लेकिन लोगों की माँग पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। मार्च-अप्रैल, 1930 के समय गाँधी जी ने अपने साबरमती आश्रम से गुजरात के तट दांड़ी तक सरकार के नमक कानून को तोड़ने के उद्देश्य से यात्रा की। यह एक शांतिपूर्ण यात्रा थी। गाँधी जी ने 6 अप्रैल, 1930 को नमक कानून को कुशलतापूर्वक तोड़ने के लिए मन बना लिया था। 6 अप्रैल 1930 को उन्होंने बिखरे पड़े समुद्री नमक को उठाकर इस कानून को तोड़ा। अतः नमक का उल्लंघन गाँधी जी के गिरफ्तारी का कारण बनी।
प्रश्न 6. दांडी मार्च गांधी जी की गिरफ्तारी का कारण क्यों बनी ?
उत्तर – ब्रिटिश सरकार ने एक नया कानून बनाकर नमक के उपयोग पर टैक्स लगा दिया था, जिसका लोगों ने विरोध किया। क्योंकि नमक्क लोगों को मूलभूत आवश्यकता थी और राजगुरू भगतसिंह और सुखदेव को 1931 में फाँसी दे दो गई। इस प्रकार इन लोगों में देश के खातिर अपने प्राणों की आहुति देकर लोगों के लिए प्रेरणा का काम किया, और उन्हें शहीद का दर्जा प्राप्त हुआ।
प्रश्न 7. आंदोलनकारियों ने विधानसभा में बम फेंककर क्या किया ?
उत्तर – अंग्रेजों की दमन नीति ने भारत के युवा वर्ग में एक आक्रोश उत्पन्न कर दिया था। युवा वर्ग का मानना था कि एक संगठित आंदोलन के द्वारा भारत स्वतंत्रता पा सकता है। परिणामस्वरूप उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ क्रांतिकारी गतिविधियाँ प्रारंभ करने के लिए गुप्त समूह संगठित किया। अंग्रेजों के खिलाफ ताकत के लिए युवाओं को हिंसा के उग्र तरीकों से प्रशिक्षित किया गया। प्रमुख क्रांतिकारी थे-खुदीराम बोस, राजगुरू, सुखदेव, चन्द्रशेखर आजाद, भगत सिंह, सरदार अजीत सिंह इत्यादि। इन क्रांतिकारियों ने गुप्त संघ बनाया। कई ब्रिटिश कर्मचारियों को मारा गया, रेलवे यातायात बाधित या गया और ब्रिटिश धन पर संगठित होकर आक्रमण करते रहे। 1928 में चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, बटुकेश्वर दत्त अन्य ने मिलकर हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन का निर्माण किया। भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने पब्लिक सेफ्टी बिल तथा ट्रेड डिस्प्युट बिल के पास होने के विरोध में केंद्रीय विधान सभा में 8 अप्रैल, 1929 को विरोध करते हुए बम फेंका तथा इकबाल जिंदाबाद’ का नारा लगाया दूसरे के केस के आरोप में लोगों पर मुकदमा और राजगुरू भगतसिंह और सुखदेव को 1931 में फांसो द दा गई। इस प्रकार इन लोगों में देश के खातिर अपने प्राणों को आहुति देकर लोगों के लिए प्रेरणा का काम किया, और उन्हें शहीद का दर्जा प्राप्त हुआ।

प्रश्न 8. भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में सुभाष चन्द्र बोस के नेतृत्व में आजाद हिन्द फौज की भूमिका का वर्णन करें।
उत्तर – सुभाष चन्द्र बोस को यह भली भाँति मालूम था कि अंग्रेजों को भारत से खदेड़ना कोई आसान काम नहीं। उन्हें शायद यह भी आभास हुआ कि यह भारत में रहकर राष्ट्रीय आंदोलन में अधिक योगदान नहीं कर सकेंगे। इसलिए उन्होंने यह निश्चय किया था कि वे विदेशों से आजादी की लड़ाई को संगठित करेंगे और इसीलिए वे 17 जनवरी, 1941 को भारत से भागों में व्यक्त हुआ। लोगों ने सरकारी भवन, पुलिस स्टेशन, चले गए। विदेशों में रहकर उन्होंने एक भारतीय सेना की पोस्ट ऑफिस और अन्य कोई भी चीज जो अंग्रेजों के अधिकार शुरूआत की कोशिश की और अपने देश के लोगों को ब्रिटिशों में आती थी, को जलाकर अपने क्रोध को खुलकर व्यक्त किया। के विरुद्ध हथियार उठाने को प्रेरित किया। 1942 में इंडियन इंडिपेंडेंस लौग की स्थापना की गई और भारत को आजादी के लिए इंडियन नेशनल आर्मी के गठन का निर्णय लिया गया। रास बिहारी बोस के एक आमंत्रण पर 13 जून, 1943 को सुभाष चन्द्र बोस पूर्वी एशिया आए। उन्हें इंडियन इंडिपेंडेंस लीग का अध्यक्ष और आई०एन०ए०, जिन्हें आजाद हिंद फौज कहा जाता है. का अध्यक्ष बनाया गया।

सुभाष चन्द्र बोस ने ‘जय हिन्द’ का नारा दिया। उन्होंने अपने सैनिकों से कहा, “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा” उन्होंने ‘दिल्ली चलो’ का आह्वान किया। उन्होंने ब्रिटिश गुलामी से भारत को आजाद कराने का अपना अभियान शुरू किया। अक्टूबर, 1943 में उन्होंने आजाद हिन्दुस्तान की अंतरिम सरकार के गठन की घोषणा की। मई, 1944 में जापानी सेना के साथ आजाद हिन्द फौज की तीन इकाइयों में पूर्वोत्तर भारत के इंफाल, कोहिमा क्षेत्र में प्रवेश किया। ब्रिटिश द्वारा इस हमले को नाकाम कर दिया गया। आजाद हिन्द फौज के तमाम महत्त्वपूर्ण नेता गिरफ्तार कर लिए गए। नेताजी ने विदेशों से भारत की आजादी की जंग छेड़ कर सबके लिए एक अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत किया।

प्रश्न 9. भारत की स्वतंत्रता में भारत छोड़ो आंदोलन माँग पर जोर दिया। रियासतों ने भी संविधान सभा का बहिष्कार ने किस प्रकार योगदान दिया ?
उत्तर – 14 जुलाई, 1942 को वर्धा में कांग्रेस कार्यकारिणी समिति की बैठक में भारत छोड़ो प्रस्ताव को पारित किया गया। 8 अगस्त की रात कांग्रेस प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए गाँधी जी ने अपनी आत्मा को झकझोरते हुए भाषण में कहा-‘करो या मरो’ हम या तो भारत को आजाद करेंगे या इस प्रयास में मर जाएँगे। हम गुलामी को लम्बे समय तक देखते रहने के लिए जिंदा नहीं रहेंगे।

लेकिन इससे पहले कि कांग्रेसी नेता आंदोलन प्रारंभ कर पाले, सभी महत्त्वपूर्ण कांग्रेसी नेताओं को 9 अगस्त, 1942 से पूर्व ही गिरफ्तार कर लिया गया। कांग्रेस को प्रतिबंधित कर दिया गया और एक अवैध संगठन घोषित कर दिया गया। प्रेस पर पाबंदी लगा दी गई।

जनप्रिय नेताओं की गिरफ्तारी की खबर सुनते ही संपूर्ण राष्ट्र सदमे में डूब गया और उनका क्रोध और असंतोष विरोधी, हड़ताल जुलूसों और विरोध प्रदर्शनों द्वारा देश के सभी भागों में व्यक्त हुआ। लोगों ने सरकारी भवन, पुलिस स्टेशन, पोस्ट ऑफिस और अन्य कोई भी चीज जो अंग्रेजों के अधिकार में आती थी, को जलाकर अपने क्रोध को खुलकर व्यक्त किया रेल और टेलीग्राफ की लाइनें तोड़ दी गई। कुछ स्थानों पर विरोध ने गंभीर मोड़ ले लिया। गाँधी जी के मंत्र से प्रेरित होकर लोग अपना सर्वस्व त्याग करने को तैयार थे। अंग्रेज अपनी सेना म और पुलिस के साथ भारतीय लोगों पर अत्याचार करने लगे। लोग बर्बरता पूर्वक मारे गए भारत छोड़ो आंदोलन एतिहासिकन महत्त्व के जन आंदोलन में एक  बन गया। इसने राष्ट्रीय भावनाओं की गहराई का प्रदर्शन किया और भारतीय लोगों के बलिदान और ने लगनशील संघर्ष की क्षमता का संकेत दिया।

प्रश्न 10: अंतरिम सरकार कैसे और किसके नेतृत्व में
उत्तर – कैबिनेट मिशन योजना के अनुरूप जुलाई, 1946 की में संविधान सभा के लिए चुनाव हुए। कांग्रेस ने 210 में से 201 में सामान्य सीट जीत ली। मुस्लिम लीग को मुसलमानों के लिए में आरक्षित 78 में से 73 सीटें मिलीं। इससे मुस्लिम लीग के नेता टिश जिन्ना बहुत चिंतित हुए। उन्हें लगा कि कांग्रेस को बहुमत मौज मिलने से लीग को इसके मातहत काम करना पड़ेगा। इसलिए ने लीग ने संविधान सभा का बायकॉट कर इससे अपना नाता तोड़ लिए लेने का फैसला किया। उसने कैबिनेट मिशन योजना को भी मानने से इंकार कर दिया। मुस्लिम लीग ने अलग पाकिस्तान की चलन माँग पर जोर दिया। रियासतों ने भी संविधान सभा का बहिष्कार किया। कांग्रेस ने 2 दिसम्बर, 1946 को जवाहर लाल नेहरू रिणी नेतृत्व में एक अंतरिम मंत्रिमण्डल का गठन किया। मुस्लिम किया लोग भी उसमें सम्मिलित हो गई।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. फ्रांसीसी क्रांति से राष्ट्रवाद के विकास को कैसे से बल मिला ?
उत्तर – राष्ट्रवाद का उद्भव यूरोप के नवजागरण के उत्साह में प्रतिबिंबित हुआ जब धार्मिक प्रतिबंध मुक्ति ने राष्ट्रीय अस्मिता को प्रोत्साहन दिया। राष्ट्रवाद की यह अभिव्यक्ति फ्रांसीसी क्रांति द्वारा आगे बढ़ी। इस राजनीतिक परिवर्तन के फलस्वरूप संप्रभुता राजा के हाथ से फ्रांसीसी नागरिक के हाथों में चली गई। राजा जिसके पास राष्ट्र का निर्माण करने  और भाग्य तय करने की शक्ति थी, फ्रांसीसी क्रांति का नारा “उदाहरता, समानता एवं भ्रातृत्व” ने संपूर्ण संसार को प्रेरणा दी। अन्य कई आंदोलन, जैसे-अमेरिकी कांति, रूसी क्रांति इत्यादि ने भी राष्ट्रवाद के विचार को शक्ति प्रदान की।
प्रश्न 2. भारत में राष्ट्रवाद के उद्भव में सहायक तत्त्व का वर्णन करें।
उत्तर – भारत में राष्ट्रवाद के उद्भव में अनेक कारक सहायक हैं। वैसे भारत के लिए राष्ट्रीय पहचान का बनना एक लंबी प्रक्रिया थी, जिसका मूल प्राचीन युग से लिया जा सकता है। किंतु राष्ट्रवाद का उदय उपनिवेश विरोधी आंदोलन से गहरे रूप से जुड़ा था। सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक तत्त्वों ने लोगों को राष्ट्रीय पहचान को परिभाषित करने और उसे प्राप्त करने में प्रेरणा दी। लोगों ने उपनिवेशवाद के विरुद्ध संघर्ष के क्रम में अपनी एकता का खोजना प्रारंभ कर दिया। इसके अतिरिक्त 19वीं सदी के सामाजिक व धार्मिक सुधार आंदोलनों ने भी राष्ट्रवाद की भावना को उत्पन्न करने में भूमिका निभाई।

प्रश्न 3. बंगाल विभाजन का क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर – लॉर्ड कर्जन के शासन काल की सबसे अप्रिय घटना 1905 का बंगाल विभाजन था। सरकार के अनुसार यह विभाजन प्रशासनिक सुधार के लिए किया गया था। किंतु वास्तव में यह विभाजन देश के शासन में ‘फुट डालो और राज करो’ की नीति पर आधारित था। इस विभाजन के अनेक प्रभाव परिलक्षित हुए, जो इस प्रकार हैं-

(i) राष्ट्रीय आंदोलन में तीव्रता आ गई और यह साधारण जनता में फैल गया।
(ii) कांग्रेस का नेतृत्व गरम दल के हाथों में आ गया, जिससे राष्ट्रीय आंदोलन और भी तेज हो गया।
(iii) स्वदेशी और बहिष्कार जैसे हथियारों को जनता जान गई।

प्रश्न 4. भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में गरम दल का उदय क्यों हुआ ?
उत्तर – भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के इतिहास में 1905 से 1918 तक की अवधि को अतिवादी राष्ट्रवादियों’ मा ‘गरम दल का युग’ कहा जाता है। लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक एवं विपिन चन्द्र पाल (जिन्हें हम लाल-बाल-पाल) भी कहते हैं. इस दल के प्रमुख नेता थे। गरम दल के उदय का प्रमुख राजनीतिक कारण यह था कि 1892 से 1905 ई० के मध्य भारत के जो तीन गवर्नर-जनरल आए. ये घोर साम्राज्यवादी और प्रतिक्रियावादी थे। ये भारतीय राष्ट्रवाद को पनपने नहीं देना चाहते थे। ऐसी परिस्थिति में कांग्रेसियों में घोर निराशा फैली अंग्रेजों की न्यायप्रियता में उन लोगों का विश्वास जाता रहा। अब वे लोग स्वराज्य का समर्थन करने लगे और इसकी प्राप्ति के लिए कमर कसकर तैयार हो गए। कांग्रेसी नेताओं के असंतोष की बाढ़ फुट चली और वे लोग सरकार की नीति के प्रति अपना असंतोष खुलकर प्रकट करने लगे। इस प्रकार गरम दल का उदय हुआ।
प्रश्न 5. मुस्लिम लीग की स्थापना कब हुई ? इसकी स्थापना क्या मुख्य उद्देश्य क्या था ?
उत्तर – मुस्लिम लीग की स्थापना 30 दिसंबर, 1906 में एन.एच. आगा खाँ के नेतृत्व में ढाका में की गई। इसके संस्थापक अध्यक्ष सलीम उल्लाह खाँ थे। मुस्लिम लीग की स्थापना का मुख्य उद्देश्य मुसलमानों के अधिकारों की रक्षा करना एवं उन्हें उन्नत करना तथा उनकी जरूरतों को सरकार के सामने रखना था। मुस्लिम लीग के नेताओं का मानना था कि मुसलमानों की रक्षा तभी की जा सकती है जब इसका प्रतिनिधि किसी मुस्लिम समाज का हो।
प्रश्न 6. मोर्ले-मिन्टो सुधार से आप क्या समझते हैं? संक्षिप्त विवरण दें।
उत्तर – 1909 ई० के भारतीय परिषद अधिनियम को मोलें मिन्टो सुधार कहा जाता है। इस अधिनियम के द्वारा विधान सभा में सदस्य संख्या का सोलह से बढ़ाकर साठ कर दिया। कुछ अनिर्वाचित सदस्यों को भी शामिल कर लिया गया। यद्यपि विधान परिषद सदस्यों की संख्या बढ़ गई, किन्तु उनके पास वास्तव में शक्ति नहीं थी। वे किसी कानून को पारित होने से रोक नहीं सकते थे, न उनके पास बजट पर कोई शक्ति थी वे मुख्यतः केवल सलाहकार की भूमिका में थे। इनके अतिरिक्त इस सुधार के अंतर्गत मुस्लिम सांप्रदायिकता को और अधिक प्रोत्साहन दिया गया। अपनी स्थिति को सुदृढ़ करने के लिए अंग्रेजों ने मुसलमानों व हिन्दुओं के मध्य मतभेदों के बीज बो दिए थे।
प्रश्न 7. 1940 के प्रस्ताव के माध्यम से मुस्लिम लीग ने क्या माँगें की ?
उत्तर – मुस्लिम लीग जिसकी स्थापना 1906 में की गई थी. सलीम उल्लाह खाँ इसके प्रमुख सदस्य थे, ने 1940 में सरकार के सामने कुछ माँगें रखी, जो इस प्रकार है-उनकी माँगें थीं कि भौगोलिक दृष्टि से लगी हुई इकाइयों को क्षेत्रों के रूप में दर्शाया जाए। जिन्हें निर्माण की ज के हिसाब से इलाकों को फिर से इस प्रकार जोड़ा जाए कि भारत के पश्चिमोत्तर तथा पूर्वी क्षेत्रों या वैसे भाग जो मुस्लिम बहुल है, उन्हें इकट्ठा करके एक स्वतंत्र राज्य का निर्माण कराया जाए जिनमें सम्मिलित इकाइयाँ आत्मनिर्भर और स्वायत्त हो अपितु उसमें साफ तौर पर पाकिस्तान की माँग। नहीं दर्शाया गया। लेकिन एक अलग मुस्लिम राज्य की माँग को गई।
प्रश्न 8. लखनऊ अधिवेशन का क्या महत्त्व है?
उत्तर – लखनऊ अधिवेशन का महत्त्व अत्यधिक है, क्योंकि इस अधिवेशन में नरम दल और गरम दल एक साथ आए। कांग्रेस और मुस्लिम लीग में एकता स्थापित हुई और दोनों ने स्वराज्य को अपना लक्ष्य बनाया। इन दोनों की एकता से ब्रिटिश सरकार चिंतित हो गई और संवैधानिक सुधार करने के लिए विवश हो गई। फलस्वरूप माँटेग्यू-चेम्सफोर्ड अधिनियम पारित किया गया।
प्रश्न 9. जलियाँवाला बाग हत्याकांड के पीछे क्या थे ?
उत्तर – खिलाफत आंदोलन के दो प्रमुख नेता, यथा-डॉ सतपाल एवं सैफुद्दीन किचलू को अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर ने बिना किसी कारण के गिरफ्तार कर लिया तो इसके विरोध में लोगों ने एक शांतिपूर्ण जुलूस प्रदर्शन का आयोजन अमृतसर स्थित जलियाँवाला बाग में किया। इसी समय जनरल डायर यहाँ आए और अल्टीमेटम देकर अपने सैनिकों से गोली चलाने को आदेश दिया, जिसमें 400 से अधिक निर्दोष और निहत्थे लोग मारे गए। इस नरसंहार ने भारतीय लोगों के उम्र क्रोध को भड़का दिया। रवीन्द्रनाथ टैगोर ने अपना क्रोध व्यक्त करते हुए ब्रिटिश सरकार को ‘नाइटहुड’ की उपाधि लौटा दो।
प्रश्न 10. जिस समय गांधी जी अफ्रीका से भारत वापिस आए, उस समय की भारतीय राजनीतिक वातावरण की प्रमुख राष्ट्रवादी विशेषता क्या थी ?
उत्तर – जिस समय गाँधी जी विदेश जा रहे थे, उस समय भारत अंग्रेजों के चंगुल में था। जब वे वापिस आए तो भी भारत विदेशों के ही नियंत्रण में था। किंतु तब और अब के हालात में काफी परिवर्तन आ चुका था। अब देश के अनेक स्थानों पर कांग्रेसी शाखाएँ स्थापित हो चुकी थीं। पूर्व की अपेक्षा राष्ट्रीय आंदोलन का स्वरूप अखिल भारतीय स्तर का हो गया था।
प्रश्न 11. किसान महात्मा गांधी में अपना विश्वास क्यों व्यक्त करते थे ?
उत्तर – किसान गाँधी जी को अपना हितैषी मानते थे। चूंकि उस समय किसानों की दशा बड़ी दयनीय थी और गाँधी जो उनको उस विकट परिस्थितियों से निकालने के लिए प्रयासरत् थे। इसलिए किसानों का मानना था कि उन पर सरकार जो | अनियंत्रित कर लगा रखा है, गाँधी जी उन करों के बोझ से उन्हें मुक्त करा सकते हैं। चूँकि, गाँधी जी ग्रामीण क्षेत्रों से संबंधित समस्याओं और किसानों की विभिन्न समस्याओं के समाधान के लिए अनेक सत्याग्रह आंदोलन इत्यादि का आयोजन करते रहते थे। इसलिए किसान इन्हें अपने मुक्ति दाता के रूप में देखते थे।
प्रश्न 12. स्पष्ट कीजिए कि गाँधी जी ने दाण्डी यात्रा क्यों की ?
उत्तर – गाँधी जी ब्रिटिश सरकार की सर्वाधिक घृणित कानूनों में से एक नमक कानून को तोड़ने के लिए 12 मार्च, 1930 को अपने अन्य स्वयंसेवकों के साथ साबरमती आश्रम से 358 किमी दूर स्थित दाण्ड़ी के लिए प्रस्थान किया। 24 दिन पश्चात् दाण्डी पहुँच कर उन्होंने समुद्र तट पर नमक कानून की तोड़ा। इस यात्रा का पूरी बदलती दुनियां पर और अंग्रेजों की भारतीय प्रवृत्ति पर बहुत महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा। इस आंदोलन में किसान व्यापारी और महिलाओं ने भी बड़ी संख्या में भाग लिया।

प्रश्न 13. गाँधी-इरविन समझौता क्या है ?
उत्तर – भारत के तत्कालीन वायसराय इरविन ने घोषित किया कि ब्रिटिश सरकार का अंतिम उद्देश्य भारत में औपनिवेशिक सरकार की स्थापना करना है और वह इस कार्य को संपन्न करना चाहती है। इसके लिए इंग्लैण्ड में गोलमेज कांफ्रेंस बुलाई गई। प्रथम कांफ्रेंस 12 नवम्बर 1930 ई० को आरंभ हुआ।

कांग्रेस आंदोलन में व्यस्त थी, इसलिए उसका कोई प्रतिनिधि इसमें शामिल नहीं हुआ। वातावरण में शांति होने पर महात्मा गाँधी को जेल से छुट्टी दे दी गई। फिर गाँधी-इरविन समझौता हुआ और गाँधी जी को अपने उद्देश्य में कोई सफलता नहीं मिली और वे खाली हाथ भारत लौट आए। यहाँ लौटने पर उन्हें पुनः गिरफ्तार कर लिया गया।

प्रश्न 14. ‘आजाद हिन्द फौज’ पर 50 शब्दों में एक बना सकते थे, जिनकी पारस्परिक सहमति से वे अपने कुछ निबंध लिखें। अधिकार दे सकते थे। किंतु कैबिनेट मिशन को योजना अस्वीकार कर दी गई।
उत्तर – सुभाष चन्द्र बोस उग्र नेता थे। वे गाँधी जी की अहिंसावादी कार्यों में विश्वास नहीं करते थे। वे द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान भारत छोड़कर विदेश चले गए और वहीं से स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया। उन्होंने जापान की सहायता से भारत को मुक्त करने के लिए सिंगापुर में आजाद हिंद फौज की स्थापना की। जापान में प्रसिद्ध क्रांतिकारी रास बिहारी बोस ने भी उनकी सहायता की।
प्रश्न 15. क्रिप्स मिशन भारत क्यों आया ? इसका क्या परिणाम हुआ ?
उत्तर – दूसरे महायुद्ध में इंग्लैण्ड की स्थिति बड़ी खराब हो गई थी, इसलिए उसे भारतीयों के सहयोग की आवश्यकता थी। परंतु अंग्रेजों की गलत नीतियों के कारण भारतीय उनसे नाराज थे और उन्हें किसी प्रकार का कोई सहयोग देने को तैयार नहीं थे। इस समस्या को सुलझाने के लिए ही ब्रिटिश सरकार ने स्टेफोर्ड क्रिप्स को 1942 ई० में भारत भेजा। उसने भारतीय नेताओं के सामने अपनी योजना रखी। इसमें कहा गया कि यदि भारतीय दूसरे महायुद्ध में अंग्रेजों का साथ दें तो उन्हें युद्ध के बाद ‘अधिराज्य’ दे दिया जाएगा। भारतीय नेताओं ने क्रिप्स की योजना को अस्वीकार कर दिया।
प्रश्न 16. भारत छोड़ो आंदोलन का क्या महत्त्व है ?
उत्तर – द्वितीय विश्वयुद्ध के समय गाँधी जी ने भारत छोड़ो आंदोलन चलाया। इस पर सरकार ने कांग्रेस का गैर-कानूनी घोषित कर दिया। कठोर दमन चक्र चलाया गया। लाखों व्यक्ति बंदी बना लिए गए, लेकिन भारतीय न रुके न झुके। बदले की भावना से भर गए। लगभग 250 रेलवे स्टेशन और 560 डाकखाने नष्ट कर दिए गए। 250 पुलिस चौकियों पर भी हमले किए गए। अब अंग्रेजी सरकार जान गई थी कि भारतीय स्वतंत्रता से वंचित रखना कठिन ही नहीं, असंभव है।

प्रश्न 17. कैबिनेट मिशन पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर – कैबिनेट मिशन मार्च, 1946 में भारतीय नेताओं के साथ भारतीयों को सत्ता हस्तांतरण की शर्त पर बातचीत करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने कैबिनेट मिशन भेजा। कैबिनेट मिशन ने दो सीढ़ियों वाली संघीय योजना रखी, जिससे आशा की जाती थी कि वह अधिकतम क्षेत्रीय स्वायत्तता के साथ-साथ राष्ट्रीय एकता भी बनाए रखेगी।

प्रांतों और देशी राज्यों का एक संघ बनाने की बात को गई जिसमें संघीय केंद्र का केवल प्रतिरक्षा, विदेशी मामलों तथा संचार पर नियंत्रण रहेगा। साथ ही प्रांत विशेष क्षेत्रीय यूनियनबना सकते थे जिनकी पारस्परिक सहमति से वे अपने कुछ अधिकार दे सकते थे। किन्तु कैबिनेट मिसन की योजना अस्वीकार कर दी गई।

प्रश्न 18. भारत विभाजन के समय भारत को किन-किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा ?
उत्तर – भारत का विभाजन भारत के लिए एक अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण घटना थी। भारत विभाजन से सिर्फ भारतीय मानचित्र में ही परिवर्तन नहीं आए, अपितु भारतीयों की मानसिकता में परिवर्तन आया। देश को भीषण दंगों का सामना करना पड़ा। देश में लूटपाट, हत्या, बलात्कार जैसे घृणित काम होने लगे। संभावना समाप्त करने के उद्देश्य से की गई थी। 1885 से 1905 जात-पात के नाम पर खून की नदियाँ बहने लगीं। देश को ऐसे के मध्य कांग्रेस में अधिकतर बकौल और जमींदार वर्ग के बार नरसंहार व हिंसा का सामना करना पड़ा. जिसका इतिहास में होते थे। वे वर्ष में एक बार एकत्र होते थे और कुछ प्रस्ताव इससे पहले कहीं कोई उदाहरण नहीं मिलता।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. भारत में राष्ट्रवाद के विकास के लिए उत्तरदायी कारकों का वर्णन 200 शब्दों में कीजिए।
उत्तर – अंग्रेजी सरकार ने स्वयं भारत में राष्ट्रवाद के विकास के लिए परिस्थितियों उत्पन्न की। संपूर्ण विवरण निम्नलिखित है-1. भारतीय अतीत की खोज-जर्मन विद्वान मैक्समूलर और विलियम जोस आदि विद्वानों ने भारतवासियों को उनके गौरवशाली अतीत से अवगत कराया।2. शिक्षित मध्यम वर्ग का उदय-ब्रिटिश शासन और उसकी नीतियों से देश में एक नए शिक्षित वर्ग का उदय हुआ जिसमें वकील, डॉक्टर, अध्यापक, सरकारी कर्म धारी, इंजीनियर, व्यापारी आदि सम्मिलित थे। शिक्षित होने के कारण वे राष्ट्रीय आंदोलन के पथ-प्रदर्शक बन गए।3. समाज सुधार आंदोलन का प्रभाव 19वीं शताब्दी के सामाजिक व धार्मिक सुधार आंदोलनों ने भी राष्ट्रवाद की भावना को उत्पन्न करने में भूमिका निभाई। राजा राममोहन राय ने प्रजातंत्र, समान अधिकार, प्रेस, भाषण की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का समर्थन किया। स्वामी विवेकानंद ने युवकों में आत्मविश्वास जगाया। उसी प्रकार ऐनी बेसेंट, हेनरी डेरोजियो ने प्राचीन भारत के गौरव को फिर से जगाया। लोगों में उनके धर्म और संस्कृति में विश्वास पैदा
किया और इस प्रकार उन्हें उनकी मातृभूमि से प्रेम का संदेश दिया। राष्ट्रवाद के बौद्धिक और आध्यात्मिक पक्ष को बकिम
चंद्र चटर्जी, स्वामी दयानंद सरस्वती और अरविंद घोष सरीखे लोगों द्वारा स्वर दिया गया।

प्रश्न 2. प्रारंभ के बीस वर्षों में कांग्रेस के उद्देश्यों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर – भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना 1885 में एलेन औक्टावियन ह्यूम द्वारा की गई। वे भारतीयों में बढ़ती राजनीतिक सजगता को संवैधानिक स्वरूप देना चाहते थे। गवर्नर लॉर्ड डफरिन का सहयोग प्राप्त हुआ और राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हो गई।

उद्देश्य – ट्यूम का मुख्य उद्देश्य एक ऐसे संगठन का निर्माण करना था जो भारतीय असतोष को रोकने में सुरक्षा कवच का कार्य कर सके। दूसरे शब्दों में हम यह कह सकते हैं कि कांग्रेस की स्थापना किसी प्रकार के ब्रिटिश विरोधी जन विद्रोह की पारित करते थे। वे अंग्रेजों की न्यायप्रियता में विश्वास रखते थे। ‘उनमें से कुछ लोग ब्रिटिश शासन को भारत के लिए वरदान समझते थे। उनकी मुख्य माँगे थी-ब्रिटिश साम्राज्य के अंतर्गत लोकतांत्रिक संस्थाओं का प्रारंभ किया जाना तथा सरकारी सेवाओं में भारतीयों को अधिक स्थान देना। उनकी अन्य में भू-राजस्व तथा सेना के व्यय में कटौती करना तथा भारत के धन का भारतीयों के लिए उपयोग करना शामिल था। प्रार्थना करना तथा माँग-पत्र देना उनकी कार्य-प्रणाली थी।

प्रश्न 3. कांग्रेस की स्थापना के पीछे क्या उद्देश्य थे ?
उत्तर – अंग्रेज सरकार को जब यह आभास हुआ कि उनके विरुद्ध देश में राजनीतिक गतिविधियाँ तेज हो रही हैं तो उन्होंने एक अंग्रेजी अधिकारी ए०ओ० ग्राम को एक संगठन बनाने का अवसर प्रदान किया, जिससे भारतवासी अपने मनोभावों को प्रकट कर सकें और ब्रिटिश विरोधी भावनाएँ कम हो सकें। सन् 1885 में लॉर्ड डफरिन के सहयोग से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हुई। 28 दिसम्बर, 1885 को इसका प्रथम अधिवेशन सुरेंद्रनाथ बनर्जी की अध्यक्षता में बम्बई में हुआ। इसमें देशभर से 72 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इस सम्मेलन में कांग्रेस की स्थापना के निम्नलिखित उद्देश्य बनाए गए।

• सरकार के समक्ष जनता जुड़ी माँगों को रखना,
• देश में जनमत का संगठन और प्रशिक्षण.
• धर्म या प्रांत का विचार किए बिना राष्ट्रीय एकता की भावना का विकास करना,
• देश के विभिन्न भागों में राष्ट्रवादी कार्यकर्त्ताओं में परस्पर मित्रता पूर्ण संबंधों का विकास करना।

प्रश्न 4. बंगाल विभाजन का तत्कालीन राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर – बंगाल विभाजन लॉर्ड कर्जन के शासन काल की सबसे महत्त्वपूर्ण मूर्खतापूर्ण और दुखद घटना थी। सरकार में आधार पर किया। किंतु ब्रिटिश सरकार को इसका जरा भी बंगाल का शासन “फुट डालो और शासन करो” की नीति के आभास नहीं हुआ होगा कि उसे अपने ही निर्णय का वापस लेना पड़ेगा और जिसके लिए इतना जन-आक्रोश उत्पन्न होगा। वास्तव में इस विभाजन के पीछे सरकार की मंशा तो सांप्रदायिकता आवश्यक बताया कि बंगाल प्रांत अत्यधिक बड़ा था। अतः का बीज बोना था। किंतु उसने यह कहकर बंगाल विभाजन को प्रशासन की सुविधा के लिए उसका विभाजन करना आवश्यक है।

अतः भारतीय जनता के अत्यधिक विरोध के बावजूद 1905 में बंगाल का विभाजन कर दिया गया। बंगाल के विभाजन ने भारतीय जनता को अत्यधिक चोट पहुँचाई। सुरेंद्रनाथ बैनर्जी ने कहा कि “बंगाल-विभाजन की घोषणा एक बम के गोले की भाँति गिरी। हमें ऐसा अनुभव हुआ कि हम अपमानित तथा उपेक्षित कर दिए गए।” जनता ने आंदोलन का विरोध करने के लिए स्वदेशी आंदोलन चलाया। ब्रिटेन में बनी वस्तुओं को बहिष्कार किया गया। सरकार ने 16 अक्टूबर को विभाजन-दिवस के रूप में मनाया लेकिन जनता ने इसे शोक-दिवस के रूप में मनाया। यह आंदोलन लगातार सात वर्ष तक चलता रहा।सरकार ने आंदोलनकारियों को कुचलने के लिए कठोरतापूर्ण रवैया अपनाया। जनता के निरंतर आंदोलन के कारण दिसम्बर, 1911 में सरकार को बंगाल विभाजन रद करना पड़ा। भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के इतिहास में ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध आंदोलनकारियों की यह प्रथम विजय थी।

प्रश्न 5. मुस्लिम लीग की स्थापना के पीछे क्या उद्देश्य की पढ़ाई करने के लिए इंग्लैण्ड से वे दक्षिण अफ्रीका चले गए।
उत्तर – जैसे-जैसे राष्ट्रीय आंदोलन तीव्र हो रहा था, वैसे-वैसे ब्रिटिश भारतीयों की एकता को तोड़ने के लिए रास्ता तलाशने लगे। पहले तो उसने बंगाल विभाजन कर सांप्रदायिकता का बीज बोया। उसके बाद उसने मुसलमानों को कांग्रेस के समांतर संगठन बनाने के लिए प्रोत्साहित किया।

दूसरी ओर, मुसलमान नेताओं के मन में उग्रपंथी हिन्दू नेताओं के हिन्दू पुनर्जागरण के प्रति संशय उत्पन्न होने लगा। अंततः ब्रिटिश सरकार अपनी चाल कामयाब हो गई और 30 मई, 1906 को मुस्लिम लीग की स्थापना की गई। वहाँ रह रहे भारतीयों के साथ हो रहे दुर्व्यवहार को रोकने के लिए उन्होंने वहाँ ‘सत्याग्रह’ आंदोलन आरंभ किया और अपने उद्देश्य में सफलता प्राप्त की। जब वे 1915 में भारत वापस आए तो यहाँ की राजनीतिक स्थिति काफी बदल चुकी थी। उन्होंने कांग्रेस में प्रवेश किया। शीघ्र ही स्वराज्य की धारणा को नया बल मिला। उन्होंने असहयोग आंदोलन और सविनय अवज्ञा आंदोलन के माध्यम से ब्रिटिश शासन की नींव हिला दी। भारत को स्वतंत्रता दिलाना-गाँधी जी के नेतृत्व में ही भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हुई। उन्होंने देश को स्वतंत्र कराने हेतु लगभग 25 वर्षों तक अकथनीय प्रयास किया और अंत में उनको

1906 से 1940 ई० तक की मुस्लिम लीग की सफलता प्राप्त हुई भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को जन आंदोलन नीतियाँ-

1. भारतीय मुसलमानों के आर्थिक हितों की वृद्धि करना।
2. मुसलमानों में ब्रिटिश सरकार के लिए निष्ठा उत्पन्न करना तथा प्रत्येक प्रकार के संशय को मिटाना।

प्रश्न 6. भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन पर प्रथम विश्व ही कांग्रेस जन साधारण की संस्था बन गयी। गाँधी जी ने कांग्रेस ने कांग्रेस को एक नवीन चेतना प्रदान की। युद्ध के क्या प्रभाव परिलक्षित हुए ?
उत्तर – प्रथम विश्वयुद्ध में ब्रिटिश सरकार को सहयोग देने के पीछे भारतीय राष्ट्रवादियों का यह विश्वास था कि युद्ध की समाप्ति के पश्चात् भारत में स्वशासन की व्यवस्था लागू कीजाएगी। कांग्रेस ने भारत में सैनिकों की नि.युक्ति और सेना में अधिक भारतीयों को नियुक्त करने की माँग की। भारतीयों में स्वराज्य की अभिलाषा जाग उठी थी तथा जनसाधारण राजनीति के प्रति जागृत हो चुके थे। किंतु ब्रिटिश सरकार का रवैया जरा भी सकारात्मक नहीं था और वह भारतीयों की अब भी उपेक्षा कर रही थी। तब लोकमान्य तिलक और ऐनी बेसेंट के नेतृत्व  में गृह शासन आंदोलन प्रारंभ किया गया था। टर्की के साथ मित्र राष्ट्रों के अपमानजनक व्यवहार से भारतीय मुसलमान भी क्षुब्ध थे। अतः वे अपने सभी मतभेद भुलाकर कांग्रेस के साथ समझौता करने के लिए तैयार हो गए। 1916 में कांग्रेस और मुस्लिम लीग के मध्य लखनऊ समझौता हुआ। इससे हिन्दू और मुसलमानों के बीच एकता का नया अध्याय प्रारंभ हुआ। इसी वर्ष उग्रवादी और उदारवादी के बीच सहयोग एवं एकता की भावना उत्पन्न होने से भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को नवजीवन प्राप्त हुआ।

प्रश्न 7. राष्ट्रीय आंदोलन में गाँधी जी के योगदानों का वर्णन कीजिए।
उत्तर – गाँधी जी भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के प्रमुख नेता थे। भारत में अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी कराने के पश्चात् कानून की पढ़ाई करने के लिए इंग्लैण्ड से वे दक्षिण अफ्रीका चले गए। वहाँ रह रहे भारतीयों के साथ हो रहे दुर्व्यवहार को रोकने के लिए उन्होंने वहाँ ‘सत्याग्रह आंदोलन आरंभ किया और अपने उद्देश्य में सफलता प्राप्त की। जब वे 1915 में भारत वापस आए तो यहाँ की राजनीतिक स्थिति काफी बदल चुकी थी। उन्होंने कांग्रेस में प्रवेश किया। शीघ्र ही स्वराज्य की धारणा को नया बल मिला। उन्होंने असहयोग आंदोलन और सविनय अवज्ञा आंदोलन के माध्यम से ब्रिटिश शासन की नींव हिला दी।

भारत को स्वतंत्रता दिलाना – गाँधी जी के नेतृत्व में ही भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हुई। उन्होंने देश को स्वतंत्र कराने हेतु
लगभग 25 वर्षों तक अकथनीय प्रयास किया और अंत में उनकी सफलता प्राप्त हुई। भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को जन आंदोलन बनाया सर्वसाधारण को उन्होंने राजनीतिक चेतना प्रदान की। कांग्रेस को सार्वजनिक संस्था के रूप में प्रस्तुत
करना कांग्रेस गाँधी जी के पदार्पण से पूर्व वकीलों, जमींदारों तथा डॉक्टरों की संस्था थी किंतु गाँधी जी के पर्दापण के साथ
ही कांग्रेस जन साधारण की संस्था बन गयी। गाँधी जी ने कांग्रेस ने कांग्रेस को एक नवीन चेतना प्रदान की। हिन्दू-मुस्लिम एकता स्थापित करने का प्रयास-गांधी हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए प्रयास करते रहे। यह एक अलग बात है कि उन्हें उनके प्रयासों में सफलता नहीं मिली और देश विभाजित हो गया।

कांग्रेस को सार्वजनिक संस्था के रूप में प्रस्तुत करना कांग्रेस गाँधी जी के पदार्पण से पूर्व वकीलों, जमींदारों तथा डॉक्टरों की संस्था थी। किंतु गाँधी जी के पर्दार्पण के साथ ही कांग्रेस जन साधारण की संस्था बन गयी। गाँधी जी ने कांग्रेस ने कांग्रेस को एक नवीन चेतना प्रदान की।

हिन्दू-मुस्लिम एकता स्थापित करने का प्रयास – गाँधी हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए प्रयास करते रहे। यह एक अलग बात है कि उन्हें उनके प्रयासों में सफलता नहीं मिली और देश विभाजित हो गया।

प्रश्न 8. भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को जन आंदोलन बनाने में गाँधी जी की भूमिका का वर्णन कीजिए।
उत्तर – स्वतंत्रता आंदोलन को अधिक व्यापक बनाने के लिए किसानों तथा मजदूरों का सहयोग आवश्यक था। स्वतंत्रता आंदोलन का जन आंदोलन बनाने के लिए स्वतंत्रता संघर्ष को देश के कोने-कोने में पहुँचाना था। यह कार्य गाँधी जी के सत्याग्रह संग्राम से संभव हुआ। महात्मा गाँधी के आगमन पर समस्त राष्ट्र एकजुट होकर आगे बढ़े। सभी बलिदान देने के लिए एक-दूसरे के आगे होते थे। गाँधी जी की एक आवाज से ही जेलें भर जाती थीं माताएँ अपने बच्चों को सहर्ष तिलक लगाकर जेल भेजा करती थीं। अतः स्पष्ट है कि यह आंदोलन कुछ वर्गों के सहयोग से नहीं चलाया गया. अपितु इसमें भारत की समस्त जन-शक्ति ने योग दिया। इस महान एवं सुगठित  शक्ति के सम्मुख अंग्रेजी साम्राज्य भला कैसे टिक सकता था।

1. गाँधी जी ने अस्पृश्यता के विरुद्ध आवाज उठाई और इस अभियान में सफलता पाई। परिणामस्वरूप लाखों हरिजन भाई स्वतंत्रता आंदोलन में देशवासियों के साथ कधे-से-कथा मिलाकर आगे बढ़े।

2. गाँधी जी की एक अन्य सफलता घरेलू उद्योगों का विकास था। उनका विश्वास था कि ग्रामीण जनता के कष्टों का एकमात्र हल चरखा है। कांग्रेस ने चरखे के प्रचार को अपने कार्यक्रम में प्रमुख स्थान दिया। इससे राष्ट्रीयता की भावना जाग्रत हुई और साथ ही लाखों व्यक्तियों को रोजगार मिला। ऐसे लाखों लोग तैयार हो गए जो हँसते-हँसते हेल जाने से भी नहीं हिचकिचाते थे। स्वयं कांग्रेस के झण्डे के चरखे का चिह्न अंकित किया गया।

गांधी जी का विश्वास था कि हिन्दू-मुस्लिम एकता के बिना अंग्रेज को भारत से बाहर नहीं निकाला जा सकता था। वह सांप्रदायिकता को अमानवीय मानते थे और इसे राष्ट्र के मार्ग की बाधा समझते थे। वे हिन्दुओं तथा मुसलमानों को एक साथ लेकर आगे बढ़े जिनके कारण स्वतंत्रता संघर्ष को बहुत बल मिला।

सच तो यह है कि गाँधी जी ने समाज सुधार को स्वतंत्रता आंदोलन का साधन माना और राष्ट्रीय आंदोलन को जनसाधारण का आंदोलन बना दिया।

प्रश्न 9. असहयोग आंदोलन का मुख्य कार्यक्रम क्या था ? क्या आपको लगता है कि यह विफल रहा ? कारण बताइए।
उत्तर – असहयोग आंदोलन का संचालन स्वराज्य की माँग को लेकर किया गया था। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश सरकार के कार्यों में सहयोग न करके बाधा उत्पन्न उत्पन्न करना था। यह आंदोलन गाँधी जी के नेतृत्व में प्रारंभ किया गया। गाँधी जी ने कांग्रेस का सहयोग और समर्थन प्राप्त कर एक देशव्यापी कार्यक्रम निश्चित किया जिसका वर्णन निम्नलिखित है-(i) सरकारी पदक एवं उपाधियाँ लौटाना।
(ii) सरकारी दरबार एवं समारोह का बहिष्कार करना।
(iii) सरकारी स्कूलों का बहिष्कार।
(iv) अदालतों का बहिष्कार एवं पंचायतों की स्थापना
(v) मतदान एवं विधान सभाओं का बहिष्कार।
(vi) विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार।सामान्य रूप से देखा जाए तो यह असहयोग आंदोलन असफल रहा, क्योंकि असहयोग आंदोलन द्वारा प्रस्तुत एक भी माँग सरकार ने नहीं मानी। गाँधी जी ने एक वर्ष में स्वशासन प्राप्त करने का नारा दिया था, वह भी पूरा नहीं हुआ। निश्चय ही असहयोग आंदोलन के दूरगामी तथा स्थायी परिणाम निकले। सबसे महत्त्वपूर्ण अन्य लोगों ने राजनीति में भाग लेना शुरू किया। आंदोलन देश के पिछड़े से पिछड़े कोने तक पहुँचा। असहयोग का सबसे बड़ा गुण भारतीयों में आत्मसम्मान और अत्यधिक आत्मविश्वास को जगाना था। राजनीति में संघर्ष और आत्मबलिदान की भावना का प्रवेश हुआ। भारतीय निडर हो गए। उन्हें ब्रिटिश साम्राज्यवाद की शक्ति का भय नहीं था। नेहरू के शब्दों में गाँधी ने भारतीयों  को पैरों परखड़ा होना सिखाया।

प्रश्न 10. भारत विभाजन के क्या कारण थे ? इसका क्या परिणाम हुआ ?
उत्तर – भारत विभाजन देश के इतिहास की एक अत्यंत दुखद घटना थी। इससे भारतीय मानचित्र दो हिस्सों में विभाजित हो गया। भारत विभाजन का सबसे महत्त्वपूर्ण कारण था, मुस्लिम नेताओं का सत्ता के प्रति मोह अर्थात् मुस्लिम नेताओं का यह मानना था कि मुसलमानों के हितों की रक्षा तभी की जा सकती है जब सत्ता किसी मुस्लिम नेता के हाथ में हो। ये मुसलमानों के हितों को मोहरा बनाकर सत्ता पर अपना अधिकार प्राप्त करना चाहते थे। उनका मानना था कि यदि भारत का विभाजन नहीं होता है, तो मुसलमानों के हाथों में राजनीतिक सत्ता नहीं आ पाएगी।

क्योंकि मुसलमान अल्पसंख्यक है, इसलिए ऐसा संभव नहीं है। इसलिए उन्होंने एक अलग मुस्लिम राष्ट्र को माँग उठाई, जिसे स्वीकार भी किया गया। इस प्रकार भारत को आजादी तो मिली, लेकिन इससे अलग होकर ‘पाकिस्तान’ नामक अलग राष्ट्र के निर्माण का दुख भी झेलना पड़ा।

विभाजन का परिणाम – विभाजन का परिणाम अत्यंत दुखद सिद्ध हुआ। हजारों बच्चे अनाथ हुए, बड़ी संख्या में महिलाएँ विधवा हुई। कितनी माँ की गोद सूनी हुई। लोग बेघर हो गए। चारों ओर अमानवीय घटनाएँ घटित होने लगीं। कानून-व्यवस्था का विनाश हो गया। न केवल भारत का मानचित्र दो भागों में विभाजित हुआ अपितु पलभर में लाखों जीवन बदल कर रह गए। शहर बदले, भारत बदला। जन-संहार हिंसा और विस्थापन का एक ऐसा दौर देखने को मिला, जिससे कितना भी स्पष्ट किया जाए कम होगा।

प्रश्न 11. दूसरे विश्व युद्ध के बाद की स्थितियों की व्याख्या करें जिनसे राष्ट्रीय आंदोलन को आगे बढ़ाने में सहायता मिली।
उत्तर – दूसरे विश्वयुद्ध की समाप्ति 1945 में हुई। इसने दुनिया के राजनीतिक माहौल को बदल दिया। दुनिया के विभिन्न हिस्सों में साम्राज्यवाद के खिलाफ राष्ट्रीय आंदोलन चल रहे थे। आजादी की माँग तेज हो गई थी। एशियाई और अफ्रीकी देशों के लोग अब आजादी के लिए और इंतजार नहीं कर सकते थे। दीर्घकाल तक चल रहे विश्वयुद्ध से साम्राज्यवाद की ताकतों पर करारी चोट पड़ी थी। ब्रिटेन की श्रेष्ठता पर सवालिया निशान लग गया था। सोवियत संघ पहले से अधिक शक्तिशाली बनकर उभरा था। ब्रिटेन की कंजर्वेटिव पार्टी चुनाव हार गई और भारत की आजादी का समर्थन करने वाली लेबर पार्टी सत्ता में आ गई। क्लिमेंट एटली उसके नेता थे। भारत में ब्रिटिश सरकार 1942 में बंगाल के अकाल पीड़ित लोगों के प्रति बड़ी निष्ठुरता दिखाई। इसने विदेशी शासन के खिलाफ भारतीयों के गुस्से को और अधिक भड़का दिया।

प्रश्न 12. भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन की मुख्य विशेषताएँ क्या थीं ?
उत्तर – भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन की विशेषताएँ-भारत की आजादी की लड़ाई कई मायने में अनूठी है। यह एक गौरवशाली ऐतिहासिक संघर्ष है। भारत दुनिया के सबसे ताकतवर साम्राज्य के खिलाफ संघर्ष में कर रहा था। ‘जहाँ सूरज कभी नहीं डूबता था’ और उसे सफलता मिली। आंदोलन की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

1. यह एक जनांदोलन था। धर्म, जाति, क्षेत्र, भाषा और लिंग की सीमाएँ पार करते हुए लाखों लोगों ने उसमें हिस्सा लिया।
2. इस जनांदोलन ने लोगों में एकता लाई। लोग पूरी तरह प्रतिवद्ध थे और सत्य, अहिंसा और इंसाफ के रास्ते पर चलते हुए इस संघर्ष औपनिवेशिक सरकार के जुल्मो-सितम का उन्हें डर नहीं था। उन्होंने जो साहस और एकजुटता दिखाई, वह हमारे लिए एक बेमिसाल विरासत है।

3. जनभागीदारी के अलावा संघर्ष की शांतिपूर्ण और अहिंसक प्रकृति ने उसे हमारी गौरवशाली विरासत का हिस्सा बना दिया।

4. राष्ट्रीय आंदोलन संसदीय लोकतंत्र और नागरिक अधिकारों के प्रति पूरी तरह प्रतिबद्ध था। जब-जब उन उसूलों का उल्लंघन हुआ, चाहे वह उल्लंघन एशिया में हुआ हो या अफ्रीका में हुआ हो, भारत ने हमेशा लोगों की आजादी का समर्थन किया।

प्रश्न 13. कैबिनेट मिशन योजना क्या थी ? क्या कांग्रेस और मुस्लिम लीग ने यह योजना स्वीकार की ?
उत्तर – 1946 की शुरूआत में ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों हाथों सत्ता के हस्तांतरण की शर्तों के संबंध में भारतीय नेताओं के साथ वार्ता के लिए एक कैबिनेट मिशन भेजा। कैबिनेट मिशन ने भारत का एक संघ गठित करने का प्रस्ताव किया जिसमें प्रदेशों को चार क्षेत्रों में श्रेणीबद्ध करने की बात थी। प्रत्येक क्षेत्र का अपना संविधान और विदेशी नीति, रक्षा तथा संचार को छोड़कर बाकी तमाम मामलों में उन्हें स्वायत्तता हासिल होती।

इस योजना में संविधान के निर्माण हेतु एक निकाय के  गठन की भी व्यवस्था थी जिसका चुनाव प्रांतीय विधानमंडलों से होता ।

प्रश्न 15. भारत छोड़ो आंदोलन को दबाने के लिए सरकार द्वारा क्या कदम उठाए गए ?.
उत्तर – भारत छोड़ो आंदोलन एक देशव्यापी आंदोलन था। इसे दबाने के लिए ब्रिटिश सरकार ने हर संभव प्रयास किया औपचारिक रूप से कांग्रेस नेता इस आंदोलन को प्रारंभ कर पाते इससे पहले ही सभी महत्त्वपूर्ण नेताओं को सुबह होने से पहले 9 अगस्त, 1942 की बंदी बना लिया गया और कांग्रेस को गैर-कानूनी घोषित कर दिया. प्रेस पर सेंसर लागू कर दिया। ब्रिटिश हुकूमत अपने सेना व पुलिस के माध्यम से भारतीय लोगों पर बहुत बुरी तरह से टूट पड़ी। बिना देखे गोलियाँ दागी गई। मिदनापुर जिले में 44 लोग गोली के शिकार हो गए जिनमें एक 73 वर्षीय महिला मेतांगनी हजारा भी थी जिसने गोली लग जाने के बाद भी राष्ट्र ध्वज ऊँचा उठाए रखा। बहुत से युवा लड़के व लड़कियाँ जैसे बिहार के श्रीश कुमार तथा गोहपुर असम के कनकलता बरुआ की गोली मारकर हत्या कर दी गयी।

NIOS Class 10th सामाजिक विज्ञान (पुस्तक – 1) Question Answer in Hindi

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