Facebook Twitter Vimeo VKontakte Youtube
  • Class 6
  • Class 7
  • Class 8
  • Class 9
  • Class 10
  • Class 11
  • Class 12
Search
Sign in
Welcome! Log into your account
Forgot your password? Get help
Password recovery
Recover your password
A password will be e-mailed to you.
Last Doubt
  • Class 6
  • Class 7
  • Class 8
  • Class 9
  • Class 10
  • Class 11
  • Class 12
Home Class 10th NIOS Class 10th Social Science (213) Chapter – 7 ब्रिटिश शासन के...

NIOS Class 10th Social Science (213) Chapter – 7 ब्रिटिश शासन के विरुद्ध लोकप्रिय जन प्रतिरोध (Popular Resistance Against British Rule) Notes In Hindi

March 16, 2023
Facebook
Twitter
Pinterest
WhatsApp
Linkedin

    NIOS Class 10th Social Science (213) Chapter – 7 ब्रिटिश शासन के विरुद्ध लोकप्रिय जन प्रतिरोध (Popular Resistance Against British Rule) 

    TextbookNIOS
    Class10th
    Subjectसामाजिक विज्ञान (Social Science)
    Chapter7th
    Chapter Nameब्रिटिश शासन के विरुद्ध लोकप्रिय जन प्रतिरोध
    CategoryClass 10th सामाजिक विज्ञान
    MediumHindi
    SourceLast Doubt

    NIOS Class 10th Social Science (213) Chapter – 7 ब्रिटिश शासन के विरुद्ध लोकप्रिय जन प्रतिरोध Notes In Hindi ब्रिटिश शासन के बढ़ते विरोध में किन कारकों का परिणाम हुआ?, किस वर्ष भारतीय ने ब्रिटिश शासन का हिंसक विरोध किया था?, भारत में ब्रिटिश शासन का वास्तविक संस्थापक कौन था?, भारत में ब्रिटिश शासन के परिणाम क्या हैं?, ब्रिटिश शासन की मुख्य विशेषता क्या है?, भारत में ब्रिटिश शासन के दो सकारात्मक प्रभाव क्या थे?, ब्रिटिश शासन का प्रमुख कौन है?, ब्रिटेन का दूसरा नाम क्या है?, ब्रिटेन में लोकतंत्र का उदय कैसे हुआ?, ब्रिटिश शासन का मुख्य उद्देश्य क्या था?, ब्रिटिश शासन पर क्या प्रभाव पड़ा?, ब्रिटिश शासन के सामाजिक प्रभाव क्या थे?, ब्रिटिश शासन से आप क्या समझते हैं?, भारत में ब्रिटिश शासन कब लागू हुआ?, भारत में ब्रिटिश शासन कब आया था?, भारत में ब्रिटिश शासन का अंत कैसे हुआ?, ब्रिटिश साम्राज्य के पतन का कारण क्या था?, ब्रिटिश शासन से भारत को कैसे लाभ हुआ?, ब्रिटिश भारत के प्रथम गवर्नर जनरल कौन थे?, भारत का पहला वायसराय कौन है?, भारत का सबसे अच्छा वायसराय कौन था?, भारत का अंतिम ब्रिटिश गवर्नर जनरल कौन?

    NIOS Class 10th Social Science (213) Chapter – 7 ब्रिटिश शासन के विरुद्ध लोकप्रिय जन प्रतिरोध (Popular Resistance Against British Rule) 

    Chapter – 7

    ब्रिटिश शासन के विरुद्ध लोकप्रिय जन प्रतिरोध

    Notes

    अंग्रेजी शासन के विरुद्ध प्रतिरोध आंदोलन प्रारंभिक (1750 – 1858)

    क्या आप किसी ऐसे कारण से संबंध में सोच सकते हैं जिसकी वजह से जो आंदोलन लोकप्रिय कहा जाता है क्या इसका कारण लोगों की बहुत बड़ी संख्या है जिन्होंने इनमें भाग लिया? अथवा इनकी आंदोलन को मिली अपार सफलता इसको पढ़ने के बाद आप किसी निर्णय तक पहुंचे योग्य होंगे

    जन विरोध व प्रतिरोध के कारण

    लोग विरोध क्यों करते हैं तभी विरोध करते हैं जब उन्हें अनुभव होता है की सभी प्रतिरोध आंदोलन किसी ना किसी प्रकार के शोषण हुए के विरुद्ध प्रारंभ  जिसकी नीतियों ने भारतीयों के अधिकार प्रतिष्ठा और आर्थिक स्थिति स्थितियां अवमानना की वे सभी इसी शोसन का प्रतीक थी

    जनविद्रोह व प्रतिरोध की प्रकृति

    अपना विरोध प्रकट करने के लिए विद्रोहियों द्वारा दमनकारियो ं के प्रतिरोध में हिंसा और लूटपाट जैसे हथियारों का प्रयोग किया जाता था । निम्न और शोषित वर्ग प्राय: अपने शोषकों पर आक्रमण करते थे। यह शोषक थे अंग्रेज या जमींदार अथवा लगान एकत्र करने वाले अधिकारी, धनी व्यक्तियों के समूह और व्यक्ति । संथाल विद्रोह में बहुत बड़े स्तर पर हिंसा देखने में आई जहाँ सूदखोरों के बही-खातों और सरकारी भवनों को जला दिया गया और शोषकों को दण्ड दिया गया।पिछले पाठ में हमने अंग्रेजों की भूमि संबंधी नीतियों के संबंध में पढ़ा।

    इनका उद्देश्य था किसानों और जनजातिय लोगों से यथासंभव अधिक से अधिक धन निकलवाना । इसने किसानों और जनजातियों में इतना असंतोष भर दिया कि उन्होंने अंग्रेजों के विरूद्ध अपना क्रोध प्रदर्शित करना शुरू कर दिया। यह जानना बहुत महत्वपूर्ण है कि इन लोकप्रिय विद्रोही आ ंदोलनों का उद्देश्य था पुरानी संरचनाओं और संबंधों का पुनरुत्थान करना जिन्हें अंग्रेजों ने नष्ट कर दिया था। प्रत्येक सामाजिक वर्ग के पास औपनिवेशिक शक्तियों के विरूद्ध आवाज उठाने के अपने निजी कारण थे। उदाहरणतया पदच्युत जमींदार और शासक अपनी जमीन और संपदाएँ पुनः प्राप्त करना चाहते थे। इसी प्रकार, जनजातीय समूहों ने इसलिए विद्रोह किया कि वे नहीं चाहते थे कि व्यापारी और सूदखोर उनके जीवन में हस्तक्षेप करें।

    19वीं शताब्दी में किसानों और जनजातियों के विद्रोह

    आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि 1760 की कालावधि से शुरू करें तो सन्यासी विद्रोह और बंगाल और बिहार में मछुआरों के विद्रोह तक शायद ही कोई वर्ष होगा जिसमें कोई सैनिक विद्रोह नहीं हुआ। 1763 से 1856 तक छोटे-छोटे विद्रोहों को छोड़कर 40 मुख्य विद्रोह हुए। तथापि, यह सभी विद्रोह विशिष्टताओं और प्रभाव की दृष्टि से स्थानीय ही थे। वे सभी परस्पर भिन्न प्रकृति के थे क्योंकि प्रत्येक विद्रोह का भिन्न लक्ष्य था। इस पाठ के अगले खंड में हम इन आ ंदोलनों के संबंध में अधिक विस्तार से पढेंगे।

    किसान विद्रोह

    पिछले पाठ में आपने विविध भू-व्यवस्थाओं उनके भारतीय किसानों पर पड़े प्रतिकूल प्रभावों के संबंध में पढ़ा। स्थाई व्यवस्था (पर्मानेन्ट सैटलमेंट) ने जमीदारों को भूमि का स्वामी बना दिया था, परंतु यदि वे समय पर लगान अदा करने में असफल रहें तो उनकी जमीन को बेचा जा सकता था। इसने जमीदारों और भू-स्वामियों को किसानों से धन छीनने के लिए मजबूर कर दिया, चाहे उनकी सारी फसल नष्ट हो गई हो। यह किसान प्रायः ऋणदाताओं से ऋण लेते थे जिन्हें महाजन भी कहा जाता था। वे दरिद्र किसान उनसे लिए गए ऋण को कभी भी लौटा नहीं पाते थे। इसके कारण उन्हें घोर दरिद्रता जैसे कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था और उन्हें बंधुआ मजूदरों की तरह काम करने के लिए बाध्य किया जाता था। अत: निम्न एवं शोषित वर्ग के लोग अपने शोषकों पर प्रायः आक्रमण करते रहते थे। जमीदारों द्वारा लगान का भुगतान न करने का तात्पर्य यह भी था कि अंग्रेजों द्वारा उनकी जमीन को छीन लिया जाएगा।

    नील विद्रोह (1859-1862 )

    अंग्रेजों ने अनेक ऐसे उपायों को अपनाया जिनसे उनके लाभों में वृद्धि हो सकती थी। उन्होंने लोगों के जीवन-यापन के बुनियादी साधनों में हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया। उन्होंने न केवल नई फसलों की शुरुआत की बल्कि खेतीबाड़ी की नई तकनीकें भी शुरू कर दी। किसानों और जमींदारों पर भारी कर अदा किए जाने और वाणिज्यिक फसलें उगाने के लिए गहरा दबाव डालना शुरू कर दिया। ऐसी ही एक वाणिज्यिक फसल थी नील की खेती। नील की खेती का निर्धारण अंग्रेजों के कपड़ा बाजार के अनुरूप ही किया जाता था। नील की खेती करने वाले किसानों को मुख्यतया तीन कारणों से असंतोष था:

    • नील उगाने के लिए उन्हें बहुत कम भुगतान किया जाता था।
    • नील की खेती लाभप्रद भी नहीं थी क्योंकि इसकी और खाद्यानन फसलों की
      अवधि एक ही थी।
    • नील की खेती के परिणामस्वरूप मिट्टी की उर्वराशक्ति समाप्त होना।

    फरायजी आंदोलन (1838-1848)

    यह अंग्रेजी सरकार के विरूद्ध सर्वप्रथम “कोई कर नहीं” दिए जाने संबंधी अभियान था जिसका नेतृत्व शरायतुल्लाह खान और दादू मियां ने किया। उनके स्वयंसेवकों की टुकड़ियों (बैंउस) ने नील बागान के मालिकों और ज़मीदारों से बड़ी बहादुरी के साथ युद्ध किया। इसने बंगाल के सभी खेतीहरों को भू-स्वामियों के अत्याचार और गैर-कानूनी वसूलियों के विरूद्ध एकजुट कर दिया।

    वहाबी आंदोलन (1830-1860 )

    इस आंदोलन के बरेलवी जो कि अरब के अब्दुल वहाब और दिल्ली के से बहुत प्रभावित थे। मूलतः यह आंदोलन धार्मिक प्रकृति का था। शीघ्र ही कुछ स्थानों पर इसने वर्ग संघर्ष का रूप ले लिया, विशेष रूप से बंगाल में जहाँ सांप्रदायिक विभेदों के बावजूद किसान अपने ज़मीदारों के विरूद्ध एकजुट हुए।

    किसान विद्रोह की सार्थकता

    अंग्रेजों की आक्रामक आर्थिक नीतियों ने भारत की पारंपरिक कृषि प्रणाली को तहस-नहस कर दिया और किसानों की हालत को दयनीय बना दिया। देश के विभिन्न भागों में होने वाले किसान विद्रोह मुख्यतः इन्हीं नीतियों से निर्देशित थे। यद्यपि इन विद्रोहों का उद्देश्य भारत से अंग्रेज़ी राज को उखाड़ फेंकने का नहीं था, फिर भी इन्होंने भारतीयों में एक जागरूकता अवश्य पैदा की। अब उन्होंने और दमन के विरूद्ध संगठिन होने और मिलकर इसके खिलाफ लड़ने की आवश्यकता अनुभव की। संक्षेप में कहें तो इन विद्रोहों ने अनेक अन्य प्रतिरोधों के लिए भूमिका तैयार की जैसे कि पंजाब में सिखों के युद्ध और अंत 1857 का विद्रोह |

    जनजातीय विद्रोह

    एक अन्य समूह जिसने अंग्रेजी राज के विरूद्ध विद्रोह किया वे थे जनजाति के लोग । जनजातीय समूह भारतीय जीवन का एक महत्वपूर्ण और अभिन्न हिस्सा थे। इनके सहयोजन और तत्पश्चात् इन्हें अंग्रेजी प्रदेशों में सम्मिलित किए जाने से पहले इनकी निजी सामाजिक और आर्थिक प्रणालियाँ थीं। यह प्रणालियाँ पारंपरिक प्रकृति की थीं और जनजातियों की आवश्यकताओं को संतुष्ट करती थीं। प्रत्येक समुदाय का एक मुखिया होता था जो उस समुदाय के सभी मामलों के प्रबंधन में पूरी तरह स्वतंत्र होता थे। जमीन और जगल उनकी जीविका के मुख्य संसाधन थे। जीवित रहने के लिए जिन बुनियादी चीजों की उन्हें आवश्यकता होती थी उनकी पूर्ति जंगलों से होती थी। जनजातीय समुदाय गैर-जनजातीय समुदायों से बिलकुल अलग-अलग रहते थे।

    1857 का विद्रोह- कारण, दमन और परिणाम

    1857 का विद्रोह 10 मई को जब प्रारंभ हुआ जब भारतीय सैनिकों ने मेरठ में बगावत कर दी। अंग्रेजों ने इसे सिपाही विद्रोह का नाम दिया, परंतु अब इसे अंग्रेजों के विरूद्ध स्वाधीनता प्राप्ति का प्रथम युद्ध माना जाता है। भारतीय सैनिकों ने अपने यूरोपीय अधिकारियों को मार गिराया और दिल्ली की ओर कूच कर दिया। वे लाल किले में प्रवेश कर गये और उन्होंने वयोवृद्ध और शक्तिहीन मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर को भारत का सम्राट घोषित कर दिया। यह विद्रोह अंग्रेजों की आक्रामक साम्राज्यिक नीतियों के विरूद्ध, एक बड़ा औपनिवेशीय- विरोधी आंदोलन था। वास्तव में यह आंदोलन अंग्रेजी शासन के विरूद्ध एक आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक संघर्ष था। क्रोध की इस विस्फोटक अभिव्यक्ति और असंतोष ने भारत के बहुत बड़े भाग में औपनिवेशिक शासन की नींव हिलाकर रख दी। अब हम, भारतीय लोगों में अंग्रेजी शासन के विरूद्ध उभरे असंतोष के कारणों के संबंध में अध्ययन करेंगे जिन्होंने विद्रोह करवाया।

    विद्रोह की प्रकृति

    1857 के विद्रोह आंदोलन की चारों ओर आज भी एक बहस जारी है। अंग्रेज इतिहासकार 1857-1858 की घटनाओं को सैनिकों द्वारा की गई सैनिक बगावत मानते हैं। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि 1857 से पहले भी सैनिकों द्वारा अनेक विद्रोह किए गए। इसका एक उदाहरण है जुलाई 1806 में वेल्लूर की सैनिक बगावत । जहाँ भारतीय सैनिकों ने ईस्ट इंडिया कंपनी के गैरिजन के खिलाफ विद्रोह किया था। बेशक बहुत जल्दी अनुशासन बहाल कर दिया गया था और यह विद्रोह सैनिक छावनी में दीवारों तक ही सीमित रहा।परंतु यदि आप 1857 के तथ्यों का गहराई से अध्ययन करें तो आपको इसका अंतर स्पष्ट दिखाई देगा। विद्रोह के आंदोलन की शुरुआत सैनिकों द्वारा की गई थी परंतु बहुत बड़ी संख्या में असैनिक जनमानस भी इसके साथ जुड़ गए थे। किसानों और शिल्पियों द्वारा इसमें भाग लिए जाने की वजह से यह आंदोलन बहुत दूर-दूर तक फैला और एक लोकप्रिय घटना बन गया। यहां तक कि कुछ क्षेत्रों में साधारण जनता ने सैनिकों से पहले ही विद्रोह कर दिया था। इससे यही पता चलता है कि स्पष्टतया यह एक लोकप्रिय विद्रोह था। इसे हिन्दु मुस्लिम एकता के रूप में पहचाना गया। विभिन्न क्षेत्रों में भी एकता का अस्तित्व दिखाई दिया। देश के एक भाग के विद्रोहियों ने अन्य क्षेत्रों के लोगों को लड़ाई करने में सहायता की। इस विद्रोह को अंग्रेजी शासन के विरूद्ध भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम के रूप में देखा जाना चाहिए।

    विद्रोह की असफलता

    यद्यपि यह विद्रोह भारत के इतिहास की एक बहुत बड़ी घटना रही है तथापि एक संगठित और शक्तिशाली शत्रु के विरूद्ध सफलता प्राप्त करने के लिए इनके पास बहुत कम ही अवसर थे। विद्रोह के शुरु होने के एक वर्ष के भीतर ही इसे दबा दिया गया। 1857 के विद्रोह की असफलता के अनेक कारण थे। बागियों के उद्देश्य में एकरूपता नहीं थी। बंगाल के सैनिक मुगलों की खोई शानो-शौकत को पुनः जीवित करना चाहते थे जबकि नाना साहिब और तात्या टोपे ने मराठा शक्ति को पुनः स्थापित करने का प्रयास किया। रानी लक्ष्मी बाई ने झांसी को पुनः प्राप्त करने के लिए लड़ाई की जोकि उसने ‘अधिग्रहण के सिद्धांत की’ अंग्रेजी नीति के परिणामस्वरूप खो दी थी। दूसरे यह विद्रोह अधिक क्षेत्रों तक फैला हुआ नहीं था बल्कि उत्तर और मध्य भारत तक सीमित रहा।

    विद्रोह की सार्थकता और प्रभाव

    1857 के विद्रोह का प्रथम लक्षण था कि भारतीय अंग्रेजी शासन को समाप्त करना चाहते थे और इस लक्ष्य के लिए संगठित रूप से उनका मुकाबला करने के लिए खड़े होने के लिए भी तैयार थे। यद्यपि वे अपने उद्देश्य प्राप्त करने में असफल रहे परंतु वे भारतीयों के मन में राष्ट्रीयता के बीज बोने में सफल रहे। भारतीय लोग उन बहादुरों के लिए और भी जागरूक हो गए थे, जिन्होंने इस विद्रोह में अपने जीवन का बलिदान किया। तथापि, यहीं से हिन्दुओं और मुसलमानों में परस्पर अविश्वास की शुरुआत हुई, जिसका बाद में अंग्रेजों ने भारत में शासन जारी रखने के लिए शोषण किया।

    विद्रोह की सार्थकता और प्रभाव

    1857 के विद्रोह का प्रथम लक्षण था कि भारतीय अंग्रेजी शासन को समाप्त करना चाहते थे और इस लक्ष्य के लिए संगठित रूप से उनका मुकाबला करने के लिए खड़े होने के लिए भी तैयार थे। यद्यपि वे अपने उद्देश्य प्राप्त करने में असफल रहे परंतु वे भारतीयों के मन में राष्ट्रीयता के बीज बोने में सफल रहे। भारतीय लोग उन बहादुरों के लिए और भी जागरूक हो गए थे, जिन्होंने इस विद्रोह में अपने जीवन का बलिदान किया। तथापि, यहीं से हिन्दुओं और मुसलमानों में परस्पर अविश्वास की शुरुआत हुई, जिसका बाद में अंग्रेजों ने भारत में शासन जारी रखने के लिए शोषण किया।

    विद्रोह की विरासत

    1857 का विद्रोह इस दृष्टि से अद्वितीय है कि इसने जाति, समुदाय और वर्ग के बंधनों को समाप्त कर दिया। पहली बार भारत के लोगों ने एकजुट होकर अंग्रेजी शासन के लिए एक चुनौती खड़ी की। यद्यपि विद्रोहियों के प्रयासों को सफलता नहीं मिली फिर भी अंग्रेजी सरकार को भारत के प्रति अपनी नीतियों को बदलने के लिए बाध्य कर दिया। अगस्त 1858 में भारत में बेहतर सरकार अधिनियम के द्वारा बोर्ड ऑफ कंट्रोल और बोर्ड ऑफ डाइरेक्टरस को समाप्त कर दिया गया और भारत के लिए एक स्टेट सैक्रेटरी के पद का निर्माण किया गया जिसमें 15 सदस्यों की एक भारतीय परिषद को शामिल किया गया, ताकि वे भारत के वायसराय, वह पदनाम जिसे पहले भारत का गवर्नर जनरल कहा जाता था, की सहायता कर सकें। अगस्त 1858 में ब्रिटेन की साम्राज्ञी ने भारत का नियंत्रण ईस्ट इंडिया कंपनी से सीधे अपने हाथों में ले लिया और 1877 में रानी विक्टोरिया को भारत की साम्राज्ञी घोषित कर दिया गया। इसने भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन को समाप्त कर दिया। 1 नवंबर 1858 की उद्घोषण के द्वारा रानी ने यह घोषणा की कि कंपनी की नीतियों को जारी रखा जाएगा। भारत अंग्रेजी साम्राज्य का उपनिवेश बन गया। भारतीय शासकों को आश्वस्त किया गया कि गोद लेने के उपरांत उनके उत्तराधिकारी के अधिकार को मान्यता दी जाएगी। सम्राज्ञी ने वचन दिया कि कंपनी द्वारा भारत राज्य के शासकों के साथ की गई संधियों और करारनामो का मान रखा जाएगा।

    आपने क्या सीखा

    • भारत में अंग्रेजी शासन के विरूद्ध और नाराजगी का मुख्य कारण थे लोगों का उनके द्वारा दमन और शोषण ।
    • खेतीहर किसानों और जनजातियों के लोगों को अपनी ही जमीन से बेदखल करने से वे अपनी ही जमीन पर मजदूर बन गए थे। विभिन्न प्रकार के करों ने उनके जीवन को दयनीय बना दिया था।
    • जो लोग लघु कुटीर उद्योगों में लगे हुए थे उन्हें अंग्रेजों द्वारा उत्पादित सामान के आयात के परिणामस्वरूप अपने कारखाने बंद करने पड़े थे। इन सभी परिवर्तनों और अंग्रेजी प्रशासन के गैर-जिम्मेदार व्यवहार के कारण किसानों को अपनी शिकायतों की अभिव्यक्ति विद्रोह के द्वारा प्रदर्शित करने के लिए मजबूर होना पड़ा।
    • दुर्भाग्यवश संगठित अंग्रेजी सशस्त्र बालों के समक्ष यह विद्रोह सफल नहीं हो पाए परंतु इन विद्रोहों ने भारत में ब्रिटिश राज के भविष्य को चुनौती देने की राह खोल दी थी।
    • 1857 का विद्रोही आंदोलन अंग्रेजी सत्ता के सामने एक बड़ी चुनौती था। इसका नेतृत्व सैनिकों ने किया परंतु सामान्य लोगों ने भी इसका समर्थन किया। 1857 के विद्रोह के लिए आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक और सैनिक कारण उत्तरदायी थे – चर्बी लगे कारतूसों की घटना इसका तात्कालिक कारण बनी।
    • भारत का एक बहुत बड़ा हिस्सा इससे प्रभावित हुआ । विद्रोह के मुख्य केन्द्र थे मेरठ, दिल्ली, कानपुर, लखनऊ, झांसी, बरेली और आरा। विद्रोह के कुछ मुख्य नेता थे। बख्त खान, नाना साहिव, तात्या टोपे, अजी मुल्लाह, बेगम

    NIOS Class 10th सामाजिक विज्ञान (पुस्तक – 1) Notes in Hindi

    • Chapter – 1 प्राचीन विश्व
    • Chapter – 2 मध्यकालीन विश्व
    • Chapter – 3 आधुनिक विश्व – Ⅰ
    • Chapter – 4 आधुनिक विश्व – Ⅱ
    • Chapter – 5 भारत पर ब्रिटिश शासन का प्रभाव : आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृति (1757-1857)
    • Chapter – 6 औपनिवेशिक भारत में धार्मिक एवं सामाजिक जागृति
    • Chapter – 7 ब्रिटिश शासन के विरुद्ध लोकप्रिय जन प्रतिरोध
    • Chapter – 8 भारत का राष्ट्रीय आन्दोलन
    • Chapter – 9 भारत का भौतिक भूगोल
    • Chapter – 10 जलवायु
    • Chapter – 11 जैव विविधता
    • Chapter – 12 भारत में कृषि
    • Chapter – 13 यातायात तथा संचार के साधन
    • Chapter – 14 जनसंख्या हमारा प्रमुख संसाधन

    You Can Join Our Social Account

    YoutubeClick here
    FacebookClick here
    InstagramClick here
    TwitterClick here
    LinkedinClick here
    TelegramClick here
    WebsiteClick here
    Facebook
    Twitter
    Pinterest
    WhatsApp
    Linkedin
      LastDoubt