NIOS Class 10th Social Science (213) Chapter – 5 भारत पर ब्रिटिश शासन का प्रभाव : आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक (1757-1857) (Impact of British Rule on India: Economic, Social and Cultural (1757-1857))
Textbook | NIOS |
Class | 10th |
Subject | सामाजिक विज्ञान (Social Science) |
Chapter | 5th |
Chapter Name | भारत पर ब्रिटिश शासन का प्रभाव : आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक |
Category | Class 10th सामाजिक विज्ञान |
Medium | Hindi |
Source | Last Doubt |
NIOS Class 10th Social Science (213) Chapter – 5 भारत पर ब्रिटिश शासन का प्रभाव : आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक (1757-1857) (Impact of British Rule on India: Economic, Social and Cultural (1757-1857)) Notes In Hindi ब्रिटिश शासन का भारत पर क्या आर्थिक प्रभाव पड़ा विस्तार से बताइए?, ब्रिटिश आर्थिक नीतियों का भारतीय समाज पर क्या प्रभाव?, ब्रिटिश शासन के सामाजिक प्रभाव क्या थे?, ब्रिटिश आर्थिक नीतियों का भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ा?, भारत में ब्रिटिश शासन के परिणाम क्या थे?, भारत में ब्रिटिश शासन के आर्थिक प्रभाव को समझना क्यों महत्वपूर्ण था?, ब्रिटिश शासन से भारत को कैसे लाभ हुआ?, ब्रिटिश शासन से भारतीयों को कौन से मुख्य लाभ हुआ?, भारत में ब्रिटिश शासन के सकारात्मक प्रभाव क्या थे?, ब्रिटिश शासन की मुख्य विशेषता क्या है?
NIOS Class 10th Social Science (213) Chapter – 5 भारत पर ब्रिटिश शासन का प्रभाव : आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक (1757-1857) (Impact of British Rule on India: Economic, Social and Cultural (1757-1857))
Chapter – 5
भारत पर ब्रिटिश शासन का प्रभाव : आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक
Notes
ब्रिटिश के भारत आने के कारण यूरोपीय तथा ब्रिटिश व्यापारों आरंभ में भारत में व्यापार करने के उद्देश्य से आये थे। ब्रिट्रिश हुई औद्यो गिक क्रान्ति ने वहा के का रखा नों के लिए कच्चे माल की मांग बढ़ा दी थी। साथ-साथ वे अपना तैया रमाल भी भारतीय बाजारों में बेचना चाहते थे। भारत ने ब्रिटेन की सभी जरूरतों को पूरा करने के लिए उसे एक ऐसा ही आधार उपलब्ध करवाया। 18सदी में भारत में भी आंतंरिक सत्ता के लिए संघर्ष की स्थितिथी और मुगल साम्राज्य की शक्ति भी कम ही रही थी। अतः ब्रिट्रिश अधिकारियों के पास भारतीय क्षेत्र पर अपनी पकड़ स्थापित करने का अवसर था। उन्हों ने कई युद्धों के माध्यम से थोपी हुई संधियों से अनुबन्धों से और पूरे देश में विभिन्न क्षेत्रीय शक्ति यों के साथ गठजोड़ किया। |
भारत में उपनिवेशीकरण के तरीके यूरोप के नक्शे को देखो; आपको उस पर कई बड़े और छोटे राज्य मिल जाएंगे, जब यूरोप में औद्योगिक क्रांति शुरू हुई इन छोटे राज्यों के पास अपने उद्योगों के लिए कच्चा माल और तैयार माल के लिए बाजार नहीं था। अब इन देशों ने एशिया और अफ्रीका में बाजार को तलाश करना शुरू कर दिया। इंग्लैंड भारत के साथ व्यापार नियंत्रित करने में सफल रहा और 1600 में ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना की। इस कंपनी को ब्रिट्रिश सरकार द्वारा समर्थन मिला। इसकी मदद से इंग्लैंड भारतीय उपमहाद्वीप में अपनी क्षेत्रीय सीमाओं का विस्तार करने में सफल हो गया। |
(i) आंग्ल-मैसूर युद्ध हैदरअली और उसके पुत्र टीपू सुल्तान के सक्षम नेतृत्व में मैसूर एक शक्तिशाली राज्य के रूप में 18वीं सदी के उत्तरार्ध में उभरा। अंग्रेजों और मैसूर के बीच चार युद्ध हुए और अंत में चौथे आंग्ल मैसूर युद्ध 1799 में वीरतापूर्ण हार और टीपू सुल्तान की मृत्यु से मैसूर और अंग्रेजों के बीच संघर्ष का एक गौरवशाली अध्याय समाप्त हो गया। कनारा, कोयम्बटर और श्रीरंगापटनम जैसे बड़े बंदरगाह अंग्रेजों द्वारा सुरक्षित अधिकार में ले लिए गए। |
(ii) एंग्लो-मराठा युद्ध अठारहवीं सदी के उत्तरार्ध में मराठे पश्चिमी और मध्य भारत में एक और दुर्जेय शक्ति बन गए थे। लेकिन आपस में सत्ता के लिए संघर्ष के कारण अंग्रेजों को उनके आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने का अवसर मिला। सहायक संधि (जिसके बारे में आप 5.2.1 में पढ़ेंगे) अंग्रेजों और मराठों के बीच कई युद्धों का कारण बनी। तीसरा एंग्लो मराठा युद्ध (1817-1819)ए उन दोनों के बीच अन्तिम युद्ध था। अंग्रेजों ने पेशवा को हराकर गद्दी और उसके सभी प्रदेशों पर कब्जा कर लिया। पेशवा की पेंशन बन्द कर दी और उसे उत्तर प्रदेश में कानपुर के निकट बिठुर भेज दिया। |
(iii) आंग्ल सिख युद्ध उत्तर-पश्चिम भारत में, सक्षम नेता महाराजा रणजीत सिंह (1792-18ए) को नेतृत्व में सिख एक प्रभावी राजनीतिक और सैन्य शक्ति बन ब्रिट्रिश सत्ता के विरूद्ध एक खतेरे के रूप में उभरे। |
आर्थिक प्रभाव औद्योगिक क्रांति ने अंग्रेजी व्यापारियों की प्रशिया, अफ्रीका और अमेरिका के देशों से प्रचूर मात्रा में पूंजी इकट्ठा करने में मदद की थी। अब वे इस धन का उपयोग उद्योग लगाने व भारत में व्यापार करने में लगाना चाहते थे। आज जो हम वस्तुओं का मशीनों से बड़ी मात्रा में उत्पादन देखते हैं, की शुरूआत औद्योगिक क्रांति के माध्यम से शुरू हुई थी, जो 18वीं सदी के अंत में और 19वीं सदी के आरंभ में इंग्लैंड में हुई। इससे तैयार माल के उत्पादन में व्यापक बढ़ोतरी हुई। ईस्ट इंडिया कंपनी को औद्योगिक और वित्तीय आधार फैलाने में मदद मिली। इस समय इंग्लैंड में उत्पादकों का एक ऐसा वर्ग था जो व्यापार की तुलना में वस्तुओं के उत्पादन से अधिक कमाता था। यह वर्ग भारत से कच्चे माल के आयात तथा तैयार माल के भारत निर्यात में अधिक रूचि रखता था। 1793 तथा 1813 के मध्य ब्रिट्रिश निर्माताओं ने कम्पनी के विरूद्ध एक अभियान चलाया जिससे उसका व्यापार पर से एकाधिकार समाप्त हो जाए। परिणामस्वरूप उन्होंने भारतीय व्यापार पर ईस्ट इण्डिया कम्पनी के एकाधिकार का उन्मूलन करने में सफलता प्राप्त कर ली। इससे भारत औद्योगिक इंग्लैण्ड का आर्थिक उपनिवेश बन गया। आइए अब हम भारतीय उद्योग एवं व्यापार पर पड़े प्रभाव के विषय में ज्यादा पढ़े। |
वस्त्र उद्योग और व्यापार पहले भारतीय हथकरघा उत्पादों का यूरोप में एक बड़ा बाजार था। भारतीय वस्त्र जैसे रेशम, कपास, लिनन और ऊनी माल के लिए पहले से ही एशिया और अफ्रीका में बाजार था। इंग्लैण्ड में औद्योगिकरण के आने के साथ वहां वस्त्र उद्योग महत्वपूर्ण बन गया। अब ब्रिटेन और भारत के बीच कपड़ा व्यापार की दिशा पलट गई। भारतीय बाजार में अंग्रेजी कारखानों से मशीन के बने कपड़े बड़े पैमाने पर आयात होने लगे। इंग्लैण्ड में मशीनों से निर्मित उत्पादों का बड़ी मात्रा में आयात भारत के उद्योगों के लिए खतरा बन गया क्योंकि ब्रिट्रिश माल को सस्ती कीमत पर बेचा जाता। |
बहरीयार गरेरिया खानबदोश की केस स्टडी “बिहार गया जिले में भेड़ के 75 परिवारों के समुदाय ने धन की कमी के कारण कंबलबुनना बंद कर दिया” ऐसा संडे ट्रिब्यून स्पैक्ट्रम नामक अखबार में 11 मार्च 2012 को छपा। क बुनकर कहते हैं,“हम बाजार में बेचे जा रहे कम्बलों के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकते।” एक अन्य का कहना है, “हम गांवों में अपने उत्पादों को बेचने के लिए मजबूर हैं क्योंकि शहरी बाजार तक हमारी पहुंच नहीं है। ”ब्रिटिश भारत के दौरान और वर्तमान भारत में बुनकरों की स्थिति की तुलना करें। यह एकजैसी है या अलग? आप इस स्थिति में सुधार के लिए क्या सुझाव देना चाहोगे? |
भूमि राजस्व नीति और भूमि निपटान प्राचीन काल से लोगों के लिए आजीविका का मुख्य स्रोत कृषि था इसलिए सारे संसार में ‘भूमि कर’ सभी सम्राटों के लिए राजस्व का मुख्य स्रोत था। 18वीं सदी में भारतीय लोगों मुख्य व्यवसाय कृषि था। ब्रिट्रिश शासन के दौरान भूमि राजस्व बढ़ता गया। इसके लिए कई कारण थे। शुरू में ब्रिट्रिश भारत के साथ व्यापार करने के लिए आये थे। धीरे-धीरे वे भारत के विशाल क्षेत्र को जीत लेना चाहते थे जिसके लिए उन्हें धन की बहुत जरूरत थी। उन्हें व्यापार एवं कंपनी की परियोजनाओं तथा प्रशासन को चलाने के लिए रुपयों की जरूरत थी। ब्रिट्रिश भू-राजस्व व्यवस्था किसानों के कठिनाईयों का कारण बने। वे अपनी नीतियों और युद्ध अभियानों के लिए किसानों से धन निकलवाते थे। प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तरीका से भी राजस्व इकट्ठा किया जाता था। इससे प्रभावित लोग अपनी दैनिक जरूरतों को भी पूरा नहीं कर सकते थे क्योंकि उन्हें जमीन मालिकों और उनके लगान अधिकारियों को लगान कर देना पड़ता था। स्थानीय प्रशासन ग्रामीण गरीबों को राहत और प्राकृतिक न्याय प्रदान करने में विफल रहा। |
धन उधार देने वाले नए वर्ग का उदय राजस्व की समयावधि और अत्यधिक मांग ने किसानों का साहूकारों से ऋण लेने के लिए मजबूर किया। ये साहूकार अक्सर उच्च ब्याज लेकर किसानों का शोषण करते थे। अक्सर लेखांकन में जाली हस्ताक्षर और अंगूठे के छापों आदि अनुचित साधनों का प्रयोग करते थे। अंग्रेजों की नई कानून प्रणाली और नीति केवल साहूकारों या स्थानीय व्यापारियों या जमींदारों की सहायता करती थी। ज्यादातार मामलों में किसान पूर्ण ब्याज के साथ ऋण का भुगतान करने में विफल रहते थे। इस प्रकार धीरे-धीरे पैसा उधार देने वालों के हाथ से उनकी भूमि चली गई। |
नये मध्य वर्ग का उदय भारत में ब्रिट्रिश शासन का एक प्रमुख प्रभाव यह पड़ा कि एक नए मध्यम वर्ग का उदय हुआ। ब्रिट्रिश व्यावसायिक हितों की वृद्धि के साथ कुछ भारतीय लोगों को काम के छोटे- छोटे नए अवसर मिले। उन्होंने ज्यादातर एजेंटों और मध्यस्थों के रूप में ब्रिट्रिश व्यापारियों के लिए काम किया और बहुत धन कमाया। एक नया अभिजात वर्ग जो स्थायी बंदोबस्त की शुरूआत के बाद अस्तित्व में आया उसने भी अपन एक नया वर्ग बना लिया, पुराने दारों ने अपनी भूमि पर स्वामित्व खो दिया और उनकी भूमि को कई मामलों में जमीन मालिकों के एक नये वर्ग के द्वारा प्रतिस्थापित कर दिया गया। इन लोगों में से कुछ ने अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त की और उनका एक नया अभिजात वर्ग बन गया। ब्रिट्रिश सत्ता के प्रसार के साथ रोजगार के नये अवसर आए। भारतीय समाज में नयी कानूनी अदालतो, सरकारी अधिकारी और वाणिज्यिक एजेंसियों की शुरूआत हुई। अंग्रेजी शिक्षित लोगों को स्वाभाविक रूप से अपनी उपनिवेशिक शासकों से आवश्यक सरक्षण मिला। इस प्रकार अंग्रेजों ने भूस्वामियों के अलावा एक नया पेशेवर और सेवा करने वाला मध्यम वर्ग भी बनाया। |
परिवहन और संचार उस समय भारत में परिवहन का साधन बैलगाड़ी, ऊँट, और पीठ पर सामान ढोने वाले अन्य जानवर ही थे। दूसरी तरफ इंग्लैण्ड को रेलवे की जरूरत थी जो निर्यात बंदरगाहों के साथ उत्पादक क्षेत्रों को जोड़ सके और ब्रिट्रिश सामान को देश के विभिन्न भागों तक पहुँच सके। आज आप जो विशाल रेलवे का नेटवर्क देख रहे हैं वो अंग्रेजों द्वारा बनाया गया है। ब्रिट्रिश बैकरों और निवेशकों ने अपनी पूंजी रेलवे के निर्माण में लगाई। ब्रिट्रिश पूंजीपतियों को दो महत्वपूर्ण तरीके से लाभ हुआ। पहला व्यापार की वस्तुओं में, व्यापार करना बहुत आसान हो गया और बंदरगाहों के साथ आंतरिक बाजार को जोड़ना भी लाभदायक रहा। दूसरे, रेल इंजन, डिब्बे और रेल लाईनों के निर्माण के लिए पूंजी ब्रिटेन से आयी। ब्रिटेन पूंजीपतियों को रेलवे में निवेश से सरकार द्वारा 5 प्रतिशत की न्यूनतम लाभ की गारण्टी मिली। इन कंपनियों को 90 साल के पट्टे के साथ भूमि दी गई। |
समाज और संस्कृति पर ब्रिटिश प्रभाव भारत में अंग्रेजों के आने से समाज में कई परिवर्तन हुए। 19वी ं सदी में शुरू हत्या, बाल- विवाह, सती, बहु-विवाह जैसी सामाजिक कुप्रथाओं और कठोर जाति व्यवस्था प्रचलित थी। ये प्रथाएँ मानव की गरिमा और मूल्यों के विरूद्ध थी। जीवन के सभी स्तरों पर महिलाओं से भेदभाव किया जाता था और वे समाज का वंचित वर्ग मानी जाती थी। उनकी अपनी स्थिति में कोई सुधार के अवसर नहीं दिए गए थे। ऊँची जातियों के ब्राह्मण पुरूषों तक ही शिक्षा सीमित रह गई थी। ब्राह्मण वेदों का उपयोग करते थे जो संस्कृत में लिखे गये थे। पुरोहित महंगे अनुष्ठान बलिदान और जन्म या मृत्यु के बाद की रीतियों को करवाते रहते थे।जब ब्रिट्रिश भारत आए तो वे स्वतंत्रता, समानता आजादी और मानव अधिकार जैसे विचार के रूप में नए विचार यूरोप के पुनर्जागरण, सुधार आंदोलनों और विभिन्न क्रांतियों से यहां लाए। इन विचारों ने हमारे समाज के कुछ वर्गों के लोगों से कुछ करने के लिए अपील की और देश के विभिन्न भागों में कई सुधार आंदोलनों का नेतृत्व किया। इन आंदोलनों में सबसे आगे दूरदर्शी भारतीयों में राजाराम मोहनराय, सर सैयद अहमद खान, अरूणा आसफ अली और पंडिता रमबाई थे इन आंदोलनों से सामाजिक एकता आई और स्वतंत्रता, समानता की दिशा में प्रयास किए। कई कानूनी उपाय महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए शुरू किए गए। उदाहरण के लिए लार्ड बैंटिक ने 1829 में सती प्रथा पर प्रतिबंध लगाया। गवर्नर जनरल ने 1856 में विधवा पुनर्विवाह कानून पारित किया गया। एक कानून 1872 में पारित किया जिसमें अंतर – जाति और अंतर-साम्प्रदायिक विवाह को सहमति दी। 1929 में शारदा अधिनियम को पास करके बाल-विवाह पर रोक लगायी। एक अधिनियम पारित किया गया कि 14 वर्ष से नीचे आयु की लड़की और 18 वर्ष से कम आयु के लड़के की शादी अवैध मानी जाएगी। सभी आंदोलनों ने जाति व्यवस्था और विशेष रूप से अस्पृश्यता की प्रथा की आलोचना की। |
सामाजिक और सांस्कृतिक नीति ब्रिट्रिश विशाल लाभ कमाने की नीयम से भारत आये थे। इसका अर्थ है कि बहुत सस्ती दरों पर कच्चे माल को खरीद कर और तैयार माल की बिक्री अधिक कीमतों पर करके लाभ कमाना। ब्रिट्रिश भारतीयों को शिक्षित और अपनी वस्तुओं के उपभोग के लिए पर्याप्त आधुनिक बनाना चाहते थे। एक सीमा तक कि वे ब्रिट्रिश हितों के लिए हानिकारक साबित नहीं हों कुछ अंग्रेजों का मानना था कि पश्चिमी विचार आधुनिक और बेहतर थे, जबकि भारतीय विचार पुराने और निम्नतर थे। वास्तव में यह सच नहीं है। भारत के पास पारम्परिक ज्ञान था जो आज भी प्रासांगिक है। इस समय इंग्लैण्ड में रेडिकल्स का एक समूह था जो भारतीयों की दिशा में एक मानवतावादी विचारधारा रखते थे। वे चाहते थे कि भारत आधुनिक विज्ञान की प्रगतिशील दुनिया का एक भाग बने। लेकिन ब्रिट्रिश सरकार भारत को तेजी से आधुनिकीकरण के प्रति से सतर्क हो गई। अंग्रेजों ने यह जान लिया था कि अगर धार्मिक विश्वासों और सामाजिक रिवाजों में ज्यादा हस्तक्षेप किया गया तो लोग प्रतिक्रिया करेंगे। वे भारत में अपने शासन को स्थायी बनाना चाहते थे और लोगों के बीच कोई भी प्रतिक्रिया नहीं चाहते थे। इसलिए यद्यपि अंग्रेज सुधारों की बात करते थे, पर वास्तव में उन्होंने आधे-अधूरे मन से कुछ कदम उठाए। |
शिक्षा नीति ब्रिट्रिश ने भारत में अंग्रेजी भाषा शुरू करने में गहरी रूचि ली। ऐसा करने के लिए उनके पास कई कारण थे। अंग्रेजी भाषा में भारतीयों को शिक्षित करना उनकी रणनीति का एक हिस्सा था। भारतीयों को क्लर्क के रूप में कम मजदूरी पर काम करने के लिए तैयार किया गया जबकि उसी काम के लिए ब्रिट्रिश बहुत अधिक वेतन की मांग करते थे। इससे प्रशासन पर व्यय का भार कम पड़ा। उन्होंने भारतीयों का एक ऐसा वर्ग बनाया जो उनके प्रति वफादार थे और दूसरे भारतीयों से सम्बन्ध नहीं रखते थे। इस वर्ग के भारतीयों को ब्रिट्रिश विचारधारा और संस्कृति की प्रशंसा करना सिखाया। इसके अलावा, वे ब्रिट्रिश माल के लिए बाजार को बढ़ाने में मदद करेंगे। उन्होंने देश में राजनीतिक अधिकार को मजबूत बनाने के लिए शिक्षा का उपयोग एक साधन के रूप में किया। ऐसा मान लिया है कि कुछ शिक्षित भारतीय जनता में अंग्रेजी संस्कृति फैलाकर और वे शिक्षित भारतीयों के इस वर्ग के माध्यम से शासन करने में सक्षम होंगे। ब्रिट्रिश केवल उन भारतीयों को नौकरियां देते थे जो अंग्रेजी जानते थे और वे भारतीयों को अंग्रेजी शिक्षा के लिए मजबूर करते थे। इससे शिक्षा जल्द ही अमीरों तथा शहरों में रहने वालों का एकाधिकार बन गयी । |
सुधार आंदोलन के प्रभाव सामाजिक धार्मिक सुधार आंदोलनों ने राष्ट्रीय आंदोलन किस प्रकार नेतृत्व किया? सुधारकों की लगातार प्रयासों से समाज पर भारी प्रभाव पड़ा। धार्मिक सुधार आंदोलनों ने भारतीयों के मन में अधिक से अधिक आत्मविश्वास एवं आत्मसम्मान और अपने देश के लिए गर्व की भावना डाली। इन सुधार आंदोलनों से अनेक भारतीय ने महसूस किया है कि आधुनिक विचारों और संस्कृति का भारतीय सांस्कृतिक धारा में समेकित करके आत्मसात किया जा सकता है उन्होंने देशवासियों को बताया कि सभी आधुनिक विचार भारतीय संस्कृति और मूल्यों के विरूद्ध नहीं है। आधुनिक शिक्षा की शुरूआत ने भारतीयों को जीवन के लिए एक वैज्ञानिक और तर्कसंगत दृष्टिकोण दिया। लोगों को भारतीयों के रूप में अपनी पहचान के लिए और अधिक जागरूक किया। जो अंततः भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में ब्रिटेन के खिलाफ एकजुट संघर्ष के लिए जिम्मेदार था। |
ब्रिटिश प्रशासन और न्यायिक प्रणाली भारतीयों को ब्रिट्रिश प्रशासन की नई प्रणाली को समायोजित करने में कठिनाई हुई। भारतीय राजनीतिक अधिकारों से वंचित थे और ब्रिट्रिश अधिकारी उन से अवमानना के साथ व्यवहार करते थे। भारतीयों को प्रशासनिक और सैन्य सभी उच्च पदों से बाहर रखा गया। अंग्रेजों ने भारत में कानून और न्याय की एक नई प्रणाली की शुरूआत की। एक श्रेणीबद्ध सिविल और आपराधिक अदालतों को स्थापित किया गया। कानूनों के कोड बनाए गये तथा कार्यपालिका से न्यायपालिका को अलग करने का प्रयास किया गया। भारत में कानून के शासन को स्थापित करने के प्रयास किए गए। लेकिन ब्रिट्रिश भारतीयों के अधिकारों और स्वतंत्रता के साथ हस्तक्षेप कर रहे थे तथा अपनी निर्णायक शक्तियों का आनन्द ले रहे थे। कानूनी आदालतें भी आम लोगों के लिए सुलभ नहीं थी। न्याय एक महंगा मामला बन गया। नई न्यायाधिक प्रणाली भी यूरोपियन तथा भारतीयों के बीच भेदभाव रखती थी। |
विरोध आंदोलन ब्रिट्रिश शासन के राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक क्षेत्रों पर प्रतिकूल प्रभाव के परिणामस्वरूप विदेशियों के खिलाफ भारतीय लोगों की कड़ी प्रतिक्रिया हुई। देश भर में ब्रिट्रिश विरोधी आंदोलनों की श्रृंखला का नेतृत्व किया जाने लगा। इसके लिए किसानों और जनजातियों ने शोषक शासकों के खिलाफ विद्रोह किया। इसका अधिक से अधिक विस्तार में आप आगे के पाठों में पढ़ेंगे। ब्रिट्रिश शासन के दौरान भारत में अनेक बार अकाल पड़ा जो अभूतपूर्व था। 19वीं सदी के मध्य के दौरान 7 बड़े अकाल दर्ज किये गए जिसमें 15 लाख लोगों की मौत हुई। इस प्रकार 19वीं सदी के उत्तरार्ध में 24 अकाल पड़े जिसमें 200 लाख से अधिक मौतें हुई। सबसे विनाशकारी 1943 में बंगाल का अकाल था जिसने 40 लाख भारतीयों को मार डाला। करों से दबे किसान भूमि से बेदखल और बंगाल के अकाल से बचे लोग विद्रोही संन्यासियों और फकीरों के समूहों में शामिल हो गए। 1783 में विद्रोहियों ने कंपनी के राजस्व का भुगतान बन्द कर दिया। हालांकि विद्रोहियों को अंत में आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर किया गया। इसी तरह तमिलनाडु, मालाबार और तटीय आंध्र के पोलीगर और मालाबार के मैपिला लोगों ने औपनिवेशिक ने शासन के विरूद्ध विद्रोह किया। उत्तर भारत में 1824 में पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा के जाटों ने विद्रोह किया। महाराष्ट्र और गुजरात में कोलियों ने विद्रोह किया। |
1857 के विद्रोह के प्रभाव किसानों एव कारीगरों की आर्थिक गिरावट 1770 से 1857 तक के 12 प्रमुख अकालों तथा कई छोटे अकालों से स्पष्ट है। यह सभी कारक ब्रिट्रिश विरोधी भावना सहायक सिद्ध हुए। अंग्रेजों ने बेरहमी से शासन किया और वे जनता की भावनाओं के प्रति संवेदनशील नहीं थे। सुधारों के द्वारा कुछ सामाजिक परिवर्तन किए गए लोगों का मानना था कि सरकार उन्हें इसाई धर्म में परिवर्तित करना चाहती थी। परिणाम स्वरूप भारत में अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के खिलाफ एक बड़ी संख्या में विद्रोह हुए। आगे के पाठ में आप कुछ महत्वपूर्ण और लोकप्रिय विद्रोहों के बारे में पढ़ेगे। उनके महत्व तथा प्रकृति के विषय में पढ़ेगे। तुम 1857 के विद्रोह के बारे में जिसका हमारे राष्ट्रीय आंदोलन पर एक गहरा प्रभाव पड़ा। इसमें पहली बार एकीकृत हुए विभिन्न धार्मिक और जातीय पृष्ठभूमि वाले वर्ग के लोगों को ब्रिट्रिश शासन के खिलाफ एक साथ लाया गया।विद्रोह ने ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन का भारतीय राज्यों के प्रति ब्रिट्रिश नीति में परिवर्तन के साथ अन्त कर दिया । विद्रोह का सबसे महत्वपूर्ण परिणाम था कि इससे राष्ट्रवाद का जन्म हुआ। भारतीय लोगों में अपने नेताओं के प्रति जागरूकता आ गई। जो देश के लिए अपने जीवन का बलिदान कर रहे थे ताकि आगामी समय में दूसरे लोग स्वतंत्र भारत में रह सके। इस विद्रोह के बाद अंग्रेजों ने फूट डालो और राज करो नीति से हिन्दुओं और मुसलामानों के बीच संबंध को खराब किया। उन्होंने महसूस किया कि यदि वे भारत में अपने शासन को जारी रखना चाहते हैं तो उन्हें हिन्दू और मुसलमानों को अलग करना आवश्यक है। |
आज पर प्रभाव इस पाठ को पढ़ने के बाद आप जान जायेंगे कि ब्रिट्रिश शासन ने किस प्रकार भारतीय जीवन के हर पहलू को प्रभावित किया। अंग्रेजों के राजनीतिक और व्यापारिक हितों को मजबूत बनाने के लिए कुछ परिवर्तन जानबूझकर प्रस्तुत किए गए। लेकिन भारतीय और पश्चिमी संस्कृतियों के बीच बातचीत का प्रतिफल एक दूसरे रूप में भी हुआ । एक बड़ी संख्या में ब्रिट्रिश और यूरोपीय इस दौरान हमारे देश में रह गए जिससे सांस्कृतिक परिवर्तन हुआ । |
आपने क्या सीखा
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NIOS Class 10th सामाजिक विज्ञान (पुस्तक – 1) Notes in Hindi
- Chapter – 1 प्राचीन विश्व
- Chapter – 2 मध्यकालीन विश्व
- Chapter – 3 आधुनिक विश्व – Ⅰ
- Chapter – 4 आधुनिक विश्व – Ⅱ
- Chapter – 5 भारत पर ब्रिटिश शासन का प्रभाव : आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृति (1757-1857)
- Chapter – 6 औपनिवेशिक भारत में धार्मिक एवं सामाजिक जागृति
- Chapter – 7 ब्रिटिश शासन के विरुद्ध लोकप्रिय जन प्रतिरोध
- Chapter – 8 भारत का राष्ट्रीय आन्दोलन
- Chapter – 9 भारत का भौतिक भूगोल
- Chapter – 10 जलवायु
- Chapter – 11 जैव विविधता
- Chapter – 12 भारत में कृषि
- Chapter – 13 यातायात तथा संचार के साधन
- Chapter – 14 जनसंख्या हमारा प्रमुख संसाधन
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