NIOS Class 10th Social Science (213) Chapter – 24 राष्ट्रीय एकीकरण तथा पंथ निरपेक्षता (National Integration and Secularism) Question Answer in Hindi

NIOS Class 10th Social Science (213) Chapter – 24 राष्ट्रीय एकीकरण तथा पंथ निरपेक्षता (National Integration and Secularism)

TextbookNIOS
class10th
SubjectSocial Science
Chapter23th
Chapter Nameभारतीय लोकतन्त्र समक्ष चुनौतियाँ (Challenges before Indian democracy)
CategoryClass 10th NIOS Social Science (213)
MediumHindi
SourceLast Doubt

NIOS Class 10th Social Science (213) Chapter – 24 राष्ट्रीय एकीकरण तथा पंथ निरपेक्षता (National Integration and Secularism) Question & Answer in Hindi जिसमे हम राष्ट्रीय एकीकरण से आप क्या समझते है?, पंथनिरपेक्षता का क्या अर्थ है?, राष्ट्रीय एकीकरण का उदाहरण क्या है?, पंथनिरपेक्षता और धर्मनिरपेक्षता में क्या अंतर है?, भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र क्यों कहते हैं?, भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है या राज्य?, भारतीय पंथनिरपेक्षता के जनक कौन थे?, भारतीय पंथ निरपेक्षता के जनक कौन थे?, भारत में धर्मनिरपेक्षता कब लागू हुआ?, भारत को एक पंथ निरपेक्ष राज्य क्यों कहा जाता है? आदि के बारे में पढ़ेंगे 

NIOS Class 10th Social Science (213) Chapter – 24 राष्ट्रीय एकीकरण तथा पंथ निरपेक्षता (National Integration and Secularism)

Chapter –24

राष्ट्रीय एकीकरण तथा पंथ निरपेक्षता

प्रश्न – उत्तर

पाठांत प्रश्न

प्रश्न 1. राष्ट्रीय समाकलन के परिभाषित कीजिए तथा राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन के योगदान का वर्णन कीजिए।
उत्तर- राष्ट्रीय समाकलन किसी भी राष्ट्र के लिए अनिवार्य हाँ सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, भाषागत तथा भौगोलिक विविधताएँ हैं। भारत के लिए यह और भी अधिक अनिवार्य है। क्योंकि भारत विविधताओं का देश है। यहाँ सभी धर्मों के लोग निवास करते हैं। यहाँ एक हजार से भी अधिक भाषाएँ बोली जाती हैं। भौगोलिक दृष्टि से भी देश में विविधताएं है। इन विविधताओं के बावजूद भारत का एक राजनीतिक अस्तित्व है। देश के सयों को सभी धर्मों की तथा उनकी सांस्कृतियों, भावनाओं इत्यादि का आदर एवं सम्मान करना पड़ता है। राष्ट्रीय समाकलन हमारे राष्ट्र की सुरक्षा तथा इसके विकास के लिए भी आवश्यक है। प्रथम बार राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान लोगों में की भावना एवं संवेदनशीलता का संचार हुआ तथा राष्ट्रीय कलन की आवश्यकता अनुभव की गई। इस आंदोलन में विभिन्न क्षेत्रों धर्मों, संस्कृतियों, समुदायों, जातियों तथा पंथों के एकजुट हुए ताकि ब्रिटिश को भारत से निकाल फेंका जा 1885 में गठित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के झण्डे के नीचे दा के सभी भागों के लोग एक साथ मिलकर ब्रिटिश शासकों को भारत छोड़ने के लिए बाध्य कर दिया। चूँकि ब्रिटिश शासकों “विभाजित करो और शासन करो” की नीति अपनाई थी। राष्ट्रीय आंदोलन ने देश के लोगों में एकता के मजबूत करने पर दिया। आंदोलन के नेतृत्व ने समानता, स्वतंत्रता, पंथ निरपेक्षता समाजिक आर्थिक विकास पर अधिक बल दिया। यही कारण कि जब भारत स्वतंत्र हुआ तो इनको भारत के प्रमुख लक्ष्यों रूप में स्वीकार किया गया।
प्रश्न 2. भारतीय संविधान राष्ट्रीय समाकलन को किस प्रकार प्रतिविम्बित करता है तथा बढ़ावा देता है ?
उत्तर- जब 15 अगस्त, 1947 को भारत आजाद हुआ तो समक्ष अनेक समस्याएँ थीं राष्ट्रीय समाकलन तो एक बहुत बड़ी रीती थी। उसी समय देश के दो में विभाजन हुआ था। इस पीड़ियों से रह रहे थे। फिल्मों में तथा टेलीविजन पर पैसे दृश्य देखें के दौर से गुजरा था जहाँ भारतीय नेतृत्व के समय को इस करने में संबंधित मुद्दे थे। कई अन्य कारण भी में जिनमें देश की एकता अखण्डता के लिए समस्याएँ उत्पन्न करने की उपर्युक्त पृष्ठभूमि के कारण भारतीय संविधान राष्ट्रीय समाकलन पर बहुत अधिक बल देता है। इसकी प्रस्तावना में ही राष्ट्रीय एकता एवं अखण्डता को एक प्रमुख उद्देश्य के रूप में शामिल किया गया है। यह भी प्रावधान किया तथा एकता एवं अखण्डता की रक्षा करना बनाए रखना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है। गया कि संत तथा उन्हें अक्षुण विधान देश की विविधता का आदर करते हुए देश की एकता एवं अखण्डता को सुनिश्चित करने का भी प्रयास करता है। इसलिए संविधान ने एक मजबूत केंद्र वाली संघीय व्यवस्था का प्रावधान किया गया।
प्रश्न 3. भारत में राष्ट्रीय समाकलन की कौन-कौन सी प्रमुख चुनौतियाँ हैं ?
उत्तर- स्वतंत्रता प्राप्ति के तुरंत बाद भारत के समक्ष राष्ट्रीय समाकलन की अनेक नीतियाँ थीं। यद्यपि उन समस्या का समाधान करने के अनेक उपाय किए गए हैं, चुनौतियाँ जारी है। उनमें से सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ निम्नलिखित है-
(i) सांप्रदायिकता जटिल में से एक है, जिसका सामना भारत वर्षों से करता आ रहा है। सांप्रदायिकता का जन्म तय होता है, जब एक-दूसरे धर्म के प्रति द्वेष की भावना उत्पन्न होती है। इस तरह की भावना धार्मिक
कट्टरवाद और धर्माधिता को प्रोत्साहन देती है तथा देश की एकता एवं अखण्डता के लिए खतरा उत्पन्न करती है।
(ii) क्षेत्रीयवाद-क्षेत्रीयवाद राष्ट्रीय समाकलन के मार्ग में एक अन्य बाधा है। कई अवसरों पर यह लोगों को राष्ट्रीय प्राथमिकताओं की कीमत पर भी क्षेत्रीय हितों को देने के लिए प्रोत्साहित करता है। पिछले छ दशकों में योजनाबद्ध विकास नहीं हो पाया है। अन्य कारणों के साथ-साथ वाति सामाजिक, आर्थिक विकास नहीं होने से भी अलग राज्य के गठन के लिए माँग होने लगती हैं।
(iii) भाषावाद भारत एक बहुभाषी देश है। भारत के लोग लगभग 2000 भाषाएँ तथा बोलियाँ बोलते हैं। इस बहुलवाद का कई अवसरों पर विशेष रूप से स्वतंत्रता के बाद के प्रारंभिक दशकों में नकारात्मक उपभोग हुआ है। प्रत्येक देश को सामान्य राजभाषा की आवश्यकता होती है, लेकिन भारत के लिए है। यह प्रतिनिधियों ने इसका एक के अंतर्गत देश के कई भागों में चलाए जा रहे राष्ट्रीयन के लिए एक वही ती बहुए है।और इसके उदाहरण है। में पर होते हैं सरकारी जीवन में न करते हैं. कई बार लोगों को जाने भी जाती है। इस ओं द्वारा हथियार उठाने का आधारभूत कारण उसको सामाजिक-आर्थिक विकास से रहने की स्थिति है।
प्रश्न 4. ऐसे कौन-कौन से कारक है जो राष्ट्रीय समाकलन को वहन देते हैं तथा मजबूत बनाते हैं ?
उत्तर- पद्यपि राष्ट्रीय समाकलन के समक्ष अनेक चुनौतियाँ है. तथापि ऐसे महत्वपूर्ण कारक है, जो राष्ट्रीय समाकलन को ठोस आधार प्रदान करते हैं। ये है-
(1) संवैधानिक प्रावधान राष्ट्रीय समाकलन को देने तथा इसे सुनिश्चित करने के लिए संविधान में कई प्रावधान किए गए है। संविधान समाजवाद पंथनिरपेक्षता, लोकतंत्र, स्वतंत्रता, समानता, न्याय और बंधुत्व को भारतीय राजनीतिक पद्धति के उद्देश्य के रूप में स्वीकार करता है। राज्य के नीति निर्देशक सत्य न्यायसंगत आर्थिक विकास करने, सामाजिक भेदभाव का उन्मूलन करने तथा अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा को प्रोत्साहन देने के लिए राज्य को निर्देश देता है। इनमें अधिक महत्त्वपूर्ण यह है कि विभिन्न संस्थाओं तथा प्रक्रियाओं से संबंधित प्रावधान राष्ट्रीय समाकलन की जरूरतों को ध्यान में रखकर किए 1 गए हैं।
(ii) सरकारी पहल- राष्ट्रीय समाकलन को प्रोत्साहन देने के लिए सरकारों द्वारा पहल किए गए है। राष्ट्रीय समाकलन से संबंधित मुद्दों पर विचार-विमर्श करने तथा उपयुक्त मदद उठाने की अनुशंसा करने के लिए एक राष्ट्रीय एकता परिषद् का गठन किया गया है। एक ही योजना आयोग पूरे देश में धार्मिक विकास है के लिए योजनाएँ बनाता है तथा एक चुनाव आयोग चुनाव करवाता है।
(iii) राष्ट्रीय त्यौहार एवं प्रतीक स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस, गाँधी जयंती जैसे राष्ट्रीय त्यौहार सभी नागरिक द्वारा देश के सभी भागों में मनाए जाते हैं, चाहे उनकी भाषा, उनका धर्म या उनकी संस्कृति कुछ भी हो। प्रत्येक वर्ष 19 नवम्बर को राष्ट्रीय दिवस भी राष्ट्रीय प्रतीक भी एक है। अखिल भारतीय रेडियो एवं इंटरनेट सहित संचार राष्ट्रको एकता एवं हैं। केद्रीय स्तर पर है किंतु अपनी सेवा राज्यों को भी प्रदान करते हैं।
प्रश्न 5. निरपेक्षता को परिभाषित कीजिए तथा भारतीय राजनीतिक पद्धति के लिए इसके महत्व की व्याख्या कीजिए।
उत्तर- पनिर का आप सभी धमकी तथा धार्मिक सहिष्णुता से है। इसके अर्थ को दो- एवं व्यक्ति के संदर्भ में समझना आवश्यक है। राज्य के संदर्भ पथ-निरपेक्ष का आशय यह है कि भारत का कोई औपचारिक राज्य धर्म नहीं है। राज्य सभी धर्मा को समान मानता है उनका आदर करता है। देश का प्रत्येक नागरिक कानून के समक्ष समान हो। सरकार किसी धर्म विशेष के नहीं कर सकती। व्यक्ति के संदर्भ में का अर्थ सर्वधर्मसमभ है। प्रत्येक व्यक्ति को अपने द्वारा चुने गए धर्म को अवाध रूप से मानने, आचरण और प्रचार करने का अधिकार है। संविधान में पंथ निरपेक्षता सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र के सिद्धांतों के साथ-साथ पथ-निरपेक्षता को भी भारतीय
संविधान की एक आधारभूत संरचना माना गया है। इसको संविधान में प्राथमिक तौर पर एक मूल्य की तरह प्रतिनिधित किया गया है। पंथ निरपेक्षता का महत्त्व संवैधानिक प्रावधान सुरक्षाओं के बावजूद सभी भारतीय अभी तक सच्चे अर्थ में पंथ निरपेक्ष नहीं हो पाए है। अक्सर यहाँ सांप्रदायिक दंगे हो जाते हैं। यहाँ पर यह समझना महत्वपूर्ण है कि पंथ निरपेक्षता सांप्रदायिक सद्भाव एवं शांति स्थापित करने के लिए अनिवार्य है। भारत एक बहुलवादी समाज है, अतः यह सभी लोगों के लिए आवश्यक है कि वे एक-दूसरे का आदर करें तथा शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का आचरण करें।
प्रश्न 6. नीचे दो सुप्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानियों के कचन दिए गए हैं-
उत्तर- महात्मा गाँधी ने एक बार कहा था, “मैं एक हिन्दू तथा उस पर मैं अत्यधिक भरोसा करता हूँ। मैं इसके लिए सकता है। लेकिन यह मेरा व्यक्तिगत मामला है। राज्य का इससे कोई संबंध नहीं राज्य आपके पंथ निरपेक्ष कल्याण, स्वास्थ्य, संचार, विदेशी संबंधों मुद्रा आदि की करेगा, लेकिन आपके तथा मेरे धर्म का नहीं। वह प्रत्येक व्यक्ति का वैयक्तिक सरोकार है।”महात्मा गाँधी के एक निकटतम सहयोगी, मौलाना आजाद ने कहा था- एक मुसलमान हूँ तथा इस तथ्य प्रति गंभीर रूप से चैतन्य हूं कि मुझे इस्लाम के पिछले तह सौ सालों की गौरवमयी परंपराएं विरासत में मिली मैं इस विरासत के छोटे से छोटे भाग को खोने के लिए नहीं हूँ… मुझे इस तथ्य के संबंध में भी उतना ही गर्व है कि मैं एक भारतीय हूँ. भारतीय राष्ट्रत्व की अविभाज्य एकता का अनिवार्य है. इसके संपूर्ण ढांचे में एक महत्त्वपूर्ण घटक है, जिसके बिना यह भव्य इमारत अपूर्ण रहेगी।” उपर्युक्त दोनों कथनों के संदर्भ में भारत में पंथनिरेक्षता और राष्ट्रीय समाकलन को मजबूत बनाने के लिए भारतीय रागरिकों की भूमिका का विश्लेषण कीजिए।उत्तर- भारतीय संविधान राष्ट्रीय समाकलन पर बहुत अधिक बात देता है। इसकी प्रस्तावना में राष्ट्रीय एकता एवं अखण्डता बहुत अधिक बल देता है। इसकी प्रस्तावना में राष्ट्रीय एकता एवं अखण्डता का एक प्रमुख उद्देश्य के रूप में सम्मिलित किया हा है। यह भी प्रावधान किया गया है कि भारत की संप्रभुता एकता एवं अखण्डता की रक्षा करना तथा उन्हें अक्षुण रखना देश के प्रत्येक नागरिक का कर्त्तव्य होगापंथ निरपेक्षता और राष्ट्रीय समाकलन को मजबूत हराने में नागरिकों की भूमिका निःसंदेह पंथ निरपेक्षता और रीय समाकलन को मजबूत बनाने में नागरिकों की भूमिका त्वपूर्ण मानी जाती है। इस संदर्भ में नागरिकों को एक-दूसरे धर्मो के प्रति आदर भाव रखना चाहिए। एक-दूसरे को ओं का सम्मान करना चाहिए। समाज में विभिन्न अवसरों प्रेम एवं भाईचारा बनाए रखे एक-दूसरे का आदर करें तथा पूर्ण सहअस्तित्व का आचरण करें।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. राष्ट्रीय समाकलन से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर- जिस देश की राजनीतिक, समाजिक तथा आर्थिक संरचना एक होती है। जहाँ के लोगों में सामान्य इतिहास, समाज संस्कृति तथा मूल्यों पर आधारित एकत्व की भावना होती है। यही भावना लोगों को एक राष्ट्र के रूप में एक साथ लांघती है। सामान्य अर्थ में इसी भावना को राष्ट्रीय समाकलन कहते हैं।
प्रश्न 2. राष्ट्रीय समाकलन के समक्ष चार महत्त्वपूर्ण चुनौतियां कौन-सी हैं?
उत्तर- राष्ट्रीय समाकलन के समक्ष चार महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ
(i) क्षेत्रीयवाद
(ii) उग्रवाद
(iii) भाषावाद
(iv) सांप्रदायिकता
प्रश्न 3. राष्ट्र किसे कहते हैं ?
उत्तर- राष्ट्र एक ऐसे देश को कहते हैं, जहाँ की सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक संरचना एकीकृत होती है। वहाँ के लोगों में सामान्य इतिहास, समाज, संस्कृति तथा मूल्यों पर आधारित एकत्व की भावना होती। यही भावना लोगों को एक राष्ट्र के रूप में एक साथ बाँधती है।
प्रश्न 4. भारतीय संविधान में पंथ निरपेक्षता का क्या प्रावधान है ?
उत्तर- भारतीय संविधान ने अपनी प्रस्तावना तथा विशेष रूप से अपने मौलिक अधिकारों तथा राज्य के नीति निर्देशक तत्त्वों के अध्यायों के माध्यम से भारत में समानता एवं भेदभाव रहित सिद्धांत पर आधारित एक पंथ निरपेक्ष राज्य का निर्माण किया है।
प्रश्न 5. पंथ निरपेक्षता क्यों अनिवार्य हैं ?
उत्तर- पंथ-निरपेक्षता केवल सांप्रदायिक सद्भाव तथा शांति बनाए रखने के लिए ही नहीं, अपितु देश के अस्तित्व के लिए अनिवार्य है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. राष्ट्रीय एकता से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर- राष्ट्रीय एकता से तात्पर्य उस प्रक्रिया से है, जिसमें लोगों में राष्ट्रीय एकता का विकास और निर्धारण होता है। जब यह कहा जाता है कि हम सब भारतीय हैं, तो इसका अर्थ यह है कि ब्राह्मण, वैश्य, क्षत्रिय, शुद्र, बंगाली, पंजाबी, हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई के रूप में नहीं अपितु एक भारतीय के रूप में होते हैं जिनका धर्म एक है, वह है-भारत माता की सेवा करना।
प्रश्न 2. स्वतंत्रता के पश्चात् सरकार ने पंथ-निरपेक्षता की नीति को क्यों अपनाया ?
उत्तर- हमारा देश विविधताओं से पूर्ण है। यहाँ विविध धर्मां. के लोगों को एक साथ रहने की लंबी परंपरा है। यहाँ धर्म, जाति,भारत भाषा और क्षेत्रीय विविधता पाई जाती है। हमारे संविधान ने को धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित किया है। यहाँ किसी भी धर्म या पंथ को मानने की स्वतंत्रता है। धर्म और राजनीति को अलग रखा गया है। हमारे देश में कई बार सांप्रदायिक दंगे हुए हैं। ये दंगे अंग्रेज प्रशासको ने ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति के अंतर्गत लोगों को आपस में लड़ाने के लिए किए हैं। इसका परिणाम देश का विभाजन हुआ। स्वतंत्रता के पश्चात् भारत ने पंथनिरपेक्षता की नीति को अपनाया और संविधान ने अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा के लिए कदम उठाए हैं। राज्य की दृष्टि में सभी धर्म सम्मान है। भारत के सभी लोग किसी भी धर्म अथवा पंथ को मानने के लिए स्वतंत्र हैं।
प्रश्न 3. राष्ट्रीय एकता की शपथ का प्रारूप कैसा है ?
उत्तर- राष्ट्रीय एकता की शपथ का प्रारूप निम्नलिखित है- ” मैं सत्य निष्ठा से देश की स्वतंत्रता तथा अखण्डता को सुरक्षित रखने तथा मजबूत बनाने के लिए समर्पण के साथ काम करने की शपथ लेता हूँ। मैं और आगे प्रतिज्ञान करता हूँ कि मैं कभी भी हिंसा का सहारा नहीं लूँगा तथा धर्म, भाषा, क्षेत्र या अन्य राजनीतिक या आर्थिक शिकायतों से संबंधित सभी मतभेद और विवाद शांतिपूर्ण एवं सांविधानिक साधनों द्वारा सुलझा लिए जाने चाहिए।”

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. त्रिभाषीय फॉर्मुला क्यों विकसित किया गया ?
उत्तर- हिंदी भाषा को राजभाषा बनाए जाने के विरोध में – होने वाले आंदोलनों के समय विभिन्न भाषा समूहों को संतुष्ट। करने तथा राष्ट्रीय समाकलन को प्रोत्साहन देने के लिए एक त्रिभाषीय फॉर्मूला को विकसित किया गया। इसके अनुसार प्रत्येक को तीन भाषाएँ पढ़नी होगी। हिंदी तथा अंग्रेजी के अलावा एक आधुनिक भारतीय भाषा को पढ़ाए जाने की व्यवस्था हुई। इसके में अनुसार हिंदी भाषी क्षेत्रों में हिंदी तथा अंग्रेजी के अलावा आधुनिक व भारतीय भाषा के रूप में किसी दक्षिण भारतीय भाषा को पढ़ाने पर प्राथमिकता दी जाएगी। गैर-हिंदी भाषा क्षेत्रों में वहाँ की क्षेत्रीय भाषा तथा अंग्रेजी के अलावा आधुनिक भारतीय भाषा के रूप ते में हिंदी पढाई जाएगी। यद्यपि इस फॉर्मूला को विद्यालयी पाठ्यचर्चा में समाहित करने के प्रयास किए गए हैं, लेकिन इसका पूर्ण कार्यान्वयन अभी तक नहीं हो पाया है।
प्रश्न 2. भारत किस प्रकार विविधताओं का देश है ?
उत्तर- भारत बड़ी विविधताओं तथा असीमित बहुलताओं न का देश है। यहाँ के संविधान में 22 भाषाओं को मान्यता दी गई हैं। और यहाँ 400 से भी अधिक उपभाषाएँ तथा बोलियाँ हैं। इस देश ने विश्व के चार प्रमुख धर्मों को प्रश्रय दिया है। यह मुसलमानों की जनसंख्या वाला दूसरा सबसे बड़ा देश है। यूरोप के द्वारा ईसाई धर्म के अपनाए जाने के पहले ही भारत ने उसका स्वागत किया था। भारत ने धार्मिक उत्पीड़न से भागे हुए लोगों को अपने यहाँ सदैव शरण दी है। यहाँ 4000 से भी अधिक जातियाँ, प्रजातियाँ तथा सगोत्रीय जातियाँ रहती हैं। भारत वास्तव में एक बहुधार्मिक, बहुभाषी, बहुजातीय एवं बहुक्षेत्रीय सभ्यता है, जिसका कोई दूसरा उदाहरण नहीं है।
प्रश्न 3. राष्ट्रीय एकता परिषद् का गठन क्यों किया गया है ?
उत्तर- राष्ट्रीय समाकलन को प्रोत्साहन देने के बहुत से कारण हैं। इसके प्रोत्साहन देने तथा इसे सुनिश्चित करने के लिए संविधान में अनेक प्रावधान किए गए हैं। सरकारों द्वारा भी कई प्रयत्न किए गए हैं। राष्ट्रीय समाकलन से संबंधित मुद्दों पर विचार विमर्श करने तथा उपयुक्त कदम उठाने की अनुशंसा करने के लिए एक राष्ट्रीय एकता परिषद् का गठन किया गया है। एक ही योजना आयोग पूरे देश की आर्थिक विकास के लिए योजनाएँ बनाता है तथा एक चुनाव आयोग चुनाव कराता है। राष्ट्रीय ध्वज राष्ट्रगान तथा राष्ट्रीय प्रतीक भी यह याद दिलाते हैं कि हम सभी की पहचान एक है।

NIOS Class 10th सामाजिक विज्ञान (पुस्तक – 2) Question Answer in Hindi

You Can Join Our Social Account

YoutubeClick here
FacebookClick here
InstagramClick here
TwitterClick here
LinkedinClick here
TelegramClick here
WebsiteClick here