NIOS Class 10th Social Science (213) Chapter – 22 जनता की सहभागिता तथा लोकतांत्रिक प्रक्रिया (People’s Participation and Democratic Process) Notes in Hindi

NIOS Class 10th Social Science (213) Chapter – 22 जनता की सहभागिता तथा लोकतांत्रिक प्रक्रिया (People’s Participation and Democratic Process)

TextbookNIOS
class10th
SubjectSocial Science
Chapter22th
Chapter Nameजनता की सहभागिता तथा लोकतांत्रिक प्रक्रिया (People’s Participation and Democratic Process)
CategoryClass 10th NIOS Social Science (213)
MediumHindi
SourceLast Doubt

NIOS Class 10th Social Science (213) Chapter – 22 जनता की सहभागिता तथा लोकतांत्रिक प्रक्रिया (People’s Participation and Democratic Process) Notes in Hindi लोकतान्त्रिक जनता का जनता के द्वारा तथा जनता के लिए शासन है कैसे, लोकतांत्रिक प्रक्रिया से आप क्या समझते हैं, लोकतंत्र में जनभागीदारी की क्या भूमिका है, लोकतांत्रिक सहभागी सिद्धांत क्या है, लोकतंत्र को जनता के लिए और लोगों द्वारा लोगों की सरकार के रूप में किसने परिभाषित किया, लोकतंत्र का मुख्य तत्व क्या है, लोकतांत्रिक प्रक्रिया का एक प्रमुख भाग क्या है, जनसहभागिता के क्या उद्देश्य होते हैं, जनता सरकार ने भारतीय लोकतंत्र को बहाल करने का प्रयास कैसे किया, लोकतंत्र क्या है और इसके प्रकार, लोकतंत्र को क्या कहते हैं, लोकतांत्रिक सरकार के दो आवश्यक लक्षण क्या हैं, जन सहभागिता से आप क्या समझते हैं, सहभागिता कितने प्रकार की होती है, सहभागिता का मतलब क्या होता है,सहयोग सहभागिता क्या है, सहभागिता दर का सूत्र क्या है, सामुदायिक सहभागिता का क्या महत्व है, सहभागी की संज्ञा क्या है आदि आगे पढ़े।

NIOS Class 10th Social Science (213) Chapter – 22 जनता की सहभागिता तथा लोकतांत्रिक प्रक्रिया (People’s Participation and Democratic Process)

Chapter – 22

जनता की सहभागिता तथा लोकतांत्रिक प्रक्रिया

Notes

जन-सहभागिता

आपने लोगों को चुनाव में मतदान करते देखा होगा। क्या आपने किसी चुनाव में मतदान किया? हम अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करने के लिये मतदान करते है। ये प्रतिनिधि आगे चलकर सरकार का निर्माण कर शासन चलाते हैं। सरकार बनाकर ये जन प्रतिनिधि सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों को क्रियान्वित करते हैं। चुनाव में लोगों की भागीदारी से ही हमारा लोकतंत्र एक प्रतिनिध्यिात्मक और सहभागी लोकतंत्र बनता है, लेकिन जन सहभागिता का आरम्भ और अंत केवल चुनाव में मतदान करने से नहीं होता। जन सहभागिता अन्य अनेक तरीकों जैसे सार्वजनिक बहस, समाचार पत्रों के सम्पादकीय, विरोध प्रदर्शन तथा सरकार के कार्यक्रमों में सक्रिय भागीदारी आदि द्वारा भी व्यक्त होती है। चुनाव प्रक्रिया में भी सहभागिता, राजनीतिक चर्चा, राजनीतिक दलों के लिये कार्य करना, चुनाव में प्रत्याशी के रूप में खड़ा होने जैसे कई तरीकों से देखने से मिलती है।

लोगों का वह व्यवहार जिसके द्वारा वे प्रत्यक्ष रूप से अपनी राजनीतिक राय व्यक्त करते हैं, जन सहभागिता कहलाता है। यह संकल्पता पर्याप्त रूप से बृहत है जिसके अन्तर्गत चुनावी और गैर चुनावी, दोनों ही प्रकार की भागीदारी आ जाती है। वास्तव में सहभागिता नागरिकों की वे सब कार्यवाहियां हैं जिसके द्वारा वे सरकार की नीतियों को प्रभावित व समर्थन करते हैं अथवा उनकी आलोचना करते हैं। वे ऐसा यह सुनिश्चित करने के लिये करते हैं ताकि उनके प्रतिनिधि उनकी जरूरतों और आकांक्षाओं के प्रति जवाबदेह हो।

जनमत का अर्थ

क्या ‘“लोगों की आवाज” और जनमत का अर्थ समान होता है? जब आप इन दोनों के विषय में आगे अध्ययन करेंगे तो आप यह समझने में सक्षम होंगे कि वे दोनों समान नहीं होते।

वास्तव में जनमत को अनेक तरीके से परिभाषित किया जाता है। इसके कारण इसकी परिभाषा अत्यधिक जटिल हो जाती है। इस पाठ में हम जनमत को सरल तरीके से समझने और परिभाषित करने का प्रयास करेंगे। जनमत न तो लोगों की आम सहमति है और न यह बहुसंख्यक की राय है। जनमत, सार्वजनिक विषयों या मुद्दों पर लोंगों की सहमति और सुविचारित राय को कहा जाता है। जनमत विभिन्न लोगों की जटिल राय का संग्रह है और सभी विचारों के योगफल के रूप में भी परिभाषित किया जा सकता है। काफी हद तक जनमत की विभिन्न परिभाषाओं में निम्नलिखित विशेषतायें पायी जाती हैं।

(क) जनमत विचारों का समूह या समुच्चय है।
(ख) ये विचार तर्क पर आधारित होते हैं।
(ग) ये विचार सम्पूर्ण समुदाय के कल्याण को सुनिश्चित करते हैं।
(घ) जनमत सरकारी निर्णयों, राजनीतिक दलों की कार्यप्रणाली तथा प्रशासनिक संचालन को प्रभावित करता है।

जनमत : लोकतंत्र में इसका महत्व

लोकतंत्र में जनमत की भूमिका को किसी भी कीमत पर नजरंदाज नहीं किया जा सकता। आप यह पहले ही जानते हैं कि लोकतांत्रिक सरकार की सत्ता के स्रोत लोग होते हैं ओर यह शासकों की सहमति के द्वारा वैधता का दावा करती है। लोगों या जनता के समर्थन के बिना कोई सरकार कार्य नहीं कर सकती। जनमत निर्माण की प्रक्रिया सार्वजनिक विषयों पर जागरूकता को प्रोत्साहन और लोगों की राय आमंत्रित करती है। क्या आपको अनुभव है कि लोकतांत्रिक सरकार का निर्माण, इसको जीवित रखना और नियंत्रण जनमत के द्वारा तय किया जाता है। जनमत की निम्नलिखित भूमिका विशेष रूप से महत्वपूर्ण है

1. एक जागरूक और स्वतंत्र जनमत असीमित शक्ति पर प्रतिबंध लगाता है।

2. यह एक ऐसी प्रणाली सुनिश्चित करता है कि जिसमें सरकार का एक अंग, दूसरे अंग के कार्यक्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं करता ।

3. यह जनता की जरूरतों और आकांक्षाओं के प्रति उत्तरदायी प्रक्रिया को प्रोत्साहित करता है।

4. यह सरकार को जनहित में कानून बनाने की शक्ति प्रदान करता है।

5. यह लोकतांत्रिक मूल्यों और प्रतिमानों को शक्ति प्रदान करती है।

6. जनमत, अधिकार और स्वतंत्रता को सुरक्षा प्रदान करता है। इसलिये ठीक ही कहा जाता है कि निरंतर सतर्कता स्वतंत्रता की कीमत है। उदाहरण के लिये लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिये प्रत्येक के सतत जागरूक व सावधान रहने की आवश्यकता है।

जनमतः इसका निर्माण करने वाली एजेंसियां/अभिकरण

जैसा कि हम उपर देख चुके हैं, जनमत व्यक्तियों या व्यक्ति समूहों द्वारा व्यक्त विचारों या राय का साधारण योग मात्र नहीं है। वास्तव में, जनमत इन विचारों और राय के आधार पर निर्मित होता है; लेकिन आप दिये गये चित्र में पायेंगे कि जनमत के निर्माण में कई एजेंसियों/अभिकरणों का योगदान होता है। निम्न कुछ महत्वपूर्ण एजेंसियां हैं जो जनमत के निर्माण में सहायता करती है।

1. प्रिंट मीडिया/ मुद्रण/प्रिंट माध्यम : अखबार व पत्र-पत्रिका लम्बे समय से जनमत के निर्माण में योगदान देती रही हैं। आप इस बात से भलीभांति अवगत हैं कि प्रिंट मीडिया/मुद्रण माध्यम में प्रकाशित, लेख, खबरों की कहानियां सम्पादक के नाम पत्र तथा महत्वपूर्ण सामाजिक विषयों पर प्रकाशित अन्य विषय या समाचार, व्यक्ति के विचारों व राय को समयानुसार आधुनिक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे विभिन्न विचारों को समाहित व ठोस रूप प्रदान कर जनमत का विकास करते हैं। ये उपकरण जनमत को सभी सम्बन्धित लोगों तक पहुंचाने का कार्य भी करते हैं।

2. इलेक्ट्रॉनिक मीडिया : सिनेमा, रेडियो, टेलीविजन, मोबाइल फोन व इंटरनेट भी जनमत के निर्माण में प्रभावशाली भूमिका निभाते हैं। इनके दृश्य व श्रव्य मॉडल देश के दूरस्थ हिस्सों में व्यक्त विचारों को भी सम्मिलत करते हैं । वे विचारों को अत्यधिक प्रतिनिध्यात्मक जनमत में बदलने तथा इसे सभी संबंधित लोगों तक पहुंचाने का काम भी करते हैं।

3. राजनीतिक दल : राजनीतिक दल जनमत निर्माण के अभिकरणों का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। जैसा कि हो सकता है आपने भी अनुभव किया हो प्रायः प्रतिदिन, राजनीतिक दल और नेता जनता के समक्ष कुछ तथ्य और विचार पेश करते हैं। राजनीतिक दलों द्वारा अपनी नीतियों और कार्यक्रमों ने सम्बंध चलाये जाने वाली जन जागृति, गतिविधियों के विषय में आप सुनते व देखते रहते हैं। इस प्रकार राजनीतिक दल जनमत के निर्माण में बहुत बड़ा योगदान देते हैं।

4. विधानपालिकायें : हमारे देश में संसद और राज्य विधानमण्डल जनमत के निर्धारण में योगदान देने वाली प्रभावशाली संस्थायें हैं। जनमत निर्माण में उनका प्रभाव और योगदान, विधानमंडल की चर्चाओं के सीधा प्रसारण के बाद अत्यधिक बढ़ गया है। ये वे स्थान हैं जहां सार्वजनिक नीति और कल्याण सम्बन्धी नाजुक विषयों पर चर्चा एवं बहस होती है। इन्हें देश की बहुत बड़ी जनसंख्या द्वारा देखा और सुना जाता है। विधानपालिका वह संस्था है जो प्रभावपूर्ण विचार प्रदान करती है।

5. शिक्षण संस्थायें : विभिन्न शिक्षण संस्थायें भी जनमत निर्माण में सहायता करती हैं। स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय और व्यवसायिक शिक्षण संस्थाओं का हमारे मस्तिष्क पर स्थायी प्रभाव होता है। ये औपचारिक शिक्षण संस्थायें हमें राजनीतिक शिक्षा प्रदान कर जनमत निर्माण में योगदान देती हैं।

भारत में चुनाव

आपने, मतदान केन्द्र में मतदान करने के लिये कतार में खड़े नागरिक देखे होंगे। हमारे देश में लोकसभा, विधान सभाओं, पंचायतों तथा नगर निकायों के लिये प्रतिनिधियों के निर्वाचन के लिए चुनाव होते हैं। हो सकता है आपने भी ऐसे चुनावों में भाग लिया हो। क्या आप चुनाव को परिभाषित कर सकते हैं? चुनाव उम्मीदवारों के बीच होने वाली एक प्रतियोगिता है जिसके द्वारा वे निकायों या प्रतिनिधिक संस्थाओं में सार्वजनिक पद प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। विधानमंडल और स्थानीय शासन की निकायों के चुनाव समय-समय पर निश्चित अवधि के बाद होते हैं।

पूरे देश, राज्य या स्थानीय निकाय को कई चुनाव क्षेत्रों में बांट दिया जाता है। प्रत्येक चुनाव क्षेत्र या निर्वाचन क्षेत्र से कई उम्मेदवार चुनाव लड़ते हैं। निर्वाचन क्षेत्र में जो उम्मीदवार अन्य की तुलना में अधिक मत प्राप्त करता है उसे निर्वाचित घोषित कर दिया जाता है।

चुनावों का महत्व

आपने अनुभव किया होगा कि चुनाव लोगों को लोकतांत्रिक सरकार की कार्यप्रणाली में सक्रिय रूप से सहभागी होने का अवसर प्रदान करते हैं। चुनाव, जनमत को व्यक्त करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है क्योंकि इसके द्वारा लोग अपनी इच्छा व्यक्त करते हैं। वास्तव में चुनाव लोगों की राजनीतिक जागरूकता के दायरे का विस्तार करते हैं। वे उन्हें सार्वजनिक विषयों के विकास की जानकारी देकर शिक्षित करते हैं। चुनाव एक राजनीतिक दल या दल समूह से दूसरे को सत्ता का शान्तिपूर्ण हस्तांतरण सुनिश्चित करते हैं, सरकार के कार्यों को वैधता तथा प्रतिनिधियों की लोगों का नेतृत्व करने की सत्ता को न्ययोचित सिद्ध करते हैं।

चुनाव के प्रकार

हमने देखा है कि हमारे देश में चुनाव अक्सर होते रहते हैं। लेकिन सभी चुनाव एक समान नहीं होता, भारत में होने वाले चुनावों को दो प्रकार से समझा जा सकता है, प्रथम प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष चुनाव। प्रत्यक्ष चुनाव में लोग सीधे तौर पर अपने वोट के द्वारा अपने प्रतिनिधियों को विधायिका निकायों (लोकसभा और राज्य विधान सभाओं और स्थानीय शासन की संस्थाओं) के लिए निर्वाचित करते हैं। हमारे देश में अप्रत्यक्ष चुनाव भी होते है। लेकिन जनता द्वारा चुने हुए प्रतिनिधि आगे कुछ विशेष स्थानों पदों के लिये व्यक्तियों का निर्वाचन करते हैं। भारत का राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति जनता द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से चुने जाते हैं। राज्य सभा के सदस्य भी अप्रत्यक्ष रूप से चुने जाते हैं। इसके अतिरिक्त राज्य विधान परिषद (जो कि कुछ ही राज्यों में पायी जाती है) के भी कुछ प्रतिशत सदस्य (1/6वां हिस्सा) संबंधित राज्य की विधानसभा के सदस्यों द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से चुने जाते हैं।

इसको भिन्न-भिन्न तरीके से देखें तो हमारे देश में चुनाव की तीन प्रकार की श्रेणियां पायी जाती है। वे हैं (क) आम चुनाव (ख) मध्यावधि चुनाव (ग) उप चुनाव। लोक सभा और राज्य विधान सभाओं का कार्यकाल पूरा होने के पश्चात जो चुनाव कराये जाते हैं उन्हें आम चुनाव कहा जाता है। 2009 में हुये लोकसभा को आम चुनाव कहा जा सकता है। यदि विधायिका (लोकसभा और राज्य विधान सभाओं) के चुनाव उनके समय से पहले भंग किये जाने के कारण कराये तो उन्हें मध्यावधि चुनाव कहा जाता है। उदाहरण के लिये लोकसभा के 1991, 1998, 1999 के चुनाव मध्यावधि चुनाव थे। किसी विशेष निर्वाचन क्षेत्र में प्रतिनिधि द्वारा दिये गये त्यागपत्र या उसकी मृत्यु के कारण रिक्त हुई सीट या न्यायालय द्वारा किसी प्रतिनिधि की सदस्यता रद्द किये जाने की स्थिति में जो चुनाव ऐसी सीटों को भरने के लिये कराये जाते हैं उन्हें उपचुनाव कहा जाता है। ऐसी स्थिति में प्रतिनिधि को विधायिका की बाकी बची अवधि तक के लिये ही निर्वाचित किया जाता है। पी॰वी॰ नरसिम्हा राव को नवम्बर 1991 में आन्ध्र प्रदेश के एक उपचुनाव में निर्वाचित किया गया था।

भारत में चुनाव प्रणाली

कई चुनाव सफलतापूर्वक कराने के कारण भारत प्रशंसा का पात्र रहा है। लेकिन यह कैसे संभव हुआ है?क्या आपने कभी विचार किया कि भारत जैसे विशाल देश में चुनाव कैसे कराये जाते हैं? चुनाव प्रक्रिया का निरीक्षण कौन करता है? चुनाव क्षेत्रों का परिसीमन कौन करता है? चुनाव अधिसूचना, नामांकन से लेकर चुनाव परिणाम तक का कार्य कौन करता है? विभिन्न पोलिंग अधिकारी, पीठासीन अधिकारी, रिटर्निंग ऑफीसर कौन से कर्मचारी होते हैं? वास्तव में भारत में एक विशाल निर्वाचन प्रणाली चुनावों के प्रबंधन में कार्यरत हैं। आइये इस पर विस्तारपूर्वक चर्चा करें।

भारत का निर्वाचन आयोग

भारत में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने का कार्य एक निष्पक्ष संवैधानिक सत्ता को दिया गया है जिसे निर्वाचन/चुनाव आयोग कहा जाता । निर्वाचन आयोग एक कानूनी नहीं बल्कि एक संवैधानिक संस्था है। संसद या राज्य विधानमंडल द्वारा बनायी गयी संस्था को कानूनी संस्था कहा जाता जबकि एक संवैधानिक संस्था को शक्ति स्वयं संविधान द्वारा प्रदान की जाती है। हमारा संविधान चुनाव / निर्वाचन आयोग की व्यवस्था करता है। चुनाव आयोग का गठन एक मुख्य चुनाव आयुक्त तथा कुछ अन्य चुनाव आयुक्तों से मिलकर होता है। वर्तमान समय में आयोग में एक मुख्य चुनाव आयुक्त और दो चुनाव आयुक्त होते हैं।

मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य आयुक्तों की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। उनका कार्यकाल 6 वर्ष या 65 वर्ष की आयु जो भी पहले हो, के लिए होता है। उनका पद और सेवा शर्तें सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के समान होती हैं। मुख्य चुनाव आयुक्त को उसके पद से केवल महाभियोग की प्रक्रिया जैसी सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को पदच्युत करने के लिये अपनायी जाती है, के द्वारा हटाया जा सकता है।

भारत के निर्वाचन आयोग के मुख्य कार्य निम्न प्रकार से हैं।

1. देश में स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करना ।

2. चुनाव मशीनरी का निरीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण करना तथा मतदाता सूचियां तैयार करना।

3. राजनीतिक दलों को मान्यता देना तथा उन्हें राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय/क्षेत्रीय पार्टियों के रूप में पंजीकृत करना ।
4. चुनाव लड़ने के लिये राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों को चुनाव चिन्ह प्रदान करना।

5. राजनीतिक दलों, उम्मीदवारों और चुनाव ड्यूटी पर तैनात चुनाव कर्मियों के लिये दिशानिर्देश और आचार संहिता लागू करना ।

6. राजनीतिक दलों, उम्मीदवारों और आम लोगों से प्राप्तं चुनाव सम्बन्धी शिकायतों का निवारण करना ।

7. चुनाव कर्मियों की नियुक्ति करना ।

8. चुनाव के सम्बन्ध में राष्ट्रपति को सलाह व सुझाव देना।

निर्वाचन आयोग अपना कार्य कुछ चुनाव कर्मियों की सहायता से सम्पन्न करता है, इस प्रक्रिया पर निम्न प्रकार से चर्चा की गयी है ।

1. चुनाव कर्मी

चुनाव सम्पन्न करने में निर्वाचन आयोग को कई कर्मचारियों द्वारा सहयोग दिया जाता है। निर्वाचन आयोग के अधीन राज्यस्तर पर चुनावों का मुख्य निर्वाचन अधिकारी द्वारा निरीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण किया जाता है। राज्य सरकार द्वारा प्रस्तुत वरिष्ठ नौकरशाहों में से निर्वाचन आयोग राज्य का मुख्य निर्वाचन अधिकारी नियुक्त करता है। वह ज्यादातर राज्यों में पूर्णकालिक अधिकारी होता है तथा उसे कुछ सहायक स्टाफ प्रदान किया जाता है। निर्वाचन आयोग चुनाव का कार्य सम्पन्न करने के लिए राज्य के सरकारी कर्मचारियों का उपयोग करता है। जिला निर्वाचन अधिकारी, चुनाव पंजीकरण अधिकारी, रिटर्निंग अधिकारी आदि ये कर्मचारी अपने रोजाना के सरकारी उत्तरदायित्वों को पूरा करने के अलावा चुनाव का कार्य भी सम्पन्न करते हैं। चुनाव के दौरान वे चुनाव आयोग को लगभग पूरे समय उपलब्ध रहते हैं। इन सबके अलावा तीन प्रमुख चुनाव अधिकारी होते हैं, जिनकी भूमिका स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने में महत्वपूर्ण होती है। ये अधिकारी हैं। रिटर्निंग आफीसर, पीठासीन अधिकारी तथा चुनाव अधिकारी।

रिटर्निंग अधिकारी : सम्बन्धित राज्य सरकार के परामर्श पर चुनाव आयोग द्वारा प्रत्येक निर्वाच क्षेत्र में एक रिटर्निंग ऑफीसर नियुक्त किया जाता है। यह वह अधिकारी होता है जो (क) चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों के नामांकन पत्रों को प्राप्त कर उनकी जांच करता है। (ख) निर्वाचन आयोग के नाम पर चुनाव चिन्ह प्रदान करता है (ग) निर्वाचन क्षेत्र में अबाध चुनाव कराता है। (घ) मतों की गिनती को सुनिश्चित करता है। (ड) चुनाव परिणामों की घोषणा करता है।
पीठासीन अधिकारी : हर निर्वाचन क्षेत्र में बड़ी संख्या में मतदान केन्द्र होते हैं। 800 से 1000 मतदाताओं के लिए एक मतदान केन्द्र होता है जिसका प्रबन्ध एक अधिकारी करता है। वह मतदान केन्द्र पर पूरी प्रक्रिया का निरीक्षण करता/करती है और यह सुनिश्चित करता/करती है कि प्रत्येक मतदाता को स्वेच्छा से मतदान करने का अवसर मिले तथा किसी तरह का प्रतिरूपण न हो। मतदान समाप्त हो जाने के बाद वह सभी मतपेटियों पर सील लगाकर उन्हें निर्वाचन अधिकारी को सौंप देता देती है।
मतदान अधिकारी : प्रत्येक पीठासीन अधिकारी को मदद करने के लिए तीन या चार अधिकारी होते है। जिन्हें मतदान अधिकारी कहते हैं। ये अधिकारी सुनिश्चित करते हैं कि मतदान केन्द्र पर चुनाव सुचारू रूप से हों। वे मतदाता सूची में मतदाता के नाम की जांच करते हैं, मतदाता की उंगली पर अमिट स्याही लगाते हैं, मतपत्र जारी करते हैं तथा यह सुनिश्चित करते हैं कि प्रत्येक मतदाता गुप्तरूप से मतदान करे।

2. भारत में चुनाव प्रणाली

चुनाव प्रणाली कई चरणों में होने वाली एक लम्बी प्रक्रिया है। आपके लिए चुनाव प्रणाली के विभिन्न चरणों की जानकारी आवश्यक है; जो निम्न है :

1. चुनाव क्षेत्र का परिसीमन पहला कदम है जो आयोग द्वारा किया जाता है।

2. मतदाता सूची की तैयारी और संशोधन दूसरा कदम है जो समय-समय पर निर्वाचन आयोग की देखदेख में होता है।

3. राष्ट्रपति तथा राज्यपाल द्वारा अधिसूचना जारी करने के बाद देश में चुनाव कराने का दायित्व आयोग के ऊपर आ जाता है।

4. चुनाव कार्यक्रम की घोषणा की जाती है जिसमें नामांकन पत्र भरने की तारीख, उसकी जांच व वापसी, चुनाव संचालन, मतों की गिनती तथा चुनाव परिणाम की घोषणा शामिल है।

5. प्रत्याशी तथा राजनीतिक दलों को चुनाव चिन्ह का आबंटन निर्वाचन आयोग द्वारा किया जाता है।

6 . प्रत्याशी और राजनीतिक दलों को चुनाव प्रचार का समय आयोग द्वारा दिया जाता है।

7. यदि आवश्यक होता कसी निर्वाचन क्षेत्र या उसके किसी भाग में पुनर्मतदान चुनाव आयोग के आदेश पर कराया जाता है।

8. यदि किसी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल के नामित प्रत्याशी की नामांकन वापसी की अंतिम तिथि के बाद तथा मतदान से पहले मौत हो जाती है तो चुनाव रद्द कर दिया जाता है। चुनाव रद्द करने का आदेश (प्रत्यादेश) निर्वाचन आयोग जारी करता है।

9. किसी प्रत्याशी का अनुचित रूप से नामांकन खारिज करना, चुनाव के दौरान अनुचित या भ्रष्ट साधनों का उपयोग दिखाई देना और मतदाताओं को डराना धमकाना या सरकारी तंत्र का उपयोग जैसे चुनाव विवाद की जांच न्यायपालिका अर्थात उच्च न्यायालय करता है जिसके निर्णय के विरूद्ध उच्चतम न्यायालय में अपील की जा सकती है।

मतदान के उपरांत

आपने गौर किया होगा कि प्रत्येक मतदान केन्द्र पर चुनाव के दिन काफी गतिविधियां होती हैं। चुनाव के दिन मतदाता अपने अपने मतदान केन्द्र पर जाते हैं तथा अपनी बारी की प्रतीक्षा में एक कतार में खड़े होते हैं। मतदान केन्द्र में प्रवेश के बाद मतदाता अपना पहचान पत्र पहले और दूसरे मतदान अधिकारी को दिखाते हैं। उसके बाद तीसरा मतदान अधिकारी मतदाता के बाएं हाथ तथा महिला मतदाता के दाहिने हाथ के तर्जनी पर अमिट स्याही लगाता है। ऐसा बोगस मतदान या प्रतिरूपण रोकने के लिए किया जाता है। आपको पता होगा कि प्रतिरूपण एक अपराध है जो कानून द्वारा दण्डनीयहै। अधिकारियों द्वारा मतदाता की पहचान हो जाने के बाद उसे एक मतपत्र दिया जाता है जिसमें चुनाव चिन्ह के साथ साथ सभी प्रत्याशियों का नाम शामिल होता है।

मतदाता चुनाव केन्द्र के एक बंद कक्ष में अपने पसंद के प्रत्याशी के चुनाव चिन्ह पर या उसके निकट रबर स्टाम्प लगाकर अपना मत देता/देती है। उसके बाद मतदाता मत पत्र को मोड़कर पीठासीन अधिकारी तथा प्रत्याशियों के प्रतिनिधियों के समक्ष रखी मत पेटी में डाल देता/देती है ।

लेकिन यदि इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन का उपयोग हो रहा हो तो मतदाता अपने पसंद के प्रत्याशी का संकेत करती हुई मशीन का उपयोग करता है। गोपनीयता रखी जाती है ताकि किसी को यह न पता चल सके कि मतदाता ने किसके पक्ष में मतदान किया है। मतदान के बाद मतपेटी या इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन को सील कर दिया जाता है और उसे गिनती केन्द्रों पर भेज दिया जाता है। मतों की गिनती की जाती है तथा जिस प्रत्याशी को सबसे अधिक मत प्राप्त होते हैं उसे निर्वाचित घोषित किया जाता है। जिस प्रत्याशी को चुनाव क्षेत्र के कुल मतों का छठा भाग भी नहीं मिल पाता वह अपनी जमानत राशि खो देता/देती है। यदि किसी प्रत्याशी को यह संदेह हो कि किसी अन्य प्रत्याशी ने भ्रष्ट तरीकों का प्रयोग किया है तो वह उच्च न्यायालय चुनाव याचिका दायर कर सकता/सकती है। यदि न्यायालय इस बात से संतुष्ट हो जाता है कि भ्रष्ट तरीकों का प्रयोग हुआ है तो चुनाव रद्द कर दिया जाता है। उच्च न्यायालय के निर्णय के विरूद्ध उच्चतम न्यायालय में अपील दायर की जा सकती है।

चुनाव और चुनाव सुधारों में जन सहभागिता

अब तक की चर्चा से हम लोकतांत्रिक प्रक्रिया में जन सहभागिता सुनिश्चित करते हुए चुनावों के महत्व को समझने में सक्षम हुए हैं। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में यह पाया गया है कि भारत को एक सजग भागीदारी लोकतंत्र बनाने के लिए चुनाव प्रणाली में सुधारों की आवश्यकता है। अब हम सबसे उल्लेखनीय कारक की चर्चा करेंगे जो चुनावों में जन सहभागिता सुनिश्चित करने में सहायक हुआ है। ऐसे मुद्दों पर भी ध्यान दिया जाएगा जो भारतीय चुनावों के लिए चिंता का विषय है। साथ ही चुनाव सुधारों पर भी चर्चा होगी।

सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार

चुनाव एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। स्वतंत्रता के बाद भारत में सार्वजनिक वयस्क मताधिकार अपनाया गया। यह बड़ी ही रोचक बात है कि लोकतंत्रीकरण की प्रक्रिया के प्रारंभ होने के लगभग 300 वर्षों के बाद सन् 1928 में ग्रेट ब्रिटेन में सार्वजनिक वयस्क मताधिकार लागू हुआ। लोकतंत्र का घर माने जाने वाले स्वीटजरलैंड में यह सन् 1972 में प्रदान किया गया। हालांकि भारत में स्वतंत्रता के बाद लोकतंत्र की स्थापना के प्रारंभ से ही सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार चुनाव प्रक्रिया का हिस्सा बन गया। सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार का मतलब क्या है?

इस संदर्भ में सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार की अवधारणा के शाब्दिक अर्थ को समझने का प्रयास करते हैं। सार्वभौमिक का अर्थ है बिना किसी भेदभाव के सभी लोगों पर साधारणतया लागू होना । वयस्क का अर्थ है बालिग, बच्चा नहीं। मताधिकार का अर्थ है व्यक्ति का मंत डालने का अधिकार। इस तरह वयस्क मताधिकार का अर्थ है एक ऐसी व्यवस्था जिसमें सभी बालिग लोग, स्त्री और पुरूष बिना किसी भेदभाव के चुनाव में मतदान का अधिकार रखते हैं। लेकिन सभी वयस्कों में ऐसे लोगों को शामिल नहीं किया जाता जिन्हें कानूनी रूप से मतदान से बंचित किया गया।

सार्वजनिक वयस्क मताधिकार की अवधारणा एक व्यक्ति एक वोट के राजनीतिक समानता के सिद्धान्त पर आधारित है। किसी के पास एक से ज्यादा वोट नहीं होता। यह लोगों की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने में तथा अधिकारों की रक्षा में सहायक होता है।

मताधिकार का सम्बन्ध व्यक्ति की उम्र से है। मतदान के लिए न्यूनतम उम्र विभिन्न देशों में अलग अलग है। इस युग के अधिकांश देशों में जैसे भारत, चीन, अमेरिका, ग्रेट ब्रिटेन तथा रूस में यह 18 साल है। जबकि ब्राजील, क्यूबा, निकारागुआ में यह 16 साल तथा इंडोनेशिया, उत्तरी कोरिया तथा सुडान में यह 17 साल है। जापान और टयुनिशिया में यह 20 साल तथा दक्षिणी कोरिया में 19 साल है। कुवैत, लेबनान, मलेशिया, मालदीव, सिंगापुर में मतदान की आयु 21 वर्ष किन्तु उजबेकिस्तान में यह 25 वर्ष रखी गई है।

चुनाव सुधार

जैसा कि हमने देखा, सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार पर आधारित भारत की चुनाव प्रणाली में न केवल हमारे मतदाताओं को अपना प्रतिनिधि चुनने का अवसर दिया है बल्कि एक राजनीतिक दल या दलों के समूह को दूसरे दल या समूह द्वारा प्रतिस्थापित करके सरलता एवं शांतिपूर्ण ढंग से सरकारें बदलने में भी सहायक हुआ है। हमने यह भी देखा है कि मोटे तौर पर हमारे चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष होते है ।। लोगों ने सक्रिय रूप से चुनाव प्रक्रिया में हिस्सा लिया है। इस तरह चुनाव हमारे लोकतांत्रिक जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं तथा इसकी अनेक समस्याएं हैं जो न केवल हमारे चुनाव प्रक्रिया की गुणवत्ता को बल्कि लोकतांत्रिक व्यवस्था की कार्यप्रणाली को भी प्रभावित करती है। ये निश्चित रूप से चुनाव सुधारों की मांग करती हैं।

वास्तव में लंबी अवधि से चुनाव सुधारों ने संसद, सरकार, आयोग, प्रैस तथा लोगों का ध्यान आकर्षित किया है। अतीत में कानून की स्पष्ट खामियों को दूर करने के लिए कुछ कदम उठाए गए हैं। निकट अतीत के अनुभवों के आधार पर कानून के कुछ प्रावधानों में संशोधन के लिए शीघ्रता से कुछ कदम उठाने की आवश्यकता का अनुभव किया गया है। कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिन पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है जैसे (क) चुनावों में हेराफेरी, नकली और फर्जी मतदान, प्रतिरूपण (ख) चुनाव के दौरान हिंसा (ग) धन और बाहुबल की प्रतिकूल भूमिका (घ) मतदाताओं, विशेषकर कमजोर वर्ग के लोगों को डराना, धमकाना (ड) सरकारी तंत्र का दुरूपयोग (च) मतदान केन्द्र पर कब्जा तथा चुनाव व राजनीति का अपराधीकरण।

इन नकारात्मक गतिविधियों की विभिन्न स्तरों पर चर्चा की गई है और चुनाव सुधारों के लिए कार्य किए जा रहे हैं। वास्तव में, कई चुनाव सुधार लागू किए जा चुके हैं। लेकिन चुनाव की कोई भी व्यवस्था कभी पूर्ण दोषरहित नहीं हो सकती। वास्तविक व्यवहार में चुनाव प्रथाओं में हमेशा खामियां और सीमाएं होंगी। चुनावों को सच्चे अर्थों में स्वतंत्र और निष्पक्ष बनाने के लिए हमें कुछ तौर तरीके ढूंढने होंगे। चुनाव सुधार के लिए कई सुझाव विद्वानों, राजनीतिक दलों, सरकार प्रायोजित समितियों तथा विभिन्न स्वतंत्र स्रोतों से आते रहे हैं।

सुझाए गए चुनाव सुधारों की प्रारंभिक सूची निम्न हैं:

1. बदलते परिप्रेक्ष्य से मेल खाते हुए समय समय पर चुनाव प्रणाली का लोकतंत्रीकरण

2 वोट, सीट असंतुलन को कम करने के लिए प्रचलित बहुलवादी व्यवस्था के स्थान पर किसी एक से आनुपातिक प्रतिनिधित्व व्यवस्था को लागू करना ।

3. “राजनीतिक दल पारदर्शी तथा लोकतांत्रिक तरीके से कार्य करें” यह सुनिश्चित करने के लिए राजनीतिक दलों की कार्य प्रणाली को नियमित करना

4. सजा का प्रावधान करते हुए चुनावी कानून को सख्त बनाना

5. चुनावी खर्चे को कम करने के लिए सरकार द्वारा चुनावी व्यय को वहन करना

6. संसद तथा राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए कम से कम एक तिहाई प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने का विशेष प्रावधान।

7. चुनाव के दौरान धन और बाहुबल की भूमिका कम करना

8. चुनावों में राजनीति के अपराधीकरण को रोकना

9. चुनाव प्रचार में जाति और धर्म के आधार पर अपील करने पर पूर्ण रोक लगाना।

निकट अतीत में निर्वाचन आयोग ने कई नई पहल की है। जिसकी ओर पहले इशारा किया जा चुका है। इनमें प्रमुख हैं (क) राजनीतिक दलों द्वारा राज्य स्वामित्व वाले इलेक्ट्रानिक मीडिया के माध्यम से चुनाव प्रचार की योजना (ख) मत सर्वेक्षण और एक्जिट पोल पर पाबंदी (ग) राजनीति के अपराधीकरण पर रोक (घ) मतदाता सूची का कम्प्यूटरीकरण करना (ड) मतदाता पहचानपत्र (च) चुनावी खर्चे के रखरखाव तथा प्रत्याशी द्वारा उसे फाइल करने की प्रक्रिया का सरलीकरण (छ) चुनाव के दौरान प्रतियोगियों को समान अवसर प्रदान करने के लिए चुनाव आचार संहिता को सख्ती से लागू करने के लिए अनेक कदम उठाना। चूंकि हमारी चुनाव प्रणाली ने विपरीत परिस्थितियों में भी सुचारू रूप से काम किया है इसलिए उम्मीद बंध गई है कि हमारे देश में लोकतंत्र कायम रहेगा और उसमें बेहतरी होगी। हमारे लोग लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति वचनबद्ध हैं और सम्भावना है कि सरकार उनकी उम्मीदों पर खरी उतरेगी।

आपने क्या सीखा

• हमारे जैसे बड़े देश के लिए प्रतिनिधिक लोकतंत्र वांछनीय है। प्रतिनिधिक सरकार प्रतिनिधित्व के माध्यम से तथा प्रतिनिधित्व चुनाव के जरिए से कार्य करती है। इसलिए चुनाव लोकतंत्र का आधार है।

• चुनावों को मतदाता और मतदान प्रक्रिया की जरूरत है। मतदान का अर्थ है मताधिकार का प्रयोग। आधुनिक लोकतंत्र में सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार (बिना किसी भेदभाव के सभी वयस्क नागरिकों को मत देने का अधिकार है) आवश्यक है।

• विधानसभाओं के लिए भारत में प्रत्यक्ष चुनाव होते हैं जबकि कुछ पदों, जैसे राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति के लिए अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली अपनाई गई है।

• चुनाव प्रक्रिया के कई चरण होते हैं :

• प्रत्याशी द्वारा चुनाव के लिए नामांकन का भरना, नामांकन पत्र की जांच, चुनाव से नाम वापस लेना, चुनाव प्रचार, चुनाव परिणाम इत्यादि ।

• मतदान में चुनाव संचालन और निरीक्षण के लिए एक स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव आयोग का प्रावधान है।

• प्रचलित चुनाव प्रक्रिया में कई खामियों के संदर्भ में चुनाव सुधार की आवश्यकता है।

NIOS Class 10th सामाजिक विज्ञान (पुस्तक – 2) Notes in Hindi

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