NIOS Class 10th Social Science (213) Chapter – 21 राजनीतिक दल तथा दबाव-समूह (Political parties and pressure groups)
Textbook | NIOS |
class | 10th |
Subject | Social Science |
Chapter | 21th |
Chapter Name | राजनीतिक दल तथा दबाव-समूह (Political parties and pressure groups) |
Category | Class 10th NIOS Social Science (213) |
Medium | Hindi |
Source | Last Doubt |
NIOS Class 10th Social Science (213) Chapter – 21 राजनीतिक दल तथा दबाव-समूह (Political parties and pressure groups) Notes in Hindi जिसमे हम राजनीतिक दलों और दबाव समूहों में क्या अंतर है?, दबाव समूह क्या है दबाव समूह और राजनीतिक?, राजनीतिक दल से आप क्या समझते हैं?, राजनीतिक दल कितने प्रकार के होते हैं?, राजनीतिक दल के कार्य क्या हैं?, राजनीतिक दल की विशेषताएं क्या हैं?, राजनीतिक दल क्यों आवश्यक हैं?, राजनीतिक दल क्या है इसके घटक क्या हैं?, भारत में कितने राजनीतिक दल हैं?, राजनीतिक दल शब्द को आप कैसे लिखते हैं?, भारत में एक राजनीतिक दल का एक महत्वपूर्ण कार्य क्या है?, राजनीति किसकी रचना है? आदि के बारे में पढ़ेंगे
NIOS Class 10th Social Science (213) Chapter – 21 राजनीतिक दल तथा दबाव-समूह (Political parties and pressure groups)
Chapter – 21
राजनीतिक दल तथा दबाव-समूह
Notes
21. राजनीतिक दल : अयं एवं विशेषताएं 21.1.1 हमें लोकतांत्रिक दलों की आवश्यकता क्यों पड़ती है? आजकल के लोकतांत्रिक देशों में, सरकार के गठन एवं संचालन के लिए राजनीतिक दलों को आवश्यक घटक के रूप में माना गया है। हालाँकि, कुछ देशों जैसे लीबिया, ओमान, कतर और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में, दल विहीन सरकारें हैं। ये देश लोकतांत्रिक नहीं हैं और यहाँ राजनीतिक दल प्रतिबंधित हैं। इस प्रकार हम यह निष्कर्ष निकालते हैं कि लोकतंत्र उन्हीं देशों में सफलतापूवर्क संचालित होता है जिनके पास प्रतिद्वन्दी पार्टी प्रणाली है। राजनीतिक दल वास्तव में लोकतांत्रिक सरकार की संस्थाओं और कार्रवाई में मदद करते हैं। ये लोगों को चुनावों एवं प्रशासन की अन्य प्रक्रियाओं में भाग लेने में सक्षम बनाते हैं, उन्हें शिक्षित करते हैं और उन्हें नीतिगत निर्णय लेने में मदद करते हैं। यदि राजनीतिक दल प्रतिनिधि सरकार के संचालन को संभव बनाने के लिए आवश्यक हैं, तो आप शायद पूछेंगे कि राजनीतिक दल का आशय क्या है? इसकी प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं? लोकतांत्रिक सरकार में उनकी भूमिकाएँ क्या हैं? |
22.1.2 राजनीतिक दल का अर्थ राजनीतिक दल को आमतौर पर जनता की एक संगठित इकाई के रूप में प्रस्तुत किया जाता हैं जो सामान्य सिद्धान्तों पर आधारित होते हैं और राजनीतिक प्रणाली के बारे में इसके कुछ सामान्य लक्ष्य होते हैं। राजनीतिक दल सांविधानिक उपायों के द्वारा राजनैतिक सत्ता चाहते हैं और उसके लिए कार्य करते हैं जिससे यह अपनी नीतियों को अमल में ला सकें। यह समान सोच वाले लोगों का एक निकाय है, जिनके जनता से सम्बन्धित विषयों पर समान विचार हों। गिलक्रिस्ट के अनुसार राजनीतिक दल की परिभाषा है ‘नागरिकों का एक संगठित समूह जो समान राजनीतिक विचारों का साझा एवं व्यक्त करते हैं और जो एक राजनीतिक इकाई के रूप में कार्य करते हुए, सरकार को नियंत्रित करने का प्रयास करते हैं। गेटेल के द्वारा दी गई एक अन्य परिभाषा है:- ‘एक राजनीतिक दल नागरिकों के समूह से बनता है, जो प्रायः संगठित होते हैं, और एक राजनीतिक इकाई के रूप में कार्य करते हैं तथा अपने मतदान के अधिकार का प्रयोग करके, सरकार को नियंत्रित करने का लक्ष्य रखते हैं और अपनी नीतियों को लागू करते हैं। इन परिभाषाओं से यह स्पष्ट है कि राजनीतिक दल संगठित निकाय होते हैं और ये मूल रूप से सत्ता को पाने और उसे बनाए रखने के बारे में चिंतित रहते हैं। |
21.1.3 विशेषताएँ राजनीतिक दलों की उपर्युक्त परिभाषाओं से, उनकी प्रमुख विशेषताओं को निम्न रूप में पहचाना जा सकता है;
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21.2 राजनीतिक दल कार्य एवं भूमिका आपने अब तक यह पढ़ा कि प्रतिनिधियात्मक लोकतंत्र के कुशल संचालन के लिए राजनीतिक दल ज़रूरी हैं। ये प्रत्येक राजनीतिक प्रणाली में अहम् कार्य करते हैं। यह जानना महत्त्वपूर्ण है कि जब देश में निर्वाचन होते हैं तो उम्मीदवारों को निर्वाचन मंडल के समक्ष कौन प्रस्तुत करता है? क्या आप जानते हैं कि चुनावों के दौरान कौन चुनाव करता है? क्या आपने कभी जानना चाहा कि सरकार कैसे बनती है और किसे प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री पद के लिए नामांकित किया जाता है? |
21.3 भारतवर्ष में राजनीतिक दल उसकी शुरुआत एव प्रगति भारतवर्ष में 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना को सामान्य रूप से दलों के गठन की शुरुआत माना जाता है। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, जिसने राष्ट्रीय आंदोलन की शुरुआत की एक बड़ा संगठन या जो समाज के सभी वर्गों के हितों प्रतिनिधित्व करता था। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के शुरुआती दौर में दादा भाई नौरोजी, सुरेंद्रनाथ बनर्जी, गोपालकृष्ण गोखले और ‘लाल-बाल-पाल’ अर्थात् लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक और विपिन चंद्र पाल जैसे गरम पंथियों का प्रभुत्व था। प्रथम विश्वयुद्ध के बाद, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारत की स्वतंत्रता के मार्ग को प्रशस्त किया। इसी समय में कुछ अन्य राजनीतिक दल भी उभर कर आए जैसे मुस्लिम लीग, भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी, हिंदू महासभा, आदि। 1947 में आज़ादी के बाद, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने स्वयं को एक राजनीतिक दल के रूप में बदल लिया ताकि यह चुनाव लड़ सके और सरकार का गठन कर सके। यह 1967 तक एक प्रमुख राजनीतिक दल के रूप में रही, क्योंकि इसने लगातार 1952, 1957, 1962 और 1967 में केंद्र में एवं लगभग सभी राज्यों में होने वाले चुनावों में जीत हासिल की। इस समय को “एक ‘दलीय प्रभुत्व प्रणाली’ के नाम से जाना गया जिसमें कांग्रेस पार्टी बहुमत से विजयी होती रही और चुनाव लड़ने वाले अन्य राजनीतिक दलों को केवल कुछ ही सीटों से संतोष करना पड़ा। 1967 से भारतवर्ष में दलीय प्रणाली में लगातार फेरबदल होते आ रहे हैं। 1971 में, यद्यपि कांग्रेस ने लोकसभा में बहुमत हासिल किया था, लेकिन कई राज्यों में कुछ अन्य राजनीतिक पार्टियों ने मिलकर साझा सरकारें बनाई थीं। 1977 के बाद, यह देखा गया कि भारत ‘द्वि-दलीय प्रणाली’ की तरफ बढ़ रहा है। ये दो दल थे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और जनता दल। लेकिन यह बहुत ही थोड़े समय ही चला। जनता पार्टी, जो वास्तव में कई छोटे-छोटे घटक दलों जैसे कांग्रेस (ओ), जनसंघ, समाजवादी, भारतीय लोकदल और लोकतांत्रिक कांग्रेस का सम्मिलन था, कई घटकों में विभाजित हो गया। जनता पार्टी के इस विभाजन से फिर कांग्रेस को फायदा हुआ और वह दोबारा 1980 में केंद्र में सत्ता में वापस आई और 1989 तक रही। लेकिन 1989 के बाद से कांग्रेस कभी भी अपना प्रभुत्व वापस प्राप्त नहीं कर सकी। 1989 के बाद से भारतीय दलीय प्रणाली का सामना गठबंधन सरकार प्रणाली से होता आ रहा है 1999 से दो बड़े गठबंध कान सामने आए, एक को राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) (NDA) कहा गया जिसका नेतृत्व भारतीय जनता पार्टी ने किया, तो दूसरे को संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) (UPA) कहा गया जिसका नेतृत्व कांग्रेस पार्टी ने संभाला। वर्तमान में भारतवर्ष में बहुदलीय प्रणाली है। क्योंकि बहुत बड़ी संख्या में राजनीतिक दल राजनीतिक प्रक्रिया में भागीदारी करते हैं। |
21.4.1 भारतीय दलीय प्रणाली की प्रमुख विशेषताएँ
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21.5 भारतीय राजनीतिक दलों के प्रकार भारत में राजनीतिक दलों का वर्गीकरण निर्वाचन आयोग द्वारा चिह्नों के आवंटन के लिए किया जाता है। आयोग दलों को तीन वर्गों में विभाजित करता है: राष्ट्रीय दल, प्रान्तीय दल और पंजीकृत अमान्यता प्राप्त दल। निर्वाचन आयोग राजनीतिक दलों को तीन आधारों पर राष्ट्रीय दल का दर्जा प्रदान करता है। 1. इसको चार या इससे अधिक राज्यों में मान्यता प्राप्त एक राजनीतिक दल होना चाहिए। (क) राष्ट्रीय राजनीतिक दलों का प्रभाव पूरे देश में फैला होता है। 2009 में हुए आम चुनावों से लेकर अब तक भारत में मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय राजनीतिक दल हैं: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आई एन. सी), राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एन सी पी), भारतीय जनता पार्टी (बी जे पी), भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी (सी पी आई), माक्र्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी (सी पी आई एम) और बहुजन समाज पार्टी (बी एस पी) और राष्ट्रीय जनता दल (आर जे डी)। (ख) क्षेत्रीय राजनीतिक दल, वे राजनीतिक दल होते हैं जिन्हें राज्य में कुछ निश्चित प्रतिशत मत या सीटें प्राप्त होती हैं। निर्वाचन आयोग इन राजनीतिक दलों के चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों को दल का चुनाव चिह्न प्रदान करता है। हमारे देश में क्षेत्रीय राजनीतिक दलों की संख्या काफी अधिक है। भारत के कुछ अग्रणी क्षेत्रीय राजनीतिक दलों में तृणमूल कांग्रेस (पश्चिम बंगाल), असम गण परिषद् (असम), ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम् (तमिलनाडु, पॉडिचेरी), नेशनल कॉन्फ्रेंस (जम्मू और कश्मीर), समाजवादी पार्टी (उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड), शिरोमणि अकाली दल (पंजाब), शिवसेना (महाराष्ट्र), तेलुगू देशम (आंध्र प्रदेश) इत्यादी शामिल हैं। क्या आप अपने राज्य की क्षेत्रीय पार्टी को जानते हैं? |
21.6 भारतीय राजनीतिक दल एवं उनकी नीतियाँ जैसा कि आप पहले पढ़ चुके हैं भारत में राष्ट्रीय एवं प्रान्तीय स्तर पर अनेक राजनीतिक दल हैं। प्रत्येक राजनीतिक दल मतदाताओं से अपनी नीतियों एवं कार्यक्रमों की वचन बद्धता घोषित करते हैं। सामान्यतया इनको घोषणा पत्र कहा जाता है। जैसा कि आप जानते ही होंगे, राजनीतिक दलों द्वारा चुनावों के दौरान घोषणा पत्र प्रकाशित किए जाते हैं। हम निम्न राजनीतिक दलों की प्रमुख नीतियों की चर्चा करेंगे: 1. 1. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस : 1885 से मुंबई (बम्बई) में स्थापित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (अब कांग्रेस) पार्टी ने भारत के स्वतंत्रता संघर्ष में अग्रणी भूमिका निभाई थी। स्वतंत्रता के बाद कांग्रेस पार्टी शासन के लिए एक अग्रणी दल के रूप में उभरकर आई और इसने केंद्र में एवं प्रायः प्रत्येक राज्य में 1967 तक शासन किया। भारतीय राजनीति के इतिहास के पहले दो दशकों में कांग्रेस का प्रभुत्व रहा और इस काल को कांग्रेस प्रणाली के रूप में प्रस्तुत किया जाने लगा। धीरे-धीरे कांग्रेस का प्रभुत्व कम होने लगा। अब इसे केंद्र की सत्ता में आने के लिए राजनीतिक दलों के गठबंधन पर निर्भर रहना पड़ता है। कांग्रेस लोकतत्र, धर्मनिरपेक्षता तथा समाजवाद के प्रति वचनबद्ध है। यह एक प्रकार से मध्यमार्गी राजनीतिक दल है। यह उदारीकरण, निजीकरण, वैश्वीकरण की पैरोकार है जिसको ‘एलपीजी’ के नाम से जाना जाता है, वहीं यह समाज के कमजोर वर्ग के कल्याण के लिए भी कार्य करती है। यह कृषि आधारित भारतीय अर्थव्यवस्था और औद्योगीकरण दोनों की वकालत करती है। यह स्थानीय स्तर पर जमीनी संस्थाओं को मजबूत बनाना चाहती है और अंतराष्ट्रीय संस्थाओं विशेष कर संयुक्त राष्ट्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने का दावा करती है। 2. भारतीय जनता पार्टी : जनता पार्टी से अलग होने के बाद 1980 में स्थापित भारतीय जनता पार्टी भारतीय जनसंघ (बी जे एस) के ही एक नए अवतार के रूप में प्रकट हुई है। भारतीय जनता पार्टी केन्द्र और राज्यों में एक महत्वपूर्ण राजनीतिक दल है। बी जे पी इन मुद्दों का समर्थन करती है; (क) राष्ट्रीय एकता (ख) लोकतंत्र (ग) सकारात्मक धर्म निरपेक्षता (घ) गांधीवादी समाजवाद तथा (ङ) मूल्य-आधारित राजनीति। प्रारंभिक चरणों में दक्षिण पंथी रुझान होते हुए भी बीजेपी आज कांग्रेस की भांति एक मध्यमार्गी पार्टी है। इस पार्टी ने कई राज्यों में सरकारों का गठन किया है। जैसे बिहार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, कर्नाटक तथा उत्तराखंड। यह पार्टी अपना आधार दक्षिण तथा उत्तर पूर्वी भारत में भी बढ़ाने का प्रयास कर रही है। 3. कम्युनिस्ट पार्टी : भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सी पी आई) जो 1925 में स्थापित हुई थी और मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी (सी पी आई (एम)) जो 1964 में भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी के विभाजन के बाद प्रकट हुई थी, भारत की प्रमुख कम्यूनिस्ट पार्टियाँ हैं। इन वर्षों में सी पी आई (एम), सी पी आई की तुलना में अधिक शक्तिशाली हुई है। सी पी आई (एम) और सी पी आई दोनों ही दल केरल तथा त्रिपुरा में सत्ता रूढ़ रहे हैं। कम्यूनिस्ट पार्टियों श्रमिकों तथा किसानों की पार्टियाँ हैं। मार्क्सवाद और लेनिनवाद के आदर्शों पर आधारित ये पार्टियाँ समाजवाद, उद्योगों का समाजवादी स्वामित्व, कृषि संबंधी सुधार, ग्रामीणों को समृद्ध बनाने और आत्म निर्भर अर्थव्यवस्था का समर्थन करती हैं। ये पूंजीवाद, साम्राज्यवाद तथा वैश्वीकरण का विरोध करती है। 4. बहुजन समाज पार्टी : कांशीराम द्वारा 1984 में स्थापित बहुजन समाज पार्टी यह दावा करती है कि वह भारतीय समाज के वंचित वर्ग, विशेषकर गरीबों, भूमिहीनों, बेरोजगारों एवं दलितों की पार्टी है जो भारत की जनसंख्या का एक बहुत बड़ा भाग हैं। यह दल साहू महाराज, ज्योतिबा फुले, रामास्वामी नामकर तथा बी. आर. अंबेडकर की शिक्षाओं से प्रेरणा लेता है।सुश्री मायावती वर्तमान में पार्टी का नेतृत्व कर रही हैं। बी.एस. पी. ‘सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय’, के सिद्धान्त पर कार्य करती है। इसने उत्तर प्रदेश में दो बार सरकार बनाई, एक बार बीजेपी के साथ गठबंधन करके और बाद में स्वयं स्वतंत्र सत्तारूढ़ दल बनकर । 5. राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी : राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से अलग हुआ एक समूह है। 1999 में जिन तीन लोगों ने मिलकर इस दल का गठन किया था वे हैं, शरद पवार, पी ए संगमा और तारिक अनवर। इस दल की नीतियाँ लगभग कांग्रेस की नीतियों के समान हैं। इसका प्रमुख जनाधार महाराष्ट्र में है। यह 2004 से यूपीए के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार की गठबंधन सहयोगी है। 6. राष्ट्रीय जनता दल : राष्ट्रीय जनता दल (आर जे डी) एक अन्य दल है जो 1997 में जनता दल के टूटने के बाद प्रकट हुआ। इस दल को लालू प्रसाद यादव ने गठित किया। यह दल पिछड़े एवं अल्पसंख्यकों के लिए समाजवादी कार्यक्रमों और सामाजिक न्याय का समर्थन करता है। यह दल लगभग एक दशक से बिहार में सत्ता में था। यह दल 2004 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार का एक गठबंधन सहयोगी था। क्षेत्रीय राजनीतिक दल : क्षेत्रीय राजनीतिक दलों का उदय क्षेत्रीय आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए हुआ। ये अपने अपने राज्यों में इतने लोकप्रिय हो गए कि ये दल राज्य की राजनीति में प्रभुत्व दिखाने के साथ-साथ अपने अपने राज्यों में सत्ता भी प्राप्त करने लगे। इनकी बढ़ती हुई राजनीतिक हैसियत ने राष्ट्रीय राजनीतिक दलों को केंद्र में गठबंधन सरकारों का गठन करने में मदद की। केंद्र ने भी उनकी समस्याओं पर ध्यान देना और उनकी आकांक्षाओं को समायोजन द्वारा पूरा करना शुरू कर दिया है। हमारी दलीय प्रणाली के विकासवादी स्वभाव ने हमारी संघीय प्रणाली के सहकारितावादी रुझान को सुदृढ़ बनाया है। (iii) पंजीकृत (अमान्यता प्राप्त) दल : निर्वाचन आयोग में बहुत बड़ी संख्या में ऐसे राजनीतिक दल पंजीकृत होते हैं जिन्हें राष्ट्रीय या प्रान्तीय दलों के रूप में मान्यता नहीं मिलती है। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि 2009 में 363 दलों ने चुनाव लड़ा था। कुछ स्वतंत्र उम्मीदवार भी मैदान में थे। अधिकांश राजनीतिक दलों को अमान्यता प्राप्त रूप से पंजीकृत |
21.7 राजनीतिक दल एवं दबाव हित समूह आपने शायद कभी अपने इलाके, शहर अथवा राज्य में प्रदर्शन, धरना और इसी तरह की अन्य कई गतिविधियाँ देखी होंगी। ये प्रदर्शन छात्रों, किसानों, श्रमिकों आदि के द्वारा किए जाते हैं। इनमें से कुछ गतिविधियाँ, कुछ संगठित समूहों, जैसे छात्र यूनियन, किसान यूनियन, व्यापारिक संगठन, शिक्षक संगठन आदि के द्वारा संचालित कि जाती हैं। सामान्य तौर पर, ये समूह अपने स्वार्थ के अनुसार सरकार पर नीतियाँ बनाने अथवा कानून के क्रियान्वयन के लिए दबाव बनाते हैं। फिर भी वे स्वयं चुनावों में भाग नहीं लेते हैं। इसलिए आप भी इस बात से आप सहमत होंगे कि ये समूह राजनीतिक दल नहीं हैं। तो ये क्या हैं? किसी भी देश में, विशेषकर लोकतांत्रिक देश में, बहुत बड़ी संख्या में ऐसे संगठित समूह होते हैं; जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से राजनीति और सरकार को प्रभावित करते हैं। इन संगठित समूहों के सदस्य किसी विशेष स्वार्थ/हित की वजह से, संगठित होते हैं। उदाहरण के लिए किसी कारखाने के श्रमिक ट्रेड यूनियन के रूप में संगठित होते हैं ताकि वे अपने हितों की पूर्ति कर सकें। इसी प्रकार से ऐसे और भी कई संगठित समूह हैं। इन्हें दबाव समूह अथवा हित समूह कहा जाता है। ये दबाव समूह या हित समूह क्या हैं? ये एक दूसरे से किस प्रकार अलग हैं? इनकी हमारे देश की राजनीतिक प्रणाली में क्या भूमिका है? आइए इसकी चर्चा करें। |
21.7.1 दबाव समूह और स्वार्थ/हित समूह आप नीचे के चित्र में देख सकते हैं कि भारतीय राष्ट्रीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस (INTUC) द्वारा एक रैली निकाली जा रही है। इंटक (INTUC) एक ऐसा संगठन है जिसकी हम दबाव समूह और हित समूह दोनों की तरह व्याख्या कर सकते हैं। सामान्यतः दबाव समूह एवं हित समूह एक दूसरे के पर्यायवाची समझे जाते हैं पर वास्तव में ऐसा नहीं हैं। हित समूह संगठित लोगों के समूह होते हैं जो अपने विशेष हितों को पूरा करने के लिए कार्य करते हैं। उनकी विशेषताएँ हैं: |
21.7.2 दबाव समूहः भूमिका एवं तकनीक राजनीति की लोकतांत्रिक कार्य प्रणाली में दबाव समूहों की अहम् भूमिका होती है। ये जनता से जुड़े प्रमुख मुद्दों पर जनता की राय को, चर्चा, बहस और प्रचार के जरिए आगे बढ़ाने की कोशिश करते हैं। इस प्रक्रिया में ये लोगों को शिक्षित करते हैं और अपने दृष्टिकोण को व्यापक बनाते हैं। उनकी लोकतांत्रिक भागीदारी को बेहतर बनाते हैं तथा विभिन्न मुद्दों को उठाते हैं और स्पष्ट रूप से उनको व्यक्त करते है। ये समूह जन नीतियों में बदलाव लाने का प्रयास करते हैं। अपने उद्देश्य एवं लक्ष्य को पाने के लिए ये दबाव समूह विभिन्न प्रकार के तरीके एवं तकनीकों को अपनाते हैं। इनमें अपील, प्रदर्शन, याचिका, घेराव, जुलूस एवं लॉबी बनाना शामिल हैं। ये मीडिया में लिखते हैं, पर्चे वितरित करते हैं, प्रेस विज्ञप्ति निकालते हैं, चर्चा एवं बहस आयोजित करते हैं, पोस्टर लगवाते हैं और नारे लगाते हैं। ये सत्याग्रह भी कर सकते हैं जिसका अर्थ है अहिंसात्मक विरोध प्रदर्शन। कभी-कभी, दबाव समूह हड़ताल भी करते हैं ताकि ये विधान पालिका, कार्यपालिका एवं अधिकारियों पर दबाव बना सकें। अक्सर ये बहिष्कार भी करते हैं। क्या आपने वकीलों को कोर्ट का बहिष्कार या शिक्षकों को कक्षाओं का बहिष्कार करते नहीं देखा है? दबाव समूह इस प्रकार की गतिविधियों के द्वारा सरकारी नीतियों को प्रभावित करने का प्रयास करते हैं। |
क्या आप जानते हैं लाबिंग करने का क्या अर्थ है? लाबिंग करने का अर्थ है सरकार के अधिकारियों और अधिकांशतः विधायिका के सदस्यों पर जन नीतियों के निर्माण अथवा कार्यन्वयन के लिए प्रभाव डालने का प्रयास। |
21.7.3 राजनीतिक दल एवं दबाव समूह आपने पहले पढ़ चुके हैं कि राजनीतिक दल एवं दबाव समूह समान नहीं हैं। लेकिन दानों ही लोकतंत्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसलिए उनका संबंध काफी गहरा एवं स्पष्ट है। उदाहरण के लिए ट्रेड यूनियन अपने अपने राजनीतिक दलों की मदद करने के लिए उन्हें चुनावों के दौरान कार्यकर्ता देते हैं। दूसरी ओर, राजनीतिक दल श्रमिकों के हित में कानून बनवाने का प्रयास करते हैं। क्या आप जानते हैं कि भारतीय राष्ट्रीय छात्र यूनियन ( NSUI) कांग्रेस को भावी नेतृत्व प्रदान करती है। जबकि अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) यही कार्य भारतीय जनता पार्टी के लिए करती है? कुछ दबाव समूह कुछ विशेष राजनीतिक दलों से जुड़े होते है; लेकिन कई ऐसे दबाव समूह होते हैं जिनका किसी भी राजनीतिक दल से कोई संबंध नहीं होता है। यह समझना आवश्यक है कि दबाव समूह राजनीतिक दलों से अलग होते हैं। इन दोनों के बीच के अंतर को नीचे स्पष्ट किया गया है: • दबाव समूह मूलतः राजनीतिक स्वभाव के नहीं होते। उदाहरण के लिए, यद्यपि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर एस एस ) भारतीय जनता पार्टी का समर्थन करता है, फिर भी यह मुख्य रूप से एक सांस्कृतिक संगठन है। राजनीतिक दल बुनियादी रूप से राजनीतिक होते हैं। • दबाव समूह प्रत्यक्ष रूप से सत्ता प्राप्त नहीं करना चाहते; ये केवल उन्हें प्रभावित करते हैं। जो सत्ता में हैं ताकि निर्णयों को अपने पक्ष में करवाया जा सके। राजनीतिक दल सरकार बनाने के लिए सत्ता में आना चाहते हैं । • दबाव समूह चुनाव नहीं लड़ते हैं; ये केवल अपनी पसंद के राजनीतिक दल का समर्थन करते हैं। राजनीतिक दल उम्मीदवारों को नामांकित करते हैं, चुनाव लड़ते हैं और चुनाव प्रचार में भाग लेते हैं। • दबाव समूहों की अपनी कोई राजनीतिक विचारधारा हो, यह आवश्यक नहीं है। परन्तु राजनीतिक दल हमेशा अपने आदर्शों विचारधारा से बंधे होते हैं। उदाहरण के लिए जहाँ कांग्रेस पार्टी अपनी विचारधारा – धर्म निरपेक्षता, समाजवाद एवं लोकतंत्र के प्रति वचनबद्ध है; वहीं कम्यूनिस्ट पार्टी श्रमिकों, किसानों एवं अन्य कमजोर वर्गों के हितों की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। • दबाव समूहों का स्वार्थ आमतौर पर विशेष एवं निश्चित होता है, जबकि राजनीतिक दलों की अपनी नीतियाँ एवं कार्यक्रम होते हैं जिनकी राष्ट्रीय एवं अंतराष्ट्रीय शाखाएँ एवं प्रशाखाएँ होती हैं। |
21.7.4 भारत के दबाब समूह अन्य लोकतांत्रिक देशों की तरह, भारत में भी कई हित दबाव समूह है जो पारंपरिक सामाजिक ढाँचे पर आधारित है। आर्य प्रतिनिधि सभा, सनातन धर्म सभा, पारसी अजुमन और एंग्लो-इंडियन क्रिश्चियन ऐसोसिएशन जैसे कई समूह हैं। कई जातिगत समूह है, जैसे ब्राहमण सभा, नायर समाज, और भाषा समूह (जैसे तमिल संघ, अंजुमन-ए-तारीख-ए-उर्दू) आप अन्य प्रकार के हित समूह भी देख सकते हैं जिनमें भारतीय वाणिज्य और उद्योग परिसंघ (फिक्की (FICCI)) जैसे निकाय या श्रमिकों एवं किसानों से संबंधित अखिल भारतीय मजदूर संघ कांग्रेस, भारतीय मजदूर संघ: किसान सभा आदि शामिल हैं। उदाहरण के लिए ऐसे कई संस्थागत समूह भी हैं जैसे सिविल सेवा संगठन या गैर राजपत्रित अधिकारी यूनियन। कभी-कभी आपको अखिल असम छात्र संघ जैसे समूह भी देखने को मिलते हैं जो ग्रामीण क्षेत्रों में कॉलेजों की स्थापना की मांग करते हैं। |
21.75 सिविल सोसाइटी संगठनः भारत में सामूहिक दबाव प्रणाली का एक नया रूप भारत में बड़ी संख्या में सिविल सोसाइटी संगठन (सी एस ओ) हैं, जिनका अर्थ है ऐसे संगठन जिन्हें देश के नागरिकों ने स्थापित किया है, ताकि वे विशेष हितों के लिए कार्य कर सकें। इनमें से कई संगठन सरकार के समक्ष दबाव समूह के रूप में कार्य करते हैं, ताकि ये अपने से संबंधित क्षेत्रों में नीतियां लागू करने को बढ़ावा दे सकें। ये संगठन आम व्यक्तियों द्वारा चलाए जाते हैं। जो विशेष मुद्दों के प्रति सशक्त समर्पण का अनुभव करते हैं। कई आम व्यक्ति औपचारिक या अनौपचारिक रूप से एक साथ मिलकर विभिन्न मुद्दों पर एवं समाज में फैली अराजकता के बारे में अपने विचारों को साझा करते हैं। सिविल सोसाइटी राज्य एवं व्यक्ति के बीच में एक कड़ी है। सिविल सोसाइटी संगठन उन्हें कहा जाता है जो पर्यावरण सुरक्षा, महँगाई, भ्रष्टाचार की रोकथाम आदि जनसामान्य से जुड़े मुद्दों पर महिलाओं एवं पुरुषों के समूहों, संगठनों, संघों अथवा स्वैच्छिक संस्थाओं के द्वारा उनकी सक्रिय भागीदारी एवं संलग्नता को दर्शाते हैं। इक्कीसवीं सदी ने देश के विभिन्न भागों में हुई विरोध प्रदर्शन जैसी गतिविधियों से सिविल सोसाइटी संगठन के द्वारा लोगों की सक्रिय भागीदारी को प्रत्यक्ष रूप से देखा है। लोग लैंगिक भेदभाव, बाल मजदूरी, आश्रयहीन बच्चों आदि के मुद्दों को उठाते हैं और इन पर व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से योगदान देते हैं। इस तरह के संगठन जनमत तैयार करने में सक्षम होते हैं क्योंकि ये मुद्दे समाज के बहुत लोगों से जुड़े होते हैं। इस तरह के कुछ सिविल सोसाइटी संगठनों में शामिल है; मजदूर किसान शक्ति संगठन (एम के एस एस, राजस्थान), पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल), नेशनल एलाएंस ऑफ पीपुल्स मूवमेंट्स (एन ए पी एम), नेशनल एलाएंस ऑफ वुमेन्स आर्गेनाजेशन (एन ए डब्ल्यू ओ), मेडिको फ्रेंड्स सर्कल (एम एफ सी) एवं अन्य कई। इस तरह के संगठन सरकार पर दबाव डालते हैं ताकि कई महत्त्वपूर्ण मुद्दों जैसे भ्रष्टाचार, मानवाधिकार, विभिन्न लोगों की आजीविका, पर्यावरणीय सुरक्षा, नारी सशक्तीकरण, शैक्षिक एवं स्वास्थ्य संबंधित मुद्दे आदि से सम्बन्धित नीतियों में बदलाव किया जा सके। सिविल सोसाइटी संगठन अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचने की कोशिश करते हैं। ये लोगों के लिए एक चैनल प्रदान करते हैं ताकि वे अपनी समस्याओं को व्यक्त कर सकें और ये संगत रचानात्मक रूप से परिवर्तन के लिए कार्य करते हैं। देश के प्रति किए गए वादों को जब सरकार पूरा नहीं करती तो ये संगठन उस ओर ध्यान आकर्षित करते हैं। ये आदर्शवादी एवं समर्पित युवा लोगों को आकर्षित करते हैं और उनके लिए अच्छी नागरिकता को सिखाने एवं सीखने का स्थान भी बनते हैं। अच्छे नागरिक सतर्क एवं जागरूक होते हैं। सिविल सोसाइटी संगठन इसी प्रकार के सतर्क नागरिकों के द्वारा गठित होते हैं। इनमें से कई बड़े सामाजिक हितों के लिए संघर्ष करते हैं, और अपने निजी सुख, समय एवं ऊर्जा का त्याग करते हैं। हाल ही में हुए सिविल सोसाइटी संगठन के कुछ प्रमुख नेता हैं अरुणा रॉय (मजदूर किसान शक्ति संगठन), इला भट्ट (स्वनियोजित महिला संगठन), मेघा पाटकर (नर्मदा बचाओ आंदोलन) और अन्ना हजारे (इन्द्रिया ऊगेन्स्ट करप्शन)। ये सभी संगठन बड़ी संख्या में उन लोगों को शामिल करते हैं जो राज्य की नीतियों में बदलाव लाने के लिए संघर्ष करते हैं। कई संगठन एवं समूह अहिंसात्मक तरीकों को अपनाने में विश्वास रखते हैं। |
21.7.6 दबाव की रणनीति दबाव समूह सरकार को प्रभावित करने के प्रति जुटे रहते हैं और उसके लिए विभिन्न दाँव पेच अपनाते हैं। ये बुनियादी रूप से संवैधानिक एवं शांतिपूर्ण होते हैं। भारत में सत्याग्रह दबाव का एक आम दाँवपेच है जिसे अक्सर इस्तेमाल किया जाता है। सत्याग्रह का अर्थ है अहिंसात्मक विरोध प्रदर्शन। जैसाकि आप जानते ही हैं कि गांधी जी ने ही सबसे पहले सत्याग्रह की शुरुआत की और वे इसके लिए पूरे विश्व में जाने जाते हैं। यद्यपि उन्होंने विदेशी शासन के संदर्भ में इन तरीकों का प्रयोग किया फिर भी ये तरीके आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं। इन तरीकों का सफलतापूर्वक प्रयोग किया गया। उदाहरण के लिए, स्वनियोजित महिला संगठन (सेवा) (SEWA) ने सरकार को प्रभावित किया ताकि महिला श्रमिकों के अधिकारों की नीतियों को बेहतर बनाया जाए, मजदूर किसान शक्ति संगठन ने जन आंदोलन शुरू किया जिससे सरकार को ‘सूचना का अधिकार’ जैसा कानून लाना पड़ा। मणिपुर जैसे उत्तर पूर्वी राज्य में ऐसे कई समूह हैं जिनमें ‘जस्ट पीस’, अपुनबा लुप, (छात्र संगठन) और मीरा पॉबिस (महिला समूह) शामिल हैं जो सरकार पर लोगों की न्यायोचित समस्याएँ सुनने के लिए दबाव डालते हैं। एक साथ मिलकर ये समूह इरोम शर्मिला के साथ जुड़े हुए हैं, जो एक नागरिक अधिकार कार्यकर्ता हैं। उन्हें ‘मणिपुर की लौह महिला’ के नाम से जाना जाता है जो नवंबर 2000 से भूख हड़ताल पर हैं। इनकी मांग हैं कि सरकार को आर्ल्ड फोर्सेज स्पेशल पॉवर ऐक्ट (AFSPA) को समाप्त करना |
आपने क्या सीखा
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NIOS Class 10th सामाजिक विज्ञान (पुस्तक – 2) Notes in Hindi
- Chapter – 15 संवैधानिक मूल्य तथा भारत की राजनीतिक व्यवस्था
- Chapter – 16 मौलिक अधिकार तथा मौलिक कर्त्तव्य
- Chapter – 17 भारत एक कल्याणकारी राज्य
- Chapter – 18 स्थानीय शासन तथा क्षेत्रीय प्रशासन
- Chapter – 19 राज्य स्तर पर शासन
- Chapter – 20 केन्द्रीय स्तर पर शासन
- Chapter – 21 राजनीतिक दल तथा दवाब समूह
- Chapter – 22 जनता की सहभागिता तथा लोकतान्त्रिक प्रक्रिया
- Chapter – 23 भारतीय लोकतंत्र के समक्ष चुनौतियाँ
- Chapter – 24 राष्ट्रीय एकीकरण तथा पंथ निरपेक्षता
- Chapter – 25 सामाजिक आर्थिक विकास तथा अभावग्रस्त समूहों का सशक्तीकरण
- Chapter – 26 पर्यावरणीय क्षरण तथा आपदा प्रबन्धन
- Chapter – 27 शान्ति और सुरक्षा
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