NIOS Class 10th Social Science (213) Chapter – 19 राज्य स्तर पर शासन (Governance at the state level) Question Answer in Hindi

NIOS Class 10th Social Science (213) Chapter – 19 राज्य स्तर पर शासन (Governance at the state level)

TextbookNIOS
class10th
SubjectSocial Science
Chapter19th
Chapter Nameराज्य स्तर पर शासन (Governance at the state level)
CategoryClass 10th NIOS Social Science (213)
MediumHindi
SourceLast Doubt

NIOS Class 10th Social Science (213) Chapter – 19 राज्य स्तर पर शासन (Governance at the state level) Notes in Hindi जिसमे हम भारत में राज्य का प्रमुख कौन होता है?, राज्य की कार्यपालिका का प्रमुख कौन होता है?, राज्यपाल को क्या कहते हैं?, राज्यपाल का पद कहाँ से लिया?, राज्यपाल किसकी शपथ लेता है?, राष्ट्रपति शासन का मतलब क्या होता है?, राज्य स्तर के राज्य का मुखिया कौन होता है?, राज्य को कौन चलाता है?, राज्य के मुख्य अंग क्या है?, भारत का असली मुखिया कौन है?, राज्य का सबसे महत्वपूर्ण अंग कौन है?, भारत में कितने राज्य हैं?, मुख्यमंत्री कौन से आर्टिकल में है?, गवर्नर की नियुक्ति कौन करता है?, भारत में कुल कितने राज्यपाल हैं? आदि के बारे में पढेंगे 

NIOS Class 10th Social Science (213) Chapter – 19 राज्य स्तर पर शासन (Governance at the state level)

Chapter – 19

राज्य स्तर पर शासन

प्रश्न – उत्तर

पाठांत प्रश्न

प्रश्न 1. राज्यपाल की नियुक्ति कैसे होती है ? राज्यपाल के कौन-से अधिकार एवं कार्य हैं ?
उत्तर – संसदीय शासन प्रणाली के अंतर्गत राज्यपाल का पद राज्य में होता है और जो नाममात्र का होता है। उसकी वास्तविक शक्ति का उपयोग मुख्यमंत्री के द्वारा होता है। निम्नलिखित में हम उसकी शक्ति, कार्य एवं अधिकारों का विस्तृत विवरण प्रस्तुत करेंगे।

नियुक्ति – राज्यपाल की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। देश का कोई भी व्यक्ति राज्यपाल बन सकता है बशर्ते कि-
(i) वह भारत का नागरिक हो।
(ii) उसकी आयु-सीमा 35 वर्ष हो ।
(iii) वह सरकार के किसी लाभ के पद पर आसीन न हो।
(iv) उस पर कभी भी देशद्रोही होने का आरोप न लगा है।

राज्यपाल के कार्य एवं अधिकार – भारतीय संविधान द्वारा राज्यपाल को असीम शक्तियाँ प्रदान की गई हैं जिसका विवरण निम्नलिखित में दिया जा रहा है-

(i) कार्यकारी शक्तियाँ – भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त राज्य की संपूर्ण कार्यकारी शक्ति राज्यपाल के हाथों में निहित हैं। जिनका प्रयोग वह मुख्यमंत्री की अध्यक्षता मंत्रिपरिषद् की सहायता और सलाह के अनुसार करता है। वह मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद् के अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करता है। वह राज्य लोकसेवा आयोग, राज्य निर्वाचन आयोग के अध्यक्ष की नियुक्ति करता है। राज्य वित्त आयोग के अध्यक्ष तथा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तथा अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति करता है।

(ii) विधायी शक्तियाँ – राज्यपाल राज्य विधायिका का अभिन्न अंग होता है और उसे कुछ निश्चित विधायी शक्तियाँ. प्रदान की गई हैं। उसे राज्य विधानसभा का सत्र बुलाने तथा उसे स्थगित करने का भी अधिकार है। वह विधानसभा को निश्चित अवधि से पूर्व भी स्थगित कर सकता है। वह राज्य विधानसभा तथा विधायिका के दोनों सदनों की संयुक्त बैठकों में अभिभाषण देता है। उसे विधानसभा में एंग्लो-इंडियन समुदाय के एक सदस्य के नामांकित करने का अधिकार प्राप्त है। इसके अतिरिक्त राज्य विधायिका द्वारा पास किया गया कोई विधेयक तभी कानून बन सकता है जब उस पर राज्यपाल की स्वीकृति मिल गई हो।

(iii) वित्त अधिकार – राज्य की संपूर्ण वित्तीय शक्तियाँ राज्यपाल के अधीन हैं, “वार्षिक वित्तीय बजट” राज्यपाल की ओर से राज्य के वित्तमंत्री द्वारा तैयार किया जाता है और राज्य विधायिका के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है। कोई भी वित्त विधेयक राज्यपाल की संस्तुति के बिना राज्य विधायिका में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता है।

न्यायिक अधिकार – राज्यपाल को न्यायिक अधिकार भी प्राप्त हैं। वह किसी भी दंडित व्यक्ति को क्षमा कर सकता है। अथवा उसकी सजा में कमी कर सकता है।

(iv) विवेकाधीन अधिकार – उपर्युक्त सभी अधिकार के उपभोग के लिए राज्यपाल को मंत्रिपरिषद् से सलाह लेनी पड़ती है। किंतु संविधान ने विशेष परिस्थितियों में राज्यपाल को बिना मंत्रिपरिषद् की सलाह के अपने विवेक से कार्य करने की शक्ति प्रदान की है। जैसे-यदि नवनिर्वाचित विधानसभा में जब किसी भी दल को पूर्ण बहुमत नहीं हो तो वह अपने विवेक से किसी भी दल के व्यक्ति को मुख्यमंत्री बनने के लिए आमंत्रित कर सकता है। द्वितीय, यदि राज्य में प्रशासनिक क्षमता विफल हो रही हो और अनुशासनहीनता बढ़ती जा रही हो तो ऐसे वह धारा 356 का प्रयोग करते हुए विधानसभा भंग कर सकता है अथवा निलंबित कर सकता है।

प्रश्न 2. राज्य मंत्रिपरिषद् का गठन कैसे होता है ?
उत्तर – संविधान के अनुसार मंत्रिपरिषद् का कार्य राज्यपाल को राज्य का कार्य चलाने में सहायता तथा परामर्श देना है। परंतु वास्तव में वह नाममात्र का एक राज्यपाल है। राज्य का पूर्ण शासन मंत्रियों द्वारा ही चलाया जाता है। संविधान के 163 वें अनुच्छेद में यह अंकित है कि राज्य में एक मंत्रिपरिषद् होगा,जिसका मुखिया मुख्यमंत्री होगा।

प्रांतों में मंत्रिपरिषद् उसी रीति से बनाई जाती है और कार्य करती है, जैसे कि केंद्रीय मंत्रिपरिषद्। यद्यपि धारा 162 के अनुसार मंत्रिपरिषद् राज्यपाल की सहायता तथा परामर्श देने के लिए निर्मित होती है।

मंत्रिपरिषद् का गठन – संविधान के अनुसार मंत्रिपरिषद् का मुख्यमंत्री राज्यपाल द्वारा नियुक्त किया जाता है। राज्य के विधानमंडल में बहुमत वाले दल के नेता को ही मुख्यमंत्री बनाया जाता है। परंतु किसी दल को बहुमत प्राप्त न हो, तो मुख्यमंत्री की नियुक्ति में राज्यपाल कुछ स्वतंत्रता से कार्य करता है। मुख्यमंत्री की सहमति से राज्यपाल अन्य मंत्रियों को नियुक्त करता है। प्रायः अन्य मंत्री मुख्यमंत्री के दल के सदस्य होते हैं। उनके लिए राज्य के दोनों सदनों में से एक का सदस्य होना आवश्यक है। यदि किसी एक व्यक्ति को, जो विधानमंडल के किसी भी सदन का सदस्य न हो, मंत्री नियुक्त किया जाए, तो उसको 6 मास के अंदर-अंदर विधानमंडल के किसी एक सदन का सदस्य बनना पड़ता है। यदि वह इतने समय में किसी भी सदन का सदस्य न बन सके, तो उसे मंत्रिपरिषद् से त्यागपत्र देना पड़ता है।

प्रश्न 3. राज्य विधायिका के संगठन, अधिकार एवं कार्यों का परीक्षण कीजिए।
उत्तर – राज्य विधायिका निम्नलिखित कार्य करती हैं-
(i) विधाषी कार्य – विधानसभा को विधि निर्माण का अधिकार है। सभी कानून इसके द्वारा पारित किए जा सकते हैं। के जहाँ द्वि-सदनात्मक विधायिका है, वहाँ सामान्य विधेयक किसी ती भी सदन में प्रस्तुत किए जा सकते हैं। कोई विधेयक, जो विधान ना सभा द्वारा पारित कर दिया जाता है, तब इसे विधान परिषद में भेजा जाता है। विधान परिषद् या तो उसे पारित कर देती है या उसे वापिस विधानसभा लौटा देती है। यदि विधेयक विधानसभा द्वारा विधान परिषद् की सिफारिशों सहित या उनके बिना पुनः कर पारित कर दिया जाता है तो यह दोनों सदनों द्वारा पारित समझा ही जाता है। वित्त विधेयक केवल विधानसभा में ही प्रस्तुत किए जा 56 सकते हैं। विधान सभा द्वारा वित्त विधेयक को पारित कर दिए जाने पर ही यह विधान परिषद् के पास भेजा जाता है। विधान परिषद् को इसे पारित करके या फिर अपनी सिफारिशों के साथ इसकी प्राप्ति की तारीख से 14 दिन की अवधि के भीतर वापिस विधानसभा को लौटाना होता है। यदि विधानसभा विधान परिषद् की गई सिफारिशों को नहीं मानती है, तब भी वह विधेयक द्वारा दोनों सदनों द्वारा पारित समझा जाता है तत्पश्चात् स्वीकृति के लिए राज्यपाल के पास जाता है, जिस पर राज्यपाल को अपनी स्वीकृति देनी ही होती है।(ii) कार्यपालिका पर नियंत्रण – राज्य विधायिका कार्यपालिका पर नियंत्रण रखती है। मंत्रिपरिषद् सामूहिक रूप से विधानसभा के प्रति जिम्मेदार होती है। वह तभी तक बनी रहती है जब तक उसे विधान सभा का विश्वास प्राप्त है। यदि विधानसभा में अविश्वास का प्रस्ताव पारित हो जाता है तो मंत्रिपरिषद् हटा दी जाती है। इसके अलावा विधायिका प्रश्नों और पूरक प्रश्नों, स्थगन प्रस्तावों तथा ध्यानाकर्षण सूचनाओं द्वारा सरकार पर नियंत्रण रखती है।(iii) निर्वाचन कार्य – विधानसभा के निर्वाचित सदस्य राष्ट्रपति के चुनाव के लिए बने निर्वाचक मंडल के सदस्य होते हैं। विधान सभा के सदस्य संबंधित राज्य से चुने जाने वाले राज्य सभा के सदस्यों का चुनाव भी करते हैं। इसके अलावा, अपने राज्य की विधान परिषद् के 1/3 सदस्यों का चुनाव भी विधानसभा सदस्यों द्वारा किया जाता है।(iv) संविधान संशोधनों से संबंधित कार्य – संविधान संशोधनों से संबंधित कार्य राज्य विधायिका का महत्त्वपूर्ण कार्य है। कुछ संविधान संशोधनों के लिए संसद के दोनों सदनों में प्रत्येक सदन के विशेष बहुमत के साथ कम-से-कम आधे राज्यों के विधानसभाओं के अनुसमर्थन की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 4. उच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्रों की विवेचना कीजिए।
उत्तर – अधिकार एवं क्षेत्र – संविधान के अनुसार प्रत्येक राज्य के लिए एक उच्च न्यायालय होना आवश्यक है। एक उच्च न्यायालय अधिकार क्षेत्र में एक से अधिक राज्य हो सकते हैं। जैसे-गुवाहाटी उच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में असम, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, नागालैण्ड, मिजोरम, मणिपुर तथा त्रिपुरा राज्य हैं। प्रायः संघ शासित क्षेत्रों पर उनके पड़ोसी राज्यों के उच्च न्यायालयों का अधिकार क्षेत्र होता है।

प्राथमिक अधिकार – उच्च न्यायालय का अधिकार क्षेत्र संबंधित राज्य/राज्यों या संघ शासित क्षेत्रों की राजक्षेत्रीय सीमा तक रहता है। उच्च न्यायालय के दो प्रकार के अधिकार क्षेत्र हैं-प्राथमिक अधिकार क्षेत्र और तथा अपीलीय अधिकार क्षेत्र। प्राथमिक अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत कुछ मामलों को उच्च न्यायालय में सीधे लाया जा सकता है। मौलिक अधिकारों तथा अन्य कानूनी अधिकारों को लागू करना उच्च न्यायालय के प्राथमिक अधिकार क्षेत्र में आते हैं। इस संबंध में न्यायालय को रिट जारी करने का अधिकार प्राप्त है। उच्च न्यायालय अपने प्रारंभिक क्षेत्राधिकार के अधीन संसद तथा राज्य विधान मंडल के चुनावों से संबंधित याचिकाओं पर भी सुनवाई कर सकता है। यदि उच्च न्यायालय को यह लगता है कि उसके अधीनस्थ किसी न्यायालय में लंबित किसी मामले से कानून का कोई महत्त्वपूर्ण प्रश्न जुड़ा हुआ है तो वह उसे मामले को अपने पास मंगवा सकता है अथवा निर्देशों के साथ मामले को पुनः संबंधित अधीनस्थ न्यायालय के पास निपटारे हेतु भेज सकता है। किसी सत्र न्यायालय द्वारा दिए गए मृत्युदंड की पुष्टि अनिवार्यतः उच्च न्यायालय द्वारा की जानी चाहिए। उच्च न्यायालय राज्य का अभिलेख न्यायालय भी होता है। सभी अधीनस्थ न्यायालय उच्च न्यायालय के निर्णयों का अनुपालन करते हैं। उच्च न्यायालय अवमानना या असम्मान के लिए किसी को भी दंडित कर सकता है।

अपीलीय क्षेत्राधिकार – अपीलीय क्षेत्राधिकार के अंतर्गत उच्च न्यायालय जिला स्तर के अधीनस्थ न्यायालयों के फैसलों के विरुद्ध अपीलों की सुनवाई करती है। दीवानी मामलों के संबंध में जिला न्यायाधीश के फैसलों के विरुद्ध उच्च न्यायालय में अपील दायर किया जा सकता है। फौजदारी मामलों में सत्र न्यायालय के वैसे फैसले कि विरुद्ध उच्च न्यायालय में अपील दायर किया जा सकता है जहाँ सात वर्षों से अधिक की जेल की सजा सुनाई गई है। अधीनस्थ न्यायालय द्वारा दी गई फाँसी की सजा को उच्च न्यायालय द्वारा पुष्टि कराना आवश्यक होता है।

प्रश्न 5. अधीनस्थ न्यायालयों के द्वारा किस प्रकार के मामलों की सुनवाई होती है ?
उत्तर – जिला तथा अनुमंडल स्तर पर अधीनस्थ न्यायालय होते हैं। कुछ मामूली स्थानीय भिन्नताओं के अलावा पूरे देश में अधीनस्थ न्यायालयों का गठन तथा कार्य एक समान है। सभी अधीनस्थ न्यायालय संबंधित उच्च न्यायालय की देख-रेख में कार्यरत हैं। प्रत्येक जिले में दीवानी और फौजदरी अदालतें हैं। जिले में जिला न्यायाधीश की अदालत सबसे बड़ी अदालत है। जिले का न्यायाधीश जब दीवानी मामलों की सुनवाई करता है तो उसे जिला न्यायाधीश कहा जाता है और जब फौजदारी मामलों की सुनवाई करता है तो उसे सत्र न्यायाधीश कहा जाता है। इस प्रकार अधीनस्थ न्यायालय दीवानी फौजदारी दोनों प्रकार के मामलों की सुनवाई करता है। इसके अतिरिक्त राजस्व के मामलों की भी सुनवाई करते हैं। विस्तृत व्याख्या निम्न है-

दीवानी मामले – दीवानी न्यायालयों में दायर किए गए मामले दो या अधिक व्यक्तियों के बीच संपत्ति अनुबंध या संविदा तलाक या मकान मालिक-किराएदार के विवाद से संबंधित होते हैं। ऐसे दीवानी मामलों में दण्ड नहीं दिया जाता, क्योंकि इनमें कानून का उल्लंघन नहीं होता।

फौजदारी मामले – ऐसे मामलों का संबंध चोरी, डकैती, पॉकेटमारी, हत्या आदि से होता है। ये मामले राज्य की तरफ से पुलिस द्वारा अभियुक्तों के विरुद्ध फौजदारी न्यायालयों में दायर किए जाते हैं। इन मामलों में यदि न्यायालय अभियुक्त को दोषी पाता है, तो उसे सजा दी जाती है।

राजस्व न्यायालय – राज्य में एक राजस्व बोर्ड होता है। इसके मातहत आयुक्त, कलेक्टर, तहसीलदार, तथा सह-तहसीलदार के न्यायालय होते हैं। राजस्व बोर्ड अपने अधीनस्थ सभी राजस्व न्यायालयों के विरुद्ध अंतिम अपील की सुनवाई करता है। किंतु सभी राज्यों में राजस्व बोर्ड नहीं होता। आंध्र प्रदेश, गुजरात तथा महाराष्ट्र में राजस्व न्यायाधिकरण (ट्रिब्यूनल) हैं। हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश तथा जम्मू एवं कश्मीर में वित्त आयुक्त होते हैं।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1, राज्यपाल बनने की निर्धारित योग्यता क्या है ?
उत्तर – राज्यपाल वही वन सकता हैं जो-
(i) भारत का नागरिक हो।
(ii) उसकी न्यूनतम आयु 36 वर्ष हो।
(iii) वह अपने कार्यकाल में किसी लाभ के पद पर आसीन न हो।
प्रश्न 2. राज्यपाल को कौन-कौन सी शक्तियाँ प्राप्त हैं ?
उत्तर – भारतीय संविधान द्वारा राज्यपाल को निम्नलिखित शक्तियाँ प्रदान की गई हैं-
(i) कार्यकारी शक्तियाँ,
(ii) विधायी शक्तियाँ,
(iii) वित्तीय शक्तियाँ,
(iv) न्यायिक शक्तियाँ,
(v) विवेकाधीन शक्तियाँ।
प्रश्न 3. राज्यपाल की नियुक्ति कौन करता है ?
उत्तर – राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा केंद्रीय मंत्रिपरिषद् की सिफारिशों के आधार पर की जाती है।
प्रश्न 4. राज्य विधानमंडल का सत्र कौन बुलाता है ?
उत्तर – राज्यपाल राज्य विधानमंडल का सत्र बुलाता है।
प्रश्न 5. राष्ट्रपति शासन की अवधि में राज्य प्रशासन कौन देखता है ?
उत्तर – राज्य प्रशासन का कार्य राज्यपाल द्वारा देखा जाता है।
प्रश्न 6. उन पाँच राज्यों का नाम बताइए जहाँ विधायिका द्विसदनीय है ?
उत्तर – जिन राज्यों में विधायिका का द्वि-सदन हैं, वे हैं – बिहार, जम्मू तथा कश्मीर, कर्नाटक, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश।
प्रश्न 7. सार्वभौम वयस्क मताधिकार से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर – सार्वभौम वयस्क मताधिकार से अभिप्राय हैं-ऐसे सभी स्त्री-पुरुष जिनकी आयु 18 वर्ष पूरी हो चुकी हो, मूल, वंश, जाति, धर्म, जन्म स्थान तथा लिंग के भेदभाव के बिना, मत देने तथा चुनाव प्रक्रिया में भाग लेने का अधिकार रखते हैं।
प्रश्न 8. द्वि-सदनात्मक विधायिका से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर – जिस विधायिका में दो सदन होते हैं, उसे द्वि-सदनात्मक विधायिका कहा जाता है। ऐसे कई राज्य हैं जहाँ द्वि-सदनात्मक विधायिका है।
प्रश्न 9. राज्य विधानसभा में सदन का नेता कौन होता हैं ?
उत्तर – राज्य का मुख्यमंत्री राज्य विधानसभा में सदन का नेता होता है।
प्रश्न 10. “सामुदायीकरण” से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर –‘सामुदायीकरण’ शब्द का प्रयोग नागालैण्ड सरकार प्रमुख सचिव ने पहली बार 2001 में किया था। उन्होंने इसके माध्यम से सरकारी संस्थाओं के प्रबंधन एवं नियंत्रण में समुदाय की भागीदारी की अवधारणा की व्याख्या की थी।
प्रश्न 11. फौजदारी न्यायालय किसे कहते हैं ?
उत्तर – फौजदारी न्यायालय उस न्यायालय को कहते हैं, जहाँ चोरी, डकैती, लूटमार, अपहरण आदि की सुनवाई की जाती है।
प्रश्न 12. दीवानी न्यायालयों में कैसे मुकदमों की सुनवाई की जाती है ?
उत्तर – संपत्ति, मुद्रा के लेन-देन, किराएदारी अधिकार, विवाह, तलाक आदि विषयों से संबंधित मामलों की सुनवाई दीवानी न्यायालयों में की जाती है।
प्रश्न 13. अधीनस्थ न्यायालय कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर – अधीनस्थ न्यायालय तीन प्रकार के होते हैं –
(i) दीवानी न्यायालय, (ii) फौजदारी न्यायालय, (iii) राजस्व न्यायालय
प्रश्न 14. राज्य विधानमंडल का कौन-सा सदन स्थाई हैं ?
उत्तर – विधान परिषद् एक स्थाई सदन है, जिसे भंग नहीं किया जा सकता है।
प्रश्न 15. राज्य विधानसभा के सदस्यों की संख्या कितनी होनी चाहिए ?
उत्तर – राज्य विधान सभा के सदस्यों की संख्या 500 से अधिक।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. न्यायपालिका की स्वतंत्रता से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर – लोकतांत्रिक व्यवस्था में विशेषकर नागरिकों के मूल अधिकारों की रक्षा को देखते हुए यह आवश्यक है कि न्यायपालिका, कार्यपालिका के प्रभाव से स्वतंत्र रहे। न्यायपालिका में सरकार के प्रति पक्षपात की भावना नहीं होनी चाहिए। संविधान में न्यायपालिका की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक प्रावधान किए गए हैं। न्यायाधीशों की नियुक्ति कार्यपालिका द्वारा निर्धारित योग्यता के आधार पर भली-भाँति सुनिश्चित की गई प्रक्रिया के अंतर्गत की जाती है। उन्हें कार्यपालिका द्वारा मनमाने ढंग से हटाया नहीं जा सकता। उनकी नियुक्ति निश्चित समय के लिए की जाती है। उनके पारिश्रमिक तथा सेवा शर्तों में परिवर्तन नहीं किया जा सकता है। न्यायाधीशों उनके पद से संबंधित कर्त्तव्यों के बारे में संसद अथवा विधान सभा में चर्चा नहीं की जा सकती। उनके कार्यकाल में उनके वेतन भत्तों में उनके हितों के विरुद्ध परिवर्तन अथवा कमी नहीं की जा सकती।
प्रश्न 2. उन स्थितियों की व्याख्या कीजिए जिनमें राज्यपाल अपनी विधायी शक्तियों का प्रयोग कर सकता है ?
उत्तर – राज्यपाल राज्य का प्रधान होता है। वह मंत्रिपरिषद् की सहायता से राज्य का शासन चलाता है। भारत के प्रत्येक राज्य में राज्यपाल की व्यवस्था की गई है। व्यवहार में राज्यपाल की सभी वैधानिक शक्तियों का प्रयोग मुख्यमंत्री के नेतृत्व में राज्य मंत्रिपरिषद् द्वारा किया जाता है। राज्यपाल मुख्यमंत्री की नियुक्ति करता है तथा उसके परामर्श पर राज्य मंत्रिपरिषद् के अन्य मंत्रियों की नियुक्ति की जाती है। मुख्यमंत्री का यह संवैधानिक दायित्व है कि वह राज्यपाल को राज्य प्रशासन के बारे में सूचनाएँ तथा प्रस्तावित विधेयक के संबंध में सूचनाएँ माँग सकता है। कुछ विशेष परिस्थितियों में संविधान ने उसे अपने विवेक के आधार पर कार्य करने की अनुमति प्रदान की है।
प्रश्न 3. उच्च न्यायालय एक अपीलीय न्यायालय किस प्रकार है ?
उत्तर – उच्च न्यायालय एक अपीलीय न्यायालय भी है। जिला स्तर पर स्थित सभी अधीनस्थ मामलों के निर्णयों के विरुद्ध उच्च न्यायालय को अपील सुनने का अधिकार है। दीवानी मामलों में जिला न्यायाधीश के निर्णयों के विरुद्ध उच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है। यदि सत्र न्यायालय ने सात वर्ष या इससे अधिक का कारावास दिया हो, तो उसके निर्णय के विरुद्ध उच्च न्यायालय के समक्ष अपील की जा सकती है।
प्रश्न 4. उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति कैसे होती है ?
उत्तर – न्यायधीशों की नियुक्ति – उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। उच्च
न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति के समय राष्ट्रपति अनिवार्यतः भारत के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श लेते हैं। वह संबंधित राज्य के राज्यपाल से भी परामर्श ले सकते हैं। अन्य न्यायाधीशों को नियुक्त करते समय राष्ट्रपति संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से भी परामर्श ले सकते हैं। भारत के मुख्य न्यायाधीश का स्थानांतरण दूसरे उच्च न्यायलय में कर सकते हैं। भारत में यह परंपरा विकसित हुई है कि उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के पद पर राज्य से बाहर के व्यक्ति को ही नियुक्त किया जाता है
प्रश्न 5. राज्यपाल की न्यायिक शक्तियाँ बताइये।
उत्तर – राज्यपाल राज्य के प्रधान के रूप में राज्य के अधिकार क्षेत्र के तहत किसी भी दंडित व्यक्ति का क्षमा कर सकता है। वह किसी भी दंड को स्थगित कर सकता है या कम कर सकता है। परन्तु सैनिक न्यायालय द्वारा दडित व्यक्ति के संबंध में राज्यपाल को क्षमादान का अधिकार नहीं है।
प्रश्न 6. राज्यपाल की चार विधायी शक्तियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर – राज्यपाल की विधायी शक्तियाँ निम्नलिखित हैं –
1. राज्यपाल को विधानमंडल का सत्र बुलाने तथा समाप्त करने की शक्ति है।
2. वह मुख्यमंत्री के परामर्श पर विधानसभा भंग कर सकता है।
3. वह राज्य विधान परिषद् के लगभग 1/6 सदस्यों को मनोनीत करता है।
4. राज्यपाल के अनुमोदन के बाद ही कोई विधेयक कानून बनता है।
प्रश्न 7. भारत में दो स्तरों की सरकारें हैं, क्यों ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – यहाँ इसलिए दो स्तरों की सरकारें हैं, क्योंकि यहाँ संघीय शासन व्यवस्था को अपनाया गया है। दोनों स्तरों की सरकारों का गठन तथा उनके कार्य संसदीय पद्धति के सिद्धांतों पर आधारित है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. राज्यपाल और मंत्रिपरिषद् के बीच संबंधों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर – राज्य में मंत्रिपरिषद् तथा राज्यपाल का वही संबंध है, जो संघ में मंत्रिपरिषद् तथा राष्ट्रपति का है। राज्य के अंदर राज्यपाल राष्ट्रपति की तरह ही संवैधानिक मुखिया होता है और मंत्रिपरिषद् वास्तविक कार्यपालिका है।

मुख्यमंत्री तथा अन्य मंत्रियों की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाती है। मंत्रिपरिषद् के अन्य सदस्यों की नियुक्ति भी राज्यपाल मुख्यमंत्री की संस्तुति के अनुसार ही करता है। किंतु जब सदन में एक नेता के चुनाव हेतु स्पष्ट बहुमत नहीं होता तो राज्यपाल अपनी विवेकाधीन शक्तियों का प्रयोग कर सकता है।

मुख्यमंत्री का मंत्रिपरिषद् के सभी निर्णयों की सूचना राज्यपाल को भेजनी होती है। राज्यपाल राज्य प्रशासन से संबंधित किसी आवश्यक सूचना की माँग भी कर सकता है। यदि एक मंत्री व्यक्तिगत रूप से कोई निर्णय लेता है तो राज्यपाल ऐसे मामले को मंत्रिपरिषद् के समक्ष उसके विचार के लिए रखने हेतु मुख्यमंत्री से कह सकता है। यह सच है कि राज्यपाल नाममात्र का प्रमुख होता है तथा वास्तविक शक्तियाँ मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में मंत्रिपरिषद द्वारा ही प्रयोग की जाती हैं। परंतु यह कहना उचित नहीं है कि राज्यपाल केवल संवैधानिक या औपचारिक प्रमुख होता है। वह कुछ विशेष परिस्थितियों में अपनी का चु शक्तियों को बड़े प्रभावी ढंग से प्रयोग कर सकता है। वह विशेष तौर पर ऐसा तब कर सकता है जब राज्य में राजनीतिक अस्थिरता संस्था हो। चूँकि वह केंद्र तथा राज्य के बीच की कड़ी है, अत: वह उस समय बहुत प्रभावी हो जाता है, जब केंद्र सरकार राज्य सरकार को कोई निर्देश भेजती है। कुछ विशेष परिस्थितियों में विवेकाधीन शक्तियाँ भी राज्यपाल को वास्तविक कार्यकारी के रूप में कार्य माध्य करने का अवसर देती हैं।

प्रश्न 2. राज्य विधानसभा और विधान परिषद् की संरचना की व्याख्या कीजिए।
उत्तर – भारतीय संविधान में प्रत्येक राज्य के लिए पृथक विधानमंडल की व्यवस्था की गई है। कुछ राज्यों के विधानमंडल ‘ में दो सदन हैं। छोटे राज्यों के विधानमंडल एक-सदनात्मक है। प्रत्येक राज्य विधान मंडल में विधानसभा होती है। इसके सदस्य जनता द्वारा चुने जाते हैं। चुनाव वयस्क मताधिकार के आधार पर कराये जाते हैं। जनता को धर्म, जाति, लिंग आदि के भेद-भाव के बिना अपने मताधिकार के प्रयोग का अधिकार
दिया गया है।

विधानसभा की संरचना – विधानसभा विधानमंडल का निम्न सदन है। विधानसभा के सदस्यों की संख्या का निर्धारण राज्य की जनसंख्या के अनुसार किया जाता है। भारतीय संविधान के अनुसार विधानसभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या 500 तथा न्यूनतम 60 है। चुनाव राज्य की जनता द्वारा प्रत्यक्ष रीति से किया
जाता है।

योग्यताएँ – विधानसभा का सदस्य बनने के लिए निम्नलिखित योग्यताएँ होनी चाहिए-
(i) वह भारत का नागरिक हो।
(ii) उसकी आयु 25 वर्ष से कम न हो।
(iii) वह किसी लाभ के पद पर कार्य न करता हो।

कार्यकाल – विधानसभा का कार्यकाल साधारणतया 5 वर्ष का होता है। इसे राज्यपाल 5 वर्ष से पहले भी भंग कर सकता है।

विधान परिषद् की रचना – विधान परिषद् विधानमंडल का उच्च सदन है। यह एक स्थायी सदन है। संविधान के अनुसार विधान परिषद् के सदस्यों की संख्या 1/3 से ज्यादा नहीं हो सकती है। किसी भी राज्य की विधान परिषद् में 40 से कम सदस्य नहीं हो सकते, लेकिन जम्मू-कश्मीर की विधान परिषद् में 36 सदस्य हैं। विधान परिषद् के सदस्यों का निर्वाचन अप्रत्यक्ष रीति से निम्नलिखित प्रकार से होता है –
1. विधान परिषद् के सदस्यों की कुल संख्या के 1/3 सदस्यों का चुनाव विधानसभा के सदस्यों द्वारा किया जाता है।
2. विधान परिषद् के 1/3 सदस्यों का चुनाव राज्य की स्थानीय संस्थाओं, नगरपालिका तथा परिषदों द्वारा किया जाता है।
3. विधान परिषद् के कुल सदस्यों का 1/2 भाग राज्य के स्नातकों द्वारा निर्वाचित किया जाता है।
4. विधान परिषद् के कुल सदस्यों का 1/2 भाग राज्य के माध्यमिक विद्यालयों, कॉलेजों एवं विद्यालयों के अध्यापकों के द्वारा निर्वाचित किया जाता है।
5. विधान परिषद् के कुल सदस्यों का 1/6 भाग राज्यपाल द्वारा मनोनीत किया जाता है। ये व्यक्ति साहित्य, विज्ञान, कला तथा समाजसेवा के क्षेत्र में प्रसिद्ध होते हैं।

प्रश्न 3. राज्य विधानसभा के अध्यक्ष की शक्तियों की चर्चा कीजिए तथा सदन में उसकी शक्ति पर प्रकाश डालिए।
उत्तर – हमारे संविधान में यह व्यवस्था की गई है कि प्रत्येक राज्य में विधानमंडल होगा और प्रत्येक विधानमंडल में विधानसभा का होना आवश्यक है। यह सदन जनता का प्रतिनिधित्व करता है और इसके सभी सदस्य जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से चुने जाते हैं।

विधानसभा के पीठासीन अधिकारी को अध्यक्ष कहते हैं। उसकी अनुपस्थिति में उपाध्यक्ष उसका स्थान ग्रहण करता है। विधानसभा के अध्यक्ष की स्थिति और भूमिका लोकसभा के अध्यक्ष के समान होती है। विधानसभा के सदस्य अपने में से ही किसी एक सदस्य को अध्यक्ष तथा दूसरे सदस्य को उपाध्यक्ष चुन लेते हैं।

विधानसभा अध्यक्ष की शक्तियाँ – विधानसभा के पीठासीन अधिकारी के रूप में अध्यक्ष सदन की कार्यवाही का सहज और सुव्यवस्थित संचालन निश्चित करता है। सदन से संबंधित मामलों पर अध्यक्ष का निर्णय अंतिम होता है। वह सदस्यों को सदन में बोलने की अनुमति देता है। सदस्यगण अध्यक्ष को संबोधित कर सदन में अपना वक्तव्य देते हैं। सदन के सदस्यों द्वारा प्रस्तुत किए जाने वाले प्रस्तावों और प्रश्नों को वह स्वीकार करता है। सदन में तथा सदन से संवादों का संचार अध्यक्ष के नाम से किया जाता है। सदन की सभी समितियाँ उसी के नियंत्रण और निर्देशन में कार्य करती हैं। यह ‘धन विधेयक’ को प्रमाणित करता है। अध्यक्ष सदन तथा सदस्यों के विशेषाधिकारों और उन्मुक्तियों की रक्षा करता है। वह सदन में ‘नेता प्रतिपक्ष’ को मान्यता प्रदान करता है। वह किसी भी सदस्य का त्यागपत्र स्वीकार करता है। दल-बदल से संबंधित प्रत्येक मामले पर अध्यक्ष द्वारा निर्णय लिया जाता है। वह किसी भी सदस्य को उसके अशोभनीय व्यवहार के आधार पर सदन से बाहर जाने का आदेश दे सकता है। अध्यक्ष सदन में अनुशासन बनाए रखता है। गलत व्यवहार के लिए वह किसी भी सदस्य को निलंबित भी कर सकता है। किसी विषय पर स्था वाद-विवाद की समाप्ति पर अध्यक्ष मतदान का आदेश देता है तथा परिणाम की घोषणा करता है। सामान्यतया वह ऐसे मतदानों में भाग नहीं लेता, परंतु दोनों पक्षो के मत बराबर होने की स्थिति में वह अपना निर्णायक मत देता है।

प्रश्न 4. मुख्यमंत्री के कार्य एवं अधिकार का वर्णन कीजिए।
उत्तर – संघ की भाँति राज्यों में भी संसदीय शासन – प्रणाली की स्थापना की गई है। राज्यों में संघ की भाँति ही मंत्रिपरिषद् वास्तविक कार्यपालिका है। मंत्रिपरिषद् मुख्यमंत्री के नेतृत्व में कार्य करती है। राज्य में राज्यपाल संवैधानिक मुखिया है, जबकि मुख्यमंत्री वास्तविक है। वह राज्य प्रशासन का केंद्रबिंदु है। उसकी नियुक्ति राज्यपाल के द्वारा की जाती है। वह राज्य के बहुमत दल का नेतृत्व करता है। उसे राज्य विधान मंडल दल का सदस्य होना चाहिए। यदि वह सदस्य नहीं है तो उसे छह माह में सदस्य अवश्य बन जाना चाहिए। मुख्यमंत्री और उसकी मंत्रिपरिषद् अपने पद पर तब तक आसीन रहते हैं जब तक कि उसे विधानसभा में बहुमत का समर्थन प्राप्त है। मंत्रिगण सामूहिक रूप से राज्य विधानसभा के प्रति उत्तरदायी होते हैं। राज्य प्रशासन के क्षेत्र में उसकी वास्तविक सत्ता होती है। वह राज्य विधान सभा तथा अपने राजनीतिक दल का नेता होता है।

मुख्यमंत्री की शक्तियाँ – (i) मुख्यमंत्री राज्य प्रशासन का केंद्र-बिंदु होता है। सभी प्रशासकीय निर्णय उसकी पहल पर किए जाते हैं। वह नीति-निर्धारण प्रक्रिया को भी प्रभावित करता है। वह राज्य में कुशल और प्रभावी प्रशासन सुनिश्चित करता है। वह राज्य के प्रशासन और कानून व्यवस्था की स्थिति पर लगातार निगरानी रखता है। मुख्यमंत्री मंत्रिपरिषद् की बैठकों की अध्यक्षता करता है।

(ii) मुख्यमंत्री विभिन्न विभागों के कार्य के बीच समन्वय स्थापित करता है। वह विभागों के बीच होने वाले मतभेदों और विवादों को सुलझाता है। वह बजट तथा विधेयकों के अंतिम प्रारूप को स्वीकृत करता है। वह सरकार का मुख्य प्रवक्ता होता है।

(iii) मुख्यमंत्री का प्रयास होता है कि वह सरकार की ओर से प्रस्तुत किए जाने वाले विधायी प्रस्ताव राज्य विधानमंडल द्वारा पारित कर दिए जाएँ।

(iv) मुख्यमंत्री मंत्रिपरिषद् और राज्यपाल को जोड़ने वाली कड़ी के रूप में कार्य करता है। वह राज्यपाल को उच्च अधिकारियों की नियुक्ति समेत सभी प्रशासकीय मामलों पर परामर्श देता है।

प्रश्न 5. राज्यपाल और मुख्यमंत्री के पारस्परिक संबंधों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर – राज्यपाल तथा मुख्यमंत्री – राज्य प्रशासन में राज्यपाल, मुख्यमंत्री तथा मंत्रिपरिषद् के योग से राज्य की कार्यपालिका का गठन होता है। हम यह जानते हैं कि राज्यपाल मुख्यमंत्री को नियुक्त करता है। सामान्यतया राज्य विधानसभा के बहुमत दल के नेता को ही मुख्यमंत्री पद पर नियुक्त किया जाता है। परंतु कभी-कभी राज्यपाल को मुख्यमंत्री की नियुक्ति के समय अपने विवेक का प्रयोग कर निर्णय लेना होता है. जब राज्य विधानसभा में बहुमत का निर्धारण करना कठिन हो जाता है। मुख्यमंत्री के परामर्श से राज्यपाल मंत्रिपरिषद् के अन्य सदस्यों की नियुक्ति तथा उनके बीच विभागों का बँटवारा करता है। यह मुख्यमंत्री का संवैधानिक दायित्व है कि वह राज्यपाल को मंत्रिपरिषद् के प्रत्येक निर्णय से अवगत रखे। राज्यपाल मुख्यमंत्री से राज्य प्रशासन के बारे में सूचनाएँ तथा प्रस्तावित विधायकों के संबंध में सूचना माँग सकता है। वह मुख्यमंत्री को किसी विषय पर एक मंत्री द्वारा व्यक्तिगत रूप से किए गए निर्णय को मंत्रिपरिषद् के समक्ष विचार हेतु प्रस्तुत करने का निर्देश भी दे सकता है।

NIOS Class 10th सामाजिक विज्ञान (पुस्तक – 2) Question Answer in Hindi

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