NIOS Class 10th Social Science (213) Chapter – 19 राज्य स्तर पर शासन (Governance at the state level) Notes in Hindi

NIOS Class 10th Social Science (213) Chapter – 19 राज्य स्तर पर शासन (Governance at the state level) 

TextbookNIOS
class10th
SubjectSocial Science
Chapter19th
Chapter Nameराज्य स्तर पर शासन (Governance at the state level)
CategoryClass 10th NIOS Social Science (213)
MediumHindi
SourceLast Doubt

NIOS Class 10th Social Science (213) Chapter – 19 राज्य स्तर पर शासन (Governance at the state level) Notes in Hindi जिसमे हम भारत में राज्य का प्रमुख कौन होता है?, राज्य की कार्यपालिका का प्रमुख कौन होता है?, राज्यपाल को क्या कहते हैं?, राज्यपाल का पद कहाँ से लिया?, राज्यपाल किसकी शपथ लेता है?, राष्ट्रपति शासन का मतलब क्या होता है?, राज्य स्तर के राज्य का मुखिया कौन होता है?, राज्य को कौन चलाता है?, राज्य के मुख्य अंग क्या है?, भारत का असली मुखिया कौन है?, राज्य का सबसे महत्वपूर्ण अंग कौन है?, भारत में कितने राज्य हैं?, मुख्यमंत्री कौन से आर्टिकल में है?, गवर्नर की नियुक्ति कौन करता है?, भारत में कुल कितने राज्यपाल हैं? आदि के बारे में पढेंगे 

NIOS Class 10th Social Science (213) Chapter – 19 राज्य स्तर पर शासन (Governance at the state level) 

Chapter – 19

राज्य स्तर पर शासन

Notes 

19.1 राज्यपाल

आप “सांविधानिक मूल्य तथा भारतीय राजनीतिक व्यवस्था” नामक अध्याय में पढ़ चुके हैं कि भारत में शासन का संसदीय रूप है। राज्य तथा संघीय दोनों ही स्तरों पर अन्य संसदीय व्यवस्थाओं की तरह की संस्थाएँ तथा प्रक्रियाएँ हैं। राज्य स्तर पर एक राज्यपाल होता है जिसमें संविधान द्वारा राज्य की सभी कार्यकारी शक्तियाँ निहित की गयी हैं। परंतु राज्यपाल नाममात्र का प्रमुख होता है तथा वास्तविक कार्यकारी शक्तियों का प्रयोग मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में मंत्रिपरिषद करती  है।

19.1.1 नियुक्ति

राज्य का राज्यपाल भारत के राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त होता है। राज्यपाल बनने के लिए व्यक्ति
में निम्नलिखित योग्यताएं होनी चाहिए । वहः
(अ) भारत का नागरिक हो,
(ब) उसकी न्यूनतम आयु 35 वर्ष हो, और
(स) वह अपने कार्यकाल के दौरान किसी लाभ के पद पर आसीन न हो।

यदि कोई व्यक्ति संसद के किसी भी सदन का अथवा राज्य विधायिका का अथवा राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर पर किसी मंत्रिपरिषद का सदस्य है और वह राज्यपाल के रूप में नियुक्त कर दिया जाता है, तो वह अपने उस पद से त्यागपत्र देता है। राज्यपाल पांच वर्ष के लिए नियुक्त किया जाता है, परंतु सामान्यतया वह राष्ट्रपति के प्रसादपर्यन्त अपने पद पर बना रहता है। राष्ट्रपति के प्रसादपर्यन्त का तात्पर्य है कि राज्यपाल अपनी पदावधि के पूर्ण होने के पहले भी राष्ट्रपति द्वारा हटाया जा सकता है। वह अपनी पदावधि से पूर्व त्यागपत्र दे सकता है। यद्यपि, वास्तविक रूप में राज्यपाल नियुक्त करने तथा उसे पद से हटाये जाने का निर्णय राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की सलाह के अनुसार लेता है।

19.1.2 राज्यपाल की शक्तियाँ

प्रत्येक पद के साथ कुछ शक्तियां जुड़ी होती हैं। राज्य के प्रमुख के रूप में प्रभावी तरीके से अपना कार्य करने के लिए संविधान द्वारा राज्यपाल को शक्तियाँ प्रदान की गयी हैं। राज्यपाल की शक्तियों को निम्न श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है:

(अ) कार्यकारी शक्तियाँ
(द) न्यायायिक शक्तियाँ
(ब) विधायी शक्तियों
(इ) विवेकाधीन शक्तियाँ
(स) वित्तीय शक्तियाँ

कार्यकारी शक्तियाँ : भारतीय संविधान द्वारा राज्य की संपूर्ण कार्यकारी शक्तियाँ राज्यपाल में निहित की गयी हैं जिनका प्रयोग वह मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह के अनुसार करता है। वह मुख्यमंत्री तथा मंत्रिपरिषद के अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करता है। वह अन्य महत्वपूर्ण पदों जैसे राज्य लोकसेवा आयोग, राज्य निर्वाचन आयोग, राज्य वित्त आयोग के अध्यक्षों तथा सदस्यों, एडवोकेट जनरल तथा उच्च न्यायालय के अतिरिक्त अन्य न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति करता है। जब राष्ट्रपति द्वारा उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति की जाती है तो राज्यपाल की सलाह ली जाती है। परंतु वास्तव में राज्यपाल की शक्तियाँ मात्र औपाचारिक हैं। वह मुख्यमंत्री के रूप में केवल उसी व्यक्ति को नियुक्त कर सकता है जो विधानसभा में बहुमत का नेता है। वह मंत्रिपरिषद के सदस्यों की नियुक्ति मुख्यमंत्री की सलाह से ही कर सकता है। उसके द्वारा अन्य सभी नियुक्तियाँ तथा कार्यकारी शक्तियों का प्रयोग मंत्रिपरिषद की सलाह के अनुसार ही की जाती हैं।

(ब) विधायी शक्तियाँ : राज्यपाल राज्य विधायिका का अभिन्न अंग होता है और उसे कुछ निश्चित विधायी शक्तियाँ दी गयी हैं। उसे राज्य विधानसभा के सत्र को बुलाने तथा उसका अवसान करने का अधिकार है। वह राज्य विधान सभा को भंग भी कर सकता है। वह राज्य विधानसभा अथवा विधायिका के दोनों सदनों की संयुक्त बैठकों में अभिभाषण देता है।
यदि एंग्लो-इंडियन समुदाय का विधान सभा में उचित प्रतिनिधित्व नहीं है तो वह उस समुदाय के एक सदस्य को नामांकित करता है। यदि राज्य में द्विसदनीय विधायिका है तो विधान परिषद के 1/6 सदस्यों का नामांकन राज्यपाल द्वारा किया जाता है। आपको पुनः स्मरण करा दें कि वास्तविकता में राज्यपाल ये सभी कार्य मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में मंत्रिपरिषद की संस्तुति पर ही करता है। राज्य विधायिका द्वारा पास किया गया कोई विधेयक तभी कानून या अधिनियम का रूप लेता है जब राज्यपाल उस पर अपनी स्वीकृति दे देता है।

(स) वित्तीय शक्तियाँ : आप समाचार पत्रों में पढ़ते होंगे कि प्रत्येक वर्ष सरकार द्वारा बजट विधायिका के पटल पर उसके अनुमोदन के लिए प्रस्तुत किया जाता है। वास्तव में, राज्य का वजट या ‘वार्षिक वित्तीय विवरण’ राज्यपाल की तरफ से राज्य के वित्त मंत्री द्वारा तैयार किया जाता है और राज्य विधायिका के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है। इसके अतिरिक्त कोई भी वित्त विधेयक राज्यपाल की संस्तुति के बिना राज्य विधायिका में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता है। राज्यपाल का राज्य आकस्मिक निधि पर पूर्ण नियंत्रण होता है।

(द) न्यायिक शक्तियाँ : किसी भी दंडित व्यक्ति को क्षमा कर सकता है। वह किसी भी दंड को स्थगित कर सकता है या कम कर सकता है। परन्तु सैनिक न्यायालय द्वारा दंडित व्यक्ति के सम्बंध में राज्यपाल को क्षमादान का अधिकार नहीं है।

(इ) विवेकाधीन शक्तियाँ : जैसाकि हम पूर्व में पढ़ चुके हैं, राज्यपाल राज्य मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करता है। इसका अर्थ यह है कि वास्तविकता में राज्यपाल की कोई शक्तियां नहीं होती हैं। परंतु संविधान के अनुसार, विशेष परिस्थितियों में वह मंत्रिपरिषद् की सलाह के बिना भी कार्य कर सकता है। ऐसी शक्तियाँ जिनका प्रयोग राज्यपाल अपने विवेक के आधार पर करता है, विवेकाधीन शक्तियाँ कहलाती हैं। प्रथमतः यदि विधानसभा में किसी एक राजनीतिक दल या किसी राजनीतिक दलों के गठबंधन को पूर्ण बहुमत प्राप्त नहीं होता। है तो राज्यपाल स्वविवेक का प्रयोग करते हुए किसी व्यक्ति को मुख्यमंत्री बनने हेतु निमंत्रण दे सकता है। दूसरे, राज्यपाल केन्द्र तथा राज्य के बीच एक कड़ी के रूप में कार्य करता है। राज्य विधायिका द्वारा पारित किसी भी विधेयक को वह भारत के राष्ट्रपति के विचार हेतु आरक्षित कर सकता है। तृतीय, यदि राज्यपाल यह मानता है कि राज्य की सरकार सविधान के अनुसार नहीं चल रही है तो वह राष्ट्रपति को इसकी सूचना वैसी स्थिति में संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत, राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया जाता है, राज्य मंत्रिपरिषद् हटा दी जाती है और राज्य विधानसभा या तो भंग कर दी जाती है या निलंबित कर दी जाती है। ऐसी आपातकाल स्थिति के दौरान, राज्यपाल राष्ट्रपति की ओर से राज्य में शासन करता है।

19.1.3 राज्यपाल और मंत्रिपरिषद के बीच संबंध
जैसा कि हम ऊपर देख चुके हैं, राज्य की कार्यपालिका राज्यपाल, मुख्यमंत्री तथा मंत्रिपरिषद से मिलकर बनती है। सामान्यतः, राज्यपाल अपनी शक्तियों का प्रयोग मंत्रिपरिषद की सलाह पर ही करता है। हम जानते हैं कि मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाते समय राज्यपाल अपने औपचारिक कर्त्तव्यों का पालन करता है। वह मुख्यमंत्री पद की शपथ के लिए राज्य विधान सभा में बहुमत प्राप्त दल के नेता को ही आमंत्रित करता है। मंत्रिपरिषद के अन्य सदस्यों की नियुक्ति भी राज्यपाल मुख्यमंत्री की संस्तुति के अनुसार ही करता है। विधानसभा में बहुमत एक दल अथवा दल समूह अथवा निर्दलीय समूहों से मिलकर बनता है। लेकिन जब सदन में एक नेता के चुनाव हेतु स्पष्ट बहुमत नहीं होता है, तो राज्यपाल अपनी विवेकाधीन शक्तियों का प्रयोग कर सकता है। इसी तरह, सैद्धांतिक रूप से सभी मंत्री राज्यपाल के प्रसादपर्यन्त अपने पदों पर बने रहते हैं, परंतु व्यवहारिक रूप में मुख्यमंत्री तथा मंत्रिपरिषद के सदस्य विधानसभा में बहुमत का समर्थन प्राप्तरहने तक अपने पदों पर बने रहते हैं। राज्यपाल उन्हें तभी बर्खास्त कर सकता है जब राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया जाता है।

मुख्यमंत्री को मंत्रिपरिषद् के सभी निर्णयों की सूचना राज्यपाल को भेजनी होती है। राज्यपाल राज्य प्रशासन से संबंधित किसी आवश्यक सूचना की मांग भी कर सकता है। यदि एक मंत्री व्यक्तिगत रूप से कोई निर्णय लेता है तो राज्यपाल ऐसे मामले को मंत्रिपरिषद के समक्ष उसके विचार के लिए रखने हेतु मुख्यमंत्री से कह सकता है। यह सच है कि राज्यपाल नाममात्र काप्रमुख होता है तथा वास्तविक शक्तियाँ मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में मंत्रिपरिषद द्वारा ही प्रयोग की जाती हैं। परंतु यह कहना उचित नहीं है कि राज्यपाल केवल संवैधानिक या औपाचारिक प्रमुख होता है। वह कुछ विशेष परिस्थितियों में अपनी शक्तियों का बड़े प्रभावी ढंग से प्रयोग कर सकता है। वह विशेषतौर पर ऐसा तब कर सकता है जब राज्य में राजनीतिक अस्थिरता है। चूंकि वह केन्द्र तथा राज्य के बीच की कड़ी है, अतः वह उस समय बहुत प्रभावी हो जाता है, जब केन्द्र सरकार राज्य सरकार को कोई निर्देश भेजती है। कुछ विशेष परिस्थितियों में विवेकाधीन शक्तियाँ भी राज्यपाल को वास्तविक कार्यकारी के रूप में कार्य करने का अवसर देती हैं।

19.2.1 नियुक्ति

जैसा कि हम पढ़ चुके हैं, मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में मंत्रिपरिषद ही वास्तविक कार्यकारी शक्तियों का प्रयोग करती है। आप यह भी जानते हैं कि राज्यपाल द्वारा मुख्यमंत्री तथा मंत्रिपरिषद के अन्य मंत्रियों की नियुक्ति की जाती है। यद्यपि उनका कार्यकाल पांच वर्ष का होता है, परंतु वे विधानसभा में बहुमत के समर्थन रहने तक अपने पद पर बने रहते हैं। यदि कोई ऐसा व्यक्ति जो राज्य विधानसभा का सदस्य नहीं है मुख्यमंत्री अथवा मंत्री के रूप में नियुक्त किया जाता है तो उसे नियुक्ति की तारीख से छः माह के अंदर दोनों सदनों में से किसी सदन का सदस्य बनना आवश्यक है। राज्यपाल के द्वारा मुख्यमंत्री की सलाह के अनुसार मंत्रियों के बीच विभागों का आवंटन किया जाता है।

19.2.2 मुख्यमंत्री तथा मंत्रिपरिषद के कार्य

आपने कभी इस तथ्य पर ध्यान दिया होगा कि राज्य में जहाँ जो कुछ भी घटित होता है सबके लिए मुख्यमंत्री को ही जिम्मेदार माना जाता है। यदि अच्छे कार्य होते हैं तो उनके लिए उसकी प्रशंसा की जाती है लेकिन यदि गलत कार्य होते हैं तो उनके लिये वह आलोचना का पात्र बनता है। ऐसा क्यों हैं? वास्तव में, राज्य में मुख्यमंत्री सरकार का प्रमुख होता है और उसकी भूमिका महत्वपूर्ण होती है। वहः

  • मंत्रिपरिषद की नियुक्ति तथा मंत्रिपरिषद के सदस्यों के बीच मंत्रालयों के आबंटन के लिए राज्यपाल को सलाह देता है।
  • राज्य मंत्रिपरिषद की बैठकों की अध्यक्षता करता है तथा साथ ही विभिन्न मंत्रियों के कामकाज में समन्वय स्थापित करता है।
  • राज्य के लिए नीतियों और कार्यक्रमों के निर्माण का मार्गदर्शन करता है तथा राज्य विधायिका में मंत्रियों द्वारा प्रस्तुत किये जाने वाले विधेयकों का अनुमोदन करता है।
  • मंत्रिपरिषद तथा राज्यपाल के बीच वह एकमात्र कड़ी है। वह मंत्रिपरिषद द्वारा प्रशासन से संबंधित लिये गये सभी निर्णयों तथा विधायन के लिए प्रस्तावों से राज्यपाल को अवगत कराता है।
  • राज्यपाल की इच्छानुसार वह ऐसा कोई भी मामला जिसपर किसी मंत्री द्वारा कोई निर्णय से लिया गया है अथवा मंत्रिपरिषद के विचाराधीन है, तो उसे पूरे मंत्रिपरिषद के समक्ष विचारार्थ प्रस्तुत करता है।
19.2.3 मुख्यमंत्री की स्थिति

मुख्यमंत्री राज्य का वास्तविक कार्यकारी प्रमुख होता है। मुख्यमंत्री ही नीतियों का निर्माण करता है तथा उन्हें लागू करने के लिए मंत्रिपरिषद का मार्गदर्शन करता है। मुख्यमंत्री सर्वाधिक शक्तिशाली होता है, विशेषकर उस समय जब एक राजनीतिक दल को विधानसभा में पूर्ण बहुमत प्राप्त हो।

परंतु यदि वह गठबंधन सरकार का प्रमुख होता है तो उसकी भूमिका गठबंधन के अन्य भागीदारों के खींचतान तथा दबाव के कारण प्रतिबंधित हो जाती है। यदि सदन में बहुमत बहुत कम तो कभी-कभी ऐसा भी होता है कि कुछ निर्दलीय विधान सभा सदस्यों के द्वारा भी मुख्यमंत्री दबाव महसूस करता है।

19.3 राज्य विधायिका

प्रत्येक राज्य में एक विधायक होता है। नीचे चित्र में आप कर्नाटक राज्य की विधानसभा का भवन देख रहे हैं। आइये हम समझें कि राज्य विधायिका का गठन कैसे किया जाता राज्यों में विधायिका द्विसदनीय है अर्थात विधायिका में दो सदन हैं। अधिकांश राज्यों में विधायिका एक सदनीय है अर्थात वहाँ एक ही सदन है। राज्यपाल राज्य विधायिका का अभिन्न अंग होता है। एक सदनीय विधायिका में विधानसभा होती है तथा द्विसदनीय विधायिका में एक विधानसभा होती है जिसे निम्न सदन तथा दूसरी विधान परिषद होती है जिसे उच्च सदन कहा जाता है। वर्तमान में बिहार, जम्मू तथा कश्मीर, कर्नाटक, महाराष्ट्र एवं उत्तरप्रदेश में द्विसदनीय धानमंडल हैं और बाकी सभी राज्यों के एकसदनीय विधायिका है।

19.3.1 विधानसभा का गठन

विधानसभा उन राज्यों में भी वास्तविक विधायिका होती है, जहां द्विसदनीय विधायिकायें हैं। भारतीय संविधान के अनुसार, राज्य विधान सभा में 500 सदस्यों से अधिक तथा 60 से कम सदस्य नहीं होंगें। लेकिन गोवा, सिक्किम तथा मिजोरम जैसे बहुत छोटे राज्यों की विधायिकाओं की सदस्यसंख्या 60 से कम है। विधानसभा में अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के लिए सीटें आरक्षित की गयी हैं। यदि राज्यपाल को ऐसा महसूस हो कि राज्य विधान सभा में एंग्लो-इंडियन समुदाय का पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है तो वह उस समुदाय के एक सदस्य को सदन के लिए मनोनीत कर सकता है। विधानसभा एक निर्वाचित सदन है। इसके सदस्य, सार्वभौम वयस्क मताधिकार के आधार पर नागरिकों द्वारा निर्वाचित किये जाते हैं। राज्य विधानसभा का सदस्य. चुने जाने के लिए संविधान में कुछ निश्चित योग्यताओं का उल्लेख किया गया है :

18.3.2 विधानपरिषद का गठन

राज्य विधायिका के दूसरे अर्थात् उच्च सदन को विधानपरिषद कहते हैं। इसकी सदस्य संख्या राज्य विधान सभा की कुल सदस्य संख्या के एक तिहाई से अधिक तथा 40 सदस्यों से कम नहीं हो सकती। जम्मू तथा कश्मीर की विधान परिषद में 36 सदस्य हैं यह एक अपवाद है। विधानपरिषद के सदस्य अंशतः निर्वाचित तथा अंशतः मनोनीत होते हैं

विधानपरिषद की संरचना निम्न रूप में होती है :

  • इसके 1/3 सदस्य राज्य के स्थानीय निकायों जैसे नगरपालिकाओं, जिला बोर्डों तथा अन्य स्थानीय प्राधिकारियों द्वारा निर्वाचित किये जाते हैं;
  • इसके 1/3 सदस्य राज्य विधान सभा के सदस्यों द्वारा निर्वाचित किये जाते हैं;
  • इसके 1/12 सदस्य ऐसे व्यक्तियों से मिलकर बनने वाले निर्वाचक मण्डलों द्वारा निर्वाचित किये जाते हैं जो राज्यक्षेत्र में कम से कम तीन वर्ष के स्नातक हैं;
  • इसके 1/12 सदस्य ऐसे व्यक्तियों से मिलकर बनने वाले निर्वाचक मण्डलों द्वारा निर्वाचित किये जाते हैं जो राज्य के भीतर माध्यमिक पाठशालाओं में, शिक्षण के काम में कम से तीन वर्ष से संलग्न हों; और
  • शेष 1/6 सदस्य राज्य के राज्यपाल द्वारा मनोनीत किये जाते हैं।
  • विधान परिषद एक स्थायी सदन है और इसलिए यह भंग नहीं होती है। इसके सदस्य छः वर्ष के लिए निर्वाचित नामांकित किये जाते हैं। प्रत्येक दो वर्ष में इसके 1/3 सदस्य निवृत्त हो जाते हैं। निवृत्त सदस्य पुनः चुने जाने के लिए योग्य होते है। राज्य विधानपरिषद का सदस्य बनने की योग्यताएं राज्य विधानसभा के सदस्यों के समान ही हैं। किन्तु विधान सभा के मामले में निम्नतम उम्र सीमा 25 वर्ष है जबकि विधानपरिषद के लिए यह 30 वर्ष है।

राज्यविधायिका की बैठकें वर्ष में कम से कम दो बार होती हैं। परंतु दो सत्रों के बीच की अवधि छः माह से अधिक की नहीं हो सकती। राज्य विधानसभा तथा विधानपरिषद अपने पदाधिकारियों जैसे विधानसभा अध्यक्ष, विधानसभा उपाध्यक्ष, विधान परिषद अध्यक्ष तथा विधान परिषद उपाध्यक्ष आदि का चुनाव करती है।

दोनों सदनों का कार्य संबंधित पीठासीन अधिकारियों द्वारा सम्पादित किया जाता है, जो कि सदन में अनुशासन तथा व्यवस्था भी बनाये रखते हैं।

29.3.3 राज्य विधायिका के कार्य

राज्य विधायिका निम्न तरह के कार्य करती है:

(अ) विधायी कार्य : विधानसभा को विधि निर्माण का अधिकार है। सभी कानून इसके द्वारा पारित किये जा सकते हैं। जहाँ पर द्विसदनीय विधायिका है वहाँ सामान्य विधेयक किसी भी सदन में प्रस्तुत किये जा सकते हैं। कोई विधेयक जो विधानसभा द्वारा पारित कर दिया जाता है उसे विधानपरिषद के पास भेजा जाता है। विधानपरिषद या तो उसे पारित कर देती है या अपनी सिफारिशों के साथ विधानसभा को वापस लौटाती है। यदि विधेयक विधानसभा द्वारा विधानपरिषद् की सिफारिशों सहित या उनके बिना पुनः पारित कर दिया जाता है तो यह दोनों सदनों द्वारा पारित समझा जाता है। वित्त विधेयक केवल विधानसभा में ही प्रस्तुत किये जा सकते हैं। विधानसभा द्वारा वित्त विधेयक को पारित कर दिये जाने पर यह विधानपरिषद के पास भेजा जाता है। विधानपरिषद को इसे पारित करके या फिर अपनी सिफारिशों के साथ इसकी प्राप्ति की तारीख से 14 दिन की अवधि के भीतर वापस विधानसभा को लौटाना होता है।

यदि विधानसभा विधानपरिषद द्वारा की गई सिफारिशों को नहीं मानती है तब भी वह विधेयक दोनों सदनों द्वारा पारित समझा जाता है। राज्य विधायिका द्वारा पारित होने के पश्चात विधेयक राज्यपाल की स्वीकृति के लिए भेजा जाता है। धन विधेयक पर राज्यपाल को अपनी स्वीकृति देनी ही होती है। धन विधेयक के अतिरिक्त विधेयकों को राज्यपाल स्वीकृत कर सकता है या पुनर्विचार के लिए लौटा सकता है या राष्ट्रपति के विचारार्थ विधेयक को आरक्षित कर सकता है।

(ब ) कार्यपालिका पर नियंत्रण : राज्य विधायिका कार्यपालिका पर नियंत्रण रखती है। मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से विधानसभा के प्रति जिम्मेदार होती है। वह तभी तक बनी रहती है जब तक विधानसभा का विश्वास उसे प्राप्त रहता है। यदि विधानसभा में अविश्वास का प्रस्ताव पारित हो जाता है तो मंत्रिपरिषद हटा दी जाती है। इसके अलावा, विधायिका प्रश्नों और पूरक प्रश्नों, स्थगन प्रस्तावों तथा ध्यानाकर्षण सूचनाओं द्वारा सरकार पर नियंत्रण रखती है।

(स) निर्वाचन कार्य : विधान सभा के निर्वाचित सदस्य राष्ट्रपति के चुनाव के लिए बने निर्वाचक मण्डल के सदस्य होते हैं। विधानसभा के सदस्य संबंधित राज्य से चुने जाने वाले राज्यसभा के सदस्यों का चुनाव भी करते हैं। इसके अलावा, अपने राज्य की विधान परिषद के 1/3 सदस्यों का चुनाव भी विधानसभा सदस्यों द्वारा किया जाता है।

(द) संविधान संशोधनों से संबंधित कार्य : संविधान संशोधनों से संबंधित कार्य राज्य विधायिका का महत्वपूर्ण कार्य है। कुछ संविधान संशोधनों के लिए संसद के दोनों सदनों में प्रत्येक सदन के विशेष बहुमत के साथ कम-से-कम आधे राज्यों के विधानसभाओं के अनुसमर्थन की आवश्यकता होती है।

19.4 नागरिकों और उनके दैनिक जीवन पर राज्य सरकार के प्रभाव

क्या आपने कभी महसूस किया है कि राज्य सरकार की नीतियों तथा कार्यक्रमों पर राज्य विधायिकाओं में होने वाली बहस किस तरह हमारे दैनिक जीवन को प्रभावित करती है ? सभी राज्यों द्वारा चलायी जा रही योजनाएं तथा परियोजनाएं हमें प्रत्यक्षतः अथवा परोक्षतः प्रभावित करती हैं। इनमें से प्रमुख भाग राज्य सरकारों द्वारा चलायी जा रही कल्याणकारी परियोजनाओं का है। कई बार राज्य सरकारों द्वारा संघ सरकार की कल्याणकारी योजनाओं को अपनाकर उन्हें कार्यान्वित किया जाता है।

उदाहरणार्थ आंध्रप्रदेश तथा राजस्थान राज्यों में विद्यालय नहीं जाने वाले बच्चों की शिक्षा के लिए ‘रेजिडेंशियल ब्रीज कोर्सेज’ के द्वारा अभिनव प्रयास किये जा रहे है। ऐसे बच्चों में मानसिक रूप से कमजोर, श्रवण/दृष्टि बाधित तथा शारीरिक रूप ‘विकलांग बच्चे भी सम्मिलित हैं। इस तरह के प्रयास इन बच्चों को मुख्य धारा के विद्यालयों से जुड़ने के योग्य बनाते हैं। केन्द्र सरकार की मध्याह्य भोजन योजना के रूप में, उत्तरप्रदेश में 95,000 सरकारी प्राथमिक विद्यालयों से भी अधिक में बच्चों को खाना उपलब्ध करवाया जा रहा है। इस योजना को स्कुलों में कार्यान्वित करने के लिए ग्राम का निर्वाचित प्रधान जिम्मेदार होता है। राज्य मध्याह्य भोजन गेहूँ, चावल, सब्जियाँ, सोयाबीन और दालों को शामिल करता है। इन बच्चों के लिए जिन अभिनव प्रयासों को अपनाया जाता है, उनमें खेल तथा कम्प्यूटर द्वारा सीखने की प्रक्रियाएँ भी शामिल हैं। .

महाराष्ट्र राज्य में विद्यालय स्वास्थ्य एवं स्वच्छता शिक्षा कार्यक्रम क्रियान्वित किया जा रहा है। इस कार्यक्रम के द्वारा परिवर्तन लाने में बच्चे नेतृत्व प्रदान कर रहे हैं। बच्चे जिन्हें ‘स्वच्छता दूत’ कहा जाता है, स्कूलों, परिवारों और समुदायों में सफाई और स्वच्छता के संबन्ध में जागरूकता ला रहे हैं। यह कार्यक्रम महाराष्ट्र राज्य सरकार द्वारा संघ सरकार के संपूर्ण स्वच्छता अभियान के अंग के रूप में चलाया जा रहा है। नागालैण्ड की सरकार ने शिक्षा, स्वास्थ्य एवं बिजली जैसे सामाजिक क्षेत्रों में एक नई शुरुआत की है। इन क्षेत्रों के प्रबंधन एवं नियंत्रण में समुदाय तथा सरकारी संस्थाओं की भागीदारी की ओर वह कदम बढ़ा रही है।

19.5 उच्च न्यायालय तथा अधीनस्थ न्यायालय

आपने अपने राज्य के उच्च न्यायालय के बारे में सुना होगा । संविधान के अनुसार प्रत्येक राज्य के लिए एक उच्च न्यायालय का होना जरूरी है। एक उच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में एक से अधिक राज्य हो सकते हैं। इस तरह का एक उदाहरण गुवाहाटी उच्च न्यायालय है जिसके अधिकार क्षेत्र में आसाम, मेघालय, अरूणाचल प्रदेश, नागालैंड, मिजोरम, मणिपुर तथा त्रिपुरा राज्य हैं। प्रायः संघ-शासित क्षेत्रों पर उनके पड़ोसी राज्यों के उच्च न्यायालयों का अधिकार क्षेत्र होता है।

19.5.1 उच्च न्यायालय का गठन

प्रत्येक उच्च न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश तथा कुछ अन्य न्यायाधीश होते हैं। सभी उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की संख्या एक जैसी नहीं होती। मुख्य न्यायाधीश तथा न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा होती है। प्रत्येक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति के लिए राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की सलाह लेते हैं। न्यायाधीशों की नियुक्ति में राष्ट्रपति संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की भी सलाह लेते हैं। उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए संबंधित राज्य के राज्यपाल की भी सलाह ली जाती है। भारत के मुख्य न्यायाधीश की सलाह पर राष्ट्रपति न्यायाधीशों के एक उच्च न्यायालय से दूसरे में स्थानान्तरित कर सकते हैं।

उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के पद पर नियुक्त होने के लिए संबंधित व्यक्ति में निम्नलिखित योग्यताएँ होनी आवश्यक हैं:

  • वह भारत का नागरिक हो;
  • वह भारत के किसी क्षेत्र में कम-से-कम 10 वर्षों तक न्यायिक पद पर आसीन रहा हो; या
  • वह किसी एक या अधिक उच्च न्यायालयों में कम-से-कम 10 वर्षों तक लगातार, बिना किसी विराम के अधिवक्ता रहा हो ।

उच्च न्यायालय के न्यायाधीश 62 वर्ष की आयु तक अपने पद पर बने रहते हैं। लेकिन कोई मुख्य न्यायाधीश या न्यायाधीश इसके पहले भी अपना पद त्याग कर सकते हैं। यदि किसी न्यायाधीश को उनके पद से हटाए जाने के लिए साबित कदाचार या असमर्थता के आधार पर संसद के प्रत्येक सदन की कुल संख्या के कम से कम दो तिहाई बहुमत द्वारा समावेदन पारित कर दिया जाय तो राष्ट्रपति उस न्यायाधीश को पद से हटा सकते हैं। मुख्य न्यायाधीश तथा न्यायाधीशों को वेतन एवं संसद द्वारा निर्धारित विशेषाधिकार भी प्राप्त होते हैं। सेवानिवृत्त होने के बाद न्यायाधीश सर्वोच्च न्यायालय में या उस उच्च न्यायालय को छोड़कर जहाँ वे न्यायाधीश थे, अन्य उच्च न्यायालयों में अधिवक्ता का कार्य कर सकते हैं

19.5.2 उच्च न्यायालय का अधिकार क्षेत्र

उच्च न्यायालय का अधिकार क्षेत्र संबंधित राज्य / राज्यों या संघ शासित क्षेत्रों की राजक्षेत्रीय सीमा तक रहता है। उच्च न्यायालय के दो प्रकार के अधिकार क्षेत्र हैं प्राथमिक अधिकार क्षेत्र तथा अपीलीय अधिकार क्षेत्र । प्राथमिक अधिकार क्षेत्र के अन्तर्गत कुछ मामलों को उच्च न्यायालय में सीधे लाया जा सकता है। मौलिक अधिकारों तथा अन्य कानूनी अधिकारों को लागू करना उच्च न्यायालय के प्राथमिक अधिकार क्षेत्र में आते हैं। इस संबंध में उच्च न्यायालय को रिट जारी करने का अधिकार है। ऐसे रिट विधायिका, कार्यपालिका या अन्य किसी अधिकारी द्वारा व्यक्तियों के अधिकारों के अतिक्रमण से रक्षा करते हैं । उच्च न्यायालय अपने प्राथमिक अधिकार क्षेत्र के अन्तर्गत राज्य विधायिका के किसी सदस्य के निर्वाचन के विरूद्ध निर्वाचन याचिका की सुनवाई करता है।

19.5.3 अधीनस्थ या अवर न्यायालय

जिला तथा अनुमण्डल स्तरों पर अधीनस्थ न्यायालय होते हैं । प्रत्येक जिले में एक जिला एवं सत्र न्यायाधीश होते हैं। उसके अधीन न्यायिक पदाधिकारियों का एक पदानुक्रम होता है। भारत में अधीनस्थ न्यायालयों की संरचना एवं उनकी कार्यप्रणाली पूरे देश में एक जैसी होती है।

आपने क्या सीखा

  • भारत में एक संघीय व्यवस्था है। इसीलिए यहाँ केन्द्र तथा राज्य दोनों स्तरों पर सरकारें हैं। दोनों स्तरों की सरकारों का गठन तथा उनके कार्य संसदीय पद्धति के सिद्धान्तों पर आधारित हैं।
  • राज्यपाल राज्य का प्रमुख होता है। उसकी नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा होती है। संविधान उसे व्यापक कार्यकारी, विधायी, वित्तीय एवं विवेकाधीन अधिकार प्राप्त हैं। किन्तु वास्तव में विवेकाधीन अधिकारों को छोड़कर अन्य सभी अधिकारों का प्रयोग वह मंत्रिपरिषद की सलाह पर ही करता है। मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में मंत्रिपरिषद ही राज्य में वास्तविक कार्यपालिका है। यह ठीक ही कहा गया है कि मुख्यमंत्री ही राज्य सरकार का वास्तविक प्रमुख है।
  • भारत के अधिकतम राज्यों में एक सदनीय विधायिका है। कुछ राज्यों की विधायिका द्विसदनीय है। राज्य विधायिका के दो सदन हैं: विधानसभा तथा विधानपरिषद। एक सदनीय विधायिका वाले राज्यों में केवल विधानसभा होती है। राज्य विधायिका का प्रमुख कार्य कानून बनाना है। इसके अतिरिक्त राज्य की विधानसभा मंत्रिपरिषद को भी नियंत्रित करती है।
  • उच्च न्यायालय राज्य स्तर की न्यायपालिका के शीर्ष पर स्थित है। उच्च न्यायालय को प्राथमिक एवं अपीलीय अधिकार क्षेत्र प्राप्त हैं। अधीनस्थ न्यायालय दीवानी, फौजदारी तथा राजस्व के मामलों की सुनवाई करते हैं।

NIOS Class 10th सामाजिक विज्ञान (पुस्तक – 2) Notes in Hindi

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