NIOS Class 10th Social Science (213) Chapter –17 भारत एक कल्याणकारी राज्य (India a welfare state)
Textbook | NIOS |
class | 10th |
Subject | Social Science |
Chapter | 17th |
Chapter Name | भारत एक कल्याणकारी राज्य (India a welfare state) |
Category | Class 10th NIOS Social Science (213) |
Medium | Hindi |
Source | Last Doubt |
NIOS Class 10th Social Science (213) Chapter – 17 भारत एक कल्याणकारी राज्य (India a welfare state) Question Answer in Hindi जिसमे हम, कल्याणकारी राज्य का उद्देश्य क्या है?, कल्याणकारी राज्य की परिभाषा क्या है?, कल्याणकारी राज्य की परिभाषा क्या है?, कल्याणकारी राज्य तीन प्रकार के कौन-कौन से हैं?, कल्याणकारी राज्य किसका मिश्रण है?, भारत के संविधान का कौन सा भाग कल्याणकारी राज्य की घोषणा करता है?, कल्याण से आप क्या समझते हैं?, भारतीय संविधान का कौन सा भाग कल्याणकारी राज्य के आदर्श को बताता है?, भारत में कल्याणकारी राज्य के कामकाज के क्या पहलू हैं?, कल्याण कितने प्रकार के होते हैं?, क्या जापान एक कल्याणकारी राज्य है?, कल्याणकारी योजना क्या है?, कल्याणकारी राज्य की अवधारणा किसने दी थी?, कल्याणकारी राज्य का सबसे अच्छा उदाहरण कौन सा राज्य है?, आदि के बारे में पढ़ेंगे
NIOS Class 10th Social Science (213) Chapter – 17 भारत एक कल्याणकारी राज्य (India a welfare state)
Chapter – 17
भारत एक कल्याणकारी राज्य
प्रश्न – उत्तर
पाठांत प्रश्न
प्रश्न 1. कल्याणकारी राज्य का अर्थ क्या है ? संविधान निर्माताओं ने यह निर्णय क्यों लिया कि भारत एक कल्याणकारी राज्य होगा ? उत्तर- एक राज्य अवसर की समानता तथा धन के उचित वितरण के सिद्धांतों पर आधारित होता है। यह ऐसे लोगों के प्रति सरकारी उत्तरदायित्व पर केंद्रित रहता है, जिन्हें अच्छा जीवन जीने के न्यूनतम साधन भी उपलब्ध नहीं। इस व्यवस्था में नागरिकों के कल्याण की जिम्मेदारी राज्य की होती है। स्वतंत्रता से पूर्व भारत एक कल्याणकारी राज्य नहीं था। भारतीय संविधान के तीसरे भाग में सम्मिलित किए गए मूल अधिकार यह गांरटी प्रदान करते हैं कि सभी भारतीय नागरिक उन नागरिक स्वतंत्रता तथा मूलभूत अधिकारों का उपयोग कर सकेंगे। जब भारत स्वतंत्र हुआ तो इनके सामने असंख्य समस्याएँ और चुनौतियाँ थीं। आर्थिक रूप से भारत की स्थिति अत्यंत दयनीय थी। सामाजिक स्तर पर भी भारत में अनेक समस्याएँ थीं। समाज के कमजोर वर्ग, जैसे- महिलाएँ, दलित बच्चे जीवन-यापन के बुनियादी साधनों से भी वंचित थे। संविधान निर्माता इन समस्याओं से बहुत अच्छी तरह परिचित थे। इसलिए उन्होंने यह निश्चय किया कि भारत एक कल्याणकारी राज्य होगा। भारतीय संविधान की प्रस्तावना में भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न, समाजवादी, पंथ निरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य वर्णित किया गया। उसके पश्चात् व्यापक प्रावधान किए गए। |
प्रश्न 2. राज्य के नीति-निर्देशक तत्त्व के क्या उद्देश्य है ? उत्तर- राज्य के नीति-निर्देशक तत्त्व के मुख्य उद्देश्य ऐसी सामाजिक और आर्थिक दशाओं का निर्माण करना है जिनके अंतर्गत सभी नागरिक अच्छा जीवन व्यतीत कर सकें। दूसरे शब्दों में, इनका उद्देश्य देश में सामाजिक तथा आर्थिक लोकतंत्र की स्थापना करना है। ये सिद्धांत आम लोगों के हाथों में एक मापदण्ड की तरह है जिनके द्वारा लोग इन उद्देश्यों की दिशा में सरकार है द्वारा किए गए प्रयत्नो को माप सके। कार्यकारी एजेंसियों इन सिद्धांतों से निर्देशित होती हैं। यहाँ तक कि न्यायपालिका को भी विभिन्न मामलों पर निर्माण करते समय इनको ध्यान में रखना होता है। |
प्रश्न 3. राज्य के नीति-निर्देशक तत्त्व मौलिक अधिकारों से कैसे भिन्न है ? व्याख्या कीजिए। उत्तर- मौलिक अधिकारों और नीति-निर्देशक तत्त्वों में अंतर – यद्यपि मौलिक अधिकारों तथा नीति-निर्देशक तत्त्वों का ‘उद्देश्य एक ही है, फिर भी दोनों की प्रकृति में पर्याप्त अंतर है, जो निम्नलिखित हैं- (i) मौलिक अधिकार वादयोग्य हैं और नीति- निर्देशक तत्त्व वादयोग्य नहीं हैं- मौलिक अधिकारों तथा नीति-निर्देशक तत्त्वों में मुख्य भेद उनकी न्याय संबंधी प्रकृति के विषय में है। मौलिक अधिकार वादयोग्य हैं। उन्हें न्यायालय का संरक्षण प्राप्त हैं। इसके विपरीत, राज्य के नीति-निर्देशक तत्त्वों को न्यायालय का संरक्षण प्राप्त नहीं हैं। निर्देशक तत्त्व आज्ञा-पत्र हैं। वे व्यक्ति को अधिकार प्रदान नहीं करते। अतः संवैधानिक उपचार की भी वे व्यवस्था नहीं करते। (ii) मौलिक अधिकार नकारात्मक हैं, जबकि निर्देशक तत्त्व सकरात्मक निर्देश हैं- मौलिक अधिकार राज्य के सकारात्मक दायित्वों का उल्लेख करते हैं। वे राज्य की शक्ति पर कतिपय मर्यादाएँ लगाते हैं। उसे कुछ कार्यों को करने से निषेध करते हैं। इसका तात्पर्य यह है कि मौलिक अधिकारों की प्रकृति निषेधात्मक है। इसके विपरीत, नीति-निर्देशक तत्त्व नागरिकों के प्रति राज्य के सकारात्मक दायित्व हैं। ग्लेडहिल के शब्दों में, “मौलिक अधिकार निषेधात्मक हैं, जो सरकार को कुछ कार्यों को करने से रोकते हैं; निर्देशक तत्त्व सकारात्मक आदेश हैं, जो सरकार को कुछ कार्यों को करने का आदेश देते हैं।’ (iii) निर्देशक तत्त्व मौलिक अधिकारों की अपेक्षागौण हैं- संवैधानिक दृष्टि से निर्देशक तत्त्व मौलिक अधिकारों की अपेक्षा गौण हैं और दोनों में पारस्परिक विरोध होने की स्थिति में अधिकार ही प्रभावी होंगे। मौलिक अधिकारों तथा निर्देशक-तत्त्वों में यह अंतर वैधानिक दृष्टी से ही है। भारत की व्यावहारिक राजनीति में मौलिक अधिकारों और नीति-निर्देशक तत्त्वों में से किसे अधिक महत्त्वपूर्ण समझा जाए, यह उस समय की राजनीति परिस्थतियों पर निर्भर करता है। 1970 के बाद भारतीय राजनीति की प्रवृत्ति नीति-निर्देशक तत्त्वों को अधिक महत्त्व देने की रही है। 1971 में भारतीय संविधान में जो संशोधन (24वाँ और 25वाँ) किया गया, उसका उद्देश्य निर्देशक तत्त्वों के इस लक्ष्यों को क्रियान्वित करना ही है। |
प्रश्न 4. ऐसे कौन-से नीति निर्देशक तत्त्व हैं जो गाँधीवादी विचारधारा को प्रतिबिम्बित करते हैं ? उत्तर- गाँधी विचार अहिंसक सामाजिक व्यवस्था को प्रोत्साहन देते हैं। स्वराज्य, सर्वोदय, स्वावलम्बन आदि गाँधीवादी विचारधारा के मूल सिद्धांत हैं। हम सब यह जानते हैं कि गाँधी’ जी स्वतंत्रता आंदोलन के अग्रणी थे। संविधानकर्ता स्वतंत्रता के समय से ही गाँधीवादी सिद्धांतों को संविधान का आधार बनाने के पक्ष में थे। इस प्रकार गाँधी दर्शन ने संविधान के निर्माण का भी मार्गदर्शन किया। निम्नलिखित नीति निर्देशक तत्त्वों में गाँधीवादी विचारधारा प्रतिबिंबित होती हैं- (1) राज्य समाज के कमजोर वर्गों विशेष रूप से अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के लोगों के शैक्षिक एवं आर्थिक हितों को बढ़ावा देगा। (ii) राज्य ग्राम पंचायतों का गठन करने के लिए कदम उठाएगा। इन पंचायतों को ऐसी शक्तियाँ और प्राधिकार दिया जाना चाहिए, जो उन्हें स्वायत्त शासन की इकाइयों के रूप में कार्य करने योग्य बनाने के लिए आवश्यक हों। (iii) राज्य मादक पदार्थों तथा अन्य हानिकारक औषधियों आदि के सेवन को रोकने का प्रयास करेगा। (iv) राज्य ग्रामीण क्षेत्रों में लघु उद्योग को बढ़ावा देने का प्रयास करेगा। (v) राज्य पशुधन की गुणवत्ता सुधारने के लिए कदम उठाएगा तथा गायों, बछड़ों तथा अन्य दुधारू और वाहक पशुओं के वध पर रोक लगाएगा। |
प्रश्न 5. सामाजिक-आर्थिक विकास तथा समानता को प्रोत्साहन देने में निदेशक सिद्धांत किस प्रकार सहायक हैं ? उत्तर- सामाजिक तथा आर्थिक समानता को प्रोत्साहन देने वाले सिद्धांत कुछ ऐसे सिद्धांत हैं, जो भारत में सामाजिक तथा आर्थिक लोकतंत्रों के लक्ष्यों को साकार करने के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। निम्नलिखित सिद्धांत सामाजिक-आर्थिक विकास तथा समानता को प्रोत्साहन देने में सहायक हैं- (1) राज्य द्वारा अपने लोगों के लिए आजीविका के पर्याप्त साधन सुनिश्चित किए जाने चाहिए। (ii) राज्य द्वारा देश के भौतिक संसाधनों का सामान्य हित में न्यायसंगत वितरण किया जाना चाहिए। (iii) राज्य द्वारा संपदा का वितरण इस ढंग से किया जाना चाहिए जिससे संपदा का केंद्रीयकरण कुछ हाथों में न हो। (iv) पुरुष और स्त्री दोनों के लिए समान कार्य के लिए समान वेतन होना चाहिए। (v) राज्य को यह निर्देश दिया जाता है कि वह 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए अनिवार्य और मुफ्त शिक्षा प्रदान करने के लिए कदम उठाए। (vi) राज्य को उद्योगों के प्रबंधन में श्रमिकों की भागीदारी सुनिश्चित करने का प्रयास करना चाहिए। (vii) बच्चों और नवयुवकों की शोषण से रक्षा की जानी चाहिए। पुरुष, स्त्री तथा बच्चे आर्थिक आवश्यकता से विवश. होकर ऐसी नौकरियों एवं ऐसे रोजगारमें न पड़े जो उनकी आयु “ या शक्ति के अनुकूल न हों। (viii) राज्य को लोगों के लिए (अ) काम का अधिकार, (ब) शिक्षा का अधिकार, (स) बेरोजगारी, वृद्धावस्था, बीमारी, विकलांगता जैसे मामले में राज्य सहायता प्राप्त करने का अधिकार सुनिश्चित करना चाहिए। (ix) राज्य का कामगारों के लिए काम की मानवीय दशाएँ तथा महिलाओं के लिए प्रसूति राहत को सुनिश्चित करने के लिए प्रावधान करना चाहिए। |
प्रश्न 6. हाल ही में भारत और पाकिस्तान दोनों देशों के बीच शांति प्रक्रिया के एक अंग के रूप में परमाणु रहित और आणविक विश्वास बहाली के लिए सचिव स्तरीय वार्ता हुई। यह वार्ता कौन-से निर्देशक सिद्धांत से संबंधित है तथा कैसे ? उत्तर- उपर्युक्त वार्ता अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा से संबंधित सिद्धांत है। हमारे संविधान निर्माताओं द्वारा कुछ ऐसे सिद्धांतों का समावेश भी किया गया है, जो हमारी विदेश नीति संबंधी मामलों में हमें दिशा-निर्देश देते हैं ये हैं- (i) राज्य अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को प्रोत्साहन देगा। (ii) राज्य अन्य राष्ट्रों के साथ न्यायसंगत तथा सम्मान पूर्ण संबंधों को बनाए रखने का प्रयास करेगा। (ii) राज्य अंतर्राष्ट्रीय कानूनों और संधि दायित्वों के प्रति आदर भाव विकसित करेगा। (iv) राज्य अंतर्राष्ट्रीय विवादों को मध्यस्थ द्वारा अर्थात् पारस्परिक समझौतों द्वारा निपटाने के लिए प्रोत्साहन देगा। |
प्रश्न 7. ऐसे तीन राज्य के नीति-निर्देशक तत्त्वों के नाम लिखिए जिनका कार्यान्वयन किया जा चुका है। उत्तर- केंद्र सरकार तथा राज्य सरकारों ने राज्य के नीति निर्देशक तत्त्वों के कार्यान्वयन के लिए कदम उठाए हैं। जैसे सभी राज्यों में केंद्रीय सरकार द्वारा कार्यान्वित सर्वशिक्षा अभियान जिसे संसद द्वारा 2009 में शिक्षा के अधिकार अधिनियम पारित किया गया। 73 एवं 74वाँ संविधान के द्वारा पंचायतों में महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत तक सीटें आरक्षित कर दी। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार में नीति-निर्देशक तत्त्व कार्यान्वित किया जा चुका है। |
प्रश्न 8. नीचे दी गई कहानी को पढ़िए और प्रश्नों के उत्तर दीजिए। भोलू की उम्र 10 वर्ष की है। वह शहर आय है। उसकी देखभाल करने वाला यहाँ कोई नहीं है। अतः वह कचरा इकट्ठा करने के काम में लग गया। वह स्थानीय अस्पताल के बाहर फुटपाथ पर सोता है। वह किसी स्कूल में नहीं जाता तथा पेट भरने के लिए प्लास्टिक, विषाक्त, अपशिष्ट तथा अस्पताल के कचरे आदि को उठाता है जो स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक है तथा जीवन के लिए भी खतरनाक है। वह प्रतिदिन के 20 रुपए कमाता है। उसके पास किसी अन्य के बचे अस्वास्थ्यकर भोजन को खाने के अलावा और कोई दूसरा विकल्प नहीं है। (अ) भोलू की दशा के लिए कौन-से संभव कारण हो सकते हैं ? किन्हीं दो कारणों को लिखिए। उत्तर- भोलू की दशा के लिए दो कारण हैं-भूखमरी और अशिक्षा । (ब) भोलू जैसे बच्चों द्वारा सामना की जा रही परिस्थितियों से सम्बन्धित किन्हीं दो निर्देशक सिद्धान्तों की सूची बनाइए । उत्तर- (i) राज्य 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के लिए कदम उठाए। (ii) राज्य मादक द्रव्यों और हानिकारक औषधियों की खपत को रोकने का प्रयास करेगा। (स) भोलू की परिस्थितियों के बारे में अपने दोस्तों तथा परिवारजनों से चर्चा कीजिए तथा भोलू की परिस्थितियों के लिए कोई दो तरीके सुझाइए। में सुधार उत्तर- (i) सर्वप्रथम भोलू को आवास एवं भोजन उपलब्ध |
अती लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. दो मूलभूत अधिकर बताइए जिनकी गारंटी भारतीय संविधान के नीति-निर्देशक सिद्धांतों को शामिल हैं। उत्तर- (1) धर्म-निरपेक्षता का अधिकार, (2) मताधिकार। |
प्रश्न 2. किन सिद्धांतों को अपनाकर देश कल्याणकारी राज्य बन सकता है ? उत्तर- राजनीति के निर्देशक सिद्धांतों को लागू करके। |
प्रश्न 3. यदि निर्देशक तत्त्वों का लागू न किया जाए तो क्या होगा ? उत्तर- भारत को कल्याणकारी राज्य बनाने के मार्ग में बाधा पड़ेगी। |
प्रश्न 4. राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों का क्या महत्त्व है ? उत्तर- ये सिद्धांत केंद्रीय और राज्य की सरकारों के लिए निर्देश या सुझाव व सलाह देने का कार्य करते हैं। इनको अपनाकर राज्य कल्याणकारी राज्य बन सकता है। |
प्रश्न 5. राज्य नीति निर्देशक सिद्धांत राज्यों के क्या कर्त्तव्य निश्चित करते हैं ? उत्तर- (i) नागरिकों को सामाजिक एवं आर्थिक न्याय दिलाना, (ii) नागरिकों को सुरक्षा प्रदान करना, (iii) स्वास्थ्य, शिक्षा, भोजन, रोजगार प्रदान करना। |
प्रश्न 6. राज्य नीति-निदेशक सिद्धांतों के चार वर्गों के नाम लिखिए। उत्तर- (i) सामाजिक तथा आर्थिक सिद्धांत, (ii) गाँधीवादी सिद्धांत, (iii) अंतर्राष्ट्रीय सिद्धांत, (iv) विविध सिद्धांत। |
प्रश्न 7. केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा नीति निर्देशक सिद्धांतों को लागू करने के लिए उठाए गए दो कदम बताइए | उत्तर- (i) बैंकों और बीमा कंपनियों का राष्ट्रीयकरण किया गया। (ii) न्यायपालिका और कार्यपालिका को अलग कर दिया गया। |
प्रश्न 8. मौलिक अधिकारों और नीति-निर्देशक सिद्धांतों के निर्माण में मौलिक अंतर क्या है ? उत्तर- मौलिक अधिकार नागरिकों को संविधान द्वारा प्रदान किए गए हैं, लेकिन निर्देशक तत्त्वों का उपभोग वे कानून के बाद ही कर सकते हैं। दोनों ही व्यक्ति के विकास और कल्याणकारी राज्य की स्थापना के लिए है। |
प्रश्न 9. राज्य के नीति-निर्देशक तत्त्वं क्या हैं ? उत्तर- नीति-निदेशक तत्त्व वस्तुतः केंद्र तथा राज्यों की सरकारों को संविधान द्वारा दिए गए। वे निर्देश है जिनके आधार पर ये सरकारें ऐसी नीतियाँ बनाएँगी, जो देश में न्याय संगत समाज की स्थापना करने में सहायक होंगी। इनमें कुछ सिद्धांत सामाजिक और आर्थिक अधिकारों के रूप में है। |
प्रश्न 10. नीति-निर्देशक तत्त्वों का उल्लेख संविधान में कहाँ किया गया है ? उत्तर- नीति-निर्देशक तत्त्वों का उल्लेख संविधान के चौथे भाग में अनुच्छेद 36 से 51 तक में किया गया है। |
प्रश्न 11. 42वें संविधान संशोधन द्वारा कौन-सा नया निर्देशक तत्त्व जोड़ा गया है ? उत्तर- एक नया निर्देशक तत्त्व 42वें संविधान द्वारा जोड़ा गया है। यह पर्यावरण की सुरक्षा तथा सुधार और देश के वन तथा अन्य जीवन की सुरक्षा के विषय में राज्य के कर्त्तव्य का उल्लेख करता है। |
प्रश्न 12. भारत के संविधान में राज्य के नीति-निर्देशक तत्त्वों को क्यों सम्मिलित क्यों किया गया है ? उत्तर- भारत के संविधान में राज्य के नीति-निर्देशक तत्त्वों को लोगों की सामाजिक, आर्थिक उन्नति के लिए शामिल किया गया है। |
प्रश्न 13. नीति-निर्देशक तत्त्व के उद्देश्य और मूलाधिकार उद्देश्य में कोई एक अंतर लिखिए। उत्तर- नीति-निर्देशक तत्त्वों को न्यायालय लागू नहीं कर सकते। इनके कार्यान्वयन के लिए सरकार पर कोई संवैधानिक या कानूनी बाध्यता नहीं है। मूल अधिकार के पीछे न्यायालय की शक्ति है। नागरिकों को मूलाधिकारों के लिए मना नहीं किया जा सकता। ये उच्चतम तथा उच्च न्यायालय द्वारा संरक्षित है। |
प्रश्न 14. किन्हीं दो अंतर्राष्ट्रीय निर्देशक सिद्धांतों का उल्लेख कीजिए। उत्तर- अंतर्राष्ट्रीय सिद्धांत का संबंध भारत की शांति एवं सहयोग की विदेश नीति से है। इस सिद्धांत के अनुसार अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा को प्रोत्साहन देना, अन्य राष्ट्रों से उचित एवं सम्माननीय संबंध बनाकर रखना, मध्यस्थता द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय झगड़ों के शांतिपूर्ण समाधान में सहयोग करना शामिल है। |
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. राज्य के नीति-निर्देशक सिद्धांत क्या हैं ? जिनका कानून बनाते समय केंद्रीय एवं राज्य सरकारों को पालना चाहिए। उत्तर- राज्य के नीति-निर्देशक सिद्धांत है। जिनका कानून बनाते समय केंद्रीय एवं राज्य सरकारों को पालना चाहिए। इन सिद्धांतों को कार्यान्वित करके ही सामाजिक एवं लोकतांत्रिक । लोकतंत्र को वास्तविक बनाया जा सकता है। ये सिद्धांत केंद्रीय एवं राज्य सरकारों को भारत को कल्याणकारी राज्य बनाने के निर्देश या सुझाव, सलाह देते हैं। देश का प्रशासन चलाने के लिए ये सिद्धांत आधार माने गए हैं। इन सिद्धांतों को कानून द्वारा लागू। नहीं किया जा सकता। ये सिद्धांत व्यवहार्य नहीं है। यदि सरकार इनकी अवहेलना करे तो हम न्यायालय की मदद नहीं ले सकते। इन सिद्धांतों का संबंध सरकारी नीतियों से होता है। निर्देशक सिद्धांत संविधान के सकारात्मक पहलू हैं। वे सरकारों के सामने लक्ष्य निर्धारित करते हैं। यदि सरकार इन लक्ष्यों प्राप्त कर ले तो लोगों का जीवन सुधारता है और देश कल्याणकारी राज्य बन सकता है। |
प्रश्न 2. भारत के नीति निर्देशक सिद्धांतों को किस सीमा तक लागू किया गया है ? उदाहरण सहित बताइए। उत्तर- नीति-निर्देशक सिद्धांतों को लागू करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों ने अनेक कदम उठाए हैं, और इन सिद्धांतों को काफी हद तक लागू करने का प्रयास किया है बैंकों तथा बीमा कंपनियों के राष्ट्रीयकरण द्वारा सामान्य जनता के हित के लिए प्रयोग किया जाने लगा है। भारतीय विदेश नीति का लक्ष्य अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा सुनिश्चित करने का है। अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों को देश की मुख्य धारा में लाने के लिए विशेष अधिकार दिए गए हैं, दिए जा रहे हैं। पंचायती राज की स्थापना की जा रही है। न्यायपालिका एवं कार्यपालिका को अलग कर दिया गया है। कुटीर उद्योगों की स्थापना को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। अतः यह कहा जा सकता है कि सरकारें नीति-निर्देशक सिद्धांतों को लागू करने के लिए गंभीरतापूर्वक कार्य कर रही है। |
प्रश्न 3. सामाजिक तथा आर्थिक निर्देशक सिद्धांतों के कोई दो उदाहरण दीजिए । उत्तर- स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत आर्थिक दृष्टि से पिछड़ा हुआ था तथा कई सामाजिक बुराइयाँ फैली हुई थीं। इन समस्याओं के समाधान के लिए राजनीति के निर्देशक सिद्धांतों का प्रावधान किया गया। सामाजिक एवं आर्थिक सिद्धांत के अंतर्गत राज्यों को यह निर्देश देते हैं कि राज्य सभी नागरिकों को आजीविका कमाने तथा समान काम के लिए महिलाओं और पुरुषों को समान वेतन दे। राज्य अपनी संपदा का वितरण इस प्रकार से करे कि धन कुछ ही लोगों के हाथ में एकत्र न होने पाए। काम वे शिक्षा का अधिकार सुनिश्चित करे। रोजगार, वृद्धावस्था, बीमारी और अपंगता की स्थिति में सार्वजनिक न सहायता करे। कारखानों के प्रबंध में श्रमिकों की भागीदारी हो। 14 वर्ष के बच्चों के लिए निःशुल्क व अनिवार्य शिक्षा का प्रबंध करें। |
प्रश्न 4. राज्य के नीति-निर्देशक तत्त्व की क्या विशेषताएँ हैं ? उत्तर- राज्य के नीति-निर्देशक तत्त्व भारत की केंद्रीय तथा राज्य सरकारों के लिए दिशा-निर्देश हैं। कानूनों और नीतियों के निर्माण के समय सरकारों द्वारा इन सिद्धांतों को ध्यान में रखना चाहिए। यह सही है कि भारतीय संविधान ये प्रावधान न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय नहीं है, जिसका अर्थ है कि ये किसी भी अदालत द्वारा लागू नहीं कराए जा सकते। परंतु ये सिद्धांत देश की सरकारों के लिए मूलभूत माने गए हैं। यह केंद्रीय तथा राज्य सरकारों को कर्त्तव्य है, कि देश में न्यायपूर्ण समाज की स्थापना के लिए बनाए जाने वाले कानूनों के निर्माण में इन सिद्धांतों को लागू करें। ये सिद्धांत आयरलैण्ड के संविधान में उल्लेखित निर्देशक सिद्धांतों तथा गाँधीवादी दर्शन से प्रेरित हैं। |
प्रश्न 5- नीति-निर्देशक सिद्धांतों को संविधान में क्यों शामिल किया गया है ? उत्तर- भारत जैसे नव-स्वतंत्र राष्ट्र के सामने राष्ट्र-निर्माण और सामाजिक-आर्थिक बदलाव के लिए राज्य का दखल देना आवश्यक था। अतः संविधान निर्माताओं ने राज्य को इस दिशा में सकारात्मक कदम उठाने के लिए इन सिद्धांतों को संविधान में सम्मिलित किया। इनका उद्देश्य विधायिका और कार्यपालिका के सामने उपलब्धियों को मानव स्थापित करता है। संविधान ने इन्हें देश का शासन चलाने के लिए मौलिक सिद्धांत घोषित किया है। ये सिद्धांत राज्य के उन आदेशों और निर्देशों को भी परिभाषित करते हैं, जो राज्य द्वारा लोगों के सामाजिक-आर्थिक कल्याण को सुनिश्चित करते हैं। |
प्रश्न 6. नीति-निर्देशक सिद्धांत भारत में कल्याणकारी राज्य की स्थापना में किस प्रकार सहायक हैं ? उत्तर- नीति-निर्देशक सिद्धांत और कल्याणकारी राज्य – निर्देशक सिद्धांत एक ऐसे वातावरण को प्रोत्साहित करते हैं जिसमें नागरिकों का जीवन अर्थपूर्ण और सुविधाजनक हो। ये सरकार को याद दिलाते हैं कि वह अपनी नीतियों को कार्यान्वित करते समय जनकल्याण को ध्यान में रखे। स्त्री तथा पुरुष दोनों को समान कार्य के लिए वेतन, एक ऐसा लक्ष्य है जिससे भारत एक कल्याणकारी राज्य बन सकता है। बेरोजगारी, वृद्ध और विकलांग लोगों की देखभाल करना कुछ ऐसे सिद्धांत कृषि तथा पशु पालन के क्षेत्र में नवीनतम वैज्ञानिक तकनीक के प्रयोग को प्रोत्साहित करते हैं जिससे भारत इन क्षेत्रों में आत्मनिर्भर बन सके। एक देश जो अपनी जनता की रोटी, कपड़ा और मकान की आवश्यकताओं की पूर्ति कर पाता है, वास्तव में एक कल्याणकारी रज्य कहलाता है। |
प्रश्न 7. नीति-निर्देशक सिद्धांतों की क्यों आलोचना की जाती है ? व्याख्या करें। उत्तर- राज्य के नीति-निर्देशक सिद्धांतों की बहुत कटु आलोचना की जाती है। सामान्य तौर इसकी आलोचना कानूनी अधिकार को लेकर की जाती है। इनका कोई कानूनी आधार नहीं है। संविधान में शामिल किए जाने की बुद्धिमत्ता पर शक है, क्योंकि इन्हें लागू करना राज्य के लिए अनिवार्य नहीं है। आलोचक यह भी कहते हैं कि कुछ निर्देशक सिद्धांत अनावश्यक है, क्योंकि वे कार्यान्वित नहीं किए जा सकते। उदाहरण के लिए, मद्यनिषेध लागू नहीं किया जा सकता, क्योंकि कि ऐसा करने से राज्य राजस्व के एक बहुत बड़े भाग से वंचित हो जाएगा। इसमें कोई संदेह नहीं कि उपर दिए गए तर्कों में कुछ सच्चाई है। परंतु इसके साथ यह भी कहना कि हमारी सरकार इन सिद्धांतों को लागू करने में निष्क्रिय रही है, अनुचित होगा। |
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. “सरकार नीति-निर्देशक सिद्धांत लागू करने के लिए आवश्यक कदम उठा रही है।” इस कथन की पुष्टि चार उदाहरणों के द्वारा कीजिए । उत्तर- राजनीति के निर्देशक सिद्धांतों को लागू करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों ने अनेक कदम उठाए हैं और इन सिद्धांतों को काफी हद तक लागू करने का प्रयास किया है। 1. बैंकों तथा बीमा कंपनियों के राष्ट्रीयकरण द्वारा सामान्य जनता के हित के लिए प्रयोग किया जाने लगा। 2. भारतीय विदेश नीति का लक्ष्य अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा सुनिश्चित करने का है। 3. अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों को देश की मुख्य धारा में लाने के लिए विशेष अधिकार दिए गए हैं, दिए जा रहे हैं। 4. पंचायती राज की स्थापना की जा रही है। न्यायपालिका एवं कार्यपालिका को अलग कर दिया गया है। कुटीर उद्योगों की स्थापना को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। अतः यह कहा जा सकता है कि सरकारें नीति-निर्देशक सिद्धांतों को लागू करने के लिए गंभीरतापूर्वक कार्य कर रही है। |
प्रश्न 2. भारतीय संविधान में निहित राज्य नीति-निर्देशक तत्त्वों का क्या महत्त्व है ? स्पष्ट कीजिए। उत्तर- भारतीय संविधान में केंद्र व राज्यों के शासन को सुचारु रूप से चलाने हेतु राज्य के नीति-निर्देशक सिद्धांतों का वर्णन किया गया है। इनकी उपयोगिता या महत्त्व का निम्न प्रकार से वर्णन किया जा सकता है- (1) प्रस्तावना का स्पष्टीकरण- संविधान की प्रस्तावना में सभी नागरिकों को राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक क्षेत्र में न्याय प्रदान करने की घोषणा की गई है। (ii) शासन के मौलिक अधिकार- ये सिद्धांत वास्तव में राज्य के लिए मार्गदर्शक का काम करते हैं। इन सिद्धांतों के पीछे कानूनी शक्ति नहीं होती, परंतु जनमत की शक्ति अवश्य होती है। (iii) संविधान की व्याख्या में सहायक- इन सिद्धांतों में संविधान सभी की आर्थिक, राजनीतिक व सामाजिक नीति स्पष्ट होती है। सर्वोच्च व उच्च न्यायालयों ने भी संविधान की व्याख्या करते समय इन सिद्धांतों का सहारा लिया है। (iv) राज्य के कार्यों को जाँचने की कसौटी- राज्य के कार्यों को जाँचने का यह एक मापदण्ड है। जनता उनके कार्यों की जाँच इस आधार पर करेगी कि इन सिद्धांतों को कहाँ तक अपनाया गया है। (v) आर्थिक प्रजातंत्र की स्थापना- नीति- निर्देशक सिद्धांतों (vi) नैतिक आदर्श- ये सिद्धांत उच्च आदर्श है जो प्रत्येक सरकार के सामने महान होने चाहिए। इनसे इनेक करोड़ों लोगों का जीवन प्रभावित होता है। नैतिक आदर्शों से तो राष्ट्रों के इतिहास बदल गए हैं। (vii) ये सिद्धांत निर्देशों के समान हैं- ये सरकार के लिए निर्देश के समान होते हैं। इनके पीछे लोकमत की शक्ति होती है। (viii) निर्देशक सिद्धांत व मौलिक अधिकार एक-दूसरे के पूरक- ये दोनों अपने आप में अपूर्ण हैं, परंतु दोनों मिलकर पूर्ण बन जाते हैं। एक से राजनीतिक व दूसरे से आर्थिक प्रजातंत्र की स्थापना होती है। (ix) शिक्षात्मक महत्त्व- ये सिद्धांत आगे आने वाली पीढ़ियों के विचारों में इस बात को दृढ़ करेंगे कि वे स्थिर राजनीति के लिए मौलिक महत्त्व रखते हैं। |
NIOS Class 10th सामाजिक विज्ञान (पुस्तक – 2) Question Answer in Hindi
- Chapter – 15 संवैधानिक मूल्य तथा भारत की राजनीतिक व्यवस्था
- Chapter – 16 मौलिक अधिकार तथा मौलिक कर्त्तव्य
- Chapter – 17 भारत एक कल्याणकारी राज्य
- Chapter – 18 स्थानीय शासन तथा क्षेत्रीय प्रशासन
- Chapter – 19 राज्य स्तर पर शासन
- Chapter – 20 केन्द्रीय स्तर पर शासन
- Chapter – 21 राजनीतिक दल तथा दवाब समूह
- Chapter – 22 जनता की सहभागिता तथा लोकतान्त्रिक प्रक्रिया
- Chapter – 23 भारतीय लोकतंत्र के समक्ष चुनौतियाँ
- Chapter – 24 राष्ट्रीय एकीकरण तथा पंथ निरपेक्षता
- Chapter – 25 सामाजिक आर्थिक विकास तथा अभावग्रस्त समूहों का सशक्तीकरण
- Chapter – 26 पर्यावरणीय क्षरण तथा आपदा प्रबन्धन
- Chapter – 27 शान्ति और सुरक्षा
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