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Home Last Doubt NIOS Class 10th Social Science (213) Chapter – 1 प्राचीन विश्व (Ancient...

NIOS Class 10th Social Science (213) Chapter – 1 प्राचीन विश्व (Ancient World) Question Answer in Hindi

March 21, 2023
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    NIOS Class 10th Social Science (213) Chapter – 1 प्राचीन विश्व (Ancient World)

    TextbookNIOS
    Class10th
    Subjectसामाजिक विज्ञान (Social Science)
    Chapter1st
    Chapter Nameप्राचीन विश्व (Ancient World)
    CategoryClass 10th सामाजिक विज्ञान
    MediumHindi
    SourceLast Doubt

    NIOS Class 10th Social Science (213) Chapter – 1 प्राचीन विश्व (Ancient World) Notes in Hindi विश्व की प्राचीन सभ्यता कौन सा है, दुनिया का सबसे पुराना इतिहास क्या है, प्राचीन विश्व कहां था, प्राचीन काल कब शुरू हुआ, दुनिया का सबसे पुराना देश कौन सा है, पहली सभ्यता कहां हुई थी, हिंदू धर्म कितना पुराना है, इतिहास का सबसे बूढ़ा आदमी कौन है, भारत के 7 नाम क्या है, विश्व का इतिहास का पिता कौन है, प्राचीन दुनिया का अंत कैसे हुआ, भारत का सबसे पुराना शहर कौन सा है, भारत का पहला नाम क्या है, भारत सबसे पुराना देश क्यों है, भारत में कुल कितनी सभ्यता थी, अब तक का सबसे लंबा जीवन कौन सा है, सबसे पुराने इंसान कहां रहते हैं, सबसे लंबी उम्र किसकी थी आदि आगे पढ़े।

    NIOS Class 10th Social Science (213) Chapter – 1 प्राचीन विश्व (Ancient World)

    Chapter – 1

    प्राचीन विश्व

    प्रश्न – उत्तर

    पाठांत प्रश्न

    प्रश्न 1. मानव विकास के मुख्य चरण क्या थे ?
    उत्तर – नवपाषाण काल के अंत में धातु का इस्तेमाल आरंभ हुआ। ताँबा प्रथम धातु, था जिसका प्रयोग मानव ने किया। नवपाषाण युग में मानव के विकास की गति बड़ी तीव्र हो गई। ताँबे के आविष्कार ने औजारों के निर्माण में पत्थर, लकड़ी और हड्डी की जगह ले ली। लोगों ने धूप में सूखी और आग में पकी दोनों तरह की ईंटों को बनाना व निर्माण कार्य में इस्तेमाल करना सीखा।

    इसी काल में नदी घाटियों में पहली बार नगर आधारित सभ्यताओं का उदय हुआ। ये नगर-व्यापार और वाणिज्य के केंद्र बन गए और एक कालक्रम में राज्यों तथा साम्राज्यों का उदय हुआ। प्राचीन काल में लोगों ने महान संभ्यताओं का निर्माण कर मानवता को महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। ये प्राचीन सभ्यताएँ मेसोपोटामिया, मिस्र, भारत और चीन में उभरी व विकसित हुई। कृषि दस्तकारी और वाणिज्य धीरे-धीरे फले-फूले । नगर प्रशासन के भी केंद्र बने।

    प्रश्न 2. ग्रेम साम्राज्य कब और क्यों विभाजित हुआ ?
    उत्तर – रोम नगर मध्य इटली में टाइबर नदी के तट पर बसा है। यह गणराज्य था। जुलियस सीजर इसका प्रभावशाली नेता था। वह तानाशाह बन गया था। लोगों ने इसकी हत्या कर दी और रोम में गृहयुद्ध छिड़ गया। युद्ध के बाद ऑगस्टस सीजर रोम का प्रथम सम्राट बना। उसके शासन काल में महान पैगंबर ईसा मसीह का जन्म हुआ। उन्होंने एक नए धर्म का प्रचार शुरू किया। रोम में प्रत्येक प्रांत का शासन एक गर्वनर करता था। उसके अधीन कई अधिकारी होते थे, जो प्रशासन की विभिन्न मामलों की देख-रेख करते थे। शासन में सेना की भूमिका प्रभावशाली थीं। वर्ष 395 ईस्वी तक बेहतर प्रशासन के लिए विशाल रोमन साम्राज्य को दो हिस्सों में बाँट दिया गया।
    प्रश्न 3. हड़प्पा सभ्यता की मुख्य विशेषता क्या थी ?
    उत्तर – हड़प्पा सभ्यता की मुख्य विशेषता उसकी नगर योजना थी। हड़प्पा सभ्यता की नगर-दुर्ग योजना देखते ही बनती थी। दुर्ग में सार्वजनिक ईमारत होती थी। दुर्ग के नीचे नगर का दूसरा हिस्सा था। यहाँ आम लोगों के मकान थे। नगरों में चौड़ी सड़कें थीं, जो समकोण एक-दूसरे को काटती थीं। मकान ईंट के बने थे। ज्यादातर मकान दो मंजिला थे। हरेक घर में कुएँ, स्नानगृह, नाली और परनाली थी। साफ-सफाई का स्तर बहुत उन्नत था। खड़ंजे बिछी सड़कें और सड़कों पर प्रकाश व्यवस्था अनजानी नहीं थी। मोहनजोदड़ों के निचले शहर में निवास गृहों के अलावा दुर्ग वाले क्षेत्र में अनेक खंभों वाले विशाल हॉल भी मिले हैं। यहाँ सबसे प्रमुख विशेषता थी और विशाल स्नानगृह (180 फुट लंबा और 108 फुट चौड़ा)। उसमें स्नान के लिए उपभोग होने वाला जलाशय 39 फुट लंबा और 23 फुट चौड़ा और आठ फुट गहरा था। हड़प्पा का विशाल अनाज भंडार एक अन्य महत्त्वपूर्ण इमारत थी। यहाँ किसानों द्वारा उत्पादित अतिरेक का भंडारण होता था।

    प्रश्न 4. अशोक के अनुसार धम्म क्या है ?
    उत्तर – मौर्य वंश का सबसे महान शासक अशोक था। वह इतिहास में इसलिए प्रसिद्ध नहीं है कि उसने अपना साम्राज्य विस्तृत किया था। वह एक अनुभवी शासक था वरन् इसलिए कि उसने मानव की नैतिक उन्नति के लिए प्रयास किया। जिन सिद्धांतों के पालन से यह नैतिक उत्थान संभव था, अशोक के लेखों में उसे ‘धम्म’ कहा गया।

    धम्म अशोक की स्वयं की खोज थी। अशोक के धार्मिक जीवन एवं विचारों पर कलिंग युद्ध का महत्त्वपूर्ण प्रभाव था। इस युद्ध ने अशोक के हृदय में परिवर्तन ला दिया और उसने अपना धर्म ही बदल दिया। पहले वह शैव धर्म का अनुयायी “था, किंतु धर्म परिवर्तन के पश्चात् वह बौद्ध धर्म का अनुयायी बन गया जिसका स्पष्ट प्रमाण उसके चतुर्दश शिलालेखों में से तेरहवें शिलालेख में मिलता है। उस शिलालेख में यह घोषणा अंकित है-“कलिंग युग के बाद शीघ्र ही देवानाम प्रिय अशोक धर्म के अनुष्ठान, धम्म के प्रेम और धम्म के उपदेश के प्रति उत्साहित हो उठा।” इस प्रकार अशोक ने बुद्ध मत के व्यावहारिक पक्ष के समर्थक सिद्धांतों का प्रचार आरंभ किया। उसने जिस ‘धम्म का प्रचार किया उसे “अशोक का धम्म” कहा जाता था।

    प्रश्न 5. प्राचीन एथेंस और स्पार्टा की जीवन शैली में क्या अंतर है ?
    उत्तर – यूनानी नगर, राज्य में सबसे प्रसिद्ध एथेंस और स्पार्टा थे। एथेंस धनी ओर सुसंस्कृत था। एथेंस वासियों में लेखक, दार्शनिक, कलाकार और चिंतक शामिल थे। समाज गुलाम-श्रम आधारित था। लेकिन नागरिकों के लिए लोकतांत्रिक शासन प्रणाली थी। पूरे यूनान में स्पार्टा की सेना सबसे अच्छी थी। स्पार्टा लगभग किसी सैनिक शिविर के समान था। एथेंस और स्मार्टा में खासी प्रतिद्वंद्विता थी। लेकिन दारियस प्रथम और जर्जेस की ताकतवर ईरानी सेना से दोनों साथ-साथ लड़ें। पेरीक्लीज का दौर एथेंस के लिए स्वर्ण युग था। लेकिन एथेंस के स्पार्टा के बीच 27 साल तक चले पेलोपोनिशियाई युद्ध में एथेंस की हार हो गई। प्राचीन यूनानी कला, विज्ञान, साहित्य और मूर्तिकला में अग्रणी थे। इसलिए यूनान को पश्चिमी सभ्यता की जन्म-स्थल कहते हैं।

    प्रश्न 6. पूर्ववैदिक आर्यों के सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक जीवन का वर्णन कीजिए।
    उत्तर – हड़प्पा सभ्यता के विनाश के पश्चात् जिस नवीन युग की शुरूआत हुई, उसे वैदिक युग कहते हैं। वैदिक युग को ही आधुनिक भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति का आधार स्तंभ माना जाता है। इसी समय ऋग्वेद की रचना हुई। भारतीय इतिहास में इसकी अवधि 1500 ई०पू० से 2000 ई०पू० तक मानी जाती है। वैदिक युग को दो भागों में विभाजित किया गया है-वैदिक ‘युग और उत्तर-वैदिक युग ।

    निम्नलिखित में हम पूर्व वैदिक युग की धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक जीवन का अवलोकन करेंगे-

    सामाजिक जीवन – पूर्व-वैदिक युग को जानने का एकमात्र साधन ऋग्वेद है। पूर्व वैदिक समाज सभ्य समाज था। स्त्रियों को सम्मान था, शिक्षा का प्रबंध था। नैतिकता का बहुत महत्त्व था, किंतु समाज चार वर्णों में विभक्त था।

    धार्मिक जीवन – पूर्व- वैदिक समाज में धर्म बहुदेववादी की गई है। इन्द्र को सबसे प्रमुख देवता बताया गया है। यद्यपि होते हुए भी साधारण था। ऋग्वेद में 33 देवताओं की प्रार्थना यज्ञों, आहुति, पशुबलि के माध्यम से देवताओं को प्रसन्न करके आर्य विभिन्न देवी-देवताओं की पूजा करते थे तथापि विभिन्न की आशा करते थे। शक्ति संपन्न और विभिन्न पदार्थों एवं सुविधाओं को प्राप्त करने

    आर्थिक जीवन – पूर्व-वैदिक समाज की अर्थव्यवस्था मुख्यत: पशुपालन पर आधारित थी। मवेशी पालन आजीविका का मुख्य साधन था। किंतु घोड़ों. बकरियों और भेड़ों का भी महत्त्व था। थोड़ी-बहुत खेती भी की जाती थी। कृषि का उल्लेख ऋग्वेद में किया गया है।

    प्रश्न 7. मौर्य का भारतीय इतिहास में क्या योगदान है ?
    उत्तर – सिकंदर महान की मृत्यु के पश्चात् भारत की राजनीतिक क्षितिज पर जिस विशाल साम्राज्य का उदय हुआ, उसे मौर्य साम्राज्य कहा जाता है। भारतीय इतिहास में मौर्यकाल का एक विशिष्ट स्थान है। क्योंकि मौयों के आने से ही भारत के राजनीतिक और सांस्कृतिक इतिहास में एक नए युग का सूत्रपात हुआ। चंद्रगुप्त मौर्य प्रथम शासक था जिसने नंदवंश के अंतिम राजा को परास्त कर भारत में मौर्य शासन की नींव डालीं। चंद्रगुप्त ने अपने विजय अभियानों के माध्यम से छोटे-छोटे राज्यों पर नियंत्रण स्थापित करते हुए संपूर्ण भारत को एक राजनीतिक सूत्र में बाँध दिया और देश में प्रथम बाद सुसंगठित शासन की स्थापना की। इसके लिए उसने अपने मंत्री चाणक्य की सहायताली। चंद्रगुप्त ने जिस शासन की नींव डाली, वह भावी शासकों के लिए आदर्श बन गई। अशोक का काल तो कला एवं साहित्य की दृष्टि से चरमोत्कर्ष का काल माना जाता है।
    प्रश्न 8. विश्व सभ्यता को भारत के योगदान पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
    उत्तर – विश्व इतिहास में भारतीय सभ्यता का एक महत्त्वपूर्ण
    प्रश्न 9. विश्व मानचित्र पर निम्नलिखित स्थानों को रेखांकित करें-
    (i) नदियाँ-टिगरिस, नील, हांगो, इण्डस।
    (ii) स्थान-मिस्र, यूनान, रोम, ईरान और नालंदा।
    उत्तर – स्थान है। प्रारंभिक यूनान और रोम की तरह भारत में भी लोकतांत्रिक और गणराज्य शासन प्रणाली रही। हमने दर्शन और विज्ञान की विभिन्न शाखाओं में जबर्दस्त प्रगति की थी। गणित. खगोल शास्त्र, धातु कर्म और चिकित्सा में भारत का उल्लेखनीय योगदान है। आर्यभट्ट और वराहमिहिर प्रसिद्ध गणितज्ञ और खगोल शास्त्री थे। चरक और सुश्रुत महान चिकित्सक थे। नागार्जुन प्रसिद्ध रसायन शास्त्री थे। शून्य और दशमलव पद्धति की संकल्पनाएँ पहले भारत में ही विकसित हुई। इसके अतिरिक्त भारत में बड़े-बड़े ज्ञान के महान केंद्र थे, जहाँ विदेशी छात्रों को शिक्षा दी जाती थी। प्राचीन भारत में साहित्य की अनेक कृतियाँ सृजित की गईं। ऋग्वेद हिंदू-यूरोपीय साहित्य की प्राचीनतम बानगी है।
    अति लघु उत्तरीय प्रश्न
    प्रश्न 1. कांस्य युग किसे कहते हैं ?
    उत्तर – धातु का उपयोग नव-पाषाणकाल के अंत में आरंभ हुआ। ताँबा पहली धातु था जिसका उपभोग मानव ने नव पाषाण काल में किया। कांसा जो ताँबा और रांगा की मिश्रित धातु थी. खोज भी इस काल में हुई, इसलिए इस युग को कांस्य युग भी कहते हैं।
    प्रश्न 2. मेसोपोटामिया की धार्मिक स्थिति ज्ञात कीजिए।
    उत्तर – मसोपोटामिया के लोग ढेर सारे देवी-देवताओं-आकाश का देवता, हवा का देवता, सूर्य देवता, चंद्रमा देवता, प्रजनन की देवी. प्रेम की देवी, युद्ध का देवता और इसी तरह अन्य अनेक देवी-देवताओं की पूजा करते थे और उनमें विश्वास करते थे।
    प्रश्न 3. मिस्र के राजाओं ने पिरामिड क्यों बनवाया था ?
    उत्तर – मिस्रवासी मौत के पश्चात् जीवन पर विश्वास करते थे और इसलिए उन्होंने शवों को संरक्षित रखा। पिरामिड को मृत राजाओं के ममी किए गए शवों (संरक्षित शवों को ममी कहा जाता था) रखने के लिए मकबरों के रूप में बनाया गया था।
    प्रश्न 4. चीन के लोगों की धार्मिक स्थिति कैसी थी ?
    उत्तर – चीन के लोग अनेक देवी-देवताओं की पूजा करते थे। पूर्वजों और प्रकृति-आत्माओं की पूजा आम थी। कन्फ्यूशियस नामक एक प्रसिद्ध चीनी था। धार्मिक उपदेशक ने ‘सही व्यवहार’ प्रणाली का प्रचार-प्रसार किया जिसने चीनी समाज और सरकार को बेहद प्रभावित किया।
    प्रश्न 5. हड़प्पा सभ्यता को ताम्र-पाषाणिक सभ्यता क्यों कहा जाता है ?
    उत्तर – हड़प्पा सभ्यता को ताम्र-पाषाणिक सभ्यता इसलिए कहा जाता है, क्योंकि खुदाई में जो सामान मिले हैं उनमें ताँबे और पत्थर के सर्वाधिक हैं जिससे इस सभ्यता को ताम्र-पाषाणिक कहा जाता है।
    प्रश्न 6. हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख शहरों के नाम बताइए।
    उत्तर – हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख शहर हैं – मोहनजोदड़ो, लोथल, कालीबंगा, रोपड़, बनावली, धौलीवीरा।
    प्रश्न 7. हड़प्पा सभ्यता का भौगोलिक विस्तार बताइए।
    उत्तर – हड़प्पा सभ्यता का संपूर्ण क्षेत्र त्रिभुजाकार है। इसका विस्तार उत्तर में जम्मू (मांडा) से लेकर दक्षिण में नर्मदा नदी तक, पश्चिमी में बलूचिस्तान के मकरान समुद्र तट से उत्तर-पूर्व में मेरठ आलमगीरपुर जिले तक है।
    प्रश्न 8. हड़प्पा सभ्यता और अन्य देशों की प्राचीन सभ्यता (विशेष रूप से मेसोपोटामिया) में क्या अंतर है ?
    उत्तर – (i) हड़प्पा संस्कृति का विस्तार मे लिया की सभ्यता से बहुत अधिक था।
    (ii) हड़प्पा सभ्यता की निकास प्रणाली और नगर योजना अन्य सभ्यताओं से अधिक विकसित थी।
    प्रश्न 9. हड़प्पावासी किसकी पूजा मुख्य रूप से करते थे ?
    उत्तर – हड़प्पावासी पीपल के वृक्ष पशुवृषभ और मातृदेवियों की पूजा करते थे। मोहनजोदड़ो से एक पुरुष देवता भी मिले है. जिसे शिव पशुपति का आदिम रूप कहा गया।
    प्रश्न 10. यूनान को पश्चिमी सभ्यता का जन्म स्थल क्यों कहा जाता है ?
    उत्तर – यूनान के लोग कला, विज्ञान, साहित्य और मूर्तिकला में विशेष कुशल थे। वहाँ सुकरात, अफलातून और अरस्तु जैसे महान दार्शनिक थे, जिनके ग्रंथों का आज भी अध्ययन किया जाता है।आर्किमीडिज एरिस्टार्कस ओर डेमोक्रिटस जैसे महान वैज्ञानिक थे। प्रसिद्ध कवि होमर और सोफोक्लीज जैसे नाटककार भी पैदा हुए।
    प्रश्न 11. वैदिक युग की राजनीतिक व्यवस्था कैसी थी ?
    उत्तर – ऋग्वैदिक काल में राजा को राजन कहा जाता था। उसका पद अनुवांशिक था। राजा की शक्ति असीमित नहीं थी। उसे कबायली संगठनों से परामर्श लेना पड़ता था।
    प्रश्न 12. महाजनपद किसे कहते हैं ?
    उत्तर – छठी सदी ईसा पूर्व में उत्तर और पूर्व भारत में बड़े राज्य उभरे, जिन्हें महाजनपद कहते हैं। इस तरह के 16 राज्य थे अंग, मगध, वज्जी, काशी, कोसल, मल्ल, कुरु, पांचाल, वरस, अवंती, कंबोज, गंधार, अस्मक, चेटी, मत्स्य और शूरसेन।
    प्रश्न 13. छठी शताब्दी ई०पू० के धर्म सुधार आंदोलन के प्रमुख कारण क्या थे ?
    उत्तर – छठी शताब्दी ई०पू० के धर्म सुधार आंदोलन का कारण तत्कालीन धार्मिक अवस्था के विरुद्ध असंतोष की भावना था। यूँ तो इस आंदोलन की पृष्ठभूमि वैदिक काल के अंत तक तैयार हो चुकी थी। तत्कालीन सामाजिक अवशेष तथा वर्ण व्यवस्था की जटिलता, तत्कालीन आर्थिक जीवन के परिवर्तनों. आडबरों और यह बलि प्रधान मान्यताओं, उपनिषदों तथा नवीन धार्मिक विचारों ने छठी ई०पू० के धर्म-सुधार आंदोलन की पृष्ठभूमि तैयार की।
    प्रश्न 14. तीर्थकर किसे कहते हैं ?
    उत्तर – वे धर्मगुरु जो लोगों की जीवन की नैया धार्मिक उपदेशों और आचरणों के माध्यम से पार लगाते हैं, उन्हें तीर्थंकर कहा जाता है। महात्मा महावीर से पूर्व जैन धर्म में 23 तीर्थकर हुए। महात्मा महावीर 24वें तीर्थकर माने जाते हैं।
    प्रश्न 15. जैन धर्म के प्रमुख पाँच सिद्धांत क्या है ?
    उत्तर – जैन धर्म कर्मकांड और वैदिक ब्राह्मणवाद का विरोधकरता है और जाति व्यवस्था का भी विरोध करता है। जैन धर्म के पाँच सिद्धांत हैं –
    (i) अहिंसा, (ii) सच्चाई, (iii) चोरी नहीं करना, (iv) जुड़ाव नहीं रखना, और (v) ब्रह्मचर्य।
    प्रश्न 16. बुद्ध के चार महान सत्य कौन-से हैं ?
    उत्तर – बुद्ध के चार महान सत्य निम्न हैं –
    (i) संसार दुःखों से भरा है।
    (ii) प्रत्येक दुःख का कारण इच्छा है। इच्छा से दुःख उत्पन्न होते हैं।
    (iii) यदि इच्छा को समाप्त कर दिया जाए तो दुःख भी समाप्त हो जाते हैं।
    (iv) दुःख को दूर करने के आठ मार्ग हैं।
    प्रश्न 17. बौद्ध धर्म की लोकप्रियता के दो कारण बताइए।
    उत्तर – (i) बौद्ध धर्म जटिल धार्मिक कर्मकांडों का विरोधी था और जाति में विश्वास नहीं करता था। किसी जाति का व्यक्ति भी बौद्ध धर्म का सदस्य बन सकता था।
    (ii) बौद्ध धर्म का प्रचार सरल स्थानीय भाषा पाली में किया जाता था जिसे लोग आसानी से समझ जाते थे।
    प्रश्न 18. बौद्ध धर्म के प्रर्वतक कौन थे ? उनके विषय में आप क्या जानते हैं ?
    उत्तर – बौद्ध धर्म के प्रवर्तक महात्मा बुद्ध थे। इनका जन्म नेपाल की तराई में कपिलवस्तु के समीप लुम्बिनी ग्राम में शाक्य क्षत्रिय कुल के राजा शुद्धोधन के यहाँ हुआ था। उनके बचपन का नाम सिद्धार्थ था। ये 29 वर्ष की आयु में सांसारिक सुख त्यागकर ज्ञान की खोज में निकल पड़े, और अंत में उन्हें बिहार स्थित बोधगया के पीपल के वृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई। उन्होंने अपना पहला उपदेश वाराणसी के निकट सारनाथ में दिया।
    प्रश्न 19. छठी शताब्दी ई०पू० में नगरों के उदय को द्वितीय शहरीकरण की संज्ञा दी जाती है। क्यों ?
    उत्तर – हड़प्पा के नगर लगभग 1500 ई०पू० तक लुप्त हो गए और इसके बाद करीब 1000 वर्षों तक भारत में किसी नगर के पुरातात्विक प्रमाण नहीं मिलते हैं। छठी शताब्दी ई० पू० में मध्य गंगा घाटी में शहरों के उदय के साथ ही द्वितीय शहरीकरण आरंभ हुआ। इस प्रकार हड़प्पा के नगरों के पतन के पश्चात् जो नगर विकसित हुए, उन्हें द्वितीय शहरीकरण की संज्ञा दी गई है।
    प्रश्न 20. मौर्य साम्राज्य का उदय कब हुआ और इसका संस्थापक कौन था ?
    उत्तर – मगध के विकास के साथ ही मौर्य साम्राज्य का उदय हुआ। इस साम्राज्य का संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य था, जिसने “अपनी प्रतिभा और वीरता से एक विशाल साम्राज्य स्थापित किया। उसने अपने साम्राज्य का उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में मैसूर पूर्व में बंगाल से लेकर उत्तर-पश्चिम में अरब सागर तक अपने साम्राज्य का विस्तार किया।
    प्रश्न 21. मौर्य साम्राज्य के पतन के कोई चार प्रमुख कारण बताइए।
    उत्तर – मौर्य साम्राज्य का पतन अशोक की मृत्यु के साथ ही आरंभ हो गया। इसके पतन को लेकर विद्वानों में विरोधाभास है। किंतु जो कारण बताए गए हैं, वे इस प्रकार हैं-
    (i) अशोक के अयोग्य उत्तराधिकारी,
    (ii) राष्ट्रीय एकता का अभाव,
    (iii) आंतरिक अव्यवस्था,
    (iv) अशोक की शांति की नीति ।
    प्रश्न 22. भारत के इतिहास में मौर्य सम्राज्य के महत्त्व को दर्शाइए।
    उत्तर – सिकंदर महान की मृत्यु के पश्चात् भारत के राजनीतिक क्षितिज पर जिस पर साम्राज्य का उदय हुआ, उसे मौर्य साम्राज्य कहा गया। मौर्य साम्राज्य का भारतीय इतिहास में अत्यधिक महत्त्व है। क्योंकि इसके आगमन से भारत के राजनीतिक और सांस्कृतिक इतिहास में नवीन युग का सूत्रपात हुआ। मौर्य साम्राज्य की स्थापना से राजनीतिक एकता उत्पन्न हुई और पहली बार शासन व्यवस्था की स्थापना हुई।
    प्रश्न 23. कौटिल्य कौन था ? उसकी रचना का नाम बताइए।
    उत्तर – कौटिल्य मौर्यकाल का प्रसिद्ध ब्राह्मण विद्वान था। यह चंद्रगुप्त मौर्य का प्रधानमंत्री भी था। इसका वास्तविक नाम चाणक्य था। उसने राजनीति शास्त्र पर एक ग्रंथ की रचना की, जो ‘अर्थशास्त्र’ के नाम से विख्यात हुई। इस पुस्तक में राजा के कर्तव्य, युद्ध करने के ढंग, कुटनीति के नियम, शासन प्रबंध को कुशल बनाने के सिद्धांत तथा ऐसे अनेक राजनीतिक विषयों पर विचार किया गया।
    प्रश्न 24. संगम युग से आप क्या समझते हैं ?
    उत्तर – संगम युग से दक्षिण भारत में एक ऐतिहासिक दौर की शुरुआत हुई। संगम का अर्थ था-विद्वानों या साहित्यकारों का जमा होना। मदुरै के पांड्य राजाओं के शाही संरक्षण में साहित्यिक हस्तियों का जमावपड़ा हुआ, जो संगम के नाम से जाना गया।
    प्रश्न 25. रेशम मार्ग से क्या तात्पर्य है ?
    उत्तर – रेशम मार्ग चीन से कुषाण साम्राज्य से होकर रोम तक जाता था। इसके द्वारा चीन और रोम साम्राज्य के बीच रेशम का व्यापार होता था। इस मार्ग पर कृषाणों का नियंत्रण था और उन्हें इस मार्ग से काफी आमदनी होती थी।
    प्रश्न 26. इलाहाबाद या प्रयाग-स्तंभ अभिलेख का क्या महत्त्व है ?
    उत्तर – इलाहाबाद स्तंभ अभिलेख गुप्तकाल का एक महान ऐतिहासिक स्रोत है। इस अभिलेख में समुद्रगुप्त की महानता का वर्णन है। इस लेख के रचयिता समुद्रगुप्त के दरबारी कवि हरिसेन थे, जिसने अपने आश्रयदाता की विजयों और सैनिक पराक्रमों का वर्णन किया है।
    प्रश्न 27. हह्वेनसांग द्वारा वर्णित भारतीय जीवन का वर्णन कीजिए।
    उत्तर – ह्वेनसांग एक चीनी यात्री था। वह बौद्ध तीर्थ स्थानों की यात्रा करने तथा बौद्ध साहित्य का अध्ययन करने के लिए भारत आया था। वह आठ वर्ष तक हर्ष की राजधानी कन्नौजमें रहा। उसने ‘सी-यू-की’ नामक पुस्तक में अपनी भारत यात्राका वर्णन किया है। उसके अनुसार हर्ष बड़ा परिश्रमी, कर्त्तव्य परायण और प्रजा हितैषी शासक था। उस समय का समाज चार जातियों में विभाजित था। शुद्रों से बड़ी घृणा की जाती थी। लोगों का नैतिक जीवन बहुत ऊँचा था। लोगों की आर्थिक दशा अच्छी थी। देश में ब्राह्मण धर्म उन्नति पर था।
    प्रश्न 28. साँची स्तूप पर 50 शब्दों में निबंध लिखिए।
    उत्तर – साँची स्तूप मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में स्थित है। यह सभी स्तूपों में सर्वाधिक विशाल और श्रेष्ठ है। इसकी संख्या तीन है। सबसे विशाल स्तूप को महास्तूप कहा जाता है। इस स्तूप का ढाँचा तीसरी शताब्दी ई०पू० में अशोक द्वारा बनाया गया था। तत्पश्चात् शुंग शासकों द्वारा उसे विस्तृत किया गया। स्तूप का व्यास लगभग 40 मीटर और ऊँचाई 1650 मीटर है। पक्की ईंटों की मूल संरचना पर शुंग काल में पत्थर का आवरण चढ़ाया गया। इसके एक ओर के जंगले एवं तोरण द्वार आंध्र शासक सातवाहन युग में बनाया गया। ज्ञात रहे, साँची स्तूप भारतीय कला का उत्कृष्ट नमूना है।
    प्रश्न 29. यूनानी सभ्यता के दो प्रसिद्ध राज्यों के नाम बताइए।
    उत्तर – एथेंस और स्पार्टा।
    लघु उत्तरीय प्रश्न
    प्रश्न 1. इतिहास का अध्ययन क्यों आवश्यक है ?
    उत्तर – इतिहास का अध्ययन इसलिए आवश्यक है, क्योंकि इतिहास अतीत की जानकारी प्रदान करने का साधन है। इसके माध्यम से हमें पता चलता है कि मानव सभ्यता का विकास कैसे हुआ ? वास्तव में इतिहास मानव के अनुभवों और प्रगति की कहानी है। यह हमें अतीत से अवगत कराता है। इतिहास के अध्ययन के माध्यम से हम अपनी प्राचीन सभ्यता के विषय में जान पाते हैं। साहित्य, ज्ञान, विज्ञान, पुरातत्त्व कला, चित्रकला तथा स्थापत्य से संबंधित विभिन्न जानकारी इतिहास के अध्ययन के माध्यम से ही संभव है।
    प्रश्न 2. प्राचीन मानव का इतिहास बताइए ।
    उत्तर – पृथ्वी पर मानव जीवन का इतिहास लगभग 20 लाख वर्ष पहले आरंभ हुआ। पहली मानव प्रजाति लगभग 20 लाख वर्ष पूर्व अफ्रीका में रहती थी। वैज्ञानिकों ने उन्हें होमा हैबिलिस कहा है। लगभग 15 लाख वर्ष पहले जिस मानव का विकास हुआ, उसे होमोइरेक्टस कहते हैं। ये लोग साथ-साथ रहते चलते। भोजन करने के लिए कंदमूल, फल-फूल जमा करते थे, और जानवरों का शिकार करते थे। लगभग पाँच लाख वर्ष पहले उनमें से कुछ ने आग जलाना सीखा। इस प्रकार धीरे-धीरे आदिमानव विकास की ओर अग्रसर हुआ।
    प्रश्न 3. कांस्य युग से क्या समझते हैं ? 50 शब्दों में उत्तर दीजिए ।
    उत्तर – नवपाषाण काल के पश्चात् के युग को धातु युग कहते हैं। क्योंकि नव-पाषाण काल के अंत में पत्थर के साथ-साथ धातु का प्रयोग भी होने लगा था। अतः इस काल को ताम्र-पाषाण संस्कृति कहकर पुकारा गया। ताँबा और रांगा जैसी महत्त्वपूर्ण धातुओं की खोज ने हथियारों और औजारों के निर्माण में सहायता मिली। अब लोग ईंट बनाकर उससे मकान बनाने लगे। इस काल में विभिन्न नदी घाटियों में नगर आधारित सभ्यताओं का विकास हुआ। राज्यों, राजधानियों और साम्राज्यों का जन्म हुआ। सभ्यताओं का केंद्र बनाने में नदियों का विशेष योगदान है। कृषि, दस्तकारी और वाणिज्य की प्रगति हुई। शासक वर्ग सभ्यताओं के प्रशासन का उत्तरदायित्व संभालते थे।
    प्रश्न 4. मेसोपोटामिया सभ्यता के विषय में 60-80 शब्दों में वर्णन कीजिए।
    उत्तर – मेसोपोटामिया का शाब्दिक अर्थ है-नदियों के बीच की जमीन। यह दजला और फरात नदियों के बीच स्थित थी और इसका आधुनिक नाम इराक है। मेसोपोटामिया का भारत जैसे सुदूर क्षेत्रों के साथ जर्मनी और समुद्री दोनों तरह के नियमित व्यापार करते थे। परिवहन और संचार के लिए ठेलों, चौपहिया गाड़ियों, नौकाओं और पोतों का इस्तेमाल किया करते थे। मेसोपोटामिया के प्रारंभिक शहर छोटे राज्यों के समान थे। उनका अपना प्रशासन वर्गों में पुरोहित, राजा और कुलीन शामिल थे। मेसोपोटामिया के लोग ढ़ेर सारे देवी-देवताओं का भी पूजा करते थे।
    प्रश्न 5. “मिश्र को नील नदी का उपहार कहा जाता है।” स्पष्ट कीजिए।
    उत्तर – मिश्र को नील नदी का उपहार इसलिए कहा जाता है, क्योंकि मिश्र संसार की प्राचीनतम सभ्यता का केंद्र रहा है। मिश्र के प्राचीनतम निवासी खानाबदोश थे। बाद में एक स्थान पर बस गए। नील नदी में हर साल बाढ़ आती थी और उसके किनारे जलमग्न हो जाते थे। वहाँ गाद की एक मोटी तह जमा हो जाती थी जिस कारण वहाँ की जमीन अत्यंत उपजाऊ हो जाती थी। वहाँ विशाल रेगिस्तान होते हुए भी किसान अच्छी कृषि उत्पादन करते थे। उन्होंने एक अच्छी सिंचाई प्रणाली भी विकसित कर ली थी। मिश्रवासी राजा को भगवान समझते थे। उन्हें फराओं कहा जाता था। फराओ की सेवा में मंत्री और अधिकारी भी होते थे।

    प्रश्न 6. मिश्र सभ्यता के विषय में अपनी जानकारी स्पष्ट कीजिए।
    उत्तर – मिश्र की सभ्यता विश्व की एक प्राचीनतम सभ्यता है। मिश्रवासी अपने राजा के लिए समर्पित होते थे और साम्राज्य की स्थापना के लिए युद्ध लड़ने को तैयार रहते थे। मिश्र के राजा को फराओ कहा जाता था। समाज में पुरोहितों का भी ऊँचा और सम्मानजनक स्थान था। प्रत्येक नगर में मंदिर एक विशेष देवता को समर्पित था। मिश्री लिपि चित्र-लिपि थी। मिश्र का व्यापार स्थल और समुद्र दोनों मार्गों से होता था।

    फराओ ने प्राचीन विश्व के महान स्मारक पिरामिडों का निर्माण कराया। मिश्र निवासी मृत्यु के बाद भी जीवन है, इसमें विश्वास रखते थे। वे शव को सुरक्षित रखते थे। इसे ममी कहा जाता था। मिश्र में पिरामिड़ों के अंदर राज परिवार के सदस्यों के शव रखे जाते थे। मिश्र में बढ़ई, लोहार, चित्रकार, कुम्हार, को रेखागणित, गणित और माप-तौल की भी जानकारी थी। चीनी संगतराश और अन्य कुशल कारीगर भी होते थे। मिश्रवासियों ऐतिहासिक साक्ष्यों के मुताबिक चीन ने शुरुआती शासक शांग सभ्यता उत्तरी चीन में ह्वांग हो नदी घाटी में फली फूली शासन में एक लेखन शैली इजाद की गई। इसके काल में दस्तकार, विशेषत: कांस्य शिल्पी अपने काम में माहिर थे। शांग शासकों के मातहत अनेक अधिकारी होते थे, जो राजाओं को राजघाट में मदद करते थे। चीन के लोग अनेक देवी-देवताओं की पूजा करते थे। पूर्वजों और प्रकृति आत्माओं की पूजा भी थी।

    प्रश्न 7. हड़प्पा संस्कृति की जीवन शैली के विषय में संक्षिप्त विवरण दीजिए।
    उत्तर – हड़प्पा सभ्यता की खुदाई से अवशेष के रूप में न केवल विशाल और व्यवस्थित नगरों का पता चला है, अपितु अनेक ऐसी सामग्री प्राप्त हुई है, जिनसे यह स्पष्ट होता है कि हड़प्पावासियों की जीवन शैली समृद्ध एवं विकसित थी। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा से चाँदी, ताँबा, सोना और मिट्टी की अनेक वस्तुएँ प्राप्त हुई हैं। घरों में दैनिक जीवन में प्रयोग होने वाली अनेक वस्तुएँ भी प्राप्त हुई हैं। उन सब प्राप्त वस्तुओं से हमारे पुरातत्त्वविद् इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि सिंधु सभ्यता के लोगों का सामाजिक जीवन काफी उन्नत और समृद्ध था और उन्हें आधुनिक जीवन की अनेक सुविधाएँ उपलब्ध थीं।
    प्रश्न 8. हड़प्पा सभ्यता के जीवन निर्वाह के तरीकों पर प्रकाश डालिए।
    उत्तर – हड़प्पा सभ्यता एक विकसित सभ्यता थी; इसलिए यहाँ के लोगों के जीवन निर्वाह के तरीके भी सभ्य थे। वे लोग भोजन के रूप में गेहूँ, चावल, जौ इत्यादि ग्रहण करते थे। पेय पदार्थ के रूप में दूध का सेवन करते थे। फलों में तरबूज, खरबूज, अनार इत्यादि का प्रयोग करते थे। यहाँ अवशेष के रूप में अनेक हड्डियाँ मिली हैं, जिनसे मोहनजोदड़ो की खुदाई से एक सिलबट्टा प्राप्त हुआ है, जिससे अनुमान लगाया जाता है कि वे लोग स्वादिष्ट भोजन करना पसंद करते थे।
    प्रश्न 9. हड़प्पा संस्कृति की नगर योजना अद्भुत थी। स्पष्ट कीजिए ।
    उत्तर – हड़प्पा सभ्यता एक सभ्य सभ्यता थी, इसलिए यहाँ पर नगरों का विकास सुनियोजित ढंग से किया गया था। नगरों में चौड़ी सड़कें थीं जो समकोण पर एक-दूसरे को काटती थीं। मकान ईटों के बने थे। ज्यादातर मकान दो मंजिले थे। प्रत्येक घर में कुएँ, स्नाहगृह, नाली और परनाली थी। सड़कों पर खडजे विनाश कैसे और किन कारणों से संभव हुआ, इसके संबंध में थे और प्रकाश की पूर्ण व्यवस्था थी। मोहनजोदड़ो निश्चित उत्तर देना असंभव नहीं तो कठिन अवश्य है। किंतु में अनेक खम्भों वाले विशाल हॉल भी मिले हैं। एक 180 फुट संभावना यह व्यक्त की जाती है कि सिंधु में विनाशकारी बाढ़ लम्बा और 108 फुट चौड़ा विशाल स्नानगृह भी मिला है। ने इसे विलीन कर दिया हो अथवा किसी संक्रामक और भयंकर की उचित व्यवस्था थी। हडप्पावासी सफाई का उचित प्रबंध और यह प्रदेश मरुस्थल की तरह अधिकाधिक शुष्क होने लगा। कूड़ा-करकट फेंकने की समुचित व्यवस्था थी। जल निकासी रोग ने इसका समाप्त किया हो। जलवायु भी परिवर्तित होने लगी। करते थे। अनाज को सुरक्षित रखन के लिए विशाल कुठियार था। यह भी संभव है कि नगरों पर आक्रमण हुआ हो और यहाँ (अनाज गोदाम) बनाए जाते थे।
    प्रश्न 10. हड़प्पा संस्कृति में अर्थव्यवस्था और समाज का वर्णन कीजिए।
    उत्तर – हड़प्पा सभ्यता की खुदाई में अनेक ऐसी चीजें प्राप्त हुई हैं, जिनसे हड़प्पाकालीन कृषि व्यवस्था पर प्रकाश पड़ता है। हड़प्पावासी का मुख्य व्यवसाय कृषि था, जो अवस्था में था। मुख्य फसलें गेहूँ, जौ, कपास थे। फसल काटने ही उन्नत बहुत के लिए हसुआ का प्रयोग किया जाता था। लोगों को कपास और रूई की जानकारी थी। गाय, बकरी, भेड़, साँड, कुत्ते, बिल्ली, ऊँट और गधे को पालतू बनाया जा चुका था। लोग माँस, मछली, दूध, अंडे और फल खाते थे। लोग ताँबे और काँ के बने औजार और हथियार प्रयोग करते थे। जेवरात, सोना, चाँदी, रत्न, शंख और हाथी के दाँत के बने होते थे। दस्तकारों में कुम्हार, बुनकर, राजमिस्त्री, बढ़ई, लोहार, सुनार, शिल्पकार, संगतराश और ठठेरे शामिल थे। यहाँ कृषि-पदार्थ, सूती-सामान, बर्तन, जेवरात, हाथी के दाँत की बनी चीज़ें और दस्तकारी के मुहरों का प्रयोग वाणिज्यिक उद्देश्य के लिए किया जाता था।
    प्रश्न 11. हड़प्पावासी की धार्मिक अवस्था ज्ञात कीजिए।
    उत्तर – हड़प्पावासी के धार्मिक जीवन के विषय में जानने का एकमात्र साधन मोहनजोदडो तथा हड़प्पा से प्राप्त मुहरें तथा मूर्तियाँ हैं। मातृदेवी हड़प्पावासियों के बीच लोकप्रिय थी। मातृदेवी की अनेक मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं। मोहनजोदड़ो में एक पुरुष देवता की मूर्ति भी मिली है जिसे शिव प्रतीक माना गया है और इससे यह स्पष्ट होता है कि हड़प्पा संस्कृति के लोग शैव धर्म के अनुयायी थे। लिंग पूजा, वृक्ष पूजा का प्रचलन था। ताबीज और जंतर आत्माओं और भूत-प्रेत पर लोगों के विश्वास को व्यक्त करते हैं। विज्ञान और प्रौद्योगिकी की भी उन्हें जानकारी थी। उन्हें माप-तौल, स्वास्थ्य, चिकित्सा की भी जानकारी थी। उनकी एक लिपि भी थी।
    प्रश्न 12. हड़प्पा सभ्यता का पतन कैसे हुआ ? स्पष्ट कीजिए।
    उत्तर – हड़प्पा सभ्यता 2500 ई०पू० से 1750 ई०पू० तक फली-फुली। तत्पश्चात् इसका अंत हो गया। इस सभ्यता का विनाश कैसे और किन कारणों से संभव हुआ, इसके संबंध में निश्चित उत्तर देना असंभव नहीं तो कठिन अवश्य है। किंतु संभावना यह व्यक्त की जाती है कि सिंधु में विनाशकारी बाढ़ ने इसे विलीन कर दिया हो अथवा किसी संक्रामक और भयंकर रोग ने इसको समाप्त किया हो। जलवायु भी परिवर्तित होने लगी और यह प्रदेश मरुस्थल की तरह अधिकाधिक शुष्क होने लगा था। यह भी संभव है कि नगरों पर आक्रमण हुआ हो और यहाँ के निवासी अपनी रक्षा करने में असमर्थ रहे हों।
    प्रश्न 13. पूर्व-वैदिक युग की आर्थिक अवस्था का वर्णन कीजिए।
    उत्तर – पूर्व वैदिक युग के विषय में जानने का एकमात्र साधन ऋग्वेद है जिसके अध्ययन से यह मालूम होता है कि आर्यों का आर्थिक जीवन काफी उन्नत था। कृषि तथा पशुपालन उनके मुख्य व्यवसाय थे और शिल्प के क्षेत्र में भी लोगों ने काफी उन्नति की थी। भूमि को हलों द्वारा जोता जाता था। पशुपालन के रूप में आर्य गाय,, बैल, भेड़, बकरी इत्यादि पशु पालते थे।

    प्रश्न 14. जैन धर्म तथा बौद्ध धर्म के उदय के कारणों का वर्णन कीजिए।
    उत्तर – छठी शताब्दी ई०पू० में उत्तर-पूर्वी भारत में जिन दो नवीन धर्मों का उदय हुआ, उसे हम जैन धर्म और बौद्ध के नाम से जानते हैं। उनके उदय के मुख्य कारण थे-

    1. वैदिक धर्म में जटिलता-वैदिक धर्म आरंभ में बड़ा सरल धर्म था, परंतु धीरे-धीरे इसमें जटिलता आ गई जिससे साधारण लोगों को किसी नए और सरल धर्म की खोज थी।’

    2. जाति-प्रथा तथा छुआछूत-जाति-प्रथा के कारण शुद्रों “की स्थिति दयनीय थी। समाज का यह दलित वर्ग किसी ऐसे धर्म और समाज की चाह में था, जिसमें उसे उचित स्थान मिल सके।

    3.कठिन भाषा-वैदिक धर्म के सभी प्रसिद्ध ग्रंथ संस्कृत भाषा में थे। यह भाषा साधारण लोगों की समझ से बाहर थी।

    4. महापुरुषों का जन्म-छठी शताब्दी ई०पू० में भारत में दो महापुरुषों ने जन्म लिया-महावीर स्वामी तथा महात्मा बुद्ध । इन्होंने हिंदू धर्म में सुधार करके उसे नए रूप में प्रस्तुत किया, परंतु उनके उपदेशों ने दो नए धर्मों का रूप धारण कर लिया। नवीन धर्म जैन मत और बौद्ध मत के नाम से प्रसिद्ध हुए।

    प्रश्न 15. महावीर की शिक्षाओं का वर्णन कीजिए।
    उत्तर – महावीर को जैन धर्म का संस्थापक माना जाता है। उन्होंने लोगों को जीवन का सरल मार्ग दिखाया। उनके अनुसार मनुष्य को त्रिरत्न अर्थात् शुद्ध ज्ञान, शुद्ध चरित्र तथा शुद्ध दर्शन का पालन करना चाहिए। उन्होंने मोक्ष-प्राप्ति के लिए लोगों को प्रेरित किया और इसके लिए घोर तपस्या का मार्ग ही सर्वोत्तम मार्ग स्वीकार किया। वह समझते थे कि पशु, वायु, अग्नि, वृक्ष आदि सभी वस्तुओं में आत्मा है और इन्हें कष्ट नहीं देना चाहिए। उन्हें वेदों, जाति-पांति या यज्ञ तथा बलि में कोई विश्वास नहीं था। उनका विचार था कि अपने अच्छे या बुरे कर्मों के कारण मनुष्य जन्म लेता है और आत्मा को पवित्र रखकर ही वह मोक्ष प्राप्त कर सकता है। उन्होंने अपने अनुयायियों को बताया कि वे क्रोध, लोभ, ईर्ष्या, चोरी, निंदा आदि अनैतिक कामों से दूर रहें और सदाचारी बनें।
    प्रश्न 16. महात्मा बुद्ध ने कितने अष्टांगिक मार्गों का वर्णन किया है ?
    उत्तर – वास्तव में महात्मा बद्ध किसी नवीन धर्म के संस्थापक नहीं, अपितु सुधारक थे। उन्होंने किसी नवीन धर्म के स्थापना के स्थान पर प्राचीन धर्म में चली आ रही विभिन्न कुरीतियों एवं आडंबरों को दूर करने का प्रयास किया और धर्म को व्यावहारिक रूप प्रदान किया। बुद्ध का मानना था कि मनुष्य के जीवन में आदि से अंत तक दुःख ही दुःख है। इन दुःखों से मुक्ति पाने के लिए उन्होंने चार सत्यों एवं ‘अष्टांगिक मार्ग’
    (i) सम्यक् दृष्टि, (ii) सम्यक् संकल्प,
    (iii) सम्यक् वाक्, (iv) सम्यक् कर्म,
    (v) सम्यक् आजीविका, (vi) सम्यक् व्यायाम,
    (vii) सम्यक् स्मृति, (viii) सम्यक् समाधि ।
    उपर्युक्त अष्टांगिक मार्ग को भिक्षुओं का ‘कल्याण-मित्र’ स्वीकार किया जाता है।
    प्रश्न 17. वर्द्धमान महावीर के जीवन-चरित्र पर प्रकाश डालिए।
    उत्तर – जैनियों के 24वें तीर्थंकर एवं जैन धर्म के वास्तविक संस्थापक के रूप में महावीर स्वामी माने जाते हैं। इनका जन्म बचपन का नाम वर्द्धमान महावीर था। इनके पिता ज्ञानिक क्षत्रिय 540 ई०पू० में वैशाली के समीप कुंडा ग्राम में हुआ। उनका कुल के प्रमुख थे। महावीर का विवाह कुण्डिन्य गोत्र की कन्या यशोदा से संपन्न हुआ। उन्होंने 30 वर्ष की आयु में सांसारिक सुख त्याग कर सत्य की खोज में निकल पड़े। वे 12 वर्षों तक इधर-उधर भटकते रहे। 12 वर्षों के पश्चात् उन्हें 42 वर्ष की के पश्चात् उन्होंने सुख-दु:ख पर विजय प्राप्त की। उन्होंने 30 अवस्था में उन्हें कैवल्य ज्ञान प्राप्त हुआ। कैवल्य की प्राप्ति साल तक उपदेश दिए और 468 ईसा पूर्व में राजगीर के निकट पावापुर (बिहार) में उनको निर्वाण प्राप्त हो गया। उनके अनुयायी जैन कहलाते हैं।

    प्रश्न 18. अशोक के महान सम्राट कहलाने के कोई दो कारण बताइए।
    उत्तर – 1. लोक-कल्याणकारी राज्य की स्थापना-सम्राटअशोक के द्वारा प्रजा के हित को सर्वोच्चता प्रदान करते हुए लोक-कल्याण के अनेक कार्य, जैसे-सड़कें बनवाना, अस्पताल तथा विद्यालय खुलवाना आदि किए गए। एक शिलालेख में वह स्वयं कहता है, “मेरी प्रजा मेरी संतान है।”

    2. धार्मिक सहिष्णुता की नीति-यद्यपि सम्राट अशोक द्वारा बौद्ध धर्म स्वीकार लिया गया तथापि उसने अन्य धर्मों को भी सम्मान प्रदान किया। यह उसकी धार्मिक सहिष्णुता की नीति का उदाहरण है।

    प्रश्न 19. कुषाण वंश का सबसे महान शासक कौन था ? स्पष्ट कीजिए।
    उत्तर – कनिष्क कुषाण वंश का महानतम शासक था। उसने अपने विजय-अभियान के माध्यम से कश्मीर को जीत लिया और गंगा के मैदानी भागों पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया। मध्य एशिया के काशीगढ़, यारखंद और खोतोन पंजाब, अफगानिस्तान भी उसके राज्य में शामिल थे।

    कनिष्क बौद्ध धर्म का अनुयायी था। उसके प्रयासों से बौद्ध धर्म चीन, मध्य एशिया और अन्य देशों में फैला। वह कला और शिक्षा का महान संरक्षक था। उसकी राजधानी पेशावर (पुरुषपुर) थी। कुषाण वंश में और भी कई राजा हुए हैं, परंतु सबसे प्रसिद्ध कनिष्क था। वासुदेव कुषाण वंश का अंतिम राजा था। उसके मृत्यु के पश्चात् कुषाण साम्राज्य का पतन हो गया।

    प्रश्न 20. गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद भारत की राजनीतिक-सामाजिक स्थिति पर प्रकाश डालिए।
    उत्तर – गुप्त साम्राज्य के पतन के पश्चात् भारत में छोटे-छोटे राज्यों का उदय हुआ, जो परस्पर लड़ते-भिड़ते रहते थे। उत्तर भारत में कन्नौज, मगध, थानेश्वर और गुजरात में चार पृथक्रा ज्य हो गए। हर्षवर्धन ने फिर से साम्राज्य स्थापित करने का प्रयास किया। उसने सारे उत्तर भारत को अपने अधिकार में कर लिया। हर्ष ने ‘कादम्बरी’ और ‘हर्षचरित’ के लेखक बाणभट्ट को संरक्षण दिया। उस काल में भारतीय समाज में जाति व्यवस्था मजबूत हो गई। समाज में महिलाओं की सामाजिक स्थिति में गिरावट आ गई। बौद्ध धर्म का पतन आरंभ हुआ।
    दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
    प्रश्न 1. लौह युगीन सभ्यता किसे कहते हैं ? अपने उत्तर 200 शब्दों में दीजिए।
    उत्तर – लौह युग वह युग था जब संसार की सभ्यताओं में लौहे का प्रयोग आम हो गया था। लगभग तीन हजार वर्ष पूर्व लोहे के औजारों ने जंगल साफ करने और कृषि के विस्तार के लिए अतिरिक्त जमीन प्राप्त करने में सहायता की। लोहे के प्रयोग से परिवहन और संसार में उन्नति हुई। लोहे के प्रयोग से पहिए में मजबूती आ गई। नाव और पोत बनाने में लोहे की कीलों और चादरों का प्रयोग किया जाने लगा। इस काल में तलवारें, तेग, लौह कवच, भाले, बल्लम ने युद्ध का तौर-तरीका बदल डाला। लौह युग में बौद्धिक प्रगति भी हुई। पुरानी चित्रलिपि के स्थान पर वर्णमाला का प्रयोग किया जाने लगा। फिनिशियाइयों ने 22 अक्षरों वाली वर्णमाला विकसित की जिसकी सहायता से विचारों को अभिव्यक्त किया जा सकता था।

    प्रश्न 2. निम्नलिखित में से किसी एक पर टिप्पणी लिखिए-
    (i) यूनानी सभ्यता
    (iii) चीन की सभ्यता
    (ii) रोमन सभ्यता
    (iv) ईरानी सभ्यता
    उत्तर – (i) यूनानी सभ्यता – यूनानी सभ्यता लगभग चार हजार वर्ष पूर्व प्रकाश में आई। वहाँ अनेक नगर-राज्य उभरें। नगर-राज्यों की स्थापना यूनानी सभ्यता की एक खास विशेषता है। प्रत्येक नगर चारों ओर से दीवारों से घिरा होता था। नगर के अंदर किसी पहाड़ी पर किला होता था, जिसे एक्रोपोलिस कहते थे। यूनानी नगर-राज्यों में एथेंस और स्पार्टा प्रसिद्ध थे। एथेंसवासियों में लेखक, दार्शनिक, कलाकार और चिंतक शामिल थे। समाज गुलामों के परिश्रम पर निर्भर करता था, लेकिन नागरिकों के लिए लोकतांत्रिक प्रणाली थी। स्पार्टा किसी सैनिक शिविर के समान था। एथेंस और स्पार्टा में प्रतिद्वंद्विता रहती थी।

    प्राचीन यूनानी कला, विज्ञान, साहित्य और मूर्ति कला में अग्रणी थे। इसलिए यूनान को पश्चिमी सभ्यता की जन्म-स्थली कहा जाता है। सुकरात, अफलातून और अरस्तू जैसे महान दार्शनिक थे जिनके ग्रंथों का आज भी अध्ययन किया जाता है। आर्किमीडीज, एरिस्टार्कस और डेमोक्रिटस जैसे महान वैज्ञानिक भी यूनान में हुए । होमर जैसे महान कवि का जन्म भी यूनान में ही हुआ।

    वास्तुकला के क्षेत्र में यूनानी बड़े दक्ष थे। यही कारण है कि यूनान में अनेक सुंदर महल और मंदिर आकर्षण के केंद्र हैं। ईसा पूर्व 776 में ओलम्पिया में हर साल के बाद खेल आयोजित किए जाते थे।

    बाद में यूनानी सौदागर जब दूर-दूर स्थानों पर गए तो यूनानी जीवनशैली का उन पर प्रभाव पड़ा। कालासागर और उत्तरी अफ्रीका तट पर उन्होंने अपने उपनिवेश बसाए। यूनानी अंगूर, जैनून और खाद्यान्न का उत्पादन करते थे। यूनानी नगर प्रशासन तथा सांस्कृतिक-आर्थिक गतिविधियों के केंद्र थे।

    सिकंदर ने यूनान से बाहर जाकर सीरिया, मेसोपोटामिया, मिश्र, अफगानिस्तान और पश्चिमी भारत तक विजय प्राप्त की। सिकंदर की मृत्यु के बाद रोमवासियों ने यूनान पर कब्जा जमा
    लिया।

    (ii) रोमन सभ्यता – रोमन सभ्यता भी प्राचीन सभ्यताओं में से एक है। यह इटली में टाइबर नदी के तट पर स्थित है। 510 ई०पू० में रोमवासियों ने एक गणराज्य की स्थापना की। रोमन गणराज्य का संचालन एक सीनेट करती थी। सीनेट बुजुर्गो का समूह था। ई०पू० 200 तक रोम इटली की प्रमुख शक्ति बनें गया था।

    समाज एवं अर्थव्यवस्था – रोमन समाज तीन वर्गों में विभाजित था-पैट्रिशियन, प्लीबियन और गुलाम । रोम अर्थव्यवस्था गुलाम-श्रम पर आधारित थी। धनी रोमन गुलाम रखते थे। रोमन में अनेक बार गुलाम-विद्रोह हुए।

    गणराज्य – रोम एक गणराज्य था। जुलियस सीजर शक्तिशाली शासक था। उसके विरोधियों ने उसकी हत्या कर दी। रोम में गृह-युद्ध छिड़ गया। युद्ध के बाद ऑगस्टस सीजर रोम का प्रथम सम्राट नियुक्त हुआ। उसके शासन काल में पैगम्बर ईसा मसीह का बेथलहेम में जन्म हुआ।

    ईसाई धर्म – महान पैगम्बर ईसा मसीह ने एक नए धर्म का प्रचार किया। उन्होंने लोगों को बताया कि सभी मनुष्य ईश्वर की संतान हैं और सभी को आपस में प्रेम करना चाहिए। ईसा मसीह की मृत्यु के बाद उनके शिष्यों ने उनकी शिक्षाओं को जन-जन तक पहुँचाया।

    नगर योजना – रोमन साम्राज्य जब अपने शिखर पर था तो वहाँ कला और संस्कृति का विकास हुआ। मंदिरों, महलों, थियेटरों और स्नानगृहों से युक्त नगर बसाए गए। ग्रामीण क्षेत्रों में विशाल और आरामदेह फार्म हाऊस बनाए गए जिन्हें विला कहते थे। रोम के शासक धार्मिक उत्सव और खेलों के आयोजन करते थे।

    शासन – प्रबंध-रोम साम्राज्य अनेक प्रांतों में विभक्त था। प्रत्येक प्रांत का शासन प्रबंध एक गवर्नर करते थे। उसके अधीन हुआ करते थे। रोम की सेना की शक्ति सैन्य दल थी जिसे लीजन कहते थे। एक लीजन में 5000 सैनिक होते थे जिसका एक कमांडर होता था। रोम में साम्राज्य का संचालन सम्राट की इच्छानुरूप होता था। सैनिक जनरल कमजोर शासकों का तख्ता पलट कर देते थे। वर्ष 395 में बेहतर प्रशासन के लिए विशाल रोमन सम्राज्य को दो हिस्सों में बाँट दिया गया।

    (iii) चीनी सभ्यता – चीनी सभ्यता एक प्राचीन सभ्यता है। यह दो नदियों ह्वांग हो और यांगत्सी शांग में प्रसिद्ध थी। शांग शासकों ने नए-नए नगर बसाए; देश में राजनीतिक एकता स्थापित की और लोगों की भलाई के लिए काम किए। उन्होंने प्राचीन चीनी कला और संस्कृति में बहुत योगदान दिया। शांग शासकों का राजपाट चलाने के लिए अनेक अधिकारी होते थे। 1122 ईसा पूर्व में चओ ने शांग वंश की सत्ता समाप्त कर दी। कोई भी चओ राजा इतना शक्तिशाली नहीं था जो सारे चीन को अपने अधिकार में रख सके। अगले 500 वर्ष तक सत्ता के लिए संघर्ष चलते रहे। उत्तर के हमलों से बचने के लिए उन्होंने मजबूत किले और दीवारें बनवाईं। चिन वंश के बाद हान वंश ने 220 साल तक चीन पर राज्य किया। उनके काल में प्रसिद्ध रेशम मार्ग विकसित हुआ और व्यापार फला-फूला।

    चीन के लोग अनेक देवी-देवताओं की पूजा करते थे। कन्फ्यूशियस नामक प्रसिद्ध दार्शनिक ने सही व्यवहार प्रणाली का प्रचार-प्रसार किया। उन्होंने अच्छे नैतिक सम्मान परिवार से वफादारी और कानून तथा राज्य की आज्ञाओं के पालन पर जोर दिया।

    (iv) ईरानी सभ्यता – लौह युग में फारस में आर्य कबीले रहते थे। ‘मीडिज’ नामक उनकी एक शाखा देश के पश्चिमी भाग में रहती थी। एक दूसरी शाखा पूर्वी भाग में रहती थी जिसे पारसी कहते थे। पारसी राजाओं में से एक साइरस ने 550 ईसा पूर्व में पारसियों को एकताबद्ध किया और मीडिज को परास्त कर एकेमनी राज्य की स्थापना की। उसने एक शक्तिशाली सेना का गठन किया और आस-पास के राज्यों को जीत लिया। दारा प्रथम ईरान का महानतम सम्राट था। उसका साम्राज्य सिंधु नदी से लेकर भूमध्य सागर के पूर्वी किनारे तक फैला हुआ था। उसके शासनकाल में ईरानी कला, वास्तुकला और मूर्तिकला का विकास हुआ। उसने नौसेना को भी शक्तिशाली बनाया।

    शासन प्रबंध – पारसी सम्राट योग्य थे। उन्होंने अपने साम्राज्य को प्रांतों में विभाजित किया जिनका प्रशासन क्षत्रप करते थे। पारसी अच्छे सैनिक थे और उनके पास मजबूत घुड़सवार सेना तथा नौ-सेना थीं। वे लोहे के हथियार रखते थे। सातवीं शताब्दी में अरबों ने उन्हें जीत लिया।

    धर्म और विश्वास – पारसी पहले प्रकृति की शक्तियों में विश्वास रखते थे। वे आग से जुड़े कर्मकांड करते और पशुओं की बलि चढ़ाना चाहते थे। एक धार्मिक उपदेशक जरुश्रुष्ठ उन्हें सिखाया कि “तमाम देवताओं से उन पर अहुरमज्द है। वह स्वर्ग और प्रकाश का मालिक है, जो लोगों को ताकत और ऊजा देता है।” पारसियों को पवित्र ग्रंथ गेंद-अवेस्ता कहलाता है।

    प्रश्न 3. हड़प्पा संस्कृति के भवन – निर्माण कला की विशेषताएँ क्या हैं ?
    उत्तर – भवन निर्माण – हड़प्पा सभ्यता के लोग भवन का अनुसार करते थे। भवनों का निर्माण एक निश्चित योजना निर्माण पक्की ईंटों, चुने और मिट्टी से किया जाता था। घरों का निर्माण ऐसे किया जाता था। घरों का निर्माण ऐसे किया जाता था जिसमें प्रकाश का समुचित प्रबंध होता था। ये मकान गलियों तथा सड़कों के देनों किनारों पर बने होते थे। इसके दरवाजे और खिड़कियाँ गलियों की ओर खुलते थे। कई मकान दो या तीन मंजिलों वाले होते थे। मकान दो ऊपर जाने के लिए सीढ़ियों का प्रबंध था। प्रत्येक मकान में एक कुआँ, एक स्नान-घर और एक रसोई-घर होता था। हड़प्पा सभ्यता के लोगों को सार्वजनिक भवन और स्नानागार बनाने का भी शौक था। सार्वजनिक भवनों में स्तंभों वाला हॉल और राज्य अन्न-संग्रहालय विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। मोहनजोदड़ो में सबसे बड़ा स्नानागार मिला है, जिसकी लम्बाई लगभग 55 मीटर और चौड़ाई लगभग 33 मीटर है। इसके बीच में पक्की ईंटों को एक तालाब बना हुआ है जो लगभग 12 मीटर लम्बा, 7 मीटर चौड़ा, 2.43 मीटर गहरा है। तालाब में उतरने के लिए सीढ़ियाँ भी बनी हुई हैं और पानी निकालने के लिए विशेष नालियों का प्रबंध है। तालाब के पास एक कुआँ है जिसका जल इसे भरने के लिए प्रयोग में लाया जाता था। विद्वानों का अनुमान है कि धार्मिक अवसरों पर नगर के सभी लोग यहाँ स्नान किया करते थे।
    प्रश्न 4. पूर्व-वैदिक साहित्य का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
    उत्तर – पूर्व-वैदिक साहित्य के अंतर्गत सबसे प्रमुख स्थान वेद है। वेद-चार हैं-ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद। केवल ऋग्वेद की रचना पूर्व-वैदिक युग में हुई और शेष तीनों वेदों की रचना उत्तर-वैदिक युग में हुई। ऋग्वेद वैदिक साहित्य का सबसे प्राचीन ग्रंथ है। यह संसार का प्राचीनतम ग्रंथ है। इसमें 1028 सूक्त हैं, जो दस मंडलों में विभक्त हैं। ग्रंथ की भाषा “उच्च कोटि की है। इसके मंत्रों का एक बहुत बड़ा भाग वरुण इंद्र, अग्नि आदि प्राकृत देवताओं की स्तुति में है। इस ग्रंथ के अध्ययन से हमें उस काल की सभ्यता का भी अच्छा ज्ञान होता JP है। ऋग्वेद में स्तुति मंत्रों का संग्रह है। परंतु ऐतिहासिक दृष्टि से भी इस ग्रंथ का विशेष महत्त्व है। क्योंकि इस पूर्व वैदिक काल के इतिहास को जानने का यह सबसे मुख्य, विश्वसनीय और प्रमाणिक साधन है।

    प्रश्न 5. उत्तर-वैदिक काल में सामाजिक क्षेत्र में एक बड़ा परिवर्तन हुआ और समाज चार वर्णों में विभक्त हो गया। अपना-अपना उत्तर विस्तारपूर्वक दीजिए।
    उत्तर – उत्तर-वैदिक काल में मनुष्य को जीवन के चार वर्णों में विभाजित किया गया है जिसका वर्णन निम्नलिखित में प्रस्तुत किया जा रहा है- 1. ब्राह्मण, 2. क्षत्रिय, 3. वैश्य, 4. शुद्र।
    वैदिक काल में कर्म के आधार पर समाज को चार वर्णों में विभाजित किया। जो इस प्रकार हैं-

    (i) ब्राह्मण – सर्वश्रेष्ठ वर्ण ब्राह्मणों का था। इसका कार्य अध्ययन-शिक्षण, पूजा-पाठ और यज्ञ कराना था। इस काल में इनका महत्त्व बढ़ गया था।

    (ii) क्षत्रिय – दूसरा श्रेष्ठ वर्ग क्षत्रियों का था। इनका काम युद्ध और प्रशासन था। वे प्रजा की सुरक्षा के लिए युद्ध करते थे।

    (iii) वैश्य – आरंभ में इस वर्ण का कार्य कृषि, शिल्प और व्यापार आदि था। आगे चलकर ये मुख्य रूप से व्यापारी हो गए। इन तीनों वर्णों को उपनयन संस्कार कराने और आश्रम-व्यवस्था अपनाने का अधिकार था।

    (iv) शुद्र – यह वर्ण उपरोक्त वर्णित तीनों वर्णों की सेवा करता था। शुद्र एक ऐसी जाति मानी जाती है जिसे कोई भी मुनष्य अच्छी नजर से नहीं देखता। इस शुद्र जाति को समाज के अन्य वर्णों के लोगों की जली-कटी, कठोर वचन, व छूआछूत का सामना करना पड़ता है। समाज में इन्हें किसी भी प्रक्रिया में भाग लेने का कोई अधिकार नहीं है, जैसे सर्वश्रेष्ठ वर्गों के ब्राह्मणों के घर, तालाब या मंदिरों में जाने की इज़ाजत नहीं है। यदि कोई शुभ कार्य करता हो तो ये शुद्र नज़र आ जाए तो वह कार्य नहीं करता। किसी मानव से भी छू जाए तो वह राम-राम कह कर स्नान करने चले जाते हैं। इन्हें समाज से ओछी दृष्टि से देखा जाता है। शुद्र जाति के लोगों को बहुत बुरा मानते हैं। इनकी समाज में कोई प्रतिष्ठा नहीं है। शुद्र जाति के लोगों को तालाब, पीने का जल, नदी स्नान के लिए भी सब स्थान अलग-अलग हैं।

    प्रश्न 6. गौतम बुद्ध की जीवन एवं शिक्षाओं का उल्लेख कीजिए।
    उत्तर – बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध का जन्म 563 ताईसा पूर्व में भारत-नेपाल सीमा पर स्थित लुंबिनी नामक गाँव में हुआ था। 29 वर्ष की आयु में गौतम ने घर छोड़ दिया। पत्नी और पुत्र के साथ ही राज त्याग कर वे जंगल में चले गए। बोधगया में उन्होंने ज्ञान प्राप्त किया। उन्होंने अपना पहला उपदेश (धम्म चक्र प्रवर्तन) वाराणसी के निकट सारनाथ में दिया।
    गौतम बुद्ध के उपदेश – उनके उपदेश निम्न प्रकार से हैं-
    1. यह संसार दु:ख का घर है।
    2. तृष्णा दुःख का कारण है।
    3. तृष्णा पर विजय पाने से दुःख को समाप्त किया जा सकता है।
    4. यह अष्टांगिक मार्ग पर चलकर प्राप्त किया जा सकता है जिसमें सच्ची दृष्टि, सही उद्देश्य, सत्वचन, सद्कर्म, सच्ची आजीविका, सद्प्रयास, सद्स्मृति और सद्मनन आते हैं। गौतम बुद्ध ने भोग-विलास और कंजूसी दोनों चरम् सीमाओं से हटकर ‘मध्य मार्ग’ पर चलने की शिक्षा दी। उन्होंने अपने अनुयायियों के लिए एक आचार-संहिता भी बनाई जिनमें चोरी न करना, हत्या न करना आदि प्रमुख हैं। उनका निधन 80 वर्ष की आयु में 483 ईसा पूर्व उत्तर प्रदेश में कुशीनगर में हुआ।
    प्रश्न 7: जैन-धर्म के विषय में आप क्या जानते हैं ? इनके प्रमुख सिद्धांत क्या थे ?
    उत्तर – जैन धर्म के संस्थापक ऋषभ नाथ को माना जाता अत्यधिक महत्त्व है। स्तंभ-लेख की रचना समुद्रगुप्त के महाकवि है। वर्द्धमान महावीर इस पंथ के 24वें तीर्थकर थे तथा पार्श्वनाथ हरिषेण द्वारा की गई थी। इस लेख के द्वारा हमें तत्कालीन 23वें तीर्थंकर थे। महावीर स्वामी के काल में जैन धर्म का अधिक राजनीतिक व्यवस्था के विषय में विशेष जानकारी प्राप्त होती. विकास हुआ। वर्द्धमान महावीर का जन्म वैशाली (बिहार) में है। इस स्तंभ के महत्त्व के विषय में डॉ. मजूमदार ने लिखा ‘कुंडा’ नामक ग्राम में 540 ई०पू० में हुआ। उनके पिता ज्ञानिक है, “इलाहाबाद स्तंभ गुप्तकाल का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण प्रलेख संन्यासी है। क्षत्रिय कुल थे। महावीर 30 वर्ष की आयु के प्रमुख हो गए। उन्होंने 42 वर्ष की आय में कैवल्य प्राप्त किया। उन्होंने लगभग 30 वर्ष तक उपदेश दिए और 468 ई०पू० में राजगीर के निकट पावापुरी (बिहार) में उनका निधन हो गया। उनके अनुयायी जैन कहलाते हैं। जैन धर्म में सर्वशक्तिमान ईश्वर का स्थान नहीं है। यह देवी-देवताओं को महत्त्व देता है। जैन मत का मुख्य उद्देश्य सांसारिक बंधनों मुक्ति प्राप्त करना है। जैन धर्म जाति व्यवस्था, कर्मकाण्ड और वैदिक ब्राह्मणवाद का विरोध करता है। कर्म के सिद्धांत और पुनर्जन्म को स्वीकार करता है।
    जैन धर्म के सिद्धांत-
    (1) अहिंसा, (2) सत्य बोलना, (3) चोरी न करना, (4) जुड़ाव न रखना, (5) ब्रह्मचर्य। जैन धर्म के त्रिरत्न में सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चरित्र शामिल हैं।

    प्रश्न 8. ‘अर्थशास्त्र’ पर एक निबंध लिखिए।
    उत्तर – ‘अर्थशास्त्र’ मौर्यकालीन भारत के विषय में जानने का एक मात्र साधन है। यह प्रसिद्ध विद्वान और चंद्रगुप्त मौर्य के प्रधानमंत्री कौटिल्य की रचना है। यह पुस्तक 1909 में प्राप्त हुई थी। यह पुस्तक पंद्रह भागों में एक सौ अस्सी उपयोगों में विभाजित हैं और इसमें छः हजार के लगभग श्लोक है।

    अर्थशास्त्र एक ऐसी विस्तृत रचना है कि जिसमें केवल राजनीतिक सिद्धांतों का ही उल्लेख नहीं मिलता, अपितु प्रशासन के संगठन तथा राज्य और समाज की बहुत-सी समस्याओं का भी उल्लेख है। कौटिल्य का वास्तविक चाणक्य का वह, विलक्षण प्रतिभा संपन्न व्यक्ति था जिनका स्पष्ट प्रमाण उसके ग्रंथ में उपलब्ध है। कौटिल्य द्वारा रचित इस ‘अर्थशास्त्र’ में न केवल राजनीतिक सिद्धांतों और प्रशासनिक व्यवस्था, यथा-शासक के दैनिक कर्त्तव्य, राजस्व के सिद्धांत, शासक की विदेश नीति इत्यादि पर प्रकाश डाला गया है। इसी अद्भुत विशेषता के कारण अर्थशास्त्र के प्राचीन भारत में साहित्य में राजनीति शास्त्र तथा इतिहास को अपने ढंग पर लिखी जाने वाली एक अद्वितीय पुस्तक कही जा सकती है।

    प्रश्न 9. इलाहाबाद के स्तंभ-लेख का ऐतिहासिक महत्त्व बताइए।
    उत्तर – ऐतिहासिक दृष्टि से इलाहाबाद स्तंभ लेख का अत्यधिक महत्त्व है। स्तंभ-लेख की रचना समुद्रगुप्त के महाकवि हरिषेण द्वारा की गई थी। इस लेख के द्वारा हमें तत्कालीन राजनीतिक व्यवस्था के विषय में विशेष जानकारी प्राप्त होती है। इस स्तंभ के महत्त्व के विषय में डॉ. मजूमदार ने लिखा है, “इलाहाबाद स्तंभ गुप्तकाल का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण प्रलेख है।

    इसमें भारत की तत्कालीन स्थिति तथा समुद्रगुप्त की सफलताओं तथा व्यक्तित्व का जितना विस्तृत वर्णन है, उतना सम्राट अशोक के अतिरिक्त उत्तर भारत के किसी शासक को प्रापत नहीं होता।” यह समुद्रगुप्त के इतिहास के जानकारी का हमारे पास मुख्य तथा एकमात्र सोधन है। अतः इसका अध्ययन सावधानी से करने की आवश्यकता है। इलाहाबाद के स्तंभ-लेख द्वारा हमें समुद्रगुप्त की विजयों तथा सफलताओं के विषय में तो पता चलता है, लेकिन उसकी असफलताओं का इसमें कोई उल्लेख नहीं है। अतः ऐतिहासिक के रूप में इलाहाबाद स्तंभ-लेख का प्रयोग सावधानीपूर्वक करने की आवश्यकता है।

    प्रश्न 10. गुप्तकालीन भारत की विशेषता बताइए।
    उत्तर – चौथी शताब्दी में भारत में गुप्त वंश का उदय हुआ। शक्तिशाली गुप्त शासकों ने साम्राज्य का विस्तार किया और शांति और समृद्धि लाने का कार्य किया। महाराजा श्री गुप्त को गुप्त वंश का संस्थापक बताया जाता है। चंद्रगुप्त, समुद्रगुप्त, चंद्रगुप्त द्वितीय, कुमार गुप्त और स्कंदगुप्त गुप्त वंश के शासक हुए हैं। लेकिन इनमें जितनी ख्याति चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने प्राप्त की, उतनी किसी अन्य सम्राट ने नहीं। उसके काल में भारतीय जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय विकास हुआ।

    प्रशासन – गुप्त प्रशासन में ग्राम प्रशासन को विशेष महत्त्व दिया गया। उन्होंने न्यायिक और राजस्व प्रशासन की प्रभावशाली प्रणाली को अपनाया। प्रांतों का प्रशासन गवर्नर करते थे। उनकी सहायता के लिए अनेक अधिकारी होते हैं।

    अर्थव्यवस्था – चीनी यात्री फाहियान के अनुसार लोग सुखी और धनी थे। कृषि व्यापार और उद्योग उन्नति पर थे। सिंचाई के लिए नहरें बनाई गई थीं। आंतरिक और विदेशी व्यापार दोनों उन्नति पर थे। उद्योगों में उत्खनन, धातु कर्म, बर्तन निर्माण, संगतराशी, बुनकारी और बढ़ईगिरी महत्त्वपूर्ण थे।

    समाज और संस्कृति – समाज वर्ण-व्यवस्था पर आधारित था। गुप्त राजाओं के काल में कला, वास्तुशिल्प, चित्रकला. मूर्तिकला, साहित्य, शिक्षा, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, चिकित्सा दर्शन और ज्ञान की विभिन्न शाखाओं में प्रगति हुई। गुप्त काल को भारतीय इतिहास का स्वर्ग युग कहा जाता है।

    NIOS Class 10th सामाजिक विज्ञान (पुस्तक – 1) Question Answer in Hindi

    • Chapter – 1 प्राचीन विश्व
    • Chapter – 2 मध्यकालीन विश्व
    • Chapter – 3 आधुनिक विश्व – Ⅰ
    • Chapter – 4 आधुनिक विश्व – Ⅱ
    • Chapter – 5 भारत पर ब्रिटिश शासन का प्रभाव : आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृति (1757-1857)
    • Chapter – 6 औपनिवेशिक भारत में धार्मिक एवं सामाजिक जागृति
    • Chapter – 7 ब्रिटिश शासन के विरुद्ध लोकप्रिय जन प्रतिरोध
    • Chapter – 8 भारत का राष्ट्रीय आन्दोलन
    • Chapter – 9 भारत का भौतिक भूगोल
    • Chapter – 10 जलवायु
    • Chapter – 11 जैव विविधता
    • Chapter – 12 भारत में कृषि
    • Chapter – 13 यातायात तथा संचार के साधन
    • Chapter – 14 जनसंख्या हमारा प्रमुख संसाधन

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