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NIOS Class 10th Social Science (213) Chapter – 1 प्राचीन विश्व (Ancient World) Notes in Hindi

March 13, 2023
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    NIOS Class 10th Social Science (213) Chapter – 1 प्राचीन विश्व (Ancient World)

    TextbookNIOS
    Class10th
    Subjectसामाजिक विज्ञान (Social Science)
    Chapter1st
    Chapter Nameप्राचीन विश्व (Ancient World)
    CategoryClass 10th सामाजिक विज्ञान
    MediumHindi
    SourceLast Doubt

    NIOS Class 10th Social Science (213) Chapter – 1 प्राचीन विश्व (Ancient World) Notes in Hindi विश्व की प्राचीन सभ्यता कौन सा है, दुनिया का सबसे पुराना इतिहास क्या है, प्राचीन विश्व कहां था, प्राचीन काल कब शुरू हुआ, दुनिया का सबसे पुराना देश कौन सा है, पहली सभ्यता कहां हुई थी, हिंदू धर्म कितना पुराना है, इतिहास का सबसे बूढ़ा आदमी कौन है, भारत के 7 नाम क्या है, विश्व का इतिहास का पिता कौन है, प्राचीन दुनिया का अंत कैसे हुआ, भारत का सबसे पुराना शहर कौन सा है, भारत का पहला नाम क्या है, भारत सबसे पुराना देश क्यों है, भारत में कुल कितनी सभ्यता थी, अब तक का सबसे लंबा जीवन कौन सा है, सबसे पुराने इंसान कहां रहते हैं, सबसे लंबी उम्र किसकी थी आदि आगे पढ़े।

    NIOS Class 10th Social Science (213) Chapter – 1 प्राचीन विश्व (Ancient World)

    Chapter – 1

    प्राचीन विश्व

    Notes

    कांस्य युग – नवपाषाण युग के अंत में धातु का इस्तेमाल शुरू हुआ। तांबा पहली ऐसी धातु थी, जिसका इस्तेमाल मानव द्वारा किया गया था। पत्थर और तांबा दोनों के इस्तेमाल पर आधारित संस्कृतियों को ताम्र-पाषाण संस्कृति कहते हैं। काँसा जो तांबा और रांगा की मिश्र धातु है, इसकी खोज भी इसी काल में हुई, इसलिए इसे कांस्य युग भी कहते हैं। इस काल में हथियारों और औजारों के निर्माण में तांबा और कांस्य ने एक हद तक पत्थर, लकड़ी और हड्डी की जगह ले ली थी। लोगों ने धूप में सूखी और आग में पकी दोनों तरह की ईंटो को बनाना व निर्माण कार्य का इस्तेमाल करना सीखा।

    इसी काल में विभिन्न नदी घाटियों में पहली बार नगर आधारित सभ्यताओं का उदय हुआ। ये नगर व्यापार और वाणिज्य के केन्द्र बन गए और एक काल क्रम में राज्यों तथा साम्राज्यों का उदय हुआ। प्राचीन काल में लोगों ने महान सभ्यताओं का निर्माण कर मानवता को महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। ये प्राचीन सभ्याताएं मेसापोटामिया, मिस्र, भारत व चीन में उभरीं व विकसित हुई। कृषि, दस्तकारी और वाणिज्य धीरे-धीरे फले-फूले । नगर प्रशासन के भी केन्द्र बनें।

    मेसोपोटामिया सभ्यता – मेसोपोटामिया का शाब्दिक अर्थ है, नदियों के बीच की जमीन। यह दजला और फरात नदियों के बीच स्थित थी और अभी इसका आधुनिक नाम इराक है। इन नदियों मे अक्सर बाढ़ आ जाया करती थी। इस प्रक्रिया में उनके किनारों पर ढेर सारी मिट्टी और गाद जमा हो जाती थी। यह किनारों के पास की जमीन को खूब उर्वर अर्थात उपजाऊ बना देती थी। इसने मेसोपोटामिया वासियों के सामने दो चुनौतियां पेश कीं, बाढ़ को काबू में करना और खेती के लिए जमीन की सिंचाई करना।जिससे उपज बढ़ी। कृषि उत्पादन में इजाफें से लोहार, कुम्हार, राजमिस्त्री, बुनकर और बढ़ई जैसे अनेक दस्तकार सामने आए। वे अपनी बनाई चीजें बेचते और बदले में अपनी रोजाना की जरूरतों की चीजें लेते।

    वे भारत जैसे सुदूर क्षेत्रों के साथ जमीनी और समुद्री दोनों तरह के नियमित व्यापार करते। परिवहन और संचार के लिए ठेलों, चौपहिया गाड़ियों, नौकाओं और जल पोतों का इस्तेमाल किया जाता था। उन्होंने लिखने की कला भी विकसित कर ली थी। उस समय की लिपि संकेत चिह्नों या चित्रों का समूह थी। बाद में वे फान जैसी लकीरें खींचते थे। यह लिपि कीलाक्षर कहलाती है।

    मेसोपोटामिया के प्रारंभिक शहर छोटे राज्यों के समान थे। उनका अपना प्रशासन वर्गों में पुरोहित, राजा और कुलीन शामिल थे। उनके अलावा सौदागर, आम लोग और गुलाम थे। मेसोपोटामिया के लोग ढेर सारे देवी-देवताओं – आकाश का देवता, हवा का देवता, सूर्य देवता, चंद्रमा-देवता, प्रजनन की देवी, प्रेम की देवी और युद्ध का देवता और इसी तरह के अनेक अन्य देवी-देवताओं की पूजा करते थे। हर शहर का एक संरक्षक देवता होता था। मेसोपोटामिया में अनेक खूबसूरत मंदिरों का निर्माण किसानों और गुलामों या फिर जिन्हे युद्ध में बंदी बना लिया जाता था उन्ही से करवाया जाता था।

    मिस्र सभ्यता – मिस्र को अकसर नील नदी का तोहफा कहते हैं, जो बिल्कुल सही है। हर साल नदी में बाढ़ आती और उसके किनारे पानी से डूब जाते थे। वहां मिट्टी की एक मोटी परत जमा हो जाती थी, इस प्रक्रिया में किसान की जमीन बेहद उपजाऊ बन जाती थी। इस तरह वहां बारिश नही के बराबर होने के बावजूद भी फसल उगाये जाते थे। प्राचीन मिस्रवासियों ने बढ़िया सिंचाई प्रणाली भी विकसित कर लिया था। ईसा पूर्व 3100 तक मिस्र एक राजा के अधीन आ गया था। मिस्रवासी अपने राजा को भगवान मानते थे उनका राजा पुरे देश पर राज करते थे

    मिस्र के राजाओं को फराओं कहा जाता था। फराओं की सेवा में मंत्री और अधिकारी थे। वे जमीन का प्रशासन चलाते और राजा के आदेश के अनुसार कर वसूलते। समाज में पुरोहितों का भी एक ऊंचा और सम्मानजनक स्थान था। हर कस्बे या शहर में मंदिर एक खास देवता को समर्पित होते। प्राचीन मिनी लिपि को चित्रलिपि या चित्राक्षर कहते हैं। व्यापारी और सौदागर समुद्री तथा जमीनी दोनों तरह के व्यापार करते थे। मिस्र में संगतराश, बढ़ई, लोहार, चित्रकार, कुम्हार जैसे कुशल मजदूर थे। प्राचीन मिस्रवासियों को गणित की खासकर रेखागणित की अच्छी जानकारी थी। उन्हें मापतोल की भी खासी जानकारी थी।

    फराओं ने प्राचीन विश्व के महान स्मारक पिरामिड बनवाए। मिस्रवासी मौत के बाद जिंदगी पर यकीन करते थे और इसलिए उन्होंने शवों को संरक्षित रखा जाता था। इन संरक्षित शवों को ममी कहा जाता है। पिरामिड को मृत राजाओं के ममी किए गए शवों को रखने के लिए मकबरों के रूप में बनाया गया था।

    चीनी सभ्यता – चीनी सभ्यता उत्तरी चीन में ह्वांगहो नदी के घाटी में फली फूली थी। ऐतिहासिक साक्ष्यों के मुताबिक चीन के शुरूआती शासक शांग के शासन में एक लेखन शैली ईजाद की गई थी। इसके काल के दस्तकार, विशेषतः कांस्य शिल्पी अपने काम में बहुत माहिर थे। शांग शासकों के अंदर अनेक अधिकारी होते थे, जो राजाओं को राजपाट में मदद करते। यहाँ के किसान अभिजात वर्ग की खाद्य पदार्थो की आपूर्तिकिया करते थे। चाऊ (1122 ईसा पूर्व) ने शांग वंश की सत्ता खत्म कर दी। उन्होंने पश्चिम की तरफ से हमला किया था और उन्हें शक्तिशाली कुलीन को समर्थन प्राप्त था।

    लेकिन कोई भी चाऊ राजा इतना शक्तिशाली नहीं हुआ, जो पूरे राज्य को अपने काबू में रख सके। अगले 500 साल तक कुलीन सत्ता के लिए आपस में लड़ते रहे। दूसरे कुलीनों और साथ ही उत्तर से हमला करने वाले खूंखार खानाबदोश कबीलों से अपनी रक्षा करने के लिए उन्होने मजबूत किले और चारों तरफ से दीवारों से घिरे नगर बनवाए। चाऊ शासन के परवर्ती काल में लोहे का इस्तेमाल होने लगा, जिससे कांस्य युग का समापन हो गया। ईसा पूर्व 221 में चिन राजा चीन के शासक बने। उन्होंने कुलीनों की ताकत कुचल डाली। चिन राजाओं ने साम्राज्य को अनेक प्रांतों में बांट दिया और हरेक के लिए एक शासक नियुक्त किया। उन्होंने पूरे साम्राज्य में समान भाषा, समान कानून और समान मापतोल अपनाने का आदेश दिया। उन्होंने चीन की मशहूर दीवार भी बनवाई।

    चिन वंश के बाद हान वंश आया। उसने 220 इस्वी साल तक चीन पर राज किया। इस दौरान मध्य एशिया और फारस से गुजरने वाले प्रसिद्ध रेशम मार्ग की ओर से पश्चिम से चीनी सौदागरों का नियमित संबंध बना रहा। चीन के लोग अनेक देवी-देवताओं की पूजा करते थे। पूर्वजों और प्रकृति-आत्माओं की पूजा आम थी। कन्फ्यूशस नामक एक प्रसिद्ध चीनी धार्मिक उपदेशक ने ‘सही व्यवहार’ प्रणाली का प्रचार-प्रसार किया। इसने चीनी समाज और सरकार को बेहद प्रभावित किया। उन्होंने अच्छे नैतिक सम्मान, परिवार से वफादारी और कानून तथा राज्य की आज्ञाओं के पालन पर जोर दिया।

    नगर योजना – कुछ लोग सुनियोजित नगरों में रहते थे। हड़प्पाई शहरों की यह एक महत्वपूर्ण विशेषता थी मजबूत नगर-दुर्ग की उपस्थिति। दुर्ग में सार्वजनिक इमारत होती थी। दुर्ग के नीचे नगर का दूसरा हिस्सा था जहाँ आम लोगों के मकान थे। नगरों में चौड़ी सड़कें थी, जो समकोण एक दूसरे को काटती थी। मकान ईट के बने थे। ज्यादातर मकान दो मंजिला थे। हरेक घर में कुएं, स्नानगृह, नाली और परनाली थी। साफ-सफाई का स्तर बहुत उन्नत था। सड़कों पर प्रकाश-व्यवस्था भी की गई थी। मोहंजोदड़ों के निचले शहर में निवास गृहों के अलावा दुर्ग वाले क्षेत्र में अनेक खंभों वाले विशाल हाल भी मिले हैं। यहाँ की सबसे प्रमुख विशेषता थी विशाल स्नानगृह (180 फुट लंबा और 108 फुट चौड़ा) उसमें स्नान के लिए इस्तेमाल होने वाला जलाशय 39 फुट लंबा, 23 फुट चौड़ा और आठ फुट गहरा था। हड़प्पा का विशाल अनाज भंडार एक अन्य महत्वपूर्ण इमारत थी। यहाँ किसानों द्वारा उत्पादित अन्न का भंडारण होता था।

    समाज और अर्थव्यवस्था – हड़प्पावासी कृषि, पशुपालन, दस्तकारी, व्यापार और वाणिज्य में माहिर थे। मुख्य फसलें गेहूं, जौ, राई, तिल और मटर थीं। लोथल और रंगपुर में धान मिलें हैं। कालीबंगन में हल की लीक के निशान मिले हैं। उनसे पता चलता है कि वे हल का इस्तेमाल करते थे। फसल काटने के लिए हसुआ का इस्तेमाल होता था। सिंचाई के कई तरीकों का इस्तेमाल होता था। लोगों को कपास और रूई की जानकारी थी। गाय, बकरी, भेड़, सांड, कुत्ते, बिल्ली, ऊंट और गधे जैसे जानवरों को पालतू बनाया जा चुका था। लोग अनाज, मछली, मांस, दूध, अंडे और फल खाते थे। ज्यादातर तांबा और कांस्य के बने औजार और हथियार इस्तेमाल किए जाते थे। जेवरात सोना, चांदी, कीमती पत्थरों, रत्नों, शंख और हाथी के दांत के बने होते थे। दस्तकारों में कुम्हार, बुनकर, राजमिस्त्री, बढ़ई, लोहार, सूनार, शिल्पकार, संग-तराश, ईंट बनाने वाले और ठठरे शामिल थे।

    वाणिज्य और व्यापार भी महत्वपूर्ण आर्थिक गतिविधियों में शामिल थे। स्थानीय व्यापार के साथ व्यापार भी चलता था। अनेक साक्ष्य इंगित करते हैं कि मेसोपोटामिया के साथ हड़प्पावासियों के संबंध थे। वे सोना, रांगा, तांबा जैसी धातुओं का और अनेक प्रकार के रत्नों को आयात करते थे निर्यात में कृषि उत्पाद, सूती सामान, बर्तन, जेवतरात, हाथी के दांत की बनी चीजें और दस्तकारी सामान शामिल थे। हड़प्पा की मिट्टी की बनी मुहरों का इस्तेमाल संभवतः वाणिज्यिक उद्देश्यों था। समाज वर्गों में विभाजित था। नगर-दुर्ग की मौजदूगी शासक वर्ग के अस्तित्व की और इशारा है। इसमें संभवतः पुरोहित भी शामिल थे। समाज में उनके अलावा सौदागर, दस्तकार और आम लोग लेकिन हमें इस बारे में ठीक-ठीक पता नहीं है।

    धर्म और संस्कृति – मातृदेवियां हड़प्पावासियों के बीच बेहद लोकप्रिय प्रतीत होती हैं। मातृदेवियों की मिट्टी की बनी मूर्तियां मिली हैं। मोहनजोदड़ो में एक पुरूष-देवता भी मिला है, जिसे शिव (पशुपति) का आदिरूप कहा गया है। उसे एक मुहर पर पशुओं से घिरे योग की मुद्रा में बैठे दिखाया गया है। लिंग पूजा, वृक्ष और जड़ात्मवाद भी प्रचलन में थे। विभिन्न स्थलों पर मिले ताबीज और जंतर आत्माओं तथा पर उनके विश्वास की ओर इशारा करते हैं। हड़प्पा-वासियों ने उच्च स्तरीय तकनीकी की चीजें हासिल की थी। उन्हें नागर-अभियांत्रिकी, चिकित्सा मापतोल और स्वच्छता की जानकारी थी। वे भी जानते थे। वे एक लिपि का प्रयोग करते थे, जिसे अभी तक नहीं समझा जा सका है।

    पतन – यह कहना कठिन है कि किन कारणों से इस सभ्यता का पतन हो गया कुछ इतिहासकार मानते थे कि आर्यो के आक्रमण ने हड़प्पा सभ्यता को खत्म कर डाला। लेकिन यह संदेहास्पद प्रतीत होता है क्योंकि आर्यो के भारत आने से सदियों पहले इस सभ्यता का पतन हो गया प्राकृतिक आपदाएं इस सभ्यता के पतन का सबसे महत्वपूर्ण कारण जान पड़ती हैं। बार-बार बाढ़ आने नदियों का सूखना, मिट्टी की उर्वरता में ह्रास, लकडियों के लगातार इस्तेमाल से जंगलों का सफाया भूकंप, अल्पवष्टि, रेगिस्तान के फैलाव ने संभवतः इस सभ्यता के पतन में भूमिका निभाई। कुछ की राय में मेसापोटामिया से हो रहे समुद्री व्यापार में गिरावट की भी इस सभ्यता के पतन में कुछ भूमिका रही होगी। इस सभ्यता के पतन के साथ ही साक्षर व शहरी जीवन भारत में एक हजार साल से अधिक समय के लिए लुप्त हो गए।

    लौह युगीन समाज – लौह युग का मतलब वह समय है, जब लोहे का उत्पादन बड़े पैमाने पर शुरू हो गया और उसका आम इस्तेमाल होने लगा। यह करीब तीन हजार साल पहले आरंभ हुआ। लोह युग अलग-अलग जगहों में विभिन्न समय पर आया। इसने लोगों के सामाजिक और आर्थिक जीवन में व्यापक परिवर्तन ला दिए। लोहा तांबा और कांस्य से बहुत सस्ता और मजबूत था लोहे के औजारों ने हमारे पूर्वजों को जंगल साफ करने और कृषि के विस्तार के लिए अतिरिक्त जमीन हासिल करने में मदद की। इस तरह कृषि उपज में खासी वृद्धि हुई।

    लोहे के इस्तेमाल से परिवहन और संचार पर जबर्दस्त प्रभाव पड़ा लोहे के हल और औजार के इस्तेमाल से पहिया और भी मजबूत हो गया। नाव और पोत बनाने में लोहे की कीलें और चादरें व्यापक रूप से इस्तेमाल की जाती थीं। व्यापार और वाणिज्य भी फला-फुला। यह व्यापार खुशहाली लाया। नए हथियार भी इसी युग की देन हैं। भारी तलवारें, तेग, लौह कवच, भाले और बल्लम युद्ध का तौर-तरीका बदल डाला।

    लौह युग बौद्धिक प्रगति का भी दौर था। उस दौर का सर्वाधिक महत्वपूर्ण विकास वर्णमाला की शुरूआत था। इसने पुरानी चित्रलिपि पर आधारित लिखावट की जगह ली। फिनिशियाइयों ने 22 अक्षरों वाली वर्णमाला विकसित की, यह युग अधिक बड़े स्तर पर राज्यों के निर्माण का भी साक्षी है। जो सभ्यता लौह युग में फली वह देश थे ग्रीस, रोम, परशिया और भारत। यह सभ्यता पूर्व युग से कहीं ज्यादा विकसित है।

    यूनानी सभ्यता – यूनानी सभ्यता करीब 2000 साल पहले से कुछ समय बाद यूनान में विकसित हुई। यूनान में अनेक स्वतंत्र नगर-राज्य उभरे, जो एक उल्लेखनीय शासन प्रणाली के रूप में विकसित हुए। नगर-राज्यों का विकास यूनानी सभ्यता की एक अनूठी विशेषता है। हरेक नगर सुरक्षा के लिए दीवारों से घिरा होता था। नगर के अंदर किसी पहाड़ी पर किला होता था, जिसे एकोपालिए कहते थे।

    यूनानी नगर-राज्यों में सबसे प्रसिद्ध एथेंस और स्पार्टा थे। एथेंस धनी और सुसंस्कृत था । एथेंसवासियों में लेखक, दार्शनिक, कलाकार और चिंतक शामिल थे। समाज गुलाम-श्रम आधारित था। लेकिन नागरिकों के लिए लोकतांत्रिक शासन प्रणाली थी। पूरे यूनान में स्पार्टा की सेना सबसे अच्छी थी। यहां युद्ध कौशल का प्रशिक्षण सर्वाधिक महत्वपूर्ण चीज माना जाता था। वहां कोई लोकतंत्र नहीं था। स्पार्टा लगभग किसी सैनिक शिविर के समान था, जहां हरेक से अपने वरिष्ठ की आज्ञाकारिता की उम्मीद की जाती थी। एथेन्स और स्पार्टा में खासी प्रतिद्वंदिता थी। लेकिन दारियस प्रथम और ज़र्जेस की ताकतवर ईरानी सेना से दोनों साथ-साथ लड़े। पेरीक्लीज का दौर एथेंस के लिए स्वर्ण युग था, लेकिन एथेंस और स्पार्टा के बीच 27 साल तक चले पेलोपोनिशियाई युद्ध में एथेंस की हार हो गई।

    प्राचीन यूनानी कला, विज्ञान, साहित्य और मूर्तिकला में अग्रणी थे। इसलिए यूनान का पश्चिमी सभ्यता की जन्म स्थल कहते हैं। सुकरात, अफलातून और अरस्तू महान दार्शनिक थै उनके ग्रंथों का अब भी अध्ययन किया जाता है। हेरोडोटस और यूसीडाइडीज प्रसिद्ध इतिहासकार थे। आर्किमीडीज, एरिस्टार्कस और डेमोक्रिटस महान वैज्ञानिक थे। इस्काइलस, साफोक्लीज और अरिटोफेनीज नाटककार थे। होमर मशहूर महाकाव्य इलियड और ओडिसी का जनक है। यूनानियों को वास्तुकला में भी महारत हासिल थी।

    उन्होंने अनेक सुंदर मंदिर औरमहल बनाए। यूनानी मूर्तिकला ने मानव शरीर की बारीकियों को बड़ी जीवंतता के साथ उकेरा। नाटक और संगत भी फले-फुले। ईसा पूर्व 776 में शुरू हुए ओलंपिक खेल ओलंपिया नामक जगह पर हर चार साल पर आयोजित किए जाते थे। खेल और एथ्लेटिक्स देवताओं के राजा जियस के सम्मान में होते। यूनानी अनेक देवी-देवताओं पर विश्वास करते थे। हरेक नगर का अपना संरक्षक देवता या देवी होती थी। माना जाता था कि ये देवी-देवता ओलंपस पर्वत पर वास करते हैं।

    एक समय यूनानियों ने विशाल साम्राज्य भी खड़ा किया। मकदूनिया के सिकन्दर ने, जिसे इतिहास में सिकन्दर महान के नाम से जाना जाता है, यूरोप के बाहर जाकर सीरिया, मेसोपोटामिया, मिन अफगानिस्तान और यहां तक कि मध्य एशिया तथा पूर्व-पश्चिमी भारत के हिस्सों को जीता । इस तरह यूनानी विचार और शिक्षाएं दूर-दूर तक फैल गई। सिकन्दर 33 साल की छोटी सी उम्र में मर गया। उसके बाद उसका साम्राज्य छोटे-छोटे हिस्सों में खंडित हो गया। बाद में रोमवासियों ने यूनान पर कब्जा कर लिया ।

    रोमन सभ्यता – रोम नगर मध्य इटली में टाइबर नदी के तट पर बसा है। रोमवासियों ने एक गणराज्य की स्थापना की (510 ईसा पूर्व)। रोमन गणराज्य का संचालन सीनेट करता था, जो बुजुर्गों का समूह था। वे सीनेटर कहलाते थे। वे नेतृत्व के लिए हर साल दो सभा (परिषद्) चुनते थे। ईसा पूर्व 200 तक रोम इटली की प्रमुख शक्ति बन चुका था। उसने भूमध्य सागरीय क्षेत्र के नियंत्रण के लिए कार्थेज जैसे प्रतिद्वंद्वी का परास्त कर दिया था।

    पूर्व-रोमन समाज में तीन वर्ग थे – पैट्रिशियन (कुलीन), प्लीबियन (आमजन) और गुलाम। रोमन अर्थव्यवस्था गुलाम-श्रम पर आधारित थी। धनी रोमन गुलाम रखते थे। इन गुलामों को अकसर ‘ग्लैडिएटर युद्ध’ के लिए प्रशिक्षित किया जाता था, जो गुलामों और जंगली जानवरों के बीच लड़ा जाता था। रोम में अनेक गुलाम विद्रोह हुए। उनमें से एक का नेतृत्व स्पार्टाकस (74 ईसा पूर्व) ने किया था।

    रोम एक गणराज्य था। इसके बावजूद ताकतवर और प्रभावशाली नेता सत्ता के लिए लड़े जुलियस सीजर ऐसा ही एक नेता था, जिसने जबर्दस्त शक्ति जमाकर ली थी और तानाशाह बन बैठा था। विरोधियों ने सीजर की हत्या कर दी और रोम में गृह युद्ध छिड़ गया। युद्ध के बाद आगस्टस सीजर रोम का पहला सम्राट बना । रोमन साम्राज्य तीन महाद्वीपों – यूरोप, एशिया और अफ्रीका में फैला था । आगस्टस के शासन काल में महान पैगंबर ईसा मसीह का जन्म बेथलहेम में हुआ। उन्होंने एक नए धर्म का प्रचार शुरू किया। उनके अनुसार सभी नर-नारी ईश्वर की संतान हैं। उन्होंने लोगों को एक दूसरे से मुहब्बत करना सिखाया। उनके निधन के बाद ईसा के अनुयाइयों ने उनकी शिक्षाओं को आम लोगों के बीच फैलाना शुरू किया।

    जब रोमन साम्राज्य अपने शिखर पर था, तो वह पूर्व में मेसोपोटामिया से लेकर पश्चिम में गॉल और ब्रिटेन तक फैला था। पूरे साम्राज्य में लोग रोमन जीवन शैली अपनाते। हर तरफ स्नानगृहों, मंदिरों, महलों और थियेटरों से सुसज्जित नगर बसाए गए। ग्रामीण इलाकों में रोमवासियों ने विशाल और आरामदेह फार्म हाउस बनवाए, जो विला कहलाते थे। रोम के शासक विजय परेड, धार्मिक समारोह और खेलों की अध्यक्षता करते थे। ग्लैडिएटी की लड़ाई, रथों की दौड़ और थियेटेर आम मनोरंजन थे।

    रोम साम्राज्य अनेक प्रांतों में विभाजित था। हर प्रांत का शासन एक गवर्नर करता था। उसके मातहत अनेक अधिकारी थे, जो प्रशासन के विभिन्न मामलों की देख-रेख करते थे । रोम की सेना की मुख्य युद्धक शक्ति लीजन या सैन्य दल था । हरेक लीजन में एक कमांडर के मातहत – 5000 सैनिक होते थे। रोम का साम्राज्य सम्राट की इच्छा पर चलता था। लेकिन उसकी ताकत का दारोमदार सेना पर था। सैनिक जनरल आम तौर पर कमजोर सम्राटों का तख्तापलट कर देते थे।

    ईरानी सभ्यता

    लौह युग में फारस (आधुनिक इराक) में आर्य कबीले रहते थे। मीडिज नामक उनकी एक शाखा देश के पश्चिमी हिस्से में रहती थी। एक दूसरी शाखा दक्षिणी और पूर्वी हिस्से में रहती थी और फारसी कहलाती थी । मीडीज ने एक शक्तिशाली राज्य की स्थापना की, जिसमें ईरान का विशाल इलाका शामिल था। पहले फारसियों को भी उनका प्रभुत्व स्वीकार करना पड़ा पारसी राजाओं में से एक साइरस ने 550 ईसा पूर्व में पारसियों को एकताबद्ध किया और मीडीज को पराजित कर एकेमेनी साम्राज्य की स्थापना की। उसने एक ताकतवर सेना संगठित की और एक-एक कर बेबीलोन, असीरिया और एशिया माइनर को जीत लिया। दारा प्रथम ईरान का महानतम सम्राट था। उसका साम्राज्य सिंधु नदी से लेकर भूमध्य सागर के पूर्वी छोर तक फैला था। उसने पर्सेपोलिए के अपनी राजधानी (518 ईसा पूर्व) बनाया। एकेमेनी वंश के इस सम्राट के शासन काल में ईरानी कला, वास्तुकला और मूर्तिकला का विकास हुआ उसने एक शक्तिशाली नौसेना भी संगठित की।

    फारसी सम्राट योग्य प्रशासक थे। उन्होंने अपने साम्राज्य को प्रांतों में विभाजित किया, जिनका प्रशासन शत्रप (क्षत्रप) करते थे। फारसी अच्छे सैनिक थे और उनके पास मजबूत घुड़सवार सेना तथा नौसेना थी। उनके पास लोहे के हथियार थे। हालांकि सिकन्दर महान ने उन्हें परास्त कर दिया (331 ईसा पूर्व), लेकिन फारसियों का खात्मा नहीं हुआ। पार्थियाई और सासानी सम्राटों के तहत उनकी सभ्यता तथा संस्कृति फलती-फूलती रही। लेकिन अंततः सातवीं सदी ईस्वी में अरबों ने उन्हें जीत लिया।

    हिन्द-आर्यो की तरह फारसी पहले प्रकृति की शक्तियों की पूजा करते थे । वे सूर्य देवता, आकाश देवता और कुछ अन्य देवताओं को मानते थे । वे आग को पवित्रता का प्रतीक मानते थे। वे आग से जुड़े कर्मकांड करतें और पशुओं की बलि दिया करते थे। बाद में एक धार्मिक उपदेशक जरूथ्रुष्थ ने उन्हें सिखाया कि ‘तमाम देवताओं से ऊपर अहुरमज्द है वह स्वर्ग और प्रकाश का मालिक है जो लोगों को ताकत और ऊर्जा देता है।’ जरूथ्रुष्य के मुताबिक जीवन अच्छाई (प्रकाश) और बुराई (अंधकार) के बीच एक सतत संघर्ष है। पारसियों का पवित्र ग्रंथ गेंद-अवेस्ता कहलाता है।

    भारत : वैदिक काल

    प्राचीन भारतीय इतिहास में एक नए चरण की शुरूआत वैदिक युग से होती है। जिसका आरंभ करीब 1500 ईसापूर्व भारत में आर्यों के आगमन से हुआ। यह युग लगभग एक हजार वर्षों का था, जिस दौरान कई आर्थिक, सामाजिक, और धार्मिक परिवर्तन हुए। इसलिए वैदिक युग को बराबर अवधि के दो कालों में विभाजित किया जाता है : पूर्व वैदिक और उत्तर वैदिक।

    पूर्व वैदिक काल की जानकारी मुख्यतः ऋग्वेद से मिलती है, जो कि प्रथम वेद है। इस काल के लिए, जब वैदिक कबीले पंजाब व अफगानिस्तान सहित भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिमी भाग में रहते थे, हमारे पास कोई खास पुरातात्विक प्रमाण नहीं हैं । यह शायद इसलिए है कि पूर्व वैदिक लोग प्रायः घुमन्तू जीवन व्यतीत करते थे, और किसी एक जगह पर लंबे समय के लिए नहीं टिकते थे। उनकी अर्थव्यवस्था मुख्यतः पशुपालन पर आधरित थी। मवेशी पालन आजीविका का मुख्य साधन था, किन्तु धोड़ों, बकरियों और भेड़ों का भी महत्व था। थोड़ी बहुत खेती भी की जाती थी। समाज की इकाइयाँ थीं परिवार, कुल और कबीला (जन)। जाति-प्रथा नहीं थी। कबीले का मुखिया राजा कहलाता था, और देवी-देवताओं की पूजा की जाती थी, जिनमें इन्द्र सबसे प्रमुख था।

    उत्तर वैदिक काल के बारे में हम काफी अधिक विस्तार से जानते हैं, जिसके लिए हमारे स्त्रोत हैं विशाल उत्तर वैदिक साहित्य और प्रचुर पुरातात्विक सामग्री । उत्तर वैदिक साहित्य में शामिल हैं बाकी के तीनों वेद – सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद – चारों वेदों के ऊपर रचे गए ग्रंथ, यानी कि ब्राह्मण, आरण्यक, और उपनिषद । इस काल की ढेर सारे जगहों की भी खुदाई हुई है। हर जगह एक खास किस्म के मृद्भाण्ड मिले हैं, जिन्हें चित्रित धूसर भृदभाण्ड (अंग्रेजी में Painted Grey ware) कहते हैं । इसलिए इन स्थलों को चि. धू.मृ. यानी PGW स्थल भी कहते हैं।

    उत्तर वैदिक काल के दौरान आर्य समुदाय बड़े पैमाने पर पूरब की और प्रस्थान कर सिन्धु-गंगा दोआव और ऊपरी गंगा मैदान में बस गए थे। इस काल के अंत में पूर्व दिशा में और आगे तीन राज्यों की स्थापना की गई : काशी, कोसल और विदेह । खेती-बाड़ी अब प्रधान कार्य था। कई फसलें, यथा गेहूं, चावल, और ईख, उगाई जा रही थीं । शिल्पों की संख्या भी बढ़ गई थी और लोहे के हथियार और औजार इस्तेमाल होने लगे थे। लोग अब गाँवों में स्थिर जीवन व्यतीत कर रहे थे। जाति-प्रथा उभर कर चार वर्णों का रूप लेने लगी थी : ब्राह्मण, क्षत्रीय, वैश्य, व शूद्र। राज और उसके आदमियों की शक्ति बढ़ रही थी, और इसी अनुपात में सभाओं का महत्व घट रहा था। यज्ञ अब बड़े विस्तृत हो चले थे, इन्द्र देवता का महत्व कम हो गया था, और नए देवता, जैसे कि प्रजापति, अब मुख्य हो गए थे। इस काल के अंत में यज्ञों के कर्म-काण्ड के विरुद्ध एक प्रतिक्रिया भी देखी जा सकती है, खासकर उपनिषदों में।

    वैदिकोत्तार युग

    छठी सदी ईसा पूर्व में उत्तर और पूर्व भारत में बड़े – राज्य उभरे, जिन्हें महाजनपद कहते थे। इस तरह के 16 राज्य थे – अंग, मगध, वज्जी, काशी, कोसल, मल्ल, कुरू, पंचाल, वत्स, अवंती, कंबोज, गंधार, अस्मक, चेदी, मत्स्य और शूरसेन । उनमें से मगध, कोसल और अवंती सर्वाधिक शक्तिशाली थे। कृषि के विस्तार, शहरीकरण की शुरूआत, व्यापार और उद्योग के विकास और क्षेत्रीय राज्यों के उद्भव से समाज में नई शक्तियों को जन्म दिया। इस तरह छठी शताब्दी ईसापूव सामाजिक-धार्मिक रूपांतरण का भी एक दौर था । लोगों ने कर्मकांडी ब्राह्मणवाद और वैदिक बलि प्रथा के खिलाफ अपना अंसतोष व्यक्त किया। अनेक पंथ उभर कर आए। इनमें जैन और बौद्ध प्रमुख हैं।

    बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व में भारत-नेपाल सीमा पर स्थित लुंबिनी में हुआ। वह कपिलवस्तु के शाक्य-क्षेत्रीय राजा सुद्धोधन के बेटे थे। उन्तीस वर्ष में गौतम ने घर छोड़ दिया और बोधगया में पीपल के पेड़ के नीचे बोधि (ज्ञान) प्राप्त की। उन्होंने अपना पहला उपदेश (धर्मचक्र प्रवर्तन) वाराणसी के निकट सारनाथ में दिया। उनकी शिक्षाओं में चार आर्य सत्य और अष्टांगिक मार्ग शामिल हैं। बुद्ध के अनुसार (1) दुनिया दुख से भरी है; (2) तृष्णा दुख का कारण है; (3) तृष्णा पर जीत हासिल करने से दुख खत्म किया जा सकता है; (4) यह अष्टांगिक मार्ग पर चलकर प्राप्त किया जा सकता है जिनमें (क) सच्ची दृष्टि (ख) सही उद्देश्य (ग) सतवचन (घ) सद्कर्म (च) सच्ची आजीविका (छ) सद्प्रयास (ज) सद्स्मृति और (झ) सद्मनन। उन्होंने भोग-विलास और कंजूसी दोनों चरम बिंदुओं से हटकर ‘मध्य मार्ग’ पर चलने की शिक्षा दीं उन्होंने अपने अनुयायियों लिए एक आचार संहिता (चोरी नहीं करना, हत्या नहीं करना इत्यादि) भी सूत्रबद्ध किया। 80 साल की उम्र में (483 ईसा पूर्व) उत्तर प्रदेश कुशीनगर में उनको निर्माण प्राप्त हुआ।

    ऋषभनाथ जैन धर्म के संस्थापक के रूप में जाने जाते हैं। वर्द्धमान महावीर इस पंथ के 24वें और पार्श्वनाथ 23वें तीर्थकर थे। महावीर का जन्म वैशाली (बिहार) के निकट कुंडा ग्राम में 540 ईसा पूर्व में हुआ। इनके पिता ज्ञानिक क्षत्रिय कुल के प्रमुख थे । महावीर 30 साल की उम्र में संन्यासी हो गए उन्होंने 42 साल की ही उम्र मे कैवल्य प्राप्त किया। उन्होंने 30 साल तक उपदेश दिए और 468 ईसा पूर्व में राजगीर के निकट पावापूर (बिहार) में उनको निर्वाण प्राप्त हो गया। उनके अनुयायी जैन कहलाते हैं।

    जैन धर्म में सर्वशक्तिमान ईश्वर का स्थान नहीं हैं यह देवी-देवताओं को महत्व देता है, लेकिन उन्हें जैन शिक्षकों से नीचे का स्थान देता है। जैन मत का मुख्य उद्देश्य पार्थिव बंधनों से मुक्ति पाना है। बौद्ध धर्म की तरह यह कर्मकांड और वैदिक ब्राह्मणवाद का विरोध करता है। यह जाति व्यवस्था का भी विरोध करता है और कर्म के सिद्धांत तथा पुनर्जन्म को स्वीकार करता है। इसके पांच प्रमुख सिद्धांत हैं। (1) अहिंसा, (2) सच्चाई, (3) चोरी नहीं करना, (4) जुडाव नहीं रखना, और (5) ब्रह्मचर्य। जैनधर्म के त्रिरत्न में (क) सम्यक्द र्शन; (ख) सम्यक् ज्ञान और (ग) सम्यक् चरित्र शामिल हैं।

    मौर्य काल

    बिंबिसार, अजातशत्रु और महापद्मानंद जैसे ताकतवर शासकों के अंतर्गत मगध साम्राज्य का बहुत विस्तार हुआ। नंद वंश के अंतिम राजा को चंद्रगुप्त मौर्य ने 322 ईसा पूर्व में परास्त कर दिया। चंद्रगुप्त ने पंजाब से यूनानियों को और गंगा के मैदानी इलाकों से नंदों को भगा कर मौर्य साम्राज्य की स्थापना की। विजय और विलय की एक सतत प्रक्रिया से वह लगभग संपूर्ण भारत को एकताबद्ध करने में कामयाब रहा। चंद्रगुप्त ने 322 ईसा पूर्व से 297 ईसा पूर्व तक राज किया भद्रबाहु से प्रभावित होकर उसने जैन धर्म स्वीकार कर लिया। उसका निधन मैसूर के निकट श्रवणबेलगोला में हुआ।

    चंद्रगुप्त को प्रसिद्ध दार्शनिक और अध्यापक (आचार्य) चाणक्य ने प्रशिक्षण दिया था, जिन्हें कौटिल्य के नाम से भी जाना जाता है कौटिल्य ने विद्वत्तापूर्ण ग्रंथ अर्थशास्त्र की रचना की जो राजनीति अर्थशास्त्र के क्षेत्र में कालजयी कृति माना जाता है। चाणक्य की कूटनीति के कारण ही चंद्रगुप्त सफल शासक बना।

    चंद्रगुप्त का बेटा और उत्तराधिकारी बिंदुसार (297 ईसा पूर्व – 272 ईसा पूर्व) अमित्रघाट (शत्रुहंता) के नाम से भी जाना जाता है। कहते हैं कि उसने दक्कन जीत कर मौर्य साम्राज्य को मैसूर तक पहुंचा दिया। पश्चिम एशिया के यूनानी शासक एंटियोकस प्रथम के साथ उसके संपर्क थे। बौद्ध साहित्य से ऐसा प्रतीत होता है कि बिंबिसार की मौत के बाद उसके बेटों के बीच सत्ता संघर्ष हुआ।

    उत्तराधिकार के इस युद्ध में अशोक (272 ईसा पूर्व – 236 ईसा पूर्व) विजयी होकर मगध के सिंहासन पर आसीन हुआ। उसके शासनकाल में एक महत्वपूर्ण घटना 260 ईसा पूर्व में हुआ कलिंग युद्ध है। पत्थरों पर खुदवाए अशोक के 13वें आदेश में इसका ज़िक्र है। बाद में अशोक ने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया और युद्ध का परित्याग कर दिया। वह एक परोपकारी राजा था और उसने अपनी प्रजा की भलाई के लिए ढेर सारे काम किए। ‘धम्म’ की उसकी नीति धार्मिक सहिष्णुता, बड़ों की इज्जत, बूढ़ों की देखभाल, दया, सत्य और शुद्धता पर आधारित थी। उसके प्रयासों से बौद्ध धर्म भारत की सरहदों के पर भी फैला। चट्टानों और स्तंभों पर उकेरे उसके आदेशों से उसके शासन का विस्तृत व्यौरा मिलता है।

    अशोक की मौत के बाद उसके साम्राज्य के टुकड़े-टुकड़े हो गए। उस समय विदेशी हमले का भी डर था। देश की आर्थिक स्थिति खराब हो गई थी। मौर्य वंश का अंतिम राजा वश्हरथ कमजोर शासक था। उसके महत्वाकांक्षी जनरल पुष्यमित्र शुंग ने 184 ईसा पूर्व में उसकी हत्या कर डाली । मौर्य शासन के बाद पूर्व भारत में शुंग और दक्कन में सातवाहन शासन हुआ।

    संगम युग (300 ई.पू. 200 इस्वीं)

    संगम युग से दक्षिण भारत में एक ऐतिहासिक दौर की शुरूआत हुई संगम का अर्थ था विद्वानों या साहित्यकारों का जमा होना। मदुरै के पांड्य राजाओं के शाही संरक्षण में साहित्यिक हस्तियों का जमावड़ा हुआ। जो ‘संगम’ के नाम से जाना गया। प्राचीन तमिल साहित्य में तोलकपिप्पयम, ‘आठ संग्रह’ (एटूटोगाई), ‘दस काव्य’ (पट्टपट्टू), ‘अठारह लघु ग्रंथ’ और तीन महाकाव्य (सिलप्पादिकरम, मणिमेकालाई, और सिवागा सिंदामणि) जैसे प्रारंभिक ग्रंथ शामिल हैं। मोटे तौर पर संगम युग 300 ईस्वी तक फैला है। संगम साहित्य में प्राथमिक रूप से पांड्य राजाओं की चर्चा है। लेकिन उसमें चोल और चेर शासन की भी महत्वपूर्ण सूचनाएं मिलती हैं। पांड्य राजाओं ने दक्षिण तमिलनाडु पर आधारित इलाके पर शासन किया। मदुरै उनकी राजधानी थी। चेर ने केरल पर और चोल ने उत्तरी तमिलनाडु तथा दक्षिणी आंध्र प्रदेश पर राज किया।

    कुषाण युग

    मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद यूनानियों, शकों, पार्थ (पार्थियनो) और कुषाणों ने भारत पर हमले भारत के पश्चिमी और उत्तर-पश्चिमी भागों पर शासन किया। कुषाण मध्य एशिया के युए-कबीला की एक शाखा थे। कुषाण का पहला शासक कुजुला कदफिसीज था। उसके बाद विमा कदफिसीज आया विमा के बाद कनिष्क राजा बना।

    कुषाण वंश का महानतम राजा कनिष्क था। उसने कश्मीर को जीत लिया और गंगा के मैदानी इलाकों पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया। उसके कब्जे में मध्य एशिया के काशगढ़ यारखंद और खोतोन थे। पंजाब और अफगानिस्तान भी उसके साम्राज्य में शामिल था। कनिष्क एक पक्का बौद्ध था। उसके प्रयासों से बौद्ध धर्म चीन, मध्य एशिया और अन्य देशों में फैला। वह कला और शिक्षा का महान संरक्षक था। पुरूषपुर या पेशावर उसकी राजधानी थी। कनिष्क के उत्तराधिकारी वषिष्क, हुविष्क, कनिष्क द्वितीय और वासुदेव हुए। वासुदेव कुषाण वंश का अंतिम महान राजा था। उसके मरते ही कुषाण साम्राज्य के पतन से उत्तर भारत में राजनीतिक अनिश्चितता का दौर शुरू हुआ जो करीब एक सौ साल तक चला।

    गुप्त काल (319 ईस्वी 550 ईस्वी)

    चौथी शताब्दी में गुप्त वंश का उदय भारतीय इतिहास में एक नए युग की शुरूआत को रेखांकित करता है। श्रम और राजनीतिक फूट की जगह एकता ने ले ली। शक्तिशाली गुप्त राजाओं के नेतृत्व और संरक्षण में भारतीय जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय विकास हुआ। चीनी यात्री फाहियान (चौथी-पांचवी सदी ईस्वी) के अनुसार उस काल में खूब खुशहाली थी।

    महाराजा श्री गुप्त को गुप्त वंश का संस्थापक बताया जाता है। उसके बाद धटोत्कच गुप्त आया। लेकिन यह चंद्रगुप्त (319 से 355 ईस्वी) था, जिसने महाराजाधिराज की पदवी अपनाई वह पहला प्रसिद्ध गुप्त राजा था। समुद्रगुप्त अन्य प्रमुख गुप्त सम्राट था। उसका बेटा और उत्तराधिकारी – समुद्रगुप्त (335-380) बड़ा पराक्रमी था। इलाहाबाद स्तंभ में समुद्रगुप्त की प्रशंसा में दर्ज उसके दरबारी कवि हरिसेन के प्रशस्ति गीत में उसके विजय अभियानों का जीवंत चित्रण है। एक महान विजेता और शासक होने के साथ ही समुद्रगुप्त एक विद्वान, उच्च स्तर का कवि, कला और विद्या का संरक्षक तथा संगीतज्ञ था। उसने अश्वमेघ यज्ञ करवाया।

    समुद्रगुप्त के बाद चंद्रगुप्त द्वितीय (380-415 ई0) उसका उत्तराधिकारी बना। उसने पश्चिम भारत के शक राजाओं पर जीत हासिल करने के बाद विक्रमादित्य की उपाधि अपनाई। उसने महत्वपूर्ण वैवाहिक संबंध भी स्थापित किए। उसकी बेटी प्रभावती का विवाह वाटक के शासक रुद्रसेन द्वितीय के साथ हुआ था। उसका उत्तराधिकारी उसका बेटा कुमारगुप्त प्रथम (415 455 ई०) बना। उसके शासन काल में शांति और खुशहाली थी। उसका उत्तराधिकारी उसका बेटा स्कंदगुप्त (455 – 1467 ई) बना। उसने कई बार हूण आक्रमण विफल किए। स्कंदगुप्त के उत्तराधिकारी (पुरुगुप्त, बुद्धगुप्त, नारायणगुप्त) उतने शक्तिशाली और योग्य नहीं थे। इससे धीरे-धीरे गुप्त साम्राज्य का पतन हो गया।

    गुप्त काल के दौरान राजतन्त्र प्रशासन की प्रमुख प्रणाली थी। राजा के दैनंदिन प्रशासन में मदद के लिए एक मंत्रिपरिषद के साथ अन्य अधिकारी भी शामिल होते थे। गुप्तों के पास शक्तिशाली सेना थी। प्रांतों का प्रशासन गवर्नर करते थे। उनके मातहत अनेक अधिकारी होते थे, जो जिला और नगरों का प्रशासन संभालते थे। ग्राम प्रमुख (ग्रामिक) के नेतृत्व में ग्राम प्रशासन को उल्लेखनीय स्वायत्ता हासिल थी। गुप्त राजाओं ने न्यायिक और राजस्व प्रशासन की एक प्रभावी प्रणाली भी विकसित की थी।

    गुप्तोत्तार काल

    गुप्त साम्राज्य के पतन और थानेश्वर के महाराजा हर्षवर्द्धन के उदय के बीच के काल को भ्रम और विखंडन का दौर माना जाता है। इस समय भारत अनेक छोटे स्वतंत्र राज्यों में विखंडित हो गया था। हूण राज्य के अतिरिक्त उत्तर भारत में चार अन्य राज्य थे। ये मगध के उत्तर गुप्त, कन्नौज के मौखरी, थानेश्वर के पुष्यभूती और वलभी (गुजरात) के मैत्रक थे। महत्वपूर्ण दक्षिण भारतीय वंशों में बादामी के चालुक्य और कांची के पल्लव थे। पुलकेशिन द्वितीय (609-642 ई0) उत्तर भारत का सर्वाधिक शक्तिशाली राजा था। हर्षवर्द्धन ने फिर का प्रयास किया। वह सकलोचर पथनाथ कहलाता था, क्योंकि उसने व्यवहारत समूचे उत्तर भारत साम्राज्य स्थापित करने पर अपना राज स्थापित कर रखा था। इस काल में भारत की राजनीतिक एकता कुछ हद तक बहाल हुई। हर्ष ने कादंबरी और हर्ष चरित के लेखक बाण भट्ट को संरक्षण दिया। चीनी विद्वान-यात्री हूवेन सांग ने उसके शासन काल में भारत की यात्रा की थी। बंगाल का राजा शशांक हर्ष का समकालीन था ।

    इतिहास के इस काल में ब्राह्मणवादी हिन्दू धर्म ने दृढ़ता पाई। ह्वेन सांग ने भारतीय समाज में जाति-व्यवस्था की मौजूदगी के बारे में लिखा है। उस समय अनेक मिश्रित और उप-जातियों का उदय हुआ। हूवेन सांग ने अछूतों और जाति से निष्कासित लोगों की भी चर्चा करता है। इस काल में समाज में महिलाओं की हैसियत और रुतबे में भी खासी गिरावट आईं धार्मिक क्षेत्र में ब्राह्मणवाद के उभार से बौद्ध धर्म का पतन हो गया । वैष्णव, शैव और जैन मत भी प्रचलन में थे।

    भारतीय सभ्यता : एक नज़र में

    विश्व इतिहास मे भारतीय सभ्यता की एक महत्वपूर्ण जगह है। प्रारंभिक यूनान और रोम की तरह भारत में भी लोकतांत्रिक और गणराज्य शासन प्रणाली रही है । हमने दर्शन और विज्ञान की विभिन्न शाखाओं में जबर्दस्त प्रगति की थी। गणित, खगोल शास्त्र, रसायन शास्त्र, धातु कर्म और चिकित्सा में भारत का उल्लेखनीय योगदान है। आर्यभट और वराहमिहिर प्रसिद्ध गणितज्ञ और खगोलशास्त्री थे। चरक और सुश्रुत महान चिकित्सक थे। नागार्जुन प्रसिद्ध थे। (शून्य और दशमलव पद्धति की संकल्पनाएँ पहले भारत में विकसित हुईं।)

    प्राचीन भारतीयों ने कला, वास्तुकला, चित्रकला और मूर्तिकला में ज़बरदस्त महारत दिखाई। अशोक के लाट, अजंता और एलोरा की गुफाएं, दक्षिण भारतीय मंदिर वास्तुकला, सांची के स्तूप, मथुरा के बुद्ध के भारतीय कला के अथाह समुद्र के महल कुछ उदाहरण हैं। प्राचीन भारत में नालंदा, तक्षशिला, क्रमशिला, बलभी, काशी और कांची जैसे ज्ञान के केन्द्र थे, जहां भारतीय और विदेशी छात्रों को शिक्षा जाती थी। प्रसिद्ध विद्वान और शिक्षक वहां पढ़ाते थे। भारतीय ज्ञान और विद्वता की बाहर काफी सराहना की गई, खासकर अरब मुसलमानों द्वारा।

    प्राचीन भारत में साहितय की अनेक महान कृतियाँ सृजित की गईं। ऋग्वेद हिन्द-यूरोपीय साहित्य की प्राचीनतम बानगी है। वेद, सूत्र, महाकाव्य, स्मृति, त्रिपटिका, जैन आगम और अन्य धार्मिक ग्रंथ प्राचीन भारत में सूजित हुए। उसके अलावा अनेक नाटक, काव्य और गद्य कृतियां हैं। कालिदास, बाणभट्ट, सेन, विशाखदत्त, भाण और शुद्रक जैसी महान साहित्यक हस्तियां इसी काल की हैं। संस्कृत, पाली प्राकृत साहित्य ने प्राचीन भारत में जबरदस्त प्रगति की।

    आपने क्या सीखा

    • मानव सभ्यता विभिन्न चरणों से गुजर कर विकसित हुई है – हर चरण ने इस विकास में कुछ नया योगदान किया है।

    • मिस्र, मेसोपोटामिया, भारत और चीन के प्राचीन लोगों ने महान सभ्यताओं का निर्माण किया था और इसने मानव प्रगति में भारी योगदान किया।

    • लौह युग विभिन्न समयों पर विभिन्न देशों के सामाजिक और आर्थिक जीवन में आमूल परिवर्तन लेकर आया।

    • यूनानी, रोमन, फारसी, भारतीयों आदि ने कविता, दर्शन, कला, वास्तुशिल्प और मूर्तिकला आदि क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान किए।

    • अपने लम्बे दौर में भारतीय सभ्यता कई महत्वपूर्ण पड़ावों से गुजरीं इसका स्वरूप शुरू से अंत तक एक जैसा नहीं रहा।

    NIOS Class 10th सामाजिक विज्ञान (पुस्तक – 1) Notes in Hindi

    • Chapter – 1 प्राचीन विश्व
    • Chapter – 2 मध्यकालीन विश्व
    • Chapter – 3 आधुनिक विश्व – Ⅰ
    • Chapter – 4 आधुनिक विश्व – Ⅱ
    • Chapter – 5 भारत पर ब्रिटिश शासन का प्रभाव : आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृति (1757-1857)
    • Chapter – 6 औपनिवेशिक भारत में धार्मिक एवं सामाजिक जागृति
    • Chapter – 7 ब्रिटिश शासन के विरुद्ध लोकप्रिय जन प्रतिरोध
    • Chapter – 8 भारत का राष्ट्रीय आन्दोलन
    • Chapter – 9 भारत का भौतिक भूगोल
    • Chapter – 10 जलवायु
    • Chapter – 11 जैव विविधता
    • Chapter – 12 भारत में कृषि
    • Chapter – 13 यातायात तथा संचार के साधन
    • Chapter – 14 जनसंख्या हमारा प्रमुख संसाधन

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