NCERT Solutions for Class 9th Sanskrit Shemushi Chapter 9 सिकतासेतुः
Textbook | NCERT |
Class | 9th |
Subject | (संस्कृत) |
Chapter | 9th |
Chapter Name | सिकतासेतुः |
Category | Class 9th संस्कृत |
Medium | Sanskrit |
Source | Last Doubt |
NCERT Solutions for Class 9th Sanskrit Shemushi Chapter 9 सिकतासेतुः
? Chapter – 9 ?
✍ सिकतासेतुः ✍
? प्रश्न उत्तर ?
अभ्यासः
NCERT Solutions Class 9th Sanskrit (Chapter – 9) Question. 1 प्रश्न 1. अधोलिखिताना प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत (क) अनधीतः तपोदत्त के: गर्हितोऽभवत्? (ख) तपोदत्तः केन प्रकारेण विद्यामवाप्तुं प्रवृत्तोऽभवत्? (ग) तपोदत्तः पुरुषस्य कां चेष्टा दृष्ट्वा अहसत्? (घ) तपोमात्रेण विद्यां प्राप्तुं तस्य प्रयासः कीदृशः कथितः? (ङ) अन्ते तपोदत्तः विद्याग्रहणाय कुत्र गतः? |
NCERT Solutions Class 9th Sanskrit (Chapter – 9) Question. 2 प्रश्न 2. भिन्नवर्गीय पदं चिनुत – (क) निः श्वस्य, चिन्तय, विमृश्य, उपेत्य। (ख) विश्वसिमि, पश्यामि, करिष्यामि, अभिलषामि। (ग) तपोभिः दुर्बुद्धिः, सिकताभिः, कुटुम्बिभिः। |
NCERT Solutions Class 9th Sanskrit (Chapter – 9) Question. 3 प्रश्न 3. (क) रेखाङ्कितानि सर्वनामपदानि कस्मैं प्रयुक्तानि? (i) अल अलमल तव श्रमेण। (ii) न अह सोपानमागैरट्टमधिरोढुं विश्वसिमि। (iii) चिन्तितं भवता न वा? (iv) गुरुगृहं गत्वैव विद्याभ्यासो मया करणीयः। |
NCERT Solutions Class 9th Sanskrit (Chapter – 9) Question. 3 प्रश्न 3. (ख) अधोलिखितानि कथनानि कः कं प्रति कथयति?
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NCERT Solutions Class 9th Sanskrit (Chapter – 9) Question. 4 प्रश्न 4. स्थूलपदान्याधिकृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत – (क) तपादत्तः तपर्यया विद्यामवाप्तुं प्रवृत्तोऽसि। (ख) तपोदत्तः कुटुम्बिभिः मित्रै गर्हितः अभव्। (ग) पुरुषः नद्यां सिकताभिः सेतं निर्मातुं प्रयतते। (घ) तपोदत्तः अक्षरज्ञानं विनैव वैदुष्यमवाप्तुम् अभिलषति? (ङ) तपोदत्तः विद्याध्ययनाय गुरुकुलम् अगच्छत्। (च) गुरुगृहं गत्वैव विद्याभ्यास: करणीयः। |
NCERT Solutions Class 9th Sanskrit (Chapter – 9) Question. 5 प्रश्न 5. उदाहरणमनुसृत्य अधोलिखित विग्रहपदाना समस्तपदानि लिखत – विग्रहपदानि – समस्तपदानि |
NCERT Solutions Class 9th Sanskrit (Chapter – 9) Question. 6 प्रश्न 6. उदाहरणमनुसृत्य अधोलिखितानां समस्तपदानां विग्रह कुरुत – समस्तपदानि – विग्रह |
NCERT Solutions Class 9th Sanskrit (Chapter – 9) Question. 7 प्रश्न 7. उदारहणमनुसृत्य साकोष्ठकात् पदम् आदाय नूतन वाक्यद्वयं रचयत – (क) यथा-अलं चिन्तया। (‘अलम्’ योगे तृतीया)
?♂️उत्तर:
(ख) यथा- माम् अनु स गच्छति (‘अनु’ योगे द्वितीया)
?♂️उत्तर:
(ग) यथा- अक्षरज्ञानं विनैव वैदुष्यं प्राप्तुमभिलषसि। (“विना’ योगे द्वितीया)
?♂️उत्तर:
(घ) यथा- संध्यां यावत् गृहमुपैति (‘यावत्’ योग द्वितीया)
?♂️उत्तर:
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व्याकरणात्मकः बोधः 1. पदपरिचयः
2. प्रकृति प्रत्यय – विभाग:
3. सन्धिकार्यम्क्लेश्यमनोऽपि –
1. पूर्वरूपसन्धि – जब भी विसर्ग युक्त ‘अ’ कार के सामने ‘अ’ कार आता है तब विसर्ग को ‘ओ’ कार तथा परवर्ती ‘अ’ कार स्थान पर पूर्वरूप चिह ‘ऽ’ लिखा जाता है। जैसे कि ऊपर उदाहरणों में हुआ है। 2. रेफसन्धि – परन्तु जब ‘अ’ कार भिन्न विसर्ग युक्त स्वर के सामने कोई अन्य स्वर या व्यञ्जन आ जाता है तो विसर्ग को रेफ (र) हो जाता है। जैसे –
3. गुणसिन्ध – जब ‘अ’ कारे के सामन इकार (इई) आता है तो (अ + इ) को मिलाकर ‘ए’ कार कर दिया जाता है तथा अकार के सामने ‘उ’ कार (उ,ऊ) आने पर (अ + ३) दोनों के स्थान पर ‘अर’ आदेश कर दिया जाता है जैसे
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Class 9 Sanskrit Shemushi Chapter 9 सिकतासेतुः Summary Translation in Hindi
(ततः प्रविशति तपोदत्तः) सरलार्थ – (उसके बाद (नान्दी पाठ के उपरान्त) तपस्यारत तपोदत्त का प्रवेश होता है)तपोदत्त : अहमस्मि तपोदतः। बाल्ये पितृचरणैः क्लेश्यमानोऽपि विद्यां नाऽधीतवानस्मि। तस्मात् सर्वैः कुटुम्बिभिः मित्रः ज्ञातिजनैश्च गर्हितोऽभवम्। (ऊर्ध्व निःश्वस्य) हा विधे! किमिदम्मया कृतम्? कीदशी दुर्बुद्धिरासीत्तदा! एतदपि न चिन्तितं यत् सरलार्थ – तपोदत – मैं तपोदत्त हूँ। बचपन में (बाल्यकाल में) पूज्य पिताजी के द्वारा खूब कड़ा व्यवहार किये जाने पर भी मैंने विद्या अध्ययन नहीं किया। जिस कारण से मैं सभी परिवारिकजनों, मित्रों ती बन्धु – बान्धवों का निन्दा का पात्र बना। (ऊर्ध्व श्वासं (लम्बी श्वासं) लेते हुए) (शोकरहित) हे विधाता! यह मैंने क्या किया। उस ससमय कैसी दुर्बुद्धि (दूष्ट बुद्धि) थी मुझमें! मैंने यह भी नहीं सोचा कि – परिधानैरलङ्कारैर्भूषितोऽपि न शोभते। सन्दर्भ – पकृत श्लोक हमारी पाठ्य – पुस्तक ‘शेमुषी – प्रथमाभागः’ के सिकतासेतुः’ नामक पाठ के अवरित है। यह पाठ सोमदेवरचित “कथासरित्सार” नामक ग्रन्थ से संग्रहीत है। इसमें तपोदत्त नामक बालक के बाल्य – काल में विद्या ग्रहण न करके के कारण उत्पन्न शोक के बारे में बताया गया है। सरलार्थ – (महँगै व अच्छे) वस्त्रों से और आभूषणों से सज्जित व्यक्ति भी बिना विद्या के. मणि से रहित साँप को तरह, घर में हो या फिर सभा में शोभा नहीं पाता। किञ्चिद् विमृश्य सरलार्थ – (कुछ विचार कर) भवतु, किमेतेन? दिवसे मार्गभ्रान्तः सन्ध्यां यावद् सरलार्थ – ठीक है, पर ऐसा सोचने से क्या होगा? दिन में मार्ग (रास्ता) भटका हुआ मनुष्य यदि शाम को घर आ जाता है तो भी अच्छा है। वह भटका (भूला) नहीं कहलाता। अब . मैं तपस्या से विद्या प्राप्ति में उद्यत होऊँगा। जलोच्छनध्वनिः श्रूयते सरलार्थ – (पानी के उछलने की छल – छल ध्वनि सुनाई देती है।) अये कुतोऽयं कल्लोलोच्छलध्वनिः? सरलार्थ – अरे यह लहरों के उछलने की ध्वनि कहां से आ रही है? कोई बड़ीमछली या घडियाल होगा। मैं देखता हूँ। (पुरुषमे िसिकताभिः सेतुनिर्माण – सरलार्थ – (एक मनुष्य को बालु रैत) से पुल बनाने का प्रयत्न करते हुए देखकर (हास सहित) हन्त् नास्त्यभावो जगति मूर्खाणाम्! सरलार्थ – खेद है संसार में मुखों की कोई कमी नहीं। अत्यधिक तेज प्रवाह वाली नदी में यह मूर्ख बालुका से पुल बनाने का प्रयत्न कर रहा है। (साट्टहास पार्श्वमुपेत्य) सरलार्थ – (ठहाके लगाकर हँसला हुआ उसके पास आकर) भो महाशय! किमिदं विधीयते! सरलार्थ – हे महानुभाव! आप यह क्या कर रहे हैं? रोको अपने परिश्रम का अर्थात् व्यर्थ परिश्रम ना करो। देखो रामो बबन्ध यं सेतुं शिलभिर्मकरालये। सरलार्थ – राम ने भी समुद्र में शिलाओं के द्वारा पुल बांध (बनाया) था। ऐसा ही पुल बालुका (रेत) से.बनाते हुए तुमने तो श्री राम को पीछे छोड़ दिया अर्थात् तुम तो भगवान से भी बढ़कर हो। चिन्तय तावत्। सिकताभिः सरलार्थ – सोचो तो, कहीं बालु से भी पुल बनाया जा सकता है? पुरुष: – भोस्तपस्विन्! कथं मामुपरुणत्सि। प्रयलेन कि न सिद्धं भवति? कावश्यकता शिलानाम्? सिकताभिरेव पुरुषः – हे! तपस्वी! क्यों मुझे रोकते हो। पश्रिम से (कोशिश से) क्या सिद्ध नहीं होता? क्या आवश्यकता है शिलाओं की? मैं अपने दृढ संकल्प (मजबूत इरादा) से बालुका से पुल बनाऊँगा। तपोदत्त – (व्यंग्य सहित) शाबाश! शाबाश! हनुमान से भी ऊपर हो! सरलार्थ – यदि बिना लिपि (लिखाई) के ज्ञान और अक्षर – ज्ञान के, केवल तपस्या से ही तुन विद्या आ सकती है (प्राप्त हो सकती है) तो मेरा यहबालु का पुल क्यों नहीं बन सकता? अये! मामेमोदिश्य भद्रपुरुषोऽयम् अधिक्षिपति1 सरलार्थ – अरे! यह सज्जन तो तुझे ही लक्ष्य करके व्यंग्य कस रहा है। (निन्दित कर रहा है) सचमुच इसमें सच्चाई तो है। मैं बिना अक्षर ज्ञान के ही विद्वत्ता प्राप्त करना चाह रहा था। तो, यह विद्या की देवी भगवती शारदा की अवमानना (तिरस्कार) है। मुझे गुरुकुल (विद्यालय) म जाकर ही विद्या का अभ्यास करना चाहिए। परिश्रम से ही लक्ष्य प्राप्ति होती है। (प्रकाशम्) भो नरोत्तम! नाऽहं जाने यत् कोऽस्ति भवान्। परन्तु सरलार्थ – हे नरश्रेष्ठ! मैं नहीं जानता कि आप कौन हैं? परन्तु आपने मेरी आँखे खोल दी। केवल तपस्या के बल से ही विद्या प्राप्ति की प्रयत्न करता हुआ मैं बालु से ही पुल बनाने का प्रयास कर रहा था। तो अब मैं विद्या अध्ययन के लिए गुरुकुल में जाता हूँ। |
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