NCERT Solutions for Class 9th Sanskrit Shemushi Chapter – 10 जटायोः शौर्यम्
Textbook | NCERT |
Class | 9th |
Subject | (संस्कृत) |
Chapter | 10th |
Chapter Name | जटायोः शौर्यम् |
Category | Class 9th संस्कृत |
Medium | Sanskrit |
Source | Last Doubt |
NCERT Solutions for Class 9th Sanskrit Shemushi Chapter – 10 जटायोः शौर्यम्
?Chapter – 10?
✍ जटायोः शौर्यम्✍
?प्रश्न उत्तर?
अभ्यासः
NCERT Solutions Class 9th Sanskrit (Chapter – 10) Question. 1 प्रश्न 1. अधोलिखतानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत – (क) “जटायो! पश्य” इति का वदति? (ख) जटायुः रावणं कि कथयति? (ग) क्रोधवशात् रावणः किं कर्तुम् उद्यमः अभवत्? (घ) पतगेश्वरः रावणस्य कीदृशं चापं सशरं बभञ्ज? (ङ) हताश्वो हतसारथिः रावणः कुत्र अपत्त? |
NCERT Solutions Class 9th Sanskrit (Chapter – 10) Question. 2 प्रश्न 2. उदाहरणमनुसृत्य णिनि-प्रत्ययप्रयोगं कृत्वा पदानि रचयत (क) कवच + णिनि = ………… |
NCERT Solutions Class 9th Sanskrit (Chapter – 10) Question. 3 प्रश्न 3.रावणस्य जटायोश्च विशेषणानि सम्मिलितरूपेण लिखितानि तानि पृथक्-पृथक् कृत्वा लिखत- |
NCERT Solutions Class 9th Sanskrit (Chapter – 10) Question. 4 प्रश्न 4. सन्धिं/सन्धिविच्छेदं वा कुरुत – (क) हत + अश्व : = …………. |
NCERT Solutions Class 9th Sanskrit (Chapter – 10) Question. 5 प्रश्न 5. ‘क’ स्तम्भे लिखितानां पदानां पर्यायाः ‘ख’ स्तम्भे लिखिताः। तान् यथासमक्षं योजयत – क’ स्तम्भः – ‘ख’ स्तम्भः |
NCERT Solutions Class 9th Sanskrit (Chapter – 10) Question. 1 प्रश्न 6. अधोलिखितानां पदानां/विलोमपदानि मञ्जूषायां दत्तेषु पदेषु चित्वा यथासमक्षं लिखत |
NCERT Solutions Class 9th Sanskrit (Chapter – 10) Question. 7 प्रश्न 7. (क) अधोलिखितानि विशेषणपदानि प्रयुज्य संस्कृतवाक्यानि रचयत –
?♂️उत्तर:
(ख) उदाहरणमनसत्य समस्तं पदं रचयत –
?♂️उत्तर:
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व्याकरणात्मकः बोधः
1. (क) जटायो: – जटायु’ शब्द, सम्बोधन. एकवचनः हे जटायु! युवा – युवन् शब्द, प्रथमा विभक्ति, एकवचन। जवान। (ख) ददर्श – दृश धातु, लिट्लकार, प्रथम पुरुष्क्षद् एकवचन। देखा। |
2. संधि कार्यम् – (दीर्घ संधिः) – जब भी ‘अ’ कार ‘इ’ कार तथा ‘उ’ कार व ‘ऋ’ कार अर्थात् अ, (आ) इ (ई) उ (ऊ) ऋ (क) के सामने तत् सदृश स्वर ही आता है तो इसे दीर्घ सन्धि कहा जाता है। जैसे – |
3. समास (द्विगु समास) परिचयः जिस तत्पुरुष समास में पूर्वपद संख्यावाची हो और समस्त पद समाहार (समूह) का अर्थ देता हो, वहां द्विगु समास होता है। जैसे- • पञ्चानां वाटानां समाहारः – पञ्चवटी। • अष्टानां अध्यायानां समाहारः – अष्टाध्यायी। |
जटायोः शौर्यम्
वनस्पतिगतं गृधं ददर्शायतलोचना ॥1॥ सन्दर्भ – प्रकृत श्लोक हमारी संस्कृत की पाठ्य – पुस्कत “शेमुषी” प्रथमोभागः से अवरित है। यह पाठ चाल्मीकिप्रणीत “रामायणम्” से संग्रहीत किया गया है। जब रावणं पंचवटी वन में सीता का अपहराण कर ले जा रहा था और देवी सीता करुणाजनक विलाप कर रही थी, तब वन के राजा जटायु ने पहले तो उसे इस पामकर्म से विरत होने को कहा। जब वह नहीं माना तो उस पर आक्रमण करता है। इस तरह राजधर्म की रक्षा करते – करते अन्त में जटाय अपने प्राणों को न्यौछावर कर देता है। अन्वयः – तदा सा आयतलोचना करुणा वाच: विलपन्ती सुदुःखिता वनस्पपिगतं गृधं ददर्श। सरलार्थ – तब उस, बड़े – बड़े नयनों वाली, करुणामय वाणी से विलाप करती हुई अत्यन्त दुःखी (सीता) ने उस पंचक्टी की वनावली (वन समूह में) जटायु गिद्ध को देखा। जटायो पश्य मार्य हियमाणामनाथवत्। प्रसङ्ग – प्रकृत श्लोक हमारी संस्कृत की पाठ्य – पुस्कत “शेमुषी” प्रथमोभागः से अवरित है। यह पाठ चाल्मीकिप्रणीत “रामायणम्” से संग्रहीत किया गया है। जब रावणं पंचवटी वन में सीता का अपहराण कर ले जा रहा था और देवी सीता करुणाजनक विलाप कर रही थी, तब वन के राजा जटायु ने पहले तो उसे इस पामकर्म से विरत होने को कहा। जब वह नहीं माना तो उस पर आक्रमण करता है। इस तरह राजधर्म की रक्षा करते – करते अन्त में जटाय अपने प्राणों को न्यौछावर कर देता है। अन्वयः – आर्य जटायो अनेन राक्षसेन्द्रेण पापकर्मणा अनाथवत् हियमाणं कुरुणं माम् पश्य। सरलार्थ – हे पूज्य जटायु! इस राक्षसराज (रावण) के द्वारा पापकर्म से, एक अनाथ की भाँति अपहरण कर ले जाई जाती हुई. शोकग्रस्त मुझे देखो (मुझ सीता को देखो।) तं शब्दमपसुप्तस्तु जटायुरथ शुश्रुवे। प्रसंग – प्रकृत श्लोक हमारी संस्कृत की पाठ्य – पुस्कत “शेमुषी” प्रथमोभागः से अवरित है। यह पाठ चाल्मीकिप्रणीत “रामायणम्” से संग्रहीत किया गया है। जब रावणं पंचवटी वन में सीता का अपहराण कर ले जा रहा था और देवी सीता करुणाजनक विलाप कर रही थी, तब वन के राजा जटायु ने पहले तो उसे इस पामकर्म से विरत होने को कहा। जब वह नहीं माना तो उस पर आक्रमण करता है। इस तरह राजधर्म की रक्षा करते – करते अन्त में जटाय अपने प्राणों को न्यौछावर कर देता है। अन्वतः – अथ अवसुप्तः तु जटायुः तं शब्दं शुश्रुवे। सः च रावणं निरीक्ष्य क्षिप्र वैदेहीं ददर्श।। सरलार्थ – इसके बाद अल्प निद्रा में सोए हुए जटायु ने उस, सीता के करुण विलाप के शब्द को सुना। और जब उसने (पहले) रावण को देखा तथा शीघ्र ही वैदही (सीता) को देखा। ततः पर्वतशृङ्गाभस्तीक्ष्णतुण्डः खगोत्तमः। प्रसंङ्ग – प्रकृत श्लोक हमारी संस्कृत की पाठ्य – पुस्कत “शेमुषी” प्रथमोभागः से अवरित है। यह पाठ चाल्मीकिप्रणीत “रामायणम्” से संग्रहीत किया गया है। जब रावणं पंचवटी वन में सीता का अपहराण कर ले जा रहा था और देवी सीता करुणाजनक विलाप कर रही थी, तब वन के राजा जटायु ने पहले तो उसे इस पामकर्म से विरत होने को कहा। जब वह नहीं माना तो उस पर आक्रमण करता है। इस तरह राजधर्म की रक्षा करते – करते अन्त में जटाय अपने प्राणों को न्यौछावर कर देता है। अन्वयः – ततः पर्वतश्रृंगाभ: तीक्ष्णतुण्डः खगोत्तमः वनस्पतिगतः श्रीमान् शुभा गिर व्याजहार। सरलार्थ – उसके पश्चात् पर्वत के शिखर के समान तीक्षण (कठोर) चोंच वाले, पक्षियों में श्रेष्ठ, वनसमूह में रहने वाले, शोभासम्पन्न (जटायु) ने ये शुभ वचन कहे। |
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