NCERT Solutions Class 9th Social Science History Chapter – 1 फ्रांसीसी क्रांति (French Revolution) Question & Answer In Hindi

NCERT Solutions Class 9th Social Science History Chapter – 1 फ्रांसीसी क्रांति (French Revolution)

Text BookNCERT
Class  9th
Subject  Social Science (History)
Chapter1st
Chapter Nameफ्रांसीसी क्रांति (French Revolution)
CategoryClass 9th Social Science History
Medium Hindi
SourceLast Doubt
NCERT Solutions Class 9th Social Science History Chapter – 1 फ्रांसीसी क्रांति (French Revolution) Question & Answer In Hindi इस अध्याय में हम फ़्रांस में क्रांति की शुरुआत किन परिस्थितियों में हुई?, सामाजिक परिस्थितियाँ, आर्थिक परिस्थितियाँ, फ्रांसीसी जनसंख्या, दार्शनिकों का योगदान, राजनैतिक कारण, सम्राट लुई, फ्रांसीसी समाज के किन तबकों को क्रांति का फ़ायदा मिला ? कौन-से समूह सत्ता छोड़ने के लिए मजबूर हो गए? क्रांति के नतीजों से समाज के किन समूहों को निराशा हुई होगी?, उन्नीसवीं और बीसवीं सदी की दुनिया के लिए फ़्रांसीसी क्रांति कौन-सी विरासत छोड़ गई?, उन जनवादी अधिकारों की सूची बनाएँ जो आज हमें मिले हुए हैं और जिनका उद्गम फ़्रांसीसी क्रांति में है, क्या आप इस तर्क से सहमत हैं कि सार्वभौमिक अधिकारों के संदेश में नाना अंतर्विरोध थे?, नेपोलियन के उदय को कैसे समझा जा सकता है?

NCERT Solutions Class 9th Social Science History Chapter – 1 फ्रांसीसी क्रांति (French Revolution)

Chapter – 1

फ्रांसीसी क्रांति

प्रश्न – उत्तर

प्रश्न 1. फ़्रांस में क्रांति की शुरुआत किन परिस्थितियों में हुई?
उत्तर – निम्नलिखित परिस्थितियों के कारण फ्रांस में क्रांति की शुरुआत हुई –

सामाजिक परिस्थितियाँ – वहाँ पर सामंतवाद की प्रथा थी जो तीन वर्गों में विभाजित थी प्रथम वर्ग, द्वितीय वर्ग एवं तृतीय वर्ग। प्रथम एस्टेट में पादरी आते थे। दूसरे एस्टेट में कुलीन एवं तृतीय एस्टेट में व्यवसायी, व्यापारी, अदालती कर्मचारी, वकील, किसान, कारीगर, भूमिहीन मजदूर एवं नौकर आते थे। यह केवल तृतीय एस्टेट ही थी जो सभी कर देने को बाध्य थी। पादरी एवं कुलीन वर्ग के लोगों को सरकार को कर देने से छूट प्राप्त थी। सरकार को कर देने के साथ-साथ किसानों को चर्च को भी कर देना पड़ता था। यह एक अन्यायपूर्ण स्थिति थी जिसने तृतीय एस्टेट के सदस्यों में असंतोष की भावना को बढ़ावा दिया।

आर्थिक परिस्थितियाँ – सन् 1774 में बोरबन राजवंश का लुई सोलहवाँ फ्रांस के सिंहासन पर बैठा और उसने आस्ट्रिया की राजकुमारी मैरी एन्तोएनेत से शादी की। सत्तारूढ़ होने पर उसे शाही खजाना खाली मिला। सेना का रखरखाव, दरबार का खर्च, सरकारी कार्यालयों या विश्वविद्यालयों को चलाने जैसे अपने नियमित खर्च निपटाने के लिए सरकार कर बढ़ाने पर बाध्य हो गई। कर बढ़ाने के प्रस्ताव को पारित करने के लिए फ्रांस के सम्राट लुई सोलहवें ने 5 मई 1789 को एस्टेट के जनरल की सभा बुलाई। प्रत्येक एस्टेट को सभा में एक वोट डालने की अनुमति दी गई। तृतीय एस्टेट ने इस अन्यायपूर्ण प्रस्ताव का विरोध किया। उन्होंने सुझाव रखा कि प्रत्येक सदस्य का एक वोट होना चाहिए। सम्राट ने इस अपील को ठुकरा दिया तथा तृतीय एस्टेट के प्रतिनिधि सदस्य विरोधस्वरूप सभा से वाक आउट कर गए।

फ्रांसीसी जनसंख्या – में भारी बढ़ोतरी के कारण इस समय खाद्यान्न की माँग बहुत बढ़ गई थी। परिणामस्वरूप, पावरोटी (अधिकतर के भोजन का मुख्य भाग) के भाव बढ़ गए। बढ़ती कीमतों व अपर्याप्त मजदूरी के कारण अधिकतर जनसंख्या जीविका के आधारभूत साधन भी वहन नहीं कर सकती थी। इससे जीविका संकट उत्पन्न हो गया तथा अमीर और गरीब के मध्य दूरी बढ़ गई।

दार्शनिकों का योगदान – अठारहवीं सदी के दौरान मध्यम वर्ग शिक्षित एवं धनी बन कर उभरा। सामंतवादी समाज द्वारा प्रचारित विशेषाधिकार प्रणाली उनके हितों के विरुद्ध थी। शिक्षित होने के कारण इस वर्ग के सदस्यों की पहुँच फ्रांसीसी एवं अंग्रेज राजनैतिक एवं सामाजिक दार्शनिकों द्वारा सुझाए गए समानता एवं आजादी के विभिन्न विचारों तक थी। ये विचार सैलून एवं कॉफी-घरों में जनसाधारण के बीच चर्चा तथा वाद-विवाद के फलस्वरूप तथा पुस्तकों एवं अखबारों के द्वारा लोकप्रिय हो गए। दार्शनिकों के विचारों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। जॉन लॉक, जीन जैक्स रूसो एवं मांटेस्क्यू ने राजा के दैवीय सिद्धांत को नकार दिया।

राजनैतिक कारण – तृतीय एस्टेट के प्रतिनिधियों ने मिराब्यो एवं आबे सिए के नेतृत्व में स्वयं को राष्ट्रीय सभा घोषित कर दिया एवं शपथ ली कि जब तक वे सम्राट की शक्तियों को सीमित करने व अन्यायपूर्ण विशेषाधिकारों वाली सामंतवादी प्रथा को समाप्त करने वाला संविधान नहीं बनाएँगे तब तक सभा को भंग नहीं करेंगे। जिस समय राष्ट्रीय सभा संविधान का मसौदा बनाने में व्यस्त थी, उस दौरान सामंतों को विस्थापित करने के लिए बहुत से स्थानीय विद्रोह हुए। इसी बीच, खाद्य संकट गहरा गया तथा जनसाधारण का गुस्सा गलियों में फूट पड़ा। 14 जुलाई को सम्राट ने सैन्य टुकड़ियों को पेरिस में प्रवेश करने के आदेश दिये।इसके प्रत्युत्तर में सैकड़ों क्रुद्ध पुरुषों एवं महिलाओं ने स्वयं की सशस्त्र टुकड़ियाँ बना लीं। ऐसे ही लोगों की एक सेना बास्तील किले की जेल (सम्राट की निरंकुश शक्ति का प्रतीक) में जा घुसी और उसको नष्ट कर दिया। इस प्रकार फ्रांसीसी क्रांति का प्रारंभ हुआ।

सम्राट लुई – सोलहवें एवं उसकी रानी मेरी एन्तोएनेत ने अपने विलासितापूर्ण जीवन एवं खर्चीले तौर-तरीकों पर काफी धन बर्बाद किया। उच्च पद आमतौर पर बेचे जाते थे। पूरा प्रशासन भ्रष्ट था और प्रत्येक विभाग के अपने ही कानून थे। किसी एक समान प्रणाली के अभाव में चारों ओर भ्रम का वातावरण था। लोग प्रशासन की इस दूषित प्रणाली से तंग आ चुके थे तथा इसे बदलना चाहते थे।

प्रश्न 2. फ्रांसीसी समाज के किन तबकों को क्रांति का फ़ायदा मिला? कौन-से समूह सत्ता छोड़ने के लिए मजबूर हो गए? क्रांति के नतीजों से समाज के किन समूहों को निराशा हुई होगी?
उत्तर – तृतीय एस्टेट्स के धनी सदस्यों (मध्यम वर्ग) को फ्रांसीसी क्रांति से सर्वाधिक लाभ हुआ। इन समूहों में किसान, मजदूर, छोटे अधिकारीगण, वकील, अध्यापक, डॉक्टर एवं व्यवसायी शामिल थे। पहले इन्हें सभी कर अदा करने पड़ते थे व पादरियों एवं कुलीन लोगों द्वारा उन्हें हर कदम पर सदैव अपमानित किया जाता था किन्तु क्रांति के बाद उनके साथ समाज के उच्च वर्ग के समान व्यवहार किया जाने लगा। पादरियों एवं कुलीनों को शक्ति त्यागने पर बाध्य होना पड़ा तथा उनसे सभी विशेषाधिकार छीन लिए गए। समाज के अपेक्षाकृत निर्धन वर्गों तथा महिलाओं को क्रांति के परिणाम से निराशा हुई होगी क्योंकि क्रांति के बाद समानता की प्रतिज्ञा पूर्ण रूप से फलीभूत नहीं हुई।

प्रश्न 3. उन्नीसवीं और बीसवीं सदी की दुनिया के लिए फ़्रांसीसी क्रांति कौन-सी विरासत छोड़ गई?
उत्तर – फ्रांसीसी क्रांति से उन्नीसवीं व बीसवीं सदी के विश्व के लोगों को मिली विरासत –

(क) फ्रांसीसी क्रांति मानव इतिहास की महत्त्वपूर्ण घटनाओं में से एक है।

(ख) यह पहला ऐसा राष्ट्रीय आंदोलन था जिसने आजादी, समानता और भाईचारे जैसे विचारों को अपनाया। उन्नीसवीं व बीसवीं सदी के प्रत्येक देश के लोगों के लिए ये विचार आधारभूत सिद्धांत बन गए।

(ग) इसने यूरोप के लगभग सभी देशों एवं दक्षिण अमेरिका में प्रत्येक क्रांतिकारी आंदोलन को प्रेरित किया।

(घ) इसने यूरोप के विभिन्न स्थानों पर घटित सामाजिक एवं राजनैतिक बदलाव की शुरुआत की।

(ङ) इसने मनमाने तरीके से चल रहे शासन का अंत किया तथा यूरोप एवं विश्व के अन्य भागों में लोगों के गणतंत्र के विचार का विकास किया।

प्रश्न 4. उन जनवादी अधिकारों की सूची बनाएँ जो आज हमें मिले हुए हैं और जिनका उद्गम फ़्रांसीसी क्रांति में है।
उत्तर – वे लोकतांत्रिक अधिकार जिन्हें हम आज प्रयोग करते हैं तथा जिनका उद्गम फ्रांसीसी क्रांति से हुआ है, इस प्रकार हैं –

(क) विचार अभिव्यक्ति का अधिकार
(ख) समानता का अधिकार
(ग) स्वतंत्रता का अधिकार
(घ) एकत्र होने तथा संगठन बनाने का अधिकार
(ङ) सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक अधिकार
(च) धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार
(छ) शोषण के विरुद्ध अधिकार
(ज) संवैधानिक उपचारों का अधिकार

प्रश्न 5. क्या आप इस तर्क से सहमत हैं कि सार्वभौमिक अधिकारों के संदेश में नाना अंतर्विरोध थे?
उत्तर – पुरुषों एवं नागरिकों के अधिकारों की घोषणा इतने विशाल स्तर पर सार्वभौमिक अधिकारों का खाका तैयार करने का विश्व में शायद प्रथम प्रयास था। इसने स्वतंत्रता, समानता एवं भाईचारे के तीन मौलिक सिद्धांतों पर बल दिया। सभी लोकतांत्रिक देशों द्वारा ऐसे सिद्धांतों को अपनाया गया है। किन्तु यह सत्य है कि सार्वभौमिक अधिकारों का संदेश विरोधाभासों से घिरा था। पुरुष एवं नागरिक अधिकार घोषणापत्र में कई आदर्श संदिग्ध अर्थों से भरे पड़े थे।

(क) घोषणा में कहा गया था कि ”कानून सामान्य इच्छा की अभिव्यक्ति है। सभी नागरिकों को व्यक्तिगत रूप से या अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से इसके निर्माण में भाग लेने का अधिकार है। कानून के नजर में सभी नागरिक समान हैं।” किन्तु जब फ्रांस एक संवैधानिक राजशाही बना तो लगभग 30 लाख नागरिक जिनमें 25 वर्ष से कम आयु के पुरुष एवं महिलाएँ शामिल थे, उन्हें बिल्कुल वोट ही नहीं डालने दिया गया।

(ख) फ्रांस ने उपनिवेशों पर कब्जा करना व उनकी संख्या बढ़ाना जारी रखा।

(ग) फ्रांस में उन्नीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध तक दासप्रथा जारी रही।

प्रश्न 6. नेपोलियन के उदय को कैसे समझा जा सकता है?
उत्तर – सन् 1796 में निर्देशिका के पतन के तुरंत बाद नेपोलियन का उदय हुआ। निदेशकों का प्रायः विधान सभाओं से झगड़ा होता था जो कि बाद में उन्हें बर्खास्त करने का प्रयास करती। निर्देशिका राजनैतिक रूप से अत्यधिक अस्थिर थी; अतः नेपोलियन सैन्य तानाशाह के रूप में सत्तारूढ़ हुआ।सन् 1804 में नेपोलियन बोनापार्ट ने स्वयं को फ्रांस का सम्राट बना दिया।

वह पड़ोसी यूरोपीय देशों पर विजय करने निकल पड़ा, राजवंशों को हटाया और साम्राज्यों को जन्म दिया। जिसमें उसने अपने परिवार के सदस्यों को आरूढ़ किया। उसने निजी संपत्ति की सुरक्षा जैसे कई कानून बनाए और दशमलव प्रणाली पर आधारित नाप-तौल की एक समान पद्धति शुरू की।अंततः 1815 ई0 में वाटरलू में उसकी हार हुई।

NCERT Solution Class 9th इतिहास Question Answer in Hindi
Chapter – 1 फ्रांसीसी क्रांति
Chapter – 2 यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति
Chapter – 3 नात्सीवाद और हिटलर का उदय
Chapter – 4 वन्य समाज एवं उपनिवेशवाद
Chapter – 5 आधुनिक विश्व में चरवाहे
NCERT Solution Class 9th इतिहास Notes in Hindi
Chapter – 1 फ्रांसीसी क्रांति
Chapter – 2 यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति
Chapter – 3 नात्सीवाद और हिटलर का उदय
Chapter – 4 वन्य समाज एवं उपनिवेशवाद
Chapter – 5 आधुनिक विश्व में चरवाहे
NCERT Solution Class 9th इतिहास MCQ With Answers in Hindi
Chapter – 1 फ्रांसीसी क्रांति
Chapter – 2 यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति
Chapter – 3 नात्सीवाद और हिटलर का उदय
Chapter – 4 वन्य समाज एवं उपनिवेशवाद
Chapter – 5 आधुनिक विश्व में चरवाहे

You Can Join Our Social Account

YoutubeClick here
FacebookClick here
InstagramClick here
TwitterClick here
LinkedinClick here
TelegramClick here
WebsiteClick here