NCERT Solutions Class 9th Social Science अर्थशास्त्र (Economics) Chapter – 1 पालमपुर गाँव की कहानी (The Story of Palampur Village) Notes In Hindi

NCERT Solutions Class 9th Social Science अर्थशास्त्र (Economics) Chapter – 1 पालमपुर गाँव की कहानी (The Story of Palampur Village)

Text BookNCERT
Class 9th
Subject Social Science (Economics)
Chapter1st
Chapter Nameपालमपुर गाँव की कहानी (The Story of Palampur Village)
CategoryClass 9th Social Science Economics 
Medium Hindi
SourceLast Doubt
NCERT Solutions Class 9th Social Science अर्थशास्त्र (Economics) Chapter – 1 पालमपुर गाँव की कहानी (The Story of Palampur Village) Notes In Hindi जिसमे हम  पालमपुर में कितने परिवार रहते हैं, पालमपुर में जमीन टिकेगी, पालमपुर गांव में हाई स्कूल कितने हैं, पालमपुर में शिक्षा की क्या व्यवस्था है, पालमपुर गाँव के बारे में विस्तार से पढ़ेंगे।

NCERT Solutions Class 9th Social Science अर्थशास्त्र (Economics) Chapter – 1 पालमपुर गाँव की कहानी (The Story of Palampur Village)

Chapter – 1

पालमपुर गाँव की कहानी

Notes

पालमपुर गाँव का परिचय – पालमपुर में कृषि ही प्रमुख उत्पादन प्रक्रिया है गाँव में 450 परिवार रहते है 150 परिवारों के पास, खेती के लिए भूमि नहीं है बाकी 240 परिवारों के पास 2 हेक्टेयर से कम क्षेत्रफल वाले छोटे भूमि के टुकड़े हैं। गाँव की कुल जनसंख्या का एक तिहाई भाग दलित या अनुसूचित जातियों का है इनके घर गाँव के एक कोने में छोटे घर होते हैं जो कि मिट्टी और फूस से होते हैं। गाँव में ज़्यादातर भूमि के स्वामी उच्च जाति के 80 परिवार है उच्च जाति के मकान ईट और सीमेंट के बने हुए हैं। पालमपुर गांव में शिक्षा के लिए – एक हाई स्कूल दो प्राथमिक विद्यालय, एक स्वास्थ्य केन्द्र और एक निजी अस्पताल भी है। 

मुख्य उत्पादन गतिविधियाँ – गाँव के कुल कृषि क्षेत्र के केवल 40 प्रतिशत भाग में सिंचाई होती है अधिक उपज पैदा करने वाले बीज (HYV) की सहायता से गेहूँ की उपज 1300 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर से बढ़कर 3200 किलोग्राम हो गई है। पालमपुर गाँव में 25 प्रतिशत लोग गैर कृषि कार्यो में लगे हुए हैं जैसे डेयरी दुकानदारी, लघुस्तरीय निर्माण, उद्योग, परिवहन इत्यादि।

गैर कृषि क्रियाएँ – अन्य उत्पादन गतिविधियों में जिन्हें गैर कृषि क्रियाएँ कहा गया है ‘लघु विनिर्माण, परिवहन, दुकानदारी आदि शामिल हैं।

उत्पादन – उत्पादन का उद्देश्य या प्रयोजन ऐसी वस्तुएँ और सेवाएँ उत्पादन करता है जिनकी हमें आवश्यकता है। 

उत्पादन हेतु आवश्यक चीजें – वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन के लिए चार चीजें आवश्यक है।

1. भूमि तथा अन्य प्राकृतिक संसाधन – जल, वन, खनिज
2. श्रम – काम करने वाले लोग
3. भौतिक पूंजी – स्थायी पूंजी – औजार, मशीन, भवन
4. कार्यशील पूंजी – कच्चा माल, नकद पूंजी

ज्ञान एवं उघम मानव पूंजी

पहली आवश्यकता है – भूमि तथा अन्य प्राकृतिक संसाधन जैसे जल, वन खनिज की भी आवश्यकता है।

दूसरी आवश्यकता है – श्रम अर्थात् जो लोग काम करेगें कुछ उत्पादन क्रियाओं में शिक्षित कर्मियों की भी आवश्यकता है।

तीसरी आवश्यकता भौतिक पूंजी – उत्पादन के समय प्रत्येक स्तर पर काम आने वाली आगतें जैसे इमारतें, मशीनें औजार  आदि  इसमें स्थायीऔर कार्यशील पूंजी दोनों शामिल हैं।

एक चौथी आवश्यकता भी होती है मानव पूंजी – उत्पदन करने के लिये – भूमि श्रम और भौतिक पूंजी को एक साथ करने योग्य बनाने के लिए ज्ञान और उद्यम की आवश्यकता है जिसे मानव पूंजी कहा जाता है।

औज़ार, मशीन, भवन – औज़ारों तथा मशीनों में अत्यंत साधारण औज़ार जैसे किसान का हल से लेकर परिष्कृत मशीनें जैसे – जेनरेटर, टरबाइन, कंप्यूटर आदि आते हैं औज़ारों, मशीनों और भवनों का उत्पादन में कई वर्षों तक प्रयोग होता है और इन्हें स्थायी पूँजी कहा जाता है। 

कच्चा माल और नकद मुद्रा – उत्पादन में कई प्रकार के कच्चे माल की आवश्यकता होती है, जैसे बुनकर द्वारा प्रयोग किया जाने वाला सूत और कुम्हारों द्वारा प्रयोग में लाई जाने वाली मिट्टी उत्पादन के दौरान भुगतान करने तथा ज़रूरी माल खरीदने के लिए कुछ पैसों की भी आवश्यकता होती है कच्चा माल तथा नकद पैसों को कार्यशील पूँजी कहते हैं।

बाजार – उत्पादित वस्तुओं के अन्तिम उपभोग हेतु प्रतिस्पर्धा के लिये बाजार भी एक आवश्यकत तत्व है।

उत्पादन के कारक – उत्पादन भूमि, श्रम और पूँजी को संयोजित करके संगठित होता है, जिन्हें उत्पादन के कारक कहा जाता है।

जमीन मापने की ईकाई – 1 हेक्टेयर 10,000 वर्ग मी।

पालमपुर गाँव में कृषि – पालमपुर के लोगों का मुख्य पेशा कृषि उत्पादन है यहां काम करने वाले लोगों में 75 प्रतिशत लोग अपने जीवनयापन के लिए खेती पर निर्भर है।

कृषि ऋतु को मुख्यत – तीन भागों में बांटा गया है-

1. वर्षा ऋतु (खरीफ)
2. शरद ऋतु (रबी)
3. ग्रीष्म ऋतु (जायद)

वर्षा ऋतु (खरीफ) – अवधि – जुलाई – अक्टूबर फसल – ज्वार, बाजरा, चावल कपास, गन्ना तम्बाकु आदि।

शरद ऋतु (रबी) – अवधि – अक्टूबर – मार्च फसल – गेहूँ, सरसों, दालें, आलु आदि।

ग्रीष्म ऋतु (जायद) – अवधि – मार्च – जून फसल – तरबूज, खीर, फलियाँ सब्जियाँ फूल इत्यादि।

बहुविघ फसल प्रणाली – एक ही भूमि के टुकड़े से उत्पादन बढ़ाने का तरीका एक साल में किसी उत्पन्न करना पालमपुर के किसान कम से कम दो मुख्य फसल उगाते है, तीसरी फसल के रूप में आलू पैदा कर रहे हैं।

खेती करने के तरीके

1. परम्परागत कृषि
2. आधुनिक कृषि

परम्परागत कृषि

• कृषि में पारम्परिक बीजों का प्रयोग
• कम सिंचाई की आवश्यकता
• उर्वरकों के रूप में गाय के गोबर अथवा दूसरी प्राकृतिक खाद का प्रयोग
• पारम्परिक हल का प्रयोग
• कुओं नदी, रहट, तालाब से सिंचाई

आधुनिक कृषि

• कृषि में अधिक उपज देने वाले HYV का प्रयोग
• अधिक सिंचाई की आवश्यकता
• रासायनिक खाद और कीटनाशकों का प्रयोग
• मशीनों का प्रयोग
• नलकूपों और पम्पिंग सेट के द्वारा सिंचाई

हरित क्रांति – हरित क्रांति द्वारा भारतीय कृषकों की अधिक उपज वाले बीजो (HYV) के द्वारा गेहुँ और चावल की खेती करना सीखा।

हरित क्रांति से भारतीय कृषि पर पड़े प्रभाव

• हरित क्रांति ने भारतीय कृषकों को ज्यादा उपज वाले बीज(HYV) के द्वारा चावल और गेहूँ की कृषि करने के तरीके सिखाये।
• परम्परागत बीजों की तुलना में (HYV) अधिक उपज वाले बीज सिद्ध हुए।
• किसानों ने कृषि में ट्रेक्टर और फसल काटने की मशीनों का उपयोग करना प्रारम्भ कर दिया।
• रसायनिक खादों का प्रयोग करना शुरू किया।
• प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग किया गया।

हरित क्रांति से मृदा को नुकसान

• रासायनिक उर्वरकों के कारण मृदा की उर्वरता नष्ट होने लगी।
• भूमिगत के अति प्रयोग से भौमजल स्तर (भूमि जलस्तर) गिरने लगा।
• रासायनिक उर्वरक आसानी से पानी में घुलकर मिट्टी से नीचे चले जाते हैं और जल को दुषित करते हैं।
• ये बैक्टीरिया और सूक्ष्म जीवाणु नष्ट कर देते हैं जो मिट्टी के लिए उपयोगी हैं उर्वरकों के अति प्रयोग से भूमि खेती के योग्य नहीं रहती।
• अनेक क्षेत्रों में हरित क्रांति के कारण उर्वरकों के अधिक प्रयोग से मिट्टी की उर्वरता कम हो गई।
• इसके अतिरिक्त नलकूपों से सिंचाई के कारण भौम जल स्तर कम हो गया और प्रदुषण की बढ़ गया।

पालमपुर में भूमि का वितरण

• पालमपुर में 450 परिवारों में से लगभग एक तिहाई अर्थात् 150 परिवारों के पास खेती के लिये भूमि नहीं हैं जो अधिकाशत: दलित है।
• 240 परिवारों जिनके पास भूमि नहीं है 2 हेक्टेयर से भी कम क्षेत्रफल वाले टुकड़ों पर खेती करते हैं।
• 8 के ऐसे टुकड़ों पर खेती करने से किसानों के परिवार को पर्याप्त आमदनी नहीं होती।
• पालमपुर में मझोले किसान और बड़े किसानों के 60 परिवार हैं जो 2 हेक्टेयर से अधिक भूमि पर खेती करते है।
• कुछ बड़े किसानों के पास 10 हेक्टेयर या इससे अधिक भूमि है।

पालमपुर गांव में भूमिहीन किसानों का संघर्ष

• भूमिहीन किसान दैनिक मजदूरी पर काम करने के लिये मजबूर है।
• उन्हें अपने लिए प्रतिदिन काम ढूंढते रहना पड़ रहा है।
• सरकार द्वारा मजदूरों की दैनिक दिहाड़ी न्यूनतम रूप में 60 रू 0 निर्धारित की गई है।
• परन्तु केवल मात्र 35-40 रुपये ही मिलते है।
• खेतिहर श्रमिकों में अधिक स्पर्धा के कारण ये लोग कम वेतन में भी कार्य करने के लिए तैयार हो जाते हैं।
• खेतिहर श्रमिक कर्ज के कारण अत्याधिक कष्ट झेल रहे हैं।

पालमपुर के दुकानदार

• दुकान पर प्रतिदिन की वस्तुओं को थोक रेट पर खरीदते है और गाँव में बेचते है।
• पालमपुर में ज्यादा लोग व्यापार (वस्तु विनियम) नहीं करते।
• गाँव में छोटे जनरल स्टोर में चावल, गेहूँ चाय, तेल बिस्कुट साबुन, टूथ पेस्ट, बेट्री, मोमबत्ती, कापियां पैन पेनसिल तथा कुछ कपड़े भी बेचते हैं।
• कुछ परिवारों ने जिनके घर बस स्टैंड के निकट होते है अपने घर के एक भाग में ही छोटी दुकान खोल ली है।
• वस्तुओं के साथ – साथ खाने की चीजें भी बेचते हैं।

पालमपुर में गैर कृषि क्रियाएं कौन सी है?

• कृषि का अर्थ होता है खेती करना, वही गैर कृषि क्रिया का अर्थ है वह क्रिया जिसमें कृषि सम्मिलित न हो जैसे दूध बेचना, खनन कार्य और हस्तशिल्प आदि कार्य।
• पालमपुर में कार्यशील जनसंख्या का केवल 25% भाग गैर कृषि कार्यों में संलग्न है।
• पालमपुर में मुख्य गैर कृषि क्रियाएं निम्नलिखित हैं।

डेयरी – पालमपुर गांव के लोग भैंस पालते हैं और दूध को निकट के बड़े गांव रायगंज में जहां दूध संग्रहण एवं शीतलन केंद्र खुला हुआ है में बेचते हैं।

लघु स्तरीय विनिर्माण – पालमपुर में भी निर्माण कार्य छोटे पैमाने पर किया जाता है और गांव के लगभग 50 लोग विनिर्माण कार्यों में लगे हुए हैं।

कुटीर उद्योग – गांव में गन्ना पेरने वाली मशीन लगी है। यह मशीनें बिजली से चलाई जाती है किसान स्वयं उगाए तथा दूसरों से गन्ना खरीद कर गुड़ बनाते हैं और सहायपुर में व्यापारियों को बेचते हैं।

व्यापार कार्य – पालमपुर के व्यापारी शहरों के थोक बाजारों से अनेक प्रकार की वस्तुएं खरीदते हैं तथा उन्हें गांव में लाकर बेचते हैं जैसे चावल, गेहूं, चाय, तेल-साबुन आदि।

परिवहन – पालमपुर के लोग अनेक प्रकार के वाहन चलाते हैं जैसे रिक्शा, जीप, ट्रैक्टर आदि यह वाहन वस्तुओं व यात्रियों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाते हैं और इसके बदले में वाहन चालकों को किराए के रूप में पैसे मिलते हैं।

प्रशिक्षण सेवा – पालमपुर गांव में एक कंप्यूटर केंद्र खुला हुआ है इस केंद्र में कंप्यूटर प्रशिक्षण के रूप में दो कंप्यूटर डिग्री धारक महिलाएं भी काम करती हैं बहुत संख्या में गांव के विद्यार्थी वहां कंप्यूटर सीखने भी आते हैं।

पालमपुर में लघु स्तरीय विनिर्माण उद्योग की विशेषताएँ

• सरल उत्पादन विधियों का इस्तेमाल।
• पारिवारिक श्रम द्वारा घरों पर काम करना।
• श्रमिकों को भी कई बार किराए पर रखा जाता है।
• कम लागत पूंजी।
• कम समय में तैयार माल।

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