NCERT Solutions Class 9th Science Chapter – 12 खाद्य संसाधनों में सुधार (Improvement In Food Resources)
Textbook | NCERT |
Class | 9th |
Subject | (Science) विज्ञान |
Chapter | 12th |
Chapter Name | खाद्य संसाधनों में सुधार (Improvement In Food Resources) |
Category | Class 9th विज्ञान (Science) Question & Answer |
Medium | Hindi |
Source | Last Doubt |
NCERT Solutions Class 9th Science Chapter – 12 खाद्य संसाधनों में सुधार (Improvement In Food Resources) Question & Answer in Hindi, खाद्य संसाधनों में सुधार प्रश्न उत्तर जिसमे हम खाद्य संसाधनों में सुधार से आप क्या समझते हैं?, भारत में खाद्य संसाधनों में सुधार क्या है?, खाद्य संसाधनों के सुधार की क्या आवश्यकता है?, खाद्यसंरक्षण क्यों महत्वपूर्ण है?, खाद का संरक्षण क्या है?, खाद्य पदार्थ कितने प्रकार के होते हैं?, खाद्य पदार्थों के संरक्षण की कौन कौन सी विधियां हैं? आदि के बारे में पड़ने के साथ साथ Class 9th Science Chapter -15 खाद्य संसाधनों में सुधार प्रश्न उत्तर करेंगे। |
NCERT Solutions Class 9th Science Chapter – 12 खाद्य संसाधनों में सुधार (Improvement In Food Resources)
Chapter – 12
खाद्य संसाधनों में सुधार
प्रश्न उत्तर
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प्रश्न 1. अनाज, दाल, फल तथा सब्ज़ियों से हमें क्या प्राप्त होता है?
उत्तर – अनाज से कार्बोहाइड्रेट प्राप्त होता है जो हमें ऊर्जा प्रदान करता है। दालों से प्रोटीन प्राप्त होता है। फलों तथा सब्जियों से विटामिन तथा खनिज लवण प्राप्त होते हैं, कुछ मात्रा में प्रोटीन, वसा और कार्बोहाइड्रेट भी प्राप्त होते हैं।
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प्रश्न 1. जैविक तथा अजैविक कारक किस प्रकार फसल उत्पादन को प्रभावित करते हैं?
उत्तर – जैविक (रोग, कीट तथा निमेटोड) तथा अजैविक (सूखा, क्षारता, जलाक्रांति, गरमी, ठंडा तथा पाला) परिस्थितियों के कारण फसल उत्पादन कम हो सकता है और फसल नष्ट हो सकती है। इन दोनों कारकों के संयुक्त प्रभाव निम्न हो सकते हैं
• कीटों का संक्रमण।
• अनाज के भार में कमी।
• खराब अंकुरण क्षमता।
• गुणवत्ता में कमी।
• बदरंग (Discoloration) हो जाना।
• बाजार मूल्य में ह्रास (कमी) हो जाना।
प्रश्न 2. फसल सुधार के लिए ऐच्छिक सस्य विज्ञान गुण क्या हैं?
उत्तर – ऐच्छिक सस्य विज्ञान गुण-चारे वाली फ़सलों के लिए लंबी तथा सघन शाखाएँ ऐच्छिक गुण हैं। अनाज के लिए बौने पौधे उपयुक्त हैं ताकि इन फसलों को उगाने के लिए कम पोषकों की आवश्यकता हो। इस प्रकार सस्य विज्ञान वाली किस्में अधिक उत्पादन प्राप्त करने में सहायक होती हैं।
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प्रश्न 1. वृहत् पोषक क्या हैं और इन्हें वृहत्-पोषक क्यों कहते हैं?
उत्तर – पौधों को अनेक पोषक पदार्थ मिट्टी से प्राप्त होते हैं। इन पोषकों में से कुछ पोषक तत्त्व नाइट्रोजन, फ़ॉस्फोरस, पोटैशियम, कैल्सियम, मैगनीशियम, सल्फर को वृहत् पोषक कहा जाता है। चूंकि इनकी आवश्यकता अधिक मात्रा में पड़ती है इसलिए इन्हें वृहत् पोषक कहा जाता है।
प्रश्न 2. पौधे अपना पोषक कैसे प्राप्त करते हैं?
उत्तर – पौधे अपना पोषक हवा, पानी तथा मिट्टी से प्राप्त करते हैं।
हवा से – कार्बन, ऑक्सीजन
पानी से – हाइड्रोजन, ऑक्सीजन
तथा मिट्टी से अन्य पोषक पदार्थ प्राप्त होते हैं। मिट्टी में पाए जाने वाले पोषक पदार्थ जल में घुलनशील होते हैं जो जड़ों द्वारा अवशोषित कर लिए जाते हैं तथा जाइलम ऊतक के द्वारा पौधों के विभिन्न भागों तक पहुँचाए जाते हैं।
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प्रश्न 1. मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखने के लिए खाद तथा उर्वरक के उपयोग की तुलना कीजिए।
उत्तर – खाद की उपयोगिता
• खाद मिट्टी को पोषक तथा कार्बनिक पदार्थों से परिपूर्ण करती है और मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाती है।
• यह मिट्टी की संरचना में सुधार लाती है।
• इसके कारण रेतीली मिट्टी में पानी को रखने की क्षमता बढ़ जाती है।
• चिकनी मिट्टी में कार्बनिक पदार्थों की अधिक मात्रा पानी को निकालने में सहायता करती है। जिससे पानी एकत्रित नहीं हो पाती है।
• मृदा अपरदन में कमी आती है।
• खाद-मिट्टी को ह्यूमस (Humus) प्रदान करती
• सूक्ष्मजीवों एवं भूमिगत जीवों के लिए भोजन प्रदान करती है।
उर्वरक का उपयोग
• इनके उपयोग से अच्छी कायिक वृद्धि (पत्तियाँ, शाखाएँ तथा फूल) होती है और स्वस्थ पौधों की प्राप्ति होती है।
• अधिक उत्पादन के लिए उर्वरक का उपयोग किया जाता है, परंतु ये आर्थिक दृष्टि से महँगे होते हैं।
• उर्वरकों के उपयोग द्वारा कम समय में अधिक उत्पादन होता है, परंतु यह मृदा की उर्वरता को कुछ समय बाद हानि पहुँचाते हैं।
• उर्वरकों के लगातार प्रयोग से मिट्टी की उर्वरता घटती है क्योंकि कार्बनिक पदार्थ की पुनः पूर्ति नहीं हो पाती है तथा सूक्ष्मजीवों एवं भूमिगत जीवों का जीवन-चक्र अवरुद्ध होता है।
• मिट्टी अम्लीय या क्षारीय हो जाती है जिससे मिट्टी सूखी, चूर्ण की तरह (Powdery) होने से मृदा अपरदन बढ़ती है।
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प्रश्न 1. निम्नलिखित में से कौन-सी परिस्थिति में सबसे अधिक लाभ होगा? क्यों?
(a) किसान उच्चकोटि के बीज का उपयोग करें, सिंचाई ना करें अथवा उर्वरक का उपयोग न करें।
(b) किसान सामान्य बीजों का उपयोग करें, सिंचाई। करें तथा उर्वरक का उपयोग करें।
(c) किसान अच्छी किस्म के बीज का प्रयोग करें, सिंचाई करें, उर्वरक का उपयोग करें तथा फसल सुरक्षा की विधियाँ अपनाएँ।
उत्तर – (c) किसान अच्छी किस्म के बीज का प्रयोग करें, सिंचाई करें, उर्वरक का उपयोग करें तथा फसल सुरक्षा की विधियाँ अपनाएँ। केवल इसी परिस्थिति में अधिक लाभ होगा क्योंकि उच्च कोटि के बीज होने पर भी जब तक सही तरीकों से सिंचाई, उर्वरकों का प्रयोग और फसल की सुरक्षा नहीं की जाए तो उत्पादकता में कमी आती है।
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प्रश्न 1. फसल की सुरक्षा के लिए निरोधक विधियाँ तथा जैव नियंत्रण क्यों अच्छा समझा जाता है?
उत्तर – पीड़कों पर नियंत्रण के लिए प्रतिरोधक क्षमता वाली किस्मों का उपयोग तथा ग्रीष्मकाल में हल से जुताई की जाती है। गहराई तक जुताई करने से खरपतवार तथा पीक नष्ट हो जाते हैं। यह एक प्रकार की निरोधक विधि है। जैव नियंत्रण विधि में जानबूझकर कीटों या अन्य जीवों का उपयोग किया जाता है जो खर-पतवार को खासकर नष्ट कर देता है। जैसे-प्रिंकले पियर कैक्टस (Prinkly-pear Cactus)
उपर्युक्त विधियाँ अच्छी इसलिए हैं क्योंकि:
• पर्यावरण प्रदूषण नहीं होता है।
• किसी अन्य पौधों और जानवरों को हानि नहीं पहुँचती है।
• यह सस्ता एवं सरल तरीका है तथा मिट्टी की गुणवत्ता प्रभावित नहीं होती है।
प्रश्न 2. भंडारण की प्रक्रिया में कौन-से कारक अनाज की हानि के लिए उत्तरदायी हैं?
उत्तर – जैविक कारक-कीट, कुंतक, कवक, चिंचड़ी तथा जीवाणु। अजैविक कारक-भंडारण के स्थान पर उपयुक्त नमी व ताप का अभाव होना। ये कारक उत्पादन की गुणवत्ता को खराब करते हैं। वजन कम कर देते हैं। अंकुरण की क्षमता कम कर देते हैं। उत्पादन को बदरंग कर देते हैं। ये सब लक्षण बाज़ार में उत्पादन की कीमत को कम कर देते हैं।
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प्रश्न 1. पशुओं की नस्ल सुधार के लिए प्राय: कौन-सी विधि का उपयोग किया जाता है और क्यों?
उत्तर – पशुओं की नस्ल सुधार के लिए प्रायः विदेशी नस्लों और देशी नस्लों में संकरण (Cross breeding) कराया जाता है। विदेशी नस्लों; जैसे-जर्सी, ब्रॉउन स्विस में दुग्ध स्रवण काल लंबा (Prolonged Period of Lactation) होता है जबकि देशी नस्लों; जैसे-रेडसिंधी, साहीवाल में रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत अधिक होती है। अत: इनके संकरण से एक नई संतति प्राप्त होती है जिसमें दोनों प्रकार के ऐच्छिक गुण (रोग प्रतिरोधक क्षमता व लंबा दुग्धस्रवण काल) होंगे।
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प्रश्न 1. निम्नलिखित कथन की विवेचना कीजिए “यह रुचिकर है कि भारत में कुक्कुट, अल्प रेशे के खाद्य पदार्थों को उच्च पोषकता वाले पशु प्रोटीन आहार में परिवर्तन करने के लिए सबसे अधिक सक्षम हैं। अल्प रेशे के खाद्य पदार्थ मनुष्यों के लिए उपयुक्त नहीं होते हैं।”
उत्तर – पाल्ट्री फार्म में कुक्कुट ऐसे कृषि उत्पादों को आहार के रूप में प्रयोग करते हैं जो मनुष्यों के लिए उपयुक्त नहीं होता है; जैसे – चावल के दाने, ज्वार, बाजरा आदि के दले हुए दाने। कुक्कुट इन्हें खाकर अंडों और मांस में संश्लेषण कर देते हैं जो उच्च कोटि के पशु प्रोटीन होते हैं।
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प्रश्न 1. पशुपालन तथा कुक्कुट पालन के प्रबंधन प्रणाली में क्यो समानता है?
उत्तर – पशुपालन तथा कुक्कुट पालन के प्रबंधन प्रणाली में निम्नलिखित समानताएँ हैं
• उचित सफाई तथा आवास की व्यवस्था होनी चाहिए। उनका आवास छतदार एवं रोशनदानयुक्त होना चाहिए। आवास का फ़र्श ढलवाँ होना चाहिए जिससे कि वह साफ और सूखा रहे।
• उचित आहार की व्यवस्था होनी चाहिए।
• संक्रामक रोगों से बचाने के लिए टीका लगवाना चाहिए ताकि वायरस, बैक्टीरिया, कवक से होने वाली बीमारियों से सुरक्षा हो सके।
• तापमान नियंत्रण की व्यवस्था होनी चाहिए।
• रोगों तथा पीड़कों पर नियंत्रण तथा उनसे बचाव तथा रोगाणुनाशी पदार्थों का छिड़काव करना चाहिए।
प्रश्न 2. ब्रौलर तथा अंडे देने वाली लेयर में क्या अंतर है? इनके प्रबंधन के अंतर को भी स्पष्ट करें।
उत्तर –
ब्रौलर | लेयर |
मांस के लिए ब्रौलर को पाला जाता है। | अंडों के लिए अंडे देने वाली (लेयर) मुर्गी पालन किया जाता है। |
इनके आहार में प्रोटीन एवं वसा प्रचुर मात्रा में होती है। विटामिन A तथा K की मात्रा अधिक रखी जाती है। | लेयर के आहार में विटामिन, खनिज तथा सूक्ष्म पोषक (Micro- nutrients) होते हैं। |
इनकी मृत्यु दर कम है। | इनकी मृत्यु दर ब्रौलर से अधिक है। |
इनकी वृद्धि तीव्र गति से होती है और 6-7 हफ्तों के बाद इनका उपयोग मांस के रूप में किया जा सकता है। स्थान तथा प्रकाश की आवश्यकता नहीं होती है। | यह 20 हफ्ते की उम्र में अंडे दे सकते हैं। |
इन्हें अधिक | इन्हें वृद्धि के लिए अधिक स्थान तथा प्रकाश की आवश्यकता होती है। |
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प्रश्न 1. मछलियाँ कैसे प्राप्त करते हैं?
उत्तर – मछलियाँ दो तरीके से प्राप्त की जाती हैं
• प्राकृतिक स्रोत (जिसे मछली पकड़ना कहते हैं) मछलियाँ के जल-स्रोत समुद्री जल तथा ताज़ा जल (अलवणीय जल) हैं। अलवणीय जल नदियों, नहरों तथा तालाबों में होता है।
• मछली पालन (या मछली संवर्धन)
अतः मछली पकड़ना तथा मछली संवर्धन समुद्र तथा ताजे जल पारिस्थितिक तंत्रों में किया जा सकता है।
प्रश्न 2. मिश्रित मछली संवर्धन के क्या लाभ हैं?
उत्तर – मिश्रित मछली संवर्धन से निम्नलिखित लाभ हैं
• इस प्रक्रिया में देशी तथा आयातित प्रकार की मछलियाँ एक साथ रहती हैं।
• एक ही तंत्र में एक ही तालाब में 5 अथवा 6 मछलियों की स्पीशीज का प्रयोग किया जाता है।
• ऐसी मछलियों को चुना जाता है जिनमें आहार के लिए प्रतिस्पर्धा न हो अथवा उनके आहार भिन्न-भिन्न हों।
• तालाब के प्रत्येक भाग में उपलब्ध आहार का प्रयोग हो जाता है; जैसे-कटला-जल की सत से, रेहु-तालाब के मध्य क्षेत्र से, मृगल तथा कॉमन कार्प-तालाब की तली से भोजन लेती हैं। ग्रास कार्प खर-पतवार खाती हैं।
• अतः ये मछलियाँ साथ-साथ रहते हुए भी बिना स्पर्धा के अपना-अपना आहार लेती हैं। इससे तालाब से मछली के उत्पादन में वृद्धि होती है।
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प्रश्न 1. मधु उत्पादन के लिए प्रयुक्त मधुमक्खी में कौन-से ऐच्छिक गुण होने चाहिए?
उत्तर – मधु उत्पादन के लिए प्रयुक्त मधुमक्खी में निम्नलिखित गुण होने चाहिए
• इनमें मधु एकत्र करने की क्षमता अधिक हो।
• वे डंक कम मारें।
• वे निर्धारित छत्ते में काफी समय तक रहें और प्रजनन तीव्रता से करें।
प्रश्न 2. चरागाह क्या है और ये मधु उत्पादन से कैसे संबंधित है?
उत्तर – चरागाह वे स्थान हैं जहाँ बहुत सारे फूलों की क्यारियाँ होती हैं जिनसे मधुमक्खियाँ फूलों से मकरंद तथा पराग एकत्र करती हैं। चरागाह की पर्याप्त उपलब्धता मधुमक्खियों को अधिक मात्रा में शहद देती है तथा फूलों की किस्में मधु की गुणवत्ता एवं स्वाद को निर्धारित करती हैं। इसलिए जितने अधिक प्रकार के फूल होंगे, उतनी ही किस्में मधु के स्वाद की भी होंगी। अतः मधु उत्पादन का चरागाह से संबंध है।
अभ्यास के प्रश्न उत्तर
प्रश्न 1. फसल उत्पादन की एक विधि का वर्णन करो जिससे अधिक पैदावार प्राप्त हो सके।
उत्तर – अधिक पैदावार प्राप्त करने की एक विधि फसल चक्र (Crop Rotation) है। इस विधि में क्रमवार पूर्व नियोजित कार्यक्रम के अनुसार किसी खेत में विभिन्न प्रकार की फसलें उगाई जाती हैं। परिपक्वन काल के आधार पर विभिन्न फसल सम्मिश्रण (Crop Combinations) के लिए फसल चक्र अपनाया जाता है। एक कटाई के बाद दूसरी कौन-सी फसल उगाई जाए, यह नमी तथा सिंचाई की उपलब्धता पर निर्भर करता है। यदि फसल चक्र उचित ढंग से अपनाया जाए तो वर्ष में दो या तीन फसलों से अच्छा उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। यह विधि इस सिद्धान्त पर आधारित है. कि यदि लगातार एक ही खेत में एक ही फसल उगाई जाए तो उसमें एक विशेष प्रकार के खनिज की कमी हो जाती है तथा अनेक रोग तथा पीड़क फसल को नष्ट कर देते हैं; जैसे-मक्का , सरसों, धान, गेहूं आदि।
प्रश्न 2. खेतों में खाद तथा उर्वरक का उपयोग क्यों करते हैं?
उत्तर – खेतों में खाद तथा उर्वरक का उपयोग करने पर मिट्टी की उर्वरता बढ़ जाती है, फसल की उत्पादकता में वृद्धि होती है क्योंकि पोषकों की कमी के कारण पौधों की शारीरिक प्रक्रियाओं सहित जनन, वृद्धि तथा रोगों के प्रति प्रवृत्ति पर प्रभाव पड़ता है। अतः खाद तथा उर्वरक का उपयोग करने पर मिट्टी में वांछित पोषकों की पूर्ति हो जाती है तथा उत्पादन अधिक होता है।
प्रश्न 3. अंतराफसलीकरण तथा फसल चक्र के क्या लाभ हैं?
उत्तर – अंतराफसलीकरण से लाभ (Advantages of using intercropping):
• मिट्टी की उर्वरता बरकरार रहती है।
• इस विधि द्वारा पीड़क व रोगों को एक प्रकार की फसल के सभी पौधों में फैलने से रोका जा सकता है।
• दो भिन्न प्रकार की फसल आसानी से बोई तथा काटी जा सकती हैं।
• प्रति इकाई क्षेत्रफल में उत्पादन अधिक होता है क्योंकि मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है।
• दो भिन्न प्रकार की फसलों को पोषक तत्त्वों की आवश्यकताएँ भिन्न-भिन्न होने के कारण पोषकों का अधिकतम उपयोग होता है।
• प्राकृतिक संसाधनों-सूर्य का प्रकाश, भूमि तथा जल का अच्छा उपयोग होता है।
• श्रम तथा समय की बचत होती है।
• मृदा अपरदन नहीं होता है।
‘फसल चक्र से लाभ (Advantages of Using Crop Rotation) :
• इससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है।
• मिट्टी में किसी खास प्रकार के पोषक तत्त्व की कमी नहीं होती है।
• दलहनी फसलें बोने से मिट्टी में नाइट्रोजन की वृद्धि होती है।
• फसल चक्र खर-पतवार को नियंत्रित करने में सहायक होते हैं।
• फसलों में रोग वृद्धि तथा पीड़कों से संक्रमण में कमी आती है।
• फसल की उर्वरता बढ़ने पर उत्पादन अच्छा होता है।
प्रश्न 4. आनुवांशिक फेरबदल क्या हैं? कृषि प्रणालियों में ये कैसे उपयोगी हैं?
उत्तर – वह फसल जिसे वांछित लक्षण प्राप्त करने के लिए किसी दूसरे स्रोत से प्राप्त जीन को प्रवेश कराकर विकसित किया गया हो, आनुवंशिक रूपांतरित (फेरबदल) (Genetic Manipulation) फसल कहलाती है। कृषि प्रणाली में यह निम्नलिखित कारणों से उपयोगी है
• उच्च उत्पादकता।
• उन्नत किस्में।
• जैविक तथा अजैविक प्रतिरोधी होती है।
• फसल में व्यापक अनुकूलता होती है।
• इसके परिपक्वन काल में परिवर्तन किया जा सकता है। फसल उगाने से कटाई तक कम से कम समय लगना आर्थिक दृष्टि से अच्छा है।
• फसल में ऐच्छिक सस्य विज्ञान गुण लाने से उत्पादन अधिक होता है; जैसे-अनाज के लिए बौने पौधे उपयुक्त हैं।
प्रश्न 5. भंडार गृहों (गोदामों) में अनाज की हानि कैसे होती है?
उत्तर – भंडार गृहों (गोदामों) में अनाज की हानि मुख्यतः दो कारकों से होती है
अजैविक कारक – अनाज में उपयुक्त नमी का अभाव होना, भंडारण के स्थान पर उपयुक्त नमी और तापमान का अभाव होना, वायु में आर्द्रत अधिक होना।
जैविक कारक – इसके अंतर्गत कीट, कुंतक (Rodents), कवक, चिंचड़ी (Mites) तथा जीवाणु (Bacteria) आते हैं।
प्रश्न 6. किसानों के लिए पशुपालन प्रणालियाँ कैसे लाभदायक हैं?
उत्तर – किसानों के लिए पशुपालन प्रणालियाँ निम्न कारणों से लाभदायक हैं
• पशुपालन से दूध, मांस, अंडा आदि के उत्पादन में वृद्धि होती है जिससे उनकी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होती है।
• विदेशी नस्लों तथा देशी नस्लों में संकरण द्वारा ऐच्छिक गुण वाली नस्लें प्राप्त की जाती हैं जो रोग प्रतिरोधक क्षमता, लंबे जीवनकाल वाली व लंबा दुग्ध स्रवण काल वाली होती हैं। परिणामस्वरूप दुग्ध उत्पादन में वृद्धि होती है।
• पालतू पशुओं के रहने के स्थान, भोजन, रोगों से सुरक्षा के लिए उपाय एवं साफ़-सफ़ाई का ध्यान रखा जाता है।
प्रश्न 7. पशुपालन के क्या लाभ हैं?
उत्तर – पशुपालन से निम्नलिखित लाभ हैं
• इनसे दूध के साथ-साथ कृषि कार्य (हल चलाना, सिंचाई तथा बोझा ढोने) में मदद मिलती है।
• इन्हीं पालतू पशुओं के अपशिष्ट से खाद बनाई जाती है।
• नस्लों में सुधार होने के कारण दुग्ध उत्पादन में वृद्धि होती है।
• अच्छे गुणवत्ता वाले मांस, रेशे, चमड़े इत्यादि प्राप्त किए जाते हैं।
• मधुमक्खी से मधु तथा मोम मिलता है।
• भेड़-बकरियों से हमें ऊन मिलता है जो सर्दियों में हमें ठंड से बचाता है।
प्रश्न 8. उत्पादन बढ़ाने के लिए कुक्कुट पालन, मत्स्य पालन तथा मधुमक्खी पालन में क्या समानताएँ हैं?
उत्तर –
• वैज्ञानिक तरीके से देखरेख तथा प्रबंधन करना।
• सर्वोत्तम नस्लों का उपयोग करना ताकि उत्पादन अधिक हो तथा उनमें रोग प्रतिरोधक क्षमता भी हो।
प्रश्न 9. प्रग्रहण मत्स्यन, मेरीकल्चर तथा जल संवर्धन में क्या अंतर है?
उत्तर – (i) प्रग्रहण मत्स्यन (Capture Fishing) – ताज़ा जल (अलवणीय जल) तथा समुद्री जल जैसे प्राकृतिक स्रोतों से मछली पकड़ना प्रग्रहण मत्स्यने कहलाता है। इस प्रकार के जल स्रोत हैं-तालाब, नदी, पोखर, लैगून, झील, समुद्र, महासागर इत्यादि।
(ii) मेरीकल्चर (Mariculture) – कुछ आर्थिक महत्त्व वाली समुद्री मछलियों का समुद्री जल में संवर्धन किया जाता है, जिसे मेरीकल्चर कहते हैं। इनमें प्रमुख हैं-मुलेट, भेटकी तथा पर्लस्पॉट (पखयुक्त मछलियाँ), कवचीय मछलियाँ; जैसे-झींगा (Prawn), मस्सल तथा ऑएस्टर एवं साथ ही समुद्री खर-पतवार।
(iii) जल-संवर्धन (Aquaculture) – यह ताज़ा जल (Fresh water) तथा समुद्री जल (लवणीय जल) दोनों में किया जा सकता है। मेरीकल्चर, जल संवर्धन (Aquaculture) का ही एक प्रकार है।
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