NCERT Solutions Class 9th Science Chapter – 12 खाद्य संसाधनों में सुधार (Improvement in Food Resources) Notes In Hindi

NCERT Solutions Class 9th Science Chapter – 12 खाद्य संसाधनों में सुधार (Improvement in Food Resources)

TextbookNCERT
Class9th
Subjectविज्ञान (Science) 
Chapter12th
Chapter Nameखाद्य संसाधनों में सुधार (Improvement in Food Resources)
CategoryClass 9th विज्ञान (Science)
Medium Hindi
Source Last Doubt
NCERT Solutions Class 9th Science Chapter – 12 खाद्य संसाधनों में सुधार (Improvement in Food Resources) Notes In Hindi जिसमें हम खाद्य संसाधन क्या है कक्षा 9?, खाद्य उत्पादन में सुधार क्या है?, खाद्य संसाधन से आप क्या समझते हैं?, खाद्य संसाधनों का संरक्षण क्या है?, खाद्य संसाधन का संरक्षण कैसे करें?, खाद्य पदार्थ कितने प्रकार के होते हैं?, फसल किस्म सुधार क्यों किया जाता है?, खाद्यान्नों की वृद्धि के क्या कारण हैं?, हमें खाद्य सुरक्षा क्यों करनी चाहिए?, फसल की किस्मों में सुधार, फसल उत्पादन, फसल सुरक्षा प्रबंधन, खरीफ फसल, आदि इसके बारे में हम विस्तार से पढ़ेंगे।

NCERT Solutions Class 9th Science Chapter – 12 खाद्य संसाधनों में सुधार (Improvement in Food Resources)

Chapter – 12

 खाद्य संसाधनों में सुधार

Notes

फसल उत्पादन में उन्नति

• फसल की किस्मों में सुधार
• फसल उत्पादन में सुधार
• फसल सुरक्षा प्रबंधन

फसल की किस्मों में सुधार 

• उच्च उत्पादन
• जैविक तथा अजैविक प्रतिरोधकता
• परिपक़्वता काल में अंतर
• व्यापक अनुकूलता
• किस्मों में सुधार

फसल की किस्म में सुधार के कारक हैं अच्छे और स्वस्थ बीज संकरण (Hybridization) – विभिन्न अनुवांशिक गुणों वाले पौधों के बीच संकरण करके उन्नत वाले पौधे तैयार करने की प्रक्रिया को संकरण कहते हैं।

फसल की गुणवत्ता में वृद्धि करने वाले कारक

• उच्च उत्पादन (Higher yield)
• उन्नत किस्में (improved quality)

(i) उच्च उत्पादन (Higher yield) – प्रति एकड़ फसल की उत्पादकता बढ़ाना।

(ii) उन्नत किस्में (improved quality) – उन्नत किस्में, फसल उत्पादन की गुणवत्ता, प्रत्येक फसल में भिन्न होती है। दाल में प्रोटीन की गुणवत्ता, तिलहन में तेल की गुणवत्ता और फल तथा सब्जियों का संरक्षण महत्वपूर्ण है।

(iii) जैविक तथा अजैविक प्रतिरोधकता (Biotic and Abiotic resistance) – जैविक (रोग, कीट तथा निमेटोड) तथा अजैविक (सूखा, क्षारता, जलाक्रांति, गर्मी, ठंड तथा पाला) परिस्थितियों के कारण फसल उत्पादन कम हो सकता है। इन परिस्थितियों को सहन कर सकने वाली फसल की हानि कम हो जाती है।

(iv) व्यापक अनुकूलता (Wide Adaptability) – व्यापक अनुकूलता वाली किस्मों का विकास करना विभिन्न पर्यावरणीय परिस्थितियों में फसल उत्पादन को स्थायी करने में सहायक होगा। एक ही किस्म को विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न जलवायु में उगाया जा सकता है।

(v) ऐच्छिक सस्य विज्ञान गुण (Desired agronomic Traits) – चारे वाली फसलों के लिये लम्बी तथा सघन शाखाएँ ऐच्छिक गुण है। इस प्रकार सस्य विज्ञान वाली किस्में अधिक उत्पादन प्राप्त करने में सहायक होती हैं।

वृहत पोषक तत्व – नाइट्रोजन वायु व भूमि से प्राप्त होती है। जिसकी अधिक मात्रा में पौधों को आवश्यकता होती है। अन्य वृहत पोषक तत्त्व हैं। फॉस्फोरस, पोटेशियम, केल्सियम, मैग्नीशियम, सल्फर।

सूक्ष्म पोषक तत्व – लौह तत्व, मैग्नीज की कम मात्रा में आवश्यकता होती है। अन्य हैं बोरोन, जिंक, कॉपर मोलिबिडनम, क्लोरीन।

खाद तथा उर्वरक – (i) मिट्टी की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिये खाद तथा उर्वरक की आवश्यकता होती है। फलस्वरूप फसल की उपज में वृद्धि होती है।

(ii) यह प्राणी के उत्सर्जित  पदार्थ या अपशिष्ट और जैविक कचरे के विघटन द्वारा तैयार किया जाता है।

खाद – ये एक कार्बनिक पदार्थ का अच्छा स्रोत है। यह थोड़ी मात्रा में मिट्टी को पोषक तत्व प्रदान करता है यह प्राणी के उत्सर्जित पदार्थ या अपशिष्ट से बनता है तथा पौधों के अपशिष्ट के अपघटन द्वारा तैयार किया जाता है।

खाद के विभिन्न प्रकार

• कम्पोस्ट खाद
• वर्मी कम्पोस्ट
• खादहरी खाद

कम्पोस्ट खाद – पौधों व उनके अवशेष पदार्थों, कूड़े, करकट, पशुओं के गोबर, मनुष्य के मल मूत्र आदि कार्बनिक पदार्थों को जीवाणु तथा कवकों की क्रिया के द्वारा खाद रूप में बदलना कम्पोस्टिंग कहलाता है।

वर्मी कम्पोस्ट खाद – जब कम्पोस्ट को केचुएँ के उपयोग से तैयार करते हैं उसे वर्मी कम्पोस्ट कहते हैं। यहाँ केंचुआ ‘कृषकों का मित्र’  एवं ‘भूमि की आंत’ कहा जाता है।

हरी खाद – फसल उगाने से पहले खेतों में कुछ पौधे जैसे की पटसन, मूँग, अथवा ग्वार उगा देते है और इसके बाद  उन पर हल चलाकर खेत की मिट्टी में मिला देते है। ये पौधे मिट्टी में मिलने के बाद हरी खाद में बदल जाते हैं यह मिट्टी को नाइट्रोजन तथा फास्फोरस से परिपूर्ण करने में सहायक होते है।

उर्वरक – उर्वरक कारखानों में तैयार किये जाते हैं। ये रासायनिक पदार्थों के इस्तेमाल से बनाये जाते हैं। इनमें अत्यधिक मात्रा में पोषक तत्व जैसे- नाइट्रोजन, फास्फोरस तथा पोटैशियम पाये जाते हैं। उर्वरक आसानी से पौधों द्वारा अवशोषित कर लिये जाते हैं तथा ये पानी में घुलनशील होते हैं।

खाद तथा उर्वरक में अन्तर 

खाद उर्वरक 
ये मुख्य रूप से कार्बनिक पदार्थ होते हैं।ये अकार्बनिक पदार्थ होते हैं।
ये प्राकृतिक पदार्थ के बने होते हैं।ये रासायनिक पदार्थों से मिलकर बनते हैं।
खाद में कम मात्रा में पोषक तत्व होते हैं।उर्वरक में अत्यधिक मात्रा में पोषक तत्व पाये जाते हैं।
खाद सस्ती होती है तथा घर तथा खेत (मैदान) में बनायी जा सकती है।उर्वरक महँगे तथा फैक्ट्रियों में तैयार किये जाते हैं।
खाद धीरे-धीरे पौधे द्वारा अवशोषित की जाती है। क्योंकि ये पानी में अघुलनशील होते हैं।उर्वरक आसानी से फसल को उपलब्ध हो जाते हैं। ये पानी में घुलनशील होते हैं।
इसका आसानी से भंडारण तथा स्थानान्तरण किया जा सकता है।इसका भंडारण तथा स्थानांतरण सरल विधि से नहीं किया जा सकता।

सिंचाई – फसलों को उचित समय पर जल प्रदान करने की प्रक्रिया को सिंचाई कहते हैं।

सिंचाई के तरीके

• कुएँ (Wells)
• नहरें (Canals)
• नदी उन्न्यन प्रणाली (River lift system)
• तालाब (Tanks)
• पानी का संरक्षण (Rain water harvesting)

कुएँ (Wells) – ये दो प्रकार के होते है

• खुदे हुए कुएँ या खोदे कुएँ (Dug well)
• नलकूप (Tube well)

(i) खुदे हुए कुएँ या खोदे कुएँ (Dug well) पानी बेलों के उपयोग या पम्प द्वारा निकाला जाता है

(ii) नलकूप (Tube well) – नलकूप में बहुत नीचे पानी होता है। मोटर पम्प के इस्तेमाल से पानी ऊपर लाया जाता है। जिससे सिंचाई होती है।

(b) नहरें (Canals) – इनमें पानी एक या अधिक जलाशयों अथवा नदियों से आता है। मुख्य नहर से शाखाएँ निकलती हैं जो विभाजित होकर खेतों में सिंचाई करती है।

(c) नदी उन्नयन प्रणाली (River life system) – इस प्रणाली में पानी सीधे नदियों से ही पम्प द्वारा इकट्ठा कर लिया जाता है। इस सिंचाई का उपयोग नदियों के पास वाली खेती में लाभदायक रहता है।

(d) तालाब – आपत्ति के समय प्रयोग में आने वाले वे छोटे तालाब, छोटे जलाशय होते हैं, जो छोटे से क्षेत्र में पानी का संग्रह करते हैं।

(e) वर्षा जल संग्रहण – वर्षा के पानी को सीधे किसी टैंक में सुरक्षित इकट्ठा कर लिया जाता है बाद में इस्तेमाल के लिये वह प्रक्रिया जिसमें पृथ्वी पर गिरने वाले वर्षा जल को रोका जाता है और भूमि मे रिसने के लिए तैयार किया जाता है। वर्षा जल संग्रहण कहलाती हैं। ये मृदा अपरदन को भी दूर करता है।

फसल पैटर्न – फसल की वृद्धि हेतु अलग-अलग प्रकार के तरीके अपनाए जाते हैं जिससे कि नुकसान कम से कम तथा उपज अधिक से अधिक हो। फसल पैटर्न में भी उत्पादकता बढ़ती है।

• मिश्रित खेती
• अंतराफसलीकरण
• फसल चक्र

(a) मिश्रित खेती – दो या दो से अधिक फसल को एक साथ उगाना (एक ही भूमि में) मिश्रित खेती कहलाती है। 

उदाहरण – गेहूँ और चना, गेहूँ और सरसों, मूँगफली तथा सूरजमुखी। मिश्रित फसल की खेती करने से हानि होने की संभावना कम हो जाती है क्योंकि फसल के नष्ट हो जाने पर भी फसल उत्पादन की आशा बनी रहती है।

(b) अंतराफसलीकरण – अंतराफसलीकरण में दो या दो से अधिक फसलों को एक साथ एक ही खेत में निर्दिष्ट पैटर्न पर उगाते हैं। कुछ पंक्तियों में एक प्रकार की फसल तथा उनके एकांतर में स्थित दूसरी पंक्तियों में दूसरी प्रकार की फसल उगाते हैं।

उदाहरण – सोयाबीन + मक्का, बाजरा + लोबिया

(c) फसल चक्र – किसी खेत में क्रमवार पूर्व नियोजित कार्यक्रम के अनुसार विभिन्न फसलों के उगाने को फसल चक्र कहते हैं। अगर बार-बार एक ही खेत में एक ही प्रकार की खेती की जाती है तो एक ही प्रकार के पोषक तत्व मृदा से फसल द्वारा प्राप्त किये जाते हैं। बार-बार मृदा से पोषक तत्व फसल द्वारा प्राप्त करने पर एक ही प्रकार के पोषक तत्व समाप्त हो जाते हैं। अतः हमें अलग-अलग प्रकार की खेती करनी चाहिये।

विशेषताएँ

• मिट्टी की गुणवत्ता बनी रहती है।
• ये कीट तथा खरपतवार को नियन्त्रित रखते हैं।
• एक बार मिट्टी को उपजाऊ बनाने के बाद कई प्रकार की फसल सुचारु रूप से उगाई जा सकती है

फसल सुरक्षा प्रबन्धन – रोग कारक जीवों तथा फसल को हानि पहुँचाने वाले कारकों से फसल को बचाना ही फसल संरक्षण है। इस प्रकार की कठिनाइयों से बचने के लिये नीचे दिये गये तरीके इस्तेमाल किये जाते हैं।

• फसल की वृद्धि के समय
• अनाज के भण्डारण के समय

पीड़कनाशी – जीव जो फसल को खराब कर देते हैं। जिससे वह मानव उपयोग के लायक नहीं रहती, पीड़क कहलाते हैं। पीड़क कई प्रकार के होते हैं।

• खरपतवार (Weeds)
• कीट (Insects)
• रोगाणु (Pathogens)

खरपतवार – फसल के साथ-साथ उगने वाले अवांछनीय पौधे ‘खरपतवार’ कहलाते हैं। उदाहरण :- जेन्थियम, पारथेनियम। इनकी खरपतवार नाशी रसायन का इस्तेमाल कर या हाथो से छुटकारा पाया जा सकता है।

कीट – कीट विभिन्न प्रकार से फसल तथा पौधों को नुकसान पहुँचाते हैं। वे (कीट) जड़, तना तथा पत्तियों को काट देते हैं। पौधों के विभिन्न भागों के कोश रस को चूसकर नष्ट कर देते हैं। इनको कीटनाशी रसायन का इस्तेमाल कर नष्ट किया जा सकता है जैसे DDT 

रोगाणु – कोई जीव जैसे बैक्टीरिया, फंगस तथा वायरस जो पौधों में बीमारी पैदा करते हैं। रोगाणु कहलाते हैं। ये फसल में पानी, हवा, तथा मिट्टी द्वारा पहुँचते हैं। इनसे भी उचित रसायन का इस्तेमाल कर छुटकारा पाया जा सकता है।

अनाज का भण्डारण – पूरे साल मौसम के अनुकूल भोजन प्राप्त करने के लिये, अनाज को सुरक्षित स्थान पर रखना अनिवार्य है, परन्तु भण्डारण के समय अनाज कितने ही कारणों से खराब और व्यर्थ हो जाता है। जैसे – जैविक कारक, अजैविक कारक

जैविक कारक – जीवित प्राणियों के द्वारा जैसे – कीट, चिड़िया, चिचडी, बैक्टीरिया, फंगस (कवक)।

अजैविक कारक – निर्जीव कारकों द्वारा जैसे नमी, तापमान में अनियमितता आदि। ये कारक फसल की गुणवत्ता तथा भार में कमी, रंग में परिवर्तन तथा अंकुरण के निम्न क्षमता के कारण हैं। अनाज को सुरक्षित भंडारग्रह तक पहुँचाने से पहले अनाज को सुरक्षित रखने के विभिन्न उपाय जो की भविष्य में इस्तेमाल हो, वे निम्नलिखित है-

• सूखाना
• सफाई का ध्यान रखना
• धूमक
• भंडारण उपकरण

सूखाना – सूरज की रोशनी में अच्छी तरह से सूखा लेने चाहिये

सफाई का ध्यान रखना – अनाज में कीड़े नहीं होने चाहिये, गोदामों को अच्छी तरह से साफ कर लेना चाहिये। छत, दीवार तथा फर्श में कहीं अगर दरार है तो उनकी अच्छी तरह से मरम्मत कर देनी चाहिये।

धूमक – गोदाम तथा भंडारण गृह पर जिस बीज में कवक नाशी व कीटनाशी का प्रयोग करना आवश्यक होता है।

भंडारण उपकरण – कुछ भंडारण उपकरण जैसे पूसाधानी, पूसा कोठार, पंत कुठला आदि उपकरण एवं संरचनाएँ अपनानी चाहिये। साफ तथा सूखे दाने को प्लास्टिक बैग में सुरक्षित रखना चाहिये। तो इनमें वायु, नमी, तापक्रम का प्रभाव नहीं होता बाहर के वातावरण का कोई प्रभाव नहीं होता।

कार्बनिक खेती – कीटनाशक तथा उर्वरक का प्रयोग करने के अपने ही दुष्प्रभाव हैं। ये प्रदूषण फैलाते हैं लम्बे समय के लिये मिट्टी की उपजाऊ गुणवत्ता को कम करते हैं जो हम अनाज, फल तथा सब्जियाँ प्राप्त करते हैं उनमें हानिकारक रसायन मिले होते हैं। ऑरगेनिक खेती में न या न के बराबर कीटनाशक तथा उर्वरक का इस्तेमाल किया जाता है।

पशुपालन – घरेलू पशुओं को वैज्ञानिक ढंग से पालने पशुपालन को कहते हैं। ये पशुओं के भोजन, आवास, नस्ल सुधार, तथा रोग नियंत्रण से सम्बन्धित है।

पशु कृषि – पशु कृषि का मुख्य उद्देश्य

1. दुग्ध प्राप्त करने के लिए
2. कृषि कार्य करने के लिए
3. खेत को जोतने के लिए
4. यातायात में प्रयोग के लिए

पशु पालन के मुख्य दो उदेश्य

1. दूध देने वाली मादा
2. कृषि कार्य के लिए पशु

दूध देने वाली मादा – इनमें दूध देने वाले जानवर सम्मिलित होते हैं जैसे – गाय, भैस।

कृषि कार्य के लिए पशु – ये जंतु जो दुग्ध नहीं देते तथा कृषि में कार्य करते है जैसे – हल चलाना, सींचाई, बोझा ढोना

पशु की देखभाल

सफाई

• पशुओं की सुरक्षा के लिये हवादार तथा छायादार स्थान होना चाहिए।
• पशुओं की चमड़ी की लगातार कंघी ब्रशिंग होनी चाहिये।
• पानी इकट्ठा न हो इसके लिये ढलान वाले पशु आश्रय होने चाहिये।

 भोजन

• भूसे में मुख्य रूप से फाइबर (रेशा) होना चाहिये।
• गाढ़ा प्रोटीन होना चाहिये।
• दूध की मात्रा बढ़ाने के लिये खाने में विटामिन तथा खनिज होने चाहिये।

बीमारी से बचाव

पशुओं की मृत्यु हो सकती है, जो दुग्ध उत्पादन को प्रभावित कर सकते हैं। एक स्वस्थ पशु नियमित रूप से खाता है और ठीक ढंग से बैठता व उठता है। पशु के बाह्य परजीवी तथा अंतः परजीवी दोनों ही होते हैं। बाह्य परजीवी द्वारा त्वचा रोग हो सकते हैं। अतः परजीवी, अमाशय, आँत तथा यकृत को प्रभावित करते हैं।

बचाव – रोगों से बचाने के लिये पशुओं को टीका लगाया जाता है। ये रोग बैक्टीरिया तथा वाइरस के कारण होते हैं।

कुक्कुट (मुर्गी) पालन – अण्डे तथा कुक्कुट मास के उत्पादन को बढ़ाने के लिये मुर्गी पालन किया जाता है। दोनों हमारे भोजन में प्रोटीन की मात्रा बढ़ाते हैं।

ब्रोलर्स – जब चूजों को माँस के लिये पाला जाता है, तो उसे ब्रोलर्स कहते हैं। ये जन्म के 6.8 हफ्तों के अन्दर इस्तेमाल किये जाते हैं।

लेअर

जब कुक्कुट को अण्डों के लिये पाला जाता है उसे लेअर कहते हैं। ये जन्म के 20 हफ्तो बाद इस्तेमाल किये जाते हैं, जब ये लैंगिक परिपक्वता के लायक हो जाते हैं, जिसके फलस्वरूप अण्डे प्राप्त होते हैं।

मुर्गियों की निम्नलिखित विशेषताओं के कारण संकरण करके नई – नई किस्में विकसित की जाती हैं चूजों की संख्या अधिक व किस्म अच्छी होती है-

• कम खर्च में रख – रखाव।
• छोटे कद के ब्रोलर माता – पिता द्वारा चूजों के व्यावसायिक उत्पादन हेतु।
• गर्मी अनुकूलन क्षमता।
• उच्च तापमान को सहने की क्षमता।

मछली उत्पादन – मासाहारी भोजन में मछली प्रोटीन का एक अच्छा स्रोत, है। मछली का उत्पादन दो प्रकार से होता है।

(1) पंखयुक्त मछलियाँ (Finned Fish production or True Fish production) – स्वच्छ जल में कटला, रोहू, मृगल, कॉमन कार्प का सवर्धन किया जाता है।

(2) कवचीय मछलियाँ (Unfinned fish production) – जैसे – प्रॉन, मोलस्का सम्मिलित है। मछलियों को पकड़ने के विभिन्न तरीकों के आधार पर मछलियाँ प्राप्त करने के दो प्रकार हैं- प्राकृतिक स्रोत (जिसे मछली पकड़ना कहते हैं) विभिन्न प्रकार के जलीय स्रोतों से प्राकृतिक जीवित मछलियाँ पकड़ी जाती हैं।

(i) जल संवर्धन (Acqua culture) – समुद्री संवर्धन में मछली प्राप्त करना । यह समुद्र तथा लैगून में किया जाता है। कम खर्च करके अधिक मात्रा में इच्छित मछलियों का जल में संवर्धन किया जाता है,इस जल संवर्धन कहते हैं।

(ii) भविष्य में समुद्री मछलियों का भंडार (store) कम होने की अवस्था में इन मछलियों की पूर्ति संवर्धन के द्वारा हो सकती है। इस प्रणाली को समुद्री संवर्धन (मेरीकल्चर) कहते हैं।

स्रोत मछली पालन या (मछली सवंर्धन) (Culture fishing)

(i) समुद्री मत्स्यकी (Marine Fishing)- समुद्री मत्स्यकी के अंतर्गत मछली संवर्धन, तालाबों, नदियों तथा जल भराव में किया जा सकता है। सर्वाधिक समुद्री मछलियाँ प्रॉमफ्रेट मैकर्स, टुना सारजइन तथा बोबेडक है। कुछ आर्थिक महत्व वाली समुद्री मछलियों का समुद्री जल में संवर्धन भी किया जाता है। इनमें प्रमुख है, मुलेट, भेटकी, पर्लस्पाट (पंखयुक्त मछलियाँ), कवचीय मछलियाँ जैसे झींगा (Prawn ) मस्सल तथा ऑएस्टर। सैटेलाइट तथा प्रतिध्वनि, ध्वनित्र से खुले समुद्र में मछलियों के बड़े समूह का पता लगाया जा सकता है।

(ii) अंतः स्थली मत्स्यकी (Inland Fishing) – मछली संवर्धन ताजे जल में होता है जैसे तालाब, नदियाँ, नाले तथा जल भराव स्थल पर मछली संवर्धन (Composite fish Culture) (मिश्रित मछली सवर्धन तंत्र) एक ही तालाब में लगभग 5 से 6 प्रकार की मछलियों का संवर्धन। इनका चयन इस प्रकार किया जाता है कि ये भोजन के लिये प्रतिस्पर्ध नहीं करतीं। क्योंकि इनके आहार भिन्न-भिन्न होते हैं।

उदाहरण – कटला (Catla) – जल की सतह से भोजन लेती है।

रोहू (Rohu) – तालाब के मध्य क्षेत्र से अपना भोजन लेती है।
मृगल (Mrigals) – कॉमन कार्प तालाब की तली से भोजन लेती है।
लाभ – अधिक पैदावार।

समस्याएँ – समस्या यह है कि इनमें कई मछलियाँ केवल वर्षा ऋतु में ही जनन करती हैं। जिसके फलस्वरूप अधिकतर मछलियाँ तेजी से वृद्धि नहीं कर पाती। इस समस्या से बचने के लिये हार्मोन का उपयोग किया जाता है ताकि किसी भी समय मछली जनन के लिये तैयार हो।

मधुमक्खी पालन – यह वह अभ्यास है जिसमें मधुमक्खियों की कॉलोनी को बड़े पैमाने पर रखा व संभाला जाता है और उनकी देखभाल करते हैं, ताकि बड़ी मात्रा में शहद प्राप्त हो सके अधिकतर किसान मधुमक्खी पालन अन्य आय स्रोत के लिये इस्तेमाल करते हैं। मधुक्खी पालन या ऐपिअरीस अतरिक्त आय का अच्छा विकल्प है।

मधुवाटिका ऐपिअरी – ऐपिअरी एक ऐसी व्यवस्था है जिससे अधिक मात्रा में मधुमक्खी के छत्ते मनचाही जगह पर अनुशासित तरीके से इस प्रकार रखे जाते हैं कि इससे अधिक मात्रा में मकरंद तथा पराग एकत्र हो सकें।

कुछ भारतीय मधुमक्खी के प्रकार निम्नलिखित हैं

1. एपिस सेरेना इनडिंका सामान्य भारतीय मधुमक्खी।
2. एपिस डोरसेटा (एक शैल मधुमक्खी), एपिस फ्लोरी (छोटी मधुमक्खी)

यूरोपियन मधुमक्खी भी भारत में इस्तेमाल की जाती है इसका नाम है एपिस मेलिफेरा। इस मधुमक्खी के निम्न लाभ हैं

1. ज्यादा शहद एकत्रित करने की क्षमता।
2. जल्दी प्रजनन क्षमता
3. कम डंक मारती है।
4. वे लम्बे समय तक निर्धारित छत्ते में रह सकती है।

शहद

• यह एक गाढ़ा, मीठा तरल पदार्थ है।
• यह औषधीय प्रयोग में लाया जाता है तथा शर्करा के रूप में भी प्रयोग होता है।
• इसे ताकत (ऊर्जा) प्राप्त करने के लिये भी इस्तेमाल किया जाता है।

मधुमक्खी का चरागाह – मधुमक्खियाँ जिन स्थानों पर मधु एकत्रित करती हैं उसे मधुमक्खी का चरागाह कहते हैं। मधुमक्खी पुष्पों से मकरन्द तथा पराग एकत्र करती हैं। चरागाह के पुष्पों की किस्में शहद के स्वाद तथा गुणवत्ता को प्रभावित करती है। उदाहरण – कश्मीर का बादाम शहद बहुत स्वादिष्ट होता है।

फ़सल के प्रकार

खरीफ फसल – ये फसल बरसात के मौसम में उगती है। (जून से अक्टूबर तक) उदाहरण – काला चना, हरा चना, चावल, सोयाबीन, धान।
रबी फसल – ये फसलें नवम्बर से अप्रैल तक के महीने में उगाई जाती है इसलिये इन्हें सर्दी की फसल भी कहते हैं। उदाहरण – गेहूँ, चना, मटर, सरसों, अलसी, रबी फसलें हैं।

प्रश्न 1. खाद्य समूह क्यों होते हैं?

क्योंकि वे समान मात्रा में प्रमुख पोषक तत्व प्रदान करते हैं।

प्रश्न 2. 3 प्रकार के खाद्य पदार्थ कौन से हैं?

3 प्रकार के खाद्य पदार्थ है कार्बोहाइड्रेट, वसा और प्रोटीन

प्रश्न 3. 5 खाद्य समूह कौन से हैं?

फल, सब्जियां, अनाज, प्रोटीन खाद्य पदार्थ और डेयरी हैं।

प्रश्न 4. 7 प्रकार के खाद्य पदार्थ कौन से हैं?

पेय, कार्ब्स, फल और सब्जियां, डेयरी, मांस/मछली/अंडे, वसा, और उच्च चीनी वाले खाद्य पदार्थ।

प्रश्न 5. खाद्य पदार्थ कितने प्रकार के होते हैं?

खाद्य पदार्थ मुख्यत 5 प्रकार के होते है।

प्रश्न 6. पोषण कितने प्रकार के होते हैं?

पोषण दो प्रकार के होते है।

प्रश्न 7. पोषण दो प्रकार के कौन – कौन से होते हैं?

ऑटोट्रॉफ़िक मोड और दूसरा हेटरोट्रॉफ़िक मोड।

प्रश्न 8. सबसे अच्छा भोजन क्या है?

दाल-चावल को दुनिया के वैज्ञानिकों ने सबसे अच्छा भोजन माना है। और इसे बनाना भी आसान होता है और पचाना भी।

प्रश्न 9. भोजन के 2 मूल स्रोत क्या है?

भोजन के 2 मूल स्रोत है पौधे एवं जन्तु

प्रश्न 10. भारत का राष्ट्रीय भोजन कौन सा है?

भारत का राष्ट्रीय भोजन है खिचड़ी

प्रश्न 11. 1 दिन में कितनी बार भोजन करना चाहिए?

​1 दिन में 3 बार भोजन करना चाहिए।

NCERT Solution Class 9th विज्ञान Notes in Hindi

Chapter – 1 हमारे आस-पास के पदार्थ
Chapter – 2 क्या हमारे आस-पास के पदार्थ शुद्ध हैं
Chapter – 3 परमाणु एवं अणु
Chapter – 4 परमाणु की संरचना
Chapter – 5 जीवन की मौलिक इकाई
Chapter – 6 ऊतक
Chapter – 7 गति
Chapter – 8 बल तथा गति के नियम
Chapter – 9 गुरुत्वाकर्षण
Chapter – 10 कार्य तथा ऊर्जा
Chapter – 11 ध्वनि
Chapter – 12 खाद्य संसाधनों में सुधार

NCERT Solution Class 9th विज्ञान Question Answer in Hindi

Chapter – 1 हमारे आस-पास के पदार्थ
Chapter – 2 क्या हमारे आस-पास के पदार्थ शुद्ध हैं
Chapter – 3 परमाणु एवं अणु
Chapter – 4 परमाणु की संरचना
Chapter – 5 जीवन की मौलिक इकाई
Chapter – 6 ऊतक
Chapter – 7 गति
Chapter – 8 बल तथा गति के नियम
Chapter – 9 गुरुत्वाकर्षण
Chapter – 10 कार्य तथा ऊर्जा
Chapter – 11 ध्वनि
Chapter – 12 खाद्य संसाधनों में सुधार

NCERT Solution Class 9th विज्ञान MCQ in Hindi

Chapter – 1 हमारे आस-पास के पदार्थ
Chapter – 2 क्या हमारे आस-पास के पदार्थ शुद्ध हैं
Chapter – 3 परमाणु एवं अणु
Chapter – 4 परमाणु की संरचना
Chapter – 5 जीवन की मौलिक इकाई
Chapter – 6 ऊतक
Chapter – 7 गति
Chapter – 8 बल तथा गति के नियम
Chapter – 9 गुरुत्वाकर्षण
Chapter – 10 कार्य तथा ऊर्जा
Chapter – 11 ध्वनि
Chapter – 12 खाद्य संसाधनों में सुधार

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