NCERT Solutions Class 9th Hindi Grammar वर्ण-विच्छेद
Textbook | NCERT |
Class | Class 9th |
Subject | Hindi |
Chapter | हिन्दी व्याकरण (Grammar) |
Grammar Name | वर्ण – विच्छेद |
Category | Class 9th Hindi हिन्दी व्याकरण वा प्रश्न अभ्यास |
Medium | Hindi |
Source | Last Doubt |
NCERT SolutionsClass 9th Hindi Grammar वर्ण – विच्छेद कैसे किया जाता है? वर्ण विच्छेद क्या है? वर्ण का संधि विच्छेद क्या होगा? वर्णन का वर्ण विच्छेद क्या होगा? सूरज का वर्ण विच्छेद क्या होगा? पर्वत का वर्ण विच्छेद क्या है? कमल शब्द में कितने वर्ण है? सूर्य का वर्ण विच्छेद क्या है? कृष्ण का वर्ण विच्छेद क्या होगा? रंग का वर्ण विच्छेद क्या है? मित्र का वर्ण विच्छेद क्या है? रुमाल का वर्ण विच्छेद क्या होगा? वर्षा का वर्ण विच्छेद क्या है? वृक्ष का वर्ण विच्छेद क्या है? अमृत का वर्ण विच्छेद क्या है? गुरु का वर्ण विच्छेद क्या होगा?आदि के बारे में पढ़ेंगे और जानने के साथ हम NCERT Solutions Class 9th Hindi Grammar (व्याकरण) वर्ण विच्छेद एवं व्याकरण करेंगे। |
NCERT SolutionsClass 9th Hindi Grammar वर्ण-विच्छेद
हिन्दी व्याकरण
वर्ण – विच्छेद
वर्ण – भाषा की वह छोटी से छोटी ध्वनि जिसके और छोटे खंड नहीं किए जा सकते हैं, उसे ‘वर्ण’ कहते हैं। अ, क्, प्, ट्, म्, ह आदि वर्ण हैं। वर्णों के और टुकड़े नहीं किए जा सकते हैं। ये भाषा की सबसे छोटी इकाई हैं, जो हमारे मुख से निकली हुई ध्वनियों के लिखित रूप होते हैं, इन्हें ही वर्ण कहा जाता है।
वह छोटी से छोटी ध्वनि जिसके और छोटे टुकड़े न किए जा सकें, उसे वर्ण कहते हैं। वर्ण-विच्छेद-किसी शब्द की रचना में जिन वर्णों का प्रयोग होता है, उन वर्गों को अलग-अलग करना वर्ण-विच्छेद कहलाता है। जैसे –
अनूप विद्यालय जाएगा-वाक्य के शब्दों का वर्ण-विच्छेद करें तो निम्नलिखित वर्ण मिलते हैं –
अनूप – अ + न् + ऊ + प् + अ,
विद्यालय – + व् + इ + द् + य् + आ + ल् + अ + य् + अ,
जाएगा – ज् + आ + ए + ग् + आ
वर्णमाला- वर्णों के क्रमबद्ध समूह को ‘वर्णमाला’ कहते हैं।
हिंदी वर्णमाला में निम्नलिखित वर्ण हैं –
स्वर – अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ।
अयोगवाह – अं, अः
विसर्ग – अः
हल चिह्न या हलंत – हम जानते हैं कि व्यंजन वर्णों का उच्चारण स्वर की मदद के बिना नहीं किया जा सकता है। किसी व्यंजन के नीचे हलंत ( ू ) लगा देने से व्यंजन का स्वर रहित रूप प्राप्त होता है। ये व्यंजन स्वर के बिना होते हैं; जैसे- क्+अ-क,ख.अख, ग्+अग आदि।
अन्य वर्ण ‘ड’ और ‘ढ’- देखने में दोनों वर्ण ‘ड’ और ‘ढ’, ‘ड’ और ‘ढ’ के समान ही लगते हैं, परंतु इनके उच्चारण में पर्याप्त अंतर होता है। हाँ, एक बात अवश्व ही ध्यान रखने की है कि ‘ड’ और ‘ढ’ शब्द के प्रारंभ में नहीं आते हैं। इनसे कोई भी शब्द आरंभ नहीं होता है। ये शब्दों के बीच में या अंत में ही आते हैं। इसके विपरीत ‘ड’ और ‘ढ’ शब्द के आरंभ, मध्य या अंत में अर्थात् कहीं भी आ सकते हैं। जैसे –
बड़ा, घड़ा, घड़ियाल
डमरू, गुड्डी, हड्डी
दाढ़ी, दढ़ियल, बुढ़िया
ढक्कन, गड्ढा, बुड्ढा
संयुक्त व्यंजन – ‘क्ष’, ‘त्र’, ‘ज्ञ’ और ‘श्र’ को संयुक्त व्यंजन कहा जाता है, क्योंकि ये वर्ण एक से अधिक वर्गों के मेल से बने हैं; जैसे –
क्ष – क् + ष् + अ – क्षत्रिय, क्षमा, कक्षा, परीक्षा, तक्षक, तक्षशिला, लक्ष्मी आदि।
त्र – त् + र् +अ – त्रिशूल, त्रिफला, पत्र, त्रिनेत्र, पत्रिका, पत्रोत्तर आदि।
ज्ञ – ज् + ञ् + अ – यज्ञ, विज्ञ, विज्ञान, ज्ञान, संज्ञान, प्रतिज्ञा, अज्ञात आदि।
श्र – श् + र् + अ – श्रमजीवी, श्रमिक, श्री, आश्रय, आश्रम, विश्राम, श्रोता, श्रवण।
वर्गों के दो भेद हैं
1. स्वर – जो वर्ण स्वतंत्र रूप से बोले जाते हैं तथा जिनके उच्चारण में हवा (वायु) बिना रुकावट के मुँह से बाहर आती है, उन्हें स्वर कहते हैं। स्वर स्वतंत्र ध्वनियाँ हैं, जिनकी संख्या 11 है।
स्वर के भेद-उच्चारण में लगने वाले समय के आधार पर इन्हें तीन वर्गों में बाँटा जा सकता है –
(क) ह्रस्व स्वर – जिस स्वरों के उच्चारण में कम समय लगता है, उन्हें ‘ह्रस्व स्वर’ कहते हैं। इनकी संख्या 4 है। ये स्वर हैं – अ, इ, उ तथा ऋ।
(ख) दीर्घ स्वर – जिन स्वरों के उच्चारण में ह्रस्व स्वरों के उच्चारण में लगने वाले समय का दुगुना समय लगता है। उन्हें ‘दीर्घ स्वर’ कहते हैंc इनकी संख्या 7 है। ये स्वर हैं-आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ तथा औ।
(ग) प्लत स्वर – जिन स्वरों के उच्चारण में दीर्घ स्वरों के उच्चारण में लगने वाले समय का दुगुना समय लगता है। उन्हें ‘प्लुत स्वर’ कहते हैं। इनका प्रयोग प्रायः किसी को पुकारने के लिए किया जाता है। जैसे-ओम्।
स्वर | मात्रा | स्वर के प्रयोग युक्त शब्द |
अ इ उ ॠ ऐ औ | X ि ु ृ ै ौ | अमर, अनुज दिन, रवि कुमार, कुशल पृथ्वी, कृपा कैलाश, पैसा कौशल, चौराहा |
2. व्यंजन – जिन वर्णों का उच्चारण स्वर की मदद से किया जाता है तथा जिनके उच्चारण में वायु मुँह के विभिन्न अवयवों से रगड़ खाकर निकलती है। उन्हें व्यंजन कहते हैं।
उच्चारण स्थान के आधार पर व्यंजन के तीन भेद होते हैं –
(क) स्पर्श व्यंजन – जिन वर्णों के उच्चारण में जिह्वा (जीभ) मुख के विभिन्न भागों को स्पर्श करती हुई निकलती है, उन्हें स्पर्श व्यंजन कहते हैं। इनकी संख्या 25 है। प्रत्येक वर्ग के पहले वर्ण के नाम पर इन्हें पाँच वर्गों में बाँटा गया है –
‘क’ वर्ग ‘च’ वर्ग ‘ट’ वर्ग ‘त’ वर्ग ‘प’ वर्ग | क् ख् ग् घ् ङ् च् छ् ज् झू ञ् ट् ठ् द् ढ् ण् ड् ढ् त् थ् द् ध् न् प् फ् ब् भ् म् |
(ख) अंतस्थ व्यंजन – जिन वर्णों का उच्चारण स्वर और व्यंजन वर्गों के मध्य का-सा लगता है, उन्हें अंतस्थ व्यंजन कहते हैं। य, र्, ल् और व् अंतस्थ व्यंजन हैं। इनकी संख्या चार है।
(ग) ऊष्म व्यंजन – जिन वर्गों के उच्चारण में ऊष्म (गरम) वायु मुँह से बाहर निकलती है, उन्हें ऊष्म व्यंजन कहते हैं। श, छ, स् और ह ऊष्म व्यंजन हैं। इकी संख्या चार है। अनुस्वार- इसका चिह्न (ां) है। कुछ स्थितियों को छोड़कर पंचमाक्षर के स्थान पर इसका प्रयोग किया जाता है। जैसे-चंदन, बंदर, कंगन आदि।
अनुनासिक-इसका चिह्न (ाँ) है। जब स्वरों का उच्चारण नाक तथा मुख दोनों से एक साथ होता है। जैसे – आँख, गाँव, पाँव, ठाँव आदि।
ध्यान दें – जब शिरोरेखा के ऊपर मात्रा होती है तो इसका प्रयोग अनुस्वार जैसा ही किया जाता है; जैसे – मैं, गोंद, हैं आदि।
व्यंजन द्वित्व और संयुक्ताक्षर
संयक्त व्यंजन – जब दो या दो से अधिक व्यंजनों का मेल होता है, तो उसे संयुक्त व्यंजन कहते हैं।
क्ष- क् + ष
त्र – त् + र
ज्ञ – ज् + ञ
श्र – श् + र
व्यंजन द्वित्व – जब एक व्यंजन ध्वनि अपने समान ही अन्य व्यंजन ध्वनि से जुड़ती है, तो उसे व्यंजन द्वित्व या द्वित्व व्यंजन कहते हैं। जैसे –
च् + च = च्च – बच्चा
ट् + ट = ट्ट – लटू
द् + द = द्द -कद्दू
त् + त = त्त -पत्ता
संयुक्ताक्षर बनाने के नियम
(i) खड़ी पाई वाले वर्णों की पाई हटाकर –
स्वर | मात्रा | स्वर के प्रयोग युक्त शब्द |
अ | X | अमर, अनुज |
इ | ि | दिन, रवि |
उ | ु | कुमार, कुशल |
ऋ | ृ | पृथ्वी, कृपा |
ऐ | ै | कैलाश, पैसा |
औ | ौ | कौशल, चौराहा |
स्वर | मात्रा | स्वर के प्रयोग युक्त शब्द |
आ | T | दाम, काम |
ई | ी | दीन, मीन |
ऊ | ू | फूल, मूल |
ए | े | मेला, चेला |
ओ | ो | कोयल, मोर |
(ii) ‘क’ और ‘फ’ के मेल से संयुक्ताक्षर बनाते समय इनके आगे का भाग (F) हटा दिया जाता है। जैसे –
वाङ्मय – ङ् + म
लड्डू – ड् + डू
लटू – ट् + टू
गड्ढा – ड् + ढा
कंठ्य – ठ् + य
असह्य – ह् + य
शब्द का वर्ण-विच्छेद
किसी शब्द या ध्वनि के समूह के वर्गों को अलग – अलग लिखना वर्ण-विच्छेद कहलाता है। आइए, वर्ण-विच्छेद के कुछ उदाहरण देखते हैं –
सड़क – स् + अ + डू + अ + क् + अ
भक्त – भ् + अ + क् + त् + अ
महात्मा – म् + अ + ह् + आ + त् + म् + आ
कविता – क् + अ + व् + इ + त् + आ
प्रयोग – प + र् + अ + य् + ओ + ग् + अ
अद्भुत – अ + द् + भ् + उ + त् + अ
कलम – क् + अ + ल् + अ + म् + अ
पाठशाला – प् + आ + ठ् + अ + श् + आ + ल् + आ
आराधना- आ + र् + आ + ध् + अ + न् + आ
प्राकृतिक – प् + र् + आ + क् + ऋ + त + इ + क् + अ
सर्वमान्य – स् + अ + र् + व् + अ + म् + आ + न् + य् + अ
अर्जुन – अ + र् + ज् + उ + न् + अ
परिश्रम – प् + अ + र + इ + श् + र् + अ + म् + अ
क्षत्रिय – क् + ष् + अ + त् + र् + इ + य् + अ
परिक्रमा – प् + अ + र् + इ + क् + र् + अ + म् + आ
क्षमा – क् + ष् + अ + म् + आ
विज्ञान – व् + इ + ज् + ञ् + आ + न् + अ
गुरुद्वारा – ग् + उ + र् + उ + द् + व् + आ + र् + आ
आइए इन्हें भी जानें
वर्ण – विच्छेद करते समय निम्नलिखित बातों को जानना आवश्यक है –
(i) ‘रि’ और ‘ऋ’ के रूप –
परिचय – प् + अ + र् + इ + च् + अ + य् + अ
रिषभ – र् + इ + ष् + अ + भ् + अ ।
पृथक – प् + ऋ + थ् + अ + क् + अ
कृपा – क् + ऋ + प् + आ
(ii) ‘र’ और ‘ ‘ तथा ‘ ‘ की मात्राएँ –
रुस्तम – र् + उ + स् + त् + अ + म् + अ
रुपया – र् + उ + प् + अ + य् + आ
रूपा – र् + ऊ + प् + आ
रूठना – र् + ऊ + ठ् + अ + न् + आ
(iii) ‘ह’ के विभिन्न संयुक्त –
रूपह्रस्व – ह् + र + अ + स् + व् + अ
हृदय – ह् + ऋ + द् + अ + य् + अ
प्रह्लाद – प् + र् + अ + ह् + ल् + आ + द् + अ
चिह्न – च् + इ + ह् + न् + अ
(iv) ‘द’ के संयुक्त –
रूपद्वार – द् + व् + आ + र् + अ
द्रव्य – द् + र् + अ + व् + य् + अ
उद्देश्य – उ + द् + द् + ए + श् + य् + अ
विरुद्ध – व् + इ + र् + उ + द् + ध् + अ
(v) ‘इ’ की मात्रा – शब्दों में ‘इ’ की मात्रा ‘f’ लिखी पहले जाती है और बोली बाद में इसलिए शब्दों का वर्ण-विच्छेद करतेसमय ‘इ’ की मात्रा को बाद में लगाया जाता है। जैसे –
(vi) अनुस्वार में लगे बिंदु को (‘) जानना –
अंगूर – अं + ग् + ऊ + र् + अ
गंगा – ग् + अ + ङ् + ग् + आ
कंबल- क् + अं(अ + म्) + ब् + अ + ल् + अ
पम्प – प् + अ + म् + प् + अ
चंद्र – च् + अं(अ + न्) + द् + र् + अ
ठंडक – ठ् + अं + ड् + अ + क् + अ
चंदन – च् + अं(अ + न्) + द् + अ + न् + अ
चंचु – च् + अं(अ + ञ्) + च् + उ
ठंडा – ठ् + अं(अ + ण्) + ड् + आ
वर्ण-विच्छेद के उदाहरण –
अंग – अं + ग् + अ
अंधा – अं+ ध् + आ
अंग्रेज़ – अं+ ग् + र् + ए + ज् + अ
अंगार – अँ + ग् + आ + र
अचला- अ + च् + अ + ल् + आ
अधुना – अ + ध् + उ + न् + आ
अक्षर – अ + क् + ष् + अ + र् + अ
अवश्य – अ + व् + अ + श् + य् + अ
अग्नि – अ + ग् + न् + इ
अमृत – अ + म् + ऋ + त् + अ
अप्रतिभ – अ + प् + र् + अ + त् + इ + भ् + अ
अभ्यागत – अ + भ् + य् + आ + ग् + अ + त् + अ
आश्रम – आ + श् + र् + अ + म् + अ
इज़्ज़त – इ + ज् + ज् + अ + त् + अ
इस्तेमाल – इ + स् + त् + ए + म् + आ + ल् + अ
उक्ति – उ + क् + त् + इ
उच्चारण – उ + च् + च् + आ + र् + अ + ण् + अ
ऋचा – ऋ+ च् + आ
एकाग्र – ए + क् + आ + ग् + र् + अ
एकाक्षर – ए + क् + आ + क् + ष् + अ + र् + अ
औषधि – औ + ष् + अ + ध् + इ
कंगारू – क् + अं+ ग् + आ + र् + ऊ
कन्हाई – क् + अ + न् + ह् + आ + ई
कुशाग्र – क् + उ + श् + आ + ग् + र् + अ
अव्वल – अ + व् + व् + अ + ल् + अ
आकार – आ + क् + आ + र् + अ
आख्यान – आ + ख् + य् + आ + न् + अ
आक्रांत – आ + क् + र् + आ + न् + त् + अ
आजीवन – आ + ज् + ई + व् + अ + न् + अ
आज्ञा – आ + ज् + ञ् + आ
आधार – आ + ध् + आ + र् + अ
आपूर्ति – आ + प् + ऊ + र् + त् + इ
आरूढ़ – आ + र् + ऊ + द + अ
गृहस्थ – ग् + ऋ + ह् + अ + स् + थ् + अ
ग्राहक – ग् + र् + आ + ह् + अ + क् + अ
ग्राह्य – ग् + र् + आ + ह् + य् + अ
घृणित – घ् + ऋ + ण् + इ + त् + अ
घंटी – घ् + अं+ ट् + ई
चकोर – च् + अ + क् + ओ + र् + अ
चक्कर – च् + अ + क् + क् + अ + र् + अ
चक्र – च् + अ + क् + र् + अ
चतुर्थ – च् + अ + त् + उ + र् + थ् + अ
चाँदनी – च् + आँ + द् + अ + न् + ई ।
चक्षु – च् + अ + क् + ष् + उ
चित्रित – च् + इ + त् + र् + इ + त् + अ
चिह्नित – च् + इ + ह् + न् + इ + त् + अ
ज़ख्मी – ज् + अ + ख् + म् + ई
जीवन – ज् + ई + व् + अ + न् + अ
जुर्माना – ज् + उ + र् + म् + आ + न् + आ
जागृति – ज् + आ + ग् + ऋ + त् + इ
जिज्ञासा – ज् + इ + ज् + ञ् + आ + स् + आ
जिह्वा – ज् + इ + ह् + व् + आ
जुझारू- ज् + उ + झ् + आ + र् + ऊ
ज्ञापित – ज् + ञ् + आ + प् + इ + त् + अ
ज्योत्स्ना – ज् + य् + ओ + त् + स् + न् + आ
झंडा – झ् + अं+ ड् + आ
टिप्पणी – ट् + इ + प् + प् + अ + ण + ई
ठाकुर – ठ् + आ + क् + उ + र् + आ
ढूँढना – द् + ऊ + * + द + अ + न् + अ
तांत्रिक – त् + आ + अं+ त् + र् + इ + क् + अ
त्रुटि – त् + र् + उ + ट् + इ
त्वरित – त् + व् + अ + र् + इ + त् + अ
तालाब – त् + आ + ल् + आ + ब् + अ
कौतुक – क् + औ + त् + उ + क् + अ
क्रय – क् + र् + अ + य् + अ
कृत्रिम – क् + ऋ + त् + र् + इ + म् + अ
क्रोध – क् + र् + ओ + ध् + अ
क्ले श – क् + ल् + ए + श् + अ
खट्टा – ख् + अ + ट् + ट् + आ
ख्याति – ख + य् + आ + त् + इ
गाँठ – ग् + आँ + ठ् + अ
गद्य – ग् + अ + द् + य् + अ
त्रिभुज – त् + र + इ + भ् + उ + ज् + अ
तृष्णा – त् + ऋ + ष् + ण् + आ
दफ़्तर – द् + अ + फ़् + त् + अ + र् + अ
देवत्व – द् + ए + व् + अ + त् + व् + अ
दंभी – द् + अं+ भ् + ई
दृष्टि – द् + ऋ + ष् + ट् + इ
द्रवित – द् + र् + अ + व् + इ + त् + अ
दैनंदिनी – द् + ऐ + न् + अं + द् + इ + न् + ई
द्युति – द् + य् + उ + त् + इ
द्वापर – द् + व् + आ + प् + अ + र् + अ
द्वितीया – द् + व + इ + त् + ई + य् + आ
दविज – द् + व् + इ + ज् + अ
द्वैत – द् + व् + ऐ + त् + अ
ध्वजा – ध् + व् + अ + ज् + आ
ध्वस्त – ध् + व् + अ + स् + त् + अ
नंदिनी – न् + अं + द् + इ + न् + ई
नक्काशी – न् + अ + क् + क् + आ + श् + ई
निरुपम – न् + इ + र् + उ + प् + अ + म् + अ
नास्तिक – न् + आ + स् + त् + इ + क् + अ
निस्तब्ध – न् + इ + स् + त् + अ + ब् + ध् + अ
नृत्य – न् + ऋ + त् + य् + अ
पुष्प – प् + उ + ष् + प् + अ
प्रधान – प् + र् + अ + ध् + आ + न् + अ
प्राच्य – प् + र् + आ + च् + य् + अ
पृथ्वी – प् + ऋ + थ् + व् + ई
फलदार – फ् + अ + ल् + अ + द् + आ + र् + अ
फिक्र – फ् + इ + क् + र् + अ
बाँस – ब् + आँ + स् + अ
बृहद – ब् + ऋ + ह् + अ + द् + अ
ब्रह्मा – ब् + र् + अ + ह् + म् + आ
लक्षण – ल् + अ + क् + ष् + अ + ण् + अ
वत्सल – व् + अ + त् + स् + अ + ल् + अ
विरुद्ध – व् + इ + र् + उ + द् + ध् + अ
व्योम – व् + य् + ओ + म् + अ
व्रत – व् + र् + अ + त् + अ
शक्ति – श् + अ + क् + त् + इ
सृष्टि – स् + ऋ + ष् + ट् + इ
हार्दिक – ह् + आ + र् + द् + इ + क् + अ
ब्रह्मर्षि – ब् + र् + अ + ह् + म् + अ + र् + ष् + इ
भेद्य – भ् + ए + द् + य् + अ
मंगल – म् + अं+ ग् + अ + ल् + अ
मित्र – म् + इ + त् + र् + अ
मौक्तिक – म् + औ + क् + त् + इ + क् + अ
याचक – य् + आ + च् + अ + क् + अ
रूहानी – र् + ऊ + ह् + आ + न् + ई
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