NCERT Solutions Class 8th Social Science (Civics) Chapter – 8 कानून और सामाजिक न्याय (Law and Social, Justice)
Text Book | NCERT |
Class | 8th |
Subject | Social Science (नागरिक शास्त्र) |
Chapter | 8 |
Chapter Name | कानून और सामाजिक न्याय (Law and Social, Justice) |
Category | Class 8th Social Science Civics Notes in Hindi |
Medium | Hindi |
Source | Last Doubt |
NCERT Solutions Class 8th Social Science (Civics) Chapter – 8 कानून और सामाजिक न्याय (Law and Social, Justice) Notes in Hindi भारत में कितने कानून हैं?, कानून को लागू कौन करता है?, कानून का महत्व क्या है?, कानून में सबसे बड़ा कौन है?, कानून के 4 प्रकार कौन से हैं?, सबसे बड़ा कानून कौन है?, हमारे समाज में कौन से कानून हैं?, कानून के मुख्य स्रोत क्या है?, कानून कैसे होता है?, कानून बनाने की जिम्मेदारी किसकी होती है?, प्यार सबसे बड़ा क्यों होता है? |
NCERT Solutions Class 8th Social Science (Civics) Chapter – 8 कानून और सामाजिक न्याय (Law and Social, Justice)
Chapter – 8
कानून और सामाजिक न्याय
Notes
उपभोक्ता – जो व्यक्ति बाज़ार में बेचने के लिए नहीं बल्कि इस्तेमाल के लिए कोई चीज खरीदता है उसे उपभोक्ता कहा जाता है।
उत्पादक – ऐसा व्यक्ति या संस्थान जो बाज़ार में बेचने के लिए चीजें बनाता है।
कानून किसे कहते हैं – लोगों को शोषण से बचाने के लिए सरकार कुछ कानून बनाती है। इन कानूनों के जरिए इस बात की कोशिश की जाती है कि बाजार में अनुचित तौर-तरीकों पर अंकुश लगाया जाए। कानूनों को बनाने , लागू करने और और कायम रखने के लिए सरकार व्यक्तियों या निजी कंपनियों की गतिविधियों को नियंत्रित कर सकती है ताकि सामाजिक न्याय सुनिश्चित किया जा सके। संविधान में यह भी कहा गया है कि 14 साल से कम उम्र के किसी भी बच्चे को किसी कारखाने या खदान या किसी अन्य खतरनाक व्यवसाय में काम पर नही रखा जाए
सामाजिक न्याय – मजदूरों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए न्यूनतम वेतन का कानून बनाया गया है। उत्पादकों और उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने के लिए भी कानून बनाए गए हैं।
मजदूर की कीमत – भारत में श्रम सस्ता होने के कारण कई विदेशी कम्पनियाँ यहाँ आती हैं। इन कम्पनियों के अपने देश में भारत की तुलना में मजदूरी बहुत ज्यादा है। बेरोजगारी के कारण भारत के मजदूर कम वेतन पर भी अधिक घंटे काम करने को तैयार रहते हैं। भारत में इन कम्पनियों को मजदूरों के आवास पर कोई खर्च नहीं करना होता है। इससे उनकी काफी बचत होती है और मुनाफा अधिक होता है।
भारत में बेरोजगारी की विकट समस्या है। इसलिए असुरक्षित स्थितियों में भी मजदूर काम करने को तैयार होते हैं। एक मजदूर यदि काम छोड़कर चला जाता है तो उसकी जगह लेने के लिए कई बेरोजगार लाइन में खड़े रहते हैं। रोजगार देने वाले लोग मजदूरों की इस मजबूरी का फायदा उठाते हैं। इसलिए हम कह सकते हैं कि भारत में मजदूरों की कोई कीमत नहीं है।
सुरक्षा के मुद्दे को समझने के लिए हम भोपाल गैस त्रासदी का उदाहरण ले सकते हैं। यह भयानक त्रासदी 1984 में हुई थी, जिसमें सैंकड़ों लोग मारे गए थे और हजारों लोग अपाहिज हो गए थे। आज भी आपको निर्माण स्थलों, खानों और कारखानों में दुर्घटना के किस्से सुनने को मिलेंगे। इनमें से अधिकतर दुर्घटनाएँ नियोजक की लापरवाही के कारण होती हैं।
सुरक्षा नियमों को लागू करना – कानून बनाने और उनको लागू करने का काम सरकार का है। यह देखना कि जीवन के अधिकार का उल्लंघन नहीं हो रहा है, सरकार की जिम्मेदारी है। तेजी से बढ़ते औद्योगीकरण के दौर में मजदूरों के अधिकारों की रक्षा करने के लिए और भी कड़े कानूनों की जरूरत है। केवल कानून बनने से कुछ नहीं होता, उन्हें सख्ती से लागू करना भी जरूरी होता है।
सुरक्षा नियमों को लागू करना – जब भोपाल गैस त्रासदी हुई थी, तब पर्यावरण सुरक्षा के लिए बहुत ही कम नियम थे। जो भी थोड़े बहुत कानून थे, उनका पालन नहीं होता था। लोग पर्यावरण को एक मुफ्त मिलने वाली वस्तु समझते थे। हर उद्योग बिना किसी डर के हवा और पानी को प्रदूषित करता था। कुल मिलाकर कहें तो पर्यावरण के लिए कोई इज्जत ही नहीं थी।
भोपाल गैस त्रासदी ने सबकी आँखें खोल दी। इस त्रासदी ने पर्यावरण के मुद्दे को सबके सामने ला दिया। इस त्रासदी में वैसे लोग भी प्रभावित हुए थे जिनका उस फैक्ट्री से कोई लेना देना नहीं था। लोगों की समझ में आने लगा था कि तत्कालीन कानून मजदूरों की सुरक्षा की बात तो करते थे लेकिन आम आदमी की सुरक्षा के लिए उन कानूनों में कोई प्रावधान नहीं था।
पर्यावरण कार्यकर्ताओं के दबाव में आकर सरकार ने पर्यावरण पर नये कानून बनाए। उसके बाद पर्यावरण को पहुँचने वाले किसी भी नुकसान के लिए प्रदूषण फैलाने वाले को जिम्मेदार ठहराया जाने लगा।
निष्कर्ष – लोगों को बेईमानी से बचाने के लिए कानून की जरूरत होती है। अधिक मुनाफा कमाने के चक्कर में प्राइवेट कम्पनियाँ, ठेकेदार, व्यवसायी आदि अक्सर मजदूरों को कम मजदूरी देते हैं, बच्चों को काम पर रखते हैं, काम करने के स्थान पर सुरक्षा की अनदेखी करते हैं और पर्यावरण को होने वाले नुकसान से आँखें मूंद लेते हैं।
इसलिए, प्राइवेट कम्पनियों की गतिविधियों पर लगाम लगाने की जिम्मेदारी सरकार की बनती है। सामाजिक न्याय को सुनिश्चित करने के लिए बेईमानी को रोकना बहुत जरूरी है। इसका मतलब है कि सरकार को जरूरी कानून बनाने चाहिए और उन्हें लागू भी करना चाहिए। यदि कोई कानून सही तरीके से लागू न किया जाए तो उसका कोई मतलब नहीं रह जाता है। यदि कानून कमजोर हों या उन्हें ठीक ढ़ंग से लागू न किया जाए तो वे फायदा पहुँचाने की जगह नुकसान ही पहुँचाते हैं।
NCERT Solution Class 8th Social Science (Civics) Notes in Hindi |
NCERT Solution Class 8th Social Science (Civics) Question Answer in Hindi |
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