NCERT Solutions Class 8th Social Science Civics Chapter – 4 न्यायपालिका (Judiciary)
Text Book | NCERT |
Class | 8th |
Subject | Social Science (नागरिक शास्त्र) |
Chapter | 4th |
Chapter Name | न्यायपालिका (Judiciary) |
Category | Class 8th Social Science Civics |
Medium | Hindi |
Source | Last Doubt |
NCERT Solutions Class 8th Social Science Civics Chapter – 4 न्यायपालिका (Judiciary) Question & Answer In Hindi न्यायपालिका के कितने अंग होते हैं?, न्यायपालिका का कार्य क्या है?, भारत की न्यायपालिका कौन है?, न्यायपालिका कैसे बनती है?, भारत में न्यायपालिका की कितनी कमी है?, न्यायपालिका की स्थापना कब हुई?, न्यायपालिका कब बनाई गई थी?, भारत का मुख्य न्यायाधीश का नाम क्या है?, भारत में कितने प्रकार के न्यायालय हैं?, भारत में कितने प्रकार के न्यायालय हैं?, मजिस्ट्रेट और जज में क्या अंतर होता है?, भारत के मुख्य न्यायाधीश कौन है, देश में कुल कितने न्यायालय हैं? |
NCERT Solutions Class 8th Social Science Civics Chapter – 4 न्यायपालिका (Judiciary)
Chapter – 4
न्यायपालिका
प्रश्न – उत्तर
प्रश्न-अभ्यास
प्रश्न 1. आप पढ़ चुके हैं कि कानून को कायम रखना और मौलिक अधिकारों को लागू करना’ न्यायपालिका का एक मुख्य काम होता है। आपकी राय में इस महत्त्वपूर्ण काम को करने के लिए न्यायपालिका का स्वतंत्र होना क्यों जरूरी है?
उत्तर – स्वतंत्र न्यायपालिका–
1. न्यायपालिका की स्वतंत्रता अदालतों को भारी ताकत देती है इसके आधार पर वह विधायिका और कार्यपालिका द्वारा शक्तियों के दुरुपयोग को रोक सकती है।
2. न्यायपालिका देश के नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा में अहम भूमिका निभाती है।
3. अगर किसी नागरिक को लगता है कि उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है तो वह अदालत में जा सकता है।
प्रश्न 2. अध्याय 1 में मौलिक अधिकारों की सूची दी गई है। उसे फिर पढ़े। आपको ऐसा क्यों लगता है कि संवैधानिक उपचार का अधिकार न्यायिक समीक्षा के विचार से जुड़ा हुआ है?
उत्तर – संवैधानिक उपचार का अधिकार – यदि किसी नागरिक को लगता है कि राज्य द्वारा उसके किसी मौलिक अधिकार का उल्लंघन हुआ है तो मौलिक अधिकार की प्राप्ति के लिए इस अधिकार का सहारा लेकर अदालत जा सकता है।
न्यायिक समीक्षा – यदि न्यायपालिका को लगता है कि संसद द्वारा पारित किया गया कोई कानून संविधान के अनुसार नहीं है। तो वह उस कानून को रद्द कर सकती है। इसे न्यायिक समीक्षा कहा जाता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि संवैधानिक उपचार का अधिकार न्यायिक समीक्षा से जुड़ा है, क्योंकि संवैधानिक उपचार के अंतर्गत न्यायालय कानून को रद्द कर सकता है
प्रश्न 3. नीचे तीनों स्तर के न्यायालय को दर्शाया गया है। प्रत्येक के सामने लिखिए कि उसे न्यायालय ने सुधा गोयल के मामले में क्या फैसला दिया था? अपने जवाब को कक्षा के अन्य विद्यार्थियों द्वारा दिए गए जवाबों के साथ मिलाकर देखें।
निचली अदालत (ट्रायल कोर्ट)- लक्ष्मण, उनकी मां शकुंतला और उनके बहनोई सुभाष चंद्र को मौत की सजा सुनाई गई थी
हाई कोर्ट- लक्ष्मण, शकुंतला और सुभाष चंद्र को बरी कर दिया गया
सुप्रीम कोर्ट- लक्ष्मण, शकुंतला को आजीवन कारावास की सजा दी गई जबकि पर्याप्त सबूतों के अभाव में सुभाष चंद्र को बरी कर दिया गया।
प्रश्न 4. सुधा गोयल मामले को ध्यान में रखते हुए नीचे दिए गए बयानों को पढ़िए। जो वक्तव्य सही हैं उन पर सही का निशान लगाइए और जो गलत हैं उनको ठीक कीजिए।
(क) आरोपी इस मामले को उच्च न्यायालय लेकर गए, क्योंकि वे निचली अदालत के फैसले से सहमत नहीं थे।
(ख) वे सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय में चले गए।
(ग) अगर आरोपी सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से संतुष्ट नहीं हैं तो दोबारा निचली अदालत में जा सकते हैं।
उत्तर –
(क) सही
(ख) गलत – निचली अदालत के फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय में चले गए।
(ग) गलत – सर्वोच्च न्यायालय देश की सबसे ऊपरी अदालत है इसके फैसले के खिलाफ निचली अदालत में नहीं जा सकते हैं।
प्रश्न 5. आपको ऐसा क्यों लगता है कि 1980 के दशक में शुरू की गई जनहित याचिका की व्यवस्था सबको इंसाफ दिलाने के
लिहाज से एक महत्त्वपूर्ण कदम थी?
उत्तर – 980 के दशक की शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट ने न्याय तक पहुंच बढ़ाने के लिए जनहित याचिका या पीआईएल का एक तंत्र तैयार किया। इसने किसी भी व्यक्ति या संगठन को उन लोगों की ओर से उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर करने की अनुमति दी जिनके अधिकारों का उल्लंघन किया जा रहा था। कानूनी प्रक्रिया को बहुत सरल बनाया गया और यहां तक कि सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय को संबोधित एक पत्र या टेलीग्राम को भी जनहित याचिका के रूप में माना जा सकता है।
प्रारंभिक वर्षों में, जनहित याचिका का उपयोग बड़ी संख्या में मुद्दों पर न्याय रक्षित करने के लिए किया गया था जैसे बंधुआ मजदूरों को अ नवीय कार्य स्थितियों से बचाना; और बिहार में उनकैदियों की रिहाई सुनिश्चित करना, जिन्हें सजा की अवधि पूरी होने के बाद भी जेल में रखा गया था।इस प्रकार, जनहित याचिका की शुरूआत वास्तव में सभी के लिए न्याय तक पहुंच सुनिश्चित करने की दिशा में एक
महत्वपूर्ण कदम है।
प्रश्न 6. ओल्गा टेलिस बनाम बम्बई नगर निगम मुकदमे में दिए गए फैसले के अंशों को दोबारा पढ़िए। इस फैसले में कहा गया है कि आजीविका का अधिकार जीवन के अधिकार का हिस्सा है। अपने शब्दों में लिखिए कि इस बयान से जजों का क्या मतलब था?
उत्तर – आजीविका का अधिकार जीवन के अधिकार का हिस्सा-
1. कानून के द्वारा तय की गयी प्रक्रिया जैसे मृत्युदंड देने और उसे लागू करने के अलावा और किसी तरीके से किसी की जान नहीं ली जा सकती।
2. जीवन के अधिकार का इतना ही महत्त्वपूर्ण पहलू आजीविका का अधिकार भी है, कोई भी व्यक्ति आजीविका के बिना जीवित नहीं रह सकता।
3. इस मुकदमे में याचिकाकर्ता झुग्गियों और पटरियों में रहते हैं और उन्हें वहाँ से हटाने की माँग की जा रही है।
4. अगर उन्हें झुग्गियों या पटरी से हटा दिया जाए तो उनका रोजगार भी खत्म हो जाएगा और वे अपनी आजीविका से हाथ धो बैठेंगे। इस प्रकार वे जीवन के अधिकार से भी वंचित हो जाएँगे।
प्रश्न 7. ‘इंसाफ में देरी यानी इंसाफ का कत्ल’ इस विषय पर एक कहानी बनाइए।
उत्तर – इंसाफ में देरी यानी इंसाफ का कत्ल-
हाशिमपुरा हत्याकांड
1. हाशिमपुरा (उ.प्र.) में पी.ए.सी. की हिरासत में 22 मई, 1987 को 43 मुसलमानों की हत्या कर दी गयी। उनके परिवार पिछले 20 साल से न्याय के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
2. इस हत्याकांड में मुकदमा शुरू होने में जो इतना विलंब हुआ उसके कारण सिंतबर 2002 में सर्वोच्च न्यायालय ने यह मामला उत्तर प्रदेश से दिल्ली स्थानांतरित कर दिया।
3. यह मुकदमा अभी भी चल रहा है इसमें प्रोविंशियल आर्ल्ड काँस्टेब्युलरी (पी.ए.सी.) के 19 लोगों पर हत्या और अन्य आपराधिक मामलों के आरोपों में मुकदमा चला जा रहा है।
4. इस मुकदमे में 2007 तक केवल तीन गवाहों के ही ब्यान दर्ज किए जा सके थे।
प्रश्न 8. एन.सी.ई.आर.टी. पाठ्यपुस्तक पेज 65 के शब्द संकलन में दिए गए प्रत्येक शब्द से वाक्य बनाइए।
उत्तर –
बरी करना – सर्वोच्च न्यायालय ने सुधा गोयल केस में सुभाषचंद्र को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया।
अपील करना – आरोपियों ने अधीनस्थ न्यायालय के फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील दायर की।
मुआवजा – न्यायालये पीड़ित पक्ष के लिए मुआवजा देने का आदेश दे सकता है।
बेदखली – रेलवे स्टेशन के पास झुग्गियों में रहने वालों को अदालत ने वहाँ से बेदखल कर दिया।
उल्लंघन – यदि किसी नागरिक को लगता है कि किसी व्यक्ति या राज्य द्वारा उसके मौलिक अधिकार का उल्लंघन हुआ है तो वह अदालत में जा सकता है।
प्रश्न 9. यह पोस्टर भोजन अधिकार अभियान द्वारा बनाया गया है।
इस पोस्टर को पढ़कर भोजन के अधिकार के बारे में सरकार के दायित्वों की सूची बनाइए। इस पोस्टर में कहा गया है कि “भूखे पेट भरे गोदाम! नहीं चलेगा, नहीं चलेगा। इस वक्तव्य को पाठ्यपुस्तक पृष्ठ 61 पर भोजन के अधिकार के बारे में दिए गए चित्र निबंध से मिलाकर देखिए।
उत्तर – सरकार के दायित्व
प्रत्येक नागरिक को भोजन उपलब्ध कराना।
यह सुनिश्चित करना कि किसी भी व्यक्ति को भूखा न सोना पड़े।
भूख की मार सबसे ज्यादा झेलने वालों; जैसे-बेसहारा, बुजुर्ग, विकलांग, विधवा आदि पर सरकार
को विशेष ध्यान देना चाहिए।
सरकार द्वारा यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि कुपोषण एवं भूख से किसी की मृत्यु न हो।
राजस्थान और उड़ीसा में सूखे की वजह से लाखों लोगों के सामने भोजन का भारी अभाव पैदा हो गया था, जबकि सरकारी गोदाम अनाज से भरे पड़े थे। इस स्थिति को देखते हुए पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिर्टीज (पी.यू.सी.एल.) नामक संगठन ने सर्वोच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की। याचिका में कहा गया कि संविधान के अनुच्छेद 21 में दिए गए जीवन के मौलिक अधिकारों में भोजन का अधिकार भी शामिल है। राज्य की इस दलील को भी गलत साबित कर दिया गया कि उसके पास संसाधन नहीं है, क्योंकि सरकारी गोदाम अनाज से भरे हुए थे। सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को आदेश दिया कि नए रोजगार पैदा करे। राशन की सरकारी दुकानों के माध्यम से सस्ती दर पर आनाज उपलब्ध कराए और बच्चों को स्कूल में दोपहर का भोजन उपलब्ध कराया जाए।
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