NCERT Solutions Class 8th History Chapter – 6 बुनकर, लोहा बनाने वाले व फैक्ट्री मालिक (Weavers Iron Makers And Factory Owners) Notes in Hindi

NCERT Solutions Class 8th History Chapter – 6 बुनकर, लोहा बनाने वाले व फैक्ट्री मालिक (Weavers Iron Makers And Factory Owners)

Text BookNCERT
Class  8th
Subject  Social Science (इतिहास)
Chapter6th
Chapter Nameबुनकर, लोहा बनाने वाले व फैक्ट्री मालिक (Weavers Iron Makers And Factory Owners)
CategoryClass 8th  Social Science (इतिहास)
Medium Hindi
SourceLast Doubt

NCERT Solutions Class 8th History Chapter – 6 बुनकर, लोहा बनाने वाले व फैक्ट्री मालिक (Weavers Iron Makers And Factory Owners) Notes in Hindi

NCERT Solutions Class 8th History Chapter – 6 बुनकर, लोहा बनाने वाले व फैक्ट्री मालिक (Weavers Iron Makers And Factory Owners)

Chapter – 6

बुनकर, लोहा बनाने वाले व फैक्ट्री मालिक

Notes

उद्योग (Industry)
कपड़ा उद्योग (textile industry) –  एक महत्वपूर्ण उद्योग है। आज भी कृषि के बाद यदि सबसे अधिक लोगों को किसी उद्योग में रोजगार मिलते हैं तो वह है कपड़ा उद्योग। इस चैप्टर में आप अठारहवीं सदी में भारत के कपड़ा उद्योग की स्थिति के बारे में पढ़ेंगे। उसके बाद आप यह पढ़ेंगे कि कैसे भारत में कपड़ा उद्योग का पतन हुआ। आप भारत में सूती कपड़ों की मिलों की शुरुआत के बारे में भी पढ़ेंगे।
स्टील उद्योग (Steel industry)-  को उद्योग धंधों की रीढ़ की हड्डी भी माना जाता है। पुराने जमाने में भारत में स्टील बनाने का काम छोटे पैमाने पर होता था जिसे कुछ विशेष समुदाय के लोग करते थे। कुल मिलाकर इसका रूप कुटीर उद्योग की तरह था। बाद में ब्रिटेन से स्टील आयात होने के कारण उन पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में आप पढ़ेंगे। साथ में आप भारत में पहली स्टील फैक्ट्री की शुरुआत के बारे में पढ़ेंगे।
दुनिया के बाजार में भारतीय कपड़ा (Indian cloth in the world market) – 1750 के समय भारत दुनिया में सूती कपड़े का सबसे बड़ा उत्पादक था। उस समय अंग्रेजों ने बंगाल पर कब्जा नहीं किया था। भारतीय कपड़े अपनी गुणवत्ता और महीन कारीगरी के लिए पूरी दुनिया में मशहूर थे। दक्षिण पूर्वी एशिया, पश्चिम एशिया और सेंट्रल एशिया में भारत के कपड़े का बहुत अच्छा कारोबार होता था। सोलहवीं शताब्दी से यूरोप की कम्पनियों ने यूरोप में बेचने के लिए भारत के कपड़े खरीदना शुरु कर दिया था। अंग्रेजी भाषा में कपड़ों से संबंधित कई शब्द ऐसे हैं जो इस व्यापार के सबूत देते हैं। इनमें से कुछ उदाहरण नीचे दिए गए हैं।
मस्लिन –  किसी भी महीन बुनाई वाले कपड़े को मस्लिन या मलमल कहा जाता था। यह शब्द आधुनिक ईरान के मोसुल से आया है। इसी जगह पर यूरोप के व्यापारियों को पहली बार भारत के सूती कपड़े के बारे में पता चला था। अरब के व्यापारी मोसुल में भारत के महीन सूती कपड़े बेचने के लिए लाते थे।
कैलिको (calicoa) –  हर तरह के सूती कपड़े के लिए यह नाम इस्तेमाल होता था। पुर्तगाली सबसे पहले केरल के कालीकट में आए थे। जिस सूती कपड़े को वे वहाँ से यूरोप ले गये उन्हें कैलिको कहा जाने लगा।
शिंट्ज (Shintz) –  भारत में फूलों के छोटे छापे को छींट कहते हैं, जैसे छींटदार फ्रॉक। इसी से शिंट्ज शब्द बना है। भारत से आने वाले जिन कपड़ों पर छोटे छोटे फूलों जैसी छपाई होथी उन्हें शिंट्ज कहते थे।
बंडाना (Bandana) – चटख रंगों की छपाई वाले स्कार्फ को बंडाना कहते हैं। यह शब्द बांधना से आया है। बंधनी एक कला है जिसमें कपड़े पर कई जगह गाँठें बांधने के बाद उसे विभिन्न रंगों से रंगा जाता है। कपड़े को सुखाने पर जब गाँठें खोल दी जाती हैं तो कपड़े पर अनोखा डिजाइन मिलता है।
यूरोपीय बाजार में भारतीय कपड़ा
कैलिको एक्ट (calico act) – अठारहवीं सदी की शुरुआत से इंगलैंड के ऊन और रेशम निर्माता भारत के कपड़ों की लोकप्रियता से परेशान होने लगे थे। वे भारत के सूती कपड़े के आयात का विरोध करने लगे थे। उस दबाव में आकर ब्रिटिश सरकार ने 1720 में शिंट्ज के इस्तेमाल पर बैन लगा दिया था। उस कानून का नाम कैलिको एक्ट था। यह ध्यान देना होगा कि कैलिको शब्द कालीकट से आया था। जब सरकार का संरक्षण मिला तो कैलिको प्रिंटिंग इंडस्ट्री में वृद्धि शुरु हुई। इस इंडस्ट्री में सफेद मसलिन या भारतीय कपड़े पर भारत के डिजाइनों की नकल छापी जाती थी।
नये सुधार (new improvements) – भारत के कपड़ों से प्रतिस्पर्धा के कारण इंगलैंड में कई तकनीकी सुधार हुए। जॉन के ने 1764 में स्पिनिंग जेनी का आविष्कार किया। इस मशीन से पारंपरिक तकली (स्पिंडल) की उत्पादकता बढ़ी। रिचर्ड आर्कराइट ने 1786 में स्टीम इंजन का आविष्कार किया। इस इंजन के आ जाने से सूती कपड़े की बुनाई में क्रांति आ गई। इन दोनों आविष्कारों ने सस्ते दर पर बड़ी मात्रा में कपड़े बनाना संभव कर दिया। लेकिन अठारहवीं सदी के अंत दुनिया के बाजार में भारतीय कपड़ों का बोलबाला बरकरार रहा। इस फलते फूलते व्यापार से यूरोपीय व्यापारियों ने भारी मुनाफा कमाया।
भारत में कपड़ा उत्पादन के क्षेत्र (textile manufacturing sectors in india) – उन्नीसवीं शताब्दी की शुरुआत में कपड़े का उत्पादन मुख्य रूप से भारत के चार क्षेत्रों में होता था। उनमें बंगाल सबसे महत्वपूर्ण केंद्र था। उस जमाने में सड़क और रेलवे का विकास नहीं हुआ था। बंगाल में कई नदियों और डेल्टा होने के कारण दूर दराज के जगहों तक माल पहुँचाना आसान पड़ता था। अठारहवीं सदी में ढ़ाका (आधुनिक बंग्लादेश में) कपड़े का महत्वपूर्ण केंद्र था। ढ़ाका का मलमल और जामदानी बहुत मशहूर हुआ करते थे। मद्रास से उत्तरी आंध्र प्रदेश तक फैले कोरोमंडल के तट पर बुनाई के कई केंद्र थे। पश्चिमी तट पर बुनाई का महत्वपूर्ण केंद्र गुजरात हुआ करता था।

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