NCERT Solutions Class 8th History Chapter – 2 व्यापार से साम्राज्य तक कंपनी की सत्ता स्थापित होती है (From Trade to Territory The Company Establishes Power) Notes in Hindi

NCERT Solutions Class 8th History) Chapter – 2 व्यापार से साम्राज्य तक कंपनी की सत्ता स्थापित होती है (From Trade to Territory The Company Establishes Power)

Text BookNCERT
Class  8th
Subject  Social Science (इतिहास)
Chapter2nd
Chapter Nameव्यापार से साम्राज्य तक (From Trade To Empire)
CategoryClass 8th Social Science (इतिहास)
Medium Hindi
SourceLast Doubt
NCERT Solutions Class 8th (History) Chapter – 2 व्यापार से साम्राज्य तक कंपनी की सत्ता स्थापित होती है (From Trade to Territory The Company Establishes Power) Notes in Hindi जिसमे हम भारत का जनक कौन है?, भारतीय इतिहास किसने लिखा था?, भारत कितना पुराना है, ब्रिटिश भारत के इतिहास का जनक कौन है?, भारतीय संविधान किसने लिखा था?, भारत में सबसे पहले कौन आया था?, हिंदू धर्म कितना पुराना है?, भारत में सबसे पहले अंग्रेज कौन आए थे?, भारत का पहला नाम कौन है?, भारत का व्रत का नाम क्या है?, सबसे पुराना देश कौन सा है?, क्या भारत विश्व का सबसे पुराना देश है?, भारत में मानव कितना पुराना है?, भारत में सबसे पहले कौन थे? आदि के बारे में पढेंगें।

NCERT Solutions Class 8th History Chapter – 2 व्यापार से साम्राज्य तक कंपनी की सत्ता स्थापित होती है (From Trade to Territory The Company Establishes Power)

Chapter – 2

व्यापार से साम्राज्य तक कंपनी की सत्ता स्थापित होती है

Notes

वाणिज्यिकएक ऐसा व्यावसायिक उद्यम जिसमें चीज़ों को सस्ती कीमत पर ख़रीद कर और ज़्यादा कीमत पर बेचकर यानी मखु्य रूप से व्यापार के ज़रिए मुनाफा कमाया जाता है।

फ़रमान – एक शाही आदेश जो राजा महाराजा के द्वारा अपनी जनता को दिया जाता था।

कठपुतलीयह एक खिलौना होता है जिसे आप धागों के सहारे अपने हिसाब से नचाते हैं। जो व्यक्‍ति किसी और के इशारों पर चलता है उसे भी मज़ाक उड़ाने के लिए अकसर कठपतुली कहा जाता है।

मुफ़्ती – मस्‍ल‍िुम समुदाय का एक न्यायविद जो काननों की व्याख्या करता है। काज़ी इसी व्याख्या के आधार पर फैसले सुनाता है।

महाभियोग जब इंग्लैण्ड के हाउस ऑफ़ कॉमंस में किसी व्यक्‍ति के ख़िलाफ़ दराचरण का आरोप लगाया जाता है तो हाउस ऑफ़ लॉडर्स (संसद का ऊपरी सदन) में उस व्यक्‍ति के ख़िलाफ़ मुक़दमा चलता है। इसे महाभियोग कहा जाता है।

कैप्टन हडसन द्वारा बहादुर शाह ज़फ़र और उनके बेटों की गिरफ़्तारी ? – औरंगज़ेब के बाद कोई मुग़ल बादशाह इतना ताकतवर तो नहीं हुआ लेकिन एक प्रतीक के रूप में मुग़ल बादशाहों का महत्त्व बना हुआ था। जब 1857 में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध भारी विद्रोह शुरू हो गया तो विद्रोहियों ने मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र को ही अपना नेता मान लिया था। जब विद्रोह कुचल दिया गया तो कंपनी ने बहादुर शाह ज़फ़र को देश छोड़ने के लिए मज़बूर कर दिया और उनके बेटों को ज़फ़र के सामने ही मार डाला।

फैक्टर – पहली इंग्लिश फैक्टरी 1651 में हुगली नदी के किनारे शुरू हुई। कंपनी के व्यापारी यहीं से अपना काम चलाते थे। इन व्यापारियों को उस ज़माने में “फैक्टर” कहा जाता था। इस फैक्टरी में वेयरहाउस था जहाँ निर्यात होने वाली था।

बंगाल में व्यापार – ईस्ट इंडिया कम्पनी ने 1651 में हुगली नदी के किनारे अपनी पहली फैक्ट्री लगाई। उस जमाने में कम्पनी के गोदाम को फैक्ट्री कहते थे और कम्पनी के व्यापारी को फैक्टर कहते थे। जब व्यापार बढ़ने लगा तो कम्पनी व्यापारियों को फैक्ट्री के आस पास बसने के लिए राजी करने लगी। फिर 1696 से कम्पनी ने उन बस्तियों के चारों ओर किलेबंदी शुरु कर दी।

कम्पनी ने मुगल अफसरों को रिश्वत देकर तीन गाँवों की जमींदारी ले ली। उनमें से एक गाँव का नाम कालीकाता था। बाद में यह कलकत्ता हो गया और आजकल इसे कोलकाता कहा जाता है। कम्पनी ने मुगल सम्राट औरंगजेब से बिना लगान दिए व्यापार करने की अनुमति भी ले ली। लेकिन कम्पनी के कुछ अफसर भी बिना लगान दिए अपना निजी व्यापार कर रहे थे। इससे बंगाल को राजस्व का भारी नुकसान हो रहा था।

व्यापार से युद्ध तक औरंगजेब की मृत्यु के बाद बंगाल के नवाबों ने अपनी प्रभुता और सत्ता का प्रदर्शन शुरु कर दिया। बारी बारी से मुर्शीद कुली खान, अलीवर्दी खान और सिराजुद्दौला बंगाल के नवाब बने। इन नवाबों ने कम्पनी को और अधिक छूट देने से मना कर दिया और कम्पनी को व्यापार के अधिकार के बदले में अधिक नजराने मांगने लगे। कम्पनी को सिक्के ढ़ालने से रोका गया और किले की हद को बढ़ाने से रोका गया।

उधर कम्पनी ने बताया कि लोकल अफसर ऊल जलूल मांग रख रहे थे। इससे व्यापार तबाह हो रहा था। व्यापार के फलने फूलने के लिए कर हटाना जरूरी था। कम्पनी अपना व्यापार बढ़ाने के उद्देश्य से अधिक से अधिक गांवों को खरीदना चाहती थी और अपने किलों का दायरा बढ़ाना चाहती थी। इस तरह से अठारहवीं सदी के शुरु में कम्पनी और नवाब के बीच के झगड़े बढ़ने लगे थे।

प्लासी का युद्ध – अलीवर्दी खान की मौत के बाद सिराजुद्दौला 1756 में बंगाल के नवाब बने। कम्पनी किसी कठपुतली को नवाब बनाना चाहती थी ताकि उससे अपने मुताबिक काम करवाए जा सकें। कम्पनी ने सिराजुद्दौला के विरोधियों में से किसी को नवाब बनाना चाहा लेकिन सफल नहीं हुई।

सिराजुद्दौला काफी गुस्से में थे और कम्पनी से कहा कि बंगाल के राजनीतिक मामलों में दखल न दे, किलेबंदी को समाप्त करे और लगान का भुगतान करे। जब बातचीत का कोई नतीजा नहीं निकला तो सिराजुद्दौला अपने 30,000 सैनिकों के साथ कासिमबाजार स्थित इंग्लिश फैक्ट्री के लिए चल पड़े।

कम्पनी के अफसरों को बंदी बना लिया गया, गोदाम पर ताला लगा दिया गया, सभी अंग्रेजों के हथियार जब्त कर लिए गए और अंग्रेजी जहाजों को रोक दिया गया। उसके बाद कम्पनी के किले पर कब्जा करने के लिए नवाब कलकत्ता की तरफ चल पड़े। जब कलकत्ते की खबर मद्रास पहुँची तो मद्रास से रॉबर्ट क्लाइव के नेतृत्व में सैनिकों को भेजा गया। उनके पीछे नौसेना के बेड़े को भी भेजा गया। उसके बाद, नवाब के साथ बातचीत का लम्बा सिलसिला शुरु हुआ।

नवाब की शिकायतें – 1733 में बंगाल के नवाब ने इंग्लिश व्यापारियों के बारे में यह कहा था जब वे पहली बार हमारे देश में आए थे तो उन्होंने सरकार के सामने विनती करते हुए कहा था कि उन्हें एक फैक्टरी बनाने के लिए थोड़ी-सी ज़मीन दे दी जाए। उन्हें वह ज़मीन तो मिल गई पर उन्होंने तो वहाँ मज़बूत किला ही खड़ा कर डाला। इसके चारों तरफ़ गड्ढे बना दिये जो नदी से जुड़ते हैं। दीवारों पर उन्होंने न जाने कितनी तोपें तैनात कर दी हैं। उन्होंने बहुत सारे सौदागरों और अन्य लोगों को अपने मातहत रहने के लिए तैयार कर लिया है और वह एक लाख रुपये राजस्व वसूल कर रहे हैं…. वे असंख्य औरतों और मर्दों को उनके ही देश में ग़ुलाम बनाकर लूट-खसोट रहे हैं।

क्लाइव खुद को कैसे देखता था ? – संसद की एक समिति के सामने सुनवाई के दौरान क्लाइव ने कहा था कि प्लासी की लड़ाई के बाद उसने ज़बरदस्त संयम का परिचय दिया। उस स्थिति की कल्पना कीजिए जहाँ प्लासी की जीत मुझे ला खड़ा कर दिया था! एक ताकतवर राजा मेरे इशारों पर चल रहा था, एक संपन्न शहर मेरी दया पर था। उसके सबसे दौलतमंद महाजन मेरी एक-एक मुस्कुराहट के लिए एक-दूसरे की गिरेबान खींच रहे थे। मैं ऐसे खज़ानों के बीच से गुज़र रहा था जो सिर्फ़ मेरे लिए खुले हुए थे, एक तरफ़ सोना और दूसरी तरफ़ जवाहरात थे।

रेज़िडेंट की ताकत – कंपनी द्वारा नियुक्त किए गए रेज़िडेंट्स के बारे में स्कॉटलैंड के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री और राजनीतिक दार्शनिक जेम्स मिल ने यह कहा था दरअसल रेज़िडेंट रियासत का राजा होता है। हम उसे अहस्तक्षेप की मनचाही निषेधाज्ञा के तहत काम करने की छूट देते हैं। जब तक स्थानीय राजा पूरी तरह अधीनस्थ रहता है और रेज़िडेंट यानी ब्रिटिश सरकार के माफ़िक काम करता है तो चीज़ें आराम से चलती रहती हैं। शासन के कामों में रेज़िडेंट की दखलंदाजी के बिना सब कुछ चल जाता है….. जब भी कुछ अलग तरह का घट है, जब भी राजा कोई ऐसा रास्ता अपनाता है जिसे ब्रिटिश सरकार गलत मानती है तो टकराव और उथल-पुथल पैदा हो जाती है।

संपन्नता का आश्वासन – इंग्लैंड के लोग ईस्ट इंडिया कंपनी की शासकीय महत्त्वाकांक्षाओं को संदेह और अविश्वास से देखते थे। प्लासी की लड़ाई के बाद रॉबर्ट क्लाइव ने अंग्रेज़ सम्राट के एक मुख्य विदेश मंत्री विलियम पिट को 7 जनवरी 1759 को कलकत्ते से यह चिट्ठी भेजी थी लेकिन इतनी विशाल सत्ता एक वाणिज्यिक कंपनी के लिए बहुत बड़ी बात होगी… मैं खुद यह सोच कर अभिभूत हूँ… कि इन समृद्ध रियासतों पर पूरा कब्ज़ा हासिल करने में कोई परेशानी नहीं आएगी।

कंपनी के अफ़सर ‘नबॉब’ बन बैठे – नवाब बनने का क्या मतलब था ? इसका एक मतलब तो यही था कि कंपनी के पास अब सत्ता और ताकत थी। लेकिन इसके कुछ और फायदे भी थे। कंपनी का हर कर्मचारी नवाबों की तरह जीने के ख़्वाब देखने लगा था। प्लासी के युद्ध के बाद बंगाल के असली नवाबों को इस बात के लिए बाध्य कर दिया गया कि वे कंपनी के अफ़सरों को निजी तोहफ़े के तौर पर ज़मीन और बहुत सारा पैसा दें। खुद रॉबर्ट क्लाइव ने ही भारत में बेहिसाब दौलत जमा कर ली थी।

टीपू सुल्तान – “शेर-ए-मैसूर” – उनके पिता मैसूर साम्राज्य के एक सैनिक थे लेकिन अपनी ताकत के बल पर वो 1761 में मैसूर के शासक बने। उनकी वीरता से प्रभवित होकर उनके पिता हैदर अली ने ही उन्हें शेर-ए-मैसूर के खिताब से नवाजा था।

टीपू की कहानियाँ – राजाओं की छवि अकसर जनश्रुतियों से भी बनती है। प्रचलित किस्सों में उनकी ताकत का खूब यशगान किया जाता है। 1782 में मैसूर के राजा बने टीपू सुल्तान के बारे में कहा जाता है कि एक बार वे अपने फ्रांसीसी दोस्त के साथ जंगल में शिकार खेलने गए थे। वहाँ एक शेर उनके सामने आ गया। उनकी बंदक ने मौके पर साथ नहीं दिया और कटार भी ज़मीन पर गिर गई। फिर भी टीपू ने निहत्थे ही शेर का मुकाबला किया और आख़िरकार कटार उठा ली। अंत में उन्होंने शेर को मार गिराया। इसी के बाद से उन्हें “शेर-ए-मैसूर” कहा जाने लगा था। उनके राजसी झंडे पर भी शेर की तसवीर होती थी।

मराठों से लड़ाई – अठारहवीं शताब्दी के आख़िर से कंपनी मराठों की ताकत को भी काबू और ख़त्म करने के बारे में सोचने लगी थी। 1761 में पानीपत की तीसरी लड़ाई में हार के बाद दिल्ली से देश का शासन चलाने का मराठों का सपना चूर-चूर हो गया। उन्हें कई राज्यों में बाँट दिया गया। इन राज्यों की बागडोर सिंधिया, होलकर, गायकवाड और भोंसले जैसे अलग-अलग राजवंशों के हाथों में थी।

विलय नीति – अधिग्रहण की आख़िरी लहर 1848 से 1856 के बीच गवर्नर-जनरल बने लॉर्ड डलहौज़ी के शासन काल में चली। लॉर्ड डलहौज़ी ने एक नयी नीति अपनाई जिसे विलय नीति का नाम दिया गया। यह सिद्धांत इस तर्क पर आधारित था कि अगर किसी शासक की मृत्यु हो जाती है और उसका कोई पुरुष वारिस नहीं है तो उसकी रियासत हड़प कर ली जाएगी यानी कंपनी के भूभाग का हिस्सा बन जाएगी।

मुफ़्ती – मुस्लिम समुदाय का एक न्यायविद जो कानूनों की व्याख्या करता है। काज़ी इसी व्याख्या के आधार पर फ़ैसले सुनाता है।

महाभियोग – जब इंग्लैंड के हाउस ऑफ़ कॉमंस में किसी व्यक्ति के ख़िलाफ़ दुराचरण का आरोप लगाया जाता है तो हाउस ऑफ लॉर्ड्स (संसद का ऊपरी सदन) में उस व्यक्ति के ख़िलाफ़ मुकदमा चलता है। इसे महाभियोग कहा जाता है।

नए शासन की स्थापना – 1772 से एक नयी न्याय व्यवस्था स्थापित की गई। इस व्यवस्था में प्रावधान किया गया कि हर जिले में दो अदालतें होंगी – फ़ौजदारी अदालत और दीवानी अदालत। दीवानी अदालतों के मुखिया यूरोपीय जिला कलेक्टर होते थे। मौलवी और हिंदू पंडित उनके लिए भारतीय कानूनों की व्याख्या करते थे। फ़ौजदारी अदालतें अभी भी काज़ी और मुफ़्ती के ही अंतर्गत थीं लेकिन वे भी कलेक्टर की निगरानी में काम करते थे।

धर्मशास्त्र – संस्कृत की ऐसी कृतियाँ जिनमें सामाजिक तौर-तरीकों और आचरण के सिद्धांतों की व्याख्या जाती है। ये धर्मशास्त्र ईसा पूर्व 500 वर्ष से भी पहले लिखे गए थे।

मस्केट – पैदल सिपाहियों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली एक भारी बंदूक।

मैचलॉक – शुरुआती दौर की बंदूक जिसमें बारूद को माचिस से चिंगारी दी जाती थी।

निष्कर्ष – ईस्ट इंडिया कंपनी एक व्यापारिक कंपनी से बढ़ते-बढ़ते एक भौगोलिक औपनिवेशिक शक्ति बन गई। उन्नीसवीं सदी की शुरुआत में नयी भाप तकनीक के आने से यह प्रक्रिया और तेज़ हुई। तब तक समुद्र मार्ग से भारत पहुँचने में 6-8 माह का समय लग जाता था। भाप से चलने वाले जहाज़ों ने यह यात्रा तीन हफ़्तों में समेट दी। इसके बाद तो ज़्यादा से ज़्यादा अंग्रेज़ और उनके परिवार भारत जैसे दूर देश में आने लगे।

NCERT Solution Class 8th Social Science (History) Notes All Chapter
Chapter – 1 कैसे, कब और कहाँ
Chapter – 2 व्यापार से साम्राज्य तक कंपनी की सत्ता स्थापित होती है
Chapter – 3 ग्रामीण क्षेत्र पर शासन चलाना
Chapter – 4 आदिवासी, दिकू और एक स्वर्ण युग के कल्पना
Chapter – 5 जब जनता बग़ावत करती है 1857 और उसके बाद
Chapter – 6 “देशी जनता” को सभ्य बनाना राष्ट्र को शिक्षित करना
Chapter – 7 महिलाएँ, जाति एवं सुधार
Chapter – 8 राष्ट्रीय आंदोलन का संघटनः 1870 के दशक से 1947 तक
NCERT Solution Class 8th Social Science (History) Question Answer All Chapter
Chapter – 1 कैसे, कब और कहाँ
Chapter – 2 व्यापार से साम्राज्य तक कंपनी की सत्ता स्थापित होती है
Chapter – 3 ग्रामीण क्षेत्र पर शासन चलाना
Chapter – 4 आदिवासी, दिकू और एक स्वर्ण युग के कल्पना
Chapter – 5 जब जनता बग़ावत करती है 1857 और उसके बाद
Chapter – 6 “देशी जनता” को सभ्य बनाना राष्ट्र को शिक्षित करना
Chapter – 7 महिलाएँ, जाति एवं सुधार
Chapter – 8 राष्ट्रीय आंदोलन का संघटनः 1870 के दशक से 1947 तक
NCERT Solution Class 8th Social Science (History) MCQ All Chapter
Chapter – 1 कैसे, कब और कहाँ
Chapter – 2 व्यापार से साम्राज्य तक कंपनी की सत्ता स्थापित होती है
Chapter – 3 ग्रामीण क्षेत्र पर शासन चलाना
Chapter – 4 आदिवासी, दिकू और एक स्वर्ण युग के कल्पना
Chapter – 5 जब जनता बग़ावत करती है 1857 और उसके बाद
Chapter – 6 “देशी जनता” को सभ्य बनाना राष्ट्र को शिक्षित करना
Chapter – 7 महिलाएँ, जाति एवं सुधार
Chapter – 8 राष्ट्रीय आंदोलन का संघटनः 1870 के दशक से 1947 तक

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