NCERT Solutions Class 8th Chapter – 2 भूमि, मृदा, जल, प्राकृतिक वनस्पति और वन्य जीवन संसाधन (Land, Soil, Water, Natural, Vegetation and Wildlife Resource)
Text Book | NCERT |
Class | 8th |
Subject | Social Science (भूगोल) |
Chapter | 2nd |
Chapter Name | भूमि, मृदा, जल, प्राकृतिक वनस्पति और वन्य जीवन संसाधन |
Category | Class 8th Social Science (Geography) |
Medium | Hindi |
Source | Last Doubt |
NCERT Solutions Class 8th (Social Science) Geography Chapter – 2 भूमि, मृदा, जल, प्राकृतिक वनस्पति और वन्य जीवन संसाधन (Land, Soil, Water, Natural, Vegetation and Wildlife Resource) Notes in Hindi भूमि मृदा जल प्राकृतिक वनस्पति और वन्य जीवन संसाधन क्या है, प्राकृतिक वनस्पति और वन्य जीवन क्या है कक्षा 8, प्राकृतिक संसाधन कक्षा 8 भूगोल क्या है, भूमि संसाधन कक्षा 8 क्या है, प्राकृतिक वनस्पति क्या है उदाहरण, मृदा प्राकृतिक वनस्पति और वन्य जीवन निम्नीकरण के क्या कारण हैं, वन्य जीवन का महत्व क्यों है, भूमि को महत्वपूर्ण क्यों माना जाता है। आदि इसके बारे में हम Notes विस्तार से पढ़ेंगे। |
NCERT Solutions Class 8th Chapter – 2 भूमि, मृदा, जल, प्राकृतिक वनस्पति और वन्य जीवन संसाधन (Land, Soil, Water, Natural,Vegetation and Wildlife Resource)
Chapter – 2
भूमि, मृदा, जल, प्राकृतिक वनस्पति और वन्य जीवन संसाधन
Notes
भूमि – पृथ्वी के कुल क्षेत्रफल के 30% हिस्से में भूमि है। स्थलाकृति में विविधता के कारण, भूमि के कुछ हिस्से में ही आबादी बस सकती है। इसलिए दुनिया की आबादी का 90% हिस्सा कुल भूमि के 30% हिस्से में रहता है। बची हुई 70% भूमि में आबादी या तो नहीं है या बहुत कम है। नदी घाटियों और मैदानों में कृषि के लिए समुचित माहौल होने के कारण सघन आबादी है। तीखी ढ़ाल वाले क्षेत्र या जल से भरे हुए नीचे स्थानों में विरल आबादी है।
भूमि उपयोग – भूमि का उपयोग कई कामों के लिए होता है, जैसे कृषि, खनन, भवन निर्माण, सड़क निर्माण, उद्योग धंधे, आदि। भूमि उपयोग को प्रभावित करने वाले कारण हैं स्थलाकृति, मृदा, जलवायु, खनिज और जल की उपलब्धता। मनुष्य भी भूमि उपयोग को प्रभावित करने वाला कारक है। बढ़ती जनसंख्या के साथ भूमि की माँग बढ़ती जा रही है। लेकिन भूमि का क्षेत्र सीमित है। भूमि निम्नीकरण, मृदा अपरदन, और मरुस्थलीकरण से पर्यावरण पर खतरा बढ़ जाता है।
मृदा – भूमि की सबसे ऊपरी परत जो दानेदार पदार्थ से बनी होती है मृदा या मिट्टी कहलाती है। मृदा के घटक हैं अपरदित शैल, खनिज और जैविक पदार्थ। खनिजों और जैव पदार्थों के सही अनुपात के कारण मिट्टी उपजाऊ बनती है।
मृदा परिच्छेदिका
किसी स्थान की मृदा के विभिन्न स्तरों की सजावट को मृदा परिच्छेदिका कहते हैं। एक आम मृदा परिच्छेदिका में निम्नलिखित स्तर होते हैं।
ऊपरी मृदा – इस स्तर में ह्यूमस और मिट्टी तथा रेत के महीन कण होते हैं।
उप मृदा – यह मृदा परिच्छेदिका का दूसरा स्तर होता है। इस स्तर में रेत, गाद और मिट्टी होती है।
जनक चट्टानें – मृदा परिच्छेदिका के आखिरी स्तर में बड़े बड़े चट्टान होते हैं।
मृदा निर्माण के कारक – जनक चट्टान जिस चट्टान से मृदा बनती है उसे जनक चट्टान कहते हैं। जनक चट्टान से मृदा का रंग, गठन, रासायनिक गुण, खनिज और पारगम्यता तय होती है।
मृदा निर्माण को प्रभावित करने वाले कारक – मृदा निर्माण के पांच कारक होते हैं-
1. मूल सामग्री।
2. जलवायु।
3. बायोटा (जीव)।
4. स्थलाकृति।
5. समय।
उच्चावच तुंगता और ढ़ाल – किसी स्थान की ढ़ाल से उस स्थान पर मृदा का संचय या जमा होना निर्धारित होता है।
मृदा अपरदन – ऊपरी मृदा के हटने की प्रक्रिया को मृदा अपरदन कहते हैं। वनोन्मूलन, अतिचारण (मवेशियों द्वारा अत्यधिक चरना), उर्वरक और कीटनाशक का अतिउपयोग, वर्षा दोहन (वर्षा से बहा दिया जाना), भूस्खलन और बाढ़ ऐसे कारक हैं जिनके कारण मृदा अपरदन होता है।
मृदा का निम्नीकरण और संरक्षण के उपाय – मृदा अपरदन और क्षीणता मृदा संसाधन के लिए दो मुख्य खतरे हैं। मानवीय और प्राकृतिक दोनों ही कारकों से मृदाओं का निम्नीकरण हो सकता है। मृदा के निम्नीकरण में सहायक कारक वनोन्मूलन, अतिचारण, रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का अत्यधिक उपयोग, वर्षा दोहन, भूस्खलन और बाढ़ हैं।
मल्च बनाना – इस विधि में पौधों के बीच की खाली भूमि को पुआल जैसे जैव पदार्थों से ढ़क दिया जाता है। मिट्टी के ढ़क जाने से उसमें नमी बनी रहती है।
समोच्चरेखीय रोधिकाएँ – इस विधि में जमीन की ढ़ाल के आगे पत्थर, घास या मिट्टी डालकर बाँध जैसा बनाया जाता है। ऐसी बाँधों के आगे खाई बना दी जाती ताकि उसमे पानी इकट्ठा हो सके। इससे वर्षा के कारण होने वाले मृदा अपरदन की रोकथाम होती है।
चट्टान बाँध – इस विधि में चट्टानों से बाँध बनाई जाती है। ऐसी बाँध से जल का प्रवाह कम होता है। इससे नालियाँ नहीं बन पाती और मिट्टी का अपरदन रुकता है।
वेदिका फार्म – इस तरह की खेती पहाड़ी क्षेत्रों में की जाती है। खेती के प्लॉट को सीढ़ीदार बनाया जाता है ताकि खेती के लिए समतल सतह मिल सके। इससे वर्षा द्वारा मिट्टी के बहा लिए जाने का खतरा कम होता है।
समोच्चरेखीय जुताई – पहाड़ी क्षेत्रों में ढ़ाल के समांतर जुताई की जाती है। इससे वर्षा द्वारा मिट्टी के बहा लिए जाने का खतरा कम होता है।
बीच की फसल उगाना – इस विधि में हर एक कतार के बाद अलग किस्म की फसल उगाई जाती है, यानि सम संख्या वाली कतारों में एक फसल और विषम संख्या वाली कतारों में अलग फसल। इन फसलों को अलग-अलग समय में उगाया जाता है। इससे वर्षा द्वारा मिट्टी के बहा लिए जाने का खतरा कम होता है।
रक्षक मेखलाएँ – इस विधि का इस्तेमाल तटीय क्षेत्रों और शुष्क क्षेत्रों में होता है। इस विधि में खेत की सीमा के साथ पेड़ों की कतार लगाई जाती है। इससे पवन से होने वाले मृदा अपरदन की रोकथाम होती है।
साझा संपत्ति संसाधन – निजी भूमि व्यक्तियों के स्वामित्व में होती है जबकि सामुदायिक भूमि समुदाय के स्वामित्व में होती है। सामान्य रूप से इसका उपयोग समुदाय से संबंधित व्यक्तियों के लिए किया जाता है, जैसे चारा, फलों, नट या औषधीय बूटियों को एकत्रित करना। इस सामुदायिक भूमि को साझा संपत्ति संसाधन भी कहते हैं।
भूमि संसाधन का संरक्षण – बढ़ती जनसंख्या तथा इसकी बढ़ती माँगों के कारण वन भूमि और कृषि योग्य भूमि का बड़े पैमाने पर विनाश हुआ है। इससे इस प्राकृतिक संसाधन में बारे बदलाब आये है। इसीलिए विनाश की वर्तमान दर को अवश्य ही रोकना चाहिए। वनरोपण, भूमि उद्धार रासायनिक कीटनाशकों और उर्वरकों के विनियमित उपयोग तथा अतिचारण पर रोक आदि भूमि संरक्षण के लिए प्रयुक्त कुछ सामान्य तरीके हैं।
भूस्खलन – भूस्खलन को सामान्य रूप से शैल, मलबा या ढाल से गिरने वाली मिट्टी के बृहत संचलन के रूप में परिभाषित किया जाता है। वे भूकंप, बाढ़ और ज्वालामुखी के साथ घटित होते हैं। लंबे समय तक भारी वर्षा होने से भूस्खलन होता है। यह नदी के प्रवाह को कुछ समय के लिए अवरुद्ध कर देता है।
एक वस्तुस्थिति अध्ययन – हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले में रेकांग पीओ के निकट पंजी गाँव में बड़े भूस्खलन के कारण राष्ट्रीय महामार्ग-22 की पुरानी हिंदुस्तान-तिब्बत सड़क का 200 मीटर तक का भाग नष्ट हो गया। यह भूस्खलन पंजी गाँव में तीव्र विस्फोटन द्वारा हुआ था। विस्फोटन के कारण ढाल का यह कमजोर क्षेत्र नीचे गिर गया, जिसके कारण सड़क और गाँव के आस-पास के क्षेत्र को क्षति पहुँची। पंजी गाँव को किसी संभावित मानव विनाश से बचाने के लिए पूर्ण रूप से खाली करा दिया गया था।
न्यूनीकरण क्रियाविधि – वैज्ञानिक प्रविधियों के विकास से हमें समझने की शक्ति मिली है कि भूस्खलन उत्पन्न होने के कौन-कौन से कारक हैं और उनका प्रबन्धन कैसे करना है। भूस्खलन को रोकने की कुछ प्रविधियाँ निम्न हैं-
• भूस्खलन प्रभावी क्षेत्रों का मानचित्र बनाकर इसमें प्रभावित होने वाले स्थानों को इंगित करना। इस प्रकार इन क्षेत्रों को आवास बनाने के लिए छोड़ा जा सकता है।
• भूमि को खिसकने से बचाने के लिए प्रतिधारी दीवार का निर्माण।
• भूस्खलन को रोकने का सबसे प्रभावी तरीका वनस्पति आवरण में वृद्धि है।
• सतही अपवाह तथा झरना प्रवाहों के साथ-साथ भूस्खलन की गतिशीलता को नियंत्रित करने के लिए पृष्ठीय अपवाह नियंत्रण उपाय कार्यान्वित किए गए हैं।
जल – जल एक महत्त्वपूर्ण नवीकरणीय प्राकृतिक संसाधन है, भूपृष्ठ का तीन-चौथाई भाग जल से ढका है। लगभग 3.5 अरब वर्ष पहले जीवन, आदि महासागरों में ही प्रारंभ हुआ था। यद्यपि आज भी महासागर पृथ्वी की सतह के दो तिहाई भाग को ढके हुए हैं। और विविध प्रकार के पौधों और जंतुओं को मदद करते हैं। अलवण जल केवल 2.7 प्रतिशत ही है। इसका लगभग 70 प्रतिशत भाग बर्फ़ की चादरों और हिमानियों के रूप में अंटार्कटिका, ग्रीनलैंड और पर्वतीय प्रदेशों में पाया जाता है। अपनी स्थिति के कारण ये मनुष्य की पहुँच के बाहर है। केवल एक प्रतिशत अलवण जल उपलब्ध है और वह मानव उपभोग के लिए उपयुक्त है। यह भौम जल, नदियों और झीलों में पृष्ठीय जल के रूप में तथा वायुमंडल में जलवाष्प के रूप में पाया जाता है।
जल उपलब्धता की समस्याएँ – विश्व के कई प्रदेशों में जल की कमी है। अधिकांश अफ्रीका, पश्चिमी एशिया, दक्षिणी एशिया, पश्चिमी संयुक्त राज्य अमेरिका के भाग, उत्तर- पश्चिमी मैकस्किो, दक्षिण अमेरिका के भाग और संपूर्ण आस्ट्रेलिया अलवणीय जल की आपूर्ति की कमी का सामना कर रहे हैं। इस प्रकार जल का अभाव मौसमी अथवा वार्षिक वर्षण में विविधता के परिणामस्वरूप हो सकता है अथवा अति उपयोग और जल स्रोतों के संदूषण के कारण भी जल का अभाव हो सकता है।
जल संसाधनों का संरक्षण – आज के विश्व में शुद्ध तथा पर्याप्त जल स्रोतों तक पहुँचना एक बड़ी समस्या बन गई है। इस क्षीण होते संसाधन के संरक्षण के लिए कदम उठाने चाहिए। इनमें से अधिकांश रसायन अजैव निम्नीकरणीय होने के कारण जल द्वारा मानव शरीर में पहुँच जाते हैं। इन प्रदूषकों को जल निकायों में छोड़ने से पूर्व बहि:स्रावों को उपयुक्त विधि से शोधित करके जल प्रदूषण नियंत्रित किया जा सकता है।
जैवमंडल – प्राकृतिक वनस्पति और वन्य जीवन केवल स्थलमंडल, जलमंडल और वायुमंडल के बीच जुड़े एक सँकरे क्षेत्र में ही पाए जाते हैं जिसे हम जैवमंडल कहते हैं।
पारितंत्र – जैवमंडल में सभी जीवित जातियाँ जीवित रहने के लिए एक-दूसरे से परस्पर संबंधित और निर्भर रहती हैं। इस जीवन आधारित तंत्र को पारितंत्र कहते हैं।
प्राकृतिक वनस्पति का वितरण – वनस्पति की वृद्धि मुख्य रूप से तापमान और आर्द्रता पर निर्भर करती है। विश्व की वनस्पति के मुख्य प्रकारों को चार वर्गों में रखा जा सकता है, जैसे वन, घास स्थल, गुल्म और टुंड्रा।
प्राकृतिक वनस्पति और वन्य जीवन का संरक्षण – जलवायु में परिवर्तन और मानव हस्तक्षेप के कारण पौधों और जंतुओं के प्राकृतिक आवास नष्ट हो सकते हैं। बहुत-सी जातियाँ असुरक्षित अथवा संकटापन्न हैं और कुछ लुप्त होने के कगार पर हैं। वनोन्मूलन, मृदा अपरदन, निर्माण कार्य, दावानल और भूस्खलन में से कुछ मानव और प्राकृतिक कारक हैं जो मिलकर इन महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधनों के लुप्त होने की प्रक्रिया को बढ़ावा देते हैं।
NCERT Solutions Class 8th Social Science (Geography) Notes in Hindi |
Chapter – 1 संसाधन |
Chapter – 2 भूमि, मृदा, जल, प्राकृतिक वनस्पति और वन्य जीवन संसाधन |
Chapter – 3 कृषि |
Chapter – 4 उद्योग |
Chapter – 5 मानव संसाधन |
NCERT Solutions Class 8th Social Science (Geography) Question Answer in Hindi |
Chapter – 1 संसाधन |
Chapter – 2 भूमि, मृदा, जल, प्राकृतिक वनस्पति और वन्य जीवन संसाधन |
Chapter – 3 कृषि |
Chapter – 4 उद्योग |
Chapter – 5 मानव संसाधन |
NCERT Solutions Class 8th Social Science (Geography) MCQ in Hindi |
Chapter – 1 संसाधन |
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Chapter – 3 कृषि |
Chapter – 4 उद्योग |
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