NCERT Solutions Class 8th Social Science (Civics) Chapter – 7 जनसुविधाएँ
Text Book | NCERT |
Class | 8th |
Subject | Social Science (नागरिक शास्त्र) |
Chapter | 7th |
Chapter Name | जनसुविधाएँ (Public Facilities) |
Category | Class 8th Social Science Civics Notes in Hindi |
Medium | Hindi |
Source | Last Doubt |
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NCERT Solutions Class 8th Social Science (Civics) Chapter – 7 जनसुविधाएँ
Chapter – 7
जनसुविधाएँ
Notes
जनसुविधाएँ – कई ऐसी सुविधाएँ होती हैं, जिनकी जरूरत हर किसी को होती है। ऐसी सुविधाओं को जन सुविधाएँ कहते हैं। उदाहरण – स्वास्थ्य, स्वच्छता, बिजली, पब्लिक ट्रांसपोर्ट, स्कूल, कॉलेज, पीने का पानी, आदि।
जन सुविधाओं का एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि एक बार ऐसी कोई सुविधा शुरु हो जाती है तो उसका लाभ कई लोगों को मिलता है। जैसे, यदि किसी गाँव में एक स्कूल खुल जाता है तो उससे कई बच्चों को पढ़ने लिखने का मौका मिल जाता है। इसी तरह, सड़क बन जाने से कई लोगों को फायदा मिलता है।
संविधान के अनुच्छेद 21 में जीवन के अधिकार की बात कही गई है। पानी पर अधिकार, इसी अधिकार का एक हिस्सा है। इसलिए हर नागरिक को पीने का साफ पानी देना सरकार की जिम्मेदारी बन जाती है।
जन सुविधाओं में सरकार की भूमिका
• सरकार को जनसुविधाओं की सार्वभौमिक पहुँच निश्चित करना होता है।
• सरकार को ये सुविधाएँ या तो मुफ्त या फिर ऐसे शुल्क के साथ देनी है जिसे हर कोई आसानी दे सके।
कुछ जनसुविधाओं में प्राइवेट कम्पनियाँ रुचि दिखा सकती हैं। लेकिन किसी भी प्राइवेट कम्पनी का मुख्य मकसद होता है अधिक से अधिक मुनाफा कमाना। इसलिए प्राइवेट कम्पनी किसी भी जनसुविधा के लिए बहुत अधिक फीस चार्ज करेगी, जिसे देना बहुत कम लोगों के वश में होगा।
इससे सार्वभौमिक पहुँच का लक्ष्य नहीं पूरा हो पाएगा। इसलिए, जनसुविधाएँ अक्सर सरकारों द्वारा दी जाती हैं। लेकिन, प्राइवेट कम्पनियों द्वारा जनसुविधाएँ देने के कई उदाहरण भी हैं।
जैसे, दिल्ली में बिजली सप्लाई का काम प्राइवेट कम्पनी के हाथों में है। ऐसी स्थिति में सरकार कुछ कायदे कानून बनाती है ताकि चार्ज एक सीमा में रहे।
शहर में वाटर सप्लाई – अर्बन वाटर कमिटी के अनुसार, शहरी क्षेत्र में एक व्यक्ति को प्रतिदिन कम से कम 135 लीटर पानी की जरूरत होती है। लेकिन किसी झुग्गी में रहने वाले आदमी को एक दिन में केवल 20 लीटर पानी ही मिल पाता है।
• शहर में पानी की सप्लाई जल बोर्ड द्वारा की जाती है, जो नगरपालिका के अधीन होता है। अधिकतर शहरों में पानी की सप्लाई जरूरत से कम होती है।
• जिन लोगों के घर पंपिंग स्टेशन या स्टोरेज टैंक के नजदीक होते हैं उन्हें तो पूरा पानी मिल जाता है। लेकिन दूर रहने वाले लोगों को सही से पानी नहीं मिल पाता है। इसके अलावा, पाइपलाइन में लीकेज से समस्या और भी बढ़ जाती है।
• जब किसी मुहल्ले में पानी नहीं आता है तो नगरपालिका पानी के टैंकरों की व्यवस्था करती है। लेकिन टैंकरों पर माफिया का शिकंजा रहता है।
• इससे अधिकतर लोगों के लिए पानी महंगा साबित होता है। मध्यम और उच्च वर्ग के लोगों के पास इतने पैसे होते हैं कि वे टैंकर माफिया द्वारा चार्ज किए गए पैसे दे पाते हैं।
• कई लोग अपनी जरूरत के लिए बोर-वेल और वाटर पंप लगा लेते हैं। कई लोग पीने के साफ पानी के लिए वाटर प्यूरिफायर रखते हैं। लेकिन ऐसी चीजें गरीबों की पहुँच से दूर होती हैं।
• शहरों की स्थिति कुछ हद तक ठीक भी है, लेकिन अधिकतक़र गाँवों और कस्बों में जरूरत के हिसाब से पानी नहीं मिल पाता है।
किसानों से पानी छीनना – पानी की कमी ने निजी कंपनियों के लिए मुनाफ़े के नए रास्ते खोल दिए हैं। बहुत सारी निजी कंपनियाँ शहर के आसपास के इलाकों से पानी खरीद कर शहरों में बेचती हैं। चेन्नई में मामंदूर, पालुर, कारुनगिझी जैसे कस्बों और शहर के उत्तर में स्थित गाँवों से पानी लाया जाता है। 13,000 से भी ज़्यादा टैंकर इस काम में लगे हुए हैं।
हर महीने पानी के व्यापारी किसानों को पेशगी रकम देते हैं ताकि वे किसानों की ज़मीन से पानी निकाल सकें। इस तरह न केवल खेती का पानी छिन जाता है, बल्कि गाँवों के लिए पीने के पानी की आपूर्ति भी कम पड़ने लगती है। नतीजा यह है कि इन सारे कस्बों और गाँवों में भूमिगत जल स्तर बहुत बुरी तरह गिर चुका है।
पोर्तो एलेग्रे में सार्वजनिक जलापूर्ति – पोर्तो एलेग्रे ब्राजील का एक शहर है। इस शहर में बहुत सारे लोग गरीब हैं, लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि दुनिया के दूसरे ज़्यादातर शहरों के मुकाबले यहाँ शिशु मृत्यु दर बहुत कम है।
यहाँ नगर जल विभाग ने सभी लोगों को स्वच्छ पेयजल मुहैया करा दिया है। शिशु मृत्यु दर में गिरावट के पीछे यह सबसे बड़ा कारण है। यहाँ पानी की औसत कीमत कम रखी गई है और गरीबों से केवल आधी कीमत ली जाती है।
विभाग को जो भी फ़ायदा होता है उसका इस्तेमाल जलापूर्ति में सुधार के लिए किया जाता है। जल विभाग का काम पारदर्शी ढंग से चलता है। विभाग को कौन सी योजना हाथ में लेनी चाहिए, इस बारे में लोग मिलकर तय करते हैं।
जनसभाओं में जनता प्रबंधकों का पक्ष सुनती है और जल विभाग की प्राथमिकताएँ तय करने में वोट के ज़रिए फ़ैसला करती है।
स्वच्छता – मानव मल-मूत्र को सुरक्षित ढंग से नष्ट करने की सुविधा। इसके लिए शौचालयों का निर्माण किया जाता है और गंदे पानी की सफ़ाई के लिए पाइप लगाए जाते हैं। संक्रमण से बचाने के लिए ऐसा करना ज़रूरी होता है।
कंपनी – कंपनी एक तरह की व्यावसायिक संस्था होती है जिसकी स्थापना कुछ लोग या सरकार करती है। जिन कंपनियों का संचालन और स्वामित्व निजी समूहों या व्यक्तियों के हाथ में होता है उन्हें निजी कंपनी कहा जाता है।
उदाहरण के लिए टाटा स्टील एक निजी कंपनी है, जबकि इंडियन ऑयल सरकार द्वारा संचालित कंपनी है।
सार्वभौमिक पहुँच – जब हर व्यक्ति को कोई चीज़ पूरी तरह हासिल हो जाती है और वह उसका खर्च उठा सकता है तो इसे सार्वभौमिक पहुँच कहा जाता है।
उदाहरण के लिए घर में नल में पानी आ रहा हो तो परिवार को पानी तक पहुँच मिल जाती है और अगर उसकी कीमत कम हो या वह मुफ्त उपलब्ध हो तो हर कोई उसका इस्तेमाल कर सकता है।
मूलभूत सुविधाएँ – भोजन, पानी, आवास, साफ़-सफ़ाई, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी बुनियादी ज़रूरतें जो ज़िंदा रहने के लिए ज़रूरी होती हैं।
निष्कर्ष – जनसुविधाओं का संबंध हमारी बुनियादी ज़रूरतों से होता है। भारतीय संविधान में पानी, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि अधिकारों को जीवन के अधिकार का हिस्सा माना गया है। इस प्रकार सरकार की एक अहम ज़िम्मेदारी यह बनती है कि वह प्रत्येक व्यक्ति को पर्याप्त जनसुविधाएँ मुहैया करवाए।
लेकिन इस मोर्चे पर संतोषजनक प्रगति नहीं हुई है। आपूर्ति में कमी है और वितरण में भारी असमानता दिखाई देती है। महानगरों और बड़े शहरों के मुकाबले कस्बों और गाँवों में तो इन सुविधाओं की स्थिति और भी खराब है। संपन्न बस्तियों के मुकाबले गरीब बस्तियों में सेवाओं की स्थिति कमज़ोर है।
इन सुविधाओं को निजी कंपनियों के हाथों में सौंप देने से समस्या हल होने वाली नहीं है। किसी भी समाधान में इस महत्त्वपूर्ण तथ्य को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता कि देश के प्रत्येक नागरिक को इन सुविधाओं को पाने का अधिकार है और उसे ये सुविधाएँ समतापरक ढंग से मिलनी चाहिए।
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NCERT Solution Class 8th Social Science (Civics) Question Answer in Hindi |
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