NCERT Solutions Class 8th Social Science (Civics) Chapter – 6 हमारी आपराधिक न्याय प्रणाली (Our criminal justice system) Notes in Hindi

NCERT Solutions Class 8th Social Science (Civics) Chapter – 6 हमारी आपराधिक न्याय प्रणाली

Text BookNCERT
Class  8th
Subject  Social Science (नागरिक शास्त्र)
Chapter 6th
Chapter Nameहमारी आपराधिक न्याय प्रणाली (Our criminal justice system)
CategoryClass 8th Social Science Civics Notes in Hindi 
Medium Hindi
SourceLast Doubt

NCERT Solutions Class 8th Social Science (Civics) Chapter – 6 हमारी आपराधिक न्याय प्रणाली (Our criminal justice system) Notes in Hindi अपराध शास्त्र का पिता कौन है?, कानून के पिता कौन है?, अपराधी कितने प्रकार के होते हैं?, अपराध के तत्व कितने हैं?, कानून कितने प्रकार के होते हैं?, गैर जमानती धाराएं कौन कौन सी हैं?, अपराध क्यों होता है?, मारपीट के मामले में कौन सी धारा लगती है?, Katl करने पर कौन सी धारा लगती है?, जमानत कितने दिन में होती है?, 1 मर्डर की सजा क्या है?, कोई झूठा केस करे तो क्या करें?, 2 मर्डर करने पर कितने साल की सजा होती है?

NCERT Solutions Class 8th Social Science (Civics) Chapter – 6 हमारी आपराधिक न्याय प्रणाली

Chapter – 6

हमारी आपराधिक न्याय प्रणाली

Notes

पुलिस द्वारा अपराध की छानबीन 

किसी अपराध की जांच पड़ताल करना पुलिस का एक मुख्य काम है। अपराध की छानबीन के लिए पुलिस कई काम करती है, जैसे गवाहों के बयान दर्ज करना और कई तरह के सबूत इकट्ठा करना। छानबीन के बाद यदि पुलिस को लगता है कि आरोपी ने अपराध किया है तो पुलिस अदालत में चार्जशीट (आरोपपत्र) दाखिल करती है। उसके बाद यह फैसला जज को लेना होता है कि आरोपी दोषी है या निर्दोष है।

कानून हर व्यक्ति पर लागू होता है, यहाँ तक कि पुलिस पर भी। इसलिए पुलिस को छानबीन करते समय कानून का ध्यान रखना चाहिए और यह ध्यान देना चाहिए मानवाधिकारों का हनन न हो। किसी को हिरासत में लेने, या कैद में रखने या पूछताछ करते समय पुलिस कैसा बर्ताव करती है इस बारे में सुप्रीम कोर्ट ने एक गाइडलाइन बनाई हुई है। पूछताछ करते समय पुलिस किसी को यातना नहीं दे सकती है और न ही मारपीट कर सकती है। छोटे मोटे अपराध के लिए भी सजा देने का काम पुलिस का नहीं है।

संविधान के अनुच्छेद 22 के अनुसार पुलिस हिरासत में व्यक्ति को निम्नलिखित मौलिक अधिकार मिले हुए हैं।

  • हिरासत में लेते समय पुलिस उसे हिरासत का कारण बताएगी।
  • हिरासत के 24 घंटे के भीतर पुलिस उस व्यक्ति को किसी मैजिस्ट्रेट के सामने पेश करेगी।
  • हिरासत में उस व्यक्ति के साथ कोई दुर्व्यवहार नहीं होगा।
  • पुलिस हिरासत में दिए गए कबूलनामा को अदालत में सबूत नहीं माना जाता है।
  • 15 वर्ष से कम आयु के लड़के को या किसी महिला को केवल पूछताछ के लिए थाने नहीं बुलाया जा सकता है।

सरकारी वकील

किसी भी अपराध को जनता के खिलाफ माना जाता है। इसका मतलब यह है कि अपराध केवल किसी व्यक्ति के खिलाफ नहीं होता है बल्कि उसका असर पूरे समाज पर पड़ता है।

सरकारी वकील का काम है अदालत में राज्य के पक्ष में बात करना। जब पुलिस अपनी छानबीन पूरी कर लेती है और कोर्ट में चार्जशीट फाइल कर देती है उसके बाद सरकारी वकील की भूमिका शुरु होती है। छानबीन में उसकी कोई भूमिका नहीं होती है। सरकार का नुमाइंदा होने के नाते सरकारी वकील का काम है कि वह पूरी निष्पक्षता के साथ तथ्यों, गवाहों और सबूतों को कोर्ट के सामने रखे ताकि कोर्ट उचित फैसला ले सके।

जज की भूमिका – जज किसी अम्पायर की तरह होता है और खुली अदालत में निष्पक्ष ट्रायल करता है। जज दोनों पक्षों की दलीलें और गवाहों के बयान सुनता है। सभी सबूतों और गवाहों के आधार पर जज को कानून के अनुसार फैसला लेना होता है। यदि आरोप सिद्ध होता है तो जज सजा सुनाता है।

निष्पक्ष सुनवाई

संविधान का अनुच्छेद 21 हमें जीवन का अधिकार की गारंटी देता है। इसके अनुसार किसी भी व्यक्ति की स्वतंत्रता को तभी छीना जा सकता है जब ऐसा फैसला उचित कानूनी प्रक्रिया के बाद लिया जाता है। निष्पक्ष सुनवाई से यह सुनिश्चित हो जाता है कि जीवन के अधिकार की रक्षा होती है। संविधान और कानून का कहना है कि हर आरोपी व्यक्ति को निष्पक्ष सुनवाई का मौका मिलना चाहिए चाहे वह किसी भी जाति, धर्म, हैसियत या लिंग का हो। यदि हर किसी को निष्पक्ष सुनवाई का मौका नहीं मिलेगा तो यह बात बेमानी हो जाएगी कि कानून की नजर में सब बराबर हैं।

एफ आई आर (F.I.R.)

एफ आई आर (फर्स्ट इंफॉर्मेशन रिपोर्ट) को रजिस्टर करने के बाद पुलिस किसी अपराध की जाँच पड़ताल शुरु कर सकती है। किसी भी थाने में चार्ज में रहने वाले अफसर के लिए एफ आई आर रजिस्टर करना अनिवार्य होता है, जब कोई किसी अपराध की सूचना देता है। ऐसी सूचना लिखित या मौखिक किसी भी रूप में दी जा सकती है। एफ आई आर में अमूमन अपराध की तारीख, समय और स्थान और जितना संभव हो उतनी जानकारी दर्ज की जाती है। यदि पता हो तो आरोपी और गवाहों की पहचान भी दर्ज की जाती है। साथ में शिकायत करने वाले का नाम और पता भी लिखा जाता है। इसके लिए एक खाका बना हुआ रहता है जिसपर शिकायत करने वाले को दस्तखत करना होता है। शिकायत करने वाले को एफ आई आर की एक कॉपी लेने का भी अधिकार है जिसका कोई शुल्क नहीं लगता।

मुख्य शब्द

आरोपी – वह व्यक्ति जिस पर किसी अपराध के लिए मुकदमा चलता है।

संज्ञेय (कॉग्निजेबल) – ऐसा अपराध जिसके लिए पुलिस किसी को अदालत की अनुमति के बिना भी गिरफ्तार कर सकती है।

जिरह – जब किसी से दोनों पक्षों के वकील सवाल जवाब करते हैं तो इस काम को जिरह कहते हैं।

हिरासत – पुलिस द्वारा किसी को गैर कानूनी ढ़ंग से गिरफ्तार करना।

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