NCERT Solutions Class 8th Civics Chapter – 2 धर्मनिरपेक्षता की समझ (Understanding Secularism)
Text Book | NCERT |
Class | 8th |
Subject | Social Science (नागरिक शास्त्र) |
Chapter | 2nd |
Chapter Name | धर्मनिरपेक्षता की समझ (Understanding Secularism) |
Category | Class 8th Social Science (Civics) |
Medium | Hindi |
Source | Last Doubt |
NCERT Solutions Class 8th Civics Chapter – 2 धर्मनिरपेक्षता की समझ (Understanding Secularism) Notes in Hindi इस अध्याय में इस सोच के आधार पर आप संघर्ष का रास्ता चुनकर इस बात के लिए आवाज़ उठा सकते हैं कि धर्म और आस्था के आधार पर किसी के साथ भेदभाव नहीं होना चाहिए। यह सोच इस मान्यता पर आधारित है कि धर्म से संबंधित किसी भी तरह का वर्चस्व खत्म होना चाहिए। यही धर्मनिरपेक्षता का मूलमंत्र है। इस अध्याय में हम यही चर्चा करेंगे कि भारतीय संदर्भ में इसका क्या अर्थ है। |
NCERT Solutions Class 8th Civics Chapter – 2 धर्मनिरपेक्षता की समझ (Understanding Secularism)
Chapter – 2
धर्मनिरपेक्षता की समझ
Notes
जोर-जबरदस्ती – इसका मतलब है किसी को कोई चीज़ करने के लिए मजबूर करना। इस अध्याय के संदर्भ में यह शब्द राज्य जैसी किसी कानूनी सत्ता द्वारा ताकत के इस्तेमाल से है।
व्याख्या की स्वतंत्रता – सभी व्यक्तियों को अपने हिसाब से चीजों को समझने की छूट होती है। इस अध्याय में व्याख्या की स्वतंत्रता का मतलब है कि हरेक व्यक्ति अपने धर्म की समझ और अर्थ खुद तय कर सकता है।
हस्तक्षेप – प्रस्तुत अध्याय में इसका मतलब है संविधान के सिद्धांतों के अनुरूप किसी मामले को प्रभावित करने के लिए राज्य की ओर से होने वाला प्रयास।
धर्मनिरपेक्षता –
• भारतीय संविधान सभी को अपने धार्मिक विश्वासों और तौर-तरीकों को अपनाने की पूरी छूट देता है। सबके लिए समान धार्मिक स्वतंत्रता रखते हुए भारतीय राज्य ने धर्म और राज्य की शक्ति को एक-दूसरे से अलग रखने की रणनीति अपनाई है। और धर्म को राज्य से अलग रखने की इसी अवधारणा को धर्मनिरपेक्षता कहा जाता है।
• धर्मनिरपेक्षता के दो मौलिक आधार है। पहला आधार यह है कि कानून, संविधान और सरकार की नजर में विभिन्न धर्मों को मानने वाले एक समान हैं। दूसरा आधार यह है कि धर्म और राजनीति को एक दूसरे से पूरी तरह अलग रहना चाहिए।
• इसका अर्थ यह हुआ कि धर्म के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए। साथ ही बहुसंख्यक समुदाय के लोगों की निरंकुशता पूरी तरह से नियंत्रण में होनी चाहिए। यदि राजनीति में धर्म का दखल होने लगता है तो इससे बहुसंख्यक समुदाय के हाथों में सत्ता का एकाधिकार आ जाता है। इससे बहुसंख्य की निरंकुशता का खतरा बढ़ जाता है।
• भारत का संविधान यहाँ के नागरिकों को अपनी पसंद का धर्म मानने और उसकी अपने तरीके से व्याख्या करने की छूट देता है। इसके अलावा भारत में धर्म की शक्ति को राज्य की शक्ति से बिलकुल अलग रखा गया है।
धर्म को राज्य से अलग रखना महत्त्वपूर्ण क्यों है –
• धर्मनिरपेक्षता का सबसे महत्त्वपूर्ण पहलू है धर्म को राजसत्ता से अलग करना। एक लोकतांत्रिक देश में यह बहुत ज़रूरी है। दुनिया के तकरीबन सारे देशों में एक से ज्यादा धर्मों के लोग साथ-साथ रहते हैं। अब अगर बहुमत वाले धर्म के लोग राज्य सत्ता में पहुँच जाते हैं तो उनका समूह दूसरे धर्मों के खिलाफ़ भेदभाव करने और उन्हें परेशान करने के लिए इस सत्ता और राज्य के आर्थिक संसाधनों का इस्तेमाल कर सकता है।
• बहुमत की इस निरंकुशता के चलते धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव हो सकता है। उनके साथ ज़ोर-ज़बरदस्ती हो सकती है। यहाँ तक कि कई बार उनकी हत्या भी कर दी जाती है। बहुमत चाहे तो अल्पसंख्यकों को उनके धर्म के अनुसार जीने से रोक सकता है।
• धर्म के आधार पर किसी भी तरह का भेदभाव उन अधिकारों का उल्लंघन है जो एक लोकतांत्रिक समाज किसी भी धर्म को मानने वाले अपने प्रत्येक नागरिक को प्रदान करता है। लिहाजा बहुमत की निरंकुशता और उसके कारण मौलिक अधिकारों का हनन, वह अहम कारण है जिसके चलते लोकतांत्रिक समाजों में राज्य और धर्म को अलग-अलग रखना इतना महत्त्वपूर्ण माना जाता है।
• लोकतांत्रिक समाजों में धर्म को राज्य से अलग रखने का एक महत्त्वपूर्ण कारण यह है कि हमें लोगों के धार्मिक चुनाव के अधिकार की रक्षा करनी है। इसका अर्थ यह है कि देश के किसी भी व्यक्ति को एक धर्म से निकलने और दूसरे धर्म को अपनाने या धार्मिक उपदेशों की अलग ढंग से व्याख्या करने की स्वतंत्रता होती है।
भारतीय धर्मनिरपेक्षता क्या है – भारतीय संविधान में कहा गया है कि भारतीय राज्य धर्मनिरपेक्ष रहेगा। हमारे संविधान के अनुसार, केवल धर्मनिरपेक्ष राज्य ही अपने उद्देश्यों को साकार करते हुए निम्नलिखित बातों का खयाल रख सकता है –
1. कोई एक धार्मिक समुदाय किसी दूसरे धार्मिक समुदाय को न दबाए।
2. कुछ लोग अपने ही धर्म के अन्य सदस्यों को न दबाएँ।
3. राज्य न तो किसी खास धर्म को थोपेगा और न ही लोगों की धार्मिक स्वतंत्रता छीनेगा।
• इस तरह के दबदबे को रोकने के लिए भारतीय राज्य कई तरह से काम करता है। पहला तरीका यह है कि वह खुद को धर्म से दूर रखता है। भारतीय राज्य की बागडोर न तो किसी एक धार्मिक समूह के हाथों में है और न ही राज्य किसी एक धर्म को समर्थन देता है।
• भारत में कचहरी, थाने, सरकारी विद्यालय और दफ़्तर जैसे सरकारी संस्थानों में किसी खास धर्म को प्रोत्साहन देने या उसका प्रदर्शन करने की अपेक्षा नहीं की जाती है।
• धार्मिक वर्चस्व को रोकने के लिए भारतीय धर्मनिरपेक्षता का दूसरा तरीका है अहस्तक्षेप की नीति। इसका मतलब है कि सभी धर्मों की भावनाओं का सम्मान करने और धार्मिक क्रियाकलापों में दखल न देने के लिए, राज्य कुछ खास धार्मिक समुदायों को कुछ विशेष छूट देता है।
• धार्मिक वर्चस्व को रोकने के लिए भारतीय धर्मनिरपेक्षता का तीसरा तरीका हस्तक्षेप का तरीका है। यह इस बात का उपयुक्त उदाहरण है कि किस तरह एक ही धर्म के लोग (‘ऊँची जाति’ के हिंदू) अपने ही धर्म के अन्य सदस्यों कुछ ‘निचली जातियों’) को दबाते हैं। धर्म के नाम पर अलग-थलग करने और भेदभाव को रोकने के लिए भारतीय संविधान ने छआछत पर पाबंदी लगाई है।
भारतीय धर्मनिरपेक्षता दूसरे लोकतांत्रिक देशों की धर्मनिरपेक्षता से किस तरह अलग है –
• ऊपर दिए गए तीनों उद्देश्य दुनिया के अन्य धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक देशों के संविधान में दिए गए उद्देश्यों से मिलते-जुलते हैं। अमेरिकी संविधान में हुए पहले संविधान संशोधन के ज़रिए विधायिका को ऐसे कानून बनाने से रोक दिया गया है जो ” धार्मिक संस्थानों का पक्ष लेते ” हों या “ धार्मिक स्वतंत्रता को रोकते” हों।
• इसको समझो की विधायिका किसी भी धर्म को राजकीय धर्म घोषित नहीं कर सकती, न ही विधायिका किसी एक धर्म को ज्यादा प्राथमिकता दे सकती है। संयुक्त राज्य अमेरिका में राज्य और धर्म के पृथक्करण का मतलब है। कि राज्य और धर्म, दोनों ही एक-दूसरे के मामलों में किसी तरह का दखल नहीं दे सकते।
• आशा करता हु की आप समझ गए होंगे कि भारतीय धर्मनिरपेक्षता और अमेरिकी धर्मनिरपेक्षता के बीच एक अहम फ़र्क है। ऐसा इसलिए है कि अमेरिकी धर्मनिरपेक्षता में धर्म और राज्य के बीच स्पष्ट अलगाव के विपरीत भारतीय धर्मनिरपेक्षता में राज्य को धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप करने की छूट दी गई है।
महत्वपूर्ण बाते
1. संविधान ने छुआछूत को खत्म करने के लिए हिंदू धार्मिक क्रियाकलापों में हस्तक्षेप किया है। भारतीय धर्मनिरपेक्षता में राज्य धर्म से अलग तो है, लेकिन धर्म से उसका फ़ासला सैद्धांतिक है। इसका मतलब यह है कि संविधान में दिए गए आदर्शों के आधार पर राज्य किसी भी धर्म के मामलों में हस्तक्षेप कर सकता है।
2. ये आदर्श वह कसौटी मुहैया कराते हैं जिसके जरिए इस बारे में फैसला लिया जा सकता है कि हमारा राज्य धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों के अनुरूप काम कर रहा है या नहीं। भारतीय राज्य धर्मनिरपेक्ष है और धार्मिक वर्चस्व को रोकने के लिए कई तरह से काम करता है।
3. भारतीय संविधान अपने नागरिकों को मौलिक अधिकारों का आश्वासन देता है। ये मूलभूल अधिकार इन धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों पर आधारित हैं। लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि भारतीय समाज में इन अधिकारों का उल्लंघन बंद हो गया है।
4. बल्कि वास्तव में ऐसे उल्लंघनों की वजह से ही हमारे सामने संवैधानिक व्यवस्था की जरूरत बनी हुई है। इस तरह के अधिकारों के होने का ज्ञान हमें इन अधिकारों के उल्लंघन के प्रति संवेदनशील बनाता है। जब कभी ऐसा होता है तो हमें इसके खिलाफ़ सही कदम उठाने की क्षमता भी उसी से मिलती है।
NCERT Solution Class 8th Social Science (Civics) Notes in Hindi |
NCERT Solution Class 8th Social Science (Civics) Question Answer in Hindi |
NCERT Solution Class 8th Social Science (Civics) MCQ in Hindi |
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