Ncert Solutions Class – 8th Social Science (Civics) Capter – 1 भारतीय संविधान (The Indian Constitution)
Textbook | NCERT |
Class | 8th |
Subject | Social Science (नागरिक शास्र) |
Chapter | 1st |
Chapter Name | भारतीय संविधान (The Indian Constitution) |
Category | Class 8th Social Science (नागरिक शास्र) |
Medium | Hindi |
Source | Last Doubt |
NCERT Solutions Class 8th Social Science (Civics) Chapter – 1 भारतीय संविधान (The Indian Constitution) Notes in Hindi भारत के संविधान के लेखक कौन है?, भारत का संविधान कितने लोगों ने लिखा था?, भारतीय संविधान कैसे बना है?, संविधान कहां रखा गया है?, भारत में कुल कितनी धाराएं हैं?, संविधान के पहले पन्ने पर किसका फोटो है?, संविधान के अंतिम पेज पर किसका नाम लिखा है?, संविधान बनाने वाला व्यक्ति कौन है?, संविधान का पहला पेज कौन सा है?, भारत के संविधान में कितने पेज हैं?, भारत के संविधान में कितने शब्द हैं?, राष्ट्रपति का पद कहाँ से लिया गया है?, संविधान कब लिखा गया था? आदि के बारे में पढ़ेंगे। |
Ncert Solutions Class 8th Social Science (Civics) Chapter – 1 भारतीय संविधान (The Indian Constitution)
Chapter – 1
भारतीय संविधान
Notes
किस देश को संविधान की जरूरत क्यों पड़ती है – किसी भी देश को सुचारू रूप से चलाने के लिए संविधान की आवश्यकता पड़ती है। संविधान, कानूनों का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है। जो सरकार की मूल संरचना और इसके कार्यों को निर्धारित करता है। जिसके अनुसार देश का शासन चलता है। प्रत्येक सरकार संविधान के अनुसार कार्य करती है। संविधान देश के अन्य सभी कानूनों से श्रेष्ठ होता है। यह सर्वोच्च कानून है। जो सरकार के अंगों तथा नागरिकों के आधारभूत अधिकारों को परिभाषित तथा सीमांकित करता है।
अंतर – सामुदायिक (Inter-community) – यह दबदबा एक समुदाय द्वारा दूसरे समुदाय के ऊपर भी हो सकता है जिसे अंतर – सामुदायिक (Inter-community) वर्चस्व कहते हैं।
अंत:सामुदायिक (Intra-community) – एक ही समुदाय के भीतर कुछ लोग दूसरों को दबा सकते हैं, जिसे अंत: सामुदायिक (Intra-community) वर्चस्व कहते हैं।
संविधान क्यों होना चाहिए – इसका महत्त्वपूर्ण कारण यह है हम खुद को अपने आप से बचा सकें। यह बात सुनने में जरा अजीब लगती है। असल में इसका मतलब यह है कि कई बार हम किसी मुद्दे पर बहुत तीखे ढंग से सोचने लगते हैं। ऐसे विचार हमारे व्यापक हितों के लिए नुकसानदेह हो सकते हैं। संविधान हमें ऐसी भावनाओं से बचाने में मदद करता है।
संविधान के मुख्य लक्षण – भारत में लंबे समय तक चलने वाले अंग्रेजी राज के कारण लोगों को यह बात समझ में आने लगी थी कि आजाद भारत में एक लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था होनी चाहिए। लोग ऐसा इसलिए चाहते थे कि उनकी इच्छा थी कि हर नागरिक को समान अधिकार मिले और हर नागरिक को सरकार में शामिल होने का मौका मिले। भारत के संविधान के कुछ मुख्य लक्षण नीचे दिए गए हैं।
संघवाद (Federalism) – इसका मतलब है कि भारत में शासन के एक से अधिक स्तर हैं। हमारे देश में राज्य स्तर और केंद्रीय स्तर पर अलग अलग सरकारें हैं। पंचायती राज तीसरे स्तर की सरकार का नाम है। राज्य सरकारों को कुछ मुद्दों पर स्वायत्तता मिली हुई है, जबकि राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर केंद्र सरकार का अधिकार होता है। भारत के हर नागरिक पर विभिन्न स्तर की सरकारों के बनाए नियम लागू होते हैं।
संसदीय शासन पद्धति – सरकार के सभी स्तरों पर प्रतिनिधियों का चुनाव लोग खुद करते हैं। भारत का संविधान अपने सभी वयस्क नागरिकों को वोट डालने का अधिकार देता है। संविधान सभा के सदस्य जब संविधान की रचना कर रहे थे तो उन्हें लगा कि स्वतंत्रता संघर्ष ने भारतीय जनता को वयस्क मताधिकार का प्रयोग करने के योग्य बना दिया है।
शक्तियों का बँटवारा – संविधान के अनुसार, सरकार के तीन अंग हैं। इन अंगों के नाम हैं विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका। विधायिका का गठन जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों से होता है। कार्यपालिका में वे लोग आते हैं तो कानूनों को लागू करने और सरकार चलाने का काम करते हैं। कोर्ट के सिस्टम को न्यायपालिका कहते हैं।
संविधान ने सरकार के तीनों अंगों को अलग-अलग शक्तियाँ प्रदान की हैं ताकि कोई भी एक अंग अपनी शक्तियों का दुरुपयोग न कर सके। इस तरह से सरकार का हर अंग दूसरे अंग पर अंकुश रखता है और तीनों अंगों के बीच सत्ता का संतुलन बना रहता है।
मौलिक अधिकार – मौलिक अधिकारों को अक्सर भारतीय संविधान की अंतरात्मा माना जाता है। मौलिक अधिकार, नागरिकों को सरकार द्वारा शक्तियों के मनमाने दुरुपयोग से बचाते हैं। इस तरह से संविधान यहाँ के नागरिकों के अधिकारों की सरकार से और अन्य नागरिकों से सुरक्षा की गारंटी देता है। संविधान अल्पसंख्यकों के अधिकारों की बहुसंख्यकों से सुरक्षा की भी गारंटी देता है।
इसके अलावा हमारे संविधान में एक खंड नीति निर्देशक तत्वों (डायरेक्टिव प्रिंसिप्ल्स ऑफ स्टेट पॉलिसी) का भी है। संविधान सभा के सदस्यों ने इस खंड को इसलिए बनाया था तकि सामाजिक और आर्थिक सुधार बेहतर तरीके से हो सकें। इसे इस उद्देश्य से भी बनाया गया था ताकि स्वतंत्र भारत में सरकारों द्वारा जनता की गरीबी हटाने के लिए उचित कानून और नीतियाँ बन सकें।
धर्मनिरपेक्षता – जिस राज्य में किसी भी धर्म को राजकीय धर्म का दर्जा नहीं दिया जाता है और हर धर्म को एक समान माना जाता है उसे धर्मनिरपेक्ष राज्य कहते हैं।
मौलिक अधिकारों की लिस्ट
1. समानता का अधिकार
2. स्वतंत्रता का अधिकार
3. शोषण के विरुद्ध अधिकार
4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार
5. सांस्कृतिक और शैक्षणिक अधिकार
6. संवैधानिक उपचार का अधिकार
1. समानता का अधिकार – कानून की नज़र में सभी लोग समान हैं। इसका मतलब है कि सभी लोगों को देश का कानून बराबर सुरक्षा प्रदान करेगा। इस अधिकार में यह भी कहा गया है कि धर्म, जाति या लिंग के आधार पर किसी भी नागरिक के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता। खेल के मैदान, होटल, दुकान इत्यादि सार्वजनिक स्थानों पर सभी को बराबर पहुँच का अधिकार होगा। रोज़गार के मामले में राज्य किसी के साथ भेदभाव नहीं कर सकता। लेकिन इसके कुछ अपवाद हैं। जिनके बारे में इसी किताब में हम आगे पढ़ेंगे। छुआछूत की प्रथा का भी उन्मूलन कर दिया गया है।
2. स्वतंत्रता का अधिकार – इस अधिकार के अंतर्गत अभिव्यक्ति और भाषण की स्वतंत्रता, सभा / संगठन बनाने की स्वतंत्रता, देश के किसी भी भाग में आने-जाने और रहने तथा कोई भी व्यवसाय, पेशा या कारोबार करने का अधिकार शामिल है।
3. शोषण के विरुद्ध अधिकार – संविधान में कहा गया है कि मानव व्यापार, जबरिया श्रम और 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को मज़दूरी पर रखना अपराध है।
4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार – सभी नागरिकों को पूरी धार्मिक स्वतंत्रता दी गई है। प्रत्येक व्यक्ति को अपनी इच्छा का धर्म अपनाने, उसका प्रचार-प्रसार करने का अधिकार है।
5. सांस्कृतिक और शैक्षणिक अधिकार – संविधान में कहा गया है कि धार्मिक या भाषाई, सभी अल्पसंख्यक समुदाय अपनी संस्कृति की रक्षा और विकास के लिए अपने-अपने शैक्षणिक संस्थान खोल सकते हैं।
6. संवैधानिक उपचार का अधिकार – यदि किसी नागरिक को लगता है कि राज्य द्वारा उसके किसी मौलिक अधिकार का उल्लंघन हुआ है तो इस अधिकार का सहारा लेकर वह अदालत में जा सकता है।
शब्द संकलन
1. मनमानापन – जब सब कुछ किसी के व्यक्तिगत फ़ैसलों या पसंद-नापसंद से चलने लगता है तो उसे मनमानापन कहा जाता है। जहाँ नियम तय नहीं किए गए हों या जहाँ फैसलों का कोई आधार नहीं है, उसे ही मनमाना कहा जा सकता है।
2. आदर्श – जब कोई लक्ष्य या सिद्धांत अपने सबसे शुद्ध या सर्वश्रेष्ठ रूप में होता है तो उसे आदर्श कहा जाता है।
3. भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन – भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का उदय उन्नीसवीं सदी में हुआ था। इस आंदोलन में हज़ारों मर्द-औरत ब्रिटिश शासन से लोहा लेने के लिए एकजुट हो गए थे। यह आंदोलन 1947 में भारत की आज़ादी में परिणत हुआ। इसी वर्ष की इतिहास की पाठ्यपुस्तक में इस आंदोलन को आप और अच्छी तरह से जानेंगे।
4. राज्य व्यवस्था (Polity) – इसका आशय एक ऐसे समाज से है जिसकी राजनीतिक संरचना व्यवस्थित है। भारत एक लोकतांत्रिक राज्यव्यवस्था है।
5. संप्रभु – इस अध्याय के संदर्भ में स्वतंत्र जनता को संप्रभु कहा गया है।
6. मानव व्यापार – राष्ट्रीय सीमाओं के आर-पार विभिन्न चीज़ों की ग़ैरकानूनी खरीद-बिक्री को अवैध व्यापार कहा जाता है। इस अध्याय में जिन मौलिक अधिकारों की चर्चा की गई है, उनके संबंध में अवैध व्यापार का मतलब औरतों और बच्चों की ग़ैरकानूनी ख़रीद-फ़रोख्त से है जिसे मानव व्यापार कहा जाता है।
7. निरंकुशता – इसका मतलब सत्ता या अधिकारों के क्रूर एवं अन्यायपूर्ण इस्तेमाल से है।
NCERT Solution Class 8th Social Science (Civics) Notes in Hindi |
NCERT Solution Class 8th Social Science (Civics) Question Answer in Hindi |
NCERT Solution Class 8th Social Science (Civics) MCQ in Hindi |
You Can Join Our Social Account
Youtube | Click here |
Click here | |
Click here | |
Click here | |
Click here | |
Telegram | Click here |
Website | Click here |