NCERT Solutions Class 6th Social Science इतिहास Chapter – 4 क्या बताती हैं हमें किताबें और कब्रें (What Books and Burials Tell US)
Textbook | NCERT |
Class | 6th |
Subject | Social Science (इतिहास) |
Chapter | 4th |
Chapter Name | क्या बताती हैं हमें किताबें और कब्रें (What Books and Burials Tell US) |
Category | Class 6th Social Science (इतिहास) |
Medium | Hindi |
Source | Last Doubt |
Class 6th Social Science इतिहास Chapter – 4 क्या बताती हैं हमें किताबें और कब्रें Notes in Hindi इस अध्याय में जानेगे की वेद, भाषाओं के कुछ मुख्य परिवार, इंडो-यूरोपियन परिवार, तिब्बतो-बर्मन परिवार, ऑस्ट्रो-एशियेटिक परिवार, इतिहासकार और ऋग्वेद, विश्वामित्र और नदियाँ, मवेशी, घोड़े और रथ, लोगों की विशेषता बताने वाले शब्द, खामोश प्रहरी- कहानी महापाषाणों की, लोगों की सामाजिक असमानता, क्या कुछ कन्नगाहें खास परिवारों के लिए थीं?, इनामगाँव के एक विशिष्ट व्यक्ति की कब्र, क्या बताते हैं हमें कंकालों के अध्ययन और इनामगाँव के लोगों के काम-धंधे, आदि के बारे में पढ़ेंगे। |
NCERT Solutions Class 6th Social Science इतिहास Chapter – 4 क्या बताती हैं हमें किताबें और कब्रें (What Books and Burials Tell US)
Chapter – 4
क्या बताती हैं हमें किताबें और कब्रें
Notes
वेद चार प्रकार के होते हैं-
• ऋग्वेद
• सामवेद
• यजुर्वेद
• अथर्ववेद
ऋग्वेद – यह सबसे पुराना वेद है और इसकी रचना लगभग 3500 साल पहले हुई थी। ऋग्वेद में एक हजार से अधिक सूक्त शामिल है।
वेद (Veda) – सबसे पहले वेद की रचना आज से लगभग 3500 वर्ष पहले हुई थी। आपको शायद पता होगा कि चार वेदों हैं जिनका नाम ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद। इनमें से सबसे पहले ऋग्वेद की रचना हुई थी।
(i) ऋग्वेद में 1000 से अधिक प्रार्थनाएँ हैं जिन्हें सूक्त कहा जाता है। सूक्त का मतलब होता है “अच्छी तरह से बोला गया” है। ऋग्वेद में तीन मुख्य देवताओं का वर्णन है। आग के देवता अग्नि का है, वर्षा के देवता इंद्र का हैं और सोम एक पौधा है। इस पौधे से एक विशेष प्रकार का पेय बनाया जाता था।
(ii) ऋग्वेद की प्रार्थना लोगों के लिए वर्षा और आग के महत्व को दर्शाती हैं। हम जानते हैं कि अच्छी फसल के लिए वर्षा जरूरी है। प्रचुर मात्रा में पीने के पानी के लिए भी वर्षा जरूरी है। तथा आग का इस्तेमाल हम भोजन पकाने और अन्य कई कामों के लिए करते हैं।
(iii) इन प्रार्थनाओं की रचना ऋषियों द्वारा की गई थी, जो अत्यंत विद्वान पुरुष होते थे। कुछ महिलाओं ने भी ऐसी प्रार्थनाओं की रचना की है। जो की ऋग्वेद में प्राक-संस्कृत या वैदिक संस्कृत का प्रयोग हुआ है। यह आज की संस्कृत से कुछ कुछ अलग सा है।
संस्कृत और अन्य भाषाएँ – संस्कृत भाषा भारोपीय (भारत-यूरोपीय) भाषा-परिवार का हिस्सा है। भारत की कई भाषाएँ – असमिया, गुजराती, हिंदी, कश्मीरी और सिंधी, एशियाई भाषाएं जैसे फ़ारसी तथा यूरोप की बहुत-सी भाषाएँ जैसे- अंग्रेज़ी, फ्रांसीसी, जर्मन, यूनानी, इतालवी, स्पैनिश आदि इसी परिवार से जुड़ी हुई हैं। उन्हें एक भाषा-परिवार इसलिए कहा जाता है क्योंकि आरंभ में उनमें कई शब्द एक जैसे थे। उदाहरण के लिए ‘मातृ’ (संस्कृत), माँ (हिंदी) और ‘मदर’ (अंग्रेज़ी) शब्द को देखो।
क्या तुम्हें इनमें कोई समानता नज़र आती है?
उपमहाद्वीप में दूसरे भाषा – परिवारों की भी भाषाएँ बोली जाती हैं। उदाहरण के लिए पूर्वोत्तर प्रदेशों में तिब्बत-बर्मा परिवार की भाषाएँ बोली जाती हैं। तमिल, तेलुगु, कन्नड़ और मलयालम, द्रविड़ भाषा-परिवार की भाषाएँ हैं। जबकि झारखंड और मध्य भारत के कई हिस्सों में बोली जाने वाली भाषाएँ ऑस्ट्रो-एशियाटिक परिवार से जुड़ी हैं।
भाषाओं के कुछ मुख्य परिवार
(1) इंडो-यूरोपियन परिवार – इस परिवार की भाषाएँ हैं जर्मन, फ्रेंच, इंगलिश, स्पैनिश, ग्रीक, संस्कृत, हिंदी, बंग्ला, असमिया, गुजराती, सिंधी, पंजाबी, आदि।
(2) तिब्बतो-बर्मन परिवार – इस परिवार की भाषाएँ भारत के पूर्वोत्तर भाग में बोली जाती हैं।
(3) द्रविड़ियन परिवार – इस परिवार की भाषाएँ हैं तमिल, तेलुगु, कन्नड़ और मलयालम।
(4) ऑस्ट्रो-एशियाटिक परिवार – इस परिवार की भाषाएँ झारखंड में और मध्य भारत के कुछ हिस्सों में बोली जाती हैं।
इतिहासकार ऋग्वेद का अध्ययन कैसे करते है?
इतिहासकार, पुरातत्त्ववेत्ताओं की तरह ही अतीत के बारे में जानकारी इकट्ठी, करते हैं। लेकिन भौतिक अवशेषों के अलावा वे लिखित स्रोतों का भी उपयोग करते हैं। चलो जानते हैं कि वे ऋग्वेद का अध्ययन कैसे करते हैं।
ऋग्वेद के कुछ सूक्त वार्तालाप के रूप में हैं। विश्वामित्र नामक ऋषि और देवियों के रूप में पूजित दो नदियों (व्यास और सतलुज) के बीच यह संवाद एक ऐसे ही सूक्त का अंश है।
इतिहासकार और ऋग्वेद – ऋषि विश्वामित्र ने नदी की तुलना गाय और घोड़े से की है। वह नदी पार करना चाहते हैं। इसलिए वह नदी से प्रार्थना कर रहे हैं ताकि वह नदी सुरक्षित पार कर जाएँ। इससे ये बाते पता चलती हैं उस जमाने में लोग जहाँ रहते थे वहाँ नदी मौजूद हुआ करती होगी।
(i) घोड़े और गायें लोगों के लिए महत्वपूर्ण जानवर थे। यातायात के लिए रथों का प्रयोग होता था। नदी को पार करने का शायद एक ही तरीका था चलकर जिसमे ऐसा करने में जान को खतरा था।
(ii) ऋग्वेद में सिंधु और इसकी सहायक नदियों का जिक्र है। सरस्वती नदी के बारे में भी ऋग्वेद में लिखा गया है। लेकिन गंगा और यमुना का नाम ऋग्वेद में केवल एक ही बार आया है। इन जानकारियों के आधार पर हम कुछ निष्कर्ष निकाल सकते हैं। जब ऋग्वेद की रचना हुई थी तब अधिकतर लोग सिंधु और उसकी सहायक नदियों के पास रहते थे। लेकिन लोगों को गंगा और यमुना के बारे में भी मालूम था।
विश्वामित्र और नदियाँ
विश्वामित्र – हे नदियों, अपने बछड़ों को चाटती हुई दो दमकती गायों की तरह, दो फुर्तीले घोड़ों की चाल से पहाड़ों से नीचे आओ। इन्द्र द्वारा दी हुई शक्ति से स्फूर्त तुम रथों की गति से सागर की ओर बह रही हो। तुम जल से परिपूर्ण हो और एक-दूसरे से मिल जाना चाहती हो।
नदियाँ – जल से परिपूर्ण हम देवताओं के बनाए रास्ते पर चलती हैं। एक बार निकलने पर हमें रोका नहीं जा सकता। हे ऋषि, तुम हमसे प्रार्थना क्यों कर रहे हो?
विश्वामित्र – हे बहनों, मुझ गायक की प्रार्थना सुनो। मैं रथों और गाड़ियों सहित बहुत दूर से आया हूँ। कृपा करके अपने जल को हमारे रथों और गाड़ियों की धुरियों के ऊपर न उठाओ ताकि हम आसानी से उस पार जा सकें।
नदियाँ – हम तुम्हारी प्रार्थना सुनेंगे, जिससे तुम सब सुरक्षित उस पार जा सको।
इतिहासकार यह बताते हैं कि यह प्रार्थना उस क्षेत्र में रची गई होगी जहाँ ये नदियाँ बहती हैं। वे यह भी सुझाते हैं कि जिस समाज में ऋषि रहते थे वहाँ घोड़ों और गायों को बहुत महत्त्व दिया जाता था। इसीलिए नदियों की तुलना घोड़ों और गायों से की गई है।
मवेशी, घोड़े और रथ
ऋग्वेद में मवेशियों, बच्चों (खासकर पुत्रों) और घोड़ों की प्राप्ति के लिए अनेक प्रार्थनाएँ हैं। घोड़ों को लड़ाई में रथ खींचने के काम में लाया जाता था। इन लड़ाईयों में मवेशी जीत कर लाए जाते थे।
लड़ाईयाँ वैसे ज़मीन के लिए भी लड़ी जाती थीं जहाँ अच्छे चारागाह हों या जहाँ पर जौ जैसी जल्दी तैयार हो जाने वाली फ़सलों को उपजाया जा सकता हो। कुछ लड़ाईयाँ पानी के स्रोतों और लोगों को बंदी बनाने के लिए भी लड़ी जाती थीं।
युद्ध में जीते गए धन का कुछ भाग सरदार रख लेते थे तथा कुछ हिस्सा पुरोहित को दिया जाता था। शेष धन आम लोगों में बाँट दिया जाता था। कुछ धन यज्ञ करने के लिए भी प्रयुक्त होता था। यज्ञ की आग में आहुति दी जाती थी। ये आहुतियाँ देवी-देवताओं को दी जाती थीं। घी, अनाज और कभी-कभी जानवरों की भी आहुति दी जाती थी।
अधिकांश पुरुष इन युद्धों में भाग लेते थे। कोई स्थायी सेना नहीं होती थी, लेकिन लोग सभाओं में मिलते-जुलते थे और युद्ध व शांति के विषय में सलाह-मशविरा करते थे। वहाँ ये ऐसे लोगों को अपना सरदार चुनते थे जो बहादुर और कुशल योद्धा हों।
लोगों की विशेषता बताने वाले शब्द – लोगों का वर्गीकरण काम, भाषा, परिवार या समुदाय, निवास स्थान या सांस्कृतिक परंपरा के आधार पर किया जाता रहा है। ऋग्वेद में लोगों की विशेषता बताने वाले कुछ शब्दों को देखो।
ऐसे दो समूह हैं जिनका वर्गीकरण काम के आधार पर किया गया है। पुरोहित जिन्हें कभी-कभी ब्राह्मण कहा जाता था तरह-तरह के यज्ञ और अनुष्ठान करते थे। दूसरे लोग थे राजा। ये राजा वैसे नहीं थे। ये न तो बड़ी राजधानियों और महलों में रहते थे, न इनके पास सेना थी, न ही ये कर वसूलते थे। प्रायः राजा की मृत्यु के बाद उसका बेटा अपने आप ही शासक नहीं बन जाता था।
खामोश प्रहरी- कहानी महापाषाणों की – ये शिलाखण्ड महापाषाण (महा : बड़ा, पाषाण : पत्थर) नाम से जाने जाते हैं। ये पत्थर दफ़न करने की जगह पर लोगों द्वारा बड़े करीने से लगाए गए थे।
महापाषाण कब्रें बनाने की प्रथा लगभग 3000 साल पहले शुरू हुई। यह प्रथा दक्कन, दक्षिण भारत, उत्तर-पूर्वी भारत और कश्मीर में प्रचलित थी। कई बार पुरातत्वविदों को गोलाकार सजाए हुए पत्थर मिलते हैं कई बार अकेला खड़ा हुआ पत्थर मिलता है यही एकमात्र प्रमाण है जो जमीन के नीचे कब्रों को दर्शाते हैं।
लोगों की सामाजिक असमानताओ के बारे में पता करना – पुरातत्वविद यह मानते हैं कि कंकाल के साथ पाई गई चीजें मरे हुए व्यक्ति की ही रही होंगी। कभी-कभी एक कब्र की तुलना में दूसरी कब्र में ज्यादा चीजें मिलती हैं।
यहाँ एक व्यक्ति की कब्र में 33 सोने के मनके और शंख पाए गए हैं। दूसरे कंकालों के पास सिर्फ़ कुछ मिट्टी के बर्तन ही पाए गए। यह दफ़नाए गए लोगों की सामाजिक स्थिति में भिन्नता को दर्शाता है। कुछ लोग अमीर थे तो कुछ लोग गरीब, कुछ लोग सरदार थे तो दूसरे अनुयायी।
क्या कुछ कन्नगाहें खास परिवारों के लिए – कभी-कभी महापाषाणों में एक से अधिक कंकाल मिले हैं। वे यह दर्शाते हैं कि शायद एक ही परिवार के लोगों को एक ही स्थान पर अलग-अलग समय पर दफ़नाया गया था।
बाद में मरने वाले लोगों को पोर्ट-होल के रास्ते कब्रों में लाकर दफ़नाया जाता था। ऐसे स्थान पर गोलाकार लगाए गए पत्थर या चट्टान चिह्नों का काम करते थे, जहाँ लोग आवश्यकतानुसार शवों को दफ़नाने दुबारा आ सकते थे।
क्या बताते हैं हमें कंकालों के अध्ययन – छोटे आकार के आधार पर एक बच्चे के कंकाल को आसानी से पहचाना जा सकता है। लेकिन एक बच्चे और बच्ची के कंकाल के बीच कोई बड़ा फ़र्क नहीं होता।
क्या हम यह पता लगा सकते हैं कि कंकाल किसी पुरुष का था या स्त्री का?
कभी-कभी लोग कंकाल के साथ मिले सामानों के आधार पर इसका अंदाजा लगाते हैं। उदाहरण के लिए यदि कंकाल के साथ गहने मिलते हैं तो कई बार उसे महिला का कंकाल मान लिया जाता है। लेकिन ऐसी समझ के साथ समस्याएँ हैं। अक्सर पुरुष भी आभूषण पहनते थे।
कंकाल का लिंग पहचानने का बेहतर तरीका उसकी हचि स्त्रयों की जाँच है। चूँकि महिलाएँ बच्चों को जन्म देती हैं इसलिए उनका कटि प्रदेश या कूल्हा पुरुषों से ज्यादा बड़ा होता है। ये समझ कंकालों के आधुनिक अध्ययन पर आधारित है।
आज से लगभग 2000 साल पहले चरक नाम के प्रसिद्ध वैद्य हुए थे। उन्होंनें चिकित्सा शास्त्र पर चरक सहिता नाम की किताब लिखी। वे कहते हैं कि मनुष्य के शरीर में 360 हचि स्त्रयां होती हैं। यह आधुनिक शरीर रचना विज्ञान की 206 हचि स्त्रयों से काफी ज्यादा हैं। सम्भवतः चरक ने अपनी गिनती में दाँत, हचि स्त्रयों के जोड़ और कार्टिलेज को जोड़कर यह संख्या बताई थी।
इनामगाँव के लोगों के काम-धंधे – इनामगाँव में पुरातत्त्वविदों को गेहूं, जौ, चावल, दाल, बाजरा, मटर और तिल के बीज मिले हैं। कई जानवरों की हड्डियाँ भी मिली हैं। कई हड्डियों पर काटने के निशान से यह अंदाजा होता है कि लोग इन्हें खाते होंगे।
गाय, बैल, भैंस, बकरी, भेड़, कुत्ता, घोड़ा, गधा, सूअर, साँभर, चितकबरा हिरण, कृष्ण-मृग, खरहा, नेवला, चिड़ियाँ, घड़ियाल, कछुआ, केकड़ा और मछली की हड्डियाँ भी पाई गई हैं। ऐसे साक्ष्य मिले हैं कि बेर, आँवला, जामुन, खजूर और कई तरह की रसभरियाँ एकत्र की जाती थीं।
कुछ महत्वपूर्ण तिथियाँ
• वेदों की रचना का प्रारंभ (लगभग 3500 साल पहले)
• महापाषाणों के निर्माण की शुरुआत (लगभग 3000 साल पहले)
• इनामगाँव में कृषकों का निवास (3600 से 2700 साल पहले)
• चरक (लगभग 2000 साल पहले)
प्रश्न 1. वेद किसे कहते है?
प्रश्न 2. भाषा क्या है?
प्रश्न 3. सबसे पहले किस वेद की रचना हुई?
प्रश्न 4. ऋग्वेद में कितने सूक्त हैं?
प्रश्न 5. महापाषाण कब्रें बनाने की प्रथा कब शुरू हुई?
प्रश्न 6. कब्र किसे कहते हैं?
प्रश्न 7. दास किसे कहते हैं
प्रश्न 8. कंकाल किसे कहते हैं?
प्रश्न 9. ऋग्वेद के वार्तालाप किस रूप में है?
प्रश्न 10. आर्य लोग कहाँ से आए थे?
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