NCERT Solutions Class 6th Social Science (Civics) Chapter – 8 शहरी क्षेत्र में आजीविका (Urban Livelihoods)
Textbook | NCERT |
Class | 6th |
Subject | Social Science (Civics) |
Chapter | 8th |
Chapter Name | शहरी क्षेत्र में आजीविका (Urban Livelihoods) |
Category | Class 6th सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन (Civics) |
Medium | Hindi |
Source | Last Doubt |
NCERT Solutions Class 6th Social Science (Civics) Chapter – 8 शहरी क्षेत्र में आजीविका (Urban Livelihoods) Notes in Hindi जिसमे हम शहरी क्षेत्र में आजीविका, आप क्या सीखेंगे, शहरों में रोजगार, स्थाई रोजगार, स्थाई रोजगार, अस्थाई रोजगार, अस्थाई रोजगार, दिहाड़ी मजदूर, सामाजिक सुरक्षा शहरी क्षेत्र में आजीविका, ग्रामीण क्षेत्र में आजीविका Notes, शहरी क्षेत्र में आजीविका के 6 साधन, शहरी क्षेत्र में आजीविका के छह साधन, ग्रामीण क्षेत्र में आजीविका, शहरी क्षेत्रों में आजीविका के कौन-कौन से साधन है किन्हीं 6 साधनों को लिखिए।, शहरी क्षेत्रों में आजीविका के साधन, शहरी क्षेत्र में आजीविका के कौन-कौन से साधन है कि नीचे साधनों को लिखिए आदि के बारे में पढ़ेंगे। |
NCERT Solutions Class 6th Social Science Civics Chapter – 8 शहरी क्षेत्र में आजीविका (Urban Livelihoods)
Chapter – 8
शहरी क्षेत्र में आजीविका
Notes
सामाजिक सुरक्षा गाँव वा शहर– गाँव की तुलना में शहर का आकार काफी बड़ा होता है। गाँव की आबादी अगर हजारों में होती है, तो शहर की आबादी लाखों में होती है। कई बड़े शहरों की आबादी तो करोड़ों में भी हो सकती है।
बच्चू माँझी एक रिक्शावाला – मैं बिहार के एक गाँव से आया हूँ जहाँ मैं मिस्त्री का काम करता था। मेरी बीवी और तीन बच्चे गाँव में ही रहते हैं। हमारे पास ज़मीन नहीं है। गाँव में मिस्त्रीगिरी का काम लगातार नहीं मिलता था। जो कमाई होती थी वह परिवार के लिए पूरी नही पड़ती थी। जब मैं शहर पहुँचा तो मैंने यहाँ एक पुराना रिक्शा खरीदा और इसका पैसा किस्तों में चुकाया। यह काफ़ी साल पहले की बात है। रोज़ सुबह बस स्टॉप पर पहुँच जाता हूँ और ग्राहक जहाँ भी जाना चाहे, उन्हें वहाँ छोड़ देता हूँ। ऐसा ही रात को आठ-नौ बजे तक रिक्शा चलाता और फिर घर चला जाता हूँ।
मैं शहर की एक कॉलोनी में आस-पास करीब छः किलोमीटर तक रिक्शा चलाता हूँ। दूरी के हिसाब से हर ग्राहक मुझे 10-30 रुपए तक देता है। जब तबीयत खराब हो जाती है तब मैं यह काम नहीं कर पाता। उन दिनों कमाई बिल्कुल नहीं हो पाती। मैं अपने दोस्तों के साथ किराए के कमरे में रहता हूँ। वे सब पास की फ़ैक्टरी में काम करते हैं।
रोज़ 200-300 रुपए तक मेरी कमाई हो जाती है जिसमें से 100-150 रुपए खाने और किराए पर खर्च हो जाते हैं। बाकी मैं परिवार के लिए बचा लेता हूँ। साल में दो तीन बार मैं अपने परिवार से मिलने गाँव जाता हूँ। जो पैसा शहर से भेजता हूँ, मेरा परिवार उसी पर जीता है। कभी-कभार मेरी बीवी खेतों में मज़दूरी करके थोड़ा-बहुत कमा लेती है।
शहर क्या है – जिस स्थान पर लोगों का मुख्य पेशा खेतीबारी नहीं होता है, उसे शहर कहते हैं। कृषि उत्पाद के लिए शहर को गाँवों पर निर्भर रहना पड़ता है। शहर में पेशों की एक लंबी लिस्ट बन सकती है। शहर के बहुत ही कम लोग एक दूसरे को जानते हैं लेकिन हर व्यक्ति के काम के कारण दूसरों का जीवन सरल बनता है। शहर में पाये जाने वाले प्रत्येक व्यवसाय का वर्णन मुश्किल है, लेकिन कुछ सरलीकरण तो किया ही जा सकता है। शहर के कुछ पेशों के बारे में नीचे दिया गया है।
सरकारी नौकरी – शहर में कुछ लोग सरकारी नौकरी करते हैं। इनमें से कुछ केंद्र सरकार के लिए तो कुछ राज्य सरकार के लिए काम करते हैं। सरकारी नौकरी में कई स्तर होते हैं। सबसे शिखर पर अधिकारी आते हैं। उनके बाद क्लर्क होते हैं। सबसे नीचे चपरासी, ड्राइवर, रसोइया, माली, आदि होते हैं।
सरकारी नौकरी स्थाई होती है। इसका मतलब है, कि सरकारी कर्मचारी इस बात के लिए निश्चिंत रहता है कि वह रिटायरमेंट होने तक नौकरी करता रहेगा। सरकारी नौकरी में वेतन नियमित रूप से मिलता है। वेतन के अलावा और भी कई सुविधाएँ मिलती हैं।
सरकारी नौकरी के लाभ – सरकारी कर्मचारी से काम करने वाले व्यक्ति और उसके परिवार के सदस्यों को स्वास्थ्य सुविधाएँ भी मिलती हैं। एक नियत राशि तक इलाज में लगे खर्चे का भुगतान सरकार द्वारा किया जाता है।
प्राइवेट कंपनी की नौकरी – कई लोग निजी कंपनियों में काम करते हैं। कुछ प्राइवेट कम्पनियाँ काफी बड़ी होती है। इन कम्पनियों द्वारा लगभग हर वह सुविधा दी जाती है जो सरकारी नौकरी में मिलती है। स्थाई कर्मचारी तथा अस्थाई कर्मचारी: स्थाई कर्मचारियों को अक्सर अच्छी तनख्वाह मिलती जिससे उनकी नौकरी भी सुरक्षित रहती है। लेकिन अस्थाई कर्मचारियों को ऐसी सुविधाएँ नहीं मिलती हैं।
बाजार – बाजार वह जगह होती है जिसमे सभी प्रकार की आवशकता अनुशार या उपयोगी वस्तु हम सभी खरीद सकते है, और त्यौहार से पहले बहुत भीड़ होती है, बाजार में मिठाई, खिलौने, कपडे, चप्पल, बर्तन, बिजली, इत्यादि के दुकान पर कतार खड़ी ही मिलती थी।
बड़ी दुकान – शहरों में आपको तरह-तरह की दुकानें दिखेंगी। कुछ दुकानें छोटी तो कुछ बहुत बड़ी होती हैं। अधिकतर दुकान का मालिक कोई व्यक्ति होता है। आजकल कुछ बड़ी कम्पनियों ने पूरे देश में दुकानों की चेन खोल रखी है। छोटी दुकान में अधिकतर काम दुकान के मालिक और उसके परिवार द्वारा किया जाता है। बड़ी दुकान में इसके लिए कई कर्मचारी रहते हैं।
जैसे वन्दना: हमने कुछ साल पहले यह शोरूम खोला। मैं एक ड्रेस डिजायनर हूँ। मैंने तरह-तरह के फैशन के कपड़े बनाने की पढ़ाई की है। लेकिन आजकल लोग कपड़े सिलवाने की जगह सिले-सिलाए यानी रेडीमेड कपड़े खरीदना पसंद करते हैं। इसलिए मेरा ध्यान इस बात पर ज़्यादा रहता है कि कैसे इन रेडीमेड कपड़ों को आकर्षक रूप से सजाकर रखा जाए।
फैक्ट्री – फैक्ट्री एक विशाल जगह जिसमे वस्तुओं का उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जाता है, यह व्यक्ति कपड़ा फैक्टरी में एक सिलाई मशीन पर काम करता है। इसका काम है कपड़ों की सिलाई करना। हर दिन वह 12 घंटे काम करता है। परिपाटी के अनुसार अधिकतर देशों में 8 घंटे काम करना होता है। इससे अधिक घंटे काम करने से थकान होती है। इस व्यक्ति को काम तभी मिलता है
जब फैक्ट्री के पास कपड़े का ऑर्डर आता है। इस आदमी को कई महीने बिना काम के बैठना पड़ता है। ऐसे में इसकी आय जीरो हो जाती है। ऐसी फैक्टरियों में बड़ी ही भयावह स्थिति होती है। काम करने की जगह तंग होती है, रोशनी कम आती है और ताजी हवा आने जाने का कोई रास्ता नहीं होता है। मजदूरी भी बहुत कम मिलती है। यदि कोई मजदूर शिकायत करता है तो उसे नौकरी से निकाल दिया जाता है। इन मजदूरों को सामाजिक सुरक्षा नहीं मिलती है, जैसे पेंशन, स्वास्थ्य सुविधा या छुट्टियाँ।
बुढ़पे के लिए बचत – सरकारी नौकरी में काम करते वेतन का एक हिस्सा हर महीने सरकार के पास जमा होता है। इस धनराशि का इस्तेमाल कर्मचारी के रिटायरमेंट पर किया जाता है। रिटायरमेंट के समय सरकारी कर्मचारी को एक बड़ी रकम एकमुश्त मिल जाती है। इसके अलावा उसे हर महीने पेंशन भी मिलता है। पेंशन राशि इतनी होती है कि बुढ़ापा आसानी से कट जाये।
छुट्टियाँ – सरकारी नौकरी में त्योहारों और राष्ट्रीय छुट्टियों होने पर छुट्टी मिलती है। अधिकतर दफ्तरों में रविवार को साप्ताहिक छुट्टी होती है। कुछ दफ्तरों में तो शनिवार को भी छुट्टी मिलती है। इन छुट्टियों के अलावा, सरकारी कर्मचारी किसी व्यक्तिगत जरूरत के लिए भी छुट्टी ले सकता है; जैसे बीमार होने पर। ऐसी छुट्टी लेने पर वेतन भी नहीं कटता है, लेकिन ऐसी छुट्टी के लिए एक साल में दिनों की संख्या निर्धारित होती है।
दिहाड़ी मजदूर– दिहाड़ी मजदूरों की संख्या तो और भी अधिक है। जिन लोगों के पास कोई हुनर नहीं होता है उन्हें दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम करना पड़ता है। आपको कई शहरों में ‘लेबर चौक’ मिल जायेगा। यह वह जगह होती है जहाँ सुबह-सुबह सैंकड़ों मजदूर काम की तलाश में आकर बैठ जाते हैं।
वे कोई भी काम करने को तैयार रहते हैं। कोई निर्माण स्थल पर काम हो, या किसी ट्रक पर सामान लादना हो, या नाली साफ करनी हो। इन मजदूरों को महीने के कुछ ही दिनों पर काम मिल पाता है। इनमें से अधिकतर दूर दराज एक इलाकों से काम की तलाश में आते हैं।
शहरों में अत्यधिक किराया और रहने का खर्चा इनकी सीमित आमदनी की कमर तोड़ देता है। इसलिए अपनी आय का बहुत छोटा हिस्सा ही ये बचत कर पाते हैं, जिसे वे अपने परिवार के पास गाँव में भेज देते हैं।
फेरीवाले रेहड़ी वाले – जिन लोगों के पास स्थाई दुकान नहीं होती उन्हें रेहड़ी या फेरी वाला कहते हैं। वे ठेलागाड़ी पर या फुटपाथ पर अपनी दुकान लगाते हैं। एक रेहड़ी वाले का जीवन कठिन होता है। कई बार पुलिस वाले उन्हें खदेड़ कर भगा देते हैं। रेहड़ी पट्टी वाले फुटपाथ और सड़कों पर जाम लगा देते हैं जिससे आने जाने वालों को तकलीफ होती है। इसलिए कई लोग इनका विरोध भी करते हैं।
हर आदमी को रोजगार का अधिकार है। इसलिए सरकार रेहड़ी वालों की समस्या पर विचार कर रही है। सरकार यह कोशिश कर रही है कुछ स्थानों को रेहड़ीवालों के लिए छोड़ दिया जाये। यह भी ध्यान दिया जा रहा है कि आम नागरिकों और रेहड़ी पटरी वालों में टकराव कम से कम हो।
सेवा प्रदाता – शहरों में सर्विस देने वाले कई लोग और संस्थाएँ हैं। सर्विस देने वाला किसी माल को नहीं बेचता है। वह ग्राहकों को विभिन्न प्रकार की सेवाएँ देता है। उदाहरण: हजामत, कोरियर, ट्यूशन, चार्टर्ड एकाउंटेंट, डॉक्टर, आदि की सेवा प्रदाता देता है।
प्रश्न 1. सामाजिक सुरक्षा किन लोगो को चाहिए।
प्रश्न 2. भारत में शहरों की संख्या कितनी है?
प्रश्न 3. भारत में महानगरों की संख्या कितनी है?
प्रश्न 4. महानगर किसे कहते हैं?
प्रश्न 5. दस लाख से अधिक आबादी वाले चार महानगरों के नाम बताइए।
प्रश्न 6. बच्चू माँझी शहर में क्या काम करता था?
प्रश्न 7. बच्चू माँझी किस प्रान्त का रहने वाला था?
प्रश्न 8. बच्चू माँझी शहर क्यों आया था?
प्रश्न 9. बच्चू माँझी रिक्शा चलाकर प्रतिदिन कितना कमा लेता था?
प्रश्न 10. अहमदाबाद शहर में कितने प्रतिशत लोग सड़कों पर काम करते हैं?
प्रश्न 11. हमारे देश के शहरों में कितने लोग फुटपाथ तथा ठेलों पर सामान बेचते हैं?
प्रश्न 12. बाज़ार में बहुत भीड़ क्यों थी?
प्रश्न 13. हरप्रीत और वन्दना क्या काम करते हैं?
प्रश्न 14. लोगों को टुकानें चलाने का लाइसेन्स कौन देता है?
प्रश्न 15. निर्मला कहाँ काम करती थी?
प्रश्न 16. लेबर चौंक किसे कहते हैं?
NCERT Solution Class 6th Civics All Chapters Notes In Hindi |
NCERT Solution Class 6th Civics All Chapters Question Answer In Hindi |
NCERT Solution Class 6th Civics All Chapter MCQ In Hindi |
You Can Join Our Social Account
Youtube | Click here |
Click here | |
Click here | |
Click here | |
Click here | |
Telegram | Click here |
Website | Click here |