NCERT Solutions Class 12th Sociology (भारत में सामाजिक परिवर्तन एवं विकास) Chapter – 5 औद्योगिक समाज में परिवर्तन और विकास (Change and Development in Industrial Society)
Textbook | NCERT |
Class | 12th |
Subject | Sociology (भारत में सामाजिक परिवर्तन एवं विकास) |
Chapter | 5th |
Chapter Name | औद्योगिक समाज में परिवर्तन और विकास (Change and Development in Industrial Society) |
Category | Class 12th Sociology |
Medium | Hindi |
Source | Last Doubt |
NCERT Solutions Class 12th Sociology (भारत में सामाजिक परिवर्तन एवं विकास) Chapter – 5 औद्योगिक समाज में परिवर्तन और विकास (Change and Development in Industrial Society) Notes In Hindi औद्योगिक समाज और सामाजिक परिवर्तन से आप क्या समझते हैं? औद्योगिक समाज का विकास कैसे हुआ? भारत में सामाजिक परिवर्तन क्या है तथा भारत में सामाजिक परिवर्तन के कारण और प्रभाव की चर्चा कीजिए? औद्योगिक समाजशास्त्र सामाजिक सम्बन्धों और औद्योगिक संगठनात्मक का अध्ययन है यह कथन किसका है? औद्योगिक समाज और सामाजिक परिवर्तन का अर्थ क्या है? औद्योगिक समाज के पिता कौन हैं? भारत में औद्योगिक विकास की शुरुआत कब हुई? भारत में औद्योगिक क्रांति के जनक कौन है? औद्योगिक समाज का उदय कब हुआ था? सामाजिक परिवर्तन की मुख्य विशेषताएं क्या हैं? सामाजिक परिवर्तन कितने प्रकार के होते हैं? सामाजिक परिवर्तन के मुख्य कारक कौन कौन से हैं? सामाजिक परिवर्तन के मुख्य स्रोत कौन कौन से हैं? सामाजिक परिवर्तन का सिद्धांत क्या है? |
NCERT Solutions Class 12th Sociology (भारत में सामाजिक परिवर्तन एवं विकास) Chapter – 5 औद्योगिक समाज में परिवर्तन और विकास (Change and Development in Industrial Society)
Chapter – 5
औद्योगिक समाज में परिवर्तन और विकास
Notes
औद्योगीकरण – औद्योगीकरण एक प्रक्रिया है जिसके तहत उत्पादन बड़े स्तर पर बड़ी बड़ी मशीन के माध्यम से किया जाता है। औद्योगीकरण के तहत आधुनिक प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल किया जाता है इसके माध्यम से मनुष्य मशीनों पर अधिक निर्भर हो जाता है इसके तहत उत्पादन बढ़ाया जाता है।
भारत में औद्योगीकरण
1999 – 2000 में भारत में लगभग 60 प्रतिशत लोग तृतीयक क्षेत्र, 17 प्रतिशत द्वितीयक क्षेत्र, 23 प्रतिशत तृतीयक क्षेत्र में कार्यरत थे। कृषि कार्यों में तेजी से ह्रास हुआ और सरकार उन्हें अधिक आमदानी देने में सक्षम नहीं है।
संगठित/औपचारिक क्षेत्र की इकाई में 10 और अधिक लोगों के पूरे वर्ष रोजगार में रहने से इन क्षेत्रों का गठन होता है। पेंशन व अन्य सुविधाएँ मिलती है। कुषि, उद्योग असंगठित/औपचारिक क्षत्र की इकाई में 10 और अधिक लोगों के पूरे वर्ष रोजगार में रहने से इन असंगठित/अनौपचारिक क्षेत्र में आते है। असंगठित क्षेत्र में रोजगार स्थाई नहीं होता है। पेंशन व बीमा का समुचित प्रावधान नहीं होता है।
भारत के प्रारम्भिक वर्षों में औद्योगीकरण – रूई, जूट, रेलवें तथा कोयला खाने भारत के प्रथम उद्योग थे। स्वतंत्रता के बाद भारत ने परिवहन संचार, ऊर्जा, खान आदि को महत्व दिया गया। भारत की मिश्रित आर्थिक नीति में (निजी एवं सार्वजनिक उद्योग) दोनों प्रकार शामिल थे।
भारतीय उद्योगों के विभाजन – भारतीय औद्योगिक नीति 1956 के अनुसार, भारतीय उद्योगों को निम्नलिखित तीन श्रेणियों में बांटा गया है-
1. प्राथमिक श्रेणी
2. माध्यमिक श्रेणी
3. तृतीयक श्रेणी
प्राथमिक श्रेणी – परमाणु ऊर्जा के रक्षा, रेलवे, डाक, उत्पादन और नियंत्रण से संबंधित उद्योग इस श्रेणी में आते हैं। केंद्र सरकार उन्हें नियंत्रित और नियंत्रित करती है।
माध्यमिक श्रेणी – मशीन टूल्स, फार्मास्यूटिकल्स, रबड़, जल परिवहन, उर्वरक, सड़क परिवहन इत्यादि जैसे 12 उद्योगों को इस श्रेणी में रखा गया था। इनमें सरकार की हिस्सेदारी ज्यादा है।
तृतीयक श्रेणी – इसमें वे सभी उद्योग सम्मिलित थे जो निजी क्षेत्र के लिए रखे गए थे। हालाँकि, निजी क्षेत्र इन उद्योगों को विकसित करता है लेकिन सरकार इन्हें स्थापित भी कर सकती है।
भूमंडलीकरण और उदारीकरण के कारण भारतीय उद्योगों में परिवर्तन
• 1990 से सरकार ने उदारीकरण नीति को अपनाया है तथा दूर संचार, नागरिक उड्डयन ऊर्जा आदि क्षेत्रों में निजी कपनियाँ विशेषकर विदेशी फर्मों को प्रोत्साहित किया जा रहा है।
• बहुत-सी भारतीय कंपनियाँ को विदेशियों ने खरीद लिया है। तथा कुछ भारतीय कपंनियाँ बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ बन गई है।
• इसके कारण आमदनी की असमानताएँ बढ़ रही है। बड़े उद्योग में सुरक्षित रोजगार कम हो रहे हैं। किसान तथा आदिवासी लोग विस्थापित हो रहे है।
• सरकार सार्वजनिक कंपनियों के अपने शेयर्स को निजी क्षेत्र की कपनियों को बेचने का प्रयास कर रही है जिसे विनिर्वेश कहा जाता है। इससे कर्मचारियों को नौकरी जाने का खतरा रहता है।
भारत में उदारीकरण की प्रमुख विशेषताएँ-
• उद्योगों को लाइसेंस मुक्त कराना।
• उद्योगों को अनावश्यक प्रतिबंधों से मुक्त कराना।
• प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को बढ़ाना।
• उद्योगों को एक बाजार के रूप में प्रयोग करना।
• उद्योगों की मांग को बढ़ाना।
• उद्योग और व्यापार को चाहिए नौकरशाही चंगुल से मुक्त करना।
• अर्थव्यवस्था पर सरकारी नियंत्रण कम करना।
• सीमा शुल्क कम करना।
• वस्तुओं सेवाओं के आयात निर्यात पर प्रतिबंध हटाना।
संरक्षणवाद की नीति – संरक्षणवाद के तहत विदेश व्यापार पर कई तरह के प्रतिबंध लगाए जाते हैं। देसी उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए प्रयत्न किए जाते हैं। इससे लोग देश में बनी वस्तुओं का अधिक से अधिक इस्तेमाल करें और देश के उद्योगों को लाभ हो।
व्यावसायीकरण – व्यावसायीकरण किसी उत्पाद, सेवा या गतिविधि में किसी चीज को बदलने की प्रक्रिया है जिसका आर्थिक मूल्य है और बाजार में कारोबार किया जा सकता है।
विकेंद्रीकरण – विकेंद्रीकरण कार्यों, शक्तियों, लोगों को या चीजों को केंद्रीय स्थान या प्राधिकारी से हटाकर पुनः विभाजित करने की प्रक्रिया को कहते हैं।
असंगठित या अनौपचारिक क्षेत्र – एक असंगठित या अनौपचारिक क्षेत्र के लोग सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारियों को दिए गए अधिकांश लाभों का आनंद नहीं लेते हैं जैसे कि स्थायी रोजगार, निश्चित मजदूरी, मनोरंजक लाभ, गुरुत्वाकर्षण, चिकित्सा लाभ, आदि। लगभग 90% भारतीय आबादी असंगठित क्षेत्र में कार्यरत है।
औद्योगीकरण का आपसी संबंधों पर प्रभाव – लोग अपने परिवार को गांवों में छोड़कर उद्योगों में काम करने के लिए शहरों की ओर चले जाते हैं। वहाँ बसने के बाद और नौकरी मिलने के बाद, उन्होंने अपने परिवारों को बुलाया और बड़े शहरों में स्थायी रूप से बस गए। इससे संयुक्त परिवारों का विघटन हुआ और एकाकी या छोटे परिवारों का उदय हुआ।
कार्यावस्थाएँ
• सरकार ने कार्य की दशाओं को बेहतर करने के लिए बहुत से कानून बना दिए है।
• खदान एक्ट 1952 ने मजदूरों के विभिन्न कार्यों को स्पष्टकिया है। भूमिगत खदानों में मजदूरों को आग, बाढ़, ऊपरी सतह के धँसने, क्षय रोग आदि का खतरा रहता है।
घरों में होने वाला काम – घरों में आज अनेक काम किए जाते हैं लेस बनाना, बीड़ी बनाना, जरी, अगरबत्ती, गलीचे, एवं अन्य कार्य अधिकतर महिलाएँ व बच्चे करते है। एक एजेन्ट इन्हें कच्चा माल दे जाता है। तथा पूरा करवा कर ले जाता है।
हड़ताल एवं मजदूर संघ – फैक्ट्री तथा अन्य उद्योगों में कामगारों के संघ है। जिनमें जातिवाद तथा क्षेत्रीयवाद पाया जाता है।
मजदूर संघ – किसी भी मिल, कारखाने में मजदूरों के हितों की रक्षा करने के लिए मजदूर संघ का गठन किया जाता है। सभी मजदूर इसके सदस्य होते है।
हड़ताल – अपनी मांगों को मनवाने के लिए कर्मचारी हड़ताल करते है।
तालाबंदी – मिल मालिकों द्वारा मिल के मुख्य द्वारा पर ताला लगाना। (1982 की बम्बई टैक्सटाइल मिल की हड़ताल जो व्यापार संघ के नेता दत्ता सामंत के नेतृत्व में हुई थी, जिसमें लगभग ढाई लाख कामगारों के परिवार पीड़ित हुए। उनकी मांग बेहतर मजदूरी तथा संघ बनाने की अनुमति प्रदान करता था। कामगार किसी अन्य मजदूरी या कार्य करने को मजबूर हो जाते हैं।