NCERT Solutions Class 12th Sociology (भारत में सामाजिक परिवर्तन एवं विकास) Chapter – 3 भारतीय लोकतंत्र की कहानियाँ (The Story of Indian Democracy) Notes In Hindi

NCERT Solutions Class 12th Sociology (भारत में सामाजिक परिवर्तन एवं विकास) Chapter – 3 भारतीय लोकतंत्र की कहानियाँ (The Story of Indian Democracy) 

TextbookNCERT
classClass – 12th
SubjectSociology (भारत में सामाजिक परिवर्तन एवं विकास) 
ChapterChapter – 3
Chapter Nameभारतीय लोकतंत्र की कहानियाँ
CategoryClass 12th Sociology Notes In Hindi
Medium Hindi
Sourcelast doubt
NCERT Solutions Class 12th Sociology (भारत में सामाजिक परिवर्तन एवं विकास) Chapter – 3 भारतीय लोकतंत्र की कहानियाँ (The Story of Indian Democracy) Notes In Hindi भारतीय लोकतंत्र के समक्ष क्या चुनौतियां हैं किन्हीं तीन का वर्णन कीजिए? भारत में लोकतंत्र का विकास कैसे हुआ? भारत में लोकतंत्र को स्थापित करने की चुनौती क्या थी लोकतंत्र 200 शब्द क्या है? लोकतंत्र कितने प्रकार के होते हैं? लोकतंत्र का दूसरा नाम क्या है? लोकतंत्र कितने प्रकार के होते हैं? भारत में लोकतंत्र की स्थापना कब हुई थी? लोकतंत्र की जननी कौन है? कतंत्र की क्या विशेषताएं हैं? लोकतंत्र की कोई दो कमियां क्या है? लोकतंत्र का अर्थ क्या है? लोकतंत्र का अर्थ क्या है? लोकतंत्र के गुण क्या हैं? लोकतंत्र का दोष क्या है? भारत एक लोकतंत्र क्यों है? लोकतंत्र का दोष क्या है? लोकतंत्र के मार्ग में कौन कौन सी बाधाएं हैं? भारतीय लोकतंत्र 10 के सामने कौन सी चुनौतियाँ हैं?

NCERT Solutions Class 12th Sociology (भारत में सामाजिक परिवर्तन एवं विकास) Chapter – 3 भारतीय लोकतंत्र की कहानियाँ (The Story of Indian Democracy) 

Chapter – 3

भारतीय लोकतंत्र की कहानियाँ

Notes

लोकतंत्र – जनता का, जनता के द्वारा, जनता के लिए शासन लोकतन्त्र है लोकतंत्र एक ऐसी शासन प्रणाली है जिसमें जनता सर्वोच्च सत्ता होती है और वे अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करके सरकार का गठन करते हैं इसे जनता का शासन भी कहा जाता है लोकतंत्र के कुछ मुख्य तत्व निम्नलिखित हैं

जनता की भागीदारी – जनता चुनावों के माध्यम से अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करती है
स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव – चुनाव निष्पक्ष और स्वतंत्र रूप से संपन्न होते हैं
कानून का शासन – सभी नागरिक और अधिकारी कानून के अधीन होते हैं
मौलिक अधिकार – नागरिकों के मौलिक अधिकारों की सुरक्षा होती है, जैसे कि विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, धर्म की स्वतंत्रता आदि
अल्पसंख्यकों की सुरक्षा – अल्पसंख्यकों के अधिकारों और हितों की रक्षा होती है
न्यायपालिका की स्वतंत्रता – न्यायपालिका स्वतंत्र होती है और कानून का निष्पक्ष पालन सुनिश्चित करती है
उत्तरदायित्व और पारदर्शिता – सरकार और उसके प्रतिनिधि जनता के प्रति उत्तरदायी होते हैं और उनके कार्य पारदर्शी होते हैं

लोकतंत्र का लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि सत्ता का उपयोग जनता की भलाई के लिए हो और सभी नागरिकों के अधिकार और स्वतंत्रता सुरक्षित रहें

लोकतंत्र के प्रकार – लोकतंत्र के दो प्रकार है 

प्रत्यक्ष लोकतंत्र – इसमें सभी नागरिक, बिना किसी चयनित या मनोनीत पदाधिकारी की मध्यस्था के सार्वजनिक निर्णयों में स्वयं भाग लेते हैं। उदाहरणार्थ- एक सामुदायिक संगठन या आदिवासी परिषद्, किसी श्रमिक संघ की स्थानीय इकाई। प्रत्येक लोकतंत्र छोटे समूह में व्यवसायिक है जहाँ पूरी जनता निर्णय में सम्मिलित होती है तथा बीच में कोई प्रतिनिधी न हो। जैसे- आदिवासी परिषद् श्रमिक संघ आदि।

अप्रत्यक्ष परोक्ष / प्रतिनिधिक लोकतंत्र – प्रतिनिधि लोकतंत्र विशाल व जटिल समुदाय में अपनाया जाता है। सार्वजनिक हित की दृष्टि से राजनीतिक निर्णय लेना, कानून बनाना व लागू करना आदि के लिए नागरिक स्वयं अपने प्रतिनिधि चुनते है। हमारे देश में प्रतिनिधिक लोकतंत्र है।

सहभागी लोकतंत्र – यह ऐसा लोकतंत्र है जिसमें किसी समूह व समुदाय के सभी लोक एक साथ मिलकर कोई बड़ा निर्णय लेते हैं।

विकेंद्रीकृत लोकतंत्र – जमीनी लोकतंत्र के एक उदाहरण के रूप में पंचायती राज व्यवस्था जो एक विकद्रीकरण की तरफ एक महत्वपूर्ण कदम है।

भारतीय संविधान के केंद्रीय मूल्य 

संपूर्ण-प्रभुत्व-संपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य, न्याय, स्वतंत्रता, समता, बंधुता आदि लोकतांत्रिक मूल्य केवल परिश्चमी की देन नही है बल्कि महाकाव्य, कृतियाँ व विविध लोक कथाएँ संवादों परिचर्चाओं ओर अंतर्विरोधी स्थितियों से भरी पड़ी है। जैसे-महाभारत महाकाव्य।

कराची कांग्रेस संकल्प 1931 –  कराची कांग्रेस संकल्प 1931 उन मूल्यों का उल्लेख करता है जो राजनीतिक न्याय , सामाजिक और आर्थिक न्याय को भी सुनिश्चित करने का प्रयास करती है।

हित प्रतिस्पर्धी संविधान और सामाजिक परिवर्तन – हितों की प्रस्पिर्धा हमेशा किसी स्पष्ट वर्ग-विभाजन को ही प्रतिबिंबित नहीं करती । किसी कारखाने को बंद करवाने का कारण यह होता है कि उससे निकलने वाला विषैला कचरा आसपास के लोगों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है । इस प्रकार बहुत सी चीजों की समाप्ति के कारण लोग बेराजगार हो जाएगें।

कानून –  कानून का सार इसकी शक्ति है कानून इसलिए कानून है क्योंकि इससे बल प्रयोग अथवा अनुपालन के संरचण, के माध्यमों का प्रयोग होता है ।

न्याय – न्याय कासार निष्पक्षता है, कानून में कोई भी प्रणाली अधिकारियों के संस्तरण के माध्यम से ही कार्यरत होती है।

संविधान – संविधान भारत का मूल मानदंड है। यह ऐसा दस्तावेज है जिससे किसी राष्ट्र के सिद्धान्तों का निर्माण होता है । ऐस प्रमुख मानदंड जिनसे नियम ओर अधिकारी संचालित होते है संविधान कहलाता हैं। अन्य सभी कानून, संविधान द्वारा नियत कार्य प्रणाली के अंतर्गत बनते है। ये कानून संविधान द्वारा अधिकारियों द्वारा बनाए व लागू किए जोते है । कोई वाद-विवाद होने पर संविधान द्वारा अधिकार प्राप्त न्यायालयों के संस्तरण द्वारा कानून की व्याख्या होती है। ‘उच्चतम न्यायालय’ सर्वोच्च है और वहीं संविधान का सबसे अंतिम व्याख्याकर्ता भी है।

पंचायती राज –  पंचायती राज का शाब्दिक अनुवाद होता है ‘पाँच व्यक्तियों द्वारा शासन’। इसका अर्थ गाँव एवं अन्य जमीनी पर लचीले लोकतंत्र क्रियाशीलता है ।

स्थानीय पर डॉ. अम्बेडकर का तर्क –  डॉ. अम्बेडकर ने तर्क दिया कि स्थानीय कुलीन ओर उच्च जातीय लोग सुरक्षित परिधि से इस प्रकार घिरे हुए है कि स्थानीय स्वाशासन का मतलब होगा भारतीय समाज के पद्दलित लोगों का निरंतर शोषण। निसंदेह उच्च जातियाँ जनसंख्या के इस भाग को चुपकर देगी।

स्थानीय पर महात्मा गाँधी –  स्थानीय सरकार की अवधारणा गाँधी जी को भी लोकप्रिय थी । वे प्रत्येक ग्राम को स्वयं में आत्मनिर्भर और पर्याप्त इकाई मानते थे स्वयं अपने को निर्देशित करे। ग्राम स्वराज्य को वे आदर्श मानते थे । और चाहते थे कि स्वतंत्रता के बाद भी गाँवों में यही शासन चलता रहे।

73वां और 74वां संविधान संशोधन 1992 

 • ग्रामीण व नगरीय दोनों ही क्षेत्रों के स्थाई निकायों के सभी चयनित पदों में महिलाओं को एक तिहाई आरक्षण दिया।

 • इनमें से 17 प्रतिशत सीटें अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति की महिलाओं के लिए आरक्षित है।

 • यह संशोधन इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके अंतर्गत पहली बार निर्वाचित निकायों में महिलाओं को शामिल किया। जिससे उन्हें निर्णय लेने की शक्ति मिली।

 • 73वें संशोधन के तुरत बाद 1993–1994 के चुनाव में 800,000 महिलाएं एक साथ राजनीतिक प्रक्रियाओं से जुड़ी वास्तव में महिलाओं को मानवाधिकार देने वाला यह एक बड़ा कदम था।

 • स्थानीय स्वशासन के लिए त्रिस्तरीय पंचायती राज प्रणाली का प्रावधान करने वाला संवैधानिक संशोधन पूरे देश में 1992-93 से लागू है।

पचायती राज व्यवस्था का त्रिस्तरीय व्यवस्था –  जिला स्तर पर जिला परिषद् →→ खण्ड स्तर पर पंचायत समिति →→ग्राम स्तर पर ग्राम पचायत

पंचायतों की शक्तियाँ और उत्तरदायित्व – पंचायतों को निम्नलिखित शक्तियाँ व उत्तरदायित्व प्राप्त हैं

• आर्थिक विकास के लिए योजनाएँ एवं कार्यक्रम बनाना।
• सामाजिक न्याय को प्रोत्साहित करना।
• शुल्क, यात्री कर, जुर्माना, अन्य कर आदि लगाना व एकत्र करना।
• सरकारी उत्तरदायित्वों के हस्तांतरण में सहयोग करना।
• जन्म और मृत्यु के आंकड़े रखना।
• शमशानों एवं कब्रिस्तानों का रखरखाव।
• पशुओं के तालाब पर नियंत्रण।
• परिवार नियोजन का प्रचार करना।
• एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम, एकीकृत बाल विकास योजना आदि को संचालित करना।

पंचायत की आय के मुख्य स्त्रोत –  संपत्ति, व्यवसाय, पशु, वाहन आदि पर लगाए गए कर, चुगी, भू-राजस्व आदि पंचायतों की आय के मुख्य स्रोत है। जिला पंचायत द्वारा प्राप्त अनुदान पंचायत के संसाधनों में वृद्धि करते हैं पंचायतों के लिए यह अनिवार्य है कि वे अपने कार्यलय के बाहर बोर्ड लगाएं। जिसमें प्राप्त वित्तीय सहायता के उपयोग से संबंधित आँकड़े लिखे हों।

न्याय पचायत – कुछ राज्यों में न्याय पंचायत की स्थापना की गई है। कुछ छोटे-मोटे दीवानी और आपराधिक मामलों की सुनवाई का अधिकार इनके पास होता है। ये जुर्माना लगा तो सकते हैं। लेकिन कोई सजा नहीं दे सकते। ये ग्रामीण न्यायालय प्रायः कुछ पक्षों के आपसी विवादों में समझौता कराने में सफल होते हैं। विशेष रूप से ये तब प्रभावशाली होते है, जब किसी पुरूष द्वारा दहेज के लिए स्त्री प्रताड़ित किया जाए या उसके विरूद्ध हिसात्मक कार्यवाही की जाए।

जनजाति क्षेतों मे पंचायती राज – गारो, खासी, जयन्तिया आदिवासीओं की सैंकड़ो साल पुरानी राजनैतिक संस्कृति रही है। ये ग्राम तथा राज्य स्तर पर बड़ी कुशलता से कार्य करती थी, प्रत्येक वंश की अपनी एक परिषद होती थी जिसे दरबार कुर कहा जाता था, जो उस वंश के मुखिया के दिशा निर्देशन में कार्य करता था । आदिवासी क्षेत्रों की प्रारंभिक स्तर के लोकतांत्रिक कार्यों को अपनी समृद्ध परंपरा रही है।

जैसे – मेघालय की आदिवासी जातियों की सैकड़ो साल पुरानी राजनीतिक संस्थाएँ रही है।

ये राजनीतिक संस्थाएँ उतनी सुविकसित थी कि ग्राम, वंश और राज्य के स्तर पर कुशलता से कार्य करती थी । जैसे खासियों की पांरपरिक अपनी परिषद होती थी जिसे दरबार कुर कहा जाता था।

लोकतन्त्रीकरण और समानता – हमारे देश मे जाति, समुदाय और लिंग आधारित असमानता रही है। ऐसे समाज मे लोकतन्त्र आसान नही है। प्रभावशाली व्यक्ति ही ग्राम सभा का संचालन करते रहे है। बहुसंख्यक लोग देखते भर रह जाते है। ये लोग बहुमत को अनदेखा कर विकासात्मक कार्यों का तथा सहायता राशि बांटने का फैसला कर लेते है।

वन पचायत – अधिकांश कार्य महिलाएँ करती है। वन पंचायत की औरते पौधशालाएँ बनाकर छोटे पौधों का पालन-पोषण करती है। वन पंचायत के सदस्य आसपास के जंगलों की अवैध कटाई से सुरक्षा भी करती है।

राजनीतिक दल 

राजनीतिक दल एक ऐसा संगठन होता है । जो सत्ता हथियाने और सत्ता का उपयोग कुछ विशिष्ट कार्यों को सम्पन्न करने के उद्देश्य से स्थापित करता है । लोकतांत्रिक प्रणाली में विभिन्न समूहों के हित राजनीतिक दलों द्वारा ही प्रतिनिधित्व प्राप्त करते हैं । जो उनके मुद्दों को उठाते हैं।

एक राजनीतिक दल को निर्वाचन प्रक्रिया द्वारा सरकार पर न्याय पूर्ण नियन्त्रण करने वाला संगठन है जो सत्ता को हथियाने तथा सत्ता का उपयोग कुछ विशिष्ट कार्यों को पूरा करने का उद्देश्य रखता है । लोकतन्त्र प्रणाली में विभिन्न समूहों के हित राजनीतिक दलो द्वारा ही प्रतिनिधित्व प्राप्त करते है। जब किसी समूह को उसका हित पूरा होता दिखाई नही देता तो वह अलग दल बना लेता है तथा दवाब समूह बना कर अपनी बात मनवाने की कोशिश करते है।

हित समूह – यह ऐसे समूह हैं जो सरकार से अपनी बात मनवाने की कोशिश करते है। हित समूह राजनीतिक क्षेत्र में कुछ निश्चित हितों को पूरा करने के लिए बनाए जाते हैं। ये प्राथमिक रूप से वैधानिक अंगों के सदस्यों का समर्थन प्राप्त करने के लिए बनाए जाते है।

दबाव समूह – जब किसी समूह को लगता है कि उसके हित की बात नहीं की जा रही है तो वे अलग दल बना लेते है जिसे दबाव समूह कहते हैं।

स्थानीय पर डॉ.अम्बेडकर का तर्क – डॉ.अम्बेडकर ने तर्क दिया कि स्थानीय कुलीन ओर उच्च जातीय लोग सुरक्षित परिधि से इस प्रकार घिरे हुए है कि स्थानीय स्वाशासन का मतलब होगा भारतीय समाज के पद्दलित लोगों का निरंतर शोषण। निसंदेह उच्च जातियाँ जनसंख्या के इस भाग को चुपकर देगी।