NCERT Solutions Class 12th Sociology (भारतीय समाज) Chapter – 5 सामाजिक विषमता एवं बहिष्कार के स्वरूप (Patterns of Social Inequality and Exclusion) Notes In Hindi

NCERT Solutions Class 12th Sociology (भारतीय समाज) Chapter – 5 सामाजिक विषमता एवं बहिष्कार के स्वरूप (Patterns of Social Inequality and Exclusion)

TextbookNCERT
class12th
SubjectSociology (भारतीय समाज)
Chapter5th
Chapter Nameसामाजिक विषमता एवं बहिष्कार के स्वरूप (Patterns of Social Inequality and Exclusion)
CategoryClass 12th Sociology (भारतीय समाज)
Medium Hindi
Sourcelast doubt
NCERT Solutions Class 12th Sociology (भारतीय समाज) Chapter – 5 सामाजिक विषमता एवं बहिष्कार के स्वरूप (Patterns of Social Inequality and Exclusion) Notes In Hindi इस अध्याय में हम सामाजिक विषमता एवं बहिष्कार सामाजिक, सामाजिक बहिष्कार, 5 सामाजिक असमानताएं, सामाजिक विषमता का कारण, सामाजिक विषमता कितने प्रकार की होती है?, असमानता को दूर करने के प्रमुख उपाय, भारत में असमानता का मुख्य कारण, सामाजिक दुष्क्रिया, रूढ़धारणाएँ इत्यादि के बारे में पढ़ेंगे।

NCERT Solutions Class 12th Sociology (भारतीय समाज) Chapter – 5 सामाजिक विषमता एवं बहिष्कार के स्वरूप (Patterns of Social Inequality and Exclusion)

Chapter – 5

सामाजिक विषमता एवं बहिष्कार के स्वरूप

Notes

सामाजिक विषमता व बहिष्कार – सामाजिक विषमता व बहिष्कार हमारे दैनिक जीवन में प्राकृतिक व वास्तविकता है। प्रत्येक समाज में हर व्यक्ति की सामाजिक प्रस्थिति एक समान नहीं होती है। समाज में कुछ लोगों के पास तो धन, सम्पत्ति, शिक्षा, स्वास्थ्य, सत्ता और शक्ति जैसे साधनों की अधिकता होती है तो दूसरी ओर कुछ लोगों के पास इनका नितान्त अभाव रहता है तो कुछ लोगों की स्थिति बीच की होती है।

सामाजिक विषमता व बहिष्कार सामाजिक इसलिए है –

• ये व्यक्ति से नहीं समूह से सम्बन्धित है।
• ये व्यवस्थित व संरचनात्मक हैं।
• ये आर्थिक नहीं हैं।

सामाजिक संसाधनों का विभाजन – सामाजिक संसाधनों को तीन रूपों में विभाजित किया जा सकता है –

• भौतिक संपत्ति एवं आय के रूप में आर्थिक पूंजी।
• प्रतिष्ठा व शैक्षणिक योग्यता के रूप में सांस्कृतिक पूंजी।
• सामाजिक संगतियों व संपर्कों के जाल के रूप में – सामाजिक पूंजी।

सामाजिक विषमता – सामाजिक संसाधनों तक असमान पहुँच की पद्धति सामाजिक विषमता कहलाती है।

सामाजिक स्तरीकरण – वह व्यवस्था जो एक समाज के अंतर्गत पाए जाने वाले समूहों का ऊँच नीच या छोटे – बड़े के आधार पर विभिन्न स्तरों पर बँट जाना ही सामाजिक स्तरीकरण कहलाता है।

सामाजिक स्तरीकरण सिद्धान्त के तीन मुख्य विशेषताएँ –

• सामाजिक स्तरीकरण व्यक्तियों के बीच की विभिन्नता का प्रकार्य नहीं बल्कि समाज की विशिष्टता है।
• सामाजिक स्तरीकरण पीढ़ी दर पीढ़ी बना रहता है।
• सामाजिक स्तरीकण को विश्वास या विचारधारा द्वारा समर्थन मिलता है।

पूर्वाग्रह – एक समूह के सदस्यों द्वारा दूसरे समूह के बारे में पूर्वकल्पित विचार या विश्वास को पूर्वाग्रह कहते हैं। जैसे – यहूदी ओर मारवाड़ी कंजूस होते हैं। पूर्वाग्रह अपरिर्वतनीय, कठोर व रूढ़िवादी धारणाओं पर आधारित होते हैं ।

रूढ़धारणाएँ – ऐसा लोक विश्वास, समूह स्वीकृत कोई अचल विचार या भावना जो सामान्यतः शाब्दिक तथा संवेगयुक्त होती हैं रूढ़धारणा कहलाती है। यह ज्यादातर महिलाओं, नृजातीय प्रजातीय समूहों के बारे में प्रयोग की जाती है ।

भेदभाव – किसी समूह के सदस्यों को उनके लिंग, जाति या धर्म के आधार पर अवसरों तथा सुविधाओं से वंचित रखा जाना भेदभाव कहलाता है।

सामाजिक बहिष्कार – वह तौर तरीके जिनके जरिए किसी व्यक्ति या समूह को समाज में पूरी तरह घुलने मिलने से रोका जाता है या अलग रखा जाता है यह आकस्मिक न होकर व्यवस्थित तथा अनैच्छिक होता है। सामाजिक बहिष्कार आकस्मिक नहीं होता, यह व्यवस्थित तथा अनैच्छिक होता है। लम्बे समय तक विषमता, के कारण निष्कासित समाज में प्रतिशोध व घृणा की भावना पैदा हो जाती है, जिस कारण निष्कासित समाज अपने आप को मुख्य धारा से जोड़ने की कोशिश नहीं करते। जैसे – दलित, जनजातीय समुदाय, महिलाएँ तथा अन्यथा सक्षम लोग।

जाति एक भेदभावपूर्ण व्यवस्था – जाति प्रथा जन्म से ही निर्धारित होता है न कि उस मनुष्य की क्या स्थिति है। जाति व्यवस्था व्यक्तियों का व्यवसाय निर्धारित करती है। सामाजिक व आर्थिक प्रस्थिति एक – दूसरे के अनुरूप होती है।

अस्पृश्यता – आम बोलचाल में छुआछूत कहा जाता है। धार्मिक एवं कर्मकांडीय दृष्टि से शुद्धता व अशुद्धता के पैमाने पर सबसे नीची जाने वाली जातियों के विरूद्ध अत्यन्त कठोर सामाजिक दंडों का विधान किया जाता है। इसे अस्पृश्यता कहते है।

• अस्पृश्यता शब्द का प्रयोग ऐसे लोगों के लिए किया गया है जिन्हे अपवित्र, गन्दा और अशुद्ध माना जाता था। ऐसे लोगों को कुओं, मन्दिरों और सार्वजनिक स्थानों पर प्रवेश निषेध था।
गाँधी जी ने इन लोगों के लिए हरिजन शब्द का प्रयोग किया था किन्तु आजकल दलित शब्द का प्रयोग किया जाता है।

• दलित का शब्दिक अर्थ है ‘पैरो से कुचला हुआ’।
 
• भारतीय संविधान (1955) के अनुसार जाति अस्पृश्यता निषेध है।
 
• महात्मा गाँधी, डॉ अम्बेडकर और ज्योतिबा फूले ने अस्पृश्यता निवारण की दिशा में उल्लेखनीय कार्य किया।

अस्पृश्यता के आयाम –

• अपवर्जन या बहिष्कार
• अनादर और अधीनतासूचक
• शोषण व आश्रिता
• दलित

अपवर्जन या बहिष्कार – पेयजल के सामान्य स्त्रोतों से पानी नहीं लेने दिया जाता। सामाजिक उत्सव, समारोहों में शामिल नहीं हो सकते। धार्मिक उत्सव पर ढोल – नगाड़े बजाना।

अनादर और अधीनतासूचक – टोपी या पगड़ी उतारना, जूतो को उतारकर हाथ में पकड़कर ले जाना, सिर झुकाकर खड़े रहना, साफ या चमचमाते हुए कपड़े नहीं पहनना।

शोषण व आश्रिता – उन्हें ‘बेगार’ करनी पड़ती है जिसके लिए उन्हें कोई पैसा नहीं दिया जाता या बहुत कम मज़दूरी दी जाती है।

दलित – वह लोग जो निचली स्तर (जाति व्यवस्था में) पर है तथा शोषित है, दलित कहलाते हैं।

जातियों व जनजातियों के प्रति भेदभाव मिटाने के लिए राज्य द्वारा उठाए गए कदम –

• अनुसूचित जाति व जनजाति के लिए राज्य व केन्द्रीय विधान – मंडलों में आरक्षण।
• सरकारी नौकरी में आरक्षण।
• अस्पृश्यता (अपराध) 1955।
• 1850 का जातिय निर्याग्यता निवारण अधिनियम।
• अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति अस्पृश्यता उन्मूलन कानून 1989 उच्च शैक्षिक संस्थानों के 93 वें संशोधन के अंतर्गत अन्य पिछड़े वर्ग को आरक्षण देना।

गैर सरकारी प्रयास व सामाजिक आन्दोजन – स्वाधीनता पूर्व – ज्योतिबाफूले, पेरियार, सर सैयद अहमद खान, डॉ. अम्बेडकर, महात्मा गांधी, राजाराम मोहन राय आदि का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी, कर्नाटक में दलित संघर्ष समिति। विभिन्न भाषाओं के साहित्य से योगदान।

अन्य पिछड़ा वर्ग – सामाजिक, शैक्षिक रूप से पिछड़ी जातियों के वर्ग, को अन्य पिछड़ा वर्ग कहा जाता है इसमें सेवा करने वाली शिल्पी जातियों के लोग शामिल है। इन वर्गों की प्रमुख विशेषता संस्कृति, शिक्षा, और सामाजिक दृष्टि से इनका पिछड़ापन है। ये वर्ग न तो अगड़ी जाति में आते हैं न ही पिछड़ी जाति में आते है।

पिछड़े वर्ग आयोग – काका साहेब कालेलकर की अध्यक्षता से सबसे पहले ‘पिछड़े वर्ग आयोग’ का गठन किया था। आयोग ने अपनी रिपोर्ट 1953 में सरकार को सौंप दी थी। 1979 में दूसरा पिछड़ा वर्ग आयोग (मंडल आयोग) गठित किया।

भारत में जनजातीय जीवन – भारतीय संविधान के अनुसार निर्धनता, शक्ति हीनता व सामाजिक लांछन से पीड़ित सामाजिक समूह है। इन्हें जनजाति भी कहा जाता है। जनजातियों को प्राय- ‘वनवासी’ और आदिवासी जाना जाता है।

आन्तरिक उपनिवेशवाद – आदिवासी समाज ने प्रगति के नाम पर आन्तरिक उपनिवेशवाद का सामना किया। भारत सरकार ने वनों का दोहन, खदान कारखाने, बांध बनाने के नाम पर उनकी जमीन का अधिग्रहण किया तथा उनका पलायन हुआ।

आदिवासियों की समस्याओं से जुड़े प्रमुख मुद्दे –

• राष्ट्रीय वन नीति बनाम आदिवासी विस्थापन।
• आदिवासी क्षेत्रों में सधन औद्योगीकरण की नीति।
• आदिवासियों में सजातीय राजनीतिक जागरूकता के दर्शन।

स्त्रियों के अधिकारों व उनकी स्थिति – स्त्री पुरुष में असमानता सामाजिक है, न कि प्राकृतिक यदि स्त्री पुरुष प्राकृतिक आधार पर असमान है तो क्यों कुछ महिलाएँ समाज में शीर्ष स्थान पर पहुँच जाती है। दुनिया या देश में ऐसे भी समाज है जहाँ परिवारों में महिलाओं की सत्ता व्याप्त है जैसे केरल के ‘नायर’ परिवारों में और मेघालय की ‘खासी’ जनजाति। यदि महिला जैविक या शारीरिक आधार पर अयोग्य समझी जाती हो तो कैसे वह सफलतापूर्वक कृषि और व्यापार को चला पातीं संक्षेप में, यह कहना न्याय संगत होगा कि स्त्री पुरुष के बीच असमानता के निर्धारण में जैविक / प्राकृतिक या शारीरिक तत्वों की कई भूमिका नहीं है।

स्त्रियों की स्थिति को सुधारने हेतु उन्नीसवीं सदी में सुधार आन्दोलन –

राजा राम मोहन राय ने सती प्रथा तथा बाल विवाह का विरोध किया तथा विधवा विवाह का समर्थन किया।

ज्योतिबा फूले ने जातिय व लैंगिक अत्याचारों के विरोध में आन्दोलन किया।

सर सैयद अहमद खान ने इस्लाम में सामाजिक सुधारों के लिए लड़कियों के स्कूल तथा कॉलेज खोले।

दयानंद सरस्वती ने नारियों की शिक्षा में योगदान दिया।

रानाडे ने विधवा विवाह पुनर्विवाह पर जोर दिया।

ताराबाई शिंदे ने “स्त्री पुरूष तुलना” लिखी जिसमें गलत तरीके से पुरूषों को ऊँचा दर्जा देने की बात कही गई।

बेगम रोकेया हुसैन ने ‘सुल्तानाज ड्रीम’ नामक किताब लिखी जिसमें हर लिंग को बराबर अधिकार देने पर चर्चा की गई है।

1931 में कराची में भारतीय कांग्रेस द्वारा एक अध्यादेश जारी करके स्त्रियों को बराबरी का हक देने पर बल दिया गया । सार्वजनिक रोजगार, शक्ति या सम्मान के संबंध में निर्योग्य नहीं ठहराया जाएगा।

1970 में काफी अहम मुद्दे पर जोर दिया गया जैसे- पुलिस हिरासत में दहेज, बलात्कार, दहेज हत्या आदि। स्त्रियों को मत डालने, सार्वजनिक पदधारण करने का अधिकार होगा।

अक्षमता (विकलांगता) – शारीरिक, मानसिक रूप से बाधित व्यक्ति, इसलिए अक्षम कहलाते हैं क्योंकि वे समाज की रीतियों व सोच के अनुसार जरूरत को पूरा नहीं करते। निर्योग्यता / अक्षमता को एक जैविक कमजोरी माना जाता है। जब कभी किसी अक्षम व्यक्ति के समक्ष कई समस्याएँ खड़ी होती है तो यह मान लिया जाता है कि ये समस्याएँ उसकी बाधा या कमजोरी के कारण ही उत्पन्न हुई है। यह माना जाता है कि निर्योग्यता उस निर्योग्य व्यक्ति के अपने प्रत्यक्ष ज्ञान से जुड़ी है।

निर्योग्यता तथा गरीबी के बीच संबंध – निर्योग्यता तथा गरीबी के बीच काफी निकट संबंध देखा गया है क्योकि गरीबी के कारण ही माताएँ कुपोषण का शिकार होती है और दुर्बल व अविकसित बच्चों को जन्म देती है। जो बड़े होकर विक्लांग लोगों की संख्या को बढ़ाते है। सरकार इनके लिए विभिन्न कार्यक्रम प्रदान करती है – जैसे- शिक्षा, रोजगार, आदि।

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