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NCERT Solutions Class 12th Political Science (स्वतंत्र भारत में राजनीति) Chapter – 7 जन आंदोलन (Social Movements) Notes in Hindi

June 16, 2022
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    NCERT Solutions Class 12th Political Science (स्वतंत्र भारत में राजनीति) Chapter – 7 जन आंदोलन (Social Movements)

    TextbookNCERT
    Class12th
    SubjectPolitical Science (स्वतंत्र भारत में राजनीति)
    ChapterChapter – 7
    Chapter Nameजन आंदोलन (Social Movements)
    CategoryClass 12th Political Science Notes in Hindi
    MediumHindi
    SourceLast Doubt

    NCERT Solutions Class 12th Political Science (स्वतंत्र भारत में राजनीति) Chapter – 7 जन आंदोलन (Social Movements) Notes in Hindi इस में हम पढेंगें जन आंदोलन, दल आधारित आंदोलन, राजनैतिक दलों से स्वतंत्र जन आंदोलन, आंदोलन के प्रकार, दल – आधारित आंदोलन, गैर – दलीय आंदोलन, नक्सलबाड़ी किसान विद्रोह, चिपको आंदोलन, गाँव वालो की माँगें, प्रमुख नेता, सुन्दरलाल बहुगुणा, दलित पैन्थर्स, दलित युवाओ की माँगे आदि के बारे में।

    NCERT Solutions Class 12th Political Science (स्वतंत्र भारत में राजनीति) chapter – 7 जन आंदोलन का उदय (Social Movements)

    Chapter – 7

    जन आंदोलन

    Notes

    जन आंदोलन – एक स्पष्ट उद्देश्य के लिए किए जाने वाले प्रयास को जन आंदोलन कहा जाता है। जन आंदोलन के प्रमुख कारणों में गरीबी, बेरोजगारी, लोगों का राजनीतिक नेताओं और संस्थाओं से मोहभंग होना और किसानों का राजनेताओं से मोह भंग होना आदि शामिल है।
    दल आधारित आंदोलन – जो आंदोलन किसी राजनीतिक दल के सहयोग द्वारा शुरू किये जाते हैं उन्हें दल आधारित आंदोलन कहते हैं। जैसे आंध्र प्रदेश में किसानों द्वारा तेलंगाना आंदोलन (कम्यूनिस्ट पार्टी) तिभागा आंदोलन, नक्सलवादी आंदोलन।
    राजनैतिक दलों से स्वतंत्र जन आंदोलन – जो आंदोलन स्वयंसेवी संगठनों, स्थानीय लोगों, छात्रों द्वारा किसी समस्या से पीड़ित होने के कारण शुरू किये जाते हैं, उन्हें राजनैतिक दलों से स्वतंत्र जन आंदोलन कहते हैं। जैसे– दलित पैंथर्स, ताड़ी विरोधी आंदोलन।

    आंदोलन के प्रकार

    • दल – आधारित
    • गैर – दलीय

    दल – आधारित आंदोलन 

    • नक्सलबाड़ी
    • तेलगांना
    • तिभागा आंदोलन

    गैर – दलीय आंदोलन

    महिला आंदोलन जैसे – (चिपको व ताड़ी विरोधी आंदोलन)
    पर्यावरण सुरक्षा आंदोलन जैसे – (नर्मदा बचाओ व चिपको आंदोलन)
    जाति आधारित आंदोलन जैसे – (दलित पैन्थर्स आंदोलन)
    किसान आंदोलन जैसे – (BKU)

    नक्सलबाड़ी किसान विद्रोह –  यह दल आधारित आंदोलन का उदाहरण है जो 1967 में चारू मजमदार और कानू सान्याल के नेतृत्व में किया गया।
    चिपको आंदोलन (पर्यावरण आंदोलन) 

    • 1973 में उत्तराखण्ड में शुरू।
    • वन विभाग ने खेती बाड़ी के औजार बनाने के लिये पेड़ो (अंगू) की कटाई से इंकार किया।
    • जबकि खेल–सामग्री के विनिर्माता को व्यवसायिक इस्तेमाल के लिये जमीन का आबंटन।
    • महिलाओं व समस्त ग्रामवासियों द्वारा पेड़ो की कटाई का विरोध। महिलायें पेड़ों की कटाई के विरोध में पेड़ों से चिपक गयी।

    गाँव वालो की माँगें 

    • स्थानीय लोगों का जल, जंगल, जमीन जैसे प्राकृतिक संसाधनों पर कारगर नियंत्रण।
    • सरकार लघु उद्योगों के लिये कम कीमत पर सामग्री उपलब्ध कराये।
    • क्षेत्र के पारिस्थितिकी संतुलन को नुकसान पहुँचाये बिना विकास सुनिश्चित करे।
    • महिलाओं ने शराबखोरी की लत के खिलाफ भी आवाज उठायी।

    परिणाम – सरकार ने 15 सालो के लिये हिमालयी क्षेत्र में पेड़ो की कटाई पर रोक लगा दी।

    प्रमुख नेता – सुन्दरलाल बहुगुणा – बाद के वर्षों में देश के विभिन्न भागों में उठे जन आंदोलन का प्रतीक। महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक किया।

    दलित पैन्थर्स 

    • प्रारम्भ – 1972 में।
    • स्थान – महाराष्ट्र।
    • नेतृत्व – दलित युवाओं के द्वारा।
    • दलित समुदाय की पीड़ा व आक्रोश की अभिव्यक्ति महाराष्ट्र में 1972 में शिक्षित दलित युवाओं ने ‘दलित पैन्थर्स‘ नामक संगठन बना कर की।
    • आजादी के बाद के सालो में दलित समूह मुख्यता जाति आधारित असमानता और अपने साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ लड़ रहे थे।
    • छुआछूत प्रथा के खिलाफ थे (Article 17)

    दलित युवाओ की माँगे

    • जाति आधारित असमानता तथा भौतिक संसाधनों के मामले में अपने साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ लड़ना।
    • आरक्षण के कानून व सामाजिक न्याय की नीतियों के कारगर क्रियान्वयन की माँग।
    • दलित महिलाओं के साथ हो रहे दुर्व्यवहार का विरोध।
    • भूमिहीन किसानो, मजदूरों व सारे वंचित वर्ग को उनके अधिकार दिलवाना।
    • दलितों में शिक्षा का प्रसार।

    दलित पैंथर्स की गतिविधियाँ 

    • अनेको साहित्यिक रचनायें लिखी।
    • रचनात्मक व सृजनात्मक ढंग से अपनी लड़ाई लड़ी।
    • दलित युवकों ने आगे बढ़कर अत्याचारों का विरोध किया।

    दलित पैंथर्स की गतिविधियाँ परिणाम 

    • सरकार ने 1989 में कानून बनाकर दलितों पर अत्याचार करने वालों के लिये कठोर दण्ड का प्रावधान किया।
    • दलित पैन्थर्स के राजनीतिक पतन के बाद बामसेफ (BAMCEF – Backward and Minority Classes Employees Federation) का निर्माण।

    भारतीय किसान यूनियन (BKU) 

    • प्रारंभ – 1988 में।
    • स्थान – मेरठ (U.P)
    • नेतत्व – BKU
    • 1988 के जनवरी में उत्तर प्रदेश के मेरठ में BKU के सदस्य किसानों ने धरना दिया। (महेन्द्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में)

    (BKU) माँगें 

    • बिजली की दर में की गयी बढ़ोत्तरी का विरोध।
    • गन्ने व गेहूँ के सरकारी मूल्यों में बढ़ोतरी की माँग।
    • कृषि उत्पादों के अन्तर्राजयीय व्यापार पर लगे प्रतिबंधों को हटाने की माँग।
    • निर्बाध विद्युत आपूर्ति की सुनिश्चितता।
    • किसानों के लिये पेंशन का प्रावधान।
    • किसानों के बकाया कर्ज माफ।
    कार्यवाही, शैली, गतिविधियाँ – धरना, रैली, प्रदर्शन, जेल भरो आदि कार्यवाहियों से सरकार पर दबाब बनाया।

    (BKU) विशेषताएँ 

    • BKU ने किसानों की लामबंदी के लिये जातिगत जुड़ाव का इस्तेमाल किया।
    • अपनी संख्या के दम पर राजनीति में एक दबाब समूह की भांति सक्रिय। आंदोलन की सफलता के पीछे इसके सदस्यों की राजनीति, मोलभाव की क्षमता थी क्योंकि ये नकदी फसल उपजाते थे।
    • अपने क्षेत्र की चुनावी राजनीति में इसके सदस्यों का रसूख था।
    • महाराष्ट्र का शेतकारी संगठन व कर्नाटक का रैयतकारी संगठन किसान संगठनों के जीवन्त उदाहरण हैं।

    ताड़ी विरोधी आंदोलन 

    • शराब विरोधी आंदोलन की शुरूआत आंध्रप्रदेश के नैल्लौर जिले के दुबरगंटा गाँव में हुआ।
    • लगभग 5000 गाँवों की महिलाओं ने आंदोलन में भाग लिया। नेल्लौर जिले में ताड़ी की बिक्री की नीलामी 17 बार रद्द हुई।
    • ‘ताड़ी की बिक्री बंद करो‘ का नारा लगाया।

    ताड़ी विरोधी आंदोलन माँगे 

    • शराब की वजह से स्वास्थ्य खराब हो गया था।
    • आर्थिक कठिनाई हो रही थी।
    • ताड़ी की बिक्री का विरोध–घरेलू हिंसा।
    • महिलाओं पर हो रहे अत्याचार।
    • तथा लैंगिक भेदभाव का विरोध।
    • दहेज प्रथा का विरोध।

    ताड़ी विरोधी आंदोलन परिणाम 

    • कई राज्यों में शराबबंदी लागू।
    • घरेलू हिंसा व महिला अत्याचारों के विरूद्ध कठोर नियम।
    • महिलाओं की माँग पर स्थानीय निकायों में आरक्षण लागू। L (73वें तथा 74वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा)

    नेशनल फिशवर्कस फोरम (NFF) 

    • मछुआरों की संख्या के लिहाज से भारत का विश्व में दूसरा स्थान है।
    • सरकार द्वारा बॉटम ट्राऊलिंग (व्यवसायिक जहाजों को गहरे समुद्र में मछली मारने की इजाजत) से मछुआरों की आजीविका पर प्रश्न चिन्ह बाध्य होकर मछुआरों में NFF बनाया।
    • 2002 में NFF द्वारा विदेशी कंपनियों को मछली मारने का लाइसेंस जारी करने के विरोध में राष्ट्र व्यापी हड़ताल की गयी।
    • पारिस्थितिकी की रक्षा व मछुआरों के जीवन को बचाने के लिये अनेक कानूनी लड़ाईयाँ लड़ी।
    • विश्व के समधर्मा संगठनों से हाथ मिलाया।
    नर्मदा बचाओ आंदोलन – नर्मदा घाटी विकास परियोजना में मध्य प्रदेश, गुजरात, व महाराष्ट्र से गुजरने वाली नर्मदा व सहायक नदियों पर 30 बड़े, 135 मझोले तथा 300 छोटे बाँध बनाने का प्रस्ताव।

    नर्मदा बचाओ आंदोलन लाभ

    • गुजरात के बहुत बड़े हिस्से सहित तीनों राज्यों में पीने के पानी, सिंचाई तथा बिजली उत्पादन की सुविधा।
    • कृषि की उपज में गुणात्मक सुधार।
    • बाढ़ व सूखे की आपदाओं पर अंकुश।

    नर्मदा बचाओ आंदोलन विरोध

    • इन परियोजनाओं का लोगों के पर्यावास, आजीविका, संस्कृति तथा पर्यावरण पर बुरा प्रभाव।
    • परियोजना के कारण हजारों लोग बेघर (245 गाँव के डूब के क्षेत्र में आने है। 2.5 लाख लोग बेघर)।

    नर्मदा बचाओ आंदोलन माँगे 

    • परियोजना से प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित सभी लोगों का समुचित पुर्नवास।
    • परियोजना की निर्णय प्रक्रिया में स्थानीय समुदायों की भागीदारी।
    • जल, जंगल, जमीन जैसे प्राकृतिक संसाधनों पर उनका प्रभावी नियन्त्रण।
    • बाँधों के निर्माण में आ रही भारी लागत का सामाजिक नुकसान के संदर्भ में मूल्यांकन किया जाये।

    आंदोलन से जुड़े प्रमुख नेता/व्यक्ति – मेधा पाटेकर, आमिर खान

    परिणाम – इस आंदोलन के परिणाम स्वरूप केन्द्र सरकार ने 2003 में राष्ट्रीय पुर्नस्थापन नीति की घोषणा की।

    जन आंदोलन के सबक 

    • इन आंदोलनों का उद्देश्य दलीय राजनीति की खामियो को दूर करना।
    • सामाजिक आंदोलनों ने समाज के उन नये वर्गों की सामाजिक आर्थिक समस्याओं को अभिव्यक्ति दी जो अपनी समस्याओं को चुनावी राजनीति के जरिये हल नहीं कर पा रहे थे।
    • जनता के क्षोभ व समाज के गहरे तनावों को सार्थक दिशा दे कर लोकतंत्र की रक्षा की।
    • सक्रिय भागीदारी के नये प्रयोग ने लोकतंत्र के जनाधार को बढ़ाया।
    • जनता को जागरूक किया तथा लोकतांत्रिक राजनीति को बेहतर ढंग से समझने में मदद।

    सूचना का अधिकार (RTI) 

    • आंदोलन की शुरूआत 1990 में MKSS (मजदूर किसान शक्ति संगठन) ने की (राजस्थान के दौसा जिले की भीम तहसील में)।
    •  ग्रामीणों ने प्रशासन से अपने वेतन व भुगतान के बिल उपलब्ध कराने को कहा।
    •  उन्हें दी गयी मजदूरी में हेरा फेरी हुई थी।
    • आंदोलन के दबाव में राजस्थान सरकार ने कानून बनाया कि जनता को पंचायत के दस्तावेजों की प्रमाणित प्रतिलिपि प्राप्त करने की अनुमति है।
    • पंचायतों के लिये बजट, लेखा, खर्च, नीतियों व लाभार्थियो के बारे में सार्वजनिक घोषणा करना अनिवार्य।
    • 1996 में MKSS ने दिल्ली में सूचना के अधिकार को लेकर राष्ट्रीय समिति का गठन किया।
    • 2004 में सूचना के अधिकार के विधेयक को सदन में रखा गया।
    • जून 2005 में विधेयक को राष्ट्रपति की मंजूरी मिली।
    निष्कर्ष – ये आंदोलन लोकतंत्र के लिये खतरा नहीं होते, बल्कि लोगों में लोकतंत्र के प्रति विश्वास जागृत करते है। इनका उद्देश्य दलीय राजनीति की खामियों को दूर करना होता है। अतः इन्हें समस्या के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिये।

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