NCERT Solutions Class 12th Political Science (स्वतंत्र भारत में राजनीति) Chapter – 5 कांग्रेस प्रणाली चुनौतियाँ व पुनर्स्थापना (Parties and the Party Systems in India) Notes in Hindi

NCERT Solutions Class 12th Political Science (स्वतंत्र भारत में राजनीति) Chapter – 5 कांग्रेस प्रणाली चुनौतियाँ व पुनर्स्थापना (Parties and the Party Systems in India)

TextbookNCERT
Class12th
SubjectPolitical Science (स्वतंत्र भारत में राजनीति)
ChapterChapter – 5
Chapter Nameकांग्रेस प्रणाली चुनौतियाँ व पुनर्स्थापना (Parties and the Party Systems in India)
CategoryClass 12th Political Science Notes in Hindi
MediumHindi
SourceLast Doubt

NCERT Solutions Class 12th Political Science (स्वतंत्र भारत में राजनीति) Chapter – 5 कांग्रेस प्रणाली चुनौतियाँ व पुनर्स्थापना (Parties and the Party Systems in India) Notes in Hindi इस में हम पढेंगें महत्वपूर्ण शब्द, कांग्रेस प्रणाली, भारत में 8 राष्ट्रीय पार्टी है, कांग्रेस के प्रभुत्व का कारण, लाल बहादुर शास्त्री का शासन काल, 1960 दशक को खतरानाक दशक क्यों कहते है ?, इंदिरा गांधी जी के पीएम बनने के समय देश की समस्या, चौथा आम चुनाव 1967, गैर कांग्रेस वाद, गठबंधन, कई दलों का गठबंधन, दल बदल, सिंडिकेट आदि के बारे में।

NCERT Solutions Class 12th Political Science (स्वतंत्र भारत में राजनीति) Chapter – 5 कांग्रेस प्रणाली चुनौतियाँ व पुनर्स्थापना (Parties and the Party Systems in India)

Chapter – 5

कांग्रेस प्रणाली चुनौतियाँ व पुनर्स्थापना

Notes

महत्वपूर्ण शब्द

  • PUF – पापुलर यूनाईटेड फ्रंट
  • SVD – संयुक्त विधायक दल
  • CWC – कांग्रेस वर्किंग कमेटी
  • DMK – द्रविड़ मुनेत्र कड़गम
कांग्रेस प्रणाली – 1947 में भारत आजाद हुआ। आजाद भारत में प्रथम आम चुनाव 1952 में किए गए। भारत में एक लोकतांत्रिक देश है यहाँ बहुदलीय व्यवस्था है। लेकिन भारत में आजादी के बाद से अब तक सत्ता में सबसे अधिक समय तक कांग्रेस पार्टी ही रही है। इतने समय तक सत्ता में रहने के कारण इसे कांग्रेस प्रणाली के नाम से भी जाना जाता है।
भारत में 8 राष्ट्रीय पार्टी है

  1. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
  2. भारतीय जनता पार्टी
  3. बहुजन समाज पार्टी
  4. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी
  5. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी)
  6. राष्ट्रवादी कांग्रेस
  7. ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस
  8. नेशनल पीपुल्स पार्टी
कांग्रेस के प्रभुत्व का कारण

  1. यह आजादी के बाद से अब तक कि सबसे पुरानी पार्टी और देश की सबसे बड़ी पार्टी है।
  2. सबसे मजबूत संगठन।
  3. जवाहरलाल नेहरू, राजीव गांधी, इन्दिरा प्रियदर्शिनी गाँधी जैसे सबसे लोकप्रिय नेता इसमें शामिल थे।
  4. आजादी की विरासत हासिल थी।
  5. इस पार्टी को सभी वर्गों का समर्थन।
नेहरु जी की मौत के बाद उत्तराधिकार का संकट – 1964 के मई में जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु के बाद उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी को लेकर बहस तेज हो गई। ऐसी आशंका होने लगी कि देश टूट जाएगा। देश में सेना का शासन आ जाएगा। देश में लोकतंत्र खत्म हो जाएगा।
लाल बहादुर शास्त्री का शासन काल – कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष के० कामराज थे। जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के बाद लाल बहादुर शास्त्री 1964 से 1966 तक देश के प्रधानमंत्री रहे। शास्त्री जी का 10 जनवरी 1966 को ताशकंद में निधन हो गया। उस समय भारत चीन युद्ध का नुकसान, आर्थिक संकट, सूखा, मानसून की असफलता पाक से युद्ध जैसी घटनाओं से भारत गुजर रहा था।

लाल बहादुर शास्त्री जी के शासन काल के दौरान आई चुनौतिया – लाल बहादुर शास्त्री 1964 से 1966 तक प्रधानमंत्री रहे। इस अवधि में देश ने दो चुनौतियों का सामना किया।

  1. 1965 का भारत – पाकिस्तान युद्ध
  2. खाद्यान्न का संकट (मानसून की असफलता से)

इन चुनौतियों से निपटने के लिये शास्त्री जी ने ‘जय जवान जय किसान का नारा दिया। 1965 के युद्ध की समाप्ति के सिलसिले में 1966 में सोवियत संघ के ताशकंद (वर्तमान में उज्बेकिस्तान की राजधानी) में भारत व पाकिस्तान के मध्य ताशकंद समझौता हुआ। ताशकंद समझौते पर भारत की तरफ से लाल बहादुर शास्त्री व पाकिस्तान की तरफ से मोहम्मद अयूब खान ने हस्ताक्षर किये।

1960 दशक को खतरानाक दशक क्यों कहते है ? – 1960 के दशक को खतरनाक दशक कहा जाता है। क्योंकि इस समय भारत गरीबी, गैर बराबरी, सांप्रदायिक, क्षेत्रीय विभाजन जैसी समस्याओं से गुजर रहा था नेहरू जी के उत्तराधिकारी को बड़ी आसानी से चुन लिया गया। मानसून की असफलता से सूखे की स्थिति 1962 में चीन के साथ युद्ध तथा 1965 में पाकिस्तान के साथ युद्ध। इसीलिये 1960 के दशक को खतरनाक दशक कहा जाता है।
शास्त्री जी के बाद उत्तराधिकारी इंदिरा गांधी जी – शास्त्री जी की मृत्यु के बाद मोरारजी देसाई व इंदिरा गांधी के मध्य राजनैतिक उत्तराधिकारी के लिये संघर्ष हुआ व इंदिरा गाँधी को प्रधानमंत्री बनाया गया। सिंडिकेट ने इंदिरा गाँधी को अनुभवहीन होने के बावजूद प्रधानमंत्री बनाने में समर्थन दिया, यह मान कर वे दिशा निर्देशन के लिये सिंडीकेट पर निर्भर रहेंगी। नेतृत्व के लिये प्रतिस्पर्धा के बावजूद पार्टी में सत्ता का हस्तांतरण बड़े शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हो गया।
इंदिरा गांधी जी के पीएम बनने के समय देश की समस्या

  • मानसून की असफलता,
  • व्यापक सूखा,
  • विदेशी मुद्रा भंडार में कमी,
  • निर्यात में गिरावट
  • सैन्य खर्चे में बढ़ोत्तरी से देश में आर्थिक संकट की स्थिति।
  • इंदिरा गांधी ने अमेरिका के दबाव में रुपए का अवमूल्यन किया। उस समय एक डॉलर 5 रुपए का था तो उसे बढ़ाकर 7 रुपए कर दिया।
चौथा आम चुनाव 1967 – देश की ख़राब स्तिथि और अनुभवहीन नेता होने के कारण विपक्षी दलों ने जनता को लामबंद करना शुरू कर दिया ऐसी स्थिति में अनुभवहीन प्रधानमंत्री का चुनावों का सामना करना भी एक बड़ी चुनौती थी। फरवरी 1967 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव हुए। देश में चुनाव हमेशा की तरह ही आराम से हो गए पर उनके नतीजों ने सबको चौका दिया। कांग्रेस को केंद्र और राज्य दोनों जगह ही गहरा धक्का लगा। कांग्रेस किसी तरह से लोकसभा में सरकार बनाने में सफल रही पर सीटों और मतों की संख्या दोनों में ही भरी गिरावट आई। कांग्रेस के कई बड़े नेता चुनाव हार गए। चुनावों के नतीजों को राजनैतिक भूकम्प का संज्ञा दी गयी। कांग्रेस 9 राज्यों (उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, बिहार, पं. बंगाल, उड़ीसा, मद्रास व केरल) में सरकार नहीं बना सकी। ये राज्य भारत के किसी एक भाग में स्थित नहीं थे। तमिलनाडु में पहली बार एक क्षेत्रीय पार्टी को बहुमत मिला DMK ने सरकार बनाई। इस पार्टी ने हिंदी का राजभाषा के रूप में विरोध किया और इस पार्टी ने सरकार बनाई।
गैर कांग्रेस वाद – जो दल अपने कार्यक्रम व विचारधाराओं के धरातल पर एक दूसरे से अलग थे, एकजुट हुये तथा उन्होंने सीटों के मामले में चुनावी तालमेल करते हुये एक कांग्रेस विरोधी मोर्चा बनाया। समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया ने इस रणनीति को गैर–कांग्रेसवाद का नाम दिया।
गठबंधन – गठबंधन उस स्तिथि को कहते जब दो या दो से ज़्यादा पार्टिया साथ में मिल कर सरकार बनती है। ऐसा इसीलिए किया जाता है क्योकि किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला होता, यानि की किसी भी पार्टी को इतनी सीटे नहीं मिली होती की वह अकेले सरकार बना सके।
कई दलों का गठबंधन – 1967 के चुनावों से गठबंधन की घटना सामने आई। पार्टियों को बहुमत नही मिला। अनेक गैर कांग्रेसी सरकारों ने मिलकर सयुक्त विधायक दल बनाया। गठबंधन में अलग – अलग विचारधाराओ की पार्टी शामिल हुई। जैसे- बिहार – समाजवादी + पी. सी. पी. पार्टी शामिल।

दल बदल – जब कोई जन प्रतिनिधि किसी खास दल के चुनाव चिह्न पर चुनाव जीत जाये व चुनाव जीतने के बाद उस दल को छोड़कर दूसरे दल में शामिल हो जाये तो इसे दल–बदल कहते हैं।

• 1967 के चुनावों के बाद काग्रेस के एक विधायक (हरियाणा) गयालाल ने एक पखवाड़े में तीन बार पार्टी बदली, उनके ही नाम पर ‘आयाराम–गयाराम‘ का जुमला बना। यह जुमला दल बदल की अवधारणा से संबंधित हैं।

सिंडिकेट – कांग्रेस के भीतर प्रभावशाली व ताकतवर नेताओं के समूह को अनौपचारिक तौर पर सिंडिकेट कहा जाता था। इस समूह के नेताओं का पार्टी के संगठन पर नियंत्रण था।

  • सिंडिकेट के नेता राज्य
  • के. कामराज मद्रास
  • (Mid day Meal शुरू कराने के लिये प्रसिद्ध)
  • एस. के. पाटिलएस बम्बई (मुंबई) शहर
  • के. एस. निज लिंगप्पा मैसूर (कर्नाटक)
  • एन. सजीव रेड्डी आंध्र प्रदेश
  • अतुल्य घोष पश्चिम बंगाल

1969 का राष्ट्रपति चुनाव

  • डा. जाकिर हुसैन की मृत्यु के बाद, सिंडिकेट ने तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष एन. संजीव रेड्डी को कांग्रेस पार्टी का उम्मीदवार घोषित कर दिया।
  • इंदिरा गांधी ने तत्कालीन उपराष्ट्रपति वी. वी. गिरि को स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में राष्ट्रपति पद के लिये नामांकन भरवा दिया।
  • इंदिरा गांधी ने अंतरात्मा की आवाज पर वोट देने के लिये कहा, वी. वी. गिरी चुनाव जीत गये।
  • 1969 में राष्ट्रपति पद के चुनावों के बाद कांग्रेस का विभाजन हो गया।
कांग्रेस का विभाजन – सिंडीकेट व इंदिरा गांधी के मध्य बढ़ते मतभेद व राष्ट्रपति चुनाव (1969) में इंदिरा गांधी समर्थित उम्मीदवार वी. वी. गिरी की जीत व कांग्रेस के अधिकारिक उम्मीदवार एन. सजीव रेड्डी की हार से कांग्रेस को 1969 में कांग्रेस को विभाजन की चुनौती झेलनी पड़ी। कांग्रेस (आर्गेनाइजेशन) व कांग्रेस (रिक्विजिनिस्ट) में विभाजित हो गयी।

  • Cong ‘O‘ (सिंडिकेट समर्थित ग्रुप)
  • Cong. (R) (इंदिरा गांधी समर्थित ग्रुप)
निष्कर्ष – 1971 के चुनावों में इंदिरा गांधी ने अपने जनाधार की खोयी हुयी जमीन को पुनः प्राप्त करते हुये, गरीबी हटाओ के नारे से कांग्रेस को एक बार पुनः स्थापित कर दिया।
कांग्रेस के विभाजन के मुख्य कारण 

  • 1969 का राष्ट्रपति चुनाव।
  • बैंको का राष्ट्रीयकरण तथा प्रिवी पर्स जैसे मुद्दो पर तत्कालीन।
  • वित्त मंत्री मोरारजी देसाई से मतभेद।
  • सिंडीकेट व युवा तुर्को में मतभेद।
  • इंदिरा गाँधी की समाजवादी नीतियाँ।
  • इंदिरा गाँधी का कांग्रेस से निष्कासन
  • इंदिरा गाँधी द्वारा सिंडीकेट को महत्व न देना।
  • दक्षिण पंथी व वामपंथी विषय पर कलह।
प्रिवी पर्स उत्तर – यह आजादी के बाद भारत में शामिल रजवाड़ों के राजाओं को दिया गया अधिकार थे जिसके तहत उन्हें विशेष भत्ते तथा निजी संपदा रखने का अधिकार दिया था।
देसी रियासतों का विलय – देसी रियासतों का विलय भारतीय संघ में करने से पहले सरकार ने रियासतों के तत्कालीन शासक परिवार को निश्चित मात्रा में निजी संपदा रखने का अधिकार दिया तथा सरकार की तरफ से कुछ विशेष भत्ते देने का भी आवश्वासन दिया। यह दोनों (निजी संपदा व भत्ते) इस बात को आधार मान कर तय की जायेगी कि उस रियासत का विस्तार, राजस्व व क्षमता कितनी है। इस व्यवस्था को प्रिवी पर्स कहा गया। इंदिरा गांधी ने 1967 के चुनावों की खोई जमीन प्राप्त करने के लिये दस सूत्रीय कार्यक्रम अपनाये इसमें बैंको का राष्ट्रीयकरण, खाद्यान्न का सरकारी वितरण, भूमि सुधार आदि शामिल थे। नोट – 1971 के चुनावों में गैर–साम्यवादी तथा गैर–कांग्रेसी विपक्षी पार्टियों ने चुनावी गठबंधन ”ग्रैंड अलायंस” बनाया। इंदिरा गांधी ने सकारात्मक कार्यक्रम रखा व गरीबी हटाओ का नारा दिया। ग्रैंड अलायंस ने ‘इंदिरा हटाओ‘ का नारा दिया। इंदिरा गांधी ने प्रिसी पर्स की समाप्ति पर चुनाव अभियान में जोर दिया।
चुनाव परिणाम

  • कांग्रेस ‘ आर ‘ व सी . पी . आई 375 सीट
  • गठबंधन 352 कांग्रेस R + 23
  • कप्युनिस्ट पार्टी कांग्रेस 16 सीट
  • ग्रैंड अलायंस 40 से भी कम सीट
कांग्रेस प्रणाली का पुर्नस्थापन – अब कांग्रेस पूर्णतया अपने सर्वोच्च नेता की लोकप्रियता पर अधारित थी। कांग्रेस अब विभिन्न मतों व हितो को एक साथ लेकर चलने वाली पार्टी नहीं थी। यह कुछ सामाजिक वर्गो जैसे गरीब, महिला, दलित, आदिवासी व अल्पसंख्यकों पर निर्भर थी। इंदिरा गांधी ने कांग्रेस को पुर्नस्थापित तो कर दिया परन्तु कांग्रेस प्रणाली की प्रकृति को बदलकर। पार्टी का सांगठनिक ढाँचा भी अपेक्षाकृत कमजोर था।

1971 के चुनावों के बाद, कांग्रेस पार्टी के प्रभुत्व की पुनर्स्थापना के लिए उठाए गए कदम 

  • श्रीमती गाँधी का चमत्कारिक नेतृत्व।
  • समाजवादी नीतियाँ।
  • गरीबी हटाओं का नारा।
  • कांग्रेस दल पर इंदिरा गाँधी की पकड़।
  • वोटों का धुव्रीकरण।
  • कमजोर विपक्षी दल।
गरीबी हटाओ – ‘गरीबी हटाओ‘ का नारा तथा इससे जुड़ा कार्यक्रम इंदिरा गांधी की राजनैतिक रणनीति थी। इसके सहारे वे अपने लिये देशव्यापी राजनीतिक सर्मथन की बुनियाद तैयार करना चाहती थी। इससे इंदिरा गांधी ने वंचित तबको खासकर भूमिहीन किसान, दलित और आदिवासी, अल्पसंख्यक, महिला और बेरोजगार नौजवानों के बीच अपने सर्मथन का आधार तैयार करने की कोशिश की। परिणाम स्वरूप 1971 के चुनावों में पूर्णबहुमत प्राप्त किया।