NCERT Solutions Class 12th Political Science (समकालीन विश्व राजनीति) Chapter – 7 समकालीन विश्व में सुरक्षा (Security in the Contemporary World) Notes In Hindi

NCERT Solutions Class 12th Political Science (समकालीन विश्व राजनीति) Chapter – 7 समकालीन विश्व में सुरक्षा (Security in the Contemporary World)

TextbookNCERT
Class12th
SubjectPolitical Science (समकालीन विश्व राजनीति)
Chapter 7th
Chapter Nameसमकालीन विश्व में सुरक्षा (Security in the Contemporary World)
CategoryClass 12th Political Science 
MediumHindi
SourceLast Doubt

NCERT Solutions Class 12th Political Science Chapter-7 समकालीन विश्व में सुरक्षा Security in the Contemporary World Notes In Hindi सुरक्षा का क्या अर्थ है, सुरक्षा की धारणाएँ क्या है, बाहरी खतरा, आंतरिक खतरा, मानवता की सुरक्षा, विश्व सुरक्षा, सुरक्षा, हथियार नियंत्रण की अपारम्परिक धारणा, आतंरिक सुरक्षा, शक्ति-संतुलन, गठबंधन बनाना, खतरे के नए स्रोत, कॉन्फिडेंस बिल्डिंग, वैश्विक गरीबी, निरस्त्रीकरण, सहयोग मूलक सुरक्षा आदि के बारे में पढ़ेंगे

NCERT Solutions Class 12th Political Science (समकालीन विश्व राजनीति) Chapter – 7 समकालीन विश्व में सुरक्षा (Security in the Contemporary World)

Chapter – 7

समकालीन विश्व में सुरक्षा

Notes

सुरक्षा का क्या अर्थ है – सुरक्षा (Security) हानि से बचाव करने की क्रिया और व्यवस्था को कहते हैं। यह व्यक्ति, स्थान, वस्तु, निर्माण, निवास, देश, संगठन या ऐसी किसी भी अन्य चीज़ के सन्दर्भ में प्रयोग किया जा सकता है जिसे नुकसान पहुँचाया जा सकता हो।

सुरक्षा की धारणाएँ क्या है

1. पारंपरिक धारणा क्या होता है

(i) बाहरी खतरा 

  • सैन्य हमला
  • जनसंहार
  • शक्ति-संतुलन
  • गठबंधन
  • शस्त्रीकरण

(ii) आंतरिक खतरा

  • कानून व्यवस्था
  • अलगाववाद
  • गृहयुद्ध

2 . गैर पारंपरिक धारणा क्या होता है

(i) मानवता की सुरक्षा – (व्यापक अर्ध में भूखा/महामारी और प्राकृतिक विपदा से सुरक्षा)

(ii) विश्व सुरक्षा – नवीन चुनौतियों, आतंकवाद, बीमारियों, जलवायु संकट से सुरक्षा शामिल है

(1) सुरक्षा के पारंपरिक धारणा (बाहरी सुरक्षा) – इस धारणा से हमारा तात्पर्य है राष्ट्रीय सुरक्षा की धरणा से होता है। सुरक्षा की पारंपरिक अवधरणा में सैन्य ख़तरे को किसी देश के लिए सबसे ज्यादा ख़तरनाक माना जाता है। इस ख़तरे का स्रोत कोई दूसरा मुल्क होता है जो सैन्य हमले की धमकी देकर संप्रभुता, स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखंडता जैसे किसी देश के केन्द्रीय मूल्यों के लिए ख़तरा पैदा करता है।
(2) सुरक्षा के पारंपरिक धारणा (आतंरिक सुरक्षा) – इस धारणा से हमारा तात्पर्य है देश के भीतर अंदरूनी खतरों से जिसमें आपसी लड़ाईया, गृह युद्ध, सरकार के प्रति असंतुष्टि से है। यह सुरक्षा आंतरिक शांति और कानून-व्यवस्था पर निर्भर करता है। इसमें अपने ही देश के लोगों से खतरा होता है।

सुरक्षा की अपारम्परिक (गैर-पारंपरिक) धारणा – सुरक्षा की अपारम्परिक धारणा में उन सभी खतरों को शामिल किया जाता है जो किसी एक देश नहीं बल्कि पूरे विश्व के लिए खतरनाक है और इनका समाधान कोई एक देश अकेले नहीं कर सकता। दूसरे शब्दों में कहें तो ऐसे खतरे जो कि पूरी मानव जाति के लिए खतरनाक हो। जैसे कि-

  • ग्लोबल वार्मिंग
  • प्रदूषण
  • प्राकृतिक आपदाएं
  • निर्धनता
  • महामारी
  • आतंकवाद
  • शरणार्थियों की समस्या
  • बढ़ती हुई जनसंख्या

गैर-पारंपरिक धारणा – सुरक्षा की गैर-पारंपरिक धारणाएं सैन्य खतरों से परे जाती हैं जिनमें मानव अस्तित्व की स्थिति को प्रभावित करने वाले खतरों और खतरों की एक विस्तृत श्रृंखला शामिल है। सुरक्षा के गैर पारंपरिक विचारों को मानव सुरक्षा या ‘वैश्विक सुरक्षा‘ कहा गया है। मानव सुरक्षा से हमारा मतलब है कि राज्यों की सुरक्षा से ज्यादा लोगों की सुरक्षा। मानव सुरक्षा की संकीर्ण अवधारणा के समर्थकों ने व्यक्तियों को हिंसक खतरों पर ध्यान केंद्रित किया दूसरी ओर, मानव सुरक्षा की व्यापक अवधारणा के समर्थकों का तर्क है कि खतरे के एजेंडे में भूख, बीमारी और प्राकृतिक आपदा शामिल होनी चाहिए। वैश्विक सुरक्षा का विचार 1990 के दशक में ग्लोबल वार्मिंग, एड्स और इतने पर जैसे खतरों की वैश्विक प्रकृति के जवाब में उभरा।

किसी सरकार के पास युद्ध की स्थिति में विकल्प क्या हो सकता है – बुनियादी तौर पर किसी सरकार के पास युद्ध की स्थिति में तीन विकल्प होते है-

(i) आत्मसमर्पण करना

(ii) दूसरे पक्ष की बात को बिना युद्ध किए मान लेना अथवा युद्ध से होने वाले नाश को इस हद तक बढ़ाने के संकेत देना कि दूसरा पक्ष सहमकर हमला करने से बाज आये या युद्ध ठन जाय तो अपनी रक्षा करना ताकि हमलावर देश अपने मकसद में कामयाब न हो सके और पीछे हट जाए

(iii) हमलावार को पराजित कर देना।

अपरोध – युद्ध में कोई सरकार भले ही आत्मसमर्पण कर दे लेकिन वह इसे अपने देश की नीति के रूप में कभी प्रचारित नहीं करना चाहेगी। इस कारण, सुरक्षा-नीति का संबंध युद्ध की आशंका को रोकने में होता है जिसे अपरोध कहा जाता है।
रक्षा – युद्ध को सीमित रखने अथवा उसको समाप्त करने से होता है जिसे रक्षा कहा जाता है।

परम्परागत सुरक्षा निति के तत्व 

(i) शक्ति-संतुलन

(ii) गठबंधन बनाना

(i) शक्ति-संतुलन – कोई देश अपने ऊपर होने वाले संभावित युद्ध या किसी अन्य खतरों के प्रति सदैव संवेदनशील रहता है। वह कई तरीकों से निर्णय अथवा शक्ति-संतुलन को अपने पक्ष में करने की कोशिश करता रहता है। अपने उपर खतरे वाले देश से शक्ति संतुलन को बनाये रखने के लिए वह अपनी सैन्य शक्ति बढाता है, आर्थिक और प्रोद्योगिकी शक्ति को बढाता है और मित्र देशों से ऐसी स्थितयों से निपटने के लिए संधियाँ करता है।

(ii) गठबंधन बनाना – गठबंधन में कई देश शामिल होते हैं और सैन्य हमले को रोकने अथवा उससे रक्षा करने के लिए समवेत कदम उठाते हैं अधिकांश गठबन्धनों को लिखित संधि से एक औपचारिक रूप मिलता है और ऐसे गठबंधन को यह बात बिलकुल स्पष्ट रहती है कि खतरा किससे है। किसी देश अथवा गठबंधन की तुलना में अपनी ताकत का असर बढ़ाने के लिए देश गठबंधन बनाते हैं

गठबंधन का आधार

  1.  किसी देश अथवा गठबंधन की तुलना में अपनी ताकत का असर बढ़ाने के लिए देश गठबंधन बनाते हैं
  2.  गठबंधन राष्ट्रिय हितों पर आधारित होते है और राष्ट्रिय हितों के बदल जाने पर गठबंधन भी बदल जाते है

एशिया और अफ्रीका के नव स्वतंत्र देशों के सामने खड़ी सुरक्षा की चुनौतियाँ – एशिया और अफ्रीका के नव स्वतंत्र देशों के सामने खड़ी सुरक्षा की चुनौतियाँ यूरोपीय देशों के मुकाबले दो मायनों में विशिष्ट थीं

  1. एक तो इन देशों को अपने पड़ोसी देश से सैन्य हमले की आशंका थी
  2. दूसरे, इन्हें अंदरूनी सैन्य-संघर्ष की भी चिंता करनी थी
सुरक्षा की परंपरागत धारणा में युद्ध निति – सुरक्षा की परंपरागत धारणा में स्वीकार किया जाता है कि हिंसा का इस्तेमाल यथासंभव सीमित होना चाहिए। इसमें ‘न्याय-युद्ध’ की यूरोपीय परंपरा का ही यह परवर्ती विस्तार है कि आज लगभग पूरा विश्व मानता है 

(i) किसी देश को युद्ध उचित कारणों यानी आत्म-रक्षा अथवा दूसरों को जनसंहार से बचाने के लिए ही करना चाहिए

(ii) इस दृष्टिकोण के अनुसार किसी युद्ध में युद्ध-साधनों का सीमित इस्तेमाल होना चाहिए

(iii) युद्धरत सेना को चाहिए कि वह संघर्ष विमुख शत्रु, निहत्थे व्यक्ति अथवा आत्मसपर्मण करने वाले शत्रु को न मारे

(iv) सेना को उतने ही बल का प्रयोग करना चाहिए जितना आत्मरक्षा के लिए जरुरी हो और उसे एक सीमा तक ही हिंसा का सहारा लेना चाहिए

(v) सुरक्षा की परंपरागत धरणा इस संभावना से इन्कार नहीं करती कि देशों के बीच एक न एक रूप में सहयोग हो इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण है निरस्त्रीकरण, अस्त्र-नियंत्रण तथा विश्वास की बहाली

आतंकवाद – आतंकवाद गैर कानूनी कार्य है, जिसका मकसद आम लोगों के अंदर हिंसा का डर पैदा करना है आतंकवाद एक शब्द मात्र नहीं है, यह मानव जाति के लिए दुनिया का सबसे बड़ा खतरा है, जिसे मानव ने खुद निर्मित किया है। कोई भी एक इन्सान या समूह मिलकर यदि किसी जगह हिंसा फैलाये, दंगे फसाद, चोरी, बलात्कार, अपहरण, लड़ाई-झगड़ा, बम ब्लास्ट करता है, तो ये सब आतंकवाद है

भारत में नक्सलवादीयों के रूप में पहली बार आतंकवाद को देखा गया था 1967 में पहली बार बंगाल के क्षेत्र में कुछ लोग उग्र हो गए थे, अपनी बात मनवाने के लिए वे नक्सलवादी बनकर सामने आये थे

खतरे के नए स्रोत – खतरों के कुछ नए स्रोत सामने आए हैं जिनके बारे में दुनिया काफी हद तक चिंतित है। इनमें आतंकवाद, मानवाधिकार,वैश्विक गरीबी, पलायन और स्वास्थ्य महामारी शामिल हैं आतंकवाद राजनीतिक हिंसा को संदर्भित करता है जो नागरिकों को जानबूझकर और अंधाधुंध निशाना बनाता है

मानवाधिकार तीन प्रकार के होते हैं

  • पहला राजनीतिक अधिकार है
  • दूसरा आर्थिक और सामाजिक अधिकार है
  • तीसरा उपनिवेश लोगों का अधिकार है

एक अन्य प्रकार की असुरक्षा वैश्विक गरीबी है अमीर राज्य अमीर हो रहे हैं जबकि गरीब राज्य गरीब हो रहे हैं।

दक्षिण में गरीबी ने भी उत्तर में बेहतर जीवन, विशेषकर बेहतर आर्थिक अवसरों की तलाश के लिए बड़े पैमाने पर पलायन किया है

स्वास्थ्य महामारी जैसे HIV – AIDS, बर्ड फ्लू और गंभीर तीव्र श्वसन सिंड्रोम (SARS) प्रवासन के माध्यम से देशों में बढ़ रहे हैं

यह समझना महत्वपूर्ण है कि सुरक्षा की अवधारणा के विस्तार का मतलब सब कुछ शामिल करना नहीं है

सहयोग मूलक सुरक्षा

1. सुरक्षा के कुछ मुद्दों से निपटने के लिए सैन्य टकराव के बजाय सहयोग की आवश्यकता होती है। आतंकवाद से निपटने के लिए सैन्य मदद ली जा सकती है लेकिन गरीबी, पलायन आदि मुद्दों से निपटने में इसका कोई फायदा नहीं होगा।

2. ऐसे में  ऐसी रणनीतियों को तैयार करना महत्वपूर्ण हो जाता है जिसमें अंतर्राष्ट्रीय सहयोग शामिल होता है जो द्विपक्षीय, क्षेत्रीय, महाद्वीपीय या वैश्विक हो सकते हैं

3. सहकारी सुरक्षा में अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय दोनों तरह के अन्य खिलाड़ी शामिल हो सकते हैं 

4. लेकिन सहकारी सुरक्षा भी अंतिम उपाय के रूप में बल के उपयोग को शामिल कर सकती है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय को तानाशाही से निपटने के लिए बल के उपयोग को मंजूरी देनी पड़ सकती है 

भारत की सुरक्षा रणनीति – भारतीय सुरक्षा रणनीति चार व्यापक घटकों पर निर्भर करती है-

1. सैन्य क्षमताओं को मजबूत करना भारत की सुरक्षा रणनीति का पहला घटक है क्योंकि भारत अपने पड़ोसियों के साथ संघर्षों में शामिल रहा है 

2. भारत की सुरक्षा रणनीति का दूसरा घटक अपने सुरक्षा हितों की रक्षा के लिए अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों और अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों को मजबूत करना है 

3. भारत की सुरक्षा रणनीति का तीसरा महत्वपूर्ण घटक देश के भीतर सुरक्षा चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार है 

4. चौथा घटक अपनी अर्थव्यवस्था को इस तरह से विकसित करना है कि नागरिकों का विशाल जनसमूह गरीबी और दुख से बाहर निकल जाए 

कुछ सबसे जयादा महत्वपूर्ण बातें 

हथियार नियंत्रण – यह हथियार के अधिग्रहण को नियंत्रित करता है।

निरस्त्रीकरण – यह सामूहिक विनाश से बचने के लिए कुछ प्रकार के हथियारों को छोड़ने के लिए कहता है।

कॉन्फिडेंस बिल्डिंग – एक प्रक्रिया जिसमें विभिन्न देश अपने सैन्य योजनाओं के बारे में एक-दूसरे को सूचित करके प्रतिद्वंद्वी देशों के साथ विचार और जानकारी साझा करते हैं।

वैश्विक गरीबी – यह एक देश को कम आय और कम आर्थिक विकास से पीड़ित होने के लिए संदर्भित करता है जिसे कम से कम विकसित या विकासशील देशों के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।

प्रवासन – यह कुछ विशेष कारणों से एक राज्य से दूसरे राज्य में मानव संसाधनों की आवाजाही है।

NCERT Solution Class 12th समकालीन विश्व राजनीति Notes In Hind

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